शुक्रवार, 8 जून 2012

भू अधिग्रहण...


विकास की ओर अग्रसर छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेती की जमीनों को लेकर लोगों का गुस्सा फूटने लगा है। नई राजधानी क्षेत्र के किसानों का गुस्सा चरम पर है और सरकार की ठोस नीति के अभाव में किसानों के सामने मरने-मारने की स्थिति निर्मित हो गई है। नई राजधानी के निर्माण को लेकर जिस तरह से भू अधिग्रहण करने में सरकार ने पक्षपातपूर्ण नीति अपनाई है उससे किसान नाराज है।
रमन राज में खेती की जमीन की बर्बादी पर अब लोग खुलकर बोलने लगे हैं कृषि मंत्री चंद्र्रशेखर साहू ने पांच-छाह माह पहले ही कह दिया था कि अब खेती की जमीनों का अधिग्रहण को लेकर कड़े कानून बनाये जायेंगे। वैसे तो पूरे देश में खेती की जमीनों की बरबादी को लेकर सवाल उठने लगे है। भू अधिग्रहण कानून बनाने की मांग हो रही है और इसे लेकर केन्द्र सरकार भी नये कानून ला रही है।
सवाल यह है कि आखिर विकास कैसे और कहां होना चाहिए? हमने छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन नई राजधानी को लेकर पहले ही कह दिया है कि इसकी जरूरत क्या है? राज्य निर्माण की मांग के दौरान पेड़ के नीचे विधानसभा लगाने की बात कहने वाले नेता अब नई राजधानी के नाम पर करोड़ों-अरबों फूंके जाने पर खामोश है। किसानों के सामने  घर-बार छोडऩे की पीड़ा को कोई समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में आज भी गांवो में पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा ठीक से नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर है और दूसरी तरफ नई राजधानी के नाम पर अरबों रूपयें खर्च किये जा रहे है। नई राजधानी की भव्यता के किस्से गढ़े जा रहे है और लोगों के सामने जीवन जीने के लाले पड़े है।
विकास होनी चाहिए लेकिन क्या इसके लिए खेती की जमीने बरबाद करनी जरूरी है? क्या जनप्रतिनिधि व अफसरों के लिए एयर कंडीशन व भव्य बंगले पर ही करोड़ों खर्च होने चाहिए।
नई राजधानी के नाम पर चल रहे तमाशे से किसानों में रोष है और इसके लिए सरकार को पक्षपात पूर्ण रवैैया छोड़कर नये सिरे से नीति बनाना चाहिए अन्यथा यह आक्रोश सरकार के लिए मुसिबत बन सकता है।