शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

कहानी कुछ अलग है...

 

ये रोटी के लिए झगड़ते बंदरों को मुर्ख बनाते सियार की कहानी कतई नहीं है और न ही डाकू गब्बर सिंह की ही कहानी है यह तो साफ-साफ उस सोने के कंगन के लालच में दलदल में बैठे आदमखोर के पास लाकर अपनी मौत मरने की कहानी है।

गुलनार साहेब ने कहा था कि बेहतर की तलाश में ऐसा न हो कि हम बेहतरीन दिन खो दें। लेकिन दिवारों में लिखी ईबादत को कौन पूछता है? सबकी अपनी सोच है और अपनी सुविधानुसार परिभाषा गढऩे की आजादी। ऐसे में हम किसी को आदर्श भले ही कह दें लेकिन उस रास्ते पर कौन चलता है।

अच्छे दिन आयेंगे का मतलब का हम बेहतर चाहते हैं, हर व्यक्ति चाहता है कि उसका आने वाला दिन बेहतर हो लेकिन ठंड से बचने के लिए कोई घर को ही आग नहीं लगाता। सत्ता का अपना चरित्र है और सत्ताधारी नेताओं के चरित्र की बात ही बेमानी है, विपक्ष में रहते जिन मुद्दों पर वह हाय तौबा मचाती है, सत्ता आते ही वही मुद्दे उन्हें देशद्रोही लगने लगता है! देशद्रोही की नई परिभाषाएं गढ़ी जाने लगी है, आलोचना को बर्दाश्त करने की ताकत सत्ता के पास कब रही है। 

सत्ता पाने नफरत की दीवारें खड़ी करने का खेल तो स्वतंत्रता आंदोलन के दौर से ही शुरु हो गया था। साथ ही शुरु हुआ था हिन्दुत्व का खेल। इस खेल को मजेदार और विजयी बनाने नफरत, अफवाह और झूठ की चाशनी में लपेटा जाने लगा। अच्छे दिन के सपने दिखाये जाने लगे। हिन्दूत्व के अस्तित्व को खतरा बताने के लिए लालच देने का दौर का लंबा इतिहास है। पंचतंत्र के उस आदमखोर शेर की तरह सोने का कंगन तलाशा गया और जो भी इस कंगन को पाने जाता वह मारा जाता लेकिन वह कहानी है, इसलिए इसमें फेरबदल किया गया। कंगन की जगह अच्छे दिन के सपने सजाये गए। उस कहानी में तो सिर्फ लालची आदमी मारा जाता था लेकिन इस कहानी में सद्भावना, प्रेम, एकता, भाईचारा समाप्त होने लगी लेकिन बेहतर की तलाश में समाप्त होते रिश्ते की मौन परवाह करता है। कीचड़ मौजूद रहे बस। सत्ता की यही कोशिश रही ताकि लोग फंसते रहेे।

लोकतंत्र का मतलब ही बदल गया। लोकतंत्र का मतलब जन सरोकार की बजाय चुनावी जीत हो गया। और उस आस्था को इतना बड़ा कर दिया गया जो अंधविश्वास के रास्ते पर चल पड़े। आस्था से उत्पन्न अंधविश्वास की पराकाष्ठा सबके सामने है, जिस देश में सत्य और अहिंसा के दम पर आजादी मिली वहां झूठ स्वीकार्य हो गया, यह अलग बात है कि जो लोग अपनी पत्नी और बच्चे के झूठ पर क्रोधित हो जाते हैं उन्हें साहेब का झूठ अपनी बरबादी और देश की बरबादी के स्तर पर पसंद है।