गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

पूरी मानव सभ्यता के लिए कोरोना का खुला पत्र.

पूरी मानव सभ्यता के लिए कोरोना का खुला पत्र....✍️श्रिया

कहते हैं प्रकृति अपना विकास हो या विनाश स्वयं कर लेती है.. और शायद आप ये बात भूल गए थे तो उसे ही याद दिलाने ये कोरोना महामारी अपने इस भयावह रूप के साथ वापस आई है...

ये वक़्त एक दूसरे को कोसने या बेफिजूल के बहस में समय व्यर्थ करने का नही बल्कि ये सोचने का है कि, ये पृथ्वी आपको क्या सीखना चाह रही है..? किन वास्तविकताओँ से आपका परिचय करना चाह रही है..?
इन्हीं कुछ मुख्य बातों पर गौर फरमाइए..!

1} शादी:- आजकल 25 लाख से कम में किसी की शादी नही होती.. लेकिन सोचिये की क्या इसकी सच मे जरूरत होती है.. जवाब मिलेगा बिल्कुल नही..सादगी के साथ सिर्फ उतने ही लोग जितनी जरूरत हो जितने की आशीर्वाद हेतु आवश्यकता होती है... दिखावे की इस दुनिया से बाहर निकलने की सीख यह कोरोना बीमारी आपको दे रही है...

2}माल, फ़ूड, मनोरंजन:- इन सब ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए आपको बेहिसाब मेहनत करनी पड़ती है ताकि आप जरूरत से ज्यादा कमा सके और उन पैसों को मनोरंजन हेतु मॉल , फूड या फिर लग्जरियस गाड़ी से उतरकर अपनी शेखी बघारने में खर्च कर सके.. लेकिन इस कोरोना वायरस ने सबको एक ही लाइन पर लाकर खड़ा कर दिया है क्योंकि अब आपके पास लंबोर्गिनी भी होगी तो वहआपके घर के बाहर धूल खाती पड़ी होगी और बाहर निकलने के लिए आपको पैदल या साइकिल की ही जरूरत होगी...

3} पैसो की जरूत:- कोरोना आपको यह सिखाना चाह रही है कि आपको आखिर कितने पैसों की जरूरत पड़ती है.. सिर्फ उतनी ही जिससे आप दो वक्त की रोटी खा सकें और अपने परिवार के चेहरे पर खुशी ला सके,  ना कि अपनी पूरी जिंदगी को भागदौड़ में बिताते हुए पैसे कमा कर अपनी परिवार को लग्जरियस लाइफ दे सके.. और इस चक्कर में आप अपनों से दूर हो जाते हैं, परिवार टूट के बिखर जाते हैं ..लेकिन हम अपनी लालच में इस कदर डूबे रहते हैं कि इस बारे में सोचते ही नहीं कि बिना परिवार के यह पैसे किस काम के..?  तो सिर्फ उतना ही कमाए जितना आपके जिंदगी को गुजारने के लिए जरूरी है अधिक धन संग्रह आपको व्यासना की ओर धकेलता है..

4} खुशी का अर्थ:- कोरोना आपको यह सिखाना चाह रहा है कि आखिर जीवन में वास्तविक खुशी क्या है..?
 देश और दुनिया को बदलना आपके बस में नहीं क्योंकि प्रकृति अपने अनुसार स्वयं का परिवर्तन करती है आप मंगल पर पहुंचना चाहते थे,  लेकिन प्रकृति तो धरती पर ही रहना चाह रही थी..और उसने आपको ही उस एक कमरे में बंद करके रख दिया है.. जहां से आप मंगल तो जाना छोड़ घर के बाहर तक नहीं निकल सकते...फिर इतनी हाय तौबा करने से क्या फायदा..!

5}. प्रसिद्धि का पैमाना:- कोरोना ने आपको यह समझा दिया है कि आखिर प्रसिद्धि का क्या पैमाना होना चाहिए अगर वैश्विक महामारी के दौर में आप अपने आस-पड़ोस के लोगों की मदद करते हैं तो आप श्रेष्ठ हैं..
ना कि बड़ी-बड़ी बातें कर,  टीवी पर आने , ऑटोग्राफ देने या भीड़ के सामने हाथ हिलाने वाले को महान समझा जाए.. क्योंकि जब प्रकृति अपने वास्तविक रूप में आती है तब यह सभी जो तथाकथित प्रसिद्ध और महानहस्ति थे..वह भी अपने घर में दुबके बैठे हैं इसलिए श्रेष्ठ या महान बनने के लिए जरूरी नहीं कि करोड़ों लोग आपको जाने बल्कि वे लोग आपको जाने जिनसे आप रोज मुलाकात करते हैं और किसी एक व्यक्ति के भी काम आ सके तो आप श्रेष्ठ हैं..

6.}प्रकृति का न्याय:- पूरा विश्व फिलहाल जलवायु संकट को लेकर चिंतित था लेकिन कोई भी खनन कार्य हो या फिर औद्योगिक कार्य बंद करने को आतुर नहीं था.. एक तरफ तो आप जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़ी-बड़ी डींगे हांक रहे थे लेकिन वहीं दूसरी तरफ आपका कार्य निरंतर जारी था .. इसलिए प्रकृति ने अपने आप को फिर से रिकवर करने के लिए आप सभी को अपने घरों पर बिठा दिया...ताकि ना कोई उद्योग काम कर सके ना ही कोई खुदाई हो सके.. जितने बेदर्दी से आपने धरती का सीना चीरा है और इस वायुमंडल को अपने उद्योगों से निकलने वाले धुंवे से बर्बाद किया है.. उसका बदला लेना तो प्रकृति का धर्म था ..बिना देरी के उसने अपने साथ हुए अन्याय का बदला लिया और आप सबको अपनी वास्तविक औकात दिखा दी कि आप सिर्फ अपनी चिंता करें ना कि इस पूरे विश्व की..क्योंकि इस धरती को बनाने वाला मौजूद है..

#imshriya #कोरोना_मंथन