शनिवार, 31 जुलाई 2010

हकीकत के पीछे का सच

इन दिनों शहर के प्रतिष्ठित अखबारों के कर्मचारियों में कालम राईटर बनने की होड़ मची हुई है। ऐसा ही एक कर्मचारी इन दिनों कालम लिखने लगे हैं। सूर्या का वॉट लगाकर हकीकत का चोला पहनने वाले की हकीकत अब राजधानी में भी चर्चा का सबब बनने लगी है। गबन तो नाम के अनुरूप ही सब कर रहे थे लेकिन धमकाकर पैसा वसूलने और विज्ञापन छपवाने मजबूर करने की कहानी को अब तक इसके मालिकों ने क्यों नहीं सुनी। यह तो वही जाने। लेकिन यह चर्चा जोरों पर है कि दूध देने वाली गाय की लात भी अच्छी लगती है। इस बीच इसके द्वारा रायपुर संस्करण को ठेका में लिए जाने का दावा है हकीकत तो मालिक ही जाने।
फिर रिपोर्टर फायदे में फोटोग्राफरों में असंतोष
सलीम अशरफी ने वक्फ बोर्ड का चेयरमेन बनाते ही ख़ुशी मनाई और कवरेज के लिए पहुंचे मिडिया कर्मियों को पांच-पांच सौ दिए फोटोग्राफर खुश थे किचलो कोई तो है जो दोनों को सामान समझता है लेकिन प्रेस जाते ही उनकी हवा निकल गई क्योकि रिपोर्टरों को विज्ञापन भी दिया गया था जिसका कमीशन ही हजारो बनता है लेकिन बेचारे कर क्या सकते है .
पत्रिका के गिलास का

जवाब क्राकरी से
राजस्थान पत्रिका के आने की चर्चा से नवभारत की बाल्टी तो सभी जानते हैं लेकिन नेशनल लुक भी अपने अस्तित्व को बचाने छटपटाना शुरु कर दिया है। दरअसल पत्रिका के द्वारा कांच का गिलास गिफ्ट करना कई को अपने अस्तित्व पर हमला नजर आने लगा है। नेशनल लुक भी अपना प्रसार बढ़ाने बाल्टी के अलावा क्रॉकरी सेट का लालच देने लगा है।
प्रदीप की वापसी तो
कई हुई इधर-उधर
फोटोग्राफी में नाम कमा चुके प्रदीप डडसेना की लम्बे समय बाद हरिभूमि में वापसी हो गई है इतने दिनों तक प्रदीप जी क्या कर रहे थे उन्हीं से लोग पूछ ले तो बेहतर होगा। इधर पत्रिका की आमद से पत्रकारों का भाव बढ़ गया है और भाव तभी बढ़ेगा जब वे इधर से उधर जाएंगे। ऐसे ही वरुण झा हरिभूमि से भास्कर चले गए तो सोनू पाण्डे ने इसे बैलेंस कर दिया। तो शशांक खरे को भास्कर रास आने लगा है।
और अंत में....
रजबंधा मैदान में सरकारी जमीन पर बनाए भवन में समवेत शिखर शिफ्ट हो रहा है मशीन भी लग गई है अब वे उस इंजीनियर को कोस रहे हैं जिन्होंने मशीन रुम तो बना दिया लेकिन कागज का रोल मशीन तक पहुंचाने में दिक्कत हो रही है और जब तक रोल नहीं पहुंचेगा अखबार कैसे छपेगा।

अछ्छा जीवन सभी का हक़

दलितों, पिछड़ों एवं कमजोर वर्गो को आरक्षण सर्वप्रथम 26 जुलाई 1902 को कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज ने देना शुरू किया। शाहूजी ने आरक्षण विरोधियों के सामने आरक्षण का औचित्य एक उदाहरण द्वारा सिद्ब किया। आज के लोकतांत्रिक भारत में जहां हर नागरिक को बराबर अधिकार दिये गये हैं। हजारों वर्षो से शोषित और पिछाड़े गये वर्गो के विकास और उत्थान हेतु आवश्यक कदम उठाना वक्त की जरूरत है। यदि ये आरक्षण का लाभ लेकर आगे बढ़ते हैं तो देश आगे बढ़ेगा। आखिर अच्छा जीवन स्तर जीना सभी का हक है।
धमतरी जिला के पुलिस अधीक्षक श्री शेख आरिफ हुसान ने मुख्य अतिथि के रुप में आरक्षण के जनक एवं समानता के प्णेता कोल्हापुर के मराठा नरेश राजर्षि छत्रपति साहू जी महाराज की जयंती के शुभावसर पर भारतीय दलित साहित्य अकादमी के छत्तीसगढ़ राय स्तरीय गौरवपूर्ण सम्मेलन में पधारे साहित्यकारों,पत्रकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए ये शब्द कहे । सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए युवा समाजवीर श्री दिग्विजय सिंह कृदत्त ने शाहूजी महाराज के आदर्शो,कार्यो की प्वलित योति को वाला बनाने पर बल दिया। विशिष्ट अतिथि द्वय श्री पी. एसोब (आंध्प्देश) एवं श्री उधोराम चंदनिहा (पोंड़-पाण्डुका) ने भी सम्बोधित किया।
उस अवसर पर शैक्षणिक, साहित्यिक व सामीजिक क्षेत्रों में विशिष्ट अवेदन के लिए श्रीमती चन्दि्का देवी देशलहरे, कांशीराम गायकवाड़, जेशू चन्द् सिंह, मनीराम पंकज, जगमोहन सिंह पैकरा, जनाब मोहम्मद हनीफ साकरीया, विनोद कुमार सिन्हा शमभूराम साहू, आर.डी.क्षीरसागर, पियुषकांत सिंघम, पूर्णेन्द् कुमार साहू, भुनेश्वर प्साद कुर्रे, कृष्णदत्त उपाध्याय, बी. एस. रावटे, शोभाराम बघेल, बालाराम सिन्हा, अलखराम यादव, राजा राम पटेल, सतीश चन्द्ाकर, सखाराम साहू, संतराम देवांगन, श्रीमती गुलाब विश्वकर्मा, रविन्द् बंनजारे, भगवान सिह साहू एन.पी. जोशी, डोमार सिंह साहू संवलराम
साहू, भुनेश्वर प्साद साहू, रामेश्वर सिंग सूर्यवंशी, सम्पत राम सारथी, श्रीमती गुलाब विश्वकर्मा ,रविन्द् बंजारे, भगवान सिंह साहू, एन.पी. जोशी,डोमार सिंह साहू, कंवलराम साहू, भुनेश्वर प्साद साहू, रामेश्वर सिंग सूर्यवंशी, सम्पत राम सारथी, श्रीमती नजमा खॉ, आर.मुत्थुस्वामी, बुद्बप्काश गायकवाड़, बृदावन यादव, कौषल प्साद साहू, तल्लीनपुरी गोस्वामी मोहनलाल सोनवानी एवं गुहाराम लहरे को प्ाईड ऑफ नेशन नेशनल अवार्ड-2010 से सम्मनित किया गया।
इसके अलावा दलित पिछड़े समाज के प्तिभावान छात्र छात्राओं-कु. किरण यादव कु. मधु चौहान, कु.गौरी चोपड़ा, कु. वीणाा वाल्मिकी, कु. सुभाषनी बंजारे, धर्मेद् गहरवार, अमित नागेश एवं अमित कुमार रामटेके को रजत पदक (चांदी का मैडल) व पाठय सामग्ी प्दान कर सम्मानित किया गया। अनुसूचित जाति विकास परिषद जिला धमतरी के सौजन्य से कु.आकांक्षा भारती, क. द्ोपती जोशी, कु. गायत्री धीवर, कु. सीमा सोनकर, कु.गणेशी धु्व, कु. ओमप्भा, कु. भगवती को स्कूल बैग, कापी, पेन प्दान किया गया।
कार्यक् म का सफल संचालन अकादमी के प्देशाध्यक्ष जी.आर. बंजारे वाला ने किया। कार्यक्म का शुभारंभ बैण्ड बाजे के रार्ष्ट्रीय गान के साथ हुआ। केकचंद बधेल, बुटुराम पूर्णे, नम्मूराम भोजवानी,आर. मुत्थुस्वामी प्ेम नजीर के द्वारा कविता पाठ प्स्तुत किया गया। प्ो.के. मुरारीदास, प्ेमलाल कुर्रे, प्काश सिंह बादल, भागचंद नागेश, पं.देवीदत्त उपाध्याय, डामनलाल सोनवानी, रांलाल रामटेके, शेखरलाल गहरवार सोमन ध्ुव, प्मोद यादव (शाबास इंडिया फेम) ने अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में अकादमी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री बद्रीप्रसाद गंगवीर के जन्म दिवस पर केक काटा गया।
इस अवसर पर तुलसीराम गहरवार, प्रेम सायमन, सी.एल. बंजारे, संतु यादव, अशोक टंडन, किशुन डांडे, अनिल बनारसी, पप्पू यादव ,दीपक सार्वा, महेश सिन्हा, उगेशराम बंसारे,श्रीमती सुमित्रा गंगवीर, श्रीमती सुशीला देवी वाल्मिकी, श्रीमती जे.उपाध्याय, प्रिती मेश्राम, सावित्री साहू, सरोज चौहान, नारायण राव शिन्दे, सूरज प्रसाद गुप्ता, दुष्यंत घोरपड़े, सोहनलाल डहरिया, मेहत्तर राम खापडर्े, श्रीराम डहरिया, फणेन्द्र कुमार साहू, एच.पी. देवांगन, शिवनारायण सोनी, कार्तिक राम पटेल, ललित साहू, टी.डी. सोनवानी, रमेश भालाधरे, एस.एल. कलिहारी, बी.आर. खोब्रागढ़े, बी.पी. वर्मा, रवि कुमार गंगवीर, श्वेता गंगवीर, जयंत कुमार, विश्वनाथ साहू, नसीमा, ममता देवांगन, विशाल सिंह ठाकुर, अमरदास बंजारे, सुशील बंजारे, विकास कुमार, सीमा गंगवीर, कु. भारती सोनवानी, श्यामलाल, दिलीप नाग, मुकेश प्रधान, त्रयम्बक हड़वदिया आदि लोगों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
इस अवसर पर अकादमी के छत्तीसगढ़ प्रदेश शाखा की ओर से परम्परागत् टोपी (नीली पगड़ी) व शाल पहनाकर मुख्य अतिथि श्री शेख आरिफ हुसैन का आत्मीय अभिनंदन किया गया।

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

अतिक्रमण तोड़ने का आदेश निकल गया लेकिन मंत्री ने रुकवा दी...

तालाब पर हुआ है अतिक्रमण
छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रियों की करतूतें थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरफ मुख्यमंत्री पानी बचाने आंदोलन का आगुआ बने हैं दूसरी तरफ उन्हीं के मंत्री तालाब पाटने वाले को बचा रहे हैं। मामला सरजूबांधा तालाब पाटने का है। इस पर हुए अतिक्रमण को तोड़ने का आदेश तक हो गया है लेकिन अतिक्रमणकारी नवल किशोर अग्रवाल की पहुंच दमदार मंत्री तक है इसलिए निगम भी हाथ पर हाथ धरे बैठा है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक लोहार चौक निवासी नवल किशोर अग्रवाल के द्वारा टिकरापारा स्थित सरयूबांधा तालाब में कब्जा किया है। इनके द्वारा यहां किए लम्बे चौड़े कब्जे में प्रिटिंग प्रेस चलाने की भी खबर है। बताया जाता है कि जब इसकी खबर पार्षद सतनाम सिंह को हुई और लोगों ने पार्षद से शिकायत करते हुए कार्रवाई की मांग की तो पार्षद ने इसकी शिकायत निगम आयुक्त से की।
इधर इस मामले में जोन 6 के तत्कालीन कमिश्नर ने 1 जून 2010 को पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर नवल किशोर अग्रवाल के कब्जे को हटाने पुलिस बल की मांग की। बताया जाता है कि जैसे ही अतिक्रमण हटाने की जानकारी नवल किशोर अग्रवाल को हुई उन्होंने दमदार मंत्री से एप्रोच किया और बताया जाता है कि दमदार मंत्री ने न केवल जोन कमिश्नर को हड़काया बल्कि पुलिस को भी फोन कर बल नहीं उपलब्ध कराने कह दिया।
इधर विभागीय मंत्री से भी नवलकिशोर अग्रवाल के संबंध की चर्चा है और लेन देन की चर्चा के बीच यह भी चर्चा है कि निगम ने अब इस अतिक्रमण को हटाने से पल्ला झाड़ लिया है। बताया जाता है कि इस मामले को लेकर टिकरापारा में जबरदस्त आक्रोश है। एक तरफ प्रदेश के मुखिया पानी बचाने की नाटकबाजी में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं शिवनाथ नदी का इंजीनियर की तरह हवाई सर्वेक्षण में लाखों रुपए फूंके जा रहे हैं और दूसरी तरफ राजधानी में तालाब पाटने में मंत्रियों की रूचि है। ज्ञात हो कि आमापारा स्थित कारी तााब को भी इसी दमदार मंत्री की वजह से पाटा जा रहा है जबकि तेलीबांधा से लेकर पुरानीबस्ती के तालाबों पर अतिक्रमण की अपनी कहानी है।
बहरहाल सरयूबांधा तालाब के कब्जे हटाने का मामला पूरे शहर में चर्चा का विषय है। चर्चा यह भी है कि मुख्यमंत्री पानी बचाने के लिए भाषणबाजी बंद कर अपने मंत्रियों की करतूतों पर लगाम लगाए तो राजधानी के कई तालाब व बगीचे बच सकते हैं।

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

गणित वालों को भी कम्पाउण्डर बना दिया

बाबूलाल अग्रवाल जब सचिव थे
जब बाबूलाल अग्रवाल स्वास्थ्य सचिव थे उन दिनों सीएमओ रही डॉ. किरण मल्होत्रा के कार्यकाल में हुई घपलेबाजी परत दर परत खुलने लगे हैं। पैसा लेकर ऐसे 10 लोगों को कम्पाउण्डर बना दिया जो गणित संकाय के थे। जबकि विज्ञापन में बायो संकाय मांगा गया था।
आम लोगों के जीवन की देखरेख के लिए बने स्वास्थ्य विभाग में रमन सरकार की क्या मंशा रही है यह साफ तौर पर यहां हुई घपलेबाजी की परतें खुलने से सामने आने लगी है। स्वास्थ्य जैसे गंभीर विभाग में यह घपलेबाजी तब हुई जब वे व्यक्ति स्वास्थ्य सचिव थे जिन्हें सरकार ने आयकर विभाग के छापे के बाद बहाली में एक मिनट की भी देर नहीं की।
इस बार जो मामला सामने आया है वह विभाग द्वारा कम्पाउण्डर (फार्मेसिस्ट) के पदों पर भर्ती का है। वैसे तो यहां संविदा नियुक्ति से लेकर अनुकम्पा नियुक्तियां तक पैसे लिए बिना नहीं की जाती। बताया जाता है कि जब डॉ. किरण मल्होत्रा सीएमओ थी तब फार्मेसिस्ट में भर्ती का विज्ञापन निकाला गया था। विज्ञापन में जो शर्ते थी उसके मुताबिक बायोलॉजी के विद्यार्थी ही इसके लिए पात्र हो सकते थे लेकिन कहा जा रहा है कि जब नियुक्तियां दी गई तो 10 ऐसे लोगों को नौकरी दी गई जो गणित संकाय से थे। मामले की तब शिकायत भी हुई लेकिन उच्चस्तरीय लेन-देन कर मामला दबा लिया गया। एक बार यह मामला फिर खुलने लगा है और शीघ्र ही जांच कमेटी बनाए जाने की चर्चा है।
वैसे कर्मचारियों का कहना है कि यदि यहां की जांच करानी है तो उच्च स्तरीय कमेटी बनानी चाहिए जो सचिव बाबूलाल अग्रवाल और डॉ. किरण मल्होत्रा के कार्यकाल की जांच करें। कर्मचारियों का दावा है कि यदि इन दोनों अधिकारियों के कार्यकाल की जांच हुई तो कई लोग जेल के सलाखों के पीछे जाएंगे। शायद यही वजह है कि हर बार जांच की मांग तो होती है लेकिन पूरे मामले को दबा दिया जाता है। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग के घपले परत दर परत खुलते जा रहे हैं और सरकार की इस ओर अनदेखी को लेकर आम लोगों में बेहद तीखी प्रतिक्रिया है।

बुधवार, 28 जुलाई 2010

सजायाफ्ता को बर्खास्त करने की बजाय बहाल कर दिया



ऐसी दमदारी तो सिर्फ
बृजमोहन के विभाग में ही
ऐसी दमदारी तो प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में ही हो सकती है। जिस व्यक्ति को घूस लेने के आरोप में सजा सुनाई गई हो उसे बर्खास्त करने की बजाय शिक्षा विभाग ने बहाल कर दिया और अब जब मामला मुख्यमंत्री के जिले का हो तो क्या कहना।
मामला जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर कवर्धा में रहे नेतराम वर्मा का है। नेतराम वर्मा को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 31 जुलाई 2001 को दो हजार रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। नेतराम वर्मा ने नरेन्द्र कुमार मिश्रा को पदोन्नति देने पैसे की मांग की थी।
इस मामले में 21 जुलाई 2008 को कवर्धा के विशेष न्यायाधीश ने नेतराम वर्मा को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की अलग-अलग घटनाओं के तहत दोषी पाते हुए क्रमश: 6 माह और एक साल के सश्रम कारावास और दस हजार रुपए की सजा सुनाई थी। यह सजा साथ-साथ चलना था। सजा के बाद एंटी करप्शन ब्यूरों ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर नेतराम वर्मा को बर्खास्त करने की गुजारिश की।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि शिक्षा विभाग ने इस घूसखोर अधिकारी को बर्खास्त करने की बजाय इन्हें कोरिया जिले में प्राचार्य बना दिया। इस संबंध में जब संचालक लोक शिक्षण संचालनालय के.आर. पिस्दा से बात की तो उन्होंने कहा कि उनकी बहाली का निर्णय शासन स्तर पर किया गया है। इस संबंध में जब पतासाजी की तो विभाग में उच्च स्तर पर लेन-देन की चर्चा सामने आई और मंत्री पर भी आरोप लगाए गए।
दुनिया में अपनी तरह का मिसाल कायम करने वाले इस कारनामें से शिक्षा जैसे पवित्र संस्थानों की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मामले में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे।

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

मत्स्य में भी चम्पू की चौधराहट


हाईकोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद भी पदोन्नति दी जा रही
यह सरकार की मनमानी है या विभागीय मंत्री चन्द्रशेखर साहू का दंभ यह तो आम लोग ही जाने लेकिन कलेक्टर से लेकर संचालक तक ने जिन्हें अनुभव प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया और हाईकोर्ट ने संविलियन की याचिका खारिज कर दी इन लोगों को न केवल परमानेंट नौकरी दी जा रही है बल्कि उन्हें प्रमोशन देने की तैयारी भी की जा रही है।
मामला मछली पालन विभाग का है। इस विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार की कहानी तो अलग ही है लेकिन जिस तरह से उच्च स्तर पर यहां मनमानी चल रही है वह अंयंत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। आश्चर्य का विषय तो यह है कि यहां चल रहे मनमानी को कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू का समर्थन प्राप्त बताया जा रहा है। बताया जाता है कि यहां एजेंसी के कर्मचारियों को जिस तरह से संविलियन किया गया वहीं से गड़बड़ी शुरू हुई।
सूत्रों के मुताबिक बी.के. शुक्ला और एम.डी. त्रिपाठी एजेंसी में मत्स्य पालन प्रसार कर्मचारी के रूप में पहले पदस्थ थे। इसके बाद जब एजेंसी बंद हुई तो इन्हें विभाग में संविदा कर्मी के रूप में रख लिया गया। इसके बाद इनका संविलियन का प्रयास हुआ और उच्च स्तर पर लेन-देन कर संविलियन कर दिया गया।
बताया जाता है कि लोकसेवा आयोग के द्वारा चयन के समय जब इन दोनों कर्मचारियों के नाम सामने आये तो कलेक्टर ने अनुभव प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया चूंकि तब एजेंसी का चेयरमेन कलेक्टर होता है इसलिए अनुभव प्रमाण पत्र के अभाव में इनका चयन नहीं होना था। लेकिन सूत्रों के मुताबिक शुक्ला-त्रिपाठी की जोड़ी ने तब तत्कालीन संचालक एस.एन. चटर्जी से सांठ-गांठ कर अनुभव प्रमाण पत्र हासिल कर लिया और इस मामले में बड़ी रकम के लेन-देन की चर्चा है।
चूंकि एजेंसी के कर्मचारी मत्स्य विभाग का कर्मचारी नहीं हो सकता इसलिए संविलियन का मामला हाईकोर्ट चला गया और हाईकोर्ट ने 2242005 के द्वारा शुक्ला त्रिपाठी के संविलियन संबंधी मामला खारिज कर दिया। लेकिन इस मामले को छिपा दिया गया और इन्हें जानबूझकर शासन के कर्मचारियों को मिलने वाला समस्त लाभ दिया गया। इधर इतने लफड़े के बाद भी इन दोनों को पदोन्नति देने की तैयारी की जा रही है। बताया जाता है कि इस मामले में कृषि मंत्री की रूचि से रायपुर ही नहीं राजनांदगांव में भी जबरदस्त चर्चा है।
हमारे राजनांदगांव संवाददाता के मुताबिक एजेंसी के कर्मचारियों की संविलियन और पदोन्नति के मामले को लेकर यहां जबरदस्त चर्चा है और बताया जाता है कि कृषि मंत्री ने इन दोनों कर्मचारियों की शिकायत पर खामोशी ओढ़ ली है। बहरहाल मछली पालन विभाग में चल रहे इस घपले बाजी में मंत्री चन्द्रशेखर साहू का नाम सामने आने से जबरदस्त हड़कम्प है और आने वाले विधानसभा में भी यह मामला रंग ला सकता है।

सोमवार, 26 जुलाई 2010

आदमखोर की राह

राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी वास्तव में महात्मा थे। तभी तो उनकी कही बात आज भी प्रासंगिक है। गांधी की जय जयकर अब भी होती है और होती रहेगी लेकिन उन्हें मानने वाले भी उनकी बातों पर एक फीसदी भी नहीं चलते ।
देश के लिए लंगोट में निकलकर उन्होंने भारतीयता की पहचान विश्व स्तर पर बनाई थी उनके कार्यो का लोहा आज भी उनके विरोधी मानते है। गांधी के देश में गांधी अनुयायी इस तरह हो जायेंगे किसी ने कल्पना नहीं की थी। जनता की गाढ़ी कमाई को मिल बैठकर खाने की रणनीति की शुरूआत तो उसी दिन शुरू हो गई थी जब देश सेवा का दावा करने वाले सांसद-विधायकों ने अपने लिए वेतन-भत्तों के लिए कानून बना लिया।
पता नहीं इन्हें वेतन देने की सोच के पीछे कौन लोग थे लेकिन मेरा दावा है कि इसके पीछे वेतन भोगी कर्मचारी-अधिकारी जरूर रहे होंगे जिन्हें डर था कि यदि शेर को मानव खून नहीं मिलेगा तो वह आदम खोर नहीं बन सकेगा और जब नेता को वेतन की बीमारी लग जायेगी तो वह पैसों के पीछे भागेगा और नौकरशाह की राह आसान हो जायेगी। यही वजह है कि अब भी लोग अंग्रेजों के शासन व्यवस्था की तारीफ करते नहीं थकते।
सबसे पहले तो नेताओं और अधिकारियों को जो वेतन दिया जाता है उसे समझना जरूरी है। दरअसल शासन के पास पैसा आने के मोटे तौर पर दो ही साधन है। पहला साधन संपदा से और दूसरा साधन है आम लोगों पर लगाया जाने वाला टैक्स। इन्ही राशि से वेतन दिये जाते हैं।
एक गरीब से गरीब आदमी भी टैक्स देता है और इसे किस तरह से हमारे रक्षक दुरूपयोग कर रहे हैं किसी से छिपा नहीं है। नेताओं को जनप्रतिनिधि कहना ही बेमानी है क्योंकि वह चुनाव जरूर जीतता है लेकिन उसे उसके काम के बदले वेतन दी जाती है और वेतन लेने वाला मालिक नहीं नौकर होता है और लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि वेतन लेने वाला नौकर तय करता है कि मालिक किस तरह से जिन्दगी जिए। यह तो आ बैल मुझे मार वाली कहावत को ही चरितार्थ करता है। आम आदमी यह सोचकर विधायक-सांसद बनाते है कि ये लोग उनका स्तर सुधारेंगे लेकिन आजादी के 60 साल बाद भी लोगों को न पीने का पानी उपलब्ध है न चिकित्सा या शिक्षा सुविधा ही उपलब्ध है।
वेतन भोगी नेताओं-अधिकारियों का रहन-सहन आम आदमी से ऊचा होता जा रहा है और जो लोग अपना पेट काटकर इन्हें काम पर रखा है वे लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर हैं। क्या यह हमारे सांसदों-विधायकों का दायित्व है कि संसद में बैठकर वे चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर केवल अपने हितों का कानून बनाये और जनता को प्रताड़ित करें।
हमारी लड़ाई इस व्यवस्था को बदलने की है हम चाहते हैं कि जनप्रतिनिधि कहलाने वाले वेतन व पेंशन से परहेज करें और जिस दिन जनप्रतिनिधि ऐसा कर पायेंगे वे भ्रष्टाचार को रोक लेंगे तब अकेले वेतन पाने वालों से वे काम ले सकेंगे अन्यथा मिल बांटकर खाने की रणनीति में आदमखोर होती व्यवस्था में रोज नए आदमखोर शेर पैदा होंगे जो अपनी भूख ही मिटाएगा। जनता जाये भाड़ में।

रविवार, 25 जुलाई 2010

लो खुद ही देख लो। रोम का जलना और नीरों का बांसुरी बजाना...

यह किस्सा बहुतों ने कईयों बार सुना होगा कि जब रोम जल रहा था तब नीरों जी चैन की बांसुरी बजा रहे थे। यह किस्सा फिर दोहराई जा रही है और छत्तीसगढ़ की राजधानी में यही सब हो रहा है। सफाई नहीं पानी नहीं बिजली नहीं और उपर से अधिकारियों के थोक में तबादले और एक तरफा कार्यभार छोड़ने के आदेश देकर बांसुरी बजाने मुरख विदेश चला गया। इन्होंने टिकरापारा से लेकर अवैध कालोनी में भी आग लगाई दवा बाजार भी इसकी आग से झुलस रहा है।
क्या मुरख को बांसुरी बजाने विदेश जाना जरूरी था जबकि बिरजू की बांसुरी का बेसुरा राग क्या कम पड़ गया था। बिरजू की बांसुरी के सुर में तो वैसे भी कांग्रेसी नाच रहे हैं। वे इस राग से इतने मतहोश है कि इस राग की कर्कशता इन्हें सुनाई नहीं पड़ रही है। वैसे भी बिरजू को बांसुरी बजाने में महारत हासिल है। भाव मंगिमा ऐसी कि कोई भी तारीफ कर ले और जब बांसुरी से नगदी भी निकले तो कान में कर्कशता कहां सुनाई पड़ने वाली है।
महापौर किरणमयी नायक खुश थी कि मुरख-बिरजू की बांसुरी के प्रभावशाली तान के बाद भी वह चुनाव जीत गई लेकिन पंद्रह दिन में ही उन्हें पता चल गया कि बिरजू की बांसुरी का प्रभाव कांग्रेसियों पर किस कदर हावी है। अभी सभापति के हार से महापौर उबर भी नहीं पाई थी कि सामान्य सभा की बैठक, निगम अधिकारियों की ड्रामेबाजी से वे दुखी हो गई। आदमी जब कुछ अच्छा करना चाहे और उस पर बेवजह अंड़गा हो तो दुखी होना स्वाभाविक है।
एक तो निगम के पास वैसे ही फंड की कमी है तभी तो तात्यापारा से लेकर शारदा चौक के चौड़ीकरण का काम रुका हुआ है। ऐसे में सरकार पर जब कांग्रेसी महापौर वाले निगमों के लिए फंड नहीं देने के आरोपोें के साथ अधिकारियों के सहयोग नहीं करने का आरोप हो तो मामला गंभीर हो जाता है। राजधानीवासियों को पहले ही कौन सा सुख दे दिया है सरकार ने जो अब नए ड्रामेबाजी व राजनीति की जा रही है। गंदगी और बजबजाती नालियों से वैसे ही त्रस्त है लोग। पीने का पानी तक ठीक से नसीब नहीं हो रहा है। निगम के कांक्रीट बिछाने वाली नीति ने यहां के पर्यावरण को पहले ही प्रदूषित कर दिया है अप्रैल में 45 का ताप भुगतना पड़ रहा है। बरसात में सड़कों-गलियों तक पानी भर जा रहा है। उल्टी दस्त जैसे मौसमी बीमारियां भुगतनी पड़ती है। क्या इसे शहर का जलना नहीं कहा जा सकता और ऐसे में जिम्मेदार लोग घुमने फिरने निकल जाए और अपना राग अलापे तो सम्राट नीरो की यादें ही ताज होगी।
भाजपा कांग्रेस बेशक राजनीति करें लेकिन अंधेरगर्दी न मचाये। शांत जनता को न कुरेदे। क्योंकि अब वो जमाना नहीं है कि नीरों चैन से बंशी बजा ले क्योंकि अब जनता भी पहले जैसी नहीं है वह बांसुरी बजाने वाले की बांसुरी तोड़ने की बजाय बजाने वाले को ही बजा देगी।

ग्राम कोटवार का हुक्का-पानी बंद

धमतरी। कुरुद तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत सेमरा के आश्रित ग्राम खपरी (सिलौटी) के ग्राम कोटवार खोरबहरा राम कोसरे का हुक्का-पानी ग्राम के उपसरपंच नारद साहू के निर्देशन में बंद करा दिया गया है। ग्राम कोटवार का कसूर केवल इतना है वह सतनामी समाज से तालुक्कात रखता है। सतनामी समाज ग्राम खपरी के समस्त समाज के व्यक्तियों के द्वारा अपने आरध्य देव श्री गुरुघासीदास जी का प्रतीक चिन्ह जैतखम्भ का निर्माण आपसी सहमति से किया गया है।
किन्तु द्वेषवश ग्राम कोटवार का हुक्का-पानी बंद करना स्वतंत्र भारत में न्याय संगत नहीं है। वर्तमान में गांव के उपसरपंच नारद साहू के निर्देशन में अवैध वसूली कर अतिक्रमण कराया जा रहा है। उपसरपंच ने ग्रामवासियों से निम्न रकम की मांग की है। चंद्रहास से 31 सौ रुपए, पिताम्बर से 35 सौ, रेणु से 18 सौ, भगवानी से 18 सौ, उत्तर से 32 सौ, गौतम से 28 सौ, मनोहर से 18 सौ, पुनीत से 21 सौ, इंद्रकुमार से 26 सौ, रामू से 21 सौ, चैतराम से 43 सौ, अनुज से 41 सौ तथा नारायण से 4 सौ एवं ग्राम के कोटवार खोरबहरा राम कोसरे से 52 सौ रुपए की मांग की गई थी जिस पर ग्राम कोटवार ने ऐतराज करते हुए अपने मंत्रालय 13 वर्ष पूर्व बने तोड़ने से असमर्थता जाहिर कर दिया। जिसके कारण शासकीय सेवा से बर्खास्त करने का डर दिखा कर उनके मूत्रालय को तुड़वाना पड़ेगा अन्यथा तुम्हारी नौकरी नहीं रहेगी। ग्राम कोटवार के द्वारा ऐसे प्रकरणों पर समानतापूर्वक विचार करने की बात कहने पर उनको नौकरी से निकालने की धमकी बार-बार दिया जा रहा है। इसी बीच सतनामी समाज ग्राम खपरी के द्वारा अपने ईष्टदेव का प्रतीक चिन्ह जैतखम्भ निर्माण किया गया। निर्माणाधीन रहते हुए इस पर किसी ने भी विरोध प्रकट नहीं किया किन्तु जबपूर्णत: निर्माण पूरा हो जाने एवं उस पर झंडा चढ़ जाने के उपरांत वहां के उपसरपंच द्वारा ग्राम कोटवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। इस स्वतंत्र भारत में जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जहां सभी धर्म के अनुइयों का आपने धर्म को मानने एवं पूजने का अधिकार दिया जाता है। इस प्रकार का कृत्य इस देश की धर्मनिरपेक्षता सामाजिक सौहाद्रता को बिगाड़ता है। उपसरपंच का यह कारनामा भेदभाव, छुआछूत, आप्रश्यिता की भावनाओं को जन्म देता है। सतनामी समाज उस गांव में आजादी के पूर्व से कई पीढियों से निवासरत है वहां के ग्रामीणों के दुख-सुख में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देता आया है। किन्तु उपसरपंच नारद साहू के द्वारा विद्वेषवश अपने स्वार्थ सिध्दी के लिए किया गया कार्य अपनी पंचायत बाड़ी में एक छतर राज का सिक्का जमाने की पहल माना जा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य पर सरपंच एवं पंचोगण ने अपनी अनिभिज्ञता जाहिर की है। जहां पर जैतखम्भ का निर्माण किया गया है। वह जगह 5 फीट-5 फीट का जगह है। वह पर ना किसी प्रकार का सरकारी योजना के तहत ना ही भवन निर्माण प्रस्तावित नहीं है ऐसे समाजद्रोही उपसरपंच नारद साहू पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए। अन्यथा सतनामी समाज महासंघ एवं अखिल भारतीय सतनामी कल्याण समिति के द्वारा उग्र आंदोलन की जाएगी। जिसकी जवाबदारी शासन की होगी इसी परिपेक्ष्य में सतनामी समाज महासंघ पाटन ब्लॉक के सचिव दिनेश कोसरे एवं अखिल भारतीय सतनामी कल्याण महासभा जिला धमतरी के सचिव लादूराम कुर्रे के संयुक्त बयान से जारी किया गया है।
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धनेन्द्र साहू पर बेबुनियाद आरोप
अभनपुर। जनपद सदस्य शशिप्रकाश साहू ने बताया कि उस दिन वस्तुस्थिति की जगह खुद उपस्थित था ऐसी कोई बात नहीं हुआ है। जिसमें धनेन्द्र साहू ने किसी प्रकार गांव वालों को धमकी दिया है। जबकि गांव के दो-चार महिलाओं के साथ मंत्रीजी के परिवारवाले मानिकचौरी प्रवेशद्वार पर नहर पुल के पास गाड़ी के सामने धरने पर बैठ गए और उसे अंदर जाने नहीं दे रहे थे। पुलिस के उच्चाधिकारी के समझाइश के बाद धनेन्द्र साहू के साथ केवल पांच व्यक्तियों को मिलने दिया गया। धनेन्द्र साहू केवल यही मांग कर रहे थे कि मृतक परिवारवालों से मिलकर उसे केवल सांत्वना देना चाहते थे। क्योंकि मृतक परिवार कांग्रेस से जुड़े हुए थे। जबकि वस्तुस्थिति में भाजपा के आसपास के सैकड़ों कार्यकर्ता पहुंच गए और धनेन्द्र साहू वापस जाओ के नारे लगाने लगे और उसके सभी कार्यकर्ता वहीं हंगामा करने लगे। चूंकि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का संगठन चुनाव नजदीक है और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अभनपुर विधानसभा में अधिक से अधिक कांग्रेस से जुड़े हुए प्रतिनिधि चुनकर आए हैं। तो काग्रेस एवं धनेन्द्र साहू की साफ छवि में बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर उसके ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं। भूपेश बघेल जी को गांव के अंदर प्रवेश करने ही नहीं दिया गया जिससे भूपेश बघेल मृतक परिवार से मिलने से पहले ही वहां से चले गए है।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

किरण के कारनामों पर स्वास्थ्य खराब

बाबूलाल थे तब स्वास्थ्य सचिव
भले ही छत्तीसगढ़ सरकार ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के कथित पोल खोल की धमकी से उनकी बहाली कर दी हो पर उस समय सीएमओ रहे डा. किरण मल्होत्रा के कारनामों ने पूरे महकमें को हिला दिया है। ऊपर से स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल की चुप्पी से आम लोगों के जीवन से जुड़े इस विभाग के जानलेवा कारनामों ने सरकार के लिए कलंक साबित होने लगा है।
स्वास्थ्य विभाग में घपले की कहानी नई नहीं है लम्बे चौड़े बजट वाले विभाग में सचिव से लेकर मंत्री तक पैसा पहुंचाने की खबरों के अलावा काम लोगों के जीवन से खिलवाड़ ने छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग को पूरे देश में चर्चा में ला दिया है। खासकर स्वास्थ्य सचिव रहे बाबूलाल अग्रवाल के यहां पड़े आयकर के छापे और उसके बाद उनकी तत्काल बहाली से सरकार भी कटघरे में खड़ी है। वैसे तो घोटाले की कहानी यहां नई नहीं है। कहा जाता है कि जब बाबूलाल अग्रवाल इस विभाग के सचिव थे तब भी इस विभाग में संलग्नीकरण, अनुकम्पा नियुक्ति, पल्स पोलियों में फर्जी बील, बिना कार्य के वेतन, बर्खास्त कर्मियों को वेतन तथा फार्मेसिस्ट में नियुक्ति में धांधली सहित मच्छरदानी से लेकर डाफ्टरलर घोटाले भी हुए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस दौरान सीएमओ रही डॉ. किरण मलहोत्रा के कारनामें अब सामने आने लगे है। नए स्वास्थ्य सचिव विकास शील की इसमें कितनी रूचि है यह तो पता नहीं लेकिन कहा जाता है कि विधानसभा तक को यहां से गलत जानकारियां दी जाती है। सूत्रों की माने तो यहां 15 से 20 हजार रुपए लेकर 120 कर्मचारियों व अधिकारियों को मूल स्थापना की जगह से जिले के आसपास संलग्न कर दिया गया और संचालक आदेश पर आदेश निकालते गए लेकिन कार्यमुक्त नहीं किया गया।
इसी तरह 30 ऐसे कर्मचारी को ड्रेसर, वार्ड बॉय, कूक वाटर मेन के पद पर 15-15 हजार रुपए लेकर संलग्न करने की कहानी की ही जांच की जाए तो कई जेल की सलाखों के पीछे होंगे। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग के काले कारनामों पर मंत्री की खामोशी को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
बाक्स......
डेढ़ लाख में गलत
ढंग से अनुकम्पा नियुक्ति
स्वास्थ्य विभाग में घपलेबाजी से पेट नहीं भरने वाले अधिकारियों की करतूत पर स्वास्थ्य सचिव की चुप्पी आश्चर्यजनक है। सरकार ने नियम बनाए हैं कि यदि पति-पत्नी दोनों सरकारी नौकरी पर हो तो किसी एक ही मृत्यु पर परिवार वाले को अनुकम्पा नहीं दी जाएगी। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में ऐसा नहीं चलता। मामला मयंक सेन को अनुकम्पा नियुक्ति देने का है। सेवकराम सेन छुरा में लेखापाल के पद पर थे तथा उनकी पत्नी कंचन सेन महासमुंद न्यायालय में रीडर के पद है बावजूद सेवकराम की मृत्यु उपरांत मयंक सेन को अनुकम्पा नियुक्ति दे दी गई। इसके पीछे डेढ़ लाख रुपए का लेन देन की चर्चा है।

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

गार्डन की जमीन को हड़प लेना चाहता है मंत्री का भाई


कॉलोनीवासी भयभीत, कुछ कोर्ट गए
प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री का भाई की करतूत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। हालत यह है कि उनकी इस करतूत की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की गई। पहले ही विवादस्पद जमीन कौड़ी के मोल खरीदने के बाद भाई की पहुंच का फायदा उठाकर जमीन खाली कराने में माहिर इस मंत्री भाई की नजर इस बार गीताजंलि नगर के गार्डन के लिए छोड़ी जमीन पर है।
छत्तीसगढ़ में वैसे तो राम नाम की लूट नई नहीं है लेकिन मंत्रियों के रिश्तेदारों में जिस तरह से सत्ता का दुरुपयोग कर अनाप-शनाप काम किए जा रहे हैं किसी से छीपा नहीं है। बताया जाता है कि जब बृजमोहन अग्रवाल गृहमंत्री थे तब उनके परिवार वालों के कारनामों की वजह से ही उन्हें गृहविभाग छोड़ना पड़ा था। इसके बाद उनके रिश्तेदारों द्वारा चोरी का लोहा ट्रक के ट्रक गायब करके हजम करने को लेकर सरकार की मुसिबत बढ ग़ई थी। कैलाश अग्रवाल व उसके दामाद दिनेश अग्रवाल पर सरकार को मजबूरी में शिकंजा कसना पड़ा था।
इधर दमदार मंत्री के भाई की नाच नचैया के साथ-साथ जमीनी कारोबार में दिलचस्पी ने नया विवाद खड़ा किया है। इस मंत्री भाई पर दादागिरी और पहुंच के बल पर समता कॉलोनी में मोहबिया वकील की जमीन कब्जा करवाने के अलावा दिल्ली के किसी डॉ. मल्होत्रा की जमीन पर कब्जा करने का आरोप भी लग चुका है। ताजा मामला गीतांजलि नगर में गार्डन के लिए छोटी गई जमीन के कब्जे को लेकर है। कहा जाता है कि इस जमीन पर बकायदा गार्डन के लिए सुरक्षित बोर्ड लगाए गए थे और पिछले हफ्ते अचानक किसी ने यह बोर्ड हटाकर इस जमीन पर कब्जे की कोशिश की। बताया जाता है कि जब कॉलोनीवासियों ने इसका विरोध किया तो उन्हें इसी दमदार मंत्री के भाई के नाम पर डराया-धमकाया गया।
इस संबंध में जब हमने डॉ. कबीर से संपर्क करना चाहा तो वे उपलब्ध नहीं हुए लेकिन कॉलोनीवासियों ने इस दमदार मंत्री के भाई की करतूत पर तीव्र नाराजगी जाहिर की दूसरी तरफ जब इस मामले में गीताजंलि सोसायटी के प्रकाश दावड़ा से संपर्क किया तब पता चला कि कब्जे को रोकने न्यायालय से स्थगनादेश लाने की तैयारी की गई है। बहरहाल दमदार मंत्री के भाई की जमीनी मामले में गुण्डागर्दी थमने का नाम नहीं ले रहा है और ऐसा ही चलता रहा तो किसी दिन सरकार को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।

शाबास! मंत्री-विधायक

मोवा के लोग ही नहीं इस रोड से गुजरने वाले भी पिछले सालभर से त्रस्त हैं। रेलवे की अपनी जिद है और प्रदेश सरकार का पीडब्ल्यूडी विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुकर रहा है। यहां के लोग सबका चक्कर लगा चुके है। छत्तीसगढ़ की मीडिया इस मार्ग से गुजरने वालों की परेशानियां लगातार छाप रही है और सरकार तथा उसके पीडब्ल्यडी मंत्री को इससे कोई सरोकार नहीं है।
मोवा के लोग आंदोलित हैं लेकिन वे कोई ऐसा आंदोलन नहीं चाहते जिससे आम लोगों की तकलीफ बढ ज़ाए। इसके बाद भी सरकार की खामोशी को कोई क्या कहेगा। मोवा में रेलवे ओवर ब्रिज का काम चल रहा है। सालभर से चल रहे इस काम की वजह से घंटो यातायात जाम रहता है और सड़कों पर उभर आए गङ्ढों से गंभीर दुर्घटनाएं तक हो चुकी है। लोगों ने जब चीख-पुकार मचाई तो छत्तीसगढ़ सरकार ने सर्विस रोड को दुरुस्त किया। लेकिन साल भी पूरा नहीं हुआ और सड़के उखड़ गई लोग फिर अनजानी दुर्घटना के शिकार होने लगे। सर्विस रोड कितने की बनी इसके एवज में किस-किस को कमीशन मिला यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। तभी तो सड़के सालभर भी नहीं चली।
लेकिन वाह रे जनता। जय हो। उसने उखड़ती सड़कों को नजर अंदाज कर पीडब्ल्यूडी मंत्री को धन्यवाद ज्ञापित कर आए। मोवा आंदोलनकारी कहते हैं कि हम पॉजेटिव्ह सोचते हैं। इसलिए हम किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहते और इसलिए वे आंदोलन को गांधीवाद तरीके से ही चलाना चाहते हैं।
इन दिनों वे लोगों को सांसद-विधायकों के नाम पोस्ट कार्ड लिखवाते घूम रहे हैं। साथ ही मांग भी कर रहे हैं कि इस प्रदेश के विधायक व मंत्री यदि विधानसभा जाते हैं तो वे वीआईपी रोड से जाने की बजाय मोवा मार्ग से जाएं। वह भी बिना वीआईपी व्यवस्था के। पता नहीं मोवा वासियों की मांग सरकार में बैठे मंत्री व विधायक मानते हैं या नहीं लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को इस मार्ग से जरूर गुजरना चाहिए। ताकि उन्हें पता चल सके इस मार्ग में पीडब्ल्यूडी ने कितना खर्च किया है। हम किसी दूसरे की तकलीफ को किसी अन्य को महसूस करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। लेकिन इस बहाने सड़क निर्माण में लगे एजेंसियों की करतूत को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं।
बृजमोहन अग्रवाल जिस दमदारी के लिए जाने जाते हैं। क्या पूरे प्रदेश में पीडब्ल्यूडी में चल रहे कमीशनखोरी को वे रोक पाए हैं। यदि ओवरब्रिज के निर्माण में देर है तो क्या प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे सर्विस रोड को अच्छा बना दे ताकि जनता परेशान न हो। यदि सर्विस रोड से सालभर के भीतर उखड़ गई तो जिम्मेदारी क्या इसलिए तय नहीं की जा रही है क्योंकि कमीशन मंत्रियों तक पहुंचाई जाती है। मोवावासियों का वहां से गुजरने वालों की हाय क्या सरकार को नहीं लगेगी। सालभर से किसी मार्ग से गुजरने वालों की परेशानी नहीं सुनना क्या अंधेरगर्दी नहीं है। मैं तो मोवा के आंदोलनकारियों की हिम्मत की दाद देता हूं कि वे इस अंधेरगर्दी के आलम में भी मंत्री से लेकर सभी को धन्यवाद दे गए। लेकिन अब बारी सरकार और विधायकों की है कि वे धन्यवाद के बदले विधानसभा का पूरा सत्र इस रास्ते से होकर अटेंड करें।

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

अरबों की लूट दिलेरी से करते हैं नेता-अधिकारी

दिखने को तो ये छोटी सी बात है लेकिन क्या कोई यह कल्पना कर सकता है कि इस देश में हर साल जनता के खजाने का अरबों रुपया लालबत्ती व सरकारी वाहनों के दुरुपयोग पर चला जाता है। मितव्ययता की बात तो सभी सरकारें करती हैं लेकिन नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि सारे आदेश धरे के धरे रह जाते हैं और आम आदमी अपने हिस्से की राशि लूटते हुए चुपचाप देखता रह जाता है।
हमारी लड़ाई इसी बात की है कि एक गरीब से गरीब आदमी अपना पेट काट कर टेक्स देता है। नमक तेल से लेकर जीवनोपयोगी हर चीजों पर सरकार टेक्स लेती है और तब सरकार के खजाने में पैसा जमा होता है। इन पैसों का दुरुपयोग भी किसी से छिपा नहीं है। हम यहां जनता के इसी खजाने को लूटे जाने के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। इसलिए ऐसे मुद्दे आम लोगों के बीच ला रहे हैं जिसे जनता रोज देखती है लेकिन उसे पता नहीं है कि सरकारी खजाने में इस वजह से अरबों रुपए की डकैती हो रही है।
पूरे देश में नेताओं और अधिकारियों को सरकारी वाहन की सुविधा दी जाती है। यह सुविधा सिर्फ सरकारी कामकाज के लिए दी जाती है लेकिन इसका दुरुपयोग निजी कार्यों के रुप में किया जाता है। मंत्री हो या अधिकारी सभी सरकारी वाहनों का दुरुपयोग अपने परिवार वालों को घुमाने-फिराने, बच्चों को स्कूल-कॉलेज लाने ले जाने और परिवार के लोगों को शॉपिंग कराने में किया जाता है। एक आंकड़ों के मुताबिक सरकारी वाहनों के ऐसे दुरुपयोग से हर साल सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। छत्तीसगढ में ही मुख्यमंत्री से लेकर कई ऐसे मंत्री है जिनकों मिले सरकारी वाहनों का उपयोग निजी कार्यों के लिए किया जाता है। जबकि अधिकारियों के बच्चे को स्कूल-कॉलेज तक ऐसे वाहनों से पहुंचते देखा जा सकता है।
जनता यह सालों से देख रही है लेकिन वह या तो इस बात से अनजान है या फिर वह बेवजह दुश्मनी की वजह से खामोश है। मीडिया तो मय चित्र सबूत इस तरह के दुरुपयोग की लाखों तस्वीरें छाप चुकी है लेकिन इस मामले में कभी किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जबकि इस वजह से अरबों रुपए सरकारी खजाने से खाली हो रहे हैं।
कभी-कभी सरकार में बैठे मंत्री मितव्ययता का आदेश जारी कर देते है ताकि जनता यह भुलावे में रहे कि सरकार ऐसे दुरुपयोग को रोकने गंभीर है जबकि वास्तविकता इसके विपरित है। क्या सरकार तभी कार्रवाई करेगी जब जनता ऐसे वाहनों के दुरुपयोग पर जुलूस निकाल दे या दुरुपयोग करने वालों की बेइाती कर दे। हमारा अभियान का मकसद भी यही है कि इस तरह के निजी दुरुपयोग को लेकर जनता सजग हो जाए क्योंकि और ऐसे लोगों को मौके पर ही पकड़कर पुलिस को सौंपे या थाने में रपट लिखाए। जनता जागेगी। जरूर जागेगी। हमारा दृढ़ विश्वास है और ऐसे दुरुपयोग की वजह से हर साल सरकार को लग रहे करोड़ों रुपए की चपत से निजात मिले। ताकि महंगाई पर कुछ तो काबू की जा सके।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

सरकार की करतूत पर कांग्रेसियों की खामोशी से उठते सवाल


कांग्रेसियों की सेटिंग या बी टीम?
यह तो अब मारा तो मारा अब मारा के देख की कहावत है या चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत है यह तो जनता ही जाने लेकिन छत्तीसगढ़ में लगातार हार के बाद भी कांग्रेसियों ने जिस तरह से भाजपा के खिलाफ खामोशी ओढ़ ली है उससे आम लोगों में कई तरह की चर्चा है। खासकर आधे छत्तीसगढ़ में शासन नहीं वाली सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद भी कांग्रेसियों की खामोशी को लेकर कोई सेटिंग बता रहा है तो कोई इसे भाजपा की बी टीम बताने से नहीं चूक रहा है।
छत्तीसगढ़ में लगातार चुनाव हारने से पस्त हो चुके छत्तीसगढ़ कांग्रेस की भूमिका को लेकर सवाल इसलिए उठाये जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेसी आंदोलन से बच रहे है। छसपा नेता अनिल दुबे तो साफ कहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस भाजपा की बी टीम बनकर काम कर रही है। जबकि बिजली से लेकर धर्म के अनादर की बात हो। दलई से लेकर बाबूलाल अग्रवाल का मामला हो या फिर सुप्रीम कोर्ट की सरकार पर की गई टिप्पणी हो। कांग्रेसी कुछ भी बोलने से बचते रहे।
एक भाजपा नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि यदि स्टेट में कांग्रेस की सरकार होती और ऐसी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने किया होता तो वे गांव-गांव में सरकार का जुलूस निकाल देते और नाक में दम करत देते। लेकिन कांग्रेसी क्यों चुप हैं जनता समझ रही है।
इस संबंध में जब हमने प्रदेशाध्यक्ष धनेन्द्र साहू से बात की तो उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद सरकार को एक भी दिन बने रहने का अधिकार नहीं है लेकिन आंदोलन के सवाल पर वे बात टाल गए। अन्य नेता तो इस मामले में किसी भी तरह की टिप्पणी से बचते रहे और बड़े नेताओं पर मामला टाल दिया। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद कांग्रेसियों की खामोशी को लेकर आम लोगों में ही नहीं कांग्रेस के छोटे कार्यकर्ता भी बेहद नाराज हैं और इसकी शिकायत सोनिया गांधी से भी की जा रही है।

स्टेट प्लेन से बृजमोहन ने की पारिवारिक यात्रा


प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के द्वारा राय सरकार की हवाई जहाज से की गई पारिवारिक यात्रा पर विवाद खड़ा होने लगा है। हालांकि कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने फिलहाल इसमें कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है लेकिन इस मामले को विधानसभा में उठाए जाने की चर्चा है।
वैसे तो पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का विवादों से पुराना नाता है और इस बार वे पारिवारिक यात्रा में स्टेट प्लेन का उपयोग कर विवाद में आ गए है। हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक पीडब्ल्यूडी मंत्री ने गुरुवार को दोपहर करीब साढ़े 12 बजे स्टेट प्लेन लेकर परिवार सहित महाराष्ट्र गए थे जहां से वे शुक्रवार को दोपहर लगभग 2.30 बजे लौटे। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी, पुत्र के अलावा भतीजे व बहनोई के साथ उनके पीए श्री साहू भी थे। हालांकि वे किस कार्यक्रम में और कहां गए थे यह पता नहीं चला है क्योंकि उनका ससुराल गोंदिया है जबकि उनके अकोला जाने की चर्चा है।
उल्लेखनीय है कि स्टेट प्लेन के दुरुपयोग की चर्चा काफी अरसे से रही है और अक्सर कोई न कोई सरकारी कार्यक्रम तय कर इस तरह की हवाई यात्रा की जाती है। इस संबंध में हमने संबंधित पक्षों से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे। बहरहाल स्टेट प्लेन से पारिवारिक यात्रा को लेकर यहां कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार को लेकर सरकार बुरी तरह घिर चुकी है ऐसे में मंत्रियों की करतूतों से पार्टी की छवि पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

रविवार, 18 जुलाई 2010

जनसंपर्क आयुक्त का मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला!


बड़ों को बांटा-छोटों को डांटा
सरकार के इशारे पर हो रही कार्रवाई!
वैसे तो कोई भी सरकार अखबारों के खिलाफ मौका तलाशने से परहेज नहीं करती लेकिन भाजपा सरकार इस मामले में कुछ यादा ही बदनाम है। ताजा मामला जनसंपर्क आयुक्त एन. बैजेन्द्र कुमार का नवभारत में छपा वह बयान है जिसमें उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं के प्रचार संख्या की जांच करने कलेक्टरों से कहते हुए विज्ञापन नहीं देने की बात कही है जबकि बड़े अखबारों को विज्ञापन की एवज में एडवांश राशि दी जा रही है। इतने बड़े निर्णय क्या सरकार के इशारे पर हुए हैं या अपनी करतूत छापने वाले अखबारों को सबक सीखने किया गया है। यह जांच का विषय है।
वैसे मीडिया जगत में इस बात की चर्चा शुरु से रही है कि जब से एन. बैजेन्द्र कुमार ने आयुक्त जनसंपर्क का पद संभाला है तभी से वे सरकार के खिलाफ छपने वाली खबरों को लेकर मीडिया के खिलाफ तीखी टिप्पणी करना शुरु कर दिया था। हालांकि तब से किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया था। बताया जाता है कि उनके आने के बाद जनसंपर्क व संवाद में घपलेबाजी बढ़ने लगी और इसे दबाने नवभारत, भास्कर, नईदुनिया जैसे बड़े अखबारों को एडवांश में राशि दी जाने लगी और छोटे अखबार खासकर वे अखबार जो जनसंपर्क व संवाद की करतूत छाप रहे थे उन पर नकेल कसना शुरु कर दिया। उन्हीं छोटे अखबारों को विज्ञापन दिए जाने लगे जो चापलूसी करते थे और उनमें भी यादा चापलूसी करने वालों को अधिक विज्ञापन दिया जाने लगा।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ सरकार की रूचि शुरु से ही स्थानीय अखबारों व पत्रकारों को प्रताड़ित करने की मानी जाती है। यही वजह है कि भोपाल या प्रदेश के बाहर से प्रकाशित होने वाले अखबारों को मनमाने तरीके से अनाप-शनाप कीमतों का विज्ञापन दिया जाने लगा और छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले अखबारों को प्रताड़ित किया गया।
यहीं नहीं पिछले दिनों तो जनसंपर्क आयुक्त एन. बैजेन्द्र कुमार ने अति कर दी जब वे आरएनआई द्वारा डी ब्लाक किए जाने के मौके का फायदा उठाते हुए यह कह दिया कि इन अखबारों के प्रसार की कलेक्टरों द्वारा जांच कराई जाएगी और इन्हें विज्ञापन भी नहीं दिए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि एडवांश राशि का भरपूर विज्ञापन पाने वाले अखबार तो सरकार की चापलूसी करते हैं जबकि छोटे अखबार वाले सरकार के खिलाफ जमकर छापते हैं। यही वजह है कि सरकार ऐसे अखबारों पर शिकंजा कसने की कोशिश करती है। इस संबंध में श्रमजीवी पत्रकार संघ ने ऐसे अखबार वालों की बैठक बुलाते हुए कहा है कि सरकार के इशारे पर आयुक्त ने जो बात कही है उसके लिए वे माफी मांगे अन्यथा पत्रकार संघ सड़क की लड़ाई लड़ेगी।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

अंतत: उमेश अग्रवाल को हटाना पड़ा


भंडार गृह निगम के प्रबंध संचालक उमेश अग्रवाल को अंतत: सरकार को हटाना ही पड़ा। अपनी करतूतों से सदैव सुर्खियों में रहे उमेश अग्रवाल की वजह से खाद्य मंत्री पुन्नुलाल मोहिले और सचिव विवेक ढांड को विदेश यात्रा से आने के बाद मुख्यमंत्री के गुस्से का सामना करना पड़ा था।
ज्ञात हो कि भंडार गृह निगम के प्रबंध संचालक उमेश अग्रवाल के कारनामों की खबर विस्तार से प्रकाशित की थी। उनके रवैये से भंडार गृह के कर्मचारी न केवल नाराज थे बल्कि उनके खिलाफ भ्रष्ट अधिकारियों को पनाह देने व मंत्री के नाम से पैसा खाने का आरोप भी लगते रहा है।
बताया जाता है कि स्वयं को मंत्री का रिश्तेदार और ताकतवार बताने वाले उमेश अग्रवाल ने हद तो तब कर दी थी जब मुख्यमंत्री द्वारा विदेश यात्रा में प्रतिबंध लगाने के बाद वे मंत्री श्री मोहिले और सचिव विवेक ढांड के साथ निगम के खर्चे से विदेश चले गए थे। इस खबर के बाद मुख्यमंत्री ने विवेक ढांड को न केवल जमकर लताड़ा बल्कि श्री मोहिले की भी खबर ली थी। तब उमेश अग्रवाल अपने को साफ बचाने में लगे थे। लेकिन बुलंद छत्तीसगढ़ ने भंडार गृह निगम की खबरों से आम लोगों को लगातार अवगत कराया और अंतत: सरकार को उमेश अग्रवाल को हटाना ही पड़ा। बहरहाल उमेश अग्रवाल के जाने से यहां कर्मचारियों में खुशी की लहर है।

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

नेताओं और अधिकारियों का जोड़ जनता कैसे निकालेगी इसका तोड़!

बढ़ती मंहगाई को लेकर बंद का असर और इसका नुकसान तो सामने आ ही गया। इसका फायदा किसे मिलेगा। अभी कहना मुश्किल है। सुषमा स्वराज ने तो बंद के औचित्य पर पूछे गए सवाल पर साफ कह दिया कि वे तो विपक्षी धर्म की भूमिका अदा कर रहे हैं। आज देश में मंहगाई की मार से आम आदमी त्रस्त है। मंहगाई बढ़ने की मूल वजह पर न तो सरकार को मतलब है और न ही विपक्ष को ही इससे कोई सरोकार है। सब राजनीति कर रहे हैं और जनता तमाशाबीन बनी हुई है। क्योंकि जनता को विपक्ष भी इतना ही समझा रही है कि मनमोहन सिंह की नीतियों की वजह से मंहगाई बढ़ रही है क्योंकि विपक्ष भी इससे राजनैतिक फायदे लेना चाहती है इसलिए वह आम लोगों को कमी नहीं बताएगी कि महंगाई बढ़ने की असली वजह क्या है? क्योंकि विपक्ष भी जानती है कि जिस दिन जनता असली वजह समझ जाएगी उस दिन उसकी भी राजनीति खत्म हो जाएगी।
क्या वास्तव में मंहगाई बढ़ने की वजह पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में ईजाफा करना और सरकार की उदारीकरण व्यवस्था है। नहीं। कतई ये कारण नहीं है मंहगाई बढ़ने के। मंहगाई बढ़ने की असली वजह है अधिकारियों और नेताओं का गठजोड़। क्योंकि दूसरों से यादा इन्हें अपनी चिंता है। इसलिए सुषमा स्वराज ने बड़ी बेशर्मी से कह दिया कि अब सांसदों का वेतन भत्ता बढ़ना चाहिए? आखिर सांसदों का वेतन भत्ता क्यों बढ़ना चाहिए? ये लोग कौन सा आम लोगों के हितों पर काम कर रहे हैं। आजादी के 60 सालों से इस देश में विकास हुआ है तो किसके लिए? जरा सुषमा स्वराज और उनकी पूरी पार्टी बताएगी कि उन्हें वेतन क्यों चाहिए? जब वे स्वयं को समाजसेवी, जेन सेवी और न जाने क्या क्या कहते हैं तब वेतन भत्ता क्यों?
आजादी के 60 सालों में इस देश की आधी आबादी आज भी पेयजल, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मूल अधिकारों से वंचित है तब इन्हें वेतन-पेंशन लेने का हक किस तरह से जाता है। क्या बेशर्मी की सारी हदें ये पार कर चुके हैं क्या इनमें नैतिकता नहीं है या मुफ्तखोरी की आदत ने इन्हें सिर्फ अपनी तकलीफें दिखती हैं। क्या किसी सरकार के पास इस बात का जवाब है कि वे जनता से टैक्स के रूप में मिले पैसों में से आधी राशि अपनी सुविधाओं पर खर्च क्यों करते हैं जबकि जनता को वे साफ पानी तक नहीं पिला पा रहे हैं।
दरअसल मंहगाई की असली वजह नेताओं और अधिकारियों को दी जा रही है सुविधाओं में हो रही लगातार बढ़ोत्तरी ही बढ़ती मंहगाई की असली वजह है। कोई राजनैतिक दल क्यों घोषणा नहीं करता कि जब तक सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा और पानी का इंतजाम नहीं हो जाता तब तक उनके दल के लोग सरकार से वेतन-भत्ता पेंशन नहीं लेंगे। स्वास्थ्य, पानी, शिक्षा की बात तो छोड़ दो, विधायकों-सांसदों में इतना साहस नहीं है कि वे शराब दुकानों को नियमानुसार खुलवा सके। अपने-अपने क्षेत्र में बिक रहे अवैध दारू बंद करवा सके।
इसलिए ये सांसद और विधायक तथा राजनैतिक दल मंहगाई की असली वजह जनता को नहीं बतलाते। लेकिन जनता अब जागने लगी है। अब तक तो सिर्फ जूते चप्पल फेंके जाते रहे हैं। यदि राजनैतिक दलों ने अब भी जनता के पैसों से अपनी सुविधा बढ़ाने की होड़ से पीछे नहीं हटे तो... कदम आगे भी बढ़ेगा।

बुधवार, 14 जुलाई 2010

रामकृष्ण मठ का यह कैसा खेल सत्ताधीशों से बढ़ाओ मेल


पद की चापलूसी या पैसे का लालच
यह राजनीति की गंदी तस्वीर है या मठाधीशों का कुत्सित चेहरा। यह तो जनता ही तय करेगी। लेकिन अब तक निर्विवाद रहे रामकृष्ण मठ के नागपुर मठ ने ऐसा कुछ कर दिया है जिससे मठ के क्रियाकलापों पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है और इसे लेकर मठ के प्रति श्रध्दा व उनके कार्यों पर नमन करने वालों के दिलों पर ठेंस पहुंची है। दरअसल मठ ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के माता-पिता की तस्वीर 'विवेकानंद राष्ट्र को आह्वान' नामक किताब पर छाप दी है।
धर्मग्रंथों के अपमान और हिन्दूत्व की रक्षा के नाम पर इस देश में जिस तरह का बवाल मचा है। वह अंयंत्र कहीं नहीं है। हिन्दूत्व की परिभाषा सब अपने-अपने ढंग से देने लगे हैं और धर्म का दुरूपयोग भी अपने स्वार्थ के लिए करने लगे हैं। इस देश में हिन्दुत्व की दुहाई देने वाली भारतीय जनता पार्टी हो या शिवसेना सभी ने धर्म को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश की है।
'समरथ को नहीं दोष गोसाई' की तर्ज पर चाहे वह किसी भी धर्म के हो पैसे व पद वालों ने धर्म का सबसे यादा अपमान किया है। यहां तक कि विभिन्न सरकारों ने भी अपने हिसाब से इसका दुरूपयोग किया। इस सबके बावजूद इस देश में अभी भी ऐसा संस्थाएं है जो राष्ट्र निर्माण की दिशा में धर्म क्षेत्र में काम कर रही हैं उनमें से एक है रामकृष्ण मठ या रामकृष्ण मिशन। शुध्द रुप से राष्ट्रीय निर्माण में लगे इस संस्था के खिलाफ आज तक किसी ने भी उंगली उठाने की हिम्मत इसलिए नहीं कि क्योंकि इस मठ या मिशन ने नि:स्वार्थ रूप से राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
लेकिन लगता है पैसे व राजनीति ने इस संस्था को भी उसी राह पर खड़ा कर दिया है जो सिर्फ धर्म की आड़ में नाम पैसा सबकुछ बना लेना चाहता है। ऐसा ही मामला सामने आया है जो रामकृष्ण परमहंस, मां शारदा माई और विवेकानंद के आदर्शों को चाक-चाक करने वाला है। रामकृष्ण मठ नागपुर से प्रकाशित विवेकानंद राष्ट्र को आह्वान शीर्षक वाली इस किताब के जैसे ही पन्ने पलटे जाएंगे स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह और आखरी पृष्ठ पर स्व. श्रीमती सुधा देवी सिंह की तस्वीर छापी गई है। 12 रुपए कीमत वाली इस किताब को बकायदा बेची भी जा रही है।
रामकृष्ण मठ नागपुर द्वारा किस तरह की पुस्तक बेची जानी है यह तो मठ को तय करना है और वह इसके लिए स्वतंत्र भी है। लेकिन सवाल यह है कि मठ के द्वारा सिर्फ इसी तस्वीर वाली किताबें क्यों बेची जा रही है? इसके पीछे उनका उद्देश्य क्या है? सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं क्योंकि जो तस्वीरें छपी हैं वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के माता-पिता की है। ऐसे में मठ पर यह आरोप लगना स्वाभाविक है कि मठ के द्वारा अनाप-शनाप पैसा लेकर लोगों के दिलों में बैठे मठ के प्रति विश्वास को भुनाना है या सत्ता प्रमुख को खुश करना है।
इस संबंध में जब हमने रायपुर स्थित विवेकानंद आश्रम से संपर्क किया तो वे कुछ भी कहने से बचते रहे वहीें नागपुर मठ के पदाधिकारियों से संपर्क नहीं हो सका। बहरहाल रामकृष्ण मठ नागपुर के इस कारनामें का असली मकसद तो पदाधिकारी ही जाने लेकिन उनके इस कृत्य ने रामकृष्ण संस्थान पर श्रध्दा रखने वालों के दिलों में न केवल ठेस पहुंचाई है बल्कि यह सवाल भी खड़े किए है कि यहां बैठे पदाधिकारी क्या करने वाले हैं जिसका जवाब देर सबेर उन्हें देना ही होगा।
इसी किताब का अंश
जिसकी अवहेलना हुई
'ऊंचे पद वालों यया धानिकों पर भरोसा न करना। उनमें जीवनी शक्ति नहीं है वे तो जीते हुए मुर्दे के समान है। भरोसा तुम लोगों पर है, गरीब, पद मर्यादा रहित किन्तु विश्वासी तुम्ही लोगों पर। ईश्वर पर भरोसा रखो। किसी चालबाजी की आवश्यकता नहीं, उससे कुछ भी नहीं होता.... अपना सारा जीवन इस तीस करोड़ लोगों के उध्दार के लिए अर्पण कर देने का व्रत लो जो दिनों दिन डूबते जा रहे हैं। पेज नं.-52 (पन्ना 1, 83-84)।'
0 इस समय हम पशुओं की अपेक्षा कोई अधिक नीति परायण नहीं है। केवल समाज के अनुशासन के भय से हम कुछ गड़बड़ नहीं करते। यह समाज आज कह दे कि चोरी करने से दण्ड नहीं मिलेगा, तो हम इसी समय दूसरे की सम्पत्ति लूटने को टूट पड़ेंगे। पुलिस हमें सच्चरित्र बनाती है। सामाजिक प्रतिष्ठा के लोप की आशंका ही हमें नीति परायण बनाती है और वस्तुस्थिति तो यह है कि हम पशुओं से कुछ अधिक ही उन्नत हैं। (पृष्ठ-42 (ज्ञा.यो. 275)
0 दुष्कर्म द्वारा हम केवल अपना ही नहीं वरन् दूसरों का भी अहित करते हैं और सत्कर्म द्वारा हम अपना तथा दूसरो का भी भला करते हैं.....। (पृष्ठ- 47 (क.यो.88)
0 इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जाएगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड़ नहीं है.....। (पृष्ठ 53 (पन्ना 1, 177-178)

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

बिहारी बाबूओं की तिकड़ी का कमाल

छत्तीसगढ़ राय बनने के बाद सभी क्षेत्रों में दूसरे प्रदेश के लोग तेजी से आए हैं। इससे पत्रकारिता का क्षेत्र भी अछूता नहीं रह गया है। सब अपने-अपने हिसाब से पत्रकारिता कर रहे हैं। नवभारत, जनसत्ता और हरिभूमि में प्रमुख पदों पर बैठे तीनों बिहारी बाबूओं की तिकड़ी इन दिनों सुर्खियों में है।
अखबारों के बीच चल रहे प्रतिस्पर्धा के इस दौर में भी इन तीनों की दोस्ती कमाल की है और कहा जाता है कि इससे अखबारों का क्या भला हो रहा है यह तो अखबार मालिक जाने लेकिन इन तीनों का जबरदस्त भला हो रहा है। भला होने के इस खेल में पुलिस के मुखिया का भी बड़ा रोल है चूंकि वे भी सरनेम नहीं लिखते और बिहारी ही कहलाना पसंद करते हैं। साहित्य प्रेमी इस अधिकारी की मदद पाकर बगैर सरनेम वाले नवभारत और जनसत्ता वाले बहुत खुश है लेकिन हरिभूमि वाले थोड़े घाटे में हैं और दिल्ली चले गए।
अखबारों की बढ़ी रूचि
छत्तीसगढ़ में इन दिनों कई अखबारों के आगमन की चर्चा मीडिया जगत में है। पत्रकार खुश हैं कि चलों एक बार फिर सबकी तनख्वाह बढ़ेगी। राजस्थान पत्रिका ने तो सर्वे भी शुरु कर दिया है। पीपुल्स और राज एक्सप्रेस भी आने की जुगाड़ में लगे हैं। इसके अलावा कुछ और अखबारों के आने की बीच चर्चा इस बात की भी है कि भ्रष्ट जनसंपर्क के अधिकारी यहां अखबारों को आने का निमंत्रण देते यह भी कहते हैं कि सरकार भ्रष्ट है। विज्ञापन भरपूर है।
शेख ईस्माइल समवेत शिखर की ओर
युगधर्म से पत्रकारिता की शुरुआत करते हुए सांध्य दैनिक अग्रदूत के संपादक बन बैठे शेख ईस्माईल की तकदीर बुलंद है या नहीं यहतो तब पता चलेगा जब वे समवेत शिखर के संपादक बन जाएंगे।
पुसदकर फिर नौकरी पर
युगधर्म से ही पत्रकारिता शुरु करने वाले अनिल पुसदकर को वैसे तो नौकरी रास नहीं आती। वे स्वयं यह कहते नहीं थकते कि वे तभी तक नौकरी करते हैं जब तक मालिक जैसा रहते है। इन दिनों वे नेशनल लुक पहुंच गए हैं और पुलिस परिक्रमा लिख रहे हैं। भास्कर और लुक में फर्क तो रहेगा ही।
इस्पात टाईम्स की छटपटाहट
रायगढ़ से राजधानी तक धोखा खा चुके ईस्पात टाईम्स एक बार फिर रायपुर से कुछ करने की जुगत जमा रहा है। हालांकि मशीन रायपुर से उखड़ गई है इसलिए ब्यूरो से ही काम चलाने की मंशा है। इसलिए आदमी तलाशा जा रहा है।
संतोष साहू को दोहरा लाभ
प्रेस फोटोग्राफर संतोष साहू को दैनिक भास्कर से आफर मिला और वे हरिभूमि छोड़ दिया। तनख्वाह भी डबल और बैनर भी डबल।
और अंत में....
राजस्थान पत्रिका के आने की हलचल ने पत्रकारों में भगदड़ तो मचाई ही है। हरिभूमि से भास्कर पहुंचे दो लोगों के आवेदन भी लग गए है। इधर इससे निपटने कुछ अखबारों ने कुर्सी बाल्टी बेचने की तैयारी शुरु कर दी है।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

शाबास आईजी साहब! आते ही शुरु हो गए

कभी वरिष्ठ पुलिस कप्तान के रुप में जोगी शासनकाल में नाम कमा चुके आईपीएस मुकेश गुप्ता के आईजी बनकर राजधानी पहुंचते ही कई लोगों को सांप सुंघ गया है। शिवसैनिक से लेकर भाजपाईयों को किनारे लगा चुके आईजी साहब का अपना जलवा है। तब भाजपाई आईजी साहब पर हाथ धोकर पीछे पड़े थे और न जाने क्या क्या आरोप लगाए थे। लेकिन सत्ता क्या बदली गुप्ता साहब भी बदल गए जो भाजपाई उन्हें पानी पी-पी कर गाली देते नहीं थकते थे उस राय में भी मुकेश गुप्ता जी इसलिए महत्वपूर्ण बने रहे क्योंकि उन्हें काम करना बखूबी आता है।
यही वजह है कि अनिल जग्गी के फार्म हाउस में शहर के रईसजादों को जुआं खेलते पकड़ा गया बल्कि उनकी मोबाइल व कारें तक जब्त कर दी गई। जुआं खेलना सामाजिक अपराध है और इसे पुलिस हर हाल में रोक लेना चाहती है इसलिए जुआरियों को सबक सिखाने उनके मोबाइल और कारें तक जब्त कर ली गई। हालांकि कानूनन मोबाइल व कारें जब्त नहीं की जा सकती लेकिन जब पुलिस अपनी हो और सरकार में जबरदस्त सेटिंग हो तो कानून तो तोड़ी ही जा सकती है और फिर जुआरियों में इतनी हिम्मत कहां कि उनके खिलाफ हो रहे इस अत्याचार के खिलाफ वे लड़ सके।
अब बाहर हल्ला करते रहो कि पुलिस वाले अति कर रहे हैं तुम्हारी कौन सुनेगा आखिर जुआं खेलते पकड़ाए हो। अब तुम पर कितना भी अत्याचार हो कोई विश्वास नहीं करेगा। इसी बात का तो फायदा उठाती है पुलिस। हमारे गृहमंत्री ननकीराम कंवर जी तो वैसे भी सीधे हैं। उन्हें इससे क्या देना कि पुलिस वाले अति कर रहे हैं या नहीं। यदि उन्हें यादा गुस्सा आया तो कह देंगे एसपी निकम्मा है और कलेक्टर दलाल है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह भी अपने में मगन हैं उन्हें तो फुर्सत ही नहीं है खनिज, उर्जा जैसे भरपूर पैसे वाला विभाग उनके पास है फिर सरकार की तारीफ कैसे हो जनसंपर्क के अफसरों का भी तो ब्रीफ सुनना है। ऐसे में वे भला गृहमंत्री के दर्द से कहां वाकिफ हो पाएंगे। और रहा सवाल आईजी साहब व अन्य पुलिस वालों का। वे तो मान बैठे हैं कि जनता में उनकी छवि खराब है और उनकी ऐसी गलत कार्रवाईयों से बुराई करने वाले दो चार और बढ ज़ाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा।
लेकिन पुलिस वाले इस बात का ध्यान रखें कि अति का अंत जरूर होता है। जुआरियों को सबक सिखाओं। अपराधियों को पकड़ो। सत्ताधीशों से भी मधुर संबंध बनाकर बस्तर जाने से बचो लेकिन जनता से पंगा न लो क्योंकि उसकी हाथ अच्छे खासे लोगों को भी कहां ले जाती है यह प्रदेश में भी उदाहरण स्वरुप मौजूद है।

रविवार, 11 जुलाई 2010

साढ़े 16 का पेट्रोल 53 में क्यों ?

कभी लोकसभा में अपने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि सरकार के खिलाफ अविश्वास पेश करते समय विकल्प भी दिए जाने चाहिए। पूरा देश इन दिनों महंगाई की भीषण त्रासदी से गुजर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों के लिए बना दी गई। अपने हित के लिए राजनैतिक दलों ने गरीबों तक को गरीबी रेखा के नीचे और ऊपर बांट दिया। 16 रुपए 50 पैसे का पेट्रोल 53 रुपए में बेची जा रही है। इसमें भी तीन रुपया एक्स्ट्रा वसूला जा रहा है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतें बढ़ते ही प्रमुख विपक्षी दल भाजपा, कम्युनिस्ट सहित अन्य ने बांह चढ़ा ली। 1 जुलाई को जगह-जगह धरना दिया गया और 5 जुलाई को भारत बंद किया गया।
महंगाई के खिलाफ लड़ाई की बजाय राजनैतिक फायदे की सोच से आम आदमी हतप्रभ है कि आखिर भाजपा के राज में क्या कीमतें नहीं बढ़ाई गई थी तब कांग्रेसी महंगाई को लेकर मातम करते रहे। आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा। हमारे से कमजोर पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल तक में पेट्रोल के कीमत 40 रुपए से कम है तब 16 रुपए 50 पैसे में सरकार को मिलने वाला पेट्रोल 53 रुपए में जनता को क्यों दिया जा रहा है।
जवाब आपके सामने है सेन्ट्रल टेक्स के रुप में 11.80 रुपए, एक्साईज डयूटी 9.75 रुपए, राय कर 8 रुपए और वेट टैक्स 4 रुपए यानी साढ़े 21 रुपए केन्द्र सरकार और 12 रुपए राय सरकार वसूलती है और इसमें से एक बड़ा हिस्सा किस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और नेताओं की जेब में चला जाता है यह किसी से छिपा नहीं है।
पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि पर सर्वाधिक भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी हल्ला कर रहे हैं लेकिन इन पार्टियों की राय सरकारों खासकर भाजपा के राय सरकार को अपने राय में टैक्स कम कर लडाई में उतरना चाहिए। यदि सरकार गिराने के प्रस्ताव में विकल्प जरूरी है तब अन्य मामले के विरोध में भी विकल्प जरूरी होना चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि क्या हुई ट्रांसपोर्टरों से लेकर इससे सीधा जुड़े लोगों ने 15 से 40 फीसदी कीमत बढ़ा दी। जब पेट्रोलियम की मूल्य वृध्दि 4 से 8 फीसदी हुआ है तब किसी चीज की कीमत 40 फीसदी तक कैसे बढ़ाई जा सकती है। क्या राय सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से बच सकती है? इसलिए महंगाई पर राजनीति करके राजनैतिक पार्टियां लोगों को भ्रम में डाल रही है और सरकार किसी की भी बने उदारीकरण के दरवाजे खोले जाएंगे कोई अपनी जेबें न भरे इसके लिए जनता को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी।

खबर यह भी

पटवारी पर जमीन
हड़पने का आरोप
धमतरी। पटवारी पर मिलीभगत कर जमीन हड़पने दूसरे के नाम करने का आरोप रेलवे कर्मचारी फटिर न्याय के लिए दर-दर घूम रहा भखारा थाना, तह कुरुद जिला धमतरी निवासी बानीराम साहू ने संबंधित क्षेत्र के पटवारी पारस चंद्राकर पर अपनी 80 डिसमिल रजिस्टर्ड जमीन हड़पने एवं केन्द्री के निवासी ज्ञानिक राम साहू के नाम करने का आरोप लगाया है।
आज यहां बाबीराम साहू पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि उनकी जोरातराई पंचायत, भाखारा थाना, तह कुरुद में 2 एकड़ 72 डिसमिल जमीन है। जिसे उन्होंने सन् 1990 में छबलू सतनामी से लेकर रजिस्ट्री बकायदा करवाई थी। जिसकी कीमत तब 15 हजार रुपए आंकी गई थी। जमीन पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजबाई खेती करती है। साहू ने आरोप लगाते हुए बताया कि क्षेत्र के सरपंच पारस चंद्राकर ने गलत सीमांकन कर केन्द्री में किसान ज्ञानिक राम साहू पिता बनिहार साहू के साथ मिलीभगत कर उनकी बाबी साहू 80 डिसमिल जमीन को पहले शासकीय फिर ज्ञानिक साहू को बता दिया जिसका उन्होंने प्रथा गांव के पंच-सरपंच ने कडा प्रतिभार किया। पंच-सरपंच ने उस्तख्त करने में इंकार कर दिया। बावजूद पटवारी ने जमीन हड़प ली तथा उक्त किसान ज्ञानिक साहू को दे दी। जिस पर ज्ञानिक ने सब कुछ जानते हुए एवं उनकी आपत्ति को अनुसुना कर 80 डिसमिल में लगे दर्जनों पेड़ काट डाले तथा 4 ट्रेक्टरों में भरकर ले गया। बाबी राम साहू ने आगे बताया कि मामले की रिपोर्ट उन्होंने भाखाराक थाने में दर्ज कराई है। ज्ञानिक साहू आरोपी है। मामला तहसीलदार के पास विचाराधीन है। परंतु सरपंच भय के चलते दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पा रहा है। उधर पुलिस भी इसके चलते ज्ञानिक को गिरफ्तार नहीं कर रही है। बाबी ने बताया कि उनके पास रजिस्ट्री के तमाम दस्तावेज है। उनकी 80 डिसमिल उक्त जमीन का वर्तमान दर लाखों में है। उन्हें न्याय चाहिए, पटवारी ने सरहदी नाला पार करके बाबी राम में जमीन हड़पने का कोशिश कर रहा है।
पत्रकार कादरी का इंतेकाल
बिलाईगढ़। बुलंद छत्तीसगढ़ के पत्रकार पंडरीपानी निवासी मोहम्मद सुल्तान कादरी वल्द सुमान खान का पिछले दिनों हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। 32 वर्षीय कादरी मिलनसार व तेज तर्रार पत्रकार के रुप में पूरे क्षेत्र में जाने जाते थे। उनके निधन पर बुलंद छत्तीसगढ़ परिवार स्तब्ध है और ईश्वर से कामना करते हैं कि उनके परिजनों को इस दुखद घड़ी को सहने की शक्ति प्रदान करे।
अपराधियों के संरक्षण के खिलाफ सुझाव
रायपुर। छत्तीसगढ़िया सुन्नी मुस्लिम पंचायत के सदर से मुजफ्फर अली ने कहा है कि सीरतुन्नबी कमेटी के सदर पद पर अनिवार्य रुप से छत्तीसगढ़िया मुस्लिम को ही प्राथमिकता दी जाए। इससे छत्तीसगढ़ में अपराधिक व्यक्ति जो कि मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं में संरक्षण लेते है उससे मस्जिद मदरसे, दरगाह, कमेटियों को मुक्ति मिलेगी। ऐसी सुझाव छत्तीसगढ़िया सुन्नी मुस्लिम पंचायत ने सीरत कमेटी के वयोवृध्द समाजसेवी जनाब कुतुबुद्दीन साहब को दिया है।
अस्पताल के सामने कब्जा
कर मकान बना लिया
सिमगा। रावण में कृष्णकुमार वर्मा नामक व्यक्ति ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के सामने अतिक्रमण कर मकान बना लिया। इसकी शिकायत सरपंच ने स्वास्थ्य मंत्री से की है। यही नहीं तहसीलदार सुहेला द्वारा लेन देन कर मामले को दबाने की चर्चा है।

पति बैठक में थे तो पंचों ने बहिष्कार कर दिया

विकास के मुद्दे धरे रह गए
चर्चा के दौरान ग्राम पंचायत जामगांव (एम) की सरपंच श्रीमती रोशनी जोगी ने बताया कि विकास की आवश्यकताओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि अभी विकास कार्य एवं आय-व्यय पर चर्चा होनी थी लेकिन पंचगण के द्वारा उस मीटिंग को बहिष्कार कर दिया गया। क्योंकि उस मीटिंग में मेरे पति मेरे साथ में उपस्थिति थे। पंचों का कहना है कि सरपंच आप हो आप इस मीटिंग में उपस्थित रहो आपके पति नहीं क्योंकि यह पंचायत कि मीटिंग है। इस मीटिंग में आपके पति नहीं उपस्थित रह सकते और कहते है कि सुबह 9 से 6 बजे शाम तक आप ग्राम पंचायत में उपस्थित रहा करे और प्रत्येक मीटिंग का चाय नाश्ता का खर्च भी आप स्वयं वहन किया करे। यहां कहां तक सही है। हम एक महिला होने के नाते ना कही हम प्रत्येक वार्ड पर निरीक्षण नहीं कर पाते और जो भी कार्य का निरीक्षण हमारे पति के साथ मिलकर कार्य करते है। एक ओर सरकार महिला सशक्तीकरण की बात करते है और दूसरी ओर पुरुष वर्ग इसे दबाने की कोशिश कर रहे इस विषय पर मैंने विधायक महोदय सी.ओ. सर इस विषय पर बात रखी है। तो कि इस विषय पर आप जल्द से जल्द कोई कार्यवाही करे ताकि पंचायत का कार्य सही तरीके से चल सके।

देश के नम्बर एक मुख्यमंत्री रहे रमन को अपने ही प्रमुख सचिव की चुनौती

छत्तीसगढ़ संवाद में हुए करीब 100 करोड़ के घपले और 40 करोड़ की ऑडिट आपत्ति की खबरें राजधानी में गूंज रही है। योति एंड कंपनी द्वारा तैयार आडिट रिपोर्ट की कापी कायदे से महालेखाकार को भेजा जाना था। लेकिन इसमें की गई आपत्तियों के चलते सीईओ एन बैजेन्द्र कुमार इसे छुपाने या बदलने में अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं।
बताया गया कि योति एंड कंपनी ने सीधे तौर पर रिपोर्ट बदलने से मना कर दिया था। इसी वजह से जनवरी 2010 में पेश आडिट रिपोर्ट की कापी अब तक महालेखाकार के पास नहीं पहुंच पाई है। संवाद के अधिकारी यह बात समझने को तैयार नहीं है कि उनकी इस गतिविधि के चलते पूरे हिन्दुस्तान में डा. रमन सिंह की बदनामी निकम्मे मुख्यमंत्री के रुप में हो सकती है। संवाद की जिम्मेदारी खुद डा. सिंह ने ले रखी है ऐसी स्थिति में कोई बड़े घपले की बात सामने आती है तो यह केवल मुख्यमंत्री के बदनामी की बात नहीं होगी इसका नुकसान भारतीय जनता पार्टी को भी झेलना पड़ेगा। अब तक के रिकार्ड के मुताबिक राय शासन घपलेबाज अफसरों पर मेहरबान रही है। ऐसी स्थिति में संवाद के अधिकारी अपने आप को खतरे से बाहर मानकर चल रहे हों, यह भी हो सकता है। लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि अब तक घपले दूसरे विभागों के रहे हैं। सोचने वाली बात यह भी है कि साफ सुथरे छवि के लिए देशभर में पहचान रखने वाले मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने जैसी कोई बात सामने आएगी तो डा. रमन सिंह किस प्रकार कोई मेहरबानी कर पाएंगे।
खबर मिली है कि श्री बैजेन्द्र कुमार इस बात के लिए जांच समिति बनाने वाले हैं कि आडिट में किए गए घपले की खबर संवाद की दीवारों के बाहर कैसे गई। मतलब अब सरकारी खजाने में सेंध मारने वाले यह पता करना चाहते हैं कि कौन उनके कुकर्मों के लिए उन्हें जेल भेजवाने की इच्छा रखता है। इस 100 करोड़ के घोटाले के मुख्य सूत्रधार हैं संविदा कर्मचार को बताया जा रहा है। अब आडिट रिपोर्ट देखकर पता चलता है कि करोड़ों के मुख्य सूत्रधारों में एक नाम उसका भी है। श्री सांची और श्री पात्र को 2002 में भर्ती हुई गड़बड़ी और आरक्षण नियमों का पालन नहीं होने के कारण नौकरी से बाहर कर दिया गया था। लेकिन दोनों कर्मचारियों को रातों रात बिना भर्ती प्रक्रिया के नौकरी पर रख लिया गया जिससे उनकी हेराफेरी में सहयोग मिलता रह सके। ऑडिट आपत्तियां फिल्म, प्रकाशन, विज्ञापन, रोजगार नियोजन और लेखा सभी विभागों के कामों को लेकर की गई हैं।

खिलाफ छापा तो नोटिस भिजवाई

इस सरकार में नौकरशाह किस कदर हावी है और मंत्रियों का संरक्षण उन्हें किस तरह मिल रहा है यह पर्यटन विभाग में पदस्थ अजय श्रीवास्तव द्वारा बुलंद छत्तीसगढ़ को भिजवाई नोटिस से देखा जा सकता है। इसके लिए उन्होंने विभाग से अनुमति ली है या नहीं यह जांच का विषय भी है।
ज्ञात हो कि बुलंद छत्तीसगढ़ ने दुग्ध संघ के इस कर्मचारी अजय श्रीवास्तव को प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल द्वारा संरक्षण दिए जाने की खबर विस्तार से प्रकाशित की थी। खबर में सिमगा पुलिस द्वारा अजय श्रीवास्तव पर कालगर्ल की हत्या का अपराध भी दर्ज किया गया था। इसकी एफआईआर की कॉपी भी प्रकाशित की गई थी।
हमने यह भी बात प्रकाशित की थी। इस अजय श्रीवास्तव को जब बृजमोहन अग्रवाल गृहमंत्री थे तो पुलिस मुख्यालय में पदस्थ किए थे और जब पर्यटन मंत्री बने तो इन्हें पर्यटन विभाग में ले गए। अजय श्रीवास्तव की इस काबिलियत की हमें जानकारी नहीं थी कि वे इतने काबिल हैं कि जहां-जहां बृजमोहन अग्रवाल मंत्री बनेंगे वे उन विभागों में पदस्थ किए जाते रहेंगे। उन्होंने नोटिस में कहा है कि उच्च न्यायालय ने कालगर्ल मडर केस से अजय श्रीवास्तव का नाम हटा दिया है जबकि हमने इस खबर को छापने से पहले उनसे संपर्क की कोशिश भी की थी। बहरहाल यह एक उदाहरण है कि किस तरह से राजनैतिक पार्टियों के संरक्षण में शासकीय कर्मी काम कर रहे हैं बाबूलाल अग्रवाल की बहाली भी तो लोग अभी भूले नहीं है।

ईमानदारी की छवि बनाओं मुफ्त में सरकारी माल उड़ाओं

बाबूलाल और मिश्रा में कैसा अंतर
छत्तीसगढ़ में नैतिकता और ईमानदारी की छवि बनाकर किस तरह से सरकारी माल उड़ाने का खेल चल रहा है यह आईएएस डीएस मिश्रा को देखकर समझा जा सकता है। मिश्राजी के मंहगी सराकरी गाड़ी के मोह से बीज निगम के अधिकारियों को न केवल परेशानी हुई बल्कि नवनियुक्त अध्यक्ष श्याम बैस के लिए नई गाड़ी की जुगाड़ के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
वैसे तो सरकारी गाड़ी का उपयोग जिस बेशर्मी से नेता या अधिकारियों के परिवार वाले करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन यदि कोई अफसर ही इसका दुरुपयोग करे तो क्या कहना। छत्तीसगढ़ सरकार में अपनी ईमानदारी के लिए चर्चित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और राय में सचिव डीएस मिश्रा की कहानी भी कुछ अलग ही है। बीज निगम के प्रमुख रहते उनके कारनामें अब बाहर आने लगे हैं। ऐसे ही कारनामों में 13 लाख की करोला कार कार का मामला है। ऐम्बेसडर की बजाय बीज निगम के अधिकारियों ने प्रमुख की फरमाईश पर करोला कार दे दी। 13-14 लाख की यह कार निगम के पैसे से कैसे खरीदी गई इसकी कई कहानी है लेकिन कहा जाता है कि इस कार के प्रति मिश्रा साहब का मोह कुछ यादा ही बढ़ गया।
बताया जाता है कि जब तक वे बीज निगम में रहे इस कार का उपयोग करते रहे और जब वहां से हट गए तो अपने साथ कार को भी ले गए। अब बीज निगम में ऐसा कोई दमदार आदमी तो है नहीं जो इस कार को वापस मांग सके। इसलिए ईमानदारी के लिए विख्यात डीएस मिश्रा जी ही इस कार में इन दिनों सफर करते हैं। दुखद आश्चर्य की बात तो यह है कि श्याम बैस के अध्यक्ष बनने के बाद इस कार कार को वापस मंगाये जाने की बजाय उनके लिए नए कार खरीदे जाने की योजना बन रही है।
बहरहाल बीज निगम में डीएस मिश्रा की ईमानदारी की चर्चा जोर-शोर से होने लगी है जबकि बाहर की पार्टी को 20 करोड़ के सप्लाई का मामला खुलने की उम्मीद है।

शनिवार, 10 जुलाई 2010

पत्रिका के लिए पत्रकारों में भगदड़

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में फिर एक बड़े व नामी ग्रुप ने अखबार के प्रकाशन का निर्णय लिया है। अखबार पढ़ने वालों के लिए राजस्थान पत्रिका कोई नया नाम नहीं है। इसके आने की खबर तो महिनों से चल रही थी लेकिन अब जब नौकरी पर लोग रखे जाने लगे तब पत्रकारों को भरोसा हो गया कि पत्रिका अब आ ही जाएगी। पत्रिका से जुड़े लोगों को एक अच्छी टीम की तलाश है। इसका फायदा पत्रकारों ने उठाना भी शुरू कर दिया है। जमकर सौदेबाजी चल रही है वहीं अन्य अखबार के संपादक व मालिक भी सक्रिय हैं कि उनके लोग न जाए इसलिए पत्रकारों की अपने ही प्रेस में पूछ परख बढ़ गई है।
नवीन पहुंचे हरिभूमि
सालों से भास्कर में काम करने वाले नवीन शर्मा का भास्कर से मोह भंग हो गया वह अपने साथियों के साथ नेशनल लुक में जाने की बजाय हरिभूमि वाईन कर लिया। कहते हैं ग्रुप के अखबार बंद नहीं होंगे और लुक क्या ठीकाना है।
राजेश दुबे पत्रिका में
देशबंधु में जलवा दिखाने के बाद नई दुनिया में उपेक्षित रहे राजेश दुबे की पत्रिका वाईन करने की खबर है। खबर तो यहां के जबरदस्त तोड़फोड़ की भी है अब संपादक की गलती है कि मालिक की यह तो चर्चा का विषय है।
मोहन बने चीफ
चीफ की तरह शहर में चर्चित रहे पत्रकार मोहन राव को नवभारत में सिटी चीफ बना दिया गया है। अर्से से तबियत खराब होने की वजह से वे यादा भाग दौड़ नहीं कर पा रहे थे।
और अंत में....
मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले जनसंपर्क के अधिकारी ने मौखिक रुप से फरमान जारी कर दिया है कि खबरों पर नजर रखें और अखबार के मैनेजमेंट को हड़का के रखों। विभाग की खबरें छपने वाली नहीं तो खाओ-पियों मजे करो।

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

डॉ रमन की मां की तस्वीर वाली हनुमान चालीसा भी वितरित...

पैसे व पद वाले ही करते हैं धर्म का अनादर
इतिहास गवाह है कि हिन्दू धर्म का अपमान जितना दूसरे धर्म के लोगों ने नहीं किया उससे यादा वे हिन्दू जो धनाडय व सत्ता मद में बैठे हैं, ने हिन्दूत्व का अपमान किया है। गीता के बाद हनुमान चालीसा में भी लोग अपने परिजनों का तस्वीर लगाकर बांट रहे हैं और यह काम प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह के द्वारा भी किए जाने की खबर है।
श्री भागवत गीता में स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह की तस्वीर लगाकर इसे वितरित किए जाने पर धर्मग्रंथ का अपमान बताया जा रहा है और राजधानी ही नहीं बाहर के भी पुजारियों ने इस तरह के कृत्य को पाप माना है। श्री गीता की खबर छपते ही हमें लोगों ने हनुमान चालीसा लाकर दी जिसमें मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मां स्व. श्रीमती सुधा देवी सिंह की तस्वीर लगाई गई थी। इस हनुमान चालीसा को हमें देने वालों का दावा है कि श्री गीता में तस्वीर लगाने की बात तो कई लोगों को पता है लेकिन हनुमान चालीसा में इस तरह से तस्वीर लगाकर वितरित करने का यह पहला मामला है।
वैसे धर्म के मान्य परंपरा के अनुसार एक समय था जब श्री हनुमान जी के मंदिर में महिलाएं प्रवेश करने से हिचकिचाती थी और आज भी इस देश में कई ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। हालांकि हनुमान चालीसा आयोजन समिति ने महिलाओं के हनुमान चालीसा पाठ पर प्रतिबंध को गलत बताया है। समिति का कहना है कि शास्त्रों में कहीं उल्लेख नहीं है इसलिए महिलाएं श्री हनुमान मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं।
दूसरी तरफ धर्मग्रंथों को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं और यह चर्चा का विषय है कि धर्म ग्रंथों का उपयोग आदमी अपने लिए किस तरह से कर सकता है। वर्तमान पीढ़ी में धर्मग्रंथों पर तस्वीर लगाने को लेकर पूरे देश में बहस किए जाने की जरूरत भी बताई जा रही है और इसी तरह से तस्वीर लगाकर धर्मग्रंथ वितरित किए जाने लगे तो धर्मग्रंथ के महत्व को लेकर भी बहस छिड़ सकती है। केवल हिन्दू धर्म ग्रंथों में ही इस तरह की छेड़छाड़ होने लगी है वह भी उन हिन्दूओं द्वारा जो या तो पैसे वाले हैं या उच्च पदों पर बैठे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस तरह के कार्य कितने उचित है।
हालांकि इस तरह के मामले में हिन्दू संगठनों की खामोशी आश्चर्यजनक है और अब तो उनके नियत पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या वे सिर्फ राजनैतिक फायदे के लिए हिन्दूत्व का इस्तेमाल करते हैं।

कहां हो मिस्टर मूणत...! फिर अवैध प्लांटिग हो रही है

मार्स कालोनाईजर का कारनामा!
अवैध प्लाटिंग के खिलाफ अभियान छेड़कर चर्चा में रहे नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत के नाक के नीचे बकायदा विज्ञापन निकालकर मास कालोनाईजर प्राईवेट लिमिटेड ने न केवल लोगों को धोखे में रखकर प्लाट बेच दी बल्कि उपर तक पैसा पहुंचाने का दावा करते शहर में घूम भी रहे हैं।
राजधानी के आसपास की जमीनों पर अवैध प्लाटिंग को लेकर राजेश मूणत ने न केवल अभियान चलाया था बल्कि कई परिवारों को छले जाने से भी बचाया था लेकिन कमल विहार योजना और गंज डबरी में मॉल बनाने के फेर में लगी सरकार की उदासीनता को लेकर फिर कई कालोनाईजरों ने अपने पैर पसारना शुरू कर दिया है।
सूत्रों के मुताबिक ताजा मामला मास कालोईनजर चला रहे आहूजा बंधुओं का है। मुजगहन में फेस टू बनाने के फेर में लगे आहूजा बंधुओं ने यहां बगैर ले आऊट पास किए साढ़े चार सौ रुपए फीट में प्लाट बेच दी वह भी बकायदा विज्ञापन निकालकर। प्लाट बेचने के मामले में ग्राहकों से धोखाधड़ी की चर्चा अब आम होने लगी है और प्लाट खरीदने वाले अब पछताने भी लगे हैं। यही नहीं टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से प्लाट स्वीकृत कराने भी घपलेबाजी की खबर है।
बताया जाता है कि इसकी शिकायत नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत से भी की गई है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। हालांकि हमने इस मामले में सौदेबाजी की सच्चाई जानने मंत्री जी से फोन पर चर्चा करना चाहा लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे। बहरहाल प्लेनेट सीटी के नाम पर लोगों को छले जाने और नगरीय निकाय मंत्री की भूमिका को लेकर कई तरह की चर्चा है और देखना है कि इस मामले में क्या कार्रवाई होती है।

बुधवार, 7 जुलाई 2010

चापलूस पुलिसिये दूसरे विभाग में फिर कमी का रोना क्यों...?

एक तरफ छत्तीसगढ़ पुलिस में अफसरों की कमी का रोना रोया जा रहा है वहीं आधा दर्जन पुलिस अफसर दूसरे विभाग के मालदार विभाग में मलाई खाने में व्यस्त है। ऐसे में सरकार का कमी का रोना उसकी मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है।
छत्तीसगढ़ में अफसर राज किस कदर हावी है यह किसी से छिपा नहीं है। गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने पहले ही एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कह कर पोल खोल चुके हैं ऊपर से जी हुजूरी और महिना पहुंचाने वाले पुलिस अफसर अन्य विभाग के मलाईदार पदों पर बैठकर चापलूसी की सारी सीमाएं लांघने में लगे हैं।
हाल ही में सरकार के तरफ से यह बयान आया कि पुलिस विभाग में अफसरों की कमी है आश्चर्य का विषय तो यह है कि जब पुलिस विभाग में अफसरों की कमी है तब इस विभाग के आधा दर्जन अफसरों को सरकार दूसरे विभाग में बिठाकर क्यों रखी है उन्हें मूल विभाग में वापस क्यों नहीं बुला लेती। सूत्रों का दावा है कि मलाईदार विभाग में अपने खास अफसरों को बिठाकर अपनी जेबें भरने की रणनीति के तहत ही प्रतिनियुक्ति का खेल खेला जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिन पुलिस अफसरों को दूसरे विभाग में बिठाया गया हैं उनमें मुख्य रुप से राजीव श्रीवास्तव को संस्कृति विभाग में आर.पी. सिंग को खेल में अजात बहादुर शत्रु को परिवहन में बीएस मरावी मुख्य रुप से शामिल है। बहरहाल पुलिस अफसरों की कमी का रोना रोने को लेकर सरकार की यह नीति आश्चर्यजनक है और इसे लेकर आम लोगों में तीखी प्रतिक्रिया है।

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

छापा पड़ा तो अखबार ने दुश्मनी भंजा ली...

तब विज्ञापन नहीं दिए अब भुगतो
शहर के एक प्रतिष्ठित दैनिक ने आयकर विभाग द्वारा की गई छापे की कार्रवाई की आड़ में जमकर दुश्मनी भुनाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। भारत को नया बनाने के चक्कर में लगे इस अखबार पर प्लांटेशन की आड़ में आम लोगों का करोड़ों रुपए हजम कर लेने का भी आरोप है।
छत्तीसगढ़ में व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा ने अखबारों का स्तर किस हद तक गिरा दिया है और मैनेजमेंट किस हद तक हावी है इसका उदाहरण हाल ही में बिल्डरों के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा मारे गए छापों की खबरों से देखा जा सकता है। अखबार बेचने सनसनीखेज खबरें बनाने का आरोप तो मीडिया पर लगता ही रहा है लेकिन दुश्मनी भुनाने भ्रामक खबरें छापने की नई परम्परा भी शुरू हो गई है।
बताया जाता है कि आयकर विभाग ने भाजपा नेताओं के आरती बिल्डकान, कांग्रेस के अविनाश बिल्डर्स, अटलानी और रहेजा ग्रुप पर छापे की कार्रवाई की गई लेकिन इस छापे में भाजपा की सत्ता होने की वजह से राजीव अग्रवाल और छगन मूंदड़ा सर्वाधिक चर्चा में आए। बताया जाता है कि आम लोगों में अपनी विश्वसनियता की आड़ में एक अखबार ने आरती बिल्डकॉन के खिलाफ इसलिए अभियान छेड़ दिया क्योंकि इसने कभी इस अखबार पर विज्ञापन का रिस्पांस नहीं मिलने का आरोप लगाते हुए पैकेज में विज्ञापन देने से मना कर दिया और इसके प्रतिद्वंदी अखबार को विज्ञापन दिया।
खबरों को भ्रामक बनाते हुए आरती बिल्डकॉन के खिलाफ जमकर खबर प्रकाशित की गई और खबरें इस तरह बनाई गई कि लाकर जो मिले वो इन्ही ग्रुप के मिले। आयकर विभाग के सूत्रों के मुताबिक आरती बिल्डकॉन से केवल 1 लाकर मिला वह भी छगन मूंदड़ा के मां के नाम पर बैंक आफ बड़ौंदा का है छगन मूंदड़ा से 5 लाख केस बरामद हुआ जबकि यहां सोना नहीं मिला राजीव अग्रवाल से न कोई लाकर बरामद हुआ और न ही नगद रकम ही जब्त की गई। 700 ग्राम सोना जरूर जब्त हुआ वह भी बिस्किट की शक्ल में होने की वजह से। बताया जाता है कि बिल्डरों ने भारी रकम आयकर विभाग में सरेंडर की है और इस मामले में अभी भी कार्रवाई चल रही है।
हमारे सूत्रों के मुताबिक आरती बिल्डकॉन के खिलाफ किसी विमल के द्वारा लगातार की गई शिकायत पर कार्रवाई हुई और इस कार्रवाई में विमल के पार्टनर भी चपेट में आ गए। इधर कांग्रेस और भाजपा में भी यह मामला गर्म होता जा रहा है और दोनों ही दलों में इन बिल्डरों के विरोधी इन्हें पार्टी से निकालने में सक्रिय हो गए हैं।
बहरहाल छापे की कार्रवाई और इसके बाद छपी खबरों ने विज्ञापन की लालच में फंसे अखबार की प्रतिष्ठा पर आंच पहुंचाई है। कहा जाता है कि इस अखबार ने पार्षद चुनाव में भी पैकेज को लेकर महापौर किरणमयी नायक, सभापति संजय श्रीवास्तव और भाजपा प्रत्याशी विनोद अग्रवाल को भी परेशान कर चुके हैं।
मुसिबत के लिए रखे पैसे
ने मुसीबत बढ़ाई

बिल्डरों के यहां पड़े छापे में उन बिल्डरों की मुसीबत बढ़ा दी है जहां मोटी रकम बरामद हुई है। बताया जाता है कि पति से छिपा कर पैसा रखने की महिलाओं की प्रवृत्ति की वजह से बिल्डरों के घरों में मोटी रकम बरामद हुई। ऐसे ही एक बिल्डर की पत्नी ने कहा कि वे इसलिए थोड़ा-थोड़ा पैसा छिपाकर इकट्ठा रखती थी ताकि मुसीबत या अचानक जरूरत के समय काम आ सके लेकिन आयकर वालों की नजरों से ये पैसे नहीं बच सके।

सोमवार, 5 जुलाई 2010

मोहन की बांसुरी का सूर बेसुरा हुआ



चौतरफा भ्रष्टाचार से भाजपाई नाराज, सुषमा से शिकायत
हाय-हलो स्टाईल से आम लोगों की नजर में चढ़े प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में बड़े पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार और विवादास्पद अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर आम लोगों में जबरदस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि बृजमोहन अग्रवाल के विभागों में चल रहे घपलेबाजी की शिकायत महंगाई वाले धरने में पहुंची वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज से भी की गई है।
आम लोगों में मिलनसार की छवि की वजह से रायपुर ही नहीं प्रदेश में दमदारी से नेतागिरी करने वाले बृजमोहन अग्रवाल से इन दिनों उनके दक्षिण विधानसभा के लोग ही नाराज होने लगे हैं। कहा जाता है कि पुराने समर्थक जहां घर बैठ गए हैं वही नए समर्थक भी किसी राजेन्द्र व प्रकाश नामक व्यक्ति की दलाली से परेशान हैं। संतोषी नगर में हुई तोड़फोड़ से लेकर आपराधिक लोगों के जमावड़े को लेकर उनके खिलाफ जबरदस्त आक्रोश पनपने लगा है और उनके विभाग में चल रहे घपलेबाजी ने रही सही कसर भी पूरी कर दी है।
सूत्रों की माने तो भ्रष्टाचार की वजह से पार्टी की खराब होती छवि को लेकर भाजपा के कुछ वरिष्ठ लोगों ने श्रीमती सुषमा स्वराज को बृजमोहन अग्रवाल की शिकायत करते हुए गोदिंया से लेकर छत्तीसगढ़ तक की न केवल कहानी सुनाई है बल्कि कुछ दस्तावेज भी दिए हैं यही नहीं शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, पर्यटन व संस्कृति में विवादास्पद नियुक्तियों व विवादास्पद अधिकारियों को संरक्षण दिए जाने का आरोप लगाते हुए दस्तावेज श्रीमती स्वराज को सौंपे गए हैं। बताया जाता है कि श्रीमती स्वराज ने शिकायकर्ताओं को कार्रवाई का न केवल आश्वासन दिया है बल्कि मुख्यमंत्री से चर्चा करने की भी बात कही है।
हमारे सूत्रों के मुताबिक श्रीमती स्वराज को किए गए शिकायत में जमीन कारोबार के अलावा पर्यटन के अधिकारी एमजी श्रीवास्तव, अजय श्रीवास्तव, शिक्षा विभाग के मैडम तवारिस, मैडम आर. बाम्बरा, संस्कृति विभाग और पीडब्ल्यूडी विभाग के कुछ विवादास्पद अधिकारियों को मंत्री द्वारा संरक्षण दिए जाने का आरोप लगाया गया है। यहीं नहीं पीडब्ल्यूडी के सड़क व भवन निर्माण में बढ़ती कमीशन को लेकर भी सबूत दिए जाने की चर्चा है। कहा जाता है कि बिलासपुर के किसी राजेन्द्र व कवर्धा के किसी प्रकाश के द्वारा दलाली करने की शिकायत करते हुए शिकायकर्ताओं ने यहां तक कहा है कि कांग्रेसियों को यादा महत्व दिया जा रहा है।
बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ की गई शिकायत पर क्या कार्रवाई होगी यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन दक्षिण विधानसभा ही नहीं राजधानी में इस मामले की जबरदस्त चर्चा है।

रविवार, 4 जुलाई 2010

महंगाई की मार

छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में तमाम विपक्ष मंहगाई को लेकर हो हल्ला मचा रहे हैं केन्द्र सरकार ने पेट्रोल डीजल केरोसीन और घरेलू गैस से यह कहते हुए सब्सिडी हटा दी कि यह सरकार के लिए बोझ है और यूपीए को छोड़ तमाम राजनैतिक दल मंहगाई के खिलाफ ऐसे कूद पड़े हैं मानों वे मैदान ए जंग में उतर आए हैं।
मंहगाई लगातार बढ़ रही है अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब नारकीय जीवन जीने मजबूर हैं। ऐसे में राजनैतिक दल महंगाई को लेकर सजग हैं यह एक अच्छी बात है लेकिन सवाल यह है कि क्या मंहगाई बढ़ने की वजह सिर्फ पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि है। यदि सरकार के लिए सब्सिडी बोझ है तो फिर जनता के लिए टैक्स बोझ है तब सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों पर कोई टैक्स नहीं लेना चाहिए। देश में ऐसे कई राय हैं जहां यूपीए के विरोधी राजनैतिक दलों की सरकार है यदि यूपीए महंगाई के लिए दोषी है तब वे राय सरकार आम लोगों से पेट्रोलियम पदार्थ पर टैक्स क्यों ले रही है।
दरअसल इस देश में नेताओं और अधिकारियों ने पूंजीवादी व्यवस्था की गोद में बैठकर ऐसे निर्णय लेना शुरू किया है ताकि गरीब और मध्यम वर्ग अपनी पेट परिवार की चिंता में लगे रहे और एक कुलीन व धनाडय वर्ग मजा करता रहे। महंगाई बढ़ने के पीछे सिर्फ पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि दोषी नहीं है। महंगाई बढ़ने की वजह सरकार की पेंशन नीति है, सांसदों विधायकों के वेतन में किए जा रहे लगातार बढ़ोत्तरी है जिन पर सीधे जनता का हक है और अधोसंरचना के नाम पर जनता के पैसों को भ्रष्टाचार कर सीधे जेब में रखने की प्रवृत्ति हैं।
महंगाई किसके लिए है। यदि महंगाई की इतनी चिंता नेताओं को है तो जिन नेताओं के पास अथाह पैसे हैं वे सरकारी वेतन भत्ता व अन्य सुविधा लेना बंद क्यों नहीं करते। क्या इस देश में महंगाई पर चिंता व्यक्त करने वाली सोनिया गांधी हो या लालकृष्ण आडवानी हो इनका गुजारा क्या सरकारी वेतन व अन्य सुविधाओं पर निर्भर है तब इस देश की खातिर वे सरकारी वेतन भत्ते नहीं लेने की घोषणा कर आदर्श राजनीति व अपना देश सेवा को नए सिरे से परिभाषित क्यों नहीं करते। देश व उसकी जनता की सेवा के बदले वेतन लेने वालों को दरअसल महंगाई की नहीं स्वयं की राजनीति की चिंता है। देश में राहुल गांधी, नवीन जिंदल से लेकर ऐसे कई सांसद हैं जिन्हें आगे आकर अपना वेतन नहीं लेने की घोषणा करनी चाहिए तभी अंधेरगर्दी खत्म होगी।

शनिवार, 3 जुलाई 2010

हसदा पंचायत में निर्मित रंगमंच के नाम पर पैसा निकाला

चार माह पहले बन चुका है रंग मंच
कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू के विधानसभा क्षेत्र के ग्राम हसदा में पूर्व सरपंच की करतूत से आम लोग हैरान है। कहा जाता है कि कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू के वरदहस्त होने के कारण यहां लोग हैरान है।
बताया जाता है कि चाह माह पहले लंकापारा ग्राम हसदा में रंगमंच भवन निर्माण हो चुका है जो कि माननीय कृषि मंत्री द्वारा रंगमंच निर्माण हेतु 1 लाख रुपया घोषणा किया गया था घोषणा के कुछ ही दिन बाद रंगमंच भवन का निर्माण कर दिया गया। इसका निर्माण पंचायत चुनाव के पहले पूर्व सरपंच के द्वारा जनवरी माह में करा दिया गया था। वर्तमान जून माह में सब इंजीनियर भार्गव के द्वारा लेआउट देकर जनपद पंचायत अभनपुर से पहली किश्त 40 हजार रुपया का चेक ग्राम पंचायत हसदा को भेज दिया गया जबकि उस भवन का निर्माण सब इंजीनियर के दिशा निर्देशन पर नहीं हुआ है और ग्राम पंचायत की बैठक में प्रस्ताव पास नहीं होने के बाद 40 हजार रुपए का आहरण किया गया जनपद पंचायत में 16 जून को सामान्य सभा की मीटिंग में जनपद सदस्य शशि प्रकाश साहू के द्वारा रंगमंच निर्माण की बात रखा गया। जिसमें सब इंजीनियर भागर्व ने अपनी गलती स्वीकार किया शिकायत करने के बावजूद नहीं सचिव के ऊपर न ही सब इंजीनियर भार्गव के उपर कार्यवाही किया गया। इससे साफ जाहिर होता है कि इसमें सचिव एवं सब इंजीनियर के साथ-साथ और बहुत से लोगों की मिलीभगत है। जनपद सदस्य शशि प्रकाश साहू एवं जनपद पंचायत उपाध्यक्ष चन्द्रहास साहू के साथ उपस्थित समस्त जनपद सदस्यों ने कार्यवाही अतिशीघ्र करने की मांग की है।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

दमदार मंत्री के विभाग में दमदारी से घोटाला...



छत्तीसगढ़ के दमदार मंत्री माने जाने वाले पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में घोटाले थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। दमदारी से घोटाले करने वाले अफसर अब किसी की परवाह भी नहीं करते तो इसकी वजह उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होना हैं।
हमारे सूत्रों के मुताबिक पीडब्ल्यूडी में सर्वाधिक घोटाले होने लगे हैं। यहां मंत्री को कमीशन पहुंचाने के नाम पर 20 प्रतिशत हिस्सा लिया जा रहा है। सड़कें घटिया बनाई जा रही है और अब बिलासपुर में नवनिर्मित हाईकोर्ट भवन पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं।
पर्यटन विभाग में तो घोटाले की लंबी फेहरिश्त है यहां बगैर नाम पते के लाखों रुपए बांटे गए वहीं प्रचार व मोटल निर्माण के नाम पर भी घोटाले हुए हैं। यहीं नहीं जिस पर रिकवरी आदेश निकला वह अधिकारी संजय सिंह को परिवहन जैसे कमाउ विभाग में भेज दिया गया जबकि विवादास्पद रहे अजय श्रीवास्तव के संविलियन को लेकर मामला कोर्ट में जा पहुंचा है।
इधर शिक्षा विभाग में तो मैडम तवारिस और मैडम आर. बाम्बरा का मामला सुर्खियों में है लेकिन मंत्री की दमदारी की वजह से मुख्यमंत्री के पास भी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में फेंका जा रहा है। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल के विभागों में बढ़ते भ्रष्टाचार की चर्चा अब चौक-चौराहों पर भी सुनी जा सकती है।

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

क्या भाजपाई इशारे पर चलते हैं हिन्दुत्व के झंडा बरदार


सब कह रहे हैं गलत है
पर हिन्दू संगठन खामोश है!
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पिता स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह के तेरहवीं कार्यक्रम में श्री भागवत गीता में छेड़छाड़ को लेकर आम लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त है वहीं हिन्दुत्व के नाम पर राजनीति करने वाले संगठनों को सांप सूंघ गया है और वे कुछ भी कहने से बचते रहे।
उल्लेखनीय है कि स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह के तेरहवीं कार्यक्रम में ठाकुर साहब की तस्वीर वाली गीता का वितरण किया गया था। इसे लेकर आम लोगों में भारी रोष है। इस मामले में पंडित आशुतोष मिश्रा का कहना है कि तेरहवीं कार्यक्रम में इस तरह से स्वर्गीय व्यक्तियों की तस्वीर लगाकर गीता वितरित की जाती है वह गलत है लेकिन जिसके ऊपर धर्म की रक्षा का दायित्व हो वह भी इस तरह की हरकत करे तो न केवल यह पाप है बल्कि दंड का भागीदार भी है।
दूसरी तरफ राजधानी के कई हिन्दू संगठन विश्व हिन्दू परिषद, धर्मसेना, शिवसेना, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सहित छोटे-छोटे कई संगठनों के पदाधिकारियों से हमने इस मामले में प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की लेकिन इनके द्वारा प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया। गीता सखा प्रेस के मन्नूलाल यदु ने जरूर कहा कि धर्मग्रंथों में अपने पूर्वजों की तस्वीर लगाने से धर्मग्रंथ का अपमान नहीं होता। दूसरी तरफ हिन्दू संगठनों की चुप्पी पर भी सवाल उठने लगे हैं धर्म के नाम पर हाय तौबा मचाने वालों की चुप्पी को लेकर अब यह सवाल उठने लगा है कि भाजपा को छोड़ यदि कोई दूसरा धर्मग्रंथ का अपमान करेगा उसके खिलाफ ही आवाज उठाई जाएगी।
नीराबाई चंद्राकर- ग्राम पंचायत दुधिया की सरपंच श्रीमती नीराबाई चंद्राकर का कहना है कि भागवत गीता में जिस किसी ने यह फोटो डाला है। उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। जो हमारे हिन्दु धर्म के लिए शर्म की बात है।
पं. अर्जुन महाराज जी कवर्धा निवासी है जो राधा माधव गौ सेवा समिति बोलबम अध्यक्ष, सीताराम संर्कीतन संस्थापक, जिला वृक्षारोपण समिति के सरंक्षक है। उन्होंने इस कृत्य के लिए भर्त्सना करते हुए कहा कि यह एक निंदनीय कार्य है। इस तरह किसी भी धर्मग्रंथों में फोटो डलवाना अशोभनीय कार्य है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष डा. रमन सिंह जी के माता जी का फोटो हनुमान चालीसा में डाला गया था। इसका विरोध हिन्दु धर्म अनुयाइयों को करना चाहिए। रामायण भागवत गीता में इस प्रकार फोटो छपवाना घोर अपराध है। इस तरह से हिन्दु धर्म ग्रंथ को अपमान करने का हक किसी को नहीं है।
पं. द्वारिका महाराज- लोहारा रोड में स्थित सिध्दपीठ मां विन्ध्यवासिनी मंदिर के आचार्य ने श्रीमद् भागवत गीता में स्व. ठा. विघ्नहरण सिंह जी का फोटो देखकर कहा कि यह अधिकार इन्हें किसने दिया। अगर बांटना ही था तो अलग से बांट देते इस तरह से धर्मग्रंथ का अपमान करने का हक किसी को नहीं है।
पं. रविशंकर मिश्रा- गीता भगवान की कृष्णा की अलौकिक शक्ति का श्रोत है जो कि उनके श्रीमुख से निकला हुआ सृष्टि कल्याणार्थ अनुपम ग्रंथ है जिसके ऊपर न जाने कितने मनुष्य ने टीकाकरण किए और गाथा चारो वेद गाती है। ऐसा धर्मग्रंथ किसी की बपौती नहीं है। चाहे वह मुख्यमंत्री हो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति हो। ये निंदनीय कृत्य है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की इस गलती के लिए उन्हें सार्वजनिक रुप से माफी मांगकर प्रायश्चित करना चाहिए।
पं. देवीप्रसाद शास्त्री- इस तरह पवित्र धर्मग्रंथों में फोटो डलवाना घोर पाप है। हो सकता है यह व्यवस्थापक की गलती हो। फिर भी यह एक नासमझी का प्रतीक है। यह एक निंदनीय कार्य है।
पं. श्री विनोद तिवारी जी- यह कृत्य श्रीमद् भागवत गीता का घोर अपमान है। यह धर्मग्रंथ के साथ छेड़छाड़ है। यह अधिकार किसी को नहीं है।
पं. कन्हैयाप्रसाद मिश्रा जी ने श्रीमद् भागवत गीता में छपे फोटो को देखते ही कहा कि यह पद का दंभ है, यह एक घृणित कार्य है। यह हिन्दुओं का पवित्र ग्रंथ है। इसके साथ खिलवाड़ अशोभनीय है।
पं. शिव पाण्डेय ने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता या रामायण किसी भी महान धर्मग्रंथों में इस प्रकार फोटो छपवाकर हिन्दु धर्म आस्था में ठेस पहुंचाना है। यह एक अनापेक्षित राजनीति है।
हरिप्रसाद पाठक ने कहा कि यह पूर्णत: अनुचित है। आज मुख्यमंत्री है। डा. साहब तो स्व. विघ्नहरण जी का फोटो गीता में छपवा दिए कहीं प्रधान हो जाएंगे तो अपना फोटो धर्मग्रंथों में छपवाकर न बंटवा दें।
यस वर्धन (नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस) जगदलपुर
ब्ण्डण् के पिता हो या प्रधान मंत्री के पिता यह कृत्य गलत है किसी को भी यह अधिकार नही की पवित्र ग्रंथ में फोटो छपवा कर बटायें मुख्य मंत्री रमन सिंह के जिस भी उददेष्य से यह परम्परा शुरू कि हो वो चाहे अपनें प्रचार के लिए हो या अपनें पिता को भगवान का दर्जा दिलानें के लिए हो यह सरासर एक धार्मिक ग्रंथ का अपमान है इसकी हम निंदा करते हैं।
तरसेम सिंह गिल(नगर पालिका उपाध्यक्ष) कोंण्डागांव.
धार्मिक ग्रंथ वो चाहे किसी धर्म का हो इस तरह से उसके अपमान करना वो भी राय के मुखिया द्वारा यह कृत्य गलत है और हम इसकी निंदा करते हैं।
मोहन मरकाम कोंण्डागांव.
राय के मुखिया सत्ता के नषे में चुर हो कर पवित्र ग्रंथ का अपमान सम्मान का अर्थ ही भुल गये हैं ये धर्म कि बात है हम इसकी निंदा करते हैं।
मनीश श्रीवास्तव कांग्रेसी कोंण्डागांव.
लगता है डां रमन सिंग दुसरी पारी में अपनें आप कों भगवान समक्षनें लगे हैं इतिहास में कभी आज तक एैसा नही हुआ रमन सिंग जी भले ही अपनें पिता को भगवान समक्षते हों मगर पवित्र धार्मिक ग्रंथ का अपमान करनें का उन्हें कोई हक नही।

ठेकेदार की उदासीनता से रोड निर्माण में विलंब

ठेकेदार की उदासीनता से रोड निर्माण में विलंब
सिमगा। ग्राम पंचायत जर्वे में सीसी रोड के लिए 2008 में टेडर पास हो गया है लेकिन इसका ठेका संजय अग्रवाल ने लिया है लेकिन लापरवाही के कारण अभी तक कार्य रुका हुआ है। इससे ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरपंच राधेश्याम का कहना है कि जब वे उनसे इस बारे में बात करते हैं तो वो बात को न ध्यान देते हुए बाहर में बेवजह 2-3 घंटे बिठा कर रखते है उसके पश्चात सिर्फ सान्तवना देते है और फोन करने पर भी कोई जवाब नहीं देते। उनसे मिलने के लिए उनके ऑफिस मेलियन प्लाजा जाने पर लापरवाही बरतते है। शासन से आग्रह करते हैं इसके बारे में तत्काल कार्यवाही करें।

कोसा बुनकरों का पलायन

रायगढ़। कोसा के कपड़े के लिए रायगढ़ जिला प्रसिध्द रहा है यहां से कोसा कपड़े देश के बड़े शहरों एवं विदेशों में भी भेजा जाता रहा है। यहां के कोसा साड़ी आज से 30 वर्षों पूर्व रुपए 125 में बिका करता था और कोसा जीन कपड़ा 6 मीटर का 10-10 तार का 150 रुपए मूल्य था। महंगाई बढ़ते गया और बुनकरों का व्यवसाय रोजी रोटी बिगड़ता गया। वर्ष 1970 में राय वस्त्र निगम रायगढ़ डीपो में बुनकरों का बनाया कोसा कपड़ा और साड़ी जमा होता था प्रदेश के राय वस्त्र निगम ने बुनकरों का कोसा वस्त्र खरीद कर बाहर भेजा करता था वर्ष 2000 में कुछ व्यक्तियों के द्वारा गलत कोसा मिलावटी याने पोलिस्टर धागों से बने कपड़े को भी कोसा के नाम से जमा किया और कोसा वस्त्र निगम के अध्यक्ष बने श्री जगदीश प्रसाद मेहर ने मनमाने कीमत पर खरीदी और इकट्ठा होने लगा। तब कोसा कपड़ा बदनाम होते फिर दो वर्ष में ही यहां का राय वस्त्र निगम बंद हो गया। तब से बुनकर जाति (कोस्टा) के कुशल बुनकर समुदाय ने बुनाई बंद कर दिया और अन्य साग सब्जी, रेडीमेट वस्त्र बिक्री करना प्रारंभ किया। कुछ बुनकरों ने तो रिक्शा चला कर परिवार का पालन पोषण करते रहा है। कोसा का कपड़ा का व्यापार दूसरे जाति के लोग अपना लिए है और असली कोस्टा जाति के लोग मजदूरी करते नजर आते हैं। शासन का ध्यान इस कोस्टा जाति के पुन: निर्माण संचालन पर कोई ध्यान नहीं है। शासन के योजनाओं का लाभ बुनकर नहीं उठा पाए आज तक।
राय शासन ने शासकीय बुनकर सहकारी समिति बनाए किन्तु अध्यक्ष सचिव ने योजना का लाभ उठाया लखपति बन गए है किन्तु कोस्टा जाति बनकर भी नहीं रह सके। मात्र अंगूठा निशान लगाने लगते रहें। यहां के हाथ करधा कार्यालय में मात्र एक लघु हाथ करघा उद्योग ही जीवित है जो बीमार पड़ा है। राय शासन का ध्यान इस कोस्टा जाति बुनकर समुदाय पर देने और बुनकर जो पूर्वजों को द्वारा बनाए रोजगार को पुन: जीवित करने दूसरों के मजदूरी करने को मजबूर कोस्टा जाति के लोग अपने वस्त्र निर्माण में लगे शासन को ध्यान देने योजना बनाना लागू करना अति आवश्यक हो गया है। क्योंकि कोस्टा जाति के लोग ही कोसा वस्त्र निर्माण कर देश में और विदेशों में शासन के द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में भाग लेकर ही कोसा वस्त्रों का निर्यात करने की क्षमता भी रखते हैं। आज की गरीबी में कोसा साड़ी 1500 रुपए से लेकर 15000 कीमत और कोसा कपड़े 150 रुपए प्रति मीटर से उपर चल रहा है।

दिनेश की हत्या का संदेह

सिमगा। ग्राम पंचायत रावन के सरपंच ने पिछले दिनों भालू कोना मार्ग पर 20 वर्षीय दिनेश वर्मा की मौत पर हत्या का संदेह व्यक्त करते हुए जांच की मांग की है। प्रेस को जारी बयान में सरपंच शिव करसायल ने कहा कि दिनेश के पिता बजरंग वर्मा ने उससे हत्या का संदेह व्यक्त कर सुहेला पुलिस से जांच की मांग की है।