हमने पहले ही कहा है कि सिर्फ जबानी जमा-खर्च से काम नहीं चलने वाला है। सत्ता को जन सरोकार से मतलब होना चाहिए लेकिन जब से मोदी सत्ता आई है भाजपाईयों के तेवर जनआंदोलन के खिलाफ हैरान कर देने वाला है। आंदोलनकारियों को देशद्रोह, दुश्मन और पता नहीं किस किस तरह की गालियों से नवाजा जाता है। जिसे हम यहां लिखने में भी शर्म महसूस करते हैं।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस किसान आंदोलन को पवित्र कहा है उसके बाद यह सवाल उठना चाहिए कि आखिर आंदोलन जब पवित्र है तो उनकी मांगे मानने में सरकार को दिक्कत क्या है? आंदोलन पवित्र है तो फिर बार्डर पर दुश्मनों जैसा व्यवहार करते हुए किले, खाई, क्यों खोदी गई, पानी-बिजली की सप्लाई क्यों रोकी गई। और इन सबसे भी बड़ा सवाल है कि भाजपा के पदाधिकारी से लेकर कई कार्यकर्ता उन्हें देशद्रोह आतंकवादी नक्सली किस बिना पर बोल गये? खुद प्रधानमंत्री ने आंदोलनजीवी-परजीवी जैसी भाषा कैसे बोल गये?
क्या यह सच नहीं है कि प्रधानमंत्री के परजीवी वाली भाषण की जब चौतरफा प्रतिक्रिया हुई तो वे आंदोलन को पवित्र कह गये! दरअसल यह तीनों कानून ही किसानों की बजाय पूंजीपतियों का संरक्षण अधिक करता है। असीमित भंडारण से तो आम आदमी का बुरा हाल होगा ही खुद मोदी सत्ता ने कालाबाजारी और जमाखोरी को संरक्षण दे दिया है।
ऐसे में सवाल कई है लेकिन सरकार सवालों की जवाबदेह से बचकर दूसरी ही बात कह रही है तब किसानों के पास आंदोलन को विस्तार देने के अलावा क्या रास्ता रह जाता है। और आंदोलन से कोई सत्ता कब तक बची रह सकती है।
आंदोलन पवित्र था है और रहेगा।
अंत में-
पवित्रता...
हल चलाने से
लेकर बीज डालने
रोपा से लेकर
निदोई करने
में लगा किसान
प्रेम और करुणआ
का सागर होता है
रोज वह फसल
के लिए दुआ
मांगता है
अपने ईश्वर से
बिल्कुल निर्भाव
पवित्र
फिर उस फसल
की कीमत
उस खेत को बचाने
की लडाई
कैसे गलत हो गया
वह भी पवित्र है पवित्र!