रविवार, 31 जनवरी 2021

आंसू नहीं समन्दर है...


 

लाल किले के षडय़ंत्र के बाद स्थानीय लोगों के विरोध की साजिश का अब पूरी तरह से पर्दाफाश हो चुका है इसके साथ ही किसानों को राकेश टिकैत के नाम का नेता भी मिल गया है।

किसी भी आंदोलन की सफलता के लिए नेता का होना जरूरी है और अब यह तो होने लगा है कि किसानों का आंदोलन भी अब सफल हो जायेगा। पूरी दुनिया में आंदोलन का अपना इतिहास है और इस इतिहास का अध्ययन करने पर पता चलता है कि आंदोलन को दबाने के लिए सत्ता ने क्या कुछ कुचक्र नहीं चला लेकिन नेता के दृढ़ निश्चय इरादों ने आंदोलन की शर्ते पूरी की हो या न की हो उसने सत्ता की चूलें हिलाकर जरूर रख दी है। 

इस देश में आजादी के बाद हुए जेपी आंदोलन हो या अन्ना हजारे का आंदोलन। सत्ता की बेचैनी किसी से छिपी नहीं है और इन आंदोलनों के परिणाम भी सबके सामने है।

किसान आंदोलन जिस तरह से संयुक्त मोर्चा के साथ दिल्ली के बार्डर पर डटे थे, उसे देखते हुए किसी एक नेतृत्व की कमी लगातार खल रही थी, और इसका परिणाम ही था कि सरकार आंदोलन से निपटने में अपने को सक्षम समझ कर गोल-गोल रानी का खेल रही थी।

लेकिन 26 जनवरी को लाल किला और बार्डर में स्थानीय लोगों को लेकर किया गया षडय़ंत्र ने राकेश टिकैत की आंखों में जो आंसू लाये वह समन्दर बन गया। समन्दर ऐसा कि आंदोलन की आलोचना करने वाले सन्न रह गये और सरकार बेचैन हो उठी। क्योंकि कोई यह नहीं जानता था कि किसानों की अपनी अस्मिता है और जब बात अस्मिता पर आये तो न भूख बड़ी होती है और न ही मौत।

ऐसे में जब राकेश टिकैत ने अपनी आंखों से निकलते आंसू को समन्दर बनते देखे तो उसका वह रूतबा फिर कायम हो गया जो 42 बार जेल जाने के कारणों को नजरअंदाज किया जा रहा था। कल तक जो लोग आंदोलन को केवल पंजाब या हरियाणा के साथ जोड़कर देख रहे थे वे भी अब मानने लगे हैं कि सत्ताा का अहंकार टूट कर रहेगा और तीनों कानून को वापस लेना ही होगा।

राकेश टिकैत का नेतृत्व अब महेन्द्र सिंह टिकैत की याद ताजा करने लगा है और किसान इस नेतृत्व के भरोसे जीत की आशा तो कर ही सकते हैं।