मंगलवार, 30 नवंबर 2010

सजा के jishm न बेचें तो और क्या बेंचे,गरीब लोग हैं घर में दुकान रखते हैं

छत्तीसगढ rajya  बनने के बाद अखबारों की बाढ़ सी आ गई है। कई पत्रकार नौकरी करने की बजाय अपना अखबार निकाल रहे हैं तो राय सरकार की विज्ञापन नीति से प्रभावित होकर बड़े ग्रुप भी कूद गए हैं। अखबार क्या अच्छा खासा मनोरंजन का साधन बन गया है। खबरों के नाम पर सूचना या फिर ओब्लाईजेशन का नजारा ही अधिक दिखाई देने लगा है। सारे बड़े अखबार पेज मेकर के हवाले हैं। खबरें कैसे बननी है इसकी बजाय अखबार कैसे सजाए जाएं इस पर यादा ध्यान हैं। विज्ञापन बटोरने के अलावा लोग बनाने की तमन्ना भी यादा दिखलाई पड़ रहा है। ऐसे में पत्रकार से अखबार मालिक बने लोगों की अपनी पीड़ा है अच्छी खबरों के बाद भी पढ़ने वालों की कमी से जूझ रहे अखबार भी अब साज-साा पर जोर देने लगे हैं।
पिछला सप्ताह यानी काला सप्ताह
पिछले सप्ताह पुलिस ने दो पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की। दामू आम्बेडारे तो दामू बदनाम हुआ डार्लिंग तेरे लिए का गाना गाते घूम रहा है। बमुश्किल से जमानत मिलने के बाद प्रेस क्लब से निलंबित भी किए गए। 15 दिन के भीतर जवाब सही मिला तो ठीक वरना। दूसरा मामला धोखाधड़ी का है। हैलो रायपुर निकाल रहा मधुर को जमीन का कारोबार रास नहीं आया लोग दूसरा काम छोड़ अखबार निकाल रहे है और ये अखबार से दूसरे काम की ओर जा रहा है तो फंसना तो है ही।
छत्तीसगढ़ अब सुबह की ओर...
एक कहावत है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो इसे भूला नहीं कहते। सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ निकाल रहे सुनील कुमार अब सुबह का अखबार निकालने की कोशिश में है। इसे देर आए दुरुस्त आए भी कहा जा सकता है। अखबार भी अच्छा निकालों और दो घंटे में पढ़ाओं। यह अकल तो पहले आनी चाहिए थी। पर हाइवे का भूत अब जाकर उतरा है।
भास्कर की छटपटाहट
मीडिया जगत के इस नए छत्रप की दिक्कते बढ ग़ई है। अपनी जमीन में बनी बिल्डिंग को तोड़कर 14 मंडिला बनाने की कवायद में किराए के भवन में जाना पड़ा तो नेशनल लुक भी वहीं पहुंच गया और अब पत्रिका दुश्मन बन गया है। ऐसे में विज्ञापन दर कम करने की मजबूरी के बाद भी सर्कुलेशन कम होने लगे तो छटपटाहट स्वाभाविक है।
प्रेस क्लब का चुनाव जनवरी में
प्रेस क्लब का चुनाव जनवरी के प्रथम सप्ताह में कराए जाने की सुगबुगाहट शुरु हो गई है। इसके पहले मतदाता सूची और आडिट रिपोर्ट का काम चल रहा है। दावेदार भी अभी से गुणा-भाग करने लगे हैं।
और अंत में...
राजधानी की चिंता के साथ छत्तीसगढ़ में कदम रखने वाले पत्रिका का तेवर कहां है? यह सवाल करने वाले अब इसे उसके दुश्मन भास्कर से ही तुलना करने लगे है ''अरे यह तो दूसरा भास्कर है।''

सोमवार, 29 नवंबर 2010

जय बोलों बेईमान की...

सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार के वकील ने जिस बेहूदे ढंग से कहा कि किसी की नियुक्ति में ईमानदारी अंतिम योगय्ता है तो फिर नियुक्ति के लिए लोग नहीं मिलेंगे।
यह कथन उन लोगों के गाल पर तमाचा है जो लोग ईमानदारी को ही सर्वोपरि समझते हैं? और यदि सरकार को ही सर्वोपरि समझते हैं? और सरकार के वकील इस तरह की बात करें तो फिर यह अराजकता के सिवाय कुछ नहीं है। फिर काहे की सरकार, काहे की न्याय व्यवस्था और काहे का कानून?
केंद्र सरकार में जरा भी नैतिकता है तो उन्हें ऐसे वकीलों का लाइसेंस जब्त कर लेना चाहिए जो इस तरह की बात करता हो? सरकार और उसमें बैठे लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह दुनिया तभी कायम है जब ईमानदारी जिन्दा है।
ईमानदारी आम लोगों में अधिक है। नेता और अधिकारी भ्रष्ट हो चुके हैं और पदों में बेईमानों को बिठाया जा रहा है तो इसके लिए ईमानदारी को गाली देना कहां तक उचित है। बेईमान इसलिए बढ़े हैं क्योंकि हमारी व्यस्वथा ही ऐसी है।
एक जमाना था जब नैतिकता लोगों के रग-रग में बसी थी। छोटी सी भी खबर से नौकरी तक चली जाती थी। अब नौकरी का डर नहीं है, क्यों? इसलिए क्योंकि जनता ने जिस पर भरोसा किया व भी वेतनभोगी हो गए! उन्हें भी जनसेवा की आड़ में वेतनभत्ता और राजसी एय्याशी चाहिए?
छत्तीसगढ़ में ही डा. रमन सिंह ने क्या कभी मंत्रालय में घूम कर देखा है कि दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कक्ष का द्वार को या भीतर के राजसी ढाढ को? ऐसे कैसे अनुमति दी जा सकती है?
क्या अखबारों में छप रहे भ्रष्टाचार की खबरों को सरकार ने संज्ञान में लेकर किसी तरह की कार्रवाई की। क्या किसी घोटाले में सचिव और मंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया गया? बेशर्मी यहां है! और बेशर्मी तो तब बढ़ जाती है जब किसी मंत्री के गोंदिया में रहने वाले साले की संपत्ति 7 सालों में 70 गुणा बढ़ जाती है और इस पर भी कार्रवाई नहीं होती? बेशर्मा तब और बढ़ जाती है जब मंत्री बनते ही भाई संस्कृति विभाग में दलाली करने लगता है। अपने भाई को दलाल कहते सुनने के बाद भी शर्म नहीं आये तो इसे क्या कहा जा सकता है।
केंद्र सरकार के वकील को यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों ने ईमानदारी नहीं बरती होती तो आज वे वकील नहीं होते? ईमानदारी आज भी जिन्दा है तो सरकारें जिंदा हैं।
ये अलग बात है कि वेतन भोगी लोगोंमें बेईमानी यादा है इसकी वजह व्यवस्था का दोष है। पकड़े जाने के बाद भी नौकरी पर आंच नहीं आने की जटिलता से बेईमानों के हौसले बुलंद है।
छत्तीसगढ़ में ही आईएएस बाबूलाल अग्रवाल का क्या हुआ? मालिक मकबूजा कांड में वेतनवृध्दि प्रमोशन रुकने के बाद नारायण सिंह का क्या हुआ? ऐसे लोगों को प्रमोशन देने की कोशिश पर सरकार की चुप्पी क्या बेईमानों के हौसले नहीं बढ़ाती है। परिवहन इंस्पेक्टर विनय कुमार अनंत हो या डॉ. आदिले? सरकार प्रमाणित होने के बाद भी नौकरी से क्यों नहीं निकाल देती। यदि बेईमानों में खौफ नहीं होगा तो कैसे ईमानदार लोग सामने आयेंगे?
ऐसा नहीं है कि ईमानदार लोग आगे नहीं आते। ऐसे कई मामलों में वेतनभोगियों में भी हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी ईमानदारी में गुजार दी। अब तो यह जुमला भी सुनने को मिल जाता है कि ईमानदार वही है जिन्हें मौका नहीं मिला। इन सबसे बावजूद अब भी ईमानदारी कायम है और दुनिया भी!

शनिवार, 27 नवंबर 2010

बिहार का चुनाव परिणाम भाजपाईयों को भी चेतावनी ....

बिहार के चुनाव परिणाम यदि लालू और कांग्रेस के गाल पर तमाचा है तो भाजपा के लिए भी स्पष्ट चेतावनी है कि लोग हर हाल में शांति से जीवन जीना चाहते हैं। दो जून की रोटी और सुकून की नींद ही हमारी नई आजादी की लड़ाई का उद्देश्य है। बिहार में नीतिश कुमार की जीत हमारी इसी नई आजादी की जीत है। जहां कानून व्यवस्था मजबूत हो, विकास के द्वार खुल रहे और आप लोगों को बेहतर जीवन मिले।
बिहार के चुनाव परिणाम आने वाली राजनीति की दिशा तय करेगी। अब जाति और धर्म को राजनीतिक रूप देने की किसी भी कोशिश को जनता समझने लगी है। क्योंकि ये झगड़े सिर्फ सत्ता पाने का माध्यम है और लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है कि सरकार किसकी रहे वह तो बस अच्छी सरकार चाहती है। बिहार में न तो लालू का जाति वाला जादू चला और न ही कांग्रेस के राहुल का परिवारिक जादू ही काम आया। भाजपा के धर्म आधारित राजनीतिक को भी नीतिश कुमार ने पहले ही हाशिये में डाल रखा था। नरेन्द्र मोदी के कट्टर हिन्दुत्व के चेहरे को जिस बेबाकी से नीतिश कुमार ने नोचा था तभी से ही उनकी जीत का मार्ग प्रशस्त हो गया था।
वे दिन अब लदने लगे हैं जब पारिवारिक पृष्ठभूमि मायने रखती थी। अब वे युवा पढ़-लिखकर नई सोच के साथ जीना पसंद करते हैं। हर जाति और हर धर्म के युवा एक छत के नीचे न केवल काम कर रहे हैं बल्कि अपनी जिन्दगी का सुख-दुख और यहां तक की पारिवारिक रिश्ते भी कायम कर रहे हैं। ऐसे में जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने वालों की दुर्गत स्वाभाविक है।
नीतिश कुमार के पहले बिहारी शब्द से आम लोगों को चिढ़ होने लगी थी। बिहार में माफियाओं का राज था। दिन ढलते ही दहशत के साये में जीते लोगों ने जब हिम्मत करके नीतिश को गद्दी पर बिठाया तो उन्होंने जिम्मेदारी बखूबी निभाई। कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति को तो मजबूत किया ही गया। विकास के नये आयाम स्थापित किया। आम लोगों में व्याप्त भय को दूर करने का विश्वास ही उन्हे पुन: सत्तासीन किया है।
लालू की हरकत नौटंकी बन गई और राहुल का क्रेज भी यहां खत्म हो गया तो इसके पीछे नीतिश की वह सोच है जिसमें भाजपा के नरेन्द्र मोदी जैसे चेहरे को भी वे बर्दाश्त नहीं करते। भाजपा भले ही इस जीत में अपना श्रेय ढूंढ़ रही हो लेकिन सच्चाई वह भी जानती है कि यदि नीतिश की राह पर वे नहीं चले होते तो वह भी आज लालू-पासवान और कांग्रेस के साथ खड़ी होती।
नई आजादी की लड़ाई ऐसे ही सरकार के लिए हैं जहां भय, भूख और भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार भी ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। विकास की सारी सुविधाएं शहरों में ही देने की बजाय गांवों में भी पहुंचे। बिसलरी पीने वाले नेता-अधिकारी गांव वालों को तो कम से कम सहज रूप से पीने का पानी पहुंचाये। उद्योगों को पानी और बिजली की वकालत करने वाले खेतों को पानी पहुंचाने का काम करें। स्वास्थ्य सुविधा गांव-गांव तक पहुंचे और माफियाओं के खिलाफ कड़ा कानून बने।
गृह निर्माण मंडल का राविप्रा जैसी संस्थानों में एक व्यक्ति एक मकान के सिध्दांत को लागू करें। इसमें न केवल अपना मकान का सपना पूरा होगा बल्कि सस्ते दर में मकान उपलब्ध हो जायेंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार के लिए भी बिहार चुनाव के परिणाम चुनौती है। वहां माफिया भाये तो यहां डेरा डालने लगे है। बिहार में नीतिश ने अपहरण फिरौती करने वालों को जेल में डाल दिया तो यहां वारदात बढ़ रही है। कृषि जमीन और सरकार जमीनों को विकास के नाम पर बंदरबांट करना बंद करना होगा और दमदार मंत्री, भ्रष्ट मंत्री और ऐसे ही अधिकारियों पर नकेल कसनी होगी।

बुधवार, 24 नवंबर 2010

छत्तीसगढ़ में भी कई राजा

मंत्रियों-अधिकारियों व नेताओं की संपत्ति  कई गुणा हुई
 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मामले में अंतत: केंद्रीय मंत्री राजा को इस्तीफा देना पड़ा लेकि छत्तीसगढ़ में भी कई मंत्री व अधिकारी हैं जिन्होंने रातों रात अपनी संपत्ति कई गुणा कर ली। पर्यटन में रोपवे घोटाले हो या पीडब्ल्यूडी में सड़क घोटाले, शिक्षा विभाग स्वास्थ्य, खनिज ऊर्जा में तो घोटाले की फेहरिस्त है लेकिन इस ओर न तो विपक्षी कांग्रेस का ही ध्यान है और न ही जांच एजेंसी की रूचि ही है।
छत्तीसगढ़ राय बनने के बाद यदि भाजपा द्वारा अजीत जोगी सरकार के घोटाले की फेहरिस्त उजागर की गई और सत्ता में आते ही इन घोटालों पर से पर्दा नहीं उठाया गया तो इसके पीछे भाजपा सरकार में मंत्रियों व अधिकारियों की करतूतें हैं जिन्होंने 5-7 सालों में ही अपनी संपत्ति कई गुणा बढ़ा ली। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इन मामलों में कांग्रेस की भूमिका भी संदिग्ध होने लगी है। रमन सरकार के सर्वादिक चर्चित घोटाले में स्वास्थ्य विभाग का घोटाला है जिसके आरोपियों को सरकार संरक्षण दे रही है। करोड़ों रुपये के डाफ्टर खरीदी के अलावा पूर्व स्वास्थ्य सचिव बाबूलाल अग्रवाल के मामले में भी रमन सरकार कटघरे में है। आनन-फानन में बहाली की वजह सीए हाऊस पर लेन-देन का आरोप भी लग चुका है। यहां दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभागों मेंहुए घोटाले की कहानी को भी बेशर्मी से दबाई गई। बृजमोहन अग्रवाल जब गृहमंत्री थे तब तो उनके भाईयों पर कई गंभीर आरोप ही न लगे बल्कि आम चर्चा यह रही कि उनके भाईयों ने इस दौरान गृहमंत्री की भूमिका निभाते रहे हैं और शहर ही नहीं कई क्षेत्रों में विवादास्पद जमीनों की खरीदी भी की। कबाड़ कांड के हीरो रहे कैलाश अग्रवाल भी बृजमोहन के रिश्तेदार हैं और उन पर चोरी का लोहा और ट्रक गायब करने तक के आरोप लगे हैं। संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में तो बृजमोहन अग्रवाल के लाड़ले भाई योगेश अग्रवाल पर न केवल कलाकारों को बुलाने एवज में दलाली लेने बल्कि मनमानी चलानेका भी आरोप लगता रहा है। बृजमोहन के एक अन्य विभाग पर्यटन में तो विवादास्पद अफसरों को खोज खोज के दूसरे विभाग से लाया गया। अजय श्रीवास्तव पर तो सिमगां कांड तक के आरोप रहे हैं और उसे बृजमोहन अग्रवाल ने दुग्ध संघ से पुलिस और फिर पर्यटन में लाया। पर्यटन में सिर्फ विवादास्पद अधिकारयिों की नियुक्ति का ही मामल नहीं है यहां अरपों रुपये के घोटाले की फाइलें जांच के अभाव में धूल खा रही हैं। स्टेशनरी घोटाला हो या मोटल निर्माण में घोटाले की बात हो। मोटलों के बाउण्ड्री से लेकर खास घोटाले यहां सुर्खियों में रहे हैं। तिरथगढ़ में रोप वे बनाने के लिए कानून बनाने के लिए बगैर नाम पते के किसी शुक्ला को 2 करोड़ दे दिया गया और इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बृजमोहन अग्रवाल के एक अन्य विभाग शिक्षा विभाग में तो भर्ती से लेकर तबादले और पदोन्नति में भी जमकर कमीशन खोरी की चर्चा रही। यही चर्चा पीडब्ल्यूडी में भी यह भी बृजमोहन अग्रवाल का ही विभाग है। सड़क निर्माण की इस एजेंसी में घटिया सड़क के एवज में करोड़ों रुपये खाये गये यही नहीं डामर घोटाले के आरोपी को भी बचा लिया गया। बृजमोहन ही नहीं अजय चंद्राकर पर भी करोड़ों रुपये अर्जित करने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश सरकार के कई मंत्री व अधिकारी है जिन पर खुलेआम डंके की चोट पर भ्रष्टाचार करने के आरोप हैं।

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

कोयले की कमाई ग्लोब में लुटाई

हीरा ग्रुप ने भारत का गलत नक्शा वाला ग्लोब बांटा
महंगे गिफ्ट लेने वालों का नाम सार्वजित हो, सरकार चुप
छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित उद्योग समूह माने जाने वाले हीरा ग्रुप पर कोल ब्लाक का दाग अभी पूरी तरह से छूट भी नहीं पाया है कि वह एक बार फिर छत्तीसगढ़ के अधिकारियों व नेताओं-मंत्रियों को भारत का गलत नक्शा वाला ग्लोब बांटने को लेकर विवाद में आ गया है। इस मामले में हीरा ग्रुप की गलती कितनी है यह जांच का विषय तो हो सकता है लेकिन यह बात खुलकर सामने गई है कि बड़े उद्योग किस तरह से अधिकारियों व नेताओं को रिझाने महंगे गिफ्ट देती है। गिफ्ट लेने वाले अफसरों का नाम भी सावर्जनिक होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के इस उद्योग समूह ने दीपावली में छत्तीसगढ़ के नेताओं-मंत्रियों और अधिकारियों को कार्पोरेट गिफ्ट बांटा. इस गिफ्ट में जो ग्लोब बांटे गए उसमें भारत के नक्शे से जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश ही गायब हैं। इस मामले को नागरिक संघर्ष समिति के डा. राकेश गुप्ता, अमिताभ दीक्षित, हरचरण जुनेजा और विश्वजीत मित्रा ने उठाते हुए मांग की कि हीरा ग्रुप इस गलती के लिए न केवल सार्वजनिक रूप से माफी मांगे बल्कि गिफ्ट वापस मंगवाकर जयस्तंभ में इसे जला दें। उन्होंने आश्चर्य जताया कि इतने बड़े मामले पर जांच एजेंसी की नजर नहीं पड़ी जबकि निर्माण कंपनी और हीराग्रुप पर भी उन्होंने देश विरोधी इस कार्रवाई के लिए जुर्म दर्ज की मांग सरकार से की। सरकार ने अभी तक इस पर जुर्म दर्ज नहीं किया है।
दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि इस बेशकीमती गिफ्ट हजारों की संघ्या में छत्तीसगढ़ के उन विभागों के अफसरों को बांटी गई है जिनका उद्योग समूह को आये दिन वास्ता पड़ता है। जिनमें बिजली, कोयला, खनिज और उद्योग विभाग के अफसर प्रमुख है। इसके अलावा मंत्री, विधायक व नेताों को भी यह बेशकीमती गिफ्त दी गई है।
कोल ब्लाक मामले में दाग लग चुके इस उद्योग समूह के इस करतूत से यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि किस तरह से अपने पक्ष में करने उद्योग समूहों द्वारा गिफ्ट बांटे जाते हैं। क्या इस पर आयकर विभाग भी नजर डालेगा। दूसरीतरफ ऐसे लोगों से गिफ्ट लेना किस तरह उचित है। आम लोगों में इसे लेकर काफी तीखी प्रतिक्रिया है। बहरहाल इस सम्पूर्ण मामले में हीरा ग्रुप को एक बार फिर विवाद में तो लिया ही है प्रदेश के मंत्री और अफसरों पर भी उंगली उठने लगी है।

सोमवार, 22 नवंबर 2010

मंत्री भाई की रूचि से चेम्बर चुनाव में विवाद!

आगामी माह होने वाले प्रतिष्ठित व्यापारी संगठन छत्तीसगढ़ चेम्बर आफ कामर्ल एंड इंडस्ट्रीज के चुनाव में प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के लाड़ले भाई योगेश अग्रवाल की रूचि से विवाद बढ़ गया है। कहा जाता है कि इस बार चुनाव में सत्ता की ताकत को बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है जिसकी वजह से चेम्पर के पूर्व अध्यक्ष पूरनलाल अग्रवाल नाराज हैं और कई व्यापारियों ने चिंता जताई है।
छत्तीसगढ़ चेम्पर का चुनाव को लेकर व्यापारियों में जबरदस्त चर्चा है। वर्तमान अध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी के द्वारा पुन: अध्यक्ष बनने में रूचि दिखाने को विरोधी गुट पचा नहीं पा रहे हैं जबकि पूर्व अध्यक्ष पूरनलाल अग्रवाल ने भी अध्यक्ष बनने की ईच्छा जता दीहै। इधर पिछली बार ही चुनाव भले ही शांतिपूर्ण निपट गया था लेकि कहा जाता है कि चेम्बर की राजनीति को लेकर योगेश अग्रवाल और पूरनलाल अग्रवाल में ठन गई थी। मामला चमकी धमकी और रायपुर में रहने देने तक पहुंच गया था और एक पक्ष ने माफी नामे के बाद ही मामला शांत हो पाया था।
इस बार भी चेमबर चुनाव में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई योगेश अग्रवाल ने न केवल रूचि दिखाई है बल्कि बैठकों में वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। कहा जाता है कि जरूरत पड़ने पर वे भी अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकते हैं। योगेश की इस रूचि से व्यापारियों के एक बड़े वर्ग में नाराजगी बताई जा रही है। दरअसल योगेश पर जमीन मामले से लेकर पिटाई व धमकी-चमकी के आरोप भी लगे हैं ऐसे विवादित को अध्यक्ष बनाने को लेकर व्यापारियों का एक वर्ग नाराज है यही वजह है कि पूरनलाल अग्रवाल और श्रीचंद सुंदरानी पुन: अध्यक्ष बनने को इच्छुक है।
चेम्बर सूत्रों के मुताबिक व्यापारियों पर पूरनलाल अग्रवाल और श्रीचंद सुंदरानी का अच्छा खासा प्रभाव है जबकि योगेश को राईस मिल एसोसियेशन तक का ठीक ढंग से समर्थन नहीं मिलने की चर्चा है। इधर व्यापारियों की एकता को बनाये रखने पांच सदस्यीय समिति बनाई गई है। जिसमें रमेश रमोदी, भारामल, पोहूमल,हरचरण सिंह साहनी और सुशील अग्रवाल शामिल है जो व्यापारी एकता पैनल में सर्वसम्मत उम्मीदवार का चयन करेंगे।
इधर व्यापारी नेता आनंद चोपकर ने निगम द्वारा तोड़फोड़ के मामले में चेम्बर की भूमिका को लेकर सवाल उठा दिया है जिसकी वजह से भी चुनाव में इस बार गर्मी बढ़ गई है। जबकि जितेंद्र बरलोटा, राजेंद्र जग्गी, गुलवानी, संधु जैसे लोग भी चुनाव लड़ने इच्छुक हैं।
सर्वाधिक घमासान की स्थिति अध्यक्ष और महामंत्री के पद को लेकर है। और इन पदों के लिए जिस तरह से मंत्री भाई ने रूचि दिखाई है उससे इस बार हंगामा खड़ा होने की संभावना भी जताई जा रही है।

रविवार, 21 नवंबर 2010

अनुपातहीन संपत्ति, फर्जी रजिस्ट्री, पत्नी को मारने के प्रयास के बाद भी नौकरी कायम!

पैसा और पहुंच -1


अनुपातहीन संपत्ति, फर्जी रजिस्ट्री, पत्नी को मारने के प्रयास के बाद भी नौकरी कायम!

छत्तीसगढ़ राय को बने 10 साल पूरे हो गये हैं किसी भी राय के विकास और कानून व्यवस्था कायम रखने दस बरस कम नहीं होते है। छत्तीसगढ़ के आम लोगों ने इन दस वर्षों में क्या पाया यह मायने नहीं रखता है। मायने यह रखता है कि हमने जो कुछ पाया वह किन शर्तों में पाया। क्या सरकार में बैठे लोगों ने नैतिकता का पालन किया। भ्रष्ट व चरित्रहीन सरकारी नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई हो पाई। या सिर्फ वोट बैंक और नोट कमाने का जरिया ही सर्वोपरि है। एक रिपोर्ट......

आज यहां हम सरकारी नौकरी यानि परिवहन विभाग के निरीक्षक विजय कुमार अनंत की बात कर रहे हैं। वैसे तो परिवनह यानी आरटीओ की सबसे कमाऊ विभाग में गिनती होती है। यहां कार्यरत आरटीओ इंस्पेक्टर विजय कुमार अनंत छत्तीसगढ़िया है और बिलासपुर क्षेत्र के निवासी है।

इनके खिलाफ जनवरी 2006 में जब आर्थिक अपराध ब्यूरो ने कार्रवाई की तब पता चला कि अनंत के पास एक करोड़ से ऊपर की अनुपातहीन संपत्ति मिली। तब प्रकरण क्रमांक 1-103 में अपराध पंजीबध्द किया गया। मीडिया से लेकर आम लोगों ने खूब हल्ला मचाया। लेकिन आर्थिक अपराध ब्यूरो ने चार साल बीत जाने के बाद भी चालान पेश नहीं किया। जनवरी 2011 में 5 साल पूरे हो जाएंगे। जाहिर है पैसे की ताकत के आगे ही ऐसा हुआ होगा। इस दौरान अनंत जगदलपुर में पदस्थ थे।

अनंत का मामला यहीं खत्म नहीं होता। इसके पहले उन पर ग्राम मुजगहन की जमीन की फर्जी रजिस्ट्री कराने का भी आरोप लगा है। कहा जाता है कि 10-2-2004 को अशोक वर्मा ने अनंत को जो जमीन की रजिस्ट्री कराई। इस दौरान वह रजिस्ट्री आफिस में मौजूद ही नहीं था। इस दिन सरकारी रिकार्ड के मुताबिक वह लोदाम स्थित शंकर बेरियर में डयूटी पर न केवल तैनात था बल्कि इस दौरन उन्होंने चालानी कार्रवाई तक की। ऐसे में 10-2-2004 को उनके उपस्थिति की बात ही बेमानी थी। इसका सबूत तब मिला जब अनंत ने 5-5-2005 को इसी जमीन के बाजू स्थित जमीन की रजिस्ट्री के दौरान उपस्थित हुआ तब दोनों हस्ताक्षर भिन्न मिले।

मामली यही खत्म नहीं होता इस साल 2010 को उनकी पत्नी उर्मिला ने कोर्ट में शपथ पत्र दिया कि उसके पति विजय कुमार अनंत ने उन्हें जान से मारने की कोशिश की उन पर मिट्टी तेल डाला गया। इस दौरन अनिता नायक महिला ने भी द्वारा उन्हें मारने में सहयोग देने की बात कही गई। इस पर न्यायालय ने अनंत के खिलाफ धारा 307 के तहत कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया। ये विजय कुमार अनंत पर लगे आरोप हैं। इन आरोपों के बाद भी उनकी नौकरी कायम है और सरकार में बैठे संबंधित विभाग के अधिकारी से लेकर मंत्री तक खामोश है।

इस संबंध में जब हमने संबंधित लोगों सेचर्चा करनाचाही तो सभी का रटा रटाया डायलाग था कि सिर्फ आरोप से कुछ नहीं होता जबकि अनंत से संपर्क नहीं हो पाया।

शनिवार, 20 नवंबर 2010

बात जब निकली है तो दूर तलक जायेगी!

पत्रिका का आना खबर प्रेमियों के लिए शुभ साबित हो रहा है तो नेताओं और अधिकारियों की बेचैनी बढ़ गई है। यह बात अलग है कि बेशर्मी इतनी ज्यादा  है कि कार्रवाी नहीं हो रही है लेकिन सिर्फ कार्रवाई नहीं होने के नाम पर खबर तो नहीं रोकी जा सकती।
लगातार भ्रष्ट आचरण की खबरों से सरकार और उसमें बैठे अधिकारी परेशान है। लेकिन बचने के रास्ते निकाल लिए जा रहे हैं और जिम्मेदारी से मुकरा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ के मीडिया के इस तेवर से हैरानी भले ही न हो लेकिन अचानक चले इस बयार से राज्य  बनने के पहले की प्रतिष्ठा को लौटा दी है। उन लोगों के मुंह में भी तमाचा जड़ गया है जो लोग मीडिया को सेटर और बिक जाने का दावा करते थे। अब तो सिर्फ सरकारी बेशर्मी की चर्चा ही अधिक हो रही है।
मृत देश की चर्चा
छत्तीसगढ़ से एक बड़े कांग्रेसी नेता के भाई के अखबार ने अपने शिक्षण संस्थान में गबन पर खूब हल्ला मचाया। हालाकि गबन का आरोपी धरा गया और उसे जेल भिजवा कर ही दम लिया गया लेकिन आम लोगों की चर्चा का क्या वे तो बोल ही रहे कि दो-ढाई लाख के गबन पर इतना हाय तौबा मचाने वाले जब ग्रामोद्योग में करोड़ों का गबन करते हैं तब दूसरे लोगों को भी हल्ला मचाना चाहिए।
बेचारा दामू
प्रेस क्लब के इस स.सचिव दामू आम्बेडोर को कानूनी दांव पेंच की वजह से अंदर होना पड़ा। दरअसल प्रेम प्यार के फेर में फंसे इस पत्रकार को फंसा दिया गया और उसके सहयोगी पदाधिकारियों ने भी पल्ला झाड़ लिया। सब कुछ शांति से निपटने से पुलिस भी राहत में है क्योंकि मामला ही ऐसा था कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत  ही नहीं हुई।
बौना बंधु फुर्र हुए
प्रेस क्लब में पिछले दिनों बौना बंधुओं ने कांफ्रेंस रखी। उनकी अपनी पीड़ा है लेकिन संयोग से पत्रिका मे भी एक फोटोग्राफर बौना बंधु है। संगठन से जुड़ने इस बंधु को जब साथी फोटोग्राफरों ने दबाव डाला तो वह भाग लिया। ग्रुप फोटो के दौरान हीरा की खोज खबर होते रही।
और अंत में ...
राज्य  बनने के बाद छत्तीसगढ़ के प्रिंट मीडिया में हरियाली है। वेतन के लिए दिन नहीं गिनने पड़ते लेकिन डीडी न्यूज में काम करने वाले परेशान है। 12 लाख आने की खबर की खुशी भी इंतजार में खत्म होने लगी है।

खबर

  घुसेरा पंचायत का स्कूल जर्जर
रायपुर। अभनपुर विकासखंड के ग्राम घुसेरा के सरपंच कुमारी बाई ने बताया कि उनके यहां प्राथमिक शाला भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है वहीं स्कूल मार्ग की हालत भी दयनीय है जिसके चलते छात्र-छात्राओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने आंगन बाड़ी केंद्र के लिए भवन निर्माण की भी मांग की है।
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पंचायत भवन जर्जर
रायपुर। अभनपुर विकास खंड के ग्राम पंचायत सिंगारभाठा स्थित पंचायत भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है। यह जानकारी देते हुए सरपंच ने बताया कि उन्होंने इसकी सूचना जनपद पंचायत अभनपुर को कई बार दी है लेकिन कोई कार्रवाई नहींहो रही है। पंचायत भवन में बैठना तक मुश्किल हो गया है।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

कमल विहार योजना को लेकर राजधानी के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत में भिड़ंत हो गई। हालांकि मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस जंग को यह कहकर टाल दिया कि योजना लागू की जाएगी और जनप्रतिनिधियों से राय लेकर विसंगतियां दूर कर दी जाएगी। कहते हैं इस योजना के पीछे मुख्य उद्देश्य भाजपा के चुनाव चिन्ह को प्रचारित करने के अलावा पैसा खाना भी है। पूरी योजना को जिस तरह से जबरिया लागू करने की कोशिश की गई वह आम लोगों के साथ चार सौ बीसी के अलावा कुछ नहीं है। धारा 50 का उल्लंघन तो किया ही गया क्षेत्रीय विधायकों-सांसदों तक से राय लेने की जरूरत नहीं समझी गई।
इसी योजना के सूत्रधार की नियत पर पहले से ही संदेह रहा है। अमित कटारिया का नाम राजधानी वालों के लिए नया नहीं है उसके अंधेरगर्दी मचाने के किस्से नगर निगम में भी खूब चर्चा में रही है और उन्हें अपनी करतूत की वजह से ही निगम से हटना पड़ा। लेकिन उसने अपनी ईमानदारी का ऐसा जाल अपने आसपास बुन रखा है कि आम जनता को भी लगने लगा कि उनके साथ गलत हुआ औार शायद सरकार को भी लगा कि ईमानदार अफसर हतोत्साहित न हो और अमित कटारिया को राविप्रा में बिठा दिया गया जहां से कमल विहार की बुनियाद रखी जानी थी।
योजना का विरोध बृजमोहन अग्रवाल द्वारा किया जाने के पीछे भले ही उनका निहित स्वार्थ हो लेकिन योजना का खुलेआम विरोध विधायक देवजीभाई पटेल से लेकर सांसद रमेश बैस कर चुके थे। पूरी योजना में जिस तरह से आम लोगों के साथ धोखाधड़ी व चार सौ बीसी की जा रही थी। सच छपाया जा रहा था और लोगों को लूटने की साजिश रची जा रही थी। उनका वहां के लोग विरोध तो कर रहे थे लेकिन अमित कटारिया अपनी मनमानी में अड़े हुए थे। यहां तक कि उसने इस कमल विहार योजना के खिलाफ खबर छापने वाले दैनिक अखबार पत्रिका तक को नोटिस ही नहीं भेजा बल्कि इसके प्रचार में विज्ञापन में करोड़ों खर्च कर दिया। राविप्रा के इस विज्ञापन में कमल विहार की विसंगतियों के खिलाफ छापने वाले को चेतावनी तक दी गई और लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के अधिकार पर कुठाराघात की कोशिश हुई। लेकिन जिस दमदारी से पत्रिका को नोटिस दी गई। विज्ञापन में नाम छापने से राविप्रा डर गया। अब जब योजना का विरोध सरकार के विधायक-सांसद और मंत्री करने लगे हैं तब भी इस योजना को लागू करने की बात अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
अमित कटारिया को यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि वे सिर्फ जनता के नौकर हैं। उन्हें तो वेतन मिलता है वह जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से दिया जाता है और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। अपनी बात सही हो तब भी जनता की भावनाओं का ध्यान रखना होगा यही नहीं कानूनी नोटिस के पहले क्या सरकार से अनुमति ली गई है या यहां भी अंधेरगर्दी मचाई गई है? इस सवाल का जवाब अमित कटारिया ही नहीं सरकार को भी देना होगा। लोकतंत्र में न तो किसी की मनमानी चलनी है न ही अंधेरगर्दी। यदि आप ईमानदार हैं तो अपनी ईमानदारी अपने पास रखे। सिर्फ एक रुपए वेतन लेने का प्रोपोगेण्डा इस राजधानी ने बहुत देखा है और लोगों को मालूम है कि ऐसा सिर्फ अपनी छवि बनाने का तिकड़म मात्र है। इसलिए जिसमें दमदारी और ईमानदारी होती है उसे खुलकर अपनी बात कहनी चाहिए। चोरी छिपे काम चार सौ बीसी कहलाता है।

आज की खबर

आज की खबर

१-रायपुर,संतोषी नगर खदान में किसान साहू नामक इस बालक कि सर कटी लाश मिली , बालक तिन दिन से लापता था.

२-रायपुर, कांग्रेसियों ने आज पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा जी कि जयंती पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की.

३-छत्तीसगढ़ में प्रधान पाठक भारती में अनियमितता को लेकर धरना दिया गया.

४-रायपुर,शंकराचार्य श्री निश्चलानंद जी आज रायपुर पहुंचे.

५-रायपुर, रानी दुर्गावती की प्रतिमा हटाये जाने के विरोध में युवक कांग्रेसियों ने धरना दिया
६-आय-कर विभाग ने आज बड़े उद्योग समूह मोनेट इस्पात में छपे की करवाई की इसके मालिक संदीप जिजोदिया कांग्रेस के सांसद नविन जिंदल के बहनोई है.
७-बार अभ्यारण्य पर्यटकों के लिए खुलते ही नक्सलियों ने पर्चे चिपकाए
८- छत्तीसगढ़ के बड़े बिजली बकायादारों की सूचि अब वेबसईट में
९-हाथी बीमार हो गई तो उसका इलाज सप्रे शाला मैदान रायपुर में किया जा रहा है

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

पत्रकारों के फायदे, फोटोग्राफरों का दुख

वैसे तो दीपावली अखबार वालों के लिए कमाई का एक बड़ा जरिया है। भरपूर विज्ञापन बटोरने और खबरों को किनारे करने की होड़ में सर्वाधिक फायदा पत्रकारों को ही मिलता है। खबरें भी कम लिखों और गिफ्ट लिफाफा जमकर बटोरो। इस मामले में रायपुर मीडिया वैसे तो दूर रहा है लेकिन इस बार इस लिफाफा से वह भी नहीं बचा है। ईमानदारी का लबादा ओढऩे वाले बड़े अखबारों के पत्रकार भी लिफाफा बटोरने की आपा-धापी में शामिल हो गए।
खनिज, आबकारी, फुड के अलावा मंत्रियों के बंगलों में भी पत्रकारों की आमद रही। औकात के हिसाब से लिफाफा दिया गया और दीपावली धूमधाम से मनाई गई। समाचार से जुड़़े फोटोग्राफरों को इस बार भी लालीपाप ही मिला। कुछ एक फोटोग्राफरों ने अपने बैनरों का उपयोग कर लिफाफा जरूर बटेारा पर अधिकांश फोटोग्राफरों को लिफाफा नहीं मिल पाने की पीड़ा उनके चेहरे पर पढ़ी जा सकती थी। एक फोटोग्राफर तो चर्चा के दौरान फट पड़ा। कहा- फोटो खिंचाने के चक्कर में आगे-आगे रहने वाले सब नेता गायब हो गए हैं। दीपावली गुजरने दो तब मजा चखाएंगे। अब फोटोग्राफरों को कौन समझाए कि अब भी रिपोर्टर ही तय करता है कि कौन सी फोटो जानी है और यह बात नेता लोग समझ गए हैं इसलिए लिफाफा बचाने गायब हो गए हैं। कई रिपोर्टर इस मामले में खुशनसीब रहे कि उन्हें दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़े। बल्कि लिफाफा देने वाले अखबार के दफ्तर ही पहुंच रहे थे।
मुकेश की पीड़ा
कहते है भले लोगों के साथ कई बार अच्छा नहीं होता और इलेक्ट्रानिक मीडिया के इस मुकेश वर्मा के साथ इन दिनों जो कुछ हो रहा है वह ठीक कतई नहीं है। आए दिन नौकरी से अंदर-बाहर के फेर में परेशानी तो बढ़ ही जाती है वह तो वीआईपी रोड के होटल वालों की भलमनसाहत है जो मुकेश के हुनर को समझकर अपने यहां आयोजित कार्यक्रमों के लिए मौका दे देते हैं वरना दिक्कत जो हो रही थी उसे मीडिया वाले समझने तैयार नहीं है।
अमृत संदेश का नया गणित...
कहते हैं कभी-कभी पैसा सर चढक़र बोलता है। राज्य निर्माण के बाद अमृत संदेश की स्थिति में भी सुधार हुआ है। कांग्रेस की राजनीति के बाद भी भाजपा सरकार से सेटिंग ने विज्ञापन खूब कमाए हैं। भले ही यहां पत्रकार नहीं ठहरते हो लेकिन तामझाम में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। इसी कड़ी में अब गिनती के लोग बच गए हैं और उन्हें भी कैमरे की नजर पर रखा गया है। अब बचे खुचों को बचाने की कवायद है या आक्रोश रोकने की कोशिश यह तो वे ही जाने।
और अंत में...
पूरे शहर की आवाज उठाने का ठेका लेने वाले नए नवेले अखबार के एक रिपोर्टर को वन मंत्री के यहां से जब खाली लौटना पड़ा तो वह साथी पर ही गुस्सा उतारने लगा। कहा मिला कुछ नहीं और तेरे चक्कर में बदनामी अलग हो गई।

आज की खबर

१-दुनिया की उम्रदराज बाघिन शंकरी की आज दोपहर मौत हो गई.वह काफी दिनों से बीमार थी.उसे मैनपुर के जंगल से लाया गया था.
२-छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय का चुनाव  की घोसना कर दी गई है. २१ दिसंबर को मतदान और २४ दिसंबर को मतगणना होगी
३-राजेंद्र जग्गी चेंबर रत्न से सम्मानित किये गए
४-सिकलसेल पर अंतररास्ट्रीय सम्मलेन २२-२७ नवम्बर को बेबिलान इन में होगा सम्मलेन का उदघाटन पूर्व राष्ट्रपति श्री कलम करेंगे. सम्मलेन में १५ देशो के विशेषज्ञ भाग लेंगे.
५-रायपुर के सिविल लाइन निवासी अजय पाल ने आत्महत्या कर ली . नह मेकाहारा में वें चलता था.
६-हिरा स्टील द्वारा अफसरों-नेताओं को बनते दीपावली गिफ्ट में भारत का नक्शा गलत . अब देखना है की सरकार रिपोर्ट दर्ज करती है या फिर पैसों की ताकत काम करेगी? नागरिक संघर्स समिति  ने आपति की. समिति के पदाधिकारी डॉ राकेश गुप्ता,विश्वजीत mitra , हरजीत जुनेजा, अमिताभ दीक्षित , ने एक पत्रकार-वार्ता में बताया की यदि करवाई नहीं हुई तो महामहिम राज्यपाल से भी मिला जायेगा .
७-मधुमेह को नियंत्रित करने सप्त-योग मधुनाश को बाजार में लाया काया है . बी टी सी फूड्स के नीरज गंभीर और अतुल दुबे ने बताया कि यह हार मेडिकल स्टोर्स में उपलब्ध है इसके नियमित सेवन से इसुलिन का इंजेक्शन नहीं लगाना पड़ेगा .
8-रायपुर के bairan  बाजार में karodo कि jamin पर kabje को lekar balava huaa dono hi parti vidya-bhushan sukla और rahul shukla congresi hain,

बुधवार, 17 नवंबर 2010

मोहन-मूणत में जंग

 राजधानी के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत में जंग छिड़ गई है। एक दूसरे को निपटाने के फेर में भले ही बृजमोहन अग्रवाल भारी पड़ रहे हो लेकिन आने वाले दिनों में इसका खामियाजा पार्टी को भोगना पड़़ेगा। कहा जा रहा है कि दोनों मंत्रियों की लड़ाई की असली वजह वर्चस्व स्थापित करना है। चूंकि कमल विहार योजना में वे भूमाफिया सीधे प्रभावित हो रहे थे जिन पर दमदार मंत्री का वरदहस्त है। मोहन-मूणत की इस जंग के चलते बूढ़ातालाब दलदल में तब्दिल होता जा रहा है।
वैसे तो मोहन और मूणत के बीच कभी नहीं पटी। बृजमोहन अग्रवाल की कार्यशैली से असंतुष्ट संगठन खेमे के राजेश मूणत ने भले ही पार्टी हित में बृजमोहन का खिलाफत नहीं किया हो लेकिन दोनों के बीच राजनैतिक शुत्रता जग जाहिर है। कहा जाता है कि खरीद फरोख्त और मैनेजमेंट में कांग्रेसियों तक को अपने पाले में करने वाले बृजमोहन अग्रवाल ने राजेश मूणत को पटकनी देने कई दांव खेले हैं। राजेश मूणत जब पीडब्ल्यूडी मंत्री थे तब भी सर्किट हाउस सहित अन्य मामले को लेकर बृजमोहन अग्रवाल की भूमिका पर संदेह किया जाता रहा है। यहां तक कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी बागी भाजपा नेता वीरेन्द्र पाण्डे को मदद करने का अफवाह भी उड़ा।
सूत्रों की माने तो नई राजधानी के कार्यक्रम के अलावा दोनों के बीच कई बार झड़पे हो चुकी है। ताजा मामला बूढ़ातालाब के सौन्दर्यीकरण और कमल विहार योजना को लेकर है। बताया जाता है कि बूढ़ातालाब के सौंदर्यीकरण का काम बृजमोहन का विभाग पर्यटन के जिम्मे है लेकिन दोनों की राजनैतिक लड़ाई के चलते बूढ़ातालाब के रखरखाव व सौंदर्यीकरण का कार्य रुक गया है। तालाब की हालत किसी से छिपी नहीं है। पर्यटन मंडल में व्याप्त भ्रष्टाचार भी किसी से छिपा नहीं है। विवादास्पद अफसरों को प्रश्रय देने की वजह से बृजमोहन अग्रवाल हमेशा ही विवादों में रहे है। नेता प्रतिपक्ष के चयन के दौरान भी बृजमोहन अग्रवाल पर तोडफ़ोड़ करने का सीधा आरोप लगा था और बूढ़ातालाब के प्रति बेरुखी को लेकर भी बृजमोहन अग्रवाल सीधे कटघरे में है।
इधर कमल विहार योजना को लेकर मोहन-मूणत में सीधे जंग छिड़ गई है। बताया जाता है कि राजेश मूणत को नीचा दिखाने के फेर में कमल विहार योजना को हथियार बनाया गया है। महेन्द्र से लेकर बसंत सेठिया जैसे भूमाफिया को के नाम उछल रहे थे जिन्हें दमदार मंत्री का समर्थक माना जाता है। बताया जाता है कि हड़बड़ी में लागू की गई इस महत्वपूर्ण योजना में कई गलतियां हुई और इसी का फायदा उठाते हुए इस योजना को हथियार बनाया गया।
सूत्रों की माने तो मोहन-मूणत में अब खुलकर जंग छिड़़ गया है और आने वाले दिनों में यह सडक़ पर भी आ सकता है। इधर कमल विहार योजना पर ब्रेक लगने को लेकर भूमाफियाओं में जहां खुशी की लहर है वहीं आम लोगों ने भी राहत की सांस ली है।

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

डा. रमन की स्वीकारोक्ति - उद्योगपतियों व व्यापारियों के बदौलत है हमारी सरकार...

आम लोगों में तीखी प्रतिक्रिया...
 वैसे तो भाजपा पर व्यापारियों की सरकार का आरोप हमेशा लगता रहा है और भाजपा के नेता हमेशा ही इसका खंडन करते रहे हैं लेकिन पिछले दिनों राजनांदगांव के दीपावली मिलन कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खुलकर पहली बार यह बात स्वीकार की कि उद्योगपतियों एवं व्यवसायियों ने जो माहौल तैयार किया। उसी की बदौलत उनकी सरकार बनी और ये बात वे कभी नहीं भूलेंगे।
वैसे तो बुलंद छत्तीसगढ़ ने भाजपा सरकार और सचिवों के उद्योगपतियों के इशारे पर नाचने का कई उदाहरण पेश किया है बाल्को से लेकर जिंदल तक और राज्योत्सव में वीडियोकॉन का मामला भी लोग भूले नहीं है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी इसे विरोधी दलों का दुष्प्रचार कहते रही है लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने राजनांदगांव में 7 नवम्बर को आयोजित अग्रसेन भवन में दीपावली मिलन कार्यक्रम में यह बात स्वीकार की कि उनकी सरकार उद्योगपतियों एवं व्यवसायियों की बदौलत है यही नहीं उन्होंने यहां तक कहा कि वे पार्षद से विधायक और केन्द्रीय मंत्री से मुख्यमंत्री बन पाए तो सिर्फ इसलिए कि उद्योगपतियों व व्यवसायियों ने माहौल बनाया। उन्होंने उद्योगपतियों से आगे भी इसी तरह के सहयोग करने की गुजारिश की।
रायपुर से प्रकाशित नामी दैनिक अखबार ‘पत्रिका’ में 8 नवम्बर 2010 को छपी इस खबर से स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री ने यह बात स्वीकार की है। इस खबर की सच्चाई जब जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि डॉ. सिंह के इस स्वीकारोक्ति की आम जनों में तीखी प्रतिक्रिया है। वहीं पार्टी के कुछ विधायकों ने भी इस पर तीखी टिप्पणी नाम नहीं छापने की शर्त पर कही।
इधर चर्चा इस बात की है कि पत्रिका में छपी खबर की अब तक न तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खंडन किया है और न ही मुख्यमंत्री के प्रेस कार्यालय से ही इस बात का खंडन हुआ है इससे ही स्पष्ट है कि डॉ. रमन ने यह बात खुलेआम से स्वीकार किया है। हालांकि आम लोगों में व्याप्त तीखी प्रतिक्रिया से भाजपा नेताओं में जबरदस्त बेचैनी है। बहरहाल मुख्यमंत्री की यह स्वीकारोक्ति आने वाले दिनों में क्या रंग लेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन आम लोगों में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया है।

आज की खबर

 आज की खबर
१.डॉ dixit का कैम्प १८-२० नवम्बर को अरविंदो नेत्रालय पच्पेरी नाका में होगा . इस फ्री कैम्प में प्लास्टिक सर्जरी की जाएगी पिचले १२ सालों से यह कैंप आयोजित की जाती है .
२.सिंघानिया बिल्डकोन द्वारा फ़िल्मी सुपर स्टार शाहरुख खान को बुलाने की तैयारी है.




नियंत्रण महालेखा के १५० वी वर्षगांठ पर विश्वविद्यालय सभा भवन में कार्यक्रम का उदघाटन महामहिम राज्यपाल ने किया .

विश्वविद्यालय कर्मचारियों की हड़ताल आज चौथे दिन भी जरी रही

महापौर किरणमयी नायक ने रामसागर पारा का दौरा किया इस दौरान उन्होंने अवध निर्माण तोड़ने का निर्देश भी दिया


सिविल लाइन के एक हिस्से में गन्दगी का आलम

प्रदेश भर के बौने बंधू अपनी मांग को लेकर ५ दिसंबर को राजधानी रायपुर में जुटेंगे

बाल-दिवस पर बच्चों की खुशी

सोमवार, 15 नवंबर 2010

आजादी... सिर्फ बोलने की...!

इस देश में आजादी सिर्फ बोलने बस की रह गई है। अब तो लोग थोड़े से चर्चित होने के बाद कुछ भी बोलने लगे हैं। सच से दूर भागने की प्रवृत्ति बढ़ गई है और आम आदमी सिर्फ बोल ही पा रहा है। सरकारें सुन नहीं रही है।
पिछले दिनों मुंबई में एक भवन निर्माण सोसायटी के घपले सामने आए तो सब बोलने लग गए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफा अपने आका को सौंप दिया और मामला जांच में जा सिमटा। छत्तीसगढ़ में राज्य बनते ही चौतरफा लूट मची है। विकास के नाम पर जिस तरह से जल, जंगल और जमीन की बलि चढ़ाई जा रही है वह आने वाले दिनों के लिए खतरे का संकेत है। शहरी विकास ही सरकार की प्राथमिकता हो गई है। यही वजह है कि लोग थोड़ी सी सुविधा के लिए शहर की ओर पलायन करने लगे है। राजधानी रायपुर की आबादी राज्य बनने के बाद कई गुणा बढ़ गई। यातायात और प्रदूषण ने आम लोगों की तकलीफें बढ़ा दी है लेकिन एसी गाड़ी से लेकर बंगलों में रहने वाले मंत्री-विधायकों या शासकीय अफसरों को इसकी फ्रिक नहीं है।
वास्तव में देखा जाए तो सरकारी नीति ने असंतुलीत विकास को जन्म दिया है। लोग असंतोष में जी रहे हैं और यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में स्थिति भयावह होगी। सरकार के पास ग्रामीण विकास की कोई योजना नहीं है। आज भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश गांवों में लोग उसी पानी में नहाने मजबूर हैं जहां जानवर नहाते हैं। नल का पानी तो छोड़ बिसलरी पीने वालों की जमात ने गांवों में पीने की साफ पानी की योजना भी नहीं बनाई है। कुछ बड़़े गांवों या कस्बों में नल हो गया है लेकिन आज भी दूषित पानी के सहारे जिन्दगी काटने को लोग मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व स्वास्थ्य का सर्वाधिक बुरा हाल है। आज भी हाईस्कूल और स्वास्थ्य केन्द्र के लिए 10 से 20 किलोमीटर तक जाना पड़ता है। डाक्टर शहर छोडऩा नहीं चाहते और सरकार में इतनी ताकत नहीं है कि डाक्टरों को कस्बों तक भेज सके।
स्कूलों का तो भगवान मालिक है। कमीशन के चक्कर में बिल्डिंग तो बना दी गई लेकिन शिक्षकों का पता ही नहीं है। शिक्षा मंत्री से लेकर शिक्षा सचिवों में इतनी अक्ल ही नहीं है कि वे ग्रामीण शिक्षा के लिए कोई योजना बना सके। कहते हैं भारत गांवों में बसता है लेकिन सरकार को यह बात कभी समझ में आएगी यह कहना मुश्किल है। बुनियादी सुविधाओं के लालच में गांव का गांव शहर की ओर कूच कर रहा है और शहर बदहाल होता जा रहा है। सरकार शहरी पलायन की इस बढ़ती समस्या को रोकने का उपाय करे अन्यथा विकास का यह असंतुलन एक ऐसे समाज को जन्म देगा जहां शालिनता पीछे छूट जाएगी।

रविवार, 14 नवंबर 2010

पता नहीं बेटा!

बेटा- प्रदेश के दमदार मंत्री ने दीपावली में खूब लिफाफे और एलईडी बांटी है?
पिताजी- हां बेटा! पत्रकारों को नहीं मिला है वे काफी नाराज है।
बेटा- तो क्या सिर्फ संपादकों को ही बांटा गया है।
पिताजी- पता नहीं बेटा!
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बेटा- कालिख कांड में अजीत जोगी का नाम सामने आया है।
पिताजी- हां बेटा! संगठन की रिपोर्ट तो ऐसा ही कुछ होना बताया जा रहा है?
बेटा- तो क्या यह सही रिपोर्ट नहीं है।
पिताजी- पता नहीं बेटा!

शनिवार, 13 नवंबर 2010

भाजपा नेताओं की करतूतों पर आरएसएस की चुप्पी...

कहा कार्रवाई उनका संगठन करेगा...
 व्यक्तित्व निर्माण और संस्कारवान बनाने का दावा करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ छत्तीसगढ़ प्रांत के संघचालक बिसराराम यादव की बोलती तब बंद हो गई जब पत्रकारों ने भाजपा नेताओं के करतूतों पर सवाल किया। जोर देने पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि भाजपा संगठन उन पर कार्रवाई करेगा।
संघचालक बिसराराम यादव यहां प्रेस क्लब में हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार के खिलाफ आयोजित धरने की जानकारी दे रहे थे। संघ की कार्यशैली की तारीफ में कसीदा गढ़ रहे संघ चालक श्री यादव ने यह स्वीकार तो किया कि भाजपा भी उनका अनुवांशिक संगठन है लेकिन वे इस बारे में कोई जवाब नहीं दे पाए कि भाजपा नेताओं का संस्कार कैसे बिगड़ गया है।
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के भाजपाध्यक्ष प्रभात झा के पुत्र का बार में लड़ाई झगड़े सहित छत्तीसगढ़ के कई मंत्रियों के भ्रष्टाचार व करतूतों पर जब सवाल होने लगे तो संघ के नेता बगले झांकने लगे थे। जब सवाल पर सवाल होने लगे तो नगर प्रभारी गोपाल अग्रवाल ने यह कहकर बात टाल दी कि उनका संगठन है वह कार्रवाई करेगा। वहीं शराब को लेकर पूछे सवाल पर वे जनजागरण की बात तो करते रहे लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उनकी पार्टी की सरकार ही शराब बेच रही है उस पर रोक क्यों नहीं लगवाते?

आज की खबर

आज राजधानी में श्री जलाराम उत्सव मनाया गया
 आज की खबर





आज राजधानी में श्री जलाराम उत्सव मनाया गया



आज राजधानी में श्री जलाराम उत्सव मनाया गया


टीवी सीरियल की कहानी लिखने वालों में जाना पहचाना नाम है शिल्पा सुशील का.इनमे से शिल्पा रायपुर माना की है और रायपुर में पली-बड़ी हुई इन दिनों दोनों रायपुर आये हुए है इनकी इक्छा है छत्तीसगढ़ का नाम हो.इन लोगो ने कई मशहुर सीरियलों की कहानी लिखी है जिनमे - सास भी कभी बहु थी,छोटी बहु, सी आई दी,आहट,जैसी सीरियल शामिल है. 


कल १४ नवम्बर को दैबितिस डे पर उषा फौन्डेसन के द्वारा फ्री कैंप लगाया जा रहा है


शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अंधे-बहरे की तलाश...

 पहले ही भाजपा के आगे अपनी गत पिटवा चुकी छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस को ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो यश बास की भूमिका बखूबी निभाता हो। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस बार भी अध्यक्ष चयन में मोतीलाल वोरा की चलेगी और उन्हें अंधे-बहरे अध्यक्ष ही चाहिए।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। कायदे से यहां वीसी शुक्ल और अजीत जोगी को ही दमदार नेता माना जाता है लेकिन इन दोनों से सर्वाधिक खतरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा को है इसलिए वे ऐसे अध्यक्ष चाहते हैं जो न केवल उनकी बात सुने बल्कि उनके राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर प्रहार न करें। यही वजह है कि कांग्रेस की हालत छत्तीसगढ़ में दयनीय हो गई है। नेता प्रतिपक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन में अब तक जो मनमानी हुई है और वीसी-जोगी की उपेक्षा की गई है उसका परिणाम है कि कांग्रेस के भाजपा के हाथों बिक जाने की चर्चा है। संगठन में वे लोग अब तक हावी रहे हैं जिनका न तो कोई जनाधार है और न ही जिनमें भाजपा के खिलाफ आक्रमण करने की औकात ही रही है।
इधर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर एक बार फिर कवायद शुरु हो गई है। कहा जा रहा है कि वोरा गुट जहां वर्तमान अध्यक्ष धनेन्द्र साहू को ही अध्यक्ष बनाने के फेर में है वहीं वीसी ने अपने को किनारा कर दिया है। इधर आम कांग्रेसियों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कोई दमदारी से चला सकता है तो उनमें वीसी शुक्ल और अजीत जोगी ही है यदि इन दोनों से परहेज हो तो अन्य नामों में पवन दीवान, सत्यनारायण शर्मा और मोहम्मद अकबर के नाम है जिनके आगे भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। लेकिन इन सभी नामों के साथ सर्वाधिक दिक्कत मोतीलाल वोरा को है जो केन्द्र में मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं।
इधर कांग्रेस में चल रहे अध्यक्ष चयन को लेकर यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रदेश के बड़े नेता नहीं चाहते कि उनके अलावा किसी दमदार को नेतृत्व सौंपा जाए इसलिए ऐसे नाम की खोज हो रही है जो अंधे-बहरे या लाचार की श्रेणी में गिने जाते हो या नाम का अध्यक्ष रहे। पिछले सालों से जिस तरह से कांग्रेस की राजनीति रही है वह शर्मनाक मानी जा रही है। भाजपा सरकार से सेटिंग और दलाली तक के आरोप लगे हैं ऐसे में नया अध्यक्ष का चयन ही कांग्रेस की दिशा तय करेगा अन्यथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति सुधरने की उम्मीद कम ही है।

आज की खबर

आज की खबर




सुदर्शन के खिलाफ दिग्गज कांग्रेसी धरने पर बैठे,आर एस एस को कोसा,और गिरफ्तारी दिए .

सुदर्शन का युवक कांग्रेसियों ने पुतला फूंका
बिर्गावं के कांग्रेसियों ने ओम प्रकाश देवांगन को टिकिट देने की मांग की मोटर साइकल रैली निकाली .
देश भर के वैदिक वैज्ञानिक २०-२१ नवम्बर को राजधानी आयेंगे , प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा , कार्यक्रम रविवि में.

तमसो मा योर्तिगमय!

अंधेर से उजाले की ओर चलो। इस वाक्य का साफ शब्दों में यही अर्थ है। पर आम आदमी के लिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कैसे अंधेर से उजाले की ओर चला जा सकता है। अंधेरा घना है और सब तरफ अपराध बड़े हैं। आम आदमी भी स्वार्थी हो गया है। मुंह देखी बात करने वालों की जमात बढ़ने लगी है इसलिए अपराध बढ़े हैं। अंधेरगर्दी बढ़ा है और भगवान के घर देर है अंधेर नहीं का जुमला भी थोथा साबित होने लगा है।
छत्तीसगढ राय की कल्पना या सपना देखने वालों ने कभी कल्पना नहीं की होगी कि राय बनते ही लुटेरों की जमात सामने आ जाएगी और पूरे देश में अपनी करतूतों का ऐसा डंका बजाएंगे कि छत्तीसगढ़ महतारी को भी शर्म आ जाए। सरकारी अंधेरगर्दी की असली वजह उन लोगों की चुप्पी है जो अपने लिए जी रहे हैं। या उन लोगों की वजह से अंधेरगर्दी बढ़ी है जो समाज का हित तो चाहते हुए गरीबों को खाना, दवाई, कपड़ा देते नहीं थकते लेकिन गलत बातों का विरोध करने से डरते हैं।
जब किसी चीज का विरोध ही नहीं होगा तो कोई गलत काम करने से कैसे रुख सकता है। छत्तीसगढ़ में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका समाज में अपनी पहचान है और लोग जिनकी बातों को गंभीरता से लेते भी हैं लेकिन ये लोग भी वृक्षारोपण और दान-धर्म पर यादा भरोसा करते है। विरोध करने से डरते हैं और यही से अंधेरा अंधेरगर्दी का शक्ल अख्तियार करता है। क्या सरकारी जमीनों को बंदरबांट वह भी अपने लोगों में यह अंधेरगर्दी नहीं है फिर इसका विरोध कोई क्यों नहीं करता क्योंकि जिन भाजपा के दिग्गजों को ये जमीन दी गई है वे नाराज हो जाएंगे। नदियों का पानी बेच देना क्या अंधेरगर्दी नहीं है या फिर एक ही सड़क को हर साल बार-बार बनाना अंधेरगर्दी नहीं है।
सरकार का ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां मंत्रियों और अधिकारियों की हरामखोरी नहीं हो रही है। फिर भी लोग खामोश है। दीपावली का मतलब सिर्फ दीप या रोशनी करके अंधेरे को दूर करना नहीं है। यह तो प्रतीक है राम के अयोध्या लौटने पर संभावित राम राय की कल्पना का। वास्तव में आम आदमी अपनी पेट के खातिर मरा जा रहा है। लेकिन सरकारी अंधेरगर्दी उसे ठीक से जीने नहीं दे रही है। क्या कोई सोच सकता है कि इस शहर ने पंचर वाले, नाका चोर, पंखा चोर को कहां से कहां बढ़ते देखा है या फिर अपनी शादी के लिए फर्जी एजेंसी का सहारा लेने वाले कहां पहुंच गए। सिर्फ मेहनत से तो दो-चार सौ करोड़ रुपए नहीं कमाए जा सकते। कम से कम इन लोगों ने कैसे कमाया है कोई भी बता देगा। दलाली से लेकर चोरी तक में डूबे इन लोगों के अचानक करोड़पति बनने की कहानी जितनी विभत्स है उससे कहीं अधिक विभत्स उन लोगों की करतूतें हैं जो गलत कार्यों पर प्रहार नहीं करते क्योंकि विष बेल को नहीं रोका गया तो वह आने वाली पीढ़ी को डस लेगा जिसके जिम्मेदार आप हम सब होंगे।
अंधेरे से रोशनी की ओर चलने का मतलब सिर्फ दीप जलाना नहीं है। अंधेरे से रोशनी की ओर चलने का मतलब न तो गरीबों को दवा, खाना या उपहार देना है। अंधेरे से रोशनी की ओर चलने का मतलब सिर्फ और सिर्फ अंधेरे पर प्रहार करना है और इसके लिए हमें स्वयं रोशनी बननी होगी।

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

केबिनेट की लड़ाई आखिर सड़क तक पहुंची कैसे ?

जाँच होगी, बृजमोहन पर संदेह ?
रायपुर विकास प्राधिकरण की कमल विहार योजना को लेकर केबिनेट  की बैठक में मंत्रियों की लड़ाई आखिर मिडिया तक कैसे पहुंची , इसे लेकर मुख्यमंत्री रमण सिंह न केवल नाराज है बल्कि भीतर ही भीतर पता किया जा रहा है,वैसे चर्चा इस बात की है की लड़ाई की खबर बृजमोहन अग्रवाल ने लिक की है? क्योंकि इससे फायदा उन्ही का हुआ है.
ज्ञात हो कि केबिनेट  की बैठक में कमल विहार योजना के विरोध में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल न केवल खुलकर सामने आ गए थे बल्कि उनकी मंत्री राजेश मूणत से तीखी बहस भी हुई , दोनों मंत्रियों के बिच झड़प इतनी जबरदस्त रही कि राजेश मूणत को बैठक बिच में छोड़कर जाना पड़ा ,जबकि मुख्यमंत्री रमण सिंह ने योजना को रोक कर विसंगति दूर करने कि बात कही , लेकिन इसे ऐसा प्रचारित किया गया मानो इसे रद्द कर दिया गया हो.
इधर  केबिनेट  की बैठक में किस मंत्री ने क्या कहा सारी बातें अखबारों में चाप गई जो सरकार के लिए हैरानी वाली बात है,

हमारे भरोसे मंद सूत्रों का दावा है कि इस समूचे मामले को राजनैतिक फायदे और राजनैतिक दुश्मनी भुनाने लिक किया गया गया है चूँकि इससे बृजमोहन अग्रवाल को फायदा हुआ है इसलिए उन पर शक किया जा रहा है . सूत्रों का दावा है कि इस मामले को मुख्यमंत्री रमण सिंह ने गंभीरता से लाया है और इसका प्रभाव भी जल्द द्ल्खाने कि संभावना जताई जा रही है,जबकि बृजमोहन अग्रवाल के लिए यह सब नुकसान दायक हो सकता है.

बुधवार, 10 नवंबर 2010

अंधा पीसे, कुत्ता खाय...

यह तो अंधा पीसे कत्ता खाय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना स्वयं को स्थापित और बड़ा अखबार बनने की जिद में पत्रकारिता की दिनाें दिन यह दुर्गति नहीं होती। पिछले कुछ सालों से राजधानी के पत्रकारों में ही नहीं पत्रकारिता में भी बदलाव की बयार चली है। खरबों को तोड़ मरोड़ कर सनसनी फैलाने की नई परम्परा के साथ-साथ संबंधों को यादा अहमियत दी गई। अखबारों से पाठकों के साथ संबंधाें को अहमियत दी जाती है तो सवाल कभी नहीं उठते लेकिन अहमियत दी गई अफसरों और नेताओं से संबंध स्थापित करने की। इसके चलते पत्रकारों की सोच में तो अदलाव आया ही पत्रकारिता की दुर्गति भी हुई। खासकर एम्सवन्लूजिव्ह और खोजी पत्रकारिता को तो बड़ा झटका लगा है। खबरों की तह तक जाने की परम्परा का भी अनादर हुआ। इससे अखबार मालिक और पत्रकार दोनों खुश है लेकिन पाठकों का एक वर्ग जो व्यवस्था की चोर से पीड़ित है उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। अब तो अखबारों में सामाजिक और सरकारी खबरें ही यादा दिखाई देती है। अपराधिक खबरों में भी वही खबर छपती है जो पुलिस बना देती है। मेरा दावा है कि राजधानी के अखबारों में काम करने वाले क्राईम रिपोर्टरों में आधे रिपोर्टर ऐसे होंगे जो राजधानी के 23 थानों और चौकियों को महिनों से नहीं देखे होंगे। ऐसे में उन थानों या चौकियों में हो रही अच्छी या बुरी कार्रवाई की खबरें कैसे छपती होगी अंदाज लगाया जा सकता है। संपादकों का क्या? अब तो रोज संपादकीय लिखना भी जरूरी नहीं है। ग्रुप के अखबारों में काम करने वाले संपादकों को कलम चलाने की बंदिशे भी कम नहीं होती। उनकों जवाबदारी तो प्रतिध्दंदी अखबाराें से तुलना करने और छुटी खबरों के बारें में पूछताछ में ही गुजर जाती है। इस सबके बाद यदि समय बचा तो अधिकारियों और नेताओं से अखबार हित में संबंध बनाने में चला जाता है। पत्रकारिता के इस स्तर तक पहुंचने में अखबार मालिकों का खैया तो जिम्मेदार रहा ही है। स्वयं पत्रकारों का खैया भी कम जिम्मेदार नहीं है। कुछ साल पहले की बात है शहर के एक नामी गिरामी अखबार के एक रिपोर्टर ने जब आलीशान बंगला तैयार किया तो अन्य रिपोर्टर उन्हें खुब गाली देते थे लेकिन अब न तो पत्रकारिता की ऊचाई की बात होती है और न ही किसी का बंगले पर ही चर्चा होती है। जब तनख्वाह कम थी तब पत्रकारों में दुनिया बदलने का हौसला होता था लेकिन अब जब सुविधाएं बड़ गई है तो सुविधाएं बढ़ाने की जिद भी बढ़ी है। सुविधाएं छिन जाने का डर उन्हें बेहतर पत्रकारिता या खबरों से दूर रखता है। वे सोचते हैं खबरें छपने पर क्या होगा। अल्टा वे दुश्मन बन जायेंगे और इससे मिलने वाली सुविधाएं से वंचित होंगे। और फिर इस खबर के नहीं छपने से क्या होगा? बस इसी सोच के चलते ही हौज में दूध नहीं भर पाया था सभी शिष्यों ने अंधेरे का फायदा उठाकर गुरू के निर्देश की अवहेलना कर हौज को दूध की जगह पानी से भर दिया था। पत्रकारिता में भी सुविधाएं छिनने का डर कलम पर जंजीरे कसने लगी है।
और अंत में
अवैध प्लाटिंग की लगातार छप रही खबरों से दुखी एक बिल्डर ने सरकार के इस खैये का जब विरोध किया तो एक अखबार सारा संसार के रिपोर्टर ने उसे सलाह दी इस विरोध का कोई मतलब नहीं है विरोध करना है तो अखबारों के अवैध और मंत्री को दमदारी दिखाने ज्ञापन सौंपो तो कुछ हल निकल आयेगा।

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

और उसकी शक्ति जाती रही

और उसकी शक्ति जाती रही  बचपन में दादी-नानी की गोद में रात को एक कहानी सुनी थी कि किसी व्यक्ति को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसके हाथ लगाते ही बीमारियां दूर हो जाती। उसने इस शक्ति का प्रयोग करना शुरु कर दिया। धीरे-धीरे उसकी ख्याति फैलने लगी। जब ख्याति फैलने लगी तो उसकी जय-जयकार होने लगी। अपनी जय-जयकार सुन वह प्रसन्न होने लगा और इस प्रसन्नता के साथ उसके मन में लालच घर करने लगा अब वह इस वरदान के एवज में उपहार भी स्वीकार करने लगा और इसके बाद और लालच बढ़ी तो वह फीस तय कर दिया। फीस तय करने के बाद उसकी शक्ति ईश्वर ने छिन ली। क्योंकि उसे यह वरदान देते समय ही चेता दिया गया था कि वह लालच में न आए।
कहने का तात्पर्य है लालच एक ऐसा तृष्णा है जो बुझती नहीं है इन दिनों इसी तरह की विचित्रता पूरे देश में हैं। कोई भी सांधु-संत प्रसिध्द होता है वह अपराधियों के धन के आगे नतमस्तक हो जाता है। इनके आसपास काले धन वालों का जमावड़ा होने लगता है। पाप करने वाले तो इसलिए दान कर रहे है कि उनका पाप थोड़ा बहुत उतर जाए। पर यह पाप उतर कर इन्हीं साधु-संतों के ऊपर चढ़ने लगा है। वे ऐसे लोगों को समाजसेवी कहने लगे है और आम आदमी मूकदर्शक बना है। बाबा रामदेव हो या मुरारीबाबू या फिर और संतों को मदद करने वालों की लिस्ट में ऐसे अपराधिक लोगों के नाम देख सकते है। भले ही ये साधु संत घृणा पाप से करो पापियों से नहीं या सुधरने का मौका देना चाहिए जैसे चिंतन लोगों के सामने प्रस्तुत करे लेकिन वास्तविकता यह है कि इनसे मिलने वाली मोटी रकन का लोभ साधु-संत भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। देखते ही देखते संतों की संपत्ति कई गुणा बढ़ जा रही है। काले धन साधु-संतों के पास खपाये जा रहे हैं और आयकर विभाग भी इस दान के काले धन पर कुछ नहीं कर पा रहा है। क्या आए दिन साधु-संतों का विवाद में फंसना इन काले धन का परिणाम नहीं है?
बुलंद ने अपने अभियान में इसे भी हिस्सेदार बनाया है कि अब अपराधियों का बहिष्कार का समय आ गया है और इनका साथ देने या अपने साथ बिठाने वालों की भी सार्वजनिक भर्त्सना होनी चाहिए। हिरण माकर या दारु पीकर गाड़ी चढ़ाने वाले या लड़कियों से छेड़छाड़ करने वालों का बहिष्कार होना ही चाहिए। युवाओं और आम लोगों को भी सोचना होगा कि जिसे नायक बनाकर पेश किया जा रहा है क्या वह वास्तविक जीवन में भी नायक है। ऐसे लोगों की करतूतों पर चुप बैठने की वजह या ऐसे लोगों को नायक बनाने का दुष्चक्र की वजह से ही आम आदमी का जीना दूभर हुआ है। आईये इस अभियान में आप भी हिस्सा ले और खलनायक को नायक बनाने की चेष्टा का प्रतिकार करें।

गजब हैं गृहमंत्री

  छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर पूरे देश में मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसे गृहमंत्री को पाकर छत्तीसगढ़ के लोग खुश हैं। अपनी ईमानदारी का डंका बजा चुके गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने निजी स्क्वाड से अपराधियों में दहशत है। यही वजह है कि उन्हें पूरे देश का सर्वश्रेष्ठ गृहमंत्री माना जा रहा है। सरकार को भी चाहिए कि जिस तरह से गुजरात मॉडल और हैदराबाद को मॉडल बनाकर भ्रमण यात्रा किया जाता है उसी तरह से देश के दूसरे रायों के गृहमंत्रियों को भी बुलाया जाना चाहिए ताकि वे भी देख सकें कि किस तरह से गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने छत्तीसगढ़ में एक नया मिसाल कायम किया है।
गृहमंत्री ननकीराम कंवर के इस कार्यशैली से सबसे यादा दुखी डीजीपी विश्वरंजन जी है क्योंकि गृहमंत्री की ईमानदारी से वे परेशान है। परेशानी की प्रमुख वजह नक्सलियों के खिलाफ केन्द्र से आने वाली बड़ी रकम को माना जा रहा है। अब इसका बंदरबांट ठीक से न हो तो लड़ाई तो छिड़नी है। गृहमंत्री सिर्फ विश्वरंजन के पीछे ही नहीं पड़े हैं उन्होंने एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहकर अपनी साफ गोई का परिचय दिया है। है किसी गृहमंत्री में दम जो इतनी बड़ी बात कह दे न किसी गृहमंत्री में ये दम है कि वह विधानसभा में सरकार की खिंचाई करते हुए कह दें कि शराब माफिया थाने चला रहे हैं। इतना सब कुछ देखते-सुनते कोई गृहमंत्री कैसे थानों पर भरोसा करे इसलिए तो वे अपना निजी स्क्वाड बना रखे हैं। आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए?
अब थानों की कमाई बंद हो गई है। ढाबों में शराबखोरी तो छोड़िए अवैध शराब बेचने वाले भी भाग लिए है और थानों को सट्टा-जुआ या अपराधियों से मोटी रकम नहीं मिल रही है। इसलिए सब साजिश के तहत निजी स्क्वाड के पीछे पड़ गए हैं। आखिर प्रदेश को अपराध मुक्त करना हो तो अवैध रुप से पैसा कमाने वाले पुलिस पर अंकुश जरूरी है इसलिए निजी स्क्वाड खड़ा किया गया है। अपराधियों को पकड़ों तो दो चार दिन में वह छूट जाता है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते इसलिए पिटाई जरूर है।
निजी स्क्वाड की ईमानदारी से थाने से लेकर अपराधियों के होश उड़े हुए है इसलिए भी साजिश रच कर उन्हें बदनाम किया जा रहा है। चूंकि मुख्यमंत्री डा. साहब भी जानते हैं कि गृहमंत्री ईमानदार है और वे गलत नहीं करेंगे। इसलिए वे भी निजी स्क्वाड की शिकायतों को तवाों नहीं दे रहे हैं। गृहमंत्री की एक और आदत है वे जिस काम का बीड़ा उठाते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं अब देखिए डेढ़ साल हो गया दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई कैलाश अग्रवाल का कबाड़ खरीदने का धंधा बंद हुए। है किसी में हिम्मत जो चालू करवा दे। अब दूसरे नए लोग धंधा कर रहे है। गृहमंत्री को पता नहीं है। पता चलेगा तो उनकी भी शामत आएगी। आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।

रविवार, 7 नवंबर 2010

भास्कर का फरमान, प्रेस हटाओ!

वैसे तो अपने नए-नए फरमान को लेकर छत्तीसगढ़ के अखबार मालिक हमेशा ही सुर्खियों में रहे हैं। हरिभूमि ने हर शनिवार को अपने कर्मचारी पत्रकारों व फोटोग्राफरों के ही लिए फरमान जारी किया है कि वे इस दिन सफेद टी-शर्ट जिसमें हरिभूमि लिखा हो ही पहना करें। पत्रिका ने भी कोशिश की कि ग्रेजुएट ही रखेंगे लेकिन दोनों फेल हो गए अब भास्कर ने अपने कर्मचारियों, पत्रकारों और फोटोग्राफरों को नया फरमान जारी किया है कि वे अपनी वाहन में प्रेस नहीं लिखेंगे।
हालांकि भास्कर का यह फरमान अच्छी शुरुआत है। जब दूधवाले, धोबी या प्रिटिंग प्रेस वाले भी अपने वाहनों में प्रेस लिखा रहे हो तो इसके दुरुपयोग को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। लेकिन इस फरमान को लेकर यहां बेहद असंतोष है। अब नौकरी करनी हो तो मालिक-संपादकों के फरमान मानने ही पड़ेंगे। इसके एवज में भले ही झंझट हो या कोई भुगते मालिक को क्या फर्क पड़ता है। देखना यह है कि यह फरमान कितने दिनों तक चलता है।
जनसंपर्क सचिव का डर...
मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले एन बैजेन्द्र कुमार को यह डर हमेशा ही सताता रहता है कि कहीं जनसंपर्क में बैठे वर्तमान चंडाल चौकड़ी कहीं कुछ ऐसा वैसा न कर दें जिससे जवाब देना मुश्किल हो जाए। पहले ही घपलेबाजी यहां कम नहीं हुई है उसकी लीपापोती में पसीने छूट गए है अब फोटोग्राफरों की नियुक्ति को लेकर स्वराज दास की भूमिका पर सवाल उठ रहे है। कुरैटी के कारनामों की चर्चा भी कम नहीं है। दिक्कत ये है कि छोटे कर्मचारी इन चंडाल चौकड़ी से अलग दुखी है और अपने से होशियार को कोई पसंद नहीं करता तो हाशिये पर रखना मजबूरी है।
नवभारत और नार्को...
नवभारत ने बैंक घोटाले में लिप्त सिंहा के नार्कों टेस्ट की सीडी होने का दावा कर स्टोरी लगा दिया और कह दिया कि जिसे देखना है वे दफ्तर आ जाए। दफ्तर आने वालों को निराशा लगी और ये लोग दावा कर रहे हैं कि अब तक सेटिंग से दूर की ईमेज बनाने वाले नवभारत के रंगा-बिल्ला ने सेटिंग कर ली है। इस खबर से रंगा-बिल्ला को दस लाख मिला हो या नहीं ये तो रंगा-बिल्ला जाने लेकिन सीडी की क्लिपिंग लाने वाले रमेश बैस के करीबी पत्रकार दुखी हैं? उनका दुख दूसरे से सेटिंग की है या सीडी नहीं मिल पाने का यह तो वही जाने लेकिन दुष्प्रचार में यही सबसे आगे है।
और अंत में...
पत्रिका और नेशनल लुक की सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि भास्कर के द्वारा इनके हॉकर खरीद लिए जाते हैं। अब यह भास्कर कर रहा है या नवभारत इसे लेकर आम चर्चा है। क्योंकि इस लड़ाई में नवभारत के मजे हैं।

बुधवार, 3 नवंबर 2010

दस साल पहले भी हुआ था भाजपा शर्मसार

मोहन के वरदहस्त का कारनामा...!
मोहन के खरीद-फरोख्त पर मुहर...!
 ऐसा नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल के संरक्षण में चल रहे लोगों ने सलमान खान मामले में पहली बार भाजपा को शर्मसार किया हो। इससे ठीक दस साल पहले भी बृजमोहन अग्रवाल के समर्थकों ने भाजपा को तब शर्मसार किया था जब नेता प्रतिपक्ष के चुनाव में नंदकुमार साय को चुना गया था। इस हंगामें व तोडफ़ोड़ की वजह से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पलंग के नीचे छीपकर जान बचानी पड़ी थी जबकि पार्टी ने दर्जनभर लोगों को निलंबित किया था।
इस साल राज्योत्सव में अपराधिक छवि वाले सलमान खान को मंच पर स्थान देने को लेकर भाजपा के सिद्धांत कटघरे में हैं। इस घटना ने न केवल भाजपाईयों को शर्मसार किया है बल्कि प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। हालात यह है कि इस वजह से न तो भाजपाईयों को जवाब देते बन रहा है और न ही सरकार के पास ही कोई जवाब है। ज्ञात हो कि राज्योत्सव के आयोजन की पूरी जिम्मेदारी बृजमोहन अग्रवाल के संस्कृति विभाग की है और चर्चा इस बात की भी है कि यह सब अचानक नहीं हुआ है। कब सलमान खान आना है और किस तरह से सलमान खान का स्वागत होगा यह सब बृजमोहन अग्रवाल की जानकारी में तय हुआ है।
ऐसा नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल ने पार्टी को पहली बार इस स्थिति में लाया है। उनकी कार्यशैली हमेशा ही विवादों में रही है इससे पहले जब राज्य निर्माण हुआ तब भी बृजमोहन अग्रवाल को उनके समर्थक नेता प्रतिपक्ष के रुप में पेश किए थे और जब नरेन्द्र मोदी के प्रभार ने नेता प्रतिपक्ष बृजमोहन की बजाय नंदकुमार साय को बना दिया। इस बौखलाए बृजमोहन समर्थकों ने भाजपा के एकात्म परिसर में हंगामा और तोडफ़ोड़ किया। कई लोगों के साथ बदसलूकी और मारपीट भी हुई। यही नहीं नरेन्द्र मोदी जैसे कद्दावर नेता की पलंग के नीचे छीपकर अपनी जान बचानी पड़ी। तब चर्चा इस बात की भी रही कि यह सब बृजमोहन अग्रवाल की सहमति से हुआ। तब भाजपा ने इसे गंभीरता से लेते हुए बृजमोहन समर्थकों की जमकर खबर ली थी और करीब दर्जनभर लोगों को पार्टी से निलंबित किया था। बृजमोहन अग्रवाल ने तब भी इस मामले में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर हीरों बने थे।
ऐसा नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल ने पार्टी को विवाद में नहीं फंसाया है हाल ही में निगम सभापति के चुनाव में भी उस पर पार्षदों के खरीद फरोख्त का आरोप लगा लेकिन सभापति बनाने के कारण इस खरीद फरोख्द को कसके अच्छे कारनामें के रुप में प्रस्तुत किया गया। इस बार भी सलमान को लेकर फजीहत तो हुई लेकिन उसके प्रभाव की वजह से मुख्यमंत्री व पार्टी संगठन कुछ भी कहने से बच रही है।
सलमान का सम्मान और नत्था का...
छत्तीसगढ़ सरकार की नीति है या संस्कृति विभाग की यह तो वही जाने लेकिन सलमान के लिए पलक पखड़े बिछाने वाले संस्कृति विभाग ने पिपली लाइव के हीरों मोहनदास मानिकपुरी उर्फ नत्था के मामले में अपने को अलग कर लिया। कई छत्तीसगढिय़ा कलाकार की उपेक्षा ने राज्योत्सव के आयोजकों के करतूतों पर सवाल उठाने लगे है।
जब मोहन ने योगेश को राज्योत्सव से दूर रहने कहा?
हर साल राज्योत्सव में अपना जलवा दिखाने वाले लाड़ले योगेश अग्रवाल ने इस साल राज्योत्सव से दूरी बनाई है तो इसकी वजह योगेश की वजह से मोहन पर लगने वाला आरोप और बदनामी है। हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक हर साल राज्योत्सव के नाम पर लुटोत्सव की संज्ञा देने और छिछालेदर से संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल काफी खिन्न है। कहा जाता है कि उन्होंने इस बार अपने लाड़ले भाई योगेश अग्रवाल से साफ कह दिया था कि वह इस बार राज्योत्सव बनाम लुटोत्सव से अपने को दूर ही रखे। इसलिए योगेश ने इस बार दूरी बना ली।
ज्ञात हो कि पिछले साल योगेश अग्रवाल को लेकर जबरदस्त विवाद हुआ था। दलाली से लेकर संस्कृति आयुक्त से उनकी लड़ाई तक खबरों की सुर्खियों में रही यही नहीं एक बड़े कलाकार के साथ दुव्र्यवहार की चर्चा भी जोरों पर रही और योगेश की वजह से राज्योत्सव को लुटोत्सव की संज्ञा दी जाती रही। हमारे सूत्रों के मुताबिक लगातार हो रही बदनामी व छिछालेदर की वजह से ही योगेश को दूर रखा गया।
मिसेस सीएम ने बचा लिया...
कहते हैं सलमान खान को सीएम हाउस लाने के लिए रमन सिंह के बच्चों ने जिद पकड़ ली थी लेकिन मिसेस सीएम श्रीमती वीणा सिंह ने साफ कह दिया कि ऐसे लोगों को बुलाने से बदनामी होगी और उनके इस कठोर रुख पर रमन सिंह को सहमत होना पड़ा। हालांकि चर्चा इस बात की है कि इस मामले में बाप-बेटे के बीच विवाद हुआ।

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

छत्तीसगढ़ के लिए काला अध्याय

 छत्तीसगढ़ में पिछले पखवाड़े भर में जिस तरह से कारनामें हुए वह किसी भी राजनैतिक दल के लिए शर्मनाक तो है ही राजनैतिक दलों की बेशर्मी की हदें भी है। इन दो घटनाक्रम ने एक बार फिर राज्य निर्माण के समय वीसी शुक्ल के फार्म हाउस और एकात्म परिसर में बृजमोहन अग्रवाल के समर्थकों के द्वारा मचाए हंगामें की याद तो ताजा की ही है साथ ही इससे यह साबित भी हुआ है कि किस तरह से एक नेता के करतूतों से पूरी पार्टी या सरकार को शर्मसार होना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के प्रभारी नारायण सामी पर कालिख पोतने की शर्मनाक घटना की सुर्खियों से छत्तीसगढ़ अभी उभर भी नहीं पाया था कि राज्योत्सव के आयोजकों ने सलमान खान जैसे अपराधिक रिकार्ड वाले को राज्योत्सव में मंच देकर छत्तीसगढ़ को शर्मसार कर दिया। मामला सिर्फ इतना ही होता तो सरकार अपनी करतूतें छुपा लेती लेकिन इससे भी बढक़र शर्मनाक स्थिति तब निर्मित हो गई जब सलमान खान के स्वागत के लिए राज्यपाल मुख्यमंत्री तक को लाईन में लगा दिया गया। इतने में ही मामला शांत नहीं हुआ। इससे बढक़र सलमान खान की वह बोल है जो उन्होंने राज्योत्सव के मंच से कहा। सिर्फ एक कंपनी के विज्ञापन के लिए पहुंचे सलमान खान ने जिस तरह से अपने दस मिनट में जो दमदारी दिखाई वह सरकार के अस्तित्व पर ही सवाल उठाते है।
सवाल यह भी उठने लगा है कि राज्योत्सव के आयोजन का भार बृजमोहन अग्रवाल जैसे दमदार मंत्री के विभाग के कंधे पर है इसके बाद भी यह शर्मनाक स्थिति निर्मित हुई है। छत्तीसगढ़ व सरकार को शर्मसार करने वाले इस वाक्ये ने कई सवाल उठाए हैं। क्या यह सब बृजमोहन अग्रवाल की सहमति से हुआ है। यह सवाल इसलिए भी उठाए जा रहे हैं क्योंकि इस मामले में किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। ऐसा नहीं है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे ठीक दस साल पहले भी दोनों पार्टियों में दबंगों के समर्थकों के द्वारा इस तरह का कारनामा किया जा चुका है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब सरकार में बैठे मंत्री की दमदारी के बावजूद राज्योत्सव जैसे कार्यक्रम में किसी अपराधी को न केवल जगह मिली है बल्कि उसके स्वागत के लिए राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक को लाईन लगानी पड़ी हो। इस मामले में देर से ही सही कांग्रेस नेताओं ने सरकार पर सीधा हमला किया है।
जब डीजीपी को गुस्सा आया...
सलमान खान जैसे अपराधिक पृष्ठभूमि को बुलाए जाने के बाद राज्योत्सव में पूरी व्यवस्था अस्त व्यस्त रही और इस अव्यवस्था से डीजीपी विश्वरंजन को इतना गुस्सा आया कि वे कार्यक्रम बीच में ही छोडक़र चले गए। जबकि इस समय सलमान खान मंच पर मौजूद थे। इतना ही नहीं उन्हें मनाने पहुंचे जी.एस. बाम्बरा को गाली तक सुननी पड़ी।
लाठी खानी पड़ी...
वैसे तो दाउद और कसाब को भी देखने भीड़ जुट जाती है ऐसे में सलमान खान को देखने वालों की कमी नहीं थी। पुलिस व सरकार की अव्यवस्था के चलते जब भीड़ बढ़ गई तो लाठियां भांजनी पड़ी। कई लोगों की पिटाई हुई। गांव-गांव से आने वाले बाद में सरकार को कोसते वापस लौटे।
मौत कैसे हुई...
राज्योत्सव के पहले ही दिन पोड़ निवासी साहू युवक की मौत हो गई। पहले तो उसकी मौत की करंट लगने को बताया गया लेकिन बाद में यह भी चर्चा हुई कि पुलिस द्वारा लाठी भांजने से हुई भगदड़ के दौरान उसकी मौत हुई। मौत कैसे हुई कोई बोलने को तैयार नहीं है।
वाह रे सरकार...
छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्योत्सव में जिस तरह से पटाखे फोड़े वह सरकार की कथी व करनी को तो दर्शाता ही साथ ही प्रदूषण के प्रति सरकार की लापरवाही को भी उजागर करता है। भाजपा सरकार के कई मंत्री व विधायक दीपावली में पटाखा फोडऩे पर होने वाले प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते नहीं थकते लेकिन यही सरकार राज्योत्सव में जिस पैमाने पर पटाखा फोडक़र प्रदूषण फैलाने का काम किया है वह दुखद है।

खनिज के ‘खा’

 लगता है छत्तीसगढ़ सरकार ने खनिज मामले में तय कर लिया है कि खदानों को लीज में देने की बजाय अवैध उत्खनन से पैसा कमाया जाए। तभी तो यहां लीज देने की प्रक्रिया इतना जटिल कर दिया है कि सालों से लीज देने का आवेदन लंबित है। यही नहीं आए दिन खनिज को लेकर नई-नई नीतियां बनाई जाती है ताकि खनिज की चोरी चलता रहे अधिकारियों की जेब गरम होते रहे। चूंकि यह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है इसलिए भी अधिकारियों की दादागिरी चरम पर है।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लूट मची है उसमें खनिज विभाग के अधिकारी भी पीछे नहीं है। खनिज चोरी की बढ़ती घटना से चिंतित नजर आने वाले अधिकारियों की एफआईआर दर्ज कराने की घोषणा भी टांय-टांय फिस्स हो चुका है। एफआईआर कराने की बात तो दूर नई राजधानी जैसे प्रतिबंधित क्षेत्र से भी खनिज चोरी को वह नहीं रोक पाई है।
ज्ञात हो कि नई राजधानी क्षेत्र व उससे लगे गांवों में मुरुम व गिट्टी उत्खनन पर प्रतिबंध है लेकिन आज भी सैकड़ों ट्रके मुरुम व गिट्टी शहर में बेधडक़ परिवहन किया जा रहा है। खनिज नाका तो अवैध उत्खनन को रोकने की बजाय वसूली व कमीशनखोरी का अड्डा बन चुका है। यही नहीं दुर्ग जिले के नंदनी अहिवारा क्षेत्र से भी प्रतिदिन सैकड़ों ट्रकें मुरुम व गिट्टी लेकर रायपुर आ रही है। चूंकि इन दोनों ही क्षेत्रों से आने वाले मुरुम-गिट्टी की कीमत अत्यंत कम है इसलिए भी सडक़ निर्माण से लेकर भवन निर्माण में इसका बेतहाशा उपयोग हो रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि कुम्हारी बीटीओ नाके में 100 रुपए टैक्स वसूलने के बाद भी रायपुर में सस्ते में कैसे आ रहा है यह जांच का विषय है।
इधर उड़ीसा व महासमुंद में खदान चलाने वाले एक व्यापारी का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वही काम कर सकता है जो अवैध काम करेगा हमारे जैसे नियम में काम करने वालों के लिए जगह नहीं है। उन्होंने खदान लीज पर देने की प्रक्रिया को भी घुमावदार बताते हुए यहां तक कहा कि वे यहां की खदान को सिर्फ इसलिए चालू नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनसे बेवजह पैसे मांगे जाते हैं। अवैध उत्खनन करने वालों से सांठगांठ की वजह से ही लीज देने की प्रक्रिया को जटिल किया गया है और लीज लेने का आवेदन देने वालों को आफिस का चक्कर लगवाया जा रहा है।
चर्चा तो यह है कि सैकड़ों एकड़ जमीन लीज पर लेने वालों के लिए पूरा अमला लग जाता है और निजी वन जमीनों तक को लीज पर दे दिया जाता है। इसका उदाहरण पलारी के पास स्थित गांव रिंगनी तथा चुआं, मालूकोना, देवरानी जेठानी नामक गांव तक को लीज पर दे दिया गया है और यह सब मंत्री से लेकर अधिकारियों तक से सांठगांठ कर की जाती है।