शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

जब चमड़ी मोटी हो जाये ...


भले ही कादर खान ने एक फिल्म में राजनीति का मतलब राक्षस की तरह जनता को निगलने वाला तिकड़म बाज मजाक में कहा हो लेकिन इन दिनों राजनीति का यही मतलब निकलने लगा है । तभी तो नेता नाम से ही लोगों में गुस्सा दिखने लगता है । राजनीति में बढ़ती गंदगी और उसमें तैरते हुए मुस्कुराते नेताओं के चेहरे देखकर आम आदमी के मुंह से गालियां निकलने लगती है । भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले खुद भ्रष्ट हो गये हैं और भारतीय संस्कृति की हुहाई देने वाली पार्टी की सरकार और उनके नेताओं को अश£ील डांंस देखने में मजा आता है । छत्तीसगढ़ में सत्ता में बैठी रमन सरकार की करतूतों से हिन्दुत्व और संस्कृति की बात करने वाले भले ही हैरान न हो लेकिन आम आदमी हैरान हे ।
एक तरफ जब कांकेर में आदिवासी बालिकाओं के साथ हुए दुष्कर्म से लोगों में आक्रोश है तो दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के मंत्री व प्रशासन के जिम्मेदार अफसर मैनपाट कार्निवाल के नाम पर अश£ील डांस का मजा ले रहे थे । भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाल ेभाजपाई नेताओं ने जिस तरह से विदेशी बालाओं के डांस पर तालियां बजाई वह शर्मनाक हे । भले ही कलेक्टर अपनी सफाई में इसे विदेशी पर्यटकों को लुभाने की कोशिश कह रहे हो लेकिन कार्यक्रम में मौजूद महिलाओं के लिए यह कतई सहज नहीं था । वैसे भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति में ऐसी अश£ीलता का कहीं स्थान नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति की दुहाई देते नहीं थकने वाली भाजपा की सरकार को तो सत्ता में आने के बाद ऐसी ही अश£ीलता में मजा आता है तभी तो राÓयोत्सव में करीना कपुर के ठुमके लगवाये जाते है और परिवार सहित फोटो खिचवाये जाते हैं ।
नगर निगम में नेता प्रतिषक्ष सुभाष तिवारी और आरडीए उपाध्यक्ष प्रफुल्ल विश्वकर्मा की उपस्थिति में भी अश£ील डांस के कार्यक्रम पर भी पार्टी खामोश रहती है तो इसका मतलब साफ है ।
वैसे राजनीति का यह सिद्धांत है कि जो कहते हैं वह करते नहीं । शायद यही वजह है कि सत्ता में आने के पहले हल्ला मचाये जाने वाले मुद्दे सत्ता से आते ही भुला दिये गये । शिक्षा कर्मियों के संविलियन या किसानों को 270 रूपये बोनस देने की बात यदि छोड़ भी दिया जाए तो धर्मशास्त्र के विपरित पांचवा कुंभ राजिम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया । भारतीय धर्म को लेकर लंबा चौड़ा भाषण देने वालों के इस कृत्य का शंकराचार्य ने ीाी कड़ा प्रतिवाद किया लेकिन इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा । फर्क तो रोगदा बांध बेचने या कोयले की कालिख के बाद भी नहीं पड़ा इसलिए तो कहते हैं कि जब नेताओं की चमड़ी मोटी हो जाये तो उन्हें इस बात की कोइ्र परवाह नहीं होती कि उनके बारे में जनता क्या सोचेगी । सत्ता और पैसे के दंभ नेतो अ'छे-अ'छों को दुष्कर्म के दल-दल में धकेल दिया है
यही वजह है कि कांकेर में आदिवासीय ब"िायों के साथ हुए दुष्कर्म के बाद रमेश बैस जैसे वरिष्ठ सांसदों के बयान दुर्भाग्य पूर्ण आते हैं तो कई भाजपाई नेता अपना अपा खो देते है । प्रदेश के मुखिया को इस मामले के दोषी लोगों को जल्द सजा की मांग करने वालों में राजनीति दिखलाई देता है । जबकि स"ााई यह हे कि सरकार अपने आप कुछ करेगी यह भरोसा ही नहीं है तभी तो गर्भाशय कांड के जैसे जघन्य अपराध करने वालों का निलंबन समाप्त हो जाता है । उद्योगों को जमीन देने किसानों पर लाठियां बरसाई जाती है और मिलावट खोर को पकडऩे वाले पुलिस अफसर को छुट्टी पर भेज दिया जाता है ।
अब तो लोगों का यह भरोसा उठ ही गया है कि सरकार अपने मन से कुछ करेंगी । लोगों को लगने लगा है कि न्याय तभी मिलेगा जब लोग सड़क पर आयेंगे अन्यथा मोटी चमड़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।