मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

चमचा गिरी का पुरस्कार



हालांकि छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में चमचागिरी का महत्व तो शुरु से ही रहा है। इस चत्र में दारुखोर से लेकर दलाल तक पत्रकार बन बैठे थे। जिन्होंने कभी एक लाईन खबरें नहीं लिखी हो वे भी संपादक की चमचागिरी करते हुए शहर में रौब जमाने से परहेज नही किया। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के प्रभाव में चंद साल पहले रायपुर आने वाले एक पत्रकार को जब पिछली बार यह पुरस्कार मिला था तभी से पुरस्कारों को लेकर पत्रकार जगत मे तरह तरह की चर्चा शुरु हो गई थी। और इसका ज्यादा इस बार भी चमचागिरी करने वालों ने ही उठा लिया। विधानसभा में इस बार भी जिद करो दुनिया बदलो के उस पत्रकार को पुरस्कार मिल गया जिसकी ड्यूटी प्रेस की तरफ से नहीं लगाई गई थी । इस प्रेस से प्रथम पाली के राजेश व द्वितीय पाली के गोविंद ताकते ही रह गए। और पुरस्कार कोई और ले उड़ा। दूसरा पुरस्कार जिन्हें मिला वह भी उस संसथान को अलविदा कह दिया था। पुरस्कार किस मंत्री के चमचागिरी की वजह से मिला यह सभी जानते हैं।



प्रियंका के नौकरी छोड़ने का राज

इलेक्ट्रानिक मीडिया में अपने कार्यों से धूम मचाने वाली प्रियंका कौशल को छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा। सीधे लकीर देखने वाले तो यही समझ रहे हैं कि शादी ही प्रमुख वजह रही है। अपनी भाषा शैली और कार्यों से पत्रकारिता में स्थापित हुई इस युवती की चले जाने की वजह क्या सिर्फ शादी है या मैंनेजमैंट की नादिरशाही? सवाल सभी का है और जवाब सिर्फ प्रियंका दे सकती है। लेकिन वह भी चुपके से खिसक गई। आखिर छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में अपने तेज तर्रार शैली व काम से अपनी पहचान बनाने वाली प्रियंका को क्यों जाना पड़ा। चमचागिरी के बल पर काम नहीं करने वाले की जगह हमेशा सुरक्षित रहती है और काम करने वाले हमेशा ही प्रताड़ित रहते हैं।

मीडिया में बढ़ते इस खेल से लोग हतप्रभ भी है।



सोनी-पारे में भिडंत

इन दिनों राजधानी में दो पत्रकार प्रफुल्ल पारे और राजकुमार सोनी के बीच की लड़ाई पुलिस तक पहुंच गई है। दोनों की लड़ाई की वजह सिर्फ ब्लॉग में की गई टिपण्णी होगी कहना कठिन है। प्रफुल्ल पारे को भोपाल से आया बता देना या राजकुमार सोनी को भिलाई छाप कह देने से बात नहीं बढ़ सकती। वैसे भी इस शहर के पत्रकारों के लिए न तो प्रफुल्ल पारे ही अनजान है और न ही राजकुमार सोनी। दोनों ही पत्रकारों की अधिकारियों से मधूर संबंध है और वे जाने भी इसलिए जाते हैं।

राजकुमार सोनी ने अपने खिलाफ रिपोर्ट लिखे जाने को षडयंत्र बताया है। यह सच भी हो सकता है क्योंकि हाल ही में उन्होंने एडीजी रामनिवास के खिलाफ यादव ब्रिगेड वाली खबर छापा था। तभी से यह चर्चा रही है कि राजकुमार सोनी से रामनिवास जी नाराज हैं। यह भी कितना सच है या सिर्फ शिगूफा ?

इधर पुलिस के द्वारा जुर्म दर्ज किये जाने को लेकर बिरादरी में नाराजगी है। पहले डीएसपी स्तर के अधिकारी जांच करे तब ही जुर्म दर्जं किया जाना चाहिए। और यह पत्रकारों को भी सोचना होगा कि उनकी कमजोरी का फायदा उठाने में प्रशासन देर नहीं करती।



प्रेस क्लब अध्यक्ष की परेशानी

लगभग पांच से प्रेस क्लब का अध्यक्ष पद संभालने वाले अनिल पुसदकर इन दिनों वसूली बाज पत्रकारों से परेशान है। दामू काड के बाद से प्रेस क्लब मे ऐसे पत्रकारों की शिकायतें कुछ ज्यादा ही आने लगी है। ज्यादातर इलेक्ट्रानिक मीडिया से है। आईडी लेकर धौंस जमाने वाले वसूली के लिए घुम रहे हैं और परेशान लोग अध्यक्ष को फोन कर देते हैं। पांच साल में नाम तो होना ही है और नाम वाले को ही तो लोग फोन करेंगे।



धमकाने वाले अब भी फरार

पत्रकाररिता में अपनी कलम के लिए पहचाने जाने वाले आसिफ इकबाल को धमकाने वाले अब भी पुलिस पकड़ से बाहर है। अब तो पुलिस पर संदेह होने लगा है कि वह जानबुझकर अपराधीयों को नहीं पकड़ रही हैं आखिर पत्रकारों से दुखी भी सबसे ज्यादा पुलिस वाले ही होते हैं और पत्रकार संगठन भी इस मामले में कुछ नहीं बोल रहा है और पत्रकाररिता का दम भाने वाले पत्रकार भी फालो अप नहीं कर रहे हैं। अब क्या कहा जाये।


और अंत में...

पत्रकारिता में चमचागिरी अब संपादको तक ही नही रह गया है संपादक भी मंत्री के चमचे कहलाने लगे हैं। प्रतिष्ठित अखबार के रंगा-बिल्ला की चमचागिरी से नेताओं के चमचों को भी शर्म आने लगी है।

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

मेरी मर्जी...

कमल बिहार को लेकर जिद पर अड़े नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूनत की एक और नई जिद से भले ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को कोई फर्क न पड़े लेकिन न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत पर यही किसी कुठाराघात से कम नहीं है।

अपनी बद जुबान को लेकर विधानसभा से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में चर्चित नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूनत के बारे में अब यह आम चर्चा हो चल रही है कि वे अपनी मर्जी के मालिक हैं। यदि उन्हें कोई बात जंच गई तो उसे वे पूरा करने की हर संभव कोशिश में लग जाते हैं। इससे चाहे नियम कानून की अनदेखी हो या फिर पार्टी को भी शर्मिदगी क्यों न उठाना पड़े।

दरअसल तरुन चटर्जी को हटाकर मंत्री पद पाने वाले राजेश मूनत के सामने सबसे बड़ी दिक्कत उनके प्रतिद्वंदी बृजमोहन अग्रवाल हैं और उनसे आगे बढ़ने की होड़ की वजह से ही अंधेरगर्दी की इबादत लिखी जा रही है।

कमल बिहार योजना को पूरा करने की जिद में उनका बृजमोहन अग्रवाल जैसे वरिष्ठ मंत्री से भिडंत जग जाहिर है इसके बाद अब वे खमतराई स्थित छठवा तालाब में नियम कानून को ताक पर रखकर सामूदायिक भवन बनाने जिद पर उतर आये हैं। और लोगो के विरोध के बाद भी सामूदायिक भवन के निर्मान के लिए भूमिपूजन भी उन्होंने कर दिया।

एक तरफ सरकार सरोवर हमारी धरोवर का नारा लगाते नहीं थकती दूसरी ओर सामूदायिक भवन बनाकर तालाब को नष्ट करने की कोशिश हो रही है। गिरते जल स्तर और नष्ट होते तालाब ने पर्यावरन संतुलन को बिगाड़ दिया है। एक तरफ सरकार तालाबों को कब्ज़ा मुक्त करने व उसके सौंदर्यीकरन की कोशिश करने में लगा है दूसरी ओर तालाब में सामुदायिक भवन निर्मान की जिद से लोग हतप्रभ है।

कभी रायपुर में सौ से उपर तालाब हुआ करते थे लेकिन नेताओं और अधिकारीयों की मिलीभगत ने तालाबों की इस नगरी का सत्यानाश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखा जिसका दुष्परिनाम आम लोगों को ही अप्रैल माह में ही 40 के तापमान के साथ भुगतना पड़ रहा है। जल स्तर गिरने से शहर वासियों को पानी की तकलीज़ें से गुजरना भी पड़ रहा है।

सामूदायिक भवन निर्मान का सबसे दुखद पहलू यह भी है कि इसके निर्मान के लिए नगर निगम एवं टाउन एंड कट्री प्लानिंग से नक़्शे की स्वीकृति भी नही ली गई। नियमों का हवाला देकर अवैध प्लाटिंग पर बुलडोजर चलाने वाले मंत्री की सामूदायिक भवन निर्मान में नियमों की अनदेखी आश्चर्यजनक है।

इस शहर के पुराने वाशिंदों का कहना है कि रजबंधा तालाब हो या फिर लेंडी तालाब सभी में राजनेताओं और नौकरशाहों की जिद चली और बेदर्दी से तालाब पाट दिये गए। नेताओं की जिद की वजह से ही तालाबो पर कब्जे हुए हैं और शहर वासियों को भीषन गर्मी व पीने की पानी के लिए भुगतना पड़ रहा है।

नेताओं की इस तरह की अंधेर गर्दी आखिर कब तक चलेगी। हर बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर मनमानी करने की प्रवृति के कारन ही प्रदेश भर में विकराल स्थिति उत्पन्न हो गई है। ऐसे अंधेर गर्दी के खिलाफ लड़ाई कौन लड़े।

हालांकि खमतराई के इस छठवा तालाब पर चल रहे अंधेरगर्दी के खिलाफ यहां के पार्षद डॉ. पूर्ण प्रकाश झा ने मोर्चा खोल दिया है और अब जरुरत जनसमर्थन का है हालांकि आमापारा तालाब को पाटने की कोशिश हो रही है और शहर भर से कचरा तालाब में डाला जा रहा है। तेलीबांधा तालाब का एक हिस्सा गौरवपथ का भेंट चढ़ रहा है लेकिन शहर में पर्यावरन की दुहाई देकर अपना फोटो छपवाने वाले गायब हैं।

देखना है कि खमतराई तालाब के इस मामले में पर्यावरन प्रेमी सामने आते हैं या फिर वृक्ष लगाओ फोटो खिचाओ तक ही अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

नक्सली हिंसा मुर्दाबाद...

जन लोकपाल बिल को लेकर अन्ना हजारे के अनशन और फिर इस मामले की जीत ने भले ही एक नए बहस को जनम दिया हो लेकिन वास्तव में इस तरीके ने भ्रष्ट नौकरशाह और भ्रष्ट अफसरों की नींद उड़ा दी है। भले ही कर्नाटक के पूर्व मुख्य मंत्री कुमार स्वामी से लेकर कपिल सिब्बल , सलमान खुर्शिद हो या तारीक अनवर इस तरीके की आलोचना कर रहे हो लेकिन एक बात तो तय है कि इस तरह का आंदोलन आज भी प्रासंगिग है और इमानदारी हो तो ऐसे आंदोलनों को सफलता भी मिलती है।

छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिले नक्सली प्रभावित है और वे दो तीन दशको से अपनी मांगो को लेकर हिंसा का सहारा ले रहे हैं लेकिन हिंसा से कभी भी मांगे पूरी नहीं होती। यही वजह है कि नक्सलियों की मांगे महत्वपूर्ण होते हुए भी उनके प्रति जन-आक्रोश बढ़ता ही जा रहां है।

हिंसा कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता यह बात अन्ना हजारे ने साबित कर दिया है और हमारा भी नक्सलियों से यही आग्रह है कि वे अब भी समझ जांए और गांधी वादी तरीके से लोगों की भलाई की सोचें। आखिर उनके आंदोलन से हर हाल में आम लोगों को ही भूगतना पड़ रहा है। यदि वे अपनी मांगे इमानदारी से रखे तो किसी भी सरकार में हिम्मत नहीं है कि वे आम लोगो के हिंतो की बात नकार दें।

जल-जंगल और जमीन को लेकर चल रहे नक्सली आंदोलन का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि उनकी हिंसा का सर्वाधिक शिकार वे आम लोग ही हो रहे हैं जिनके हितों की दुहाई दी जाती है।

आदिवासी या दूसरे लोग बेवजह मारे जा रहे हैं। अनाथ और अपाहिज होते बच्चों को देखने के बाद भी नक्सलियों का दिल नहीं पसीजता तो कहीं न कही उनकी अपनी सोच है जो आम लोगों के हित कम अपना हित अधिक देखता हो। बहुत संभव है वे विदेशी ताकतो के इशारे पर हिंसा का रास्ता अख्तियार किये हो। लेकिन सच यह है कि गाँधी के देश में हिंसा के लिए कतई जगह नहीं है और अपनी मांगे मनवाने का सबसे अच्छा तरीका गांधीवाद और चुनाव में हिस्सेदारी है।

अन्ना हजारे सहित आम लोगों ने जन लोकपाल की बिल की लड़ाई को दूसरी आजादी की लड़ाई से संबोधित किया था। यह भी सच है कि भ्रष्ट नेता और तानाशाही चलाने वाले अफसरों ने विकास को शहरों तक सीमित कर दिया है और गांवों में आज भी शिक्षा, सवास्थ या दूसरी बुनियादी का अभाव है लेकिन इसके लिए हमारे अपने जनप्रतिनिधि ही दोषी हैं जिन्हें नौकरशाहों पर लगाम कसने या क्षेत्र के विकास के लिए भेजा जाता है लेकिन वे अपने वेतन भत्तों और पेंशन के अलावा भी पैसों के लिए काम करता है।

नक्सली हिंसा अब बंद भी होना चाहिए। नक्सली आंदोलन से जुड़े लोगों को चाहिए कि वे जिन--े हितों की लड़ाई की बात करते हैं उनके आंदोलन से उनका क्या हाल है जरा देखें। सिपाही की नौकरी भी कोई रईस जादे नहीं करते शोषित माने जाने वाले समाज के एक हिस्से की इसमें भागीदारी होती है उन्हें मारने से उनका परिवार का क्या हाल होता है वे पता क्यों नहीं करते।

एक बात वे और समझ लेकिन गांधी वाद की ताकत को पूरे विश्व ने माना है। मिस्र मे तख्ता पलट इसका उदाहरन है। उन्हें कोई शिकायत हो तो उन्हें भी अपनी बात रखने की छूट है पर बंदूको किसी भी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता।

मेरा आग्रह है कि अन्ना हजारे के नेतृत्त्व में देश की व्यवस्था सुधारने के लिए वे भी हिंसा का रास्ता छोड़ इस दूसरी लड़ाई में अपना जीवन होम कर दे अन्यथा नक्सली-हिंसा मुर्दाबाद के नारे लगते रहेंगे और वह आम आदमी मरता रहेगा जो अव्यवस्था से पहले ही मर चुका है।

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

छत्तीसगढ़ को भी अन्ना जैसों कि जरुरत




महाराष्ट्र के आधा दर्जन मंत्रि और चार सौ अफसरों को हटवा चुके अन्ना हजारे के आगे केद्र की सरकार को झुकना पड़ा। इस आंदोलन को शांत छत्तीसगढ़ में भी जिस तरह से समर्थन मिला उसके बाद ने केवल आम लोग उत्साहित हैं बल्कि इस आंदोलन से जुड़े लोग भी समझ गए हैं कि गांधी वाद में आज भी उतनी ही ताकत है जितनी आजादी की लड़ाई के दौरान रही है।

छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार , अफरशाही से आम आदमी त्रस्त हैं। यहां की राजनैतिक स्थिति से तो पता ही नहीं चलता कि काग्रेसी कौन है और भाजपाई कौन ।

अन्ना हजारे के समर्थन में आमरन अनशन करने वाले विजय वर्मा कहते हैं कि अब छत्तीसगढ़ सरकार को भी समझ लेना चाहिए, नहीं तो वे छत्तीसगढ़ में हो रहे भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ेंगे। विजय वर्मा ही नहीं दाऊ आनंद कुमार ,ममता शर्मा, भारती शर्मा ने भी इसी तरह की बात कही है। छत्तीसगढ़ में बिजली पूरे देश में सबसे महंगी कर दी गई इतना ही नहीं उद्योगपतियों को राहत देते हुए केवल 11 से 13 फीसदी टैक्स बढ़ाया गया जबकि आम आदमी के लिए 22 प्रतिशत वृद्धि की गई। सरकार लोगों को पानी तो दे नहीं पा रही है और टैक्स बड़ा रही है।

भ्रष्ट अफसरों को खुलेआम संरक्षन दिया जा रहा है। बाबूलाल अग्रवाल, एम के राउत, सुब्रत साहू, नारायन सिंह, कल्लुरी, रामनिवास ,राजीव श्रीवास्तव जैसे विवादित अफसरों को पदोन्नति व संरक्षन दिया जा रहा है। रोगदा बांध बेचने वाला अफसर पी जाय उमेन को मुख्यसचिव बनाये रखा गया है। मंत्रियों पर खुलेआम भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है और मुख्यमंत्री के विभाग खनिज, जनसंपर्क,और उर्जा में भ्रष्टाचार की नदिया बह रही है। आम लोगों में अन्ना के आंदोलन से उत्साह जगा है जबकि संभावना व उम्मीद भी जताई जा रही है कि शीघ्र ही बड़े आंदोलन छत्तीसगढ़ में भी होगा।

खासकर चुनाव के समय 270 रु. बोनस देने की मांग को लेकर जिस तरह से किसानों आंदोलन साल भर से जारी है उसे अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश मे किसान मोर्चा अन्ना हजारे या गांधी वादी अनशन पर जा सकते हैं।

शांत छत्तीसगढ़ में नक्सली आंदोलन को खतम करने भी कुछ लोग आंदोलन चलाने की बात कर रहे हैं और बस्तर में पदयात्रा या इस तरह का कोई काम करने की योजना भी बनाने की जरुरत बताई जा रही है।

सरकारी मनमानी पर लगाम

 अब तक केद्र सरकार की मनमानी पर न्यायालय फटकार लगाते रही है लेकिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जिस तरह से प्रधान पाठक परीक्षा को रद्द किया है उसके बाद सरकार को सबर लेना होगा कि वह अपनी मनमानी बंद कर दे। लोगों ने अपने हितो के लिए विधायक चुने हैं। भले ही उन्हें दो जून का खाना न मिले लेकिन विधायकों को भूखा रहना न पड़े इसलिए उन्हें वेतन भी दिया जाता है। उन्हें वेतन इसलिए भी दिया जाता है कि वे नौकरशाहों पर नकेल कस कर रखे।


लेकिन क्या सचमुच ऐसा हो रहा है। चपरासी से लेकर आईएएस, आईपीएस सरे आम पैसा खा रहे हैं। और जनप्रतिनिधी इस पर नजर रखने कि बजाय खुद पैसा खाने में लग गये हैं।

प्रधान पाठक परीक्षा रद्द करने के न्ययालीन फैसले के बाद पहला सवाल यह उठने लगा कि आखिर सरकार में बैठे लोग ही नियम से काम न करे तो आम लोगों से नियम पर चलने की उम्मीद वह क्यों करती है। दूसरा सवाल यह है कि अब लोगों को हर छोटी-छोटी बातों के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा। ये दो सवाल ही अन्ना हजारे को जन्म देता है। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है। लूट-खसोट की सारी हदें पार की जा रही है। उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी जमकर हो रही है। बकौल प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी यह सरकार इतनी खराब है कि यदि डीएमके व अन्य गठबंधन दलों की मजबूरी नहीं होती तो अब तक इसे बर्खाश्त कर दिया जाता। भले ही अजीत जोगी पर काग्रेसी होने की वजह से यह कहने का आरोप लग रहा हो लेकिन प्रधान पाठक परीक्षा रद्द होने के बाद क्या दोषी अधिकारीयों को बचाया नहीं जा रहा है। क्या बाबूलाल अग्रवाल, एम के राउत, सुब्रत साहू, नारायन सिंह सहित ऐसे तमाम विवादास्पद अधिकारीयों को प्रमुख पदों पर नहीं बिठाया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने क्या भ्रष्ट और विवादास्पद अधिकारीयों को संरक्षन नहीं दे रखा है। कल्लुरी जैसे आईपीएस अधिकारी जहां जाते हैं अपनी अपनी करतूत से बाज नहीं आते। ऐसे लोगों को नौकरी पर रखने की सरकार की क्या मजबूरी हो सकती है। आम लोगों ही नहीं पार्टी कार्यकर्ताओं से बदतमीजी करने वालों को मंत्री बनाये रखने की मजबूरी नहीं निजी स्वार्थ कहा जाता है। प्रधान-मंत्री मनमोहन सिंह ने जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मजबूरी की बात कही थी तब भी मजबूरी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। ऐसा नहीं कि गठबंधन की मजबूरी की दुहाई सिर्फ मनमोहन सिंह ने दी है। ऐसी दुहाई भाजपा भी केंद्र की सत्ता में पहुंचने पर देते रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ में न तो गठबंधन की मजबूरी है और न ही अल्पमत की चिंता सरकार भ्रष्ट अधिकारीयों पर नकेल क्यों नहीं कस रहा है। सरकार खुद स्वीकार करती है की रोगदा बांध बगैर जानकारी के उद्योगपति को बेच दिया गया लेकिन न तो इस ब्रिकी को ही रद्द किया जाता है और न ही बेचने वाले मुख्य सचिव पी जाय उमेन पर ही कार्यवाई की जाती। क्या अपना पेट काटकर विधायकों को वेतन और मंत्रियों को सुविधा इसलिए दी जाती है कि वे नौकरशाहों के साथ मिलकर देश को बेचने का कम करे । भाजपा याद रखे की जनता ने उन्हें काग्रेसियों की करतूतों की वजह से चुना है और उनकी करतूतें बंद नहीं हुई तो जनता उन्हें भी बाहर करेगी जैसे केंद्र में वह कर चुकी है। सिर्फ शाखाओं में संस्कार की बात कहने से या दो रुपया किलो चावल देने से पाप नहीं धुल जाता। कर्मो का फल यहीं मिलता है और ईश्वर जब कर्मो का फल देता है तो उसका असर भयावह होता है। यदि सचमुच सरकार के मुखिया ईमानदार हैं तो उन्हें भी प्रधान पाठक परीक्षा सहित अन्य घपलों के लिए नौकरशाह को दंडित करना होगा वरना जिस तरह से भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर ऊंगली उठाई थी वैसे ही हजारों उंगलिया डाक्टर रमन सिंह पर उठेगी और फिर छत्तीसगढ़ में भी अन्ना हजारे की तर्ज पर लोग नई आजादी की लड़ाई लड़ेंगे।

रविवार, 10 अप्रैल 2011

डाक्टर साहब ! सत्य वचन ...

दक्षिन बस्तर के ताड़मेटला सहित तीन गांवों में 14 मार्च को छत्तीसगढ़ियों की हत्या , बलात्कार और घर जलाने की घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ग्राउंड रिपोर्ट लेने पहुंचे विशेष आयुक्त हर्ष मंदर ने जब कहा क़ि दंतेवाड़ा क्षेत्र में सरकार क़ि मौजूदगी का एहसास नहीं होता तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह फट पड़े क़ि छत्तीसगढ़ पर कोई भी कुछ भी कह देता है। उन्होंने साथ ही यह भी जोड़ा की अग्निवेश या क़िसी बाहरी व्यक्ति के सलाह या प्रमाण-पत्र लेने की जरुरत नहीं है।



एक बारगी तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना जायज है? क़ि आखिर छ.ग. के बारे में कोई दूसरा क्यों बोले। और इस प्रदेश के बाहर के लोग या गैर छत्तीसगढ़िया कौन होते हैं प्रमाण-पत्र देने वाले।



हमारा प्रदेश है हम अपने ढंग से चलायेंगे? हमे लगता है की बस्तर में कानून व्यवस्था है तो है? कोई दूसरा कैसे कह सकता है? और जब हमारा बहुमत है तो हमारी ही मर्जी चलेगी? और जब यहां क़ि प्रमुख राजनैतिक पार्टियों के नेता कुछ नहीं बोल रहे हैं? तो अग्निवेश या दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओ को क्या पड़ी है।



प्रदेश में सब कुछ ठीक है कानुन व्यवस्था अच्छी है? भ्रष्टाचार हो भी रहा है तो प्रदेश के लोगों का ही ज़यदा हो रहा है। आखिर केद्रीय सरकार के पैसों का इससे अच्छा उपयोग और क्या हो सकता है कि सीधे नेता-अधिकारीयों की जेबों में पैसा जा रहा है।



बाहर के लोग बेवजह बोल रहे हैं। छत्तीसगढ़िया तो कुछ बोलते नहीं। बासी खाकर ठंडे हो गये हैं। और हम सरकारी जमीन चाहे डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल को दें या डॉ. सुनील खेमका को दें। खेती की जमीन जिंदल को दें या मोनेट या डीबी पावर को , क़िसी को बोलने का अधिकार नहीं है।



हम कुल बजट का तीन चौथाई हिस्सा अमर अग्रवाल को दें या राजेश मूनत को जब बाक़ि छत्तीसगढ़िया मंत्रि कुछ नहीं बोल रहे हैं तो क़िसी दूसरे को बोलने का कोई हक नहीं है।



डॉ. रमन सिंह जी का यह कहना एकदम वाजिब है क़ि यह हमारा मामला है हम सुलझा लेंगे। छत्तीसगढ़ियों की मौत पर हल्ला मचाने वाले जवानों की मौत पर कहां रहते हैं। बस्तर का हालात काबू पर है और लोग बेवजह हल्ला मचा रहें हैं और नक्सली के खिलाफ हो रही कार्यवाई में 10-20 हजार छत्तीसगढ़िया आदिवासी मारे भी जाते है तो इसे स्वीकार करना चाहिए क़ि अच्छे कामों मे इस तरह की बातें हो जाती है। गांव वाले शिविर में रहना चाहते हैं और सरकार उन्हें रख रही है मरने के लिए थोड़ी न छोड़ दी जाए।



आखिर इतने बड़े नक्सली आंदोलन से निपटने पैसे चाहिए इसलिए पानी, बांध और सरकारी जमीन कौड़ी के मोल ही सही बेचकर राजस्व बढ़ाया जा रहा है। इसके बाद भी पैसे की जरुरत पड़ी तो गांव-गांव मे शराब बिकवाया जा रहा है। और जरुरत पड़ी तो बिजली और पानी के टैक्स में वृद्धि की गई है। छत्तीसगढ़िया समझदार है और यह सब देखकर भी चुप है लेक़िन बाहर से आने वाले नासमझ लोग जबरदस्ती हल्ला मचा रहे हैं। जबक़ि पैसों की जरुरत पड़ेगी तो हम टैक्स और बढ़ायेंगे। विपक्ष हमारे काम से खुश है इसलिए वे कुछ नहीं बोलते तो बाहरी लोग बेवजह उनके बिक जाने क़ि बात करते हैं। अरे हमारी सरकार जनता की सरकार है और काग्रेसी भी तो जनता है कुछ काम उनका कर दिया पैसों की मदद कर भी दी तो इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए। सरकार चलाना आसान नहीं है ये बाहरी लोग क्या जाने क्योंकि ये कभी सरकार में बैठे नहीं इसलिए बैठने वालों से जलते हैं और अनर्गल प्रलाप करते हैं।



हम क्या कर रहे हैं हमारी बुराई करने का हक क़िसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं है। हमारी प्रशंसा करो तो ठीक है। देखते नहीं हम हमारी बड़ाई करने वाले दूसरे प्रदेशों के अखबार वालों को हम हर माह लाखो करोड़ो के रुपये का विज्ञापन देते हैं भले ही उसकी औकात दो कौड़ी की न हो भले ही वह दो-पांच सौ छपते हो। हम तो बड़ाई करने वाले अखबारों को बुलाकर विज्ञापन देते हैं। लेक़िन बुराई बर्दाश्त नहीं करेंगे हमारा राज है ठीक चल रहा है सब गुड-गाड है।और बाहरी लोग भी गुड-गाड ही देखें अन्यथा छत्तीसगढ़ियों की तरह अपनी जुबान चुप रखें उनका भी दारु और भात का इंतजाम कर लिया जायेगा।

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे के समर्थन में ... भगवान उनकी उम्र और बढाये ...

अन्ना हजारे के समर्थन में ... भगवान उनकी उम्र और बढाये ...
अन्ना हजारे के समर्थन में रायपुर में महिलाएं कूद पड़ी है , विप्र महिलाएं ममता शर्मा और भारती शर्मा के नेतृत्व में आज बुढापारा में धरने पर बैठ गए , मुझसे भी रहा नहीं गया और मई भी वंहा जा पहुंचा , अच्छा लगा क़ि राजधानी में कम से कम महिलाये इतनी सजग है , पुरुषो से आगे निकलती महिलाओं को मेरा नमन , भगवान अन्ना हजारे को लम्बी उम्र दें , और रायपुर के पुरुषों को सदबुध्धि .

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

पता नहीं बेटा






बेटा- आईपीएस कल्लुरी एक बार फिर चर्चा में हैं।



पिताजी- हां बेटा, ये वहीं भाजपाई है जो जोगी शासन कल में कल्लुरी के खिलाफ खूब आरोप लगाये थे।



बेटा- पिताजी, तब सरकार की ऐसे अफसरों को नौकरी में रखने की क्या मजबूरी है।



पिताजी- पता नहीं बेटा।



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बेटा- ताड़मेटला कांड को समझने जा रहे काग्रेसी विधायक वापस लौट आये।



पिताजी- हां बेटा, पुलिस उन्हें एक घंटे के लिए गिरफ्तार कर छोड़ दी।



बेटा- तो क्या कांग्रेसी सच में वहां जाना चाहते थे या यह भी राजनीति थी।



पिताजी- पता नहीं बेटा।

रविवार, 3 अप्रैल 2011

हम तो सरे राह लिये बैठे हैं चिंगारी,जिसका जी चाहे चिरागों को जला ले जाए...





पता नहीं छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का कैसा दौर चल रहा है। अखबार मालिक तो सरकारी विज्ञापनों की लालच में फंसे हैं। पत्रकारिता से उनका कोई सरोकार नहीं रह गया है। दमदार पत्रकारों को अपने मतलब के लिए रखते हैं और युज एंड थ्रो की नीति बना रखे हैं।

विज्ञापन की बाढ़ ने अखबारों की बाढ़ ला दी है।राजधानी में पत्रकार कहलाने वालों कि संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ है और इसके साथ ही वसूली बाजों कि भी भरमार हो गई है। भ्रष्ट अधिकारी व मंत्री बेहिसाब भ्रष्टाचार कर पैसे बांट रहे हैं और वसूली बाजों की निकल पड़ी है।

यही वजह है कि अखबारों की बाढ़ तो आई ही है। इलेक्ट्रानिक मीडिया का आई डी लेकर घुमने वालों की संख्या भी बढ़ गई है।

वसूली बाजों की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि वे अपने मतलब के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

उनकी हिम्मत का इससे बड़ा उदाहरन और क्या होगा कि पिछले दिनों कुछ वसूली बाज वरिष्ठ पत्रकार आसिफ इकबाल के घर पहुंच गये और अपने साथ एक वर्दी वाले को भी ले जाकर तीन लाख रुपये की मांग कर बैठे।

आसिफ इकबाल जैसे वरिष्ठ पत्रकार जिन्होंने अपने जीवन में पत्रकारिता का नया आयाम रचा हो। शासन-प्रशासन में जिनकी तूती बोलती हो जिनके सामने आज भी हमारे जैसे जूनियर पत्रकार बैठेने की हिमाकत न कर सके। ऐसे पत्रकार से वसूली के लिए पहुंचना कई सवाल खड़े करता है।

आसिफ इकबाल पत्रकारिता जगत का ऐसा नाम है जिनके तेवर से 6 साल पहले तक के पत्रकार अच्छी तरह जानते हैं। उनके जैसे पत्रकारों की लेखनी और सोच की वजह से ही छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का पूरा देश में नाम रहा है। अच्छे-अच्छे अखबार मालिक तक उनकी खुशामद करते रहे हैं और इस शहर में पदस्थ अधिकारी हो या नेता,उद्योगपति हो या समाजसेवी सभी उनके कम के कायल रहे हैं।

लेकिन इस घटना ने पत्रकारिता के वर्तमान स्थिति को रेखांकित कर दिया है। और यही हाल रहा तो ईमानदार पत्रकारों को अधिकारी या गलत काम करने वाले धमकाने लगेंगे और भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षन में वसूली बाज मजा करते रहेंगे।



और अंत में ...

राजधानी में पत्रकारों की बढ़ती मांग के बावजूद नेशनल लुक के बंद हो जाने के बाद भी कुछ पत्रकार काम पर नहीं लग पा रहे हैं। वजह को लेकर चर्चा सुननी हो तो ‘ प्रेस क्लब अच्छा स्थान है।