गुरुवार, 21 जनवरी 2021

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...


 

यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी किसानों के मामले को लेकर भूपेश सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की बजाय मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन करती।

दरअसल दिल्ली सहित पूरे देश में तीन कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलन ने न केवल मोदी सत्ता के चेहरे से नकाब उतार दिया है बल्कि भाजपा को अपनी जमीन खिसकते नजर आ रही है। यही वजह है कि एक तरफ मोदी सत्ता कृषि कानून को डेढ़ साल टालने को तैयार हो गई है तो छत्तीसगढ़ में अपना वजूद बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रही है।

यह बात कोई कैसे इंकार कर सकता है कि छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तो किसानों की बदहाल स्थिति को देखते हुए जोगी सरकार (कांग्रेस) ने यहां के किसानों का एक-एक दाना खरीदना शुरु कर दिया लेकिन जैसे ही 2003 में भाजपा सत्ता में आई उसने प्रति एकड़ 15-20 क्विंटल धान ही खरीदा। तीन सौ रुपए बोनस देने की घोषणा भी मोदी सरकार बनते ही ध्वस्त हो गया और ऐसे कई निर्णय लिये जिससे किसानों की तकलीफ बढ़ा दी।

ऐसे में जब 25 सौ रुपये क्विंटल धान खरीदने के वादे के बीच जब भूपेश सरकार सत्ता में आई तो इसमें मोदी सरकार द्वारा कई तरह की अड़ेगेबाजी की गई। एफसीआई के द्वारा उठाव से लेकर बारदाने के मामले में भी मोदी सत्ता की अड़ंगेबाजी सबके सामने है। इसके बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार ने जिस तरह से धान खरीदी वह अपने आप में एक उदाहरण है। यही नहीं कृषि और गांव विकास को लेकर नरवा-गरवा-घुरवा-बारी और गोबर खरीदी जैसे योजना ने जब वाहवाही लुटी तो विपक्ष सन्नाटे में आ गया।

अभी जब तीन कानून को लेकर भाजपा के सामने दिक्कत खड़ी हुई तो स्थानीय भाजपाईयों के सामने अपने अस्तित्व बचाये रखने की चुनौती खड़ी हो गई। ऐसे में 22 जनवरी को भाजपाई आंदोलन खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को ही चरितार्थ करता है।

अंत में- सत्ता की रईसी बरकरार रखने का मोदी सत्ता का खेल चालू है सेल के शेयर बेचने की योजना के साथ अब मोदी सरकार टीएलसी की अपनी सम्पूर्ण 26 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर 84 सौ करोड़ कमाने की योजना है। पहले टीएलसी का नाम विदेश संचार निगम लिमिटेड नाम था। इस तरह से कंपनी बेचकर सत्ता की रईसी बरकरार रखने की कोशिश जारी है।