शुक्रवार, 4 मई 2012

फिर सुराज का क्या मतलब...


अभी राजा का ग्राम सुराज खतम हुए सप्ताह भी नहीं बीता है कि छत्तीसगढ़ के  कोने-कोने से लोगों को दरबार में आना पड़ गया। जनदर्शन के इस भीड़ को सरकार की लोकप्रियता के पैमाने में तौलने वालों के बारे में हमें कुछ नहीं कहना है लेकिन इस भीड़ ने ग्राम सुराज के उस दावे का पोल खोल दिया है जिसमें सरकार अपने द्वार का दावा किया जाता था।
सरकार लाख सफाई दे कि बजट सत्र और ग्राम सुराज की वजह से जनदर्शन डेढ़ माह तक नहीं हो पाया था इसलिए जनदर्शन में भीड़ रही लेकिन ग्राम सुराज मे तो पूरी सरकार गांव-गांव में लोगों तक पहुंची थी फिर तीन दिनों में ही प्रदेश भर के लोगों को राजा के दरबार आना क्यों पड़ा। क्या इसका मतलब नहीं है कि ग्राम सुराज से आम लोगों का विश्वास उठ गया है और वे ग्राम सुराज अभियान में अपनी समस्या बताने के बजाय सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर चलकर राज दरबार तक पहुंचना चाहते  है।
दूसरी बात यह है कि 7-8 साल के शासन के बाद भी लोगों को अपनी समस्या के लिए दरबार तक आना पड़े तब यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर जिलों व तहसीलों में बैठे अफसर क्या कर रहे है क्या वे, लोगों का काम नहीं कर रहे हैं इसलिए लोगों को राजधानी का चक्कर लगाना पड़ रहा है या राजा की बात उनके मातहत नहीं मानते और अपने प्रशासन में उनकी पकड़ नहीं है।
कल भी जनदर्शन में आने वाले लोगों ने जिस तरह से समस्याएं रखी है उसके बाद तो यह तय है कि प्रदेश में कुछ भी ठीक नहीं है। खदानों में उत्खनन हो रहा है और जनता को बिजली-पानी जैसी समस्याओं से जुझना पड़ रहा है। नौकरशाह इतने लापरवाह हो गये है कि उन्हें इस बात का भी डर नहीं है कि जब उनकी शिकायत राजा से होगी तो क्या होगा? गरियाबंद से बस्तर और बिलासपुर से सरगुजा तक के लोग जनदर्शन में इसलिए आ रहा है कि उनकी समस्या सालों से यथावत है।
वैसे भी हम ग्राम सुराज को किसी नौटंकी से कम नहीं समझते है और इस पर जो किये जा रहे है करोड़ों रुपये के खर्च को हम फालतू मानते रहे है और यह सब जनदर्शन में लगी भीड़ से पुख्ता हो रहा है कि ग्राम सुराज नौटंकी और अफसरों का पिकनिक जैसा रहा है और जब मुख्यमंत्री स्वयं एन्जॉय करने की बात कह चुके है तब इस ग्राम सुराज की नौटंकी बंद कर देनी चाहिए।