सोमवार, 30 सितंबर 2013

पूरी भाजपा को भारीपड़ सकता है जैन मूर्ति चोरी कांड


0 प्रदेशभर के जैन समाज जल्द दिखाएंगे ताकत
(विशेष प्रतिनिधि)
रायपुर। कर्नाटक के जैन तीर्थ से हुई मूर्ति चोरी का मामला गरमाने लगा है। मूर्ति बरामदगी मामले मंत्री के कथित दबाव में छत्तीसगढ़ पुलिस के असहयोग से जैन समाज का गुस्सा चरम पर है और यही हाल रहा तो जैन समाज पूरे प्रदेश में भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है।
ज्ञात हो कि अपने भगवान की मूर्ति चोरी को लेकर जैन समाज बेवहद आक्रोशित है। यहां तक जैन मुनियों ने उपवास तक का निर्णय ले लिया था। कर्नाटक के जैन मंदिर से हुई मूर्ति चोरी में छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित माने जाने वाले ज्वेलर्स अनोपचंद त्रिलोकचंद ज्वेलर्स के संचालकों की संलिप्पता की खबर ने यहां हलचल मचा दी है।
सूत्रों की माने तो एटी ज्वेलर्स के संचालकों को प्रदेश के एक दमदार मंत्री का वरदहस्त प्राप्त है और यही वजह है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के असहोयग को इसी दमदार से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि इस मामले में एटी ज्वेलर्स के संचालक स्वयं को पाक साफ बता रहे हैं, लेकिन एटी ज्वेलर्स को लेकर पहले भी तरह-तरह की चर्चा होते रही है। सोने की बिक्री में कलाकारी के अलावा भ्रष्टाचार के पैसों का निवेश को लेकर एटी ज्वेलर्स पहले भी चर्चा में रहा है।
ताजा मामला जैन समाज का होने के कारण पूरा खेल बिगड़ गया है। हालांकि चर्चा यह भी है कि पैसे के प्रभाव के चलते श्वेताम्बर जैन समुदाय के प्रमुख लोगों को मना लिया गया है, लेकिन दिगम्बर जैन समुदाय अभी भी कार्रवाई के लिए अड़ा हुआ है।
सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री के 30 सितंबर तक का समय देने की वजह से  मामला रुका हुआ है, लेकिन भीतर ही भीतर जैन समाज आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं तो भाजपा के खिलाफ चुनाव में बिगुल फुंकने की बात पर जोर दे रहे हैं।
बहरहाल एटी के संचालकों को लेकर मामला मंत्री और फिर भाजपा के खिलाफ होता जा रहा है। देखना है 30 सितंबर के बाद यह मामला कहां तक तूल पकड़ता है।

रविवार, 29 सितंबर 2013

राजधानी फतह के लिए पार्षदों पर दांव आजमा सकती है कांग्रेस...


रायपुर। पिछले विधानसभा में कांग्रेस को मिली एक मात्र सीट पार्षद कोटे की रही और इसे देखते हुए कांग्रेस इस बार अन्य तीन सीटों पर फतह के लिए पार्षदों पर दांव खेल सकती है। दावेदारों में सतनाम सिंह पनाग और प्रमोद दुबे पर कांग्रेस दांव लगा सकती है।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती राजधानी की चारों सीट पर फतह हासिल करने की है। ग्रामीण से सत्यनारायण शर्मा और उन्तर से कुलदीप जुनेजा का नाम तय माना जा रहा है जबकि दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के दक्षिण से दर्जन भर दावेदार है जिनमें से संतोष दुबे का दावा सबसे मजबूज माना जा रहा है जबकि बृजमोहन के गढ़ माने जाने वाले टिकरापारा से पार्षद चुनाव जीत कर चर्चा में आये सतनाम सिंह पनाग ने प्रदेशाध्यक्ष चरणदास मंहत के सामने अपना मजबूत पक्ष रखा है।
ज्ञात हो कि पिछली बार पार्षद रहे कुलदीप जुनेजा की जीत से पार्षदों में उत्साह है और सतनाम सिंह पनाग का दावा है कि वह अपनी युवा टीम के सहारे जिस तरह से वार्ड चुनाव में बुजुर्गो से आर्शीर्वाद लेकर चुनाव जीतने में सफल रहे वैसे ही वे दक्षिण विधानसभा में भी फतह हासिल कर सकेते है।
सूत्रों की माने तो सतनाम सिंह पनाग अपनी छवि के कारण वार्ड ही नहीं दक्षिण के दूसरे वार्डों में भी लोक प्रिय है। निगम के तमाम पार्षदों में कम उम्र के इस पार्षद ने अपनी वार्ड सहित दूसरी समस्याओं को बखुबी उठाया है और कई मामले में तो उन्होंने बृजमोहन अग्रवाल को भी कटघरे में खड़ा किया है।
जातिगत समीकरण में भी वह भाजपा के वोट बैंक पर संध लगाने दावा भी वह कर चुका है। सभी को साथ लेकर चलने की वजह से कांग्रेस के सभी नेताओं के वे पसंदीदा है।
दूसरी तरफ पश्चिम से पार्षद प्रमोद दुबे की दावेदारी भी दमदार मानी जा रही है। मिलन सार छवि और अच्छे वक्ता होने की वजह से कांग्रेस पार्षद दल में भी प्रमोद लोकप्रिय है
प्रमोद दुबे ने महापौर किरणमयी नायक की अनुपस्थिति में कार्यवाहक महापौर की भूमिका भी निभा चुका है।
प्रमोद दुबे के बारे में कहा जाता है कि विपरित परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल करने का माद्दा रखते हैं यही वजह है कि छात्र राजनीति से कांग्रेस की राजनीति में आने के बाद वे लगातार लोगों के हित में लड़ते रहे हैं। नगर निगम में दो बार पार्षद बनने वाले प्रमोद के दावे से एक बार नई रणनीति बनी है। पश्चिम से राजेश मूणत के खिलाफ जोर आजमाईश कर रहे प्रमोद दुबे का भी यही कहना है कि चुंकि पार्षद रहते शहर की समस्याओं को दूर करने व आम लोगों के हित के लिए कार्य करने की वजह से उनका लोगों से नजदीकी जुड़ाव हो जाता है इसलिए कांग्रेस को इस बार राजधानी फतह करने पार्षदों पर दांव लगाना चाहिए।
दोनों ही पार्षदों का मानना है कि युवाओं को आकर्षित करने और राजधानी फतह करने का यह अच्छा मौका है। पिछले चुनाव में विधायक कुलदीप जुनेजा ने पार्षद रहते जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया है कि यदि पार्षद सजग रहे तो विधानसभा का रास्ता कठिन नहीं है।
ज्ञात हो कि रायपुर के सांसद रमेश बैस ने भी अपनी राजनैतिक सफर ब्राम्हणपारा वार्ड के सफर पार्षद बनकर ही शुरू किया था। ऐसे में बृजमोहन अग्रवाल के गढ़ माने जाने वाले टिकरापारा से पार्षद बने सतनाम सिंह जनाग को दक्षिण और रामकुंड क्षेत्र से पार्षद प्रमोद दुबे को पश्चिम से टिकिट मिलने पर भाजपा के दोनेां ही मंत्रियों की परेशानी बढ़ सकती है।
बहरहाल बैस से लेकर कुलदीप जुनेजा की पार्षद से सहन तक के सफर पर कांग्रेस की नजर है और यदि पार्षदों पर दाव लगाया गया तो राजधानी फतह आसान हो सकती है।

शनिवार, 28 सितंबर 2013

उत्तर सीट में फोर-एस में उलझ गई भाजपा!


सुनील, श्रीचंद, संजय और सचिदानंद
के अपने दखे, दूसरी सीट भी प्रभावित होगी
रायपुर। पिछले विधानसभा चुनाव मे ंराजधानी के उत्तर विधानसभा सीट में करारी शिकस्त झेलने वाली भाजपा इस बार भी इस सीट में उलझ कर रह गई है। फोर-एस यानी सुनील सोनी, श्रीचंद सुंदरानी, सचिदानंद उपासने और संजय श्रीवास्तव में से किसी एक को भी टिकिट देने का मतलब दूसरों के द्वारा भीतरघात की आशंका ने भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में राजधानी को भाजपा का गढ़ माना जाता है। लेकन पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां से पार्षद रहे कुलदीप जुनेजा को टिकिट दी थी। जिसका फायदा उन्हें मिला और इस भाजपाई गढ़ में कुलदीप जुनेजा ने संगठन के सचिदानंद उपासने को करारी शिकस्त दी ािी। तभी से भाजपाई गढ़ ढहने की चर्चा शुरू हुई और महापौर चुनाव में भी राजधानी में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई ।
राजधानी के चार सीट में से भाजपा के लिए सर्वाधिक दिक्कत उत्तर विधानसभा की सीट को लेकर है। इसकी वजह यहां से दावेदारों की फेहरिश्त है। और मजेदार बात यह है कि चारों प्रमुख दावेदारों का नाम अंग्रेजी के एस से शुरू होता है। पिछले चुनाव में हार का घुंट पीने वाले सचिदानंद उपासने अभी भी दावेदारों में सबसे आगे है। हार के बाद ीाी उनकी उम्मीद कायम है जबकि राजधानी के महापौर जैसे पद पर रहे वर्तमान राविप्रा अध्यक्ष सुनील सोनी भी मतबूत दावेदार है। बृजमोहन खेमे के सुनील सोनी का दावा इस लिहाज से भी मजबूत है कि वे पार्षद से लेकर महापौर तक का चुनाव जीत चुके है जबकि सचिदानंद को जनता अस्वीकार चुकी है।
तीसरे दावेदार में श्रीचंद सुंदरानी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। चेम्बर में बृजमोहन अग्रवाल खेमें को तगड़ा पटखनी देने वाले श्रीचंद सुंदरानी का न केवल सिंधी समाज में बल्कि दूसरे समाज में तगड़ी पैठ है। सिंधी मतदाता वाले इस क्षेत्र में तो चर्चा इस बात की भी है कि यदि श्रीचंद सुंदरानी को टिकिट नहीं दी गई तो भाजपा के वोट बैंक माने जाने वाले इस समुदाय के द्वारा राजधानी ही नहीं प्रदेश में भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। नगर निगम में पार्षद रहे श्रीचंद सुंदरानी के व्यवहार को लेकर भी सकारात्मक बाते हैं।
वहीं एक अन्य दावेदार संजय श्रीवास्तव वर्तमान में नगर निगम रायपुर में सभापति है और भाज्युमों की राजनीति के चलते उनकी चुवाओं में जबरदस्त पैठ भ्ी है। कहा जाता है कि अपनी कार्यशैली की वजह से भी उन्होंने पार्टी का ध्यान अपनी ओर खींचा है लेकिन राजेश मूणत की तरह काफी हद तक अक्खड़पन से भी कई लोग उन्हें टिकिट का दावेदार मान रहे हैं।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक इस सीट के लिए पार्टी ने सर्वे भी करा लिया है और सर्वे का परिणाम पार्टी के लिए बेचैन करने वाला है। बताया जाता है कि चारों दावेदारों में बेहद खींचतान है और इनमें से किसी को भी टिकिट मिलने पर दूसरे के द्वारा भीतर घात भी किया जा सकताह ै। इसके अलावा इन दावेदारों ने राजधानी के दूसरे विधानसभा में मौजूद अपने समर्थकों के बल पर जिस तरह से पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाया हे वह भी हैरान करने वाला है।
बहरहाल भाजपा के लिए यह सीट हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

राजधानी की चारों सीट में उथल-पुथल मचाएगा स्वाभिमान मंच


(विशेष प्रतिनधि)
रायपुर। भाजपा की सत्ता सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजधानी के चारों विधानसभा में इस बार भाजपा की राह आसान नहीं है, तो कांग्रेस के लिए भी जीत की राह कठिन होने लगी है। स्वाभिमान मंच के द्वारा चारों सीट पर दमदार प्रत्याशी उतारे जाने की चर्चा ने कांग्रेस ही नहीं भाजपा को भी भीतर तक हिला दिया है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को वैसे तो भाजपा का गढ़ माना जाता है। वर्तमान में यहां भाजपा के पास तीन विधायक और कांग्रेस के पास एक विधायक है। भाजपा के तीन में से दो विधायक प्रदेश सरकार में मंत्री भी है, लेकिन दोनों में चल रही खींच-तान का असर संगठन में साफ देखा जा सकता है।
राजधानी के दमदार माने जाने वाले विधायक बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत ने पिछला चुनाव लगभग 20 हजार से अधिक वोटों से जीता था। जबकि भाजपा के ही नंदकुमार साहू और कांग्रेस के कुलदीप जुनेजा ने दो-ढाई हजार से जीत हासिल की थी।
राजनैतिक सूत्रों की माने तो प्रदेश सरकार के ये दोनों मंत्री अग्रवाल और मूणत के बीच जबरदस्त होड़ मची है और दोनों के बीच लड़ाई भी खुलकर सामने आ चुकी है। ऐसे में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ अंदरुनी रणनीति के चलते दोनों की जीत को लेकर कई तरह के सवाल अभी से उठने लगे हैं। जबकि इंदिरा बैंक घोटाले के नार्को सीडी में दोनों मंत्रियों द्वारा एक-एक करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का मामला भी चर्चा में है।
इधर कांग्रेस इस बार राजधानी के चारों सीटों पर कब्जा जमाने कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती है। इसलिए वह न केवल दोनों मंत्रियों को नार्को टेस्ट की सीडी बांट रहा है, बल्कि सरकार के भ्रष्टाचार और नाकामी को उजागर करने में लगा है।
सूत्रों की माने तो टिकट को लेकर उठा-पटक के बीच जहां कुलदीप जुनेja और ग्रामीण से सत्यनारायण शर्मा की टिकट फाइनल हो चुकी है, जबकि दक्षिण से संतोष दुबे और किरणमयी नायक तथा पश्चिम से मोतीलाल साहू, प्रमोद दुबे और सुभाष धुप्पड़ में तय होना है।
प्रदेश सरकार में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजा वाद के चलते महापौर चुनाव में बाजी मारने में सफल कांग्रेस एक बार फिर अपनी जीत को लेकर उत्साहित है, तो वहीं पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही स्वाभिमान मंच को दमदार प्रत्याशी की तलाश है।
सूत्रों की माने तो स्वाभिमान मंच ने प्रत्याशियों की तलाश कर ली है और कांग्रेस-भाजपा के दमदार बागियों को वह अपना प्रत्याशी बनाएगी। स्वाभिमान मंच के प्रवक्ता महेश देवांगन के मुताबिक उनका मंच इस बार राजधानी में खाता अवश्य खोलेगा और उनकी कई कांग्रेसी और भाजपाई  असंतुष्टों से चर्चा भी हो चुकी है।
राजनैतिक सूत्रों का कहना है कि स्वाभिमान मंच के इस निर्णय से भाजपा ही नहीं कांग्रेस में भी जबर्दस्त बेचैनी है और मंच की दमदारी ने दोनों ही प्रमुख दलों में उथल-पुथल मचा दी है।
बहरहाल विधानसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन दोनों ही दलों के बागियों के तेवर से उथल-पुथल मचना स्वाभाविक है।