बुधवार, 26 मार्च 2014

कर्णधारों की कवायद


न नीति न नैतिकता, भाड़ में जाए जनता
देश की सत्ता संभालने की बिसात बिछ चुकी है और मोहरे भी बिठाये जाने लगे हैं। सत्ता के लिए दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा अपने अपने सहयोगियों के साथ आमने सामने है। पिछले दो दशक से जनता ने किसी एक दल को बहुमत के आकड़े से दूर रखा है तो इसकी वजह इन दिनों प्रमुख राजनैतिक दलों की सत्ता की भूख है जिसे जनता अच्छी तरह जान चुकी है। और इस बार भी जिस तरह से सत्ता के लिए अनैतिक गठबंधन किये जा रहे हैं उसके बाद किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिल जाए इसकी सभावना कम ही है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में भारत की सत्ता के लिए 9 चरणों में हो रहे चुनाव में सत्ता हासिल करने की कवायद में लगे दलों ने जिस तरह से राजनैतिक सुचिता और अपने दलों के सिद्धांतो को तिलाजंति दी है वह आश्चर्यजनक है।
अपने दम पर सरकार बनाने से दूर होते कांग्रेस में तो अफरा तफरी का माहौल है। उसके कई बड़े नेता चुनाव लडऩे से मना कर रहे हैं या फिर जिधर बम उधर हम की तर्ज पर दूसरे दलों का सहारा लेने लगे हैं। इसके बावजदू राहुल गांधी को पिछले चुनाव से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद हैं तो इसकी वजह कांग्रेस विरोधियों की वह करतूत है जो हर हाल में सत्ता हासिल करने अनैतिक गठबंधन या कांग्रेस से आने वालों को टिकिट देना या यादिरप्पा जैसों को गले लगाना है।
चुनाव के घोषणा के पहले जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ माहौल था वह माहौल चुनाव आते-आते खतम होने लगा तो इसकी प्रमुख वजह भी भारतीय जनता पार्टी का मुद्दे की बजाय नरेन्द्र मोदी को प्रमोट करना है।
दरअसल भाजपा के सामने सबसे बड़ी दुविधा यह है कि वह आज भी अपने दम कर कांग्रेस को परास्त करने की सोच ही नहीं पैदा कर पाई हैं इससे पहले भी वह कांग्रेस को सत्ता से दूर करने की लड़ाई में गठबंधन का सहारा लेते रही है और इस खेल में न केवल उसने अपनी पार्टी के सिद्धांतो को तिलांजलि दी बल्कि राजनैतिक सुचिता को भी दरकिनार किया।
पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी की हवा तो उस दिन ही हवा हो गई जबब उसने विहार में राम विलास पासवान से समझौते किये और यदिरप्पा को पार्टी से टिकिट दी। यही नहीं बीजेपी के बड़े नेताओं ने जिस तरह से सुरक्षित सीट की तलाश शुरू की तभी से भाजपा की जीत को लेकर संशय के बादल न केवल मंडराने लगे बल्कि मोदी की हवा पर भी सवाल उठने लगे।
राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार भी किसी एक दल के जादुई आकड़े छुने की संभावना दूर दूर तक नहीं दिख रहा है। और यही वजह है कि भाजपा की बौखलाहा खुलकर सामने आने लगी है। और वह भ्रष्टाचार और महंगाई को मुद्दा बनाने की बजाय नरेन्द्र मोदी के नाम का सहारा ले रही है। हर हर मोदी का नारा और दिल्ली भाजपाध्यक्ष हर्षवर्धन का भगवान भी नहीं रोक सकने वाले बयान को इसी बौखलाहट का परिणाम भी माना जा रहा है।
दूसरी तरह जनता भी यह समझ नहीं पा रही है कि आखिर कांग्रेस और भाजपा किस मामले में अलग है। भ्रष्टाचार की फेहरिश्त दोनों ही दलों में कम नहीं है तो अपराधियों को टिकिट देने के मामले में भी दोनों दलो की एक ही तरह की राम है। दोनों ही दलो के सहयोगियों के कारनामें भी एक ही तरह के है तो फिर सत्ता की दौड़ में अफरातफरी दोनों ही दलों में एक समान है। इधर गांधी परिवार पर वंशवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा में भी वंशवाद का जो खेल इस चुनाव में हुआ है वह भी दोनो को एक कर रही है। यही वजह है कि अनैतिक गठबंधन से सत्ता हासिल करन के खेल ने दोनों ही पार्टियों से जनात का मोह भंग किया है और नई नवेली आम आदमी पार्टी में उम्मीद दिखने लगी है।
छ: महीने की पार्टी आम आदमी पार्टी को जिस तरह से बड़े शहरों में समर्थन मिल रहा है और जिस तरह से कस्बों तक लोग उनसे जुडऩे लगे है वह दोनों ही दलों के लिए हैरान कर देने वाली है और इसे नजर अंदाज करना भी भारी पड़ सकता है। क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में वोट काहु पार्टी की सोच हवा हो चुकी है।
क्या कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता आपस में मिले हुए है या कार्पोरेट घरानों के कारनामों पर दोनों ही दल चुप हैं। यह सवाल उबकर आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से कांगे्रस और भाजपा के दिग्गजों को चुनौती देने का फार्मूला बनाया है क्या यह नई राजनीति जनता के दुखते रग को छु पायेगी।
ऐसे कितने ही सवाल है जो जनता के मन में है और कहा जाता है कि यही सवाल पिछले हो दशकों से किसी एक दल को सत्ता के जादुई आंकड़े से दूर रखा है।

सोमवार, 24 मार्च 2014

भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने से परहेज?


लोकसभा चुनाव को लेकर राजनैतिक दलों की सत्ता की भूख थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। जिसे देखो वहीं सत्ता के लिए अनैतिक गठबंधन कर रहा है या फिर अनैतिक कार्य कर रहा है। सारे सिद्धांतो को तिलाजंलि देकर जिस तरह से चुनाव जीतने की कोशिश हो रही है वह न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि दुखद भी हैं।
पिछले दस सालों से सत्ता में बैठी कांग्रेस को निशाना बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी भी भ्रष्टाचार और महंगाई को मुद्दा बनाने की बजाय जिस तरह से नरेन्द्र मोदी को सामने रखकर चुनावी वैतरणी वार करना चाहती हैं वह भाजपा के राजनैतिक सुचिता पर तो सवाल खड़ा करते ही है कथनी और करनी के अंतर को भी स्पष्ट कर देने वाला है।
सत्ता के लिए कुछ भी करेगा मेरी मर्जी के आगे आम जनमानस हैरान है। अपराध से लेकर भ्रष्टाचार करने वालों को टिकिट देने वाले दलों से सत्ता प्राप्ति के बाद यह उम्मीद बेमानी है कि वे ऐसे लोगों के दबाव में आये बगैर जनहित में कार्य कर पायेंगे।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंंत्र के राजनेताओं की सत्ता भूख के आगे जनता की बेबसी स्पष्ट है कि वह आखिर किस दल पर भरोसा करे। जो लोग कांग्रेस से उम्मीद छोड़ चुके है उनके सामने भाजपा को लेकर भी वहीं सवाल है। आखिर दोनों दल किस मामले में अलग है। कुर्सी की दौड़ में जिस बम उधर हम की अफरा तरफी स्पष्ट है और भ्रष्टाचार जैसा भयावह मुद््दा जाति धर्म के आगे दम तोड़ता दिख रहा है।
यूपीए के खिलाफ चुनाव पूर्व माहौल को भुनाने की बजाय भाजपा ने जिस तरह से दूसरे दलों से आने वालों को टिकिट दी है और मोदी के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करने की कवायद की है उससे लोगों का भरोसा भाजपा से भी डिगा है कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
सिर्फ मोदी के भरोसे दलबदल करने वाले या आपराधिक छवि वालों को टिकिट देकर जीत का सपना कहीं एक बार फिर भाजपा को सत्ता से दूर ही रखे तो भाजपाईयों को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
इस मामले में अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी या ममता बेनर्जी और बिजू जनता दल ही कुछ अलग राजनैतिक संदेश तो दे रहे हैं लेकिन यह कहना कठिन है कि इनकी स्वीकार्यता कितनी है।
यही वजह हैं कि पिछले दो दशक यानी 1984 के बाद से किसी भी दल ने 272 का जादुई आकंड़ा नहीं छु सका है। दलबदल करने वालों की हार और अपराधिक छवि वालों को टिकिट देने का दुस्परिणाम को नजर अंदाज करने की भूल ने ही जनता को मजबूर किया है कि वह किसी एक दल पर भरोसा न करे।
भले ही ऐसे नेता चुनाव जीत रहे हो पर सच तो यह है कि इस तरह के लोगों को टिकिट देने का दुष्परिणाम आखिल भारतीय स्तर पर पड़ता है जिसे नजरअंदाज किया जाता रहा है।
बकौल अरविन्द केजरीवाल भाजपा और कांग्रेस ने मिल बैठकर सत्ता हासिल कर रहे  हैं। ये राजनैतिक दलाली है जिसके खिलाफ हर व्यक्ति को आगे आना चाहिए तभी लोकतंत्र स्थापित होगा। क्या यह स्पष्ट नहीं दिखता इससे परे कांग्रेस और भाजपा की राजनीति है? यह सवाल केजरीवाल ने भले उठाये हो पर मोदी बनाम राहुल की लड़ाई से असल मुद्दो गौण करने की कोशिश इस सवाल पर उत्तर है।

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

ब्लेकमेलर युवती के कई नामचीन लोगों से अतंरंग संबंध...


वन विभाग के रेंजर को ब्लेकमेल से हुआ खुलासा
कई नामचीन लोगों ने करोड़ो का बीमा करवाया
दर्जनों अश्लील क्लीप व वीडियों पाये गये
कई हो चुके ब्लेकमेल का शिकार
बदनामी के डर से नहीं आ रहे सामने
पीएचक्यू से मंत्रालय तक के अफसर शामिल
वन विभाग के रेंजर उदय सिंह ठाकुर को ब्लेकमेल करने वाली युवती भले ही गिरफ्तार होकर जेल का हवा खा रही है लेकिन उसके द्वारा प्रदेश के कई लोगों को भी ब्लेकमेल करने की जानकारी पुलिस को मिलने लगी है लेकिन ये अधिकारी अपनी प्रतिष्ठा बचाने ब्लेकमेलर युवती के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने से बच रहे हैं। दूसरी तरफ ुयुवती द्वारा अपने रूपजाल में फांस कर करोड़ों रूपये का बीमा करवाये जाने का सनसनीखेज मामला भी खुलकर सामने आया है। पुलिस इसे भी आधार मानकर जांच कर रही है। छत्तीसगढ़ की राजधानी में चल रहे हाईप्रोफाईल खेल का यह एक ऐसा किस्सा है जो साबित करता है कि किस तरह से यहां हाईप्रोफाईल सेक्स रैकेट चल रहे हैं। सूत्रों की माने तो ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर ठेका लेने तक के खेल में यहां युवतियां इस्तेमाल हो रही है और यह सब इतने गुपचुप तरीके से चल रहा है कि कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। सूत्रों का कहना है कि वन विभाग के रेंजर को ब्लेकमेल करने का मामला भी अति सर्वत्र वर्जत की तर्ज पर ही उजागर हुआ वरना युवती द्वारा ब्लेकमेल करने का खेल तो लंबे समय से चल रहा था। पुलिस सूत्रों के मुताबिक युवती के घर और बैंक लाकर से बड़ी मात्रा में न केवल अश्लील क्लीपिंग बरामद हुई है बल्कि इन क्लीपिंग में अलग अलग चेहरे भी दिखाई दे रहे हैं। पुलिस ने इस आधार पर दावा किया है कि कई नामचीन लोग भी ब्लेकमेल का शिकार हो सकते हैं।
दूसरी ओर पुलिस का यह भी दावा है कि युवती ने कई नामचीन लोगों को करोड़ों रूपये का बीमा पालिसी बेची है और इनमें से कई पॉलिसी ब्लेकमेल करके बेची गई हो सकती है। पुलिस इस संभावना के आधार पर बीमा कंपनी से डिटेल मांग रही है। इधर सूत्रों का दावा है कि युवती द्वारा ब्लेकमेल के शिकार लोगों की संख्या दर्जनभर से अधिक है लेकिन वे लोग सामने आने से कतरा रहे हैं। ऐसे लोगों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता है। जबकि चर्चा इस बात की भी है कि युवती के पीएचक्यू से लेकर मंत्रालय में पदस्थ कई अफसरों से संबंध रहे हैं और कई बड़े ठेके और तबादले में इस युवती का अहम रोल रहा है।
सूत्रों का तो यहं तक दावा है कि शहर के कई नामचीन व्यापारिक संस्थान के लोगों को भी युवती ने बीमा पॉलिसी बेची है और इनमें से कुछ पॉलिसी जबरिया दिलाई गई है।
बहरहाल छत्तीसगढ़ की राजधानी में चल रहे इस खेल को लेकर कई तरह की चर्च है और कहा जा रहा है कि ठेके हासिल करने या बड़ा काम कराने के एवज में राजधानी में यह खेल लंबे समय से चल रहा है।

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

कर्णधारों के मायने और महापर्व की आगाज...


लोकतंत्र कर सबसे बड़े महापर्व का आगाज हो गया। 16 मई तक राजनैतिक दलों की सांसे सांसत में रहेगी। 81.4 करोड़ मतदाता अपने 543 कर्णधारों को चुनेंगे।  जो जीतने के पहले अपने पक्ष में मतदान कराने घर घर घुमेंगे।
चुनाव आयोग के घोषणा के साथ ही शुरु हो रही इस खंदक की लड़ाई पर जीत का सेहरा बांधने की होड़ मची है। और हर बार की तरह इस बार भी जनता ने मोटे तौर पर तय कर लिया है कि सरकार किसकी बननी है। कांग्रेस जहां राहुल गांधी के नेतृत्व में हम जोड़ते हैं वे तोड़ते हैं के नाटों के साथ मैदान में है तो भाजपा पीएमएन वेटिंग नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में देश की आखंडता और महंगाई का मुद्दा बनाने में लगे हैं। पर सच तो यह है कि वर्तमान परिस्थिति में दोनों ही दलों के लिए स्वयं के बूते न तो सरकार बनाने के लिए आवश्यक जादुई आंकड़ा 272 को छुने की क्षमता है और न ही इन्हें छू पाने का विश्वास है।
कल तक कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लोभ में किसी भी पार्टी बाहर करने के लोभ में किसी भी पार्टी से गठबंधन करने वाली भाजपा आज भी गठबंधन के रास्ते ही सत्ता तक पहुंचने इस कदर आतुर है कि उसके लिए रामविलास पासवान हो या कोई अन्य दल अछुत नहीं है। उसे पार्टी गुर्राने वाले येदियप्पा से लेकर कल्याण सिंह और शिवसेना से लेकर आरपीआई सभी का समर्थन चाहिए।
पिछले दो दशक से जारी गठबंधन की राजनीति से देश को होने वाले नुकसान की चिंता न तो कांग्रेस को हैं और न ही भाजपा को ही रह गई है। वाजपेयी सरकार के समय में बात हो या यूपीए की हर बार अपनी अक्षमता पर गठबंधन की राजनीति की मजबूरी बताने वाले दल इस बार भी इसी राह पर है तब भला जनता क्या करें।
तीसरे मोर्च ने भी एक गठबंधन तैयार किया है लेकिन इनमें भी वहीं दल है जो देर सबरे कांग्रेस या भाजपा का हिस्सा रह चुके हैं और चुनाव परिणाम के बाद जिधर बम उधर हम के फार्मूले पर भरोसा करते हैं।
इस बार चुनाव रोमांचक और कटु होने की इसलिए भी अधिक संभावना है क्योंकि गठबंधन की राजनीति से परे आन्दोलन की राह चलते दिल्ली की सत्ता हासिल करने वाले आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से राजनीति शुरु की है उससे परम्परागत ढंग से जनता को बेवकुफ बनाने वाले राजनैतिक दलों की नींद उड़ गई है। हालांकि आम आदमी पार्टी का असर शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है लेकिन जिस तरह से आप के नेताओं ने कांग्रेस और भाजपा के बीच दलाली का मुद्दा उठाकर भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त जनता के बीच एक नई राजनीति की शुरूआत की है उससे भाजपा की राह कठिन होने लगी है।
कार्पोरेट घरानों के साथ कांग्रेसी और भाजपाई ताल्लुकात को मुद्दा बनाते हुए रातों रात देश में लोकप्रिय होने वाले अरविन्द केजरीवाल की पार्टी भी अपने बूते सरकार नहीं बना सकती लेकिन उसकी जीत तो तभी तय मानी जा रही थी जब उनकी पार्टी की वजह से कई राजनैतिक पार्टियों के मंत्रियों के काफिले की गाडिय़ा कस हो गई। सुरक्षा बल कम हो गये और निराश हो चुके लोगों की आंखो में उम्मीद दिखने लगी।
अब तक सिर्फ सत्ता के लिए जोड़-तोड़ और जीतने वाले प्रत्याशी को ही टिकिट का मापदंड बताने वाले दलों के लिए आप की चुनौती कितनी होगी यह तो पता नहीं लेकिन यह महापर्व अब राहुल बनाम मोदी था यूपीए बनाम एनडीए या कांग्रेस बनाम भाजपा नहीं रह गया है अब इसमें आम आमदी की भागीदारी भी जुड़ गई है जो कर्णधारों के मायने क्या हो यह लकीर खीचीं जा चुकी है।

गुरुवार, 13 मार्च 2014

कौन जिम्मेदार?


सत्ता = अनैतिक गठबंधन+ धन बल + बाहुबल + झूठे वादे+ जाति-धर्म का दुरूपयोग + बेहिसाब चुनावी खर्च + गलत आरोप-प्रत्यारोप + शराब खोरी + मुफ्त खोरी+ वोट खरीद
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव का बिगुल बज गया है। सत्ता हासिल करने की लड़ाई का आगाज जिस तरह से पिछले दो-तीन दशकों से चल रहा है वह न केवल शर्मनाक स्थिति में पहुंच गया है बल्कि कौन किसके साथ है कहना मुश्किल है। हर हाल में सत्ता के लिए सिद्यांतो से समझौते के खेल से न गांधीवादी बचे है न हितुत्व वादी ऐसे में चुनाव आयोग के साथ-साथ आम जनता की जिम्मेदारी भी बढ़ी है। कार्पोरेट जगत की बढ़ती ताकत के बीच कमर तोड़ती महंगाई और बढ़ते भ्रष्टाचार से आज देश त्रस्त है तब इसके लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए।
लोकतंत्र का चुनाव 9 चरणों हो रहा है। देश की जनता इन 9 चरणों में अपना प्रतिनिधि चुनेगी। सिद्दांतत: ये प्रतिनिधि ही हमारे हीतों को देखेंगे पर क्याा यह सचमुच हो रहा है। राजनैतिक दलों का सिद्यांत हर हाल में सत्ता तकर पहुंचना रह गया है। प्रत्याशी स्वयं चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते कहीं जाति-धर्म का सहारा ले रहे हैं तो झूठा शपथ पत्र दे रहे हैं धन की बारिश, शराब की नदिया और मुर्गाभात की दावतें उड़ाई जा रही है। राजनैतिक दल जीतने वाले प्रत्याशी के नाम पर बाहुबली और भ्रष्ट लोगों को टिकिट दे रही है जिसका परिणाम सबके सामने हैं। संसद का नजारा शर्मनाक हो चुका है हमारे प्रतिनिधि दुर्योधन और दुशासन की तरह लोकतंत्र का चीरहरण कर रहे हैं और अच्छे लोग भीष्म की भूमिका में तमाशा देख रहे हैं। सत्ता की चाह में डुबे ये कथित लोग पार्टी फोरम में भी इसका विरोध नहीं कर रहे हैं और आम आदमी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है।
क्या यह सही वक्त नहीं है कि सारे अच्छे लोग जाति धर्म से परे उठ कर अच्छे लोगों को ही चुनाव जीताये चाहे वह किसी भी दल का हो? तभी हम लोकतंत्र को बचा पायेंगे। चुनाव सुधार की प्रक्रिया में तेजी के अलावा आम नागरिक अपनी भूमिका जिम्मेदारी से निभाये?
आज जब सभी दलों का ध्येय सिर्फ सत्ता पाना हो। सत्ता के लिए सिद्यांतो को भूल क्षेत्रिय दलो से हाथ मिला रहे हो न कांग्रेस ही  कांग्रेस रह गई है और न भाजपा ही भाजपा है तब भला इनके सिद्धांतो पर वोट डालने का औचित्य क्या रह गया है।
आज कांग्रेस के साथ कल भाजपा के साथ रह कर जिधर बम उधर हम के सिद्धांत पर चलने वालों की कमी नहीं है और न ही सत्ता के लिए राष्ट्रीय दलों को भी किसी से भी हाथ मिलाने से गुरेज ही रह गया है। ऐसे में आम जनता के सामने स्वत: ही विकल्प खुल गया है कि वह सिंद्धातों की राजनीति की दुहाई देने वाले दलों की बजाय अच्छे प्रतिनिधि का चयन करें।
जनता की जिम्मेदारी तब और भी बढ़ जाती है जब उनके राजनैतिक दल ऐसे लोगों को टिकिट देने से गुरेज नहीं करते जो लोकतंत्र के दुश्मन है और जिनका अपराध से नाता है।
संसद के हर सत्र में तमाशा बन रहे जनप्रतिनिधियों की अपने स्वार्थ के लिए एका भी आश्चर्यजनक है पार्टी नेतृत्व की अक्षमता की वजह से गलत लोग प्रभावशील होने लगे है। नेतृत्वकर्ता कितना भी काबिल हो यदि उसमें कड़ी कार्रवाई करने की क्षमता न हो तो अनैतिक काम करने वालों का ही हौसला बढ़ता है। पिछले दो तीन दशकों में यह बात खुलकर सामने आ चुका है कि ईमानदारी का मतलब चुप्पी नहीं है। लोग तो आज भी कहते हैं कि मनमोहन सिंह अच्छे व्यक्ति है पर मंत्रीमंडल की करतूत पर खामोशी का इस अच्छाई से क्या मतलब है।
लोकतंत्र में सभी की जिम्मेदारी तय है लेकिन हमने देख लिया है कि किसी भी तबके ने अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से नहीं निभाई है अब जनता की बारी है कि वह सिद्धांत विहिन राजनैतिक दलों के वोट कमाऊ राजनीति का हिस्सा बनने की बजाय झूठे घोषणापत्र जारी कर सिद्धांत बघारने वाले दलों की बजाय अच्छे जनप्रतिनिधि को चुने भले ही उसकी सरकार न बने पर लोकतंत्र को बचाने का हथियार जरूर बनेगा।

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

सत्ता ही ध्येय...


देश भर की तमाम राजनैतिक पार्टियां इन दिनों व्यस्त है। एक तरफ वे जनता पर विश्वास की कवायद में लगी है तो दूसरी ओर घोड़ा मंडी की तर्ज पर मोर्चा बंदी कर रही हैं। केन्द्र में बैठी यूपीए के खिलाफ भाजपा ने जिस अंदाज में हमला किया है और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पीएम इन वेटिंग के रूप में प्रोजेक्ट किया है इसका फायदा निश्चित रूप से भाजपा को मिला है लेकिन कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में आज भी वह दम नहीं हैं कि वह अकेले अपने बूते सरकार बना लें। यही वजह है कि वह गठबंधन की राजनीति करते हुए सत्ता हासिल करना चाहती है। इस खेल में वह इस कदर लग गई है कि उसे दूसरी पार्टियों के करतूतों पर भी ध्यान नहीं है सिर्फ सत्ता हासिल करने किसी भी दल से तालमेल और किसी को भी टिकिट देने की परम्परा से राजनैतिक दल भले ही अपने मकसद में कामयाब हो जाए पर जनता का इसमें हित नहीं होने वाला है।
पिछले दो दशकों की राजनीति ने साफ कर दिया है कि जीत सकने वालों को टिकिट और सत्ता के जादुई आंकड़े तक पहुंचाने वाले दलों से तालमेल के मायने क्या है। कैसे छोटे-छोटे दलों ने अपने को तुर्रम खां माने जाने वाली पार्टियों को घुटने तक झुका दिया है।
इस बार भाजपा और कांग्रेस ने इसी गठबंधन की राजनीति के सहारे सत्ता हासिल करने भ्रष्ट-बेईमानों को गले लगाना शुरु कर दिया है। येदिरप्पा की वापसी या लालू से घालमेल पासवान से दोस्ती से लेकर मुसलमानों से माफी की राजनीति का मकसद हर हाल में सत्ता हासिल करना नहीं तो और क्या हैं।
कांग्रेस और भाजपा में अब ज्यादा फर्क नहीं रह गया है ऐसे में तीसरे मोर्चे की कवायद केवल चुनाव तक सिमट कर रह गई है। अब तक नए ढंग से राजनीति में आए अरविन्द केजरीवाल ने किसी तरह के गठबंधन से अपने को दूर रखा है। इस नये नवेले पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में अप्रत्याशित परिणाम लाकर एक नई राजनीति की शुरुआत जरूर की है लेकिन मुद्दों को पूरा करने की जल्दबाजी से अपरिपक्वता के चलते अराजकता की हालात लाने का पैतरा कहां और कैसे सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचेगा कहना कठिन है। दिल्ली की तर्ज पर देश भर में चुनाव लडऩे की घोषणा में कई दलों की नींद जरूर उड़ गई है।
यही वजह है कि राजनीति की नई शुरुआत होने लगी थी परन्तु लोकसभा चुनाव आते आते सभी पार्टियां घुड़ दौड़ में शामिल दिखाई पड़ती है ऐसे में केजरीवाल का अकेले चुनाव लडऩे का फैसला और गठबंधन की राजनीति को दलाली साबित करने की कोशिश कैसे सफल होगी अभी से कहना कठिन है।
तमाम सिंद्धातों और मुद्दों से भटक चुकी राजनैतिक पार्टियों के लिए आम आदमी पार्टी की जीत एक सबक होने लगा था लेकिन सत्ता की दौड़ से निकलते धुल ने आंखों के सामने जो धुंध उत्पन्न किया है वह अनैतिक और नैतिक गठबंधन के बीच की लकीर को मिटा दिया है कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
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गुरुवार, 6 मार्च 2014

विश्वविद्यालय फकत नाम के खुल रहे...


कई भवन विहिन तो उधार की फैकल्टी, स्टॉफ की भी कमी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में हर साल खुल रहे विश्वविद्यालय में बुनियादी सुविधाओं और फैकल्टी का अभाव है। सच तो यह है कि राज्य बनने के बाद सरकार ने विश्वविद्यालय खोलने की घोषनाएं तो की लेकिन इसके बाद वह इन्हें भूल गई। बगैर संसाधन व सुविधाओं के विश्वविद्यालय कैसे संचालित हो रहीहै यह आसानी से समझा जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में राज्य गठन के पहले चार विश्वविद्यालय थे जो अब बढ़कर 14 हो गये हैं। राज्य गठन के पहले से स्थापित विश्वविद्यालयों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। स्टॉफ की कमी और उधार की फैकल्टी से चल रहे विश्वविद्यालय में संसाधन व सुविधाएं बढ़ाने की बजाय जिस पैमाने पर विश्वविद्यालय बनाए गए उस पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
सूत्रों की माने तो विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर छत्तीसगढ़ चर्चा में है यहां विश्वविद्यालयों की खस्ता हाल से बदनामी अलग हो रही है। प्रदेश में हर साल विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा का सच यह है कि कई विश्वविद्यालयों के पास अपने खुद का भवन तक नहीं है। तो कई विश्वविद्यालय स्टॉफ की कमी से बेहाल है। अधिकतर विश्वविद्यालय के पास गिनी चुनी फैकल्टी वह भी उधार की है इनकी हालत सुधारने की बजाय सरकार का रवैया यह है कि वह नये-नये विश्वविद्यालय खोलते चले जा रही है। हालत यह है कि कई विश्वविद्यालय तो उधार या किराये के चंद कमरे वाले भवनों पर चल रहा है।
सूत्रों की माने तो कई विश्वविद्यालयों में स्टॉफ की इतनी कमी है कि 80 से 85 फीसदी पद रिक्त है न शिक्षकों का पता है और न ही लिपिकों का पता है कुछ स्टॉफ जो काम भी कर रहे है वे या तो संविदा के है या प्रतिनियुक्ति से आये हैं।
बताया जाता है कि प्राध्यापकों की कमी को लेकर राज्यपाल द्वारा लगातार नाराजगी जताई जा रही है लेकिन इस पर पहल ही नहंीं हो रही है। शिक्षा के स्तर को लेकर पहले ही बदनाम छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों की इस हाल की चर्चा बाहर के राज्यों तक जा पहुंची है और अब तो डिग्री को लेकर भी गंभीर सवाल उठाये जा रहे हैं।
ज्ञात हो कि सौ से उपर निजी विश्वविद्यालय को लेकर चर्चा में आये छत्तसीसगढ़ में सरकारी विश्वविद्यालयों की जिस पैमाने में घोषणा की गई है वह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है।
सरकारी विश्वविद्यालयों का हाल
राज्य के गठन के पहले
विश्वविद्यालय    वर्तमान स्थिति    स्थापना वर्ष
पं. रविवि रायपुर    अधिकतर पद खाली    1 मई 1964
इंदिरा कला एवं संगीत विवि
गुरु घासीदास विवि बिलासपुर        60 फीसदी पद खाली    16 जून 1983
इंदिरा गांधी कृषि विवि रायपुर    50 फीसदी पद खाली    20 जून 1987
राज्य निर्माण के बाद
हिदायतुल्ला विधि विवि रायपुर    40 फीसदी पद खाली    जून 2003
पं. सुंदरलाल शर्मा मुफ्त विवि बिलासपुर    85 फीसदी पद खाली    29 मार्च 2005
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि रायपुर    50 फीसदी पद खाली    16 अप्रैल 2005
विवेकानंद तकनीकि विवि भिलाई    95 फीसदी पद खाली    16 अप्रैल 2005
बस्तर विवि जगदलपुर    85 फीसदी पद खाली    2 सित. 2008
सरगुजा विवि अंबिकापुर    85 फीसदी पद खाली    4 अक्टू. 2008
आयुष विवि रायपुर    95 फीसदी पद खाली    अक्टू. 2008
बिलासपुर विवि बिलासपुर    95 फीसदी पद खाली    12 फरवरी 2012
कामधेनु विवि दुर्ग        30 फीसदी पद खाली    11 अप्रैल 2012
खेल विश्व विद्यालय    -,,-    -,,-
खैरागढ़    पचास फीसदी पद खाली    14 अक्टू. 1956

सोमवार, 3 मार्च 2014

कोयला बना काल


जीवनदायनी हसदेव नदी राख से पट रही
कोरबा देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में
हर साल मर रहे सैकड़ों लोग, हर साल बर्बाद हो रही खेती
छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में बिजलीघरों ने आफत खड़ा कर दिया है। बिजलीघरों के प्रदूषण से स्थिति बेहद गंभीर होती जा रही है। इसके चलते असामयिक मौत के आंकड़े तो बढ़े ही है अस्थमा, श्वसन रोग और ह्दय रोग के मामलों में असाधारण ईजाफा हुआ है। कोयला भंडार की बदौलत खड़े किये जा रहे ताप बिजलीघरों से निकलने वाली राख से खेती तो बरबाद हो ही रही है यहां रहने वालों पर भी शामत आई है।
कोयला भंडारों के दोहन और इससे स्थापित बिजली घरों को लेकर ग्रीनपीस नामक सर्वे कंपनियों की रिपोर्ट न केवल चौंकाने वाली है बल्कि विकास के नाम पर किये जा रहे अंधानुकरण की कलई खोलने के लिए काफी है। छत्तीसगढ़ का पॉवर हब माने जाने वाले कोरबा ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में किस कीमत पर गौरव हासिल कर रहा है यह कम चौकाने वाला नहीं है। देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में कोरबा का नाम चौथे-पांचवे नम्बर पर आ चुका है। यहां सात पॉवर प्लांट से 6 हजार मेगावाट से अधिक विद्युत उत्पादन होता है और प्रतिदिन यहां से 45 हजार मिट्रीक टन से अधिक राख उत्सर्जित होती है। राख का भंडारण राखड़ बांध में किया जा रहा है जिसकी वजह से इसके आसपास की जमीन तो बंजर हो ही रही है इसके चिमनियों से निकलने वाले धुंए की वजह से वायु प्रदूषण भी चरम पर है। यही नहीं कोरबा की जीवनदायिनी मानी जाने वाली हसदेव बागो नदी भी राख से पटने लगी है। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार ने कोयला उत्पादन के क्षेत्र में अभी तीन दर्जन से अधिक कंपनियों से अनुबंध कर रखे हैं जिनमें उत्पादन होना बाकी है। ग्रीन पीस सहित अन्य सर्वे कंपनियों की रिपोर्ट पर नजर डालें तो ताप बिजली घरों की वजह से आम लोगों सिर्फ गंभीर बीमारियों के शिकार बस नहीं हो रहे हैं बल्कि यह तबाही मौतो के बढ़ते आंकड़े तक जा पहुंचा है। सर्वे के मुताबिक छत्तीसगढ़ के बिजली घरों के कोयले से निकलने वाली राख में अति सूक्ष्म कणों की साईज 4 से 5 माइक्रोन है जिसकी वजह से यह अधिकाधिक क्षेत्र में तेजी से फैलती है। यही नहीं कोयले की राख से पीएस-10 जैसे खतरनाक तत्वों के अलावा सल्फर डाई आक्साईड नाइट्रोजन आक्साईड और पारे की मात्रा भी अधिक रूप से घुली होती है। यही वजह है कि इसके चलते गंभीर बीमारियों के मामले तो बढ़ ही रहे है मौत के आंकड़े भी बढ़े है। सर्वे के अनुमान के मुताबिक बिजलीघरों के कोयले की राख से हर साल दस हजार से अधिक लोग असामयिक मौत मर रहे है जबकि गंभीर बीमारियों के आंकड़े इससे कहीं बहुत अधिक है। हालांकि सरकारी महकमा का दावा है कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के समुचित उपाय किये गए हैं एक भी बिजलीघर बगैर अनापत्ति प्रमाणपत्र के नहीं चलाए जा रहे हैं और उत्सर्जन की सीमा तय है।
बहरहाल ताप बिजलीघरों के प्रदूषण से आम लोगों के लिए काल साबित होते पॉवर प्लाटों को नियंत्रित नहीं किया गया और प्रदूषण रोकने के समुचित इंतजाम नहीं किये गए तो आने वाले दिनों में यह समस्या गंभीर बन जायेगी।

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

राजनेताओं के खेल प्रेम पर राहुल का प्रहार...


खेलों की दुर्दशा को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। खेल संघो पर राजनेताओं की बढ़ती दखलदांजी से लोग नाराज भी है लेकिन ठुकुरसुहाती के फेर में खिलाड़ी भी इसका खुलकर विरोध नहीं कर पाते।
वैसे तो राजनीति ने हर क्षेत्र को दुर्दशा तक पहुंचा दिया है। राजनेताओं के लोभ ने खेलों को भी नहीं छोड़ा। छत्तीसगढ़ में भी प्रत्येक खेल संघो पर नेताओं का कब्जा है। हम यहां यह नहीं कह रहे हैं कि सभी राजनीतिज्ञ एक ही रास्ते से चलने वाले है। यहां भी कई खेल संघ ऐसे है और कई नेता ऐसे है जो पूरी ईमानदारी से खेलों को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन बहुत से नेता अपनी राजनैतिक फायदे के लिए खेल संघों का दुरूपयोग कर रहे हैं। खेलों के गिरते स्तर को लेकर हमेशा से ही चिंता की जाती है और राजनीति के बढ़ते हस्ताक्षेप पर विवाद होता रहा है।
राज्य बनने के बाद ओलंपिक और क्रिकेट एसोसिएसन का विवाद किसी से छिपा नहीं है। जिसकी सत्ता उसका खेल संघो पर कब्जा नया नहीं है। कभी छत्तीसगढ़ के प्राय: सभी खेल संघो पर कांग्रेसियों का कब्जा था और अब एक दो खेल संघों को छोड़ सभी पर भाजपाई बैठे हुए हैं।
खेलों को बढ़ावा देने के नाम पर अपनी राजनैतिक दुकान चलाने के अलावा आयोजनों में भ्रष्टाचार और खिलाडिय़ों के चयन में पक्षपात की खबरें लगातार आते रही है। अब तो मामला दैहिक शोषण तक जा पहुंच हैंं।
खेलों में राजनीति और राजनेताओं के हस्तक्षेप टोकने की मागं हर व्यक्ति की है लेकिन इसकी परवाह कभी किसी राजनैतिक दलों को नहीं रही। सावर्जनिक रूप से खेलों में राजनीति का विरोध करने वाले लोग भी मौका पाते ही खेल संघो में बैठने से गुरेज नहीं करते। ऐसे में राहुल गांधी का खेल से राजनेताओं को दूर रखने की सोच को एक  अच्छी खबर के रूप में देखा जा रहा है। यह पहली बार हुआ है जब खेल को लेकर किसी पार्टी के बड़े नेता ने ऐसी बात कही ंहै।
अपनी तरह की अलग सोच रखकर नई ईबादत की कोशिश में जुटे राहुल की यह सोच यदि उनकी पार्टी भी फरमान जारी कर पूरी करे तभी इसका मतलब है अन्यथा यह राजनैतिक ढकोसला ही माना जायेगा।
युवाओं को अधिकाधिक अधिकार देकर देश की दिशा बदलने की सोच को लेकर आगे बढ़ रहे राहुल गांधी के इस सोच पर कांग्रेस ही खरा उतर जाने तो खेल का भविष्य अलग होगा।
छत्तीसगढ़ में खेल संघो पर जिस तरह से राजनेताओं की माफियागिरी ने कब्जा कर रखा है वह किसी से छिपा नहीं है। नेताओं के अलावा जमीन, शराब और खनिज माफिया तक खेल संघो पर जमें हुए हैं। कई संघो पर तो आपराधिक रिकार्ड वाले भी बैठे हैं ऐसे में खिलाडिय़ों को भी ठुकुरसुहाती छोड़ अपने खेलों की प्रगति के लिए खुलकर आना होगा।
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

हाथियों के आंतक से मुक्ति के लिए अभ्यारण्य क्यों नहीं !



हाथियों की वजह से सौ से उपर जाने गई

तीन हजार से अधिक घर टूटे
हजारों एकड़ फसलों का नुकसान
सरगुजा-जशपुर और कोरबा क्षेत्र में उत्पात बिलासपुर और सरगुजा संभाग में आए दिन हथियों के आतंक के बावजूद हाथी अभ्यारण्य को मंजूरी नहीं देने का मामला तूल पकडऩे लगा है। इन संभागो के सरगुजा जशपुर और कोरबा क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में न केवल हाथियों का आतंक बढ़ा है बल्कि जान के अलावा घरों और फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। हर साल प्रदेश सरकार को नुकसान के एवज में लाखों रूपये मुआवजा देना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ के सरगुजा-जशपुर और कोरबा क्षेत्र में हाथियों का आतंक नया नहीं है। यहां हर साल हाथियों के द्वारा घरों और फसलों को तो नुकसान पहुंचाया ही जाता है लोगों की जान भी जाती है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक वर्ष 2009-10 में हाथियों के आतंक के चलते 19 जाने गई थी और 804 घर तथा 8152 सड़क फसल को नुकसान पहुंचा था इनमें सरगुजा में 12, जशपुर में 6 और कोरबा में 1 व्यक्ति की मौत हुई थी। जबकि वर्ष 2010-11 में 16 मौते और 9183 एकड़ फसल और 736 घर बरबाद हुए वर्ष 2011-12 में यह आंकड़ा और बढ़ गया तथा 24 लोग कात कल्वित हुए वर्ष 2012-13 मेें 11 जाने गई और 11 हजार एकड़ से अधिक फसल को नुकसान पहुंचा।बताया जाता है कि हाथियों के आतंक से मुक्ति के लिए स्थानीय ग्रामीण और वन विभाग द्वारा हर साल इंतजाम किये जाते है लेकिन हाथियों के आतंक के आगे से इंतजाम धरे के धरे रह जाते हैं। यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने हाथी अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। बताया जाता है कि हाथी अभ्यारण्य का मामला राजनीति का शिकार हो गया है जिसकी वजह से यह प्रस्ताव खटाई में चला गया है। हालांकि हाथी अभ्यारण्य के लिए जगह भी प्रस्तावित कर दिया गया है लेकिन इस स्थान पर कोयले की खदाने होने की वजह से भी मामला उलझ गया है।
प्रस्तावित जगह में कोयला खदान चालू करने जिस तरह से खेल चल रहा है वह भी चर्चा की विषय है।
बहरहाल हाथियो से हो रहे नुकसान को नजर अंदाज करना कहीं भारी भूल साबित न हो जाए।

भाजपा मस्त, कांग्रेस पस्त और आप व्यस्त

छत्तीसगढ़ के सभी सीटों पर होगी त्रिकाणीय मुकाबला

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का बिगुल बचने लगा हैं। विधानसभा चुनाव की जीत से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी मोदी फैक्टर से जहां उत्साहित है वहीं कांग्रेस गुटबाजी से पस्त हो गई है। गुटों में बंटी कांग्रेस में टिकिट को लेकर घमासान है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भी अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश में है पर नेतृत्व हीनता की वजह से आप की मौजूदगी का असर स्पष्ट नहीं है। छत्तीसगढ़ में लोकसभा की ग्यारह सीटे हैं। जिनमें से पिछले दो चुनावों से भाजपा दस पर काबिज है और उसे पूरी उम्मीद है कि इस बार भी भाजपा का परचम लहरायेगा। हालांकि विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार पर आकंलन करे तो भाजपा के पास से तीन चार सीटें खिसकते दिख रही है लेकिन रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने जो छवि बनाई है और देश में चल रहे मोदी लहर से भाजपा को उम्मीद है कि वह इस बार सभी सीटे जीतेंगे और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी सभी सीटे जीतने का दावा भी कर चुके हैं। हालांकि रायपुर, दुर्ग, महासमुंद और कांकेर में भाजपा के सांसदों के खिलाफ आक्रोश है और इन सीटों पर नये चेहरे उतारने की मांग भी हो रही है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि इस बार पार्टी कई क्षेत्रों में नये चेहरे मैदान में उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। इधर विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित परिणाम के बाद भी कांग्रेसियों के उत्साह में कमी नहीं आई है लेकिन गुटबाजी के चलते कांग्रेस में घमासान चरम पर है। अजीत जोगी के चुनावी राजनीति से सन्यास की घोषणा को हाईकमान से नाराजगी का स्वरूप बताया जा रहा है जबकि नये प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल की आक्रमक नीति ने कांग्रेस के ग्राफ को ऊंचा किया  है।
दूसरी तरफ टिकिट की बढ़ती मांग ने एक बार पिर कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी की कलहे खोलकर रख दी है। अजीत जोगी को बिलासपुर, कांकेर या सरगुजा से चुनाव लड़ाने की कोशिश हो रही है तो महासमुंद सीट से स्व. विद्याचरण शुक्ल की सुपुत्री को चुनाव लड़ाने की तैयारी है। दुर्ग और रायपुर में दिग्गज कांग्रेसी को उतारने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
कांग्रेसी सूत्रों का दावा है कि इस बार सबसे आसान सीट रायपुर की है क्योंकि यहां के 6 बार सांसद रमेश बैस के खिलाफ भाजपा में भी नाराजगी है। इधर रातों रात दिल्ली की सत्ता तक पहुंची आम आदमी पार्टी भी छत्तीसगढ़ की सभी ग्यारह सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी में लग गई है। आप पार्टी को भरोसा है कि छत्तीसगढ़ में परिणाम अच्छे आयेंगे। आप पार्टी के नेता उचित शर्मा का तो यहां तक दावा है कि जिस तरह से दिल्ली विधानसभा के चुनाव के परिणाम की किसी को उम्मीद नहीं थी। छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह के परिणाम आयेंगे। उचित शर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आप पार्टी के प्रति जो आकर्षण है वह सदस्यता अभियान की सफलता से लगाया जा सकता है हम चुपचाप अपना काम कर रहे हैं और वक्त आने पर यहां भाजपा और कांग्रेस गठजोड़ का खुलासा करेंगे।
बहरहाल लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर भले ही भाजपा आश्वस्त हो पर आम आदमी पार्टी के प्रति बढ़ते आकर्षण ने कई नेताओं की नींद जरूर उड़ा दी है।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

फाइलों में कैद हो गई शहर के सपने



राजनैतिक वर्चस्व की लड़ाई के चलते रायपुर के विकास के सपने फाइलों में कैद हो कर रह गई है। कांग्रेस और भाजपा में श्रेय लेने की होड़ के चलते महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन खटाई में पड़ गया है तो आधी अधुरी योजना के चलते आम आदमी का बुरा हाल है घोषणाओं को अमली जामा पहनाने की बजाय भ्रष्टाचार चरम पर है। एक रिपोर्ट...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के विकास को लेकर चली जंग थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। शहर के सपने को पूरा करने का दावा दोनों ही प्रमुख दल करते है पर हकीकत कुछ और ही है। नगर निगम ने शहर विकास की कई घोषणाएं की लेकिन इन घोषणाओं की फाइलें सरकार के पास जाकर अटक गई है तो निगम अमला सफाई पानी बिजली और अवैध कब्जों तक को हटाने में विफल रही है।
निगम में अव्यवस्था और सुस्त रफ्तार को लेकर भाजपा जहां महापौर किरणमयी नायक पर आरोप लगा रही है तो कांग्रेसियोंं का आरोप है कि सरकार जानबुझकर योजनाओं को लटका रही है।
शहर विकास को लेकर पिछले बजट में पांच दर्जन से अधिक योजनाओं को लागू करने की बात कही गई थी लेकिन इन योजनाओं को साल भर में अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका जबकि पुराना बस स्टैण्ड में मल्टी पार्किंग का काम शुरू हुआ है तो महादेव घाट सौन्दर्यीकरण योजना भी पूरी नहीं हो पाई है। गोकुल नगर की अव्यवस्था भी सामने आ चुकी है। जबकि सफाई व्यवस्था का बुरा हाल है।
सफाई व्यवस्था और पानी निकासी को लेकर तो दोनों ही दल एक दूसरे के खिलाफ बाहें चढ़ाएं हुए है। रायपुर नगर निगम में शामिल किए गए 21 गांवो का तो भगवान ही मालिक है। उखड़ती सड़कें और धुल मच्छर ने तो आम आदमी का जीना दुभर कर दिया है। शारदा चौक से तात्यापारा और भैसथान बजरंग नगर चौड़ीकरण का मामला भी राजनीति में उलझकर रह गया है।
सूत्रों की माने तो सरकार का पूरा स्थान कमल विहार और नई राजधानी के विकास पर है तो पुरानी राजधानी की हालत दिनों दिन खराब होते जा रही है। एक दूसरे पर दोषारोपण की राजनीति के चलते निगम कर्मियों की स्वेच्छाचारिता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। हालत यह है कि इसके चलते टैक्स वसूली का कार्य तो प्रभावित हुआ ही है अवैध निर्माण और अवैध कब्जे के मामले भी बढ़े हैं।
हालत यह है कि शहर विकास को लेकर दोनों ही दलों की चिन्ताएं केवल घोषणाओं तक सिमट कर रह गई है और आम आदमी का जीवन कठिन होता जा रहा है। शहर के विकास के सपनों की फाईलों पर जमती धूल को हटाने की चिंता कौन करे यह सवाल यज्ञ प्रश्न बनता जा रहा है।
शहर विकास के सपने...
सोलर सिटी, पॉलीथीन मुक्त, धूल-मच्छर युक्त, मछली बाजार का निर्माण, कलाकारों के लिए स्थाई मंच, सुभाष स्टेडियम का जिर्णोद्धार, भूमिगत नाली निर्माण, गोबर से पावर निर्माण, चौराहों पर सीसीटीवी, गोलबाजार का कायाकल्प, नया फायर स्टेशन, निर्माण की गुणवत्ता जांचने मोबाईल वैन, जल आवर्धन योजना, बजरंग नगर भैसथान रोड चौड़ीकरण, शारदाचौक-तात्यापारा रोड चौड़ीकरण अवैध निर्माण और अवैध कब्जों पर कार्रवाई।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

अंबानी-अदानी होंगे लोकसभा के मुद्दे!


जल जंगल और जमीन की चुनावी राजनीति

विशेष प्रतिनिधि
आगामी लोकसभा चुनाव में जल जंगल और जमीन के मुद्दे तो चुनावी राजनीति में अहम रोल तो अदा करेंगे ही अंबानी और अदानी प्रमुख चुनावी मुद्दे हो सकते हैं। भ्रष्टाचार को लेकर चुनावी राजनीति में उतरी आम आदमी ने आम चुनाव को न केवल दिलचस्प बना दिया है बल्कि क्षेत्रीय दलों की दादागिरी पर भी विराम लगाने की कोशिश की है। छत्तीसगढ़ में इस सबका कहां और कितना असर होगा एक रिपोर्ट...
आने वाले दिनों में होने वाले लोकसभा चुनाव की बिसात बिछना शुरू हो गया है। राहुल बनाम मोदी के प्रश्न पर हो रहे घमासान में अरविन्द केजरीवाल की मौजूदगी ने पूरे वातावरण को आक्रामक बना दिया है। एक तरफ कांग्रेस और भाजपा वोट बैंक की राजनीति को साधने में लगी है तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस के सांठगांठ को लेकर दोनों के सत्ता के रास्ते पर खड़ी हो गई है। कांग्रेस और भाजपा की रणनीति युवा, किसान ग्रामीण और आदिवासियों को रिझाने की है और अचानक उपजे इस प्रेम से आम शहरी हैरान है। दोनों ही पार्टी इन मुद्दों से अलग नहीं होना चाहते और इन वर्गों के वोटरों को रिझाने की माकूल कोशिश हो रही है। इन सबके बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी हुई आम आदमी पार्टी दिशाहीन औद्योगीकरण, प्रदूषण और कार्पोरेट भ्रष्टाचार के साथ दोनों ही प्रमुख दलों के सांठगांठ को मुद्दा बना रही है। अरविन्द केजरीवाल ने अंबानी और अदानी को लेकर उठाये सवाल में अपनी मंशा जाहिर भी कर दी है। कांग्रेस और भाजपा जहां जल जंगल और जमीन को लेकर अपना प्रेम जाहिर कर रही तो पूंजीपतियों से उनके संबंधो को लेकर केजरीवाल ने प्रहार शुरु कर दिया है।
कांग्रेस और भाजपा भले ही विकास का जितना भी प्रचार कर ले पर जमीनी हकीकत भयावह दर्दनाक है और यह दर्दनाक स्थिति की वजह से ही मुफ्त में बांटने की परम्परा शुरु की गई है।  छत्तीसगढ़ में पिछले हो चुनावों में भाजपा को 11 में से 10 सीटें मिलती रही है। और इस बार भी कांग्रेस यहां सब कुछ पलट देगी कहना कठिन है। दिशाहीन और असंतुलित विकास ने इस नव निर्मित प्रदेश में सरकारी दावों के विपरीत स्थिति है। एक तरफ बस्तर में नक्सलियों की अघोषित सरकार चल रही है तो मैदानी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में माफिया राज है। शराब और जमीन माफियाओं ने इस शांत प्रदेश को अशांत कर दिया है तो बढ़ते अपराध और औद्योगिक आतंकवाद ने रही सही कसर पूरी कर दी है ऐसे में यहां के लोगों को तीसरे विकल्प की तलाश तो है पर वे बेहतर नेतृत्व के अभाव में मन मसोस कर रह गये है।
वर्तमान हालात तो कांग्रेस या भाजपा के बीच की ही है लेकिन आ आदमी पार्टी से आम शहरी लोगों की उम्मीद भी जगी है और यदि केजरीवाल का यहां दौरा होगा तभी वास्तविक स्थिति का आंकलन हो पायेगा।
वैसे शहरी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का प्रभाव दिखने लगा है और जिस तरह से बस्तर सीट से सोनी सोढ़ी का नाम उछाला गया है उसके बाद राजनीति में गर्मी भी महसूस की जा रही है। छत्तीसगढ़ में चुनावी मुद्दे क्या होंगे यह अभी से कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यदि केजरीवाल की पार्टी आती है तो औद्योगिक घरानों से सांठगांठ यहां भी प्रमुख मुद्दा बन सकता है।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

टोनही का मतलब...


कोरबा जिले के  घुमनीकांड गांव में पिछले हफ्ते जो कुछ हुआ। वह न केवल शर्मनाक घटना है बल्कि अंधविश्वास से उपजे बहशीपनन का नमूना है। 21वी सदी में भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताडि़त करना और उस पर कानून के रखवालों की खामोशी क्या बर्बर जुग की याद नहीं दिला रही है।
छत्तीसगढ़ में आज भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताडि़त करने का सिलसिला जारी है और पीडि़त को न्याय दिलाने या प्रताडि़त करने वालों को गिरफ्तार करने से पुलिस के हाथ पांव फूलते है।
कोरबा जिले के इस गांव में हुई घटना ने  तो इसलिए भी सभी को चौंका दिया है क्योंकि टोनही के नाम पर प्रताडि़त करने वालों में उस महिला का अपना जना बेटा भी शामिल था। 65 साल की वृद्धा के बाल काटकर जिस तरह से गांव में घुमाया गया और उस पर गांव वालों की चुप्पी हमें कहां ले जा रही है।
मानवता को शर्मसार करने वाली यह घटना छत्तीसगढ़ में गांव-गांव में विद्यमान है। गांवो में आज भी टोनही के नाम पर महिलाएं प्रताडि़त की जा रही है और गांव वालों की एकजुटता ने शासन-प्रशासन को खामोश रहने मजबूर कर दिया है। दो दशक पूर्व महासमुंद के बेमचा गांव में क्या कुछ नहीं हुआ था तब टोनही के नाम पर प्रताडऩा को लेकर कड़ी कार्रवाई की बात हुई लेकिन न तो टोनही के नाम पर प्रताडऩा ही कम हुई और न ही कोई बड़ी कार्रवाई ही हुई।
शिक्षा शहर से लेकर गांव तक पहुंच गई है। आधुनिक संसाधनों ने जीवन स्तर तक बढ़ा दिया है लेकिन टोनही को लेकर सोच अब भी जस की तस है। कलयुगी बेटे भरत गोड़ और घुमनीकांड में भी पड़े लिखे लोगों की कमी नही है तब भी टोनही के नाम पर यह घटना हुई। जादू टोने को लेकर ग्रामीण इलाकों में आज भी जागरूकता की जरूरत है। हर घटना के बाद जागरूकता को लेकर बवाल मचता है और जागरूकता की दुहाई दी जाती है।
छत्तीसगढ़ के गांवो में आज भी टोनही बताने वालों की कमी नहीं है। इस अंधविश्वास के चलते कितनी ही महिलाएं प्रताडि़त है लेकिन न तो सरकार ने कभी ऐसे आंकड़े जुटाने को कोशिश की और न ही जनप्रतिनिधियों ने ही इस अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई उल्टा वोट बैंक की राजनीति के चलते उन गांव वालों का ही साथ दिया जो टोनही के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा देते है।
बुढ़ी मां को टोनही मान लेने की इस घटना ने एक बार फिर हमारी सोच और शिक्षा पर सवाल उठाया है। क्या सरकार टोनही को लेकर उपजे अंधविश्वास को लेकर कोई कहानी पाठयक्रम में शामिल नहीं कर सकती। सवाल यह भी है कि आखिर टोनही के नाम पर प्रताडऩा कब तक चलेगी।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

सिर्फ चौबे को ही क्यों लगी, 9 एम एम की गोली!


मदनवाड़ा कांड के सुलगते सवाल !
बाकी 29 जवानों को लगी एके 47 या इंसास से गोली !

रायपुर। मदनवाड़ा में एसपी विनोद चौबे सहित 29 जवानों की नक्सली मुठभेड़ में हुई मौत को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। सवाल नक्सलियों
ज्ञात हो कि मदनवाड़ा में नक्सलियों ने एसपी विनोद चौबे, टीआई, विनोद धु्रव सहित 29 जवानों की निर्मम हत्या कर दी। इस हत्याकांड पर तब भी सवाल उठे थे लेकिन सिर्फ नक्सली वारदात की वजह से इस पर उतना हो हल्ला नहीं हो पाया। अब इस वारदात को लेकर एक बार फिर मामला गरमाने लगा है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों की माने तो इस नक्सली हमले में एसपी विनोद चौबे सहित शहीद हुए 29 जवानों में से केवल श्री चौबे की मौत 9 एमएम की गोली से हुई जबकि बाकि सभी 28 जवान या तो एके 47 या इंसास रायफल की गोली से मारे गए। बताया जाता है कि सभी शहीदों के पोस्टमार्टम के बाद आये इस तथ्य को बवाल मचने के डर से न केवल दबाया गया बल्कि जांच तक नहीं की गई।
पिछले दिनों विधानसभा में कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने मदनवाड़ा  कांड के पोस्टमार्डम रिपोर्ट को सदन में रखने की मांग करते हुए नक्सलियों से सांठगांठ के आरोप भी लगाये हैं। हालांकि मदनवाड़ा कांड को लेकर पुलिस के उ"ााधिकारी की भूमिका को लेकर सवाल पहले भी उठते रहे हैंर्। ज्ञात हो कि झीरम घाटी में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की नक्सली हत्या को लेकर भी कई तरह के सवाल उठते रहे हैं और इसकी जांच तो की जा रही है लेकिन रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है।
इधर नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को लेकर जिस तरह के चेहरे सामने आये है वह न केवल हैरान कर देने वाले हैं बल्कि इसके तार भाजपा से जुड़े होने को लेकर भी सवाल उठने लगे है। कोण्डागांव के चोपड़ा परिवार के भाजपा के दिग्गज नेताओं से संबंध किसी से छिपे नहीं है लेकिन पुलिस के लिए यह जांच आसान नहीं है। ऐसा नहीं है कि नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को लेकर हो हल्ला पहली बार हुआ है इससे पहले भी सरकार के मंत्रियों पर नक्सलियों से सांठगांठ के आरोप लगते रहे है। हालांकि सांठगांठ के आरोपो से कांग्रेस के कई नेता भी नहीं बच पाये हैं।
सूत्रों का कहना है कि मदनवाड़ा ताल मटेड़ा और झीरम घाटी की घटना सांठगांठ को लेकर सवाल खड़ा करते हैं लेकिन इस दिशा में जांच की विशेष कोशिश कभी नहीं हुई। मदनवाड़ा कांड को लेकर एक बार फिर राजनीति गर्म हो गई है तो इसकी वजह वह पोस्टमार्डम रिपोर्ट है जो कई संदेहो को जन्म दे रही है।
बहरहाल यह मामला कितना तुल पकड़ेगा और केवल विनोद चौबे ही क्यों 9 एमएम की गोली के शिकार हुए यह कब पता चलेगा कहना मुश्किल है। देखना है इस पर क्या कुछ होगा।

से सांठ-गांठ को लेकर ही नहीं उठाये जा रहे हैं बल्कि शहरी नेटवर्क में पकड़ाये आरोपियों की राजनैतिक पहुंच को लेकर भी उठने लगे है। मदनवाड़ा कांड में क्या कोई सांठगांठ हुई है यह सवाल तब और खड़ा हो जाता है जब केवल एसपी विनोद चौबे की 9 एमएम की गोली लगने की बात सामने आती है।

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

सरोवर हमारी धरोहर...!

पहले तीन विश्व युद्ध का कारण बताने वाले अम्सर कहते है कि चौथा विश्व युद्ध यदि हुआ तो इसकी वजह पानी होगा। जल ही जीवन है, पानी बगैर न उबरे मोती मानूस चून और न जाने जल की महत्ता को लेकर कितनी ही बाते प्रचलित है लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी में जिस बेतरतीब से तालाबों को पाटा जा रहा है और उस पर आम लोगों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। तालाबों के शहर के रूप में प्रचलित रायपुर में गिरते जल स्तर को लेकर बड़े-बड़े विद्वान चिंतित है। सरकार भी सरोवर हमारी धरोवर के नारे लगाती है हर साल शासन प्रशासन तालाबों की सफ ाई के लिए चिल्ल पौं मचाता है लेकिन इसके बावजूद शहर के तालाबों की जो दुर्दशा हो रही है वह प्रशासन की नियत पर तो सवाल उठाता ही है शहर की चिन्ता करने वालों की भूमिका पर भी सवाल उठाता है। तालाबों की बेशकीमती जमीनों पर जिस तरह से भूमिकाओं की नजर है वह किसी से छिपा नहीं है। नगर निगम की भूमिका भी कम संदेहास्पद नहीं है। कई बार तो यह लगने लगता है कि वह भूमिकाओं के ईशारे पर तालाबों को पाटने पर आमदा है।
तालाबों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट गाईड लाईन की जिस तरह से अनदेखी की जा रही है वह न केवल हैरान कर देने वाला है बल्कि इस तरफ  से समाज सेवी संस्थाओं की अनदेखी भी आश्चर्यजनक है। राजधानी के गिरते जल स्तर को लेकर चिंता जाहिर करने वालों को शहर की तालाबों को पाटने की साजिश भी यदि नजर नहीं आ रही है तो इसे क्या कहा जाए। एक तरफ  स्थानीय प्रशासन तालाबों के सौन्दर्यीकरण के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों फू क रही है तो दूसरी तरफ  नालों का पानी तालाब में डाला जा रहा है इससे न केवल तालाबों की हालत खराब होने लगी है बल्कि वह धीरे-धीरे पटने भी लगा है।
    महंत लक्ष्मी नारायण दास वार्ड स्थित प्रहलदवा और खो-खो तालाब में नाले का पानी डाला जा रहा है। जबकि इन दोनों तालाब को निस्तारी केे रूप में हजारों लोग उपयोग करते हैं। बाताया जाता है कि पानी की कमी की वजह से लोग निस्तारी को मजबूर है जबकि तालाब में जलकुंभी भी अपना पैर पसार चुकी है। दूसरी तरफ  तालाब पर कई भूमाफि याओं की नजर है और वे इन तालाबों सुख रही जमीनों पर कब्जा करने की कवायद में लगे हैं।
    दूसरी तरफ  आमातालाब को पाटने की जो कोशिश हो रही है वह भी आश्चर्य जनक है। बाताया जाता है आमातालाब को पाटकर काम्प्लेक्स बनाने की योजना है और इसी योजना के तहत तालाब को पाटा जा रहा है। सूत्रों की माने तो शहर भर से निकलने वाली गंदगी और मलबे से तालाब को पाटा जा रहा है। हालांकि तालाब पाटे जाने का विरोध आसपास के लोग कर रहे हैं लेकिन मलबा डालने का काम गुपचुप तरीके से रात में किया जा रहा है।
    इसी तरह तेलीबांधा तालाब के एक हिस्से को सौन्दर्यीकरण के नाम पर पाटा जा रहा है इस पर कई लोगों ने आपत्ति तक जातई है लेकिन यहां भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की सरे आम अनदेखी की जा रही है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने तालाबों को पाटकर काम्प्लेक्स बनाने की नीति के खिलाफ  कड़ा रूख अख्तियार किया है और तालाबों की यथास्थिति बनाये रखने का स्पष्ट निर्देश दिया है। सूत्रों की माने तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तालाब पाटे जाने का काम तो सीधे तौर पर रूक गया है लेकिन साजिशपूर्वक इसे अंजाम दिया जा रहा है। कभी तालाबों का शहर कहलाने वाले रायपुर में कई तालाब पाटे गये। 
    लेंडी तालाब, रजबंधा तालाब को पाटकर जिस तरह से काम्प्लेक्स बनाये गये वह किसी से छिपा नहीं है। और विशेषज्ञों की माने तो रायपुर में गिरते जलस्तर की एक बड़ी वजह तालाबों का पटना है और इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में इसके भीषण दुष्परिणाम भुगतने होंगे।

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

केवल वोट देने तक प्रजातंत्र-केयूर भूषण



स्वास्थ्य ठीक रहा तो आदिवासी हिंसा पर गांधी विचार यात्रा...
चुने हुए जनप्रतिनिधियों का बजाय प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री ही सत्ता
पीड़ा रहित समाज की स्थापना के लिए गांधीवाद ही विकल्प

कांग्रेस गांधीवाद से पूरी तरह दूर सिर्फ जयंति या निर्वाण दिवस ही...
आजादी की लड़ाई की विशेषता नैतिकता लेकिन आज इसकी कमी...
जनता को गांधीवाद पर विश्वास अन्ना हजारे आंदोलन में झलक से स्पष्ट
वैसे तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पथ पर चलने वालों की इस देश ही नहीं पूरी दुनिया में कमी नहीं है। गांधी के बताये मार्ग पर चल कर कुछ कर गुजरने की चाह भरना किसे नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी गांधीवादी विचारधारा को जीने वालों की कमी नहीं है और इनमें से प्रमुख नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण का भी है। 1 मार्च 1928 को दुर्ग जिला के छोटे से गांव जांता में जन्में केयूर भूषण महात्मा गांधी के आलोक से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना सारा जीवन इसी पथ पर होम कर दिया। 82 वर्षीय केयूर भूषण जहां कांग्रेस के गांधीवाद से भटकने से दुखी है वहीं समाज में बढ़ती हिंसा से आहत है। वे वर्तमान व्यवस्था को गांधीवाद से बदल कुछ करने की सोच ही नहीं रखते बल्कि वे यह कहने से भी नहीं हिचकते कि वर्तमान में प्रजातंत्र सिर्फ वोट देने तक ही रह गया है। वे कहते हैं चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधियों की बजाय सत्ता केवल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पास रह गई है। सत्ता का केन्द्रीयकरण हो गया है जिसकी वजह से आम लोग दुखी है। वे नक्सली हिंसा पर भी आहत है। वे कहते हैं कि आदिवासियों की हितों के लिए हिंसा का जो वातावरण बना है उनका गांधीवाद ही एक मात्र हल है। आदिवासी हित के नाम पर नक्सली व पुलिस दोनों ही हिंसा पर आमदा है। वे इस उम्र में हम मामले में कुछ न कर पाने की पीड़ा समेटे कहते हैं कि स्वास्थ्य ठीक हुआ तो शीघ्र ही गांधी विचार यात्रा निकालकर सरकार और नक्सलियों को बिठाकर हिंसा खतम करूंगा। वे नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के संबंध पर पूछे सवाल पर कहा कि सत्ता में वहीं आयेगा जो सर्वधर्म समभाव रखता हो। अन्ना हजारे के आन्दोलन की झलक से सबको समझ जाना चाहिए कि गांधीवाद से सबको समझ जाना चाहिए गांधीवाद से सबको समझ जाना चाहिए कि गांधीवाद और उनका मार्ग ही प्रासंगिक है और इसी में देश का हित है अन्यथा जिस तेजी से सरकार और उनके लोग विकास की लकीर खींच रहे है उनसे यह डर सताने लगा है कि हम आर्थिक गुलाम न हो जाए। गांधीवादी चिंतक केयूर भूषण कांग्रेस की टिकिट पर 1980 से लेकर 1989 तक रायपुर लोकसभा के सांसद रहे। अपनी गांधीवादी छवि के लिए प्रसिद्ध केयूर भूषण को सन् 2001 में छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा सद्भावना पुरस्कार भी दिया गया। हरिजन उद्धार से लेकर उनके कार्यों को लोग आज भी याद करते नहीं थकते यही नहीं जब पंजाब जल रहा था तब भी केयूर भूषण ने पंजाब में शांति बहाली के लिए अपनी भूमिका से पीछे नहीं हटे थे। सादगी के साथ पूरा जीवन बीताने वाले केयूर भूषण ने हिन्दी व छत्तीसगढ़ी में कई किताबें लिखी है। स्वतंत्रता आन्दोलन के महापुरूषों पर उन्होंने काफी कुछ लिखा है और पीड़ा रहित समाज के निर्माण को लेकर वे आज इस उम्र में भी चल पड़ते है।
स्वतंत्रता के लिए देश के महान नेताओं के संघर्ष को याद करते हुए वे वर्तमान विषन्नावस्था को लेकर मुखरित हो उठते हैं। वे कहते हैं कि हमने विज्ञान और तकनीक की सहायता से प्रगति तो की है लेकिन भौतिक उपलब्धियों की जगमगाहट में नैतिक मूल्य और भारतीय परम्परा खो सी गई है संकट से निकालने वाले महापुरूषों के चले जाने से हम भटक गए है जबकि स्वतंत्रता की पूरी लड़ाई की विशेषता नैतिकता रही है।
केयूर भूषण जी यह कहने से भी नहीं चुकते कि स्वतंत्रता पश्चात भारतीय जीवन का परिस्कार करने के लिए हमें उन बंधनों को तोड़ फेंकना था जिनसे हम बंधे है। विनोबाजी से लेकर कई लोगों ने इन बंधनों को तोडऩे का प्रयास किया। दुर्भाग्य से वे उन्हें पूर्णतया समाप्त नहीं कर पाये। वह खरपतवार आज बढ़कर सब तरफ फैल गई है और आज सारा देश उन विकृतियों से आक्रांत हो रहा है। वे कहते है कि राजनीति में अवसरवादिताओं की संख्या बढ़ी है और इन्हें निकाल फेकने की जरूरत आ पड़ी है ऐसे लोगों को निकाल फेंकने की जरूरत आ पड़ी है ऐसे लोगों को निकालने में कुर्बानी भी देनी पड़े तो पीछे नही हटुंगा। वे कहते है कि ऐसे ही लोगों की वजह से राजनीति अछूत कहलाने लगी है वे युवाओं से आव्हान भी करते है कि युवाओं को अपने महापुरूषों के बताये मार्ग पर चलकर नये व्यवस्था गढऩा चाहिए। केयूर भूषण जी का कहना है कि महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज, स्वालंबन, अन्तयोदय और नैतिकता की दुहाई तो सब देते है उनकी जयंती व निर्वाण दिवस भी खूब आयोजित होते है लेकिन जब तक गांधी के बताये मार्ग के अनुरूप सत्ता नहीं होगी आम आदमी तिरस्कृत होता रहेगा। आज गांधीवाद को लेकर आन्दोलन की जरूरत है। जनता चाह भी रही है जिसकी झलक अन्ना हजारे के आंदोलन में दिखा भी है। छोटे रूप में छत्तीसगढ़ में इस तरह का आन्दोलन करना चाहता हूं। गांधी विचार मंच इसलिए बना भी है। उन्होंने कहा कि राजनीति की वजह से आज हिंसा का वातावरण बन रहा है। कांग्रेस भी गांधी के रास्ते से दूर हुई है। नक्सली हिंसा और पुलिस हिंसा बढ़ी है। गांधी जा रहते तो आदिवासियों के हित के लिए जरूर आगे आते। सरकार और नक्सली दोनों आदिवासी हित की बात करते है लेकिन दोनों ही हिंसा का रास्ता अपनाए हुए है। गांधी की विचारधारा के अनुरूप जब तक ग्राम स्वराज, स्वालंबन और अत्योदय के आधार पर सरकार काम नहीं करेगी सत्ता का विकेन्द्रीकरण नहीं होगा यह स्थिति सुधर रही सकती। आदिवासी क्षेत्रों में यह स्थिति यहां की संपदा की वजह से है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर इन संपदाओं पर है। इसके चलते आदिवासी उजाड़े जा रहे है या वे पलायन कर रहे हैं।  भ्रष्टाचार आखरी स्तर तक पहुंच गया है। सिस्टम बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज हर कोई राज सत्ता हासिल करने के लिए आम आदमी का उपयोग कर रहा है। आरएसएस और भाजपा की नजर बहुसंख्यक वोट बैंक पर है। जबकि इस देश में सर्वधर्म एकता की भावना है सत्ता का लाभ आम आदमी को मिलना ही चाहिए और सरकार उसी की बने जो इन भावना को जीता है। कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष का नाम लेती है लेकिन काम नहीं करती है और इन दोनों की रजनीति में जनता पीस रही है।
स्वतंत्रता संग्राम सैनिक एवं गांधीवादी चिन्तक
जन्म : एक मार्च 1928, ग्रामा जाँता, जिला दुर्ग
पुरस्कार : छत्तीसगढ़ शासन का पं. रविशंकर शुक्ल सद्भावना पुरस्कार 2001 से सम्मानित जन प्रतिनिधित्व : सन् 1980 से सन् 1989 तक रायपुर लोकसभा से संसद सदस्य
प्रकाशित कृति: 1. लहर (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)
2. कुल के मरजाद (छत्तीसगढ़ी उपन्यास)
3. कहां बिलागे मोर धान के कटोरा (छत्तीसगढ़ उपन्यास)
4. नित्य प्रवाह (प्रार्थना एवं भजन)हिन्दी
5. कालू भगत (छत्तीसगढ़ी  कहानी संग्रह)
6. छत्तीसगढ़ के नारी रत्न
7. मोर मयारूक गाँव (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह)
8. हीरा के पीरा (छत्तीसगढ़ी निबंध संग्रह)
9. पथ (विभूतियों को समर्पित काव्य संग्रह)
संपादन : 1. साप्ताहिक छत्तीसगढ़ 2. साप्ताहिक छत्तीसगढ़ संदेश 3. त्रैमासिक हरिजन सेवा (नई दिल्ली) 4. मासिक अन्त्योदय (इंदौर) अप्रकाशित छत्तीसगढ़ी साहित्य : 1. डोंगराही रद्दा (कहानी संग्रह) 2. लोक-लाज(उपन्यास) 3. समें के बलिहारी (उपन्यास) 4. आंसू म फिले अचरा (कहानी संग्रह)
    अप्रकाशित: 1. उनका युग (लेखमाला-स्व. इंदिराजी के युव के संदर्भ हिन्दी साहित्य में) 2. राजीव गांधी का अंतरमन 3. अंकुर (हिन्दी कवितायें तथा किशोर साहित्य) 4. सम सामयिक लेखों का संग्रह 5. छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनगाथा
    संपर्क : 247, सुन्दर नगर, रायपुर (छत्तीसगढ़) 492001 फोन नं. -0771-2243524