रविवार, 8 अप्रैल 2012

शुभ संकेत नहीं..


प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इन दिनों संकट में हैं। कांग्रेस ने यहां कोयले की कालिख पर मोर्चा खोल दिया है वहीं भाजपा में भी बगावत की चिंगारी फूटने लगी है। यह भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। पिछले 7-8 सालों से अपनी एकतरफा चला रहे डॉ. रमन सिंह के लिए यह चुनौती आसान नहीं है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा का जनाधार अब यदि कमजोर पड़ता जा रहा है तो इसकी वजह डॉ. रमन सिंह और उसकी पूरी टीम है। सत्ता में बैठे लोगों की लूट-खसोट की चर्चा चौक-चौराहों पर होने लगी है और जिन पर नकेल कसने की जिम्मेदारी है वे भी अपने करीबियों के माध्यम से ठेकेदारी में मशगूल हो तो फिर पार्टी के आम कार्यकर्ताओं का गुस्सा स्वाभाविक है।
भाजपा में असंतोष तो तभी से दिखाई देने लगा था जब पहला गुमनाम पर्चा जारी हुआ लेकिन तब इसे यह कह कर हल्के में लिया गया कि यह रमन विरोधियों की चालबाजी है लेकिन एक के बाद एक पर्चे आते गये और एक के बाद एक घोटाले की कहानी भी आनी शुरू हो गई। असंतोष तब बढ़ गया जब सादगी के साथ जनसेवा का नारा अभिषेक के विवाह समारोह के रूप में बाहर आया। कार्यकर्ता दबी जुबान कहने लगे ऐसी शादी की क्या जरूरत थी। आखिर जनता में इसका क्या संदेश जायेगा। मुख्यमंत्री बनते ही डॉक्टर साहब के पास पैसा कहां से आ गया और कब तक चापूलसों को ही लालबत्ती दी जायेगी।
इस चर्चा को भी अनुशासन के डंडे ने बाहर आने से रोक दिया। मंत्रियों के खर्चे और अधिकारियों की मनमानी के किस्से आम लोगों तक पहुंचने लगे और जब सीएजी की रिपोर्ट ने सरकार की करतूत पर से परदा उठाया तो पार्टी कार्यकर्ताओं में बगावत की चिंगारी फूटने लगी। कांग्रेस के तेवर से भाजपा के हितचिंतकों में सरकार के प्रति गुस्सा दिखने लगा है। श्रीमती करुणा शुक्ला और रमेश बैस ने अपनी सरकार के बारे में इतना कहा कि विपक्ष के लिए भी नहीं किया जाता। कांग्रेस से तो भाजपा निपट लेने की तैयारी की कर सकती है लेकिन जब वे स्वयं सरकार के करतूतों से खुश नहीं है तब आधे अधूरे मन से कैसे मुकाबला होगा। सौदान सिंह से लेकर रामप्रताप और जयप्रकाश नड्डा से लेकर गडकरी पर जिस तरह से सरकार के सदुपयोग-दुरूपयोग की चर्चा छिड़ी है यह भाजपा के लिए शुभ संकेत कतई नहीं है।