बुधवार, 27 जनवरी 2021

क्या सचमुच मोदी सत्ता की आंखें बंद है...

 


किसानों ने दिल्ली के लाल किले में पहुंचकर अपना झंडा लहरा दिया और पूरी दुनिया देखती रह गई। जो नहीं होना था वह हो गया, जिसे रोका जाना था उसे नहीं रोका गया। इसे चूक कहने की बजाय मोदी सरकार की वह नाकामी है जो पिछले 72 साल में कभी नहीं हुआ और यह इसलिए हो गया क्योंकि मोदी सत्ता को न देश की समझ है और न ही देश के लोगों के सरोकार से ही संबंध है।

किसी भी आंदोलनकारियों का लाल किले तक पहुंचकर झंडा फहराने का दुस्साहस इससे पहले उन सरकारों में भी नहीं हुआ जिसे सबसे कमजोर सरकार आंका जाता है फिर जिसे अब तक का सबसे ताकतवर सत्ता बताने वाले किस मुंह से 56 इंच की बात करेंगे। क्या इनका 56 इंच सिर्फ मुस्लिमों के लिए है।

सवाल बहुत से है लेकिन उन सवालों का कोई मतब ही नहीं है जिनके जवाब ही न मिले और सत्ता अपने हठ में जनसरोकार से आंखे मूंद ले। हम ऐसे किसी भी आंदोलन का समर्थन नहीं करते जो संविधान सम्मत न हो लेकिन क्या मोदी सत्ता इतनी लाचार हो गई है कि वह किसानों से लाल किले की महत्ता की रक्षा नहीं कर पाई या फिर तीनों कृषि कानून सचमूच कार्पोरेट के हित के कानून है और अब जब समूचा किसान इसके खिलाफ है तो मोदी सत्ता अपने अडिय़ल रुख के आगे कुछ और देखना समझना नहीं चाहती।

किसान आंदोलन के दौरान डेढ़ सौ से अधिक किसानों की मौत के बाद भी यदि किसी सत्ता में शर्म नहीं बची हो तो फिर किसानों का गुस्सा कोई कैसे रोक पायेगा। इस देश में सत्ता ने जब जन सरोकार से आंखे बंद कर रखी हो और झूठ-अफवाह और नफरत के हथियार से सत्ता हासिल करनेआपदा हो तो फिर जनता क्या करें।

संविधान से बड़ा कोई नहीं है न प्रधानमंत्री न कोई और। फिर संविधान पर कोई सत्ता न चले और अपने हिसाब से सत्ता की रईसी को बरकरार रखे तो किसे शर्म आनी चाहिए।

26 जनवरी को जनपथ के इस परेड को लेकर कुछ हुआ उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि एक फरवरी को जब किसान संसद की ओर कूद करेंगे तो मोदी सत्ता कुछ कर पायेगी?