रविवार, 3 जून 2012

ईनाम का फंडा...


ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जिसके लिए रमन राज को पुरस्कार नहीं मिला है। सत्ता में आते ही मिल रहे पुरस्कार की झड़ी थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और लोग हैरान है कि ऐसा क्या हो रहा है।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में असंतुलित विकास और भ्रष्टाचार ने आम आदमी का जीवन कठिन कर दिया है। राजधानी  में ही शराब की नदिया बह रही है। शिक्षा के बाजारूपन ने पालक को ग्राहक बना दिया है। खेती की जमीने बरबाद हो रही है। केन्द्र्रीय योजनाओं से मिल रहे रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। उद्योगपति के आगे सरकार नतमस्तक है। अपराधिक गतिविधियों में सौ फीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। नक्सली घटना ही नहीं नक्सली क्षेत्रों का लगातार विस्तार हो रहा है। कलेक्टर का अपहरण हो रहा है और पुलिस कप्तान की संदिग्ध हत्या हो रही है। पर्यावरण का कोई माई बाप नहीं है और कोयला माफिया, लोहा माफिया, खनन माफिया, भू माफिया, शराब माफियाओं के आगे प्रशासन की बोलती बंद है। प्रदेश के गृहमंत्री एसपी को निकम्मा कलेक्टर को दलाल और थाने को बिकाऊ कहते घूम रहे है। भाजपा के सांसद खुले आम सरकार के क्रियाकलापो पर उंगली उठा रहे है। प्रदेश के मुखिया पर कोयले की कालिख पूति हो और रातों रात करोड़पति बनते जनप्रतिनिधियों के बीच आम लोगों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमरा चुकी है। निजी अस्पताल स्लाटर हाउस और डॉक्टर यमराज के एजेंट बनते जा रहे है और सरकार को फिर भी ईनाम मिल रहा है। क्या ईनाम के लिए भी सेटिंग होती है या आंकड़े बाजी के मक्कडज़ाल ही ईनाम का हकदार होता है। यह सवाल आज इस लिए उठ रहा है क्योंकि छत्तीसगढ़ के विकास ग्रोथ को लेकर मुखिया खुश है लेकिन आम आदमी...!
छत्तीसगढ़ में चल रहे इस खेल को न कोई समझ  पा रहा है और न ही किसी के पास समझाने के लिए ही कुछ बचा है। जिस विकास की बात पर नम्बर बढ़ाये जाते हैं वह विकास कहां है। गांव-गांव में शिक्षा स्वास्थ्य और पानी के अभाव में लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ में तो मानव तस्करी तक बड़े पैमाने पर हो रही है इसके बाद भी ईनाम की गारंटी है तो कहीं न कहीं  मामला गड़बड़ नजर आता है।