शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

30-32 करोड़ का माल 5 लाख में...

लोकतंत्र की जय हो, लोकतंत्र अमर रहे। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को यह नारा जोर-शोर से लगाया जाता है। इस बार भी यह नारा लगेगा और झक सफेद कपड़े में मुख्यमंत्री से लेकर जनप्रतिनिधि शपथ भी लेंगे और इसके चंद मिनट बाद कई लोग उद्योगपतियों के साथ नजर आएंगे किसानों को कंगाल करने के फैसले होंगे। विकास के नाम पर आम लोगों की उपजाऊ जमीन छीन ली जाएगी और मुआवजे के नाम पर कुत्तों की तरह रोटी डाल दी जाएगी।
छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर राय है और यहां विकास के नाम पर सरकार जिस तरह से जमीनें अधिग्रहित कर रही है उससे आने वाले दिनों में विकास की गंगा बहनी तय है? नई राजधानी के नाम पर सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन पर कांक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है। कितने लोग बेघर हो गए और उन्हें मुआवजे के नाम पर जबरिया हटा दिया गया। उद्योगों को जमीन बेचने सरकारी एजेंट घूम रहे हैं। यहां भी उपजाऊ जमीन बर्बाद किया जा रहा है। उद्योगों को लोहे की खदानें दी गई जंगल काटे जा रहे हैं। पानी तक बेची जा रही है जबकि किसानों के लिए सरकार के पास पानी नहीं है।
सबसे दुखद पहलू तो मनमाने ढंग से कोल ब्लॉक का बंदरबांट है। सरकारी के अलावा निजी जमीनों के नीचे भी कोल ब्लाक हैं और इन जमीनों को 4-5 लाख रुपए एकड़ में उद्योगपतियों को बेचने सरकारी षडयंत्र रचा जा रहा है। पूरी सरकार इन निजी जमीनों को उद्योगपतियों को दिलाने गांव वालों पर दबाव डाल रहे हैं और उद्योगपति कोयलेवाली निजी जमीन 4-5 लाख रुपए में खरीदने लाखों खर्च कर रही है। इसकी वजह न क्षेत्र का विकास है और न ही आम लोगों को फायदा देना है बल्कि इसकी वजह एक एकड़ जमीन के नीचे मौजूद 30-32 करोड़ का कोयला है। क्या दुनिया में इससे सस्ता सौदा हो सकता है कि 30-32 करोड़ के कोयले के बदले सिर्फ किसानों को 4-5 लाख रुपए दिए जाए। लेकिन उद्योगपतियों की इस करतूत को सरकार भी समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर कोल ब्लाक दिए गए हैं उससे उद्योगपतियों को जो हर साल कमाई होनी है वह छत्तीसगढ़ सरकार के कुल बजट 22 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। यह कैसे आम लोगों की सरकार है जो कोयले वाली जमीन 4-5 लाख रुपए में देने उद्योगपतियों के लिए बिचौलिये-दलाल की तरह काम कर रही है। क्या इन किसानों की स्थिति बस्तर के उस लूट के बराबर नहीं है जो आदिवासियों से चिरौजी के बदले नामक देते थे। क्या सरकार को नहीं मालूम है कि जिस कोयले वाली जमीन को 4-5 लाख रुपए एकड़ में जिंदल या दूसरे लोग ले रहे हैं उसके नीचे 30-32 करोड़ रुपए का कोयला है। प्रकाश इंडस्ट्रीज को कोल ब्लॉक गलत दी गई यह अजीत जोगी भी कह रहे है और वे इसे भूल मानते हुए रमन सरकार से सुधारने की बात कह रहे है लेकिन गलत आबंटन का विरोध करने वाली रमन सरकार भूल सुधारने तैयार नहीं है। लगातार उद्योग को लेकर विधानसभा में रमन सिंह कहते हैं कि जब सब लोग कह रहे हैं तो नए ईएमयू नहीं करेंगे। लेकिन जो लोग उद्योग लगा रहे हैं उनके अत्याचार, अवैध कब्जों पर सरकार खामोश है। इतनी सरकारी अंधेरगर्दी पर जनता खामोश है तो इसकी वजह सरकारी हठधर्मिता ही है। लेकिन सरकार को भी सोचना होगा कि कोई पैसे लेकर नहीं जाता है। यही छोड़ना है। आम लोगों की आह का असर होगा। यह ध्यान रहे।

जल, जंगल, जमीन का फैसला कैसे हो?

क्या इस देश में ऐसी कोई सरकार है जिसे 50 फीसदी से अधिक लोगों ने अपना मत दिया है। शायद नहीं। नेता तो कई मिल जाएंगे जिन्हें उनके क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक लोग पसंद करते हैं। छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी ही ऐसे नेता हैं जिन्हें उनके विधानसभा क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक लोगों ने वोट देकर जीताया है। लेकिन सर्वाधिक वोट से जीतने के बाद भी वे कहां है? यह संवैधानिक व्यवस्था है या अव्यवस्था यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कुल मतदान का 30-40 फीसदी वोट पाकर सत्ता में बैठे लोग किस तरह से फैसले लेते हैं इसका उदाहरण है आजादी के 63 साल बाद के बाद भी आम आदमी का जीवन स्तर कहां है।
कैसे कोई चुनाव जीतते ही लखपति-करोड़पति बन जाता है? इस देश का आयकर, सीबीआई, अपराध ब्यूरों को क्या यह नहीं दिखता? भ्रष्टाचार की इस टोली ने जल, जंगल और जमीन तक को नहीं छोड़ा? क्या ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता कि कम से कम इन मामलों में तो आम लोगों को राय ली जाए। क्या यही व्यवस्था है कि पूरा जीवन जंगल में गुजारने वालों को जलाऊ लकड़ी काटने तक की छूट नहीं है। यह सर्व सत्य है कि जंगल आदिवासी बसाते हैं उसे बर्बाद नहीं करते। जंगल तो सिर्फ नेता-अधिकारियों और कुछ ठेकेदार नष्ट कर रहे हैं। फिर उन्हें अधिकार क्यों नहीं है। पूरे देश में जिस तरह से विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन से खिलवाड़ कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है वह आने वाले दिनों में भयंकर त्रासदी बनकर आने वाला है।
यदि नेताओं और अधिकारियों ने रातों रात अपनी तिजौरी भरी है तो उनकी तिजौरी में जमा पूंजी के 80 फीसदी हिस्सा जल, जंगल और जमीन को बर्बाद करने के एवज की की है शेष 20 फीसदी ट्रांसफर-पोस्टिंग और निर्माण कार्यों की है। क्या गांधी का नाम लेकर सत्ता पर बैठने वालों ने कभी गांधी के दर्शन पर कार्य करने की दूर सोचा भी है कि स्वराज के मायने क्या है। क्या यही स्वराज है कि पैसा कमाने के लिए नेता या अधिकारी बन जाओं। आम आदमी से टैक्स तो लो लेकिन उसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी जैसी मूलभूस सुविधा भी ना दो।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है पेंशन का खेल बंद कर यदि सरकार सिर्फ स्वास्थ्य, पानी और शिक्षा पर काम करे तो भारत अब भी सोने की चिड़िया बन सकती है। जिसे इस देश के बाहर पढ़ना है वे पढ़े। पहले भी तो गांधी-नेहरु से लेकर कितने लोगों ने विदेशों में जाकर पढ़ाई की लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग धर्नाजन की बजाय लोकहित में लगाया। विकास के नाम पर अब जल, जंगल, जमीन की बर्बादी बंद हो। सेवा के नाम पर आम लोगों के पैसों की बर्बादी बंद होनी चाहिए। सरकार के पास अब भी समय है। नेताअओं के पास अब भी समय है कि वे अपने पैसा कमाने की भूख पर विराम लगाए वरना कल तक जो लोग सिर्फ जूता फेंककर आक्रोश व्यक्त करते रहे हैं अपना कदम आगे भी बढ़ा सकते हैं। इसलिए अब भी समय है कि आम लोगों से लिए टैक्स से अपनी सुविधा बढ़ाने का प्रपंच बंद हो जाए।
आखिर जनता के सेवा के बदले कोई व्यक्ति तनख्वाह कैसे ले सकता है। जनसेवा की कीमत वसूलने के बाद भी वह चैन से कैसे सो सकता है। इतने छल प्रपंच के बाद कोई सुखी कैसे रह सकता है। हम उस देश के वासी है जहां कर्मों के फल पर बात होती है इतना बढ़ा धोखा आम जनता से कि सेवा कर लिया जाए। समय बदल रहा है और इस समय के साथ हमारी नई आजादी को जो समर्थन और सहयोग मिल रहा है उससे व्यवस्था में बदलाव आएगा। जरुर आएगा।

मदन गोपाल का खेल मंत्री मोहन भी फेल

कर्मचारी संगठनों से मिलकर षडयंत्र!
 छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के कथित एमडी मदन गोपाल श्रीवास्तव के कारनामों को लेकर अन्य अफसरों में भय व्याप्त होने की असली वजह यहां के कर्मचारी संगठन को बताया जाता है। जो श्रीवास्तव के इशारे पर न केवल अधिकारियों बल्कि मंत्री या अध्यक्ष तक से भिड़ने का माद्दा रखते हैं।
छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल में भारी भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर जबरदस्त चर्चा है और कहा जाता है कि जिस प्रबंधक मदन गोपाल श्रीवास्तव को पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का संरक्षण प्राप्त था वही मदन गोपाल अब भ्रष्टाचार की भूमिका में आ गए हैं और पर्यटन मंडल को कर्मचारी संगठन के कुछ पदाधिकारी के साथ मिलकर अपने हिसाब से न केवल चला रहे हैं बल्कि उनके कार्यों में बाधा डालने वालों को इसी संगठन के पदाधिकारियों के मार्फत मोर्चा खुलवा देते हैं।
सूत्रों के मुताबिक पर्यटन मंडल में घास घोटाले, बाउण्ड्री घोटाले, मोटल घोटाले, स्टेशनरी घोटाले के अलावा ऐसे कई घोटाले हैं जिन पर महालेखाकार नियंत्रक ने भी तीखी टिप्पणी की है। लेकिन मंत्री का वरदहस्त मदन गोपाल श्रीवास्तव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि मदन गोपाल श्रीवास्तव के खिलाफ दो दर्जन से अधिक शिकायतें है। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने की वजह मंत्री के संरक्षण के अलावा कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों की भूमिका की भी चर्चा है। सूत्रों ने बताया कि कर्मचारी संगठन को अपने कब्जे में रखने एम.जी. श्रीवास्तव द्वारा कई तरह के काम किए जाते हैं। पिछले माह गोल्डन टयूलिप जैसे महंगे होटल में कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों की बैठक को इसी रुप में देखा जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि गोल्डन टयूलिप का खर्च भी उठाया गया।
कहा जाता है कि पर्यटन मंडल के वे कर्मचारी उन लोगों के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं और शिकायत ज्ञापन देते हैं जो एमजी श्रीवास्तव के लिए बाधक बन सकते हैं। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि मंत्री पर भी अब दबाव बनाने कर्मचारी संगठन के कुछ पदाधिकारियों को इस्तेमाल करते हुए मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को भी ज्ञापन सौंपा जा चुका है। सूत्रों ने बताया कि पर्यटन मंडल में शराब-शबाब की जबरदस्त चर्चा है और इसे लेकर कई तरह की कहानियां भी सामने आने लगी हैं। इसकी शिकायत भी उच्च स्तर पर की गई लेकिन कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं हुई। बहरहाल पर्यटन मंडल को लेकर यह चर्चा गर्म है कि मंत्री का संरक्षण पाकर श्रीवास्तव जी भस्मासूर हो चुके हैं और इस पर शीघ्र ही विराम नहीं लगा तो आने वाले दिनों में मंत्री-सचिव और मंडल अध्यक्ष के लिए भी नई मुसिबत खड़ी हो सकती है।