बुधवार, 2 जनवरी 2013

परिवर्तन के स्वर को धरातल पर लाने का संकल्प---


अन्ना का आन्दोलन, रामदेव का तामझामए प्रमुख राजनैतिक दल कांगेे्रस-भाजपा की करतूतों, उद्योगों की चालबाजी और छत्तीसगढ़ की रमन सरकार के कालिख पूते चेहरे, रोगदा बांध का बिकना, और महिला अत्याचार की दर्दभरी दास्तान के साथ 2012 भी बीत गया।
बीती ताही बिसार दे आगे की सुध ले। आखिर कब तक हम सच से अपने को दूर रखे। सच तो यह है कि अतीत को भूल जाने की सलाह वही देते हैं जो अतीत के काले सच से सराबोर होते है। जबकि अतीत का काला सच ही भविष्य के प्रकाश का रास्ता होता है। हर साल नये वर्ष में अतीत के स्याह पक्ष को भूलने की सलाह ने ही वर्तमान में भी अंधेरा फैलाने का काम किया है। और राजनैतिक दलों में समाजसेवा की बजाय पैसे की भूख बढ़ी है। इसलिए अब हम इस स्याह पक्ष को भूल जाने की बजाय इसकी खिलाफत की बात कर रहे है।
 बहुत हो चुका, रक्षक के भेष में भक्षकों की ताज पोशी। इसलिए हमें अब नये साल में बदलते तारीख के साथ समाज के  दुश्मनों को पहचान कर उसके खिलाफ खड़े होने का संकल्प लेना है। और इसकी शुरूआत अपने आसपास से ही की जानी चाहिए।
छत्तीसगढ़ राÓय निर्माण के समय क्या नहीं सोचा गया था। टैम्स फ्री राÓय की बात तक की जाती रही। बिजली के मामले में खूब प्रसार हुआ। और रतनजोत से नई क्रांति की बात कही जाने लगी। क्या हुआ? इन बातों का? क्यों सरकार अपने वादे से मुकर गई।
नई राजधानी पर करोड़ों-अरबों फंूकने वाली सरकार के पास शिक्षा-स्वास्थ्य प्राथमिकता क्यों नहीं है। जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद औकात से बढ़कर रहन सहन कैसे हो गया। जब किसानों को 270 रूपये बोनस देना ही नहीं था तब वादे क्यों हुए। जब शिक्षा कर्मियों का संविलियन होना ही नहीं था तब संकल्प का नाम क्यों दिया गया और जब तिवारी कमेटी की अनुशंसा माननी ही नही थी तब कमेटी क्यों बनाई गई। आन्दोलन करने वाले अपनी मांग पूरी होने पर अपने साथ हुए अन्याय को शायद भूल भी जाये लेकिन क्या उन लोगों को यह सब भूलना चाहिए जो सरकार के रवैये की वजह से हुए आन्दोलन के कारण आते जाते बेवजह परेशान हुए।  क्या लोगों को कोयले की कालिख भूल जानी चाहिए या बांध बेचना भूलना चाहिए? उद्योगों के लिए जबरिया खेती की जमीनों की बरबादी को कैसे भूला जा सकता है या करीना को नचाने खड़ी फसल पर बुलडोजर चलाने की तुगलकी फरमान भूला जा सकता है।
बढ़ते अपराध, लुटती बेटियां को कैसे भूला जा सकता है।
बारह साल में छत्तीसगढ़ में शिक्षा को दूकान बनाने में सरकार जिस तरह से सरकारी स्कूल कालेजों को बरबाद किया है वह कैसे भूला जा सकता है और न ही चिकि त्सा के अभाव में मरते लोगों को भूलना मानवता के लिए कितना ठीक होगा।
सत्ता की ऊंची दौड़ ने गाँवों के विकास को अवरूद्ध कर दिया है। सत्ता मे बैठे लोगों के अपराधिक गठजोड़ ने इस शांत प्रदेश को अपराध के आंकड़े में सबसे उपर ला दिया है। हर विभाग भ्रष्टाचार में गले तक डुब गया है और कुर्सी में बैठने वालों ने सात पीढ़ी की व्यवस्था कर ली है या करने में लगे है।
यदि कांग्रेस के छत्तीसगढ़ में हार की वजह से भी भाजपा ने सबक नहीं लिया है तो इसके परिणाम की चिंता जनता को करनी पड़ेगी ।
अब पिछली बातों को भूलने की बजाय इससे सबक लेने का समय ही नहीं है बल्कि इस पर प्रहार करने की जरूरत आ पड़ी है। हर अपराध के खिलाफ  खुल कर खड़े होने का समय है। अपराधी चाहे अपना ही क्यों न हो।
आओं वर्ष 201& का स्वागत इसी संकल्प के साथ करें।