मंगलवार, 31 अगस्त 2010

यह अखबार की दादागिरी है या प्रशासन की नपुंसकता...

अग्रिम आधिपत्य पर ही बिल्डिंग खड़ी हो गई... 
छत्तीसगढ़ के  प्रतिष्ठित कहे जाने वाले दैनिक अखबार नवभारत ने अग्रिम आधिपत्य मिलते ही बिल्डिंग तान दी और शासन प्रशासन मूकदर्शक  बना रहा। यहां तक  कि लोग बोलते रहे लेकिन अवैध निर्माण पर कोई कुछ नहीं बोला। इस बीच शहर में कितनी ही अवैध निर्माण उजाड़ दिया गया लेकिन इस  बिल्डिंग का  बाल बांका भी नहीं हुआ।
 राजधानी में चल रहे इस गोरखधंधे पर किसी का लगाम नहीं है। अखबारी जमीनों का व्यवसायिक  उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है और शासन-प्रशासन तमाशबीन बने हुए हैं।
प्राप्त जानकारी के  अनुसार प्रदेश शासन राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग मंत्रालय का पत्र क्रमांक 4-117/साल-1/06 रायपुर दिनांक  25.7.2008 के  अनुसार नवभारत प्रेस रायपुर को रजबंधा मैदान स्थित भूमि ब्लाक  नं. 9 प्लाट नं. 1 में से रकबा 60750 वर्गफीट भूमि को  प्रेस स्थापना हेतु स्थाई पट्टे पर प्रावधानों के  अनुरूप प्रब्याजि एवं भूभाटक  लेकर आबंटन की स्वीकृति  प्रदान की  गई है।
उक्त आदेश के  परिलब्धन के  अनुसार 24.8.2008 के  अनुसार 4 करोड़ 47 लाख 12 हजार का प्रब्याजि तथा 33 लाख 53 हजार 400 रूपये वार्षिक  भू-भाटक  जमा करने नवभारत को  सूचित किया  गया लेकिन  6 माह बीत जाने के  बाद भी नवभारत ने उक्त राशि जमा नहीं कराई। उल्टा शासन को  रूपये कम करने के  लिए आवेदन दे दिया।
आश्चर्य का  विषय तो यह है कि नियमानुसार राशि जमा नहीं करने पर पट्टा नहीं दिया जा सकता और स्थाई पट्टा प्राप्त किये  बिना भवन निर्माण नहीं किया जा सकता लेकिन  पूरा शहर गवाह है कि राज्य बनने के  पहले ही नवभारत ने बिल्डिंग तान दी और बिल्डिंग के  एक  हिस्से को  एक  सरकारी विभाग को  किराये पर भी दे दिया। इतना सब कुछ होने के  बाद भी शासन-प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की । ये वहीं प्रशासन-शासन है जो अवैध निर्माण करने वालों के  खिलाफ कितनी  बार ही बुलडोजर चला चुका  है। लेकिन नवभारत के  खिलाफ कार्रवाई की  हिम्मत नहीं जुटा पाये। जबकि  ये वहीं निगम प्रशासन है जो तरूण छत्तीसगढ़ जब बन रहा था और अग्रिम आधिपत्य पर बिल्डिंग बना रहा था तो बुलडोजर चला चुका है। बताया जाता है कि ऐसा भी नहीं है कि नवभारत के  खिलाफ कार्रवाई की  कोशिश नहीं हुई है लेकिन चर्चा है कि ऐसी सोच रखने वाले अधिकारी ही दूसरे दिन हकाल दिये गये। ट्रांसफर कर दिया गया।
स्वच्छ शासन का दावा करने वाले डॉ.रमन सिंह को  भी नवभारत के कारनामों की  शिकायत की  गई है लेकिन कहा जाता है कि ऐसी शिकायतें रद्दी की  टोकरी में डाल दिया गया।
बहरहाल नवभारत की  बिल्डिंग अवैध निर्माण के  लिए आम लोगों को  चिढ़ा रही है तो एप्रोच वालों का  हौसला अफजाई कर रही है देखना है कि शासन कबतक  इस ओर से आंख मूंदे रहेगा।

सोमवार, 30 अगस्त 2010

सालों बाद निमोरा में दिखा जागरूकता...

राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता को ग्रहण लगने लगा था। मालिको के सरकारी विज्ञापन के प्रति जीभ लपलपाने की बढ़ती प्रवृत्ति ने छत्तीसगढ़ की पहचान पर ही सवाल उठाये थे। बाल्को कांड हो या मंत्रियों की घपलेबाजी, आईएएस अफसरों की काली करतूतें हो या डीजी का साहित्य प्रेम सब कुछ सरकारी विज्ञापन की बलि चढ़ रही थी। ऐसे में धरसींवा के पास निमोरा में हुई तीन मासूमों की हत्या केबाद छत्तीसगढ़ के मीडिया ने जिस तरह से रिपोर्टिंग की वह यहां के पुराने तेवर को ताजा कर दिया। हर मामले को कुरेदकर सरकार को कार्रवाई के लिए मजबूर करने वाला तेवर ही छत्तीसगढ़ के मीडिया की पहचान है। बहुत संभव है अब यह तेवर फिर से दिखने लगेगा हम यही आशा कर सकते हैं...!
सनत फिर भास्कर में
अपनी सीधे साधे छवि के लिए जाने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार सनत चतुर्वेदी ने फिर दैनिक भास्कर ज्वाईन कर लिया है। जनसत्ता से वे भास्कर क्यों गये यह पता नहीं चला है पर तीसरी बार वे भास्कर को सेवा दे रहे हैं। कितने दिन देंगे? सवाल कायम है?
सुरेन्द्र का भ्रम टूटा
देशबंधु को अपना सब कुछ मानकर सुबह से रात तक सेवा बजाने वाले सुरेन्द्र शुक्ला ने पत्रिका की ओर रूख किया तो कई लोग अचरज में रह गये कि आखिर देशबंधु में यह सब क्या हो रहा है। अब तो दामादों का खौफ भी नहीं है। इसी तरह बेर ने नई दुनिया ज्वाईन कर लिया है।
पी. बुद्धदेव की वापसी
दैनिक समवेत शिखर से भास्कर रायपुर फिर रायपुर में सब कुछ बेच-बाच कर इंदौर गए भरत पी. बुद्धदेव को इंदौर रास नहीं आया और एक बार फिर वे दैनिक भास्कर आ गए हैं। उनका मकान खरीदना इन दिनों चर्चा में है।
डीबी का हंगामा
वैसे तो भास्कर हमेशा कुछ न कुछ नया कर सुर्खियों में बना रहना चाहता है। पत्रिका के आने की हड़बड़ाहट भी भास्कर में झलकने लगी है पहले ही नेशनल लुक और नई दुनिया से झटका खा चुके भास्कर समूह कोई रिस्क लेना नहीं चाहता इसलिए डीबी स्टार शुरु कर दिया है। अब स्टोरी इसमें क्या जा रही है अभी मत पूछना? कैसे भी हो हंगामा खड़ा होना चाहिए।
पैसा कम दो दस्तखत अधिक में कराओ
कांग्रेस के प्रतिष्ठित परिवार द्वारा निकाले जा रहे अखबार में इन दिनों यही सब कुछ हो रहा अब कर्मचारी तो कर्मचारी, पत्रकार भी मजबूर है नौकरी जो आसानी से नहीं मिलती। दरअसल ऐसे दस्तखत करने वाले पत्रकार ही कब थे।

मालिक  को खुश रखो नौकरी दो जगह करो
कई पत्रकारों के लिए यह जुमला कारगर हुआ है कि ऐड़ा बनकर पेड़ा खाओ। प्रेस लाईन में दत्तक पुत्र के रूप में मशहूर पाटन छाप पत्रकार ने अब दो जगह नौकरी बजाना शुरू कर दिया है। उन्हें ‘अ’ रास आ गया है पहले भी खाने पीने के नाम से बदनाम इस युवा पत्रकार के सीधाई का लोहा सभी मानते हैं।
लुक ही नहीं दिख रहा...
भास्कर को हलाकान करने वाले नेशनल लुक अब मैनेजमेंट की वजह से गायब होते जा रहा है खबरें अब भी अच्छी है लेकिन जब बांट ही नहीं पाओंगे तो पढ़ेगा कौन ? सरकारी विज्ञापन लेते रहो।
तरूण की पीड़ा
पहले ही निगम की तोडफ़ोड़ से पीडि़त सांध्य दैनिक तरूण छत्तीसगढ़ इन दिनों पार्किंग की वजह से परेशान है। नियमानुसार बिल्डिंग बनी है या नहीं यह तो निगम और तरूण छत्तीसगढ़ वाले जाने लेकिन जिस तरह से नवभारत ने टूटने वाले बिल्डिंगों की सूची में तरूण छत्तीसगढ़ का नाम छापा है उससे तरूण छत्तीसगढ़ बेहद खफा है लेकिन छोटा आदमी बड़ों का कर क्या सकता है?
और अंत में ...
पत्रकारों की जमीन पर अपनी बिल्डिंग तानने वाले एक सांध्य दैनिक के मालिक ने हाईरईश कमेटी से दस मंजिल का परमिशन क्या लिया अच्छे अच्छों की नींद उड़ गई। दूसरा सांध्य दैनिक अब जुगाड़ में है कि परमिशन कैसे लिया जाए।

रविवार, 29 अगस्त 2010

भाजपा में अय्याश व दागी मंत्रियों का जमावड़ा

सत्ता पाते ही सिद्धांत भूले भाजपाई
मप्र-छत्तीसगढ़ के  प्रभारी नाराज
 सत्ता पाते ही राम को  धोखा देने वाले भाजपाईयों की  लूटखसोट को  लेकर अब पार्टी के  सत्ता वाले प्रदेशों में चल रहे गफलत को  लेकर  पार्टी हाईकमान न केवल चिंतित है बल्कि  कड़ाई बरतने का  संकेत दिया है।
बताया जाता है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इन दिनों मंत्रियों कि  करतूतों को  लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त बवाल मचा है और इन दोनों राज्यों में मंत्रियों की लूटखसोट व अय्याशी की  पुख्ता सबूत के  साथ शिकायत भी की  गई है।
मध्यप्रदेश के  प्रभारी और भाजपा के  राष्ट्रीय महासचिव अनंत कुमार ने तो मध्यप्रदेश में मंत्रियों की  करतुत पर इतने क्रोधित  हुए कि उन्होंने सीधे प्रेस से ही कह दिया कि  मध्यप्रदेश के  दागी मंत्रियों को  सत्ता से जल्दी बाहर किया  जाना चाहिए यही नहीं 25 अगस्त को  तो वे यहां तक  कह गए कि  मध्यप्रदेश के  कई मंत्री अय्याशी में डुबे हैं और इन्हें तत्काल  हटाया जाना चाहिए।
बताया जाता है कि  छत्तीसगढ़ के  प्रभारी मंत्री श्री नड्डा भी छत्तीसगढ़ के कई मंत्रियों की  करतूत से बेहद खफा है और उन्होंने अपनी रिपोर्ट भी हाई·मान को  सौंप दी है। बताया जाता है कि श्री नड्डा को  यहांके  कई मंत्रियों खास·र बृजमोहन अग्रवाल, चन्द्रशेखर साहू, राजेश मूणत और मुख्यमंत्री त· ·ी शि·ायतें पुख्ता सबूत और अखबार में छपी खबरों के   साथ सौंपी गई है।
बताया जाता है कि  छत्तीसगढ़ के  कई मंत्रियों पर रातो रात करोड़पति व अरबपति बनने के   अलावा कार्यकर्ताओं के   साथ आए दिन होने वाले दुव्र्यवहार की भी शिकायत छत्तीसगढ़ के   प्रभारी श्री नड्डा से की  गई है।
बताया जाता है कि मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के   कुछ विधायको  ने न केवल प्रदेश प्रभारियों से बल्कि  हाईकमान से मिलकर स्थिति से अवगत करा दिया है।
भाजपा के   उच्च पदस्थ सूत्रों के   मुताबिक  हाईकमान नीतिन गडकरी जी इन दोनों राज्यों में पार्टी की स्थिति को  लेकर चिंतित है और आने वाले दिनों में वे कड़ा रूख अख्तियार कर सकते है।
वैसे भी भाजपा के   राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी सितम्बर के   पहले हफ्ते में छत्तीसगढ़ के   दौरे पर आ रहे है और कहा जा रहा है तब वे विधायको  से अलग-अलग मिलकर पार्टी की  स्थिति का  न केवल जायजा लेंगे बल्की  कुछ मंत्रियों को  उनकी  करतूत पर चेतावनी दे सकते हैं। हालांकइ  पार्टी हाईकमान को  खुश करने छत्तीसगढ़ सरकार हर संभव को शिश में लगा है।
बहरहाल मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की  सरकार को  लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त हलचल है और कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसका  असर भी दिखेगा।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

सतनाम धर्मसभा ने रावण जलाने से मना किया तो धर्मसेना भडक़ी

 सतनाम धर्मसेना ने इस साल रावण नहीं जलाने का आह्वान करते हुए पर्चे बांटना शुरु किया है और इसके विरोध में कवर्धा के धर्मसेना खड़ी हो गई है।
सतनाम धर्म सभा के अध्यक्ष केवल प्रकाश सतनामी के द्वारा वितरित पर्चे में कहा गया है कि रावण ने मनुवादी व्यवस्था को तोडऩे का कार्य किया है इसलिए रावण को पूजा जाना चाहिए। उन्होंने सतनामी समाज सहित आम लोगों से अपील की है कि इस बार दशहरे में रावण का वध न करो और न ही रावण का पुतला दहन करो।
हमारे कवर्धा संवाददाता के मुताबिक इस पर्चे का धर्मसेना ने सख्त विरोध किया है और ऐसे पर्चे बांटे जाने वाले के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

बृजमोहन ने दी छूट और हरे राम ने की लूट

दंतेवाड़ा में नक्सलियों की आड़ में लूट
 यह प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की दमदारी नहीं तो और क्या है कि जिस व्यक्ति का किसी भी सरकारी विभाग में सेवा नहीं है और जिसके संविलियन को हाईकोर्ट तक ने अवैध करार दिया और पीएससी ने तीन बार टर्न कर दिया ऐसे व्यक्ति को न केवल दंतेवाड़ा जिला का शिक्षा अधिकारी बनाया गया है बल्कि शिक्षा मिशन का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया है। बात इतनी ही नहीं है यहां चल रहे लूट-खसोट का यह आलम है कि नक्सली भी शरमा जाए।
कहा जाता है कि शिक्षा विभाग देश का भावी पीढ़ी तैयार करता है और जब इस विभाग को ही जब भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया जाए तो भावी पीढ़ी कैसे होगी इसकी कल्पना से ही होश उड़ जाते है। वैसे इस विभाग में शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जिस तरह से दमदारी दिखा रहे हैं और तमाम भ्रष्ट और विवादास्पद लोगों को प्रमुख पदों पर बिठाया जा रहा है वह आने वाले समय के लिए घातक माना जा रहा है। तवारिस और बाम्बरा जैसे लोगों को तवज्जों दिए जाने के बाद सिंह जैसों को अपने बंगले में बिठाने के लिए चर्चित शिक्षा विभाग इन दिनों दंतेवाड़ा के जिला शिक्षा अधिकारी एचआर शर्मा की कारगुजारियों और मंत्री के संरक्षण के कारण चर्चा में है।
एचआर शर्मा को दंतेवाड़ा में शिक्षा अधिकारी के साथ-साथ शिक्षा मिशन में जिला परियोजना समन्वयक का प्रभार भी दिया गया है। वक्त पढऩे पर राजनैतिक निष्ठा बदलने के आरोपित एचआर शर्मा कभी कवर्धा में असिसेंट प्राध्यापक रहे हैं। बताया जाता है कि तब इनकी निष्ठा कांग्रेस के प्रति थी और इसी के चलते इनके संविलियन का प्रयास कांग्रेस विधायक ने की थी लेकिन यह हो नहीं पाया और सत्ता बदलते ही इनके संविलियन का प्रयास भाजपा की महिला पूर्व सांसद ने की और इस तात्कालिन सांसद के चुनाव के लिए फंड भी दिया गया। इस प्रयास के चलते ही शिक्षा विभाग के आवेदन पर पीएससी ने 3 सामान्य पद में से एक पद विलोपित कर दिया था। कहा जाता है कि खेल यही से शुरु हुआ और जब एचआर शर्मा यानी हरेराम शर्मा की फाईल पहुंची तो पता चला कि उनका संविलियन ही अवैध है और भर्ती नियम 1982 की कंडिका 4 की अनदेखी की गई है और संविलियन किया गया है।
बताया जाता है कि मामला जब हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने संविलियन रद्द कर दिया। इस सबके बाद भी वे दंतेवाड़ा में जिला शिक्षा अधिकारी बनाए गए। नागरिक आपूर्ति निगम से हकाले जाने की अपनी कहानी है। दंतेवाड़ा में जिस पैमाने पर घपलेबाजी हो रहे हैं उसे सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए हैं जिसमें स्कूल भवन ढहाने से लेकर केश पेमेंट की लंबी दस्तान है। बताया जाता है कि इस सबकी शिकायत शिक्षा मंत्री से लेकर राज्यपाल तक की जाती रही है लेकिन नामालूम कारणों से कार्रवाई टलते रही है। बहरहाल दंतेवाड़ा शिक्षा और शिक्षामंत्री बृजमोहन अग्रवाल इन मामलों में चर्चा में है देखना है मुख्यमंत्री इस मामले में क्या करते हैं?

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

नवभारत का कारनामा, किसमें है दम

पैसा पटाया नहीं बिल्डिंग बना दी
 लगता है छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की चीज नहीं है और यदि कही सरकार है भी तो वह केवल बड़े लोगों के मुठ्ठी में कैद है। अपने को तुरम खां कहने वाले मंत्री और छोटे-छोटे लोगों के कब्जों पर बुलडोजर चलाने वाले भी बड़े लोगों की जेबों में समा गए है। तभी तो सरकार को नियम कानून की सीख देने वाला नवभारत स्वयं ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए रजबंधा मैदान में अपनी बिल्डिंग खड़ा कर लेता है और पूरा शासन-प्रशासन नपुसंक की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठा है। तब न तो उन्हें नियम कानून ही नजर आता है और न ही इसमें कोई अपराध ही नजर आता है।
महिनेभर पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर टिप्पणी की थी कि आधे राज्य में शासन ही नहीं है तब कांग्रेसी भी चुप रह गए थे लेकिन अब इसकी जमीनी सच्चाई सामने आने लगी है कि सरकार किनके द्वारा चुनी जाती है और वह किसके हित के लिए काम करती है। मीडिया भी सरकार के गलत नीतियों की आलोचना करने से क्यों परहेज करती है।
दरअसल बेशकीमती जमीनों के बंदरबाट में जिस तरह से मीडिया खासकर प्रिंट मीडिया भागीदार बनते जा रही है उससे सरकार को मनमानी करने की छूट मिली हुई है। रायपुर में भी दो-पांच सौ छपने वाले अखबारों को भी जिस तरह से कौड़ी के मोल जमीन दी गई है और इन जमीनों का व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है वह सरकार और उसके पूरे कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है कि किस तरह से गलत लोगों को सरकार संरक्षण दे रही है। यहां हम छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित माने जाने वाले दैनिक अखबार नवभारत को आबंटित जमीन और उस पर किए गए अवैधानिक निर्माण की चर्चा कर रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य सरकार ने दैनिक नवभारत को 1985-86 में रजबंधा मैदान स्थित भूमि ब्लाक नम्बर 9, प्लांट नंबर 1 में से रकबा 60750 वर्ग फीट जमीन प्रेस स्थापना के लिए स्वीकृत की थी। इस घोषणा के साथ ही नवभारत को अग्रिम आधिपत्य मिल गया था और शासन ने निर्देश दिया था कि निर्धारित राशि पटाए जाने पर ही पट्टा निष्पादन किया जाए लेकिन नवभारत ने राज्य बनने के बाद तक न तो पैसा पटाया और न ही उसे पट्टा ही दिया गया। बावजूद नवभारत की बिल्डिंग बन गई। अब सवाल यह उठता है कि आखिर नवभारत को किस नियम के तहत बिल्डिंग बनाने की अनुमति दी गई। क्या बिल्डिंग का नक्शा पास कराया गया और नक्शा किस नियम के तहत पास किया गया। किस अधिकारी ने पास किया। इस समय इस निर्माण पर रोक क्यों नहीं लगाई गई। ऐसे कितने ही सवाल है जो आम आदमी के जेहन में उठ रहे हैं। क्या नवभारत का इतना प्रभाव है कि किसी सरकार ने नियम विरुद्ध कार्रवाई के खिलाफ कार्रवाई नहीं की या सरकार सिर्फ बड़े लोगों का संरक्षक बनकर रह गई है।
ऐसे कई मामले हैं जो सरकार और नवभारत के सांठगांठ की कहानी को उजागर करता है। सब कुछ गलत फिर भी सरकार की तरफ से एडवांश? भू-उपयोग भी गलत होता रहा सरकार खामोश रही। एमजी रोड से लेकर मालवीय रोड, जीई रोड में कितने बार अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला तब किसी की हिम्मत क्यों नहीं हुई। क्या सरकार अब भी ऐसे लोगों के हाथों की कठपुतली रहेगी जो अपने प्रभाव और पैसों से गलत करे रहेगें।

बुधवार, 25 अगस्त 2010

देश का खजाना खाली, दलों में हरियाली

इन दिनों पूरे देश में यह बहस चल रही है कि सांसदों के वेतन भत्ते बढऩा चाहिए या नहीं बढऩा चाहिए। हमने आम आदमियों के बीच यह सवाल उठाया तो अब तक हमें एक भी व्यक्ति नहीं मिला जिन्होंने सांसदों के वेतन भत्तों में बढ़ोत्तरी पर सहमत हो। आखिर सांसद और विधायकों को वेतन क्यों? क्या जनसेवा के बदले मेवा वे सरकारी खजानों से कब तक लेते रहेंगे। आश्चर्य का विषय तो यह है कि जिंदल से लेकर हेमामालिनी तक को वेतन भत्ते और पेंशन चाहिए?
सांसद-विधायक अब पूरी तरह से व्यवसायी हो चुके हैं। समाज सेवा के बदले उन्हें मोटी तनख्वाह चाहिए और पेंशन भी चाहिए? ऐसा तो यह देश कतई नहीं था। फिर आजादी के सिर्फ 63 साल में ऐसा क्या हो गया कि सांसद विधायक नौकरों की तरह वेतन के लिए इतने लालायित हैं? आम लोगों ने तो कभी नहीं चाहा कि उनके जनप्रतिनिधि वे व्यक्ति बने जिनके लिए वेतन सर्वोच्च प्राथमिकता है और जिन लोगों को अपनी सेवा करानी होती है वे अपने हैसियत के अनुसार नौकर रख लेते हैं। ऐसे में आम आदमी के गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा मिल बांटकर डकारने की इस कोशिश को क्या कहेंगे।
दुखद स्थिति तो यह है कि अपने को समाजसेवी कहने वाले सैकड़ों सांसदों और हजारों विधायकों में से एक भी ऐसा नहीं है जो वेतन भत्ते या पेंशन नहीं लेने की घोषणा कर दे। 'माल ए मुफ्त दिल ए बेरहम' की तर्ज पर हम दो चार साल में वेतन भत्तों में बढ़ोत्तरी के लिए जरूर ये लोग लामबंद हो जाते हैं तब न पार्टी प्रतिद्वंद्विता ही आड़े आती है और न ही सिद्धांत मायने रखते हैं। आज भी इस देश में ऐसी पीढ़ी मौजूद है जो बगैर वेतन के समाजसेवा में लगे हैं। राजनीतिक दल ऐसे लोगों को अपनी पार्टियों में शामिल ही नहीं करना चाहते? हमारे बहुत से मित्र सांसद-विधायक है? उनका कहना है कि ऐसी घोषणाएं करने पर पार्टी निकाल बाहर करेगी? क्योंकि अमूमन सभी पार्टियों में यह परिपाटी है कि सांसद-विधायक अपने वेतन का एक हिस्सा पार्टी फंड में दे। पार्टी फंड में पैसा जमा होते होते यह स्थिति है कि पार्टियों के पास इफरात धन संपत्ति जमा हो गई है और देश खोखला होता जा रहा है।
कांग्रेस हो या भाजपा, माकपा हो या लोकदल, जनता दल आप किसी भी पार्टी का नाम ले लिजिए। इनकी चली तो पार्टी कार्यालय के नाम पर सरकारी जमीनों का जमकर बंदरबाट हुआ। जिला या प्रदेश स्तर तो छोड़ दिजिए कस्बों तक में कौडिय़ों के मोल सरकारी जमीनें इन राजनैतिक दलों को दी गई। देश की इस विषम स्थिति में जब आम आदमी को दो वक्त का खाना ठीक से नसीब नहीं हो रहा है। पीने का पानी नहीं मिल रहा है और स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में दुरस्थ अंचल के लोग बेमौत मारे जा रहे हैं तब भला हमारे सांसदों की वेतन में बढ़ोत्तरी के लिए तीन-पांच करना निकृष्ठता नहीं तो और क्या है?
हमारा यह महाअभियान ऐसे ही अंधेरगर्दी के खिलाफ है। हम चाहते हैं सांसदों-विधायकों के वेतन-पेंशन बंद हो और जिन्हें डाक्टरों ने समाजसेवा करने कहा है वे बगैर वेतन का समाजसेवा करे। हम आम लोगों में यही जागरूकता पैदा कर रहे हैं कि वे अब ऐसे लोगों को ही अपना प्रतिनिधि चुने जो वेतन पेंशन नहीं लेने की घोषणा करें।

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

कांग्रेस-भाजपा में सांठ-गांठ

परमाणु दायित्व विधेयक को लेकर कांग्रेस-भाजपा में सांठगांठ को लेकर लालू-मुलायम और वाम दलों ने खूब हंगामा किया। इस सांठ-गांठ के चलते गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बचाने का भी आरोप है? क्या सचमुच कांग्रेस और भाजपा में इस तरह की सांठ-गांठ हो रही है। हालांकि यह सत्य है कि राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन। खासकर अपने हितों के लिए सांसद और विधायक कितने नीचे गिर सकते हैं यह इस देश के आम लोगों ने बहुत नजदीक से देखा है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस किस स्तर तक सांठगांठ कर रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। ये वही रमन सिंह है जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने से पहले जोगी सरकार के घोटाले की जुलूस निकाला था। तब रमन सिंह प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे और कांग्रेस के अन्याय के खिलाफ संकल्प पत्र जारी किया था। अजीत जोगी को खलनायक बताने वाले संकल्प पत्र की कितनी बातें पूरी की गई? यह सवाल अब भी लोगों की जुबान पर है। आज रमन सरकार को 6 साल से उपर हो गए है और उसने अभी तक जोगी सरकार के किसी भी घोटाले पर कार्रवाई नहीं की। क्या यह सांठ-गांठ नहीं है। सांठ-गांठ का आलम यह है कि अपनी तनख्वाह बढ़ाने यही लालू-मुलायम या वामदल एक हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति है। प्रदेश सरकार का ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां घोटाले, अनियमितता की खबरें नहीं आ रही है। लेकिन क्या कभी किसी कांग्रेसी ने कार्रवाई होते तक आंदोलन किया। हालत तो इतनी खराब है कि बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेताओं के खिलाफ बोलने में कांग्रेसियों के पसीने छूट जाते हैं? क्या पीडब्ल्यूडी की करतूत किसी कांग्रेसी से छिपी है। कमीशन 15 से बढक़र 20 हो गया। तबादला उद्योग चलाया गया। पर्यटन में एमजी श्रीवास्तव हो या अजय श्रीवास्तव की दादागिरी पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। उल्टे नियम विरुद्ध यहां नियमितिकरण किया जा रहा है। संविलियन किया जा रहा है। नाते-रिश्तेदारों को नौकरी दी जा रही है। लेकिन कोई कुछ नहीं कह रहा है। शिक्षा विभाग में तो फर्नीचर घोटाला हो या विज्ञान उपकरणों की खरीदी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। विवादास्पद तवारिस, बाम्बरा जैसे लोगों के मजे है और कांग्रेसी अपने मुंह पर ताला जड़े हुए हैं।
ऐसा नहीं कि सांठ-गांठ सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल के मामले में है। चंद्रशेखर साहू हो या राजेश मूणत। खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह के विभाग में घोटाले की फेहरिश्त है लेकिन कोई कुछ नहीं कहता। मुख्यमंत्री धर्म का अपमान करते हैं और कांग्रेसी यह कहकर खामोशी ओढ़ लेते हैं कि यह व्यक्तिगत है। भाजपा का कमल दीप में महंगाई डायन पर भी कांग्रेसी दो-चार घंटे चिल्लाकर चुप हो जाते हैं। सांठ-गांठ इतनी की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के आम कार्यकर्ता हैरान है और आम लोगों का पैसा बेदर्दी से लूटा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राजस्व की कमी नहीं है लेकिन उस स्तर पर विकास कार्य नहीं हो रहे हैं जब एक ही सडक़ साल में दो-चार बार बनानी हो तो विकास के दूसरे कार्य कैसे होंगे। लालू-मुलायम या वामदलों को कांग्रेस-भाजपा में सांठगांठ अब दिखाई दे रहा है। वेतन भत्तों में बढ़ोत्तरी में यह सांठगांठ नहीं दिखता। भ्रष्टाचारियों को बचाने में सांठगांठ नहीं दिखता और न ही अपराधियों को संरक्षण में ही सांठगांठ दिखता है।

लोग मरते हैं तो मर जाएं सांसद-विधायकों को पैसा चाहिए

 आजादी के 63 साल बाद भी आम आदमी को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है, शिक्षा और चिकित्सा सुविधा का भगवान ही मालिक है। लोग दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और इस देश के सांसदों और विधायकों को 16 हजार रुपए महिना भी कम पड़ रहा है। इस शर्मनाक स्थिति को रोका नहीं गया तो न नेताओं को कोई पिटने से बचा पाएगा और न ही लोगों को सडक़ों पर उतरने से कोई सरकार रोक पाएगी।
जनप्रतिनिधि कहलाने वाले इस देश के सांसदों व विधायकों ने अपनी सुविधा बढ़ाने आम लोगों का जीवन दांव पर लगा दिया है। रोजमर्रा की चीजे सिर्फ महंगी इसलिए हुई है क्योंकि इस पर भारी भरकम टैक्स लागू है और इस टैक्स में से बड़ी राशि सांसदों-विधायकों के वेतन भत्ते और पेंशन में चले जाते हैं। जिस देश के आम आदमी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है उस देश के सांसद और विधायक अपनी सुविधाओं में कटौती कराने की बजाए सुविधाएं बढ़ाने लड़ रहे हो इससे शर्मनाक स्थिति और क्या होगी?
क्या किसी सरकार ने कभी सोचा है कि उसके राज में हर व्यक्ति को शिक्षा, चिकित्सा और पानी की सुविधाएं उपलब्ध है। भोजन तो दूर की बात है। इस देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं होगा जहां ये तीन मूलभूत सुविधाएं आम लोगों को पूरी तरह मिल रही हो। जब आजादी के 63 साल बाद भी ये तीन चीजें आम लोगों तक नहीं पहुंचाई जा सकी है तो फिर इन्हें वेतन किस बात का? सिर्फ एय्याशी या लोकतंत्र के मंदिर में हंगामा करने का?
सवाल यह नहीं है कि सांसदों-विधायकों का वेतन क्यों नहीं बढ़े? बल्कि अब आम आदमी यह सवाल करने लगा है कि इन्हें आखिर वेतन ही क्यों दिया जाए? जब सवाल करने पैसे ये लेते हैं? सवाल नहीं करने के पैसे ये लेते हैंं? उद्योगों के हित में नीति बनाते समय पैसे ये खाते है? कब किसका टैक्स बढ़ाना है घटाना है के एवज में पैसे का लेनदेन होता है और संसद या विधानसभा की कार्रवाई के दौरान इन्हें जब भत्ते दिए जाते है तब वेतन क्यों।
क्या आम आदमी इस बात से अनभिज्ञ है कि पांच सौ पैतालीस सांसदों में से तीन सौ से ज्यादा सांसद करोड़पति है? इन्हें वेतन की जरूरत क्यों और किसलिए दी जानी चाहिए? आम लोगों के खून पसीने की कमाई पर अपना हित साधने की कोशिश अब बंद करनी ही होगी वरना इसका दुखद परिणाम भुगतने के लिए देश को तैयार होना होगा। इस देश का प्रति व्यक्ति की आय कितना है और नेताओं को कितना वेतन भत्ता सुविधा दिया जा रहा है? सकारी आंकड़े सच्चाई से कोसो दूर होता है और औसत के फेर में गरीब कैसे मरता है इसका उदाहरण है भारत का प्रति व्यक्ति आय। सरकारी आकड़े के मुताबिक भारत के प्रति व्यक्ति की आय लगभग 40 हजार रुपए वार्षिक है यानी महिने में तीन साढ़े तीन हजार रुपए। ऐसे में सांसदों-विधायकों को इससे ज्यादा वेतन की बात ही बेमानी है।
अब तो लोग आक्रोशित है और आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा। यदि बगैर वेतन के काम करने वाले लोग चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें ही जनता अपना वोट देगी और यह स्थिति बनने भी लगी है।
00मालामाल सांसद
0 पांच सौ पैतालीस सांसदों में तीन सौ से ज्यादा करोड़पति है।
0 देश के प्रधानमंत्री भी विश्व बैंक में पूर्व नौकरीशुदा।
0 तीसरे मोर्चे की कमान संभालने वाले यादव बंधु दोनों अआय से अधिक संपत्ति के मामलों में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।
0 गरीब और दलित लोगों के मसीहा पासवान हो या मायावती लोगों के पास कितना पैसा यह किसी से छुपा नहीं।

00 मंत्री बनने के बाद यह मिलता है सांसदों को
0 टाइप 8 बंगला, राज्यमंत्रियों को टाइप 7 बंगला।
0 कोई किराया नहीं, बिजली के बिल पर कोई लगाम नहीं।
0 मूल वेतन 16 हजार रुपए, भत्ता 1 हजार रुपए
0 संसदीय क्षेत्र भत्ता 20 हजार रुपए।
0 टेलीफोन : दो फोन और एक लाख 75 हजार फ्री कॉल।
0 हर साल ढाई हजार रुपए मोबाइल भत्ता।
0 मोबाइल हैंडसेट फ्री।
0 नि:शुल्क एयर टिकट।
0 परिवार के लिए साल में 48 यात्राएं।
0 जितना चाहें उतनी एसी कोच में यात्रा परिवार के साथ
स्टाफ : पर्सनल स्टाफ में इन लोगों की नियुक्ति किया जा सकता है।
एक प्राइवेट सेक्रेटरी, एक एडिशनल पर्सनल सेक्रेटरी, दो पर्सनल असिस्टेंट, एक हिन्दी स्टेनो, एक ड्राइवर, एक क्लर्क एक जमादार या चपरासी।
( यह केवल मंत्री का स्टाफ है मंत्रालय से अलग से स्टाफ मिलता है।)

रविवार, 22 अगस्त 2010

क्या सांसदों -विधायकों को वेतन लेना चाहिए?

दो दिन से मै सो नहीं सका , लोग क्यों नहीं निकल रहें है विरोध करने ,क्या राजनीती सिर्फ पैसे कमाने का जरिया बन गया है, गाँधी के इस देश में ये क्या हो रहा है,कंहा है समाज सेवी लोग , मै ठेका ले रहा हूँ , जब तक इन लोगो का वेतन बंद नहीं होगा या जब तक ऐसे लोगो को जो वेतन न ले संसद में नहीं पहुचेंगे चैन से नहीं बैठूँगा ,
आइये मेरा साथ दीजिये ,मैंने राष्टपति को भी पत्र लिखा है ,

शनिवार, 21 अगस्त 2010

पता नहीं बेटा...

पता नहीं बेटा...
बेटा- संगठन चुनाव में मोती लाल वोरा ने बाकी कांग्रेसियों को चारोखाने चित कर दिया।
पिताजी- हां बेटा। वोरा जी के सामने बाकी कोई लगते कहां है। सालों से उन्हीं का कब्जा है
बेटा- तो क्या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की दुर्दशा के लिए वोरा जी ही जिम्मेदार हैं।
पिताजी- पता नहीं बेटा।
--------0-------
बेटा-भाजपा के प्रदेश प्रभारी नड्डा ने असंतुष्टों की खूब खबर ली। भ्रष्टाचारियों को लताड़ा।
पिताजी- हां बेटा। रमेश बैस पर उनका सीधा निशाना था।
बेटा- लोग कहते हैं नया मुल्ला यादा प्याज खाता है।
पिताजी- पता नहीं बेटा।

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मौते हुई तो सरकार की झूठ पकड़ी गई ...

वाह भाई! सरकार हो तो ऐसी हो! छत्तीसगढ़ की सरकार ने विधानसभा तक में कह दिया कि छत्तीसगढ़ से कोई पलायन नहीं होता। सरकार के इस दावे के पीछे तर्क था कि वह यहां के लोगों को न केवल दो रूपये किलो चावल दे रही है बल्कि रोजगार के पूरे साधन उपलब्ध करा रही है। सरकार के इस दावे पर स्वयं शासकीय अधिकारी भी गुण गान करते नहीं थकते थे। यहां तक कि रमन राज पर प्रशंसा के कसीदे पढ़ने वालों की भी कमी नहीं है जबकि आखबार सरकार की विफलता के उसके करतूतों के इतने खबरें छाप रहे हैं कि हर दिन एक ... सौ पृष्ठों की किताबें लिखी जा सकती है। वैसे इस सरकार के लोगों के पास अपनी बातें कहने या अफवाह फैलाने का अदम्य साहस है और झूठ को सच कहने के इस साहस का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूं।
गणेश भगवान को दूध पिलाने की बात हो या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने का दावा हो या अल्पसंख्यक के दुश्मन के रूप में प्रस्तुति की बात हो 50 साल बनाम 5 साल के इनके नारो से आम लोगों को अपनी ओर खीचने की ताकत शायद इसी पार्टी में है। तभी तो लोग चिल्लाते रहे कि दो रूपया किलों चावल .... लोगों में बंट रहा है। गरीबी के सरकारी आंकड़े झूठे हैं लेकिन सरकार अपनी बातों पर तब तक अडिग रही जब तक फर्जी राशन कार्ड के मामले पकड़े नहीं गये अब जब कालाबाजारियों ने करोड़ों कमा लिये तब सरकार जाग रही है।
यही हाल पलायन के मुद्दे पर है। सरकार का दावा है कि वह गांव गांव में काम दे रही है पलायन का सवाल ही नहीं है। लेकिन यह सत्य पता नहीं सरकार को कैसे नहीं मालूम है कि पंचायत सचिव और संबंधित विभाग किस तरह से मजदूरों के नाम पर पैसा हड़प रहे हैं। कागजों में बनते सड़क और सरकारी भवनों की तरफ से इसलिए आंखे मूंदली जाती है कि ठेका लेने वाले उनके लोग सरपंच सचिव उनकी पार्टी के प्रतिनिष्ठा रखते हैं।
लेकिन कहा जाता है कि झूठ और अफवाह यादा दिन नहीं टिकते और अब राममंदिर के प्रति कथित निष्ठा की तरह सब कुछ सामने है। लेह में आई तबाही ने छत्तीसगढ़ सरकार के पलायन को लेकर किये गए दावे की सच्चाई सबके सामने खोलकर रख दी है।
अब भी समय है सरकार अखबारों की खबरों को संज्ञान में लेकर कार्रवाई करना शुरू कर दे तो आम जनता का राज आ जायेगा। सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उसके किस मंत्री की क्या रूचि है। देखते ही देखते 2-5 हजार करोड क़ा ... बनने वालों को सरकार छोड़ सकती है और कहने को वह बचा भी सकती है लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि उपर वाले से कोई नहीं बच सका है और बद्दूआंए काम करती ही है।

छत्तीसगढ़ में कौन सी भाजपा का शासन है...

 क्वीन बेटन को लेकर पूरे छत्तीसगढ़ में जो उत्साह का वातावरण बना वह यहां के लोगों के खेल भावना का घोतक है लेकिन पूरे देश में क्वीन बेटन का विरोध करने वाली भाजपा का छत्तीसगढ़ में बढ़चकर हिस्सा लेने से यह सवाल उठने लगा है कि क्या भाजपा में हाईकमान और पार्टी निर्देश छत्तीसगढ़ में बेमानी है या फिर यहां किसी और भाजपा का शासन है।
क्वीन बेटन दरअसल राष्ट्रमंडल खेल का वह मशाल है जो हर आयोजन के पहले राष्ट्रमंडलीय देशों में भ्रमण करता है। दिल्ली में इस बार इसका आयोजन है और क्वीन बेटन के उद्देश्य के प्रचार प्रसार के लिए इसे पूरे देश में घुमाया जा रहा है।
देश का प्रमुख राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी इस मशाल को गुलामी का प्रतीक बताते हुए इसके भ्रमण की तीखी आलोचना की है। दिल्ली से लेकर झारखंड हो या बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश हर जगह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता इसके विरोध में खड़े हो गए है और अपना आक्रोश प्रकट भी कर रहे है।
छत्तीसगढ़ में इसके आगमन की बात हुई तो लगा कि यहां भी भाजपा इसका विरोध करेगी और सरकार होने की वजह से क्वीन बेटन के रास्ते या तो बदल दिये जायेंगे या फिर छत्तीसगढ से ये चुपचाप गुजर जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्वीन बेटन पर न केवल भाजपाई बल्कि डॉ. रमन सिंह सरकार ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
भाजपा की इस दोगली नीति को लेकर भाजपा के ही कई कार्यकर्ता नाराज है। भाजपा के एक नेता ने तो नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मंदिर मुद्दे की दोगलाई ने हमें केन्द्र से ढकेल दिया इसके बाद भी हम नहीं सुधर पाये हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि हाईकमान के विरोध के बावजूद जिस तरह से पूरी सरकार यहां क्वीन बेटन के स्वागत में पलक ....बिछाई रही वह आश्चर्य जनक है।
इसी तरह आर एस एस से जुड़े एक नेता ने कहा कि यह विडंम्बना है कि किसी मुद्दे पर हम एक नहीं हो पा रहे हैं जिसकी वजह से भाजपा की छिछालेदर हो रही है। अब तो यह सवाल उठने लगा है कि जहां-जहां भाजपा की सत्ता है क्या वहां वहां भाजपा के नेता अपने हिसाब से काम करेंगे।
बहरहाल इस मामले को लेकर आम लोगों में भी भाजपा की इस राजनीति की काफी तीखी प्रतिक्रिया है कुछ तो हाईकमान तक से सरकार की शिकायत करने का मन बना चुके है और गडकरी के सामने भी बात लाई जेयेगी।

बुधवार, 18 अगस्त 2010

स्वतंत्रता किसके लिए...

क्या कभी किसी भी सरकार ने किसी भी प्रदेश की सरकार ने यह सोचा कि विधायक सांसद या अधिकारी बनते ही लोग एकाएक कैसे धनी बन गए। कल तक गांव में सामान्य जीवन जीने वाले लोग पैसे वाले कैसे हो गए। क्या कभी किसी भी सरकार ने एक भी नाम धारी व्यक्ति की बारिकी से जांच कराई कि लालू क्या थे, डॉ. रमन क्या थे, गुलाम नबी आजाद क्या थे, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह, विद्याचरण-श्यामाचरम शुक्ल क्या थे या बाबूलाल अग्रवाल, सुनील कुजूर, सुब्रत साहू या इसी तरह के नाम धारी लोग पदों में आने के पहले क्या थे और फिर क्या हो गए। बेतहाशा कमाई का क्या एक बड़ा हिस्सा आम लोगों के हिस्से का नहीं है। क्या आजादी के शुरवीरों ने ऐसे ही भारत का सपना देखा था कि पद पाते ही डकैत बन जाओ? लुटेरे बन जाओ आर आम आदमी को पानी स्वास्थ्य और शिक्षा भी न दो?


15 अगस्त 1947 को जब अंग्रजों ने भारत छोड़ा। तब पूरा देश खुशियों से लबरेज था। हर आदमी एक दूसरे को स्वतंत्रता के मायने समझाता बधाईयां दे रहा था। लेकिन आजादी के 63 साल हो रहे हैं। इन 63 सालों में गरीब से गरीब आदमी ने भी सरकार को टेक्स दिया ताकि हमारे सांसद विधायक और सरकारी अधिकारी कर्मचारी भूखे न रहे और ईमानदारी से आम लोगों के हित और देश के हित के लिए काम करें। पर क्या ऐसा हो पाया। आम आदमी से कहां चूक हुई और व्यवस्था को किस तरह से अव्यवस्थित किया गया। रिपोर्ट।
छत्तीसगढ में तोrajya बनते ही आजादी के मायने बदल गए है। वैसे तो नौकर शाह और राजनेताओं के लिए ही लोकतंत्र में असली आजादी है। और आम आदमी के लिए नियम कानून की बात की जाती है। हमने भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों की .... और आजादी को लेकर समय समय पर पाठकों को जानकारी उपलब्ध कराया है।
आजादी के मायने
प्रदेश के मुखिया के अलावा डॉ. साहब के पास उर्जा, खनिज जनसंपर्क जैसे विभाग है और इनमें से कोई विभाग नहीं है जहां घपलों की दास्तान न हो। उर्जा विभाग में आजादी का यह आलम है कि ओपन एक्सेस से लेकर ट्रासफार्मर, मीटर खरीदी में खुले आम घोटाले किये गए। खनिज में तो pusya स्टील को आज ही रजिस्टे्रशन आज ही लीज देकर रमन सरकार ने नया इतिहास रचा है। माइनिंग शर्तो का खुले आम उल्लंघन हो रहा है और इस विभाग के अधिकारी तक खुले आम पैसा खा रहे है। खनिज को लेकर तो लूट मची है।
जनसंपर्क विभाग का तो भगवान ही मालिक है। सचिव पर तो आरोप लगा ही संवाद में तो 40 करोड़ के घपले उजागर होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं है। आजादी का असली मतलब तो इस विभाग के अफसर खूब जानते है और सरकार के खिलाफ खबर देने से परहेज नहीं करते।
ननकी राम कंवर
बस्तर से लेकर सरगुजा तक आदिवासी भेड़ बकरी की तरह काटे जा रह है। राजधानी में अपराध चरम पर है और छत्तीसगढ़ के दूसरे शहरों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। पुलिस के मुखिया विश्वरंजन की अपनी स्वतंत्रता है और ननकी राम कंवर से स्वतंत्र तो कोई है ही नहीं। कलेक्टर को दलाल और पुलिस कप्तान को निकम्मा कहने वाले इस गृह मंत्री ने विधान सभा में स्वीकार किया है कि थाने वाले शराब ठेकेदारों के इशारे पर काम करते हैं।
मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल बृजमोहन अग्रवाल को खुश करने सर्वाधिक विभाग दिया गया है यह अलग बात है कि उनसे कोई भी विभाग नहीं संभल रहा है। स्वतंत्रता इतनी की नेता प्रतिपक्ष बनने मारपीट करवाने तक का आरोप लगा है और पीडब्ल्यू डी में बढ़ते कमीशन खोरी उखड़ती सड़के पयर्टन में बगैर नाम पर के करोड़ों का आबंटन motal  निर्माण से लेकर स्टेशनरी- प्रचार प्रसार में घोटाले की बाढ़, संस्कृति में आई राज के चलते बाहरी कलाकारों के नाम पर करोड़ों का आबंटन, शिक्षा में तो तवारिस बाम्बरा एच आर शर्मा एसएन सिंह गेंदाराम जैसे विवादास्पद व्यक्तियों के जिम्में जिला व कार्यालय सौंपा गया है और फर्नीचर से लेकर विज्ञान उपकरणों की खरीदी तक में घोटाले।
राजेश मूणत स्वतंत्रता तो इनके मुंह में बसी है और कार्यकर्ताओं के मुंह से सुनी जा सकती है। पहले दबाव बनाओं फिर खूब kamao की रणनीति ने इन्हें सर्किट हाउस के घोटाले का आरोपी तक बना दिया था लेकिन जब सरकार हमारी हो तो किसी का क्या बिगड़ना है। भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान में रूचि तो दिखाई लेकिन बसंत सेठिया जैसे लोगों को फायदा भी मिला। कमल विहार में छांट-छांट कर अच्छी प्लाटें किसे दी जा रही है किसी से छिपी नहीं है। पार्किंग वाली दूकाने कैसे सील हो रही है और जाहिद अली जैसे लोगों की फाइलें कहां दबी है। दबा बजार से लेकर क्रिस्टल टावर के चर्चे ही तो आम आदमी कर सकता है।
चन्द्रशेखर साहू कहने को तो साहू जी किसान नेता है लेकिन मंत्री बनते ही 270 रूपये वाला बोनस भूल गये। अब 270 रूपये की जरूरत ही क्या है जब नकली खाद से लेकर बीज तक का सफर हो। क्षेत्र में बिकते अवैध शराब की चर्चा क्या कम है जो किसानों के हित में निर्णय होंगे। यह केवल सरकार के आधा दर्जन मंत्रियों का उदाहण मात्र है कि सरकार किस तरह से स्वतंत्र कार्य कर रही है। वरना खेल मंत्री लता उसेण्डी हो या स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे हो या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू सब की अपनी स्वतंत्रता है ऐसे में छत्तीसगढ़ में आम आदमी के लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हो सकते है आसानी से समझ जा सकता है।
आप हल्ला करते रहे कि जिन्दल पावर लिमिटेड और बाल्को सैकड़ों एकट जमीन दबा रहे हैं। सरकार कार्रवाई करना तो दूर सुनेगी ही नहीं। आप चिल्लाते रहे कि कोल ब्लाक के आबंटन में गड़बड़ी हो रही है या अवैध निर्माण से काम्प्लेक्स खड़े किये जा रहे हैं। कोई नहीं सुनेगा। बल्कि अब तो न्यायालय के फैसले तक से लोग सहमत नजर नहीं आते। गैस त्रासदी या बाल्को का जमीनी कब्जा इसका उदाहरण है कि लोग इन फैसलों से सहमत नहीं है।
आम आदमी के लिए कहां है स्वतंत्रता
वोट हमारा- राज तुम्हारा- जो लोग अपना सांसद विधायक चुनते हैं इसके लिए सरकार क्या करती है यह तो सभी जानते है लेकिन जितने वाले सांसद विधायकों को न केवल हर माह एक मोटी रकम मिलती है और भत्ता भी। यही नहीं सीट से हटने के बाद जीवन भर पेंशन भी मिलता है। नौकर शाहों का भी यही आलम है जीवन भर नौकरी करो, भ्रष्ट तरीके से पैसा कमाओ और रिटायर्ड होने के बाद सेंटिंग कर संविदा नौकरी व पेंशन पाओ।
आम आदमी के लिए सरकार की नीति यह है कि आप के घर पीने का पानी पहुंचे या न पहुंचे, टैक्स तो देना ही होगा।
जमीन आपकी है और किसी उद्योगपति को उद्योग लगाना है तो कीमत सरकार तय करेगी। जबकि वही उद्योगपति अपने उत्पादन की कीमत स्वयं तय करता है। यदि राजधानी या उद्योगों के लिए जमीन नहीं दी जायेगी तो सरकार सिर्फ एक लाईन में छिन (अधिग्रहण) लेगी और उद्योगपतियों को दे देगी।
आप विरोध करते रहो शराब ठेकेदार नियम विरूद्ब दुकानें खोल ही देगा और पुलिस भी उसकी सुरक्षा में खड़ी हो जायेगी।आप एक इंच जमीन जरूरत पड़ने पर भी कब्जा नहीं कर सकते उद्योगों को अवैध कब्जे की छूट है।
विकास के नाम पर उद्योगपतियों को जमीन दी जायेगी आम आदमी से छिन ली जायेगी।
आम आदमी के लिए पीने का साफ पानी नही लेकिन नेता अधिकारी बिसलरी पियेंगे वह भी सरकारी पैसे से
आम आदमी के लिए स्वास्थ्य सुविधा हो या न हो नेता अधिकारियों के लिए बड़े अस्पताल में मुफ्त ईलाज होगा
आम आदमी के लिए सरकारी स्कूल हो या न हो नेता अधिकारी के बच्चे नामचीन स्कूलों में पढ़ेगे अब तो एयरकंडीशन की सुविधा तक ढूंढी जाती है।
सरकारी स्कूलों में भवन या शिक्षक हो या न हो लेकिन प्राईवेट स्कूलों को grant .देंगे।
किसानों को पानी मिले या न मिले उद्योगके लिए नदिया बेच दी जायेगी।
और यह होता है आम आदमी द्वारा दी गई टैक्स की राशि से। इन्कम टैक्स देने वाले ...या लोग जितना टैक्स देते हैं वे कितने है और आम आदमी जो टैक्स देता है वह कितना है आकंलन करे तो पता चलेगा कि आम आदमी जीवन उपयोगी समान खरीकर यादा टैक्स देता है। इसके बाद भी सुविधा आम की बजाय खास लोगों को दी जाती है। योजनाएं आम की बजाए खास लोगों के लिए बनती है क्या यही है स्वतंत्रता।

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

जितना पैसा, उतना काम पत्रकारिता का काम तमाम

छत्तीसगढ़ में अखबारों का जितना व्यवसायीकरण हुआ है उससे यादा पत्रकारिता और पत्रकारों का व्यवसायीकरण हुआ है खबरें इंच सेमी में बेचने में तो प्रतिष्ठत माने जाने वाले अखबार भी पीछे नहीं है। चुनाव लड़ने वाले राजनैतिक दल के प्रत्याशियों से पैकेज लेने की तो जैसे परम्परा ही चल पड़ी है। ऐसे में पत्रकारिता करने वाले भी कहां पीछे हटते। रोज छपने वाले अखबारों के पत्रकार तो जितना पैसा उतना काम की रणनीति ही नहीं अख्तियार किये हैं बल्कि अलग अलग बीटों में बंट गये है। हालत यह है कि अपनी बीट को छोड़ दूसरे के बीट की तरफ कोई देखता भी नहीं है चाहे कितनी भी बड़ी खबर हो। पिछले दिनों पंडरी के एक दंपत्ति अपने पुत्र की हत्या की आशंका जताते हुए प्रेस क्लब पहुंचे यहां नवभारत भास्कर सहित कई अखबारों के प्रतिनिधि मौजूद थे। ये सब प्रेस कांफ्रेस अटेंड करने आये थे। प्राय सभी का यही जवाब था। पुलिस दूसरा देखता है। प्रेस आ जाना। यानी इस दंपत्ति की बात सुननी तो दूर विज्ञप्ति तक कोई लेने तैयार नहीं था।
यह पत्रकारिता की भयंकर भूल हो सकती है आरै भटकते लोगों के साथ ये अन्याय नहीं तो और क्या है जबकि आज भी आम लोगों की पत्रकारिता से बेहद उम्मीद है।
देहाड़ी मजदूरी भी शुरू
 वैसे तो भास्कर के नित नये प्रयोग किसी से छिपे नहीं है। प्रयोगवादी इस अखबार ने अपने को स्थापित करने आये दिन कुछ नया करने रहता है। इस बार उसने अपने स्टार में देहाड़ी मजदूर की परम्परा शुरू की है। महिने का तनख्वाह वाला सिस्टम खतम। सप्ताह का झंझट भी कौन पाले। इसलिए रोज जाओ काम करो पैसा पाओ। अब काम करने वाला ज्ञान हो या ...क्या फर्क पड़ता है।
डर का भूत
पिछले दिनों संजय पाठक की भास्कर में वापसी हुई। इससे पहले वह भास्कर छोड़कर हरिभूमि गया था। कहते हैं भास्कर छोड़ते की वजह नवीन थे और नवीन हरिभूमि पहुंचा तो वह हरिभूमि छोड़ दिया। प्रेस क्लब में इसकी बेहद चर्चा है और नवभारत के पत्रकारों के मुताबिक नवीन तो अब राव की भूमिका में हैं।

हड़ताल नहीं करने का फल भुगतो
अखबार लाईन में एक कहावत है तनख्वाह बढानी हो तो अखबार जल्दी बदलों। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि हड़ताल में शामिल नहीं होने पर नौकरी से निकाल दे और हड़ताल करने वालों की नौकरी बरकरार रहे। यह सब हुआ है हिन्दूस्तान में यही सब हुआ। पिछले माह हड़ताल हुई तो कुछ लोग काम करते रहे और जब मामला सुलझा हड़ताल खतम हुआ तो उसके सप्ताह भर बाद हड़ताल नहीं करने वाले चैनल से भगा दिये गए। यानी नौकरी तो गई ही साथियों के साथ गद्दारी का तोहमत अलग लगा।
और ..में ....
पूरे प्रेस को व्यवसायिकता के रंग में रगने वाले एक अखबार मालिक को अब कांग्रेस की राजनीति भारी पड़ सकती है। कभी इस अखबार मालिक की जी हुजुरी करने वाले संवाद के अधिकारी अब प्रेस के अवैध निर्माण को तुड़वाने ऐसे बंदे की तलाश कर रहे हैं जो कोर्ट में याचिका दायर कर सके और सेट भी न हो।

सोमवार, 16 अगस्त 2010

डीएस कंपनी के आगे शासन की नहीं चलती...

 रिंग रोड नंबर 1 में फोर लेन का निर्माण करने वाली कंपनी डी.एस. वायकान कंस्ट्रक्शन की दादागिरी के आगे शासन भी बेबस है। यहीं नहीं निगम की चेतावनी के बाद भी वह शहर के मध्य टैक्स वसूली नाका निर्माण कर ही है जिससे आने वाले दिनों में अप्रिय स्थिति निर्मित हो सकती है।
बताया जाता है कि कंपनी के कार्यप्रणाली से संतोषी नगर से लेकर रिंग रोड के किनारे निवासरत लोग वैसे भी परेशान रहे है। हालत यह है कि उसकी दादागिरी के आगे मंत्री तक बेबस हैं। इधर कंपनी ने शहर के मध्य टोल प्लाजा का निर्माण कर रही है इसका पता चलते ही निगम ने कंपनी को शहर के मध्य से टोल प्लाजा हटाने कहा है लेकिन टोल प्लाजा का निर्माण बंद नहीं हुआ है। कंपनी की इससे बड़ी उद्ंदता और क्या होगी कि उच्च न्यायालय भी टोल टैक्स की स्थापना को लेकर निर्देश जारी कर चुका है कि वसूली नाका शहर के मध्य न हो। इधर मामले को लेकर शहर कांग्रेस कमेटी ने भी मोर्चा खोल दिया है। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल और महामंत्री डॉ. निरंजन हरितवाल ने आंदोलन की चेतावनी देते हुए रायपाल को ज्ञापन भी सौंपा है।
शहर कांग्रेस कमेटी ने ज्ञापन में कहा है कि डी.एस. वायकान कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा शहर के मध्य रिंग रोड नंबर 1 पर दीनदयाल उपाध्याय, रोहणीपुरम एवं माधवराव सप्रे वार्ड, टाटीबंध, हीरापुर, सरोना आदि में रहने वाले 1 लाख से अधिक आवासीय नागरिकों को प्रतिदिन रोजमर्रे के लिए आने-जाने में हर बार टोल टैक्स देना पड़ेगा जिससे लोगों को अनावश्यक रुप से परेशानी होगी एवं उनकी जेब पर भारी बोझ पड़ेगा। इतना ही नहीं माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी टोल टैक्स के संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किया है कि टोल टैक्स नाके शहर के अंदर कदापि न बनावे जावें एवं उन्हें शहर के बाहर ही स्थापित किए जावें परंतु डी.एस. वायकान कंस्ट्रक्शन कंपनी जिन्हें फोरलेन बनाने का ठेका दिया गया है उनके द्वारा शहर के अंदर निर्माण किया जा रहा है जो नियम विरुध्द एवं जनता को भारी परेशानी होगी एवं अनावश्यक आर्थिक बोझ भी पड़ेगा। अब आपसे अनुरोध है कि शहर व मध्य निर्माणाधीन टोल टैक्स नाके पर रोक लगाई जावें एवं उसे शहर के बाहर बनाने का आदेश देने की कृपा करें। इस संबंध में नगर निगम रायपुर द्वारा भी नोटिस जारी कर शहर के अंदर न बनाने कहा गया है परंतु उसके बावजूद भी उक्त कंपनी ने निर्माण बंद नहीं किया है।

मंत्री के दबाव में रिवाल्वर तानने वाले पर जुर्म दर्ज नहीं!

 रामसागर पारा के राजू महराज ने गंज पुलिस द्वारा एफआईआर नहीं लिखने पर लिखित में आवेदन दिया है कि मनीष अग्रवाल द्वारा उन पर रिवाल्वर तान कर धमकाया गया। पुलिस आरोपी गिरफ्तार करने की बात तो दूर जुर्म दर्ज तक नहीं कर पाई है। प्रार्थी दहशत में है।
बताया जाता है कि किसी बात को लेकर राजू महराज और मनीष के बीच विवाद हुआ और इसी विवाद में मनीष ने रिवाल्वर तान कर जान से मारने की धमकी दी। बताया जाता है कि राजू महराज जब तक थाने पहुंचते उससे पहले दमदार मंत्री का फोन वहां आ गया और एफआईआर की बजाय लिखित में आवेदन मांग लिया गया। चूंकि राजू भी भाजपा से जुड़ा हा इसलिए इसे राजैतिक वजह भी माना जा रहा है दूसरी तरफ मनीष को पूर्व पार्षद के भाई का संरक्षण के अलावा मंत्री का भी संरक्षण प्राप्त है।

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

30-32 करोड़ का माल 5 लाख में...

लोकतंत्र की जय हो, लोकतंत्र अमर रहे। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को यह नारा जोर-शोर से लगाया जाता है। इस बार भी यह नारा लगेगा और झक सफेद कपड़े में मुख्यमंत्री से लेकर जनप्रतिनिधि शपथ भी लेंगे और इसके चंद मिनट बाद कई लोग उद्योगपतियों के साथ नजर आएंगे किसानों को कंगाल करने के फैसले होंगे। विकास के नाम पर आम लोगों की उपजाऊ जमीन छीन ली जाएगी और मुआवजे के नाम पर कुत्तों की तरह रोटी डाल दी जाएगी।
छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर राय है और यहां विकास के नाम पर सरकार जिस तरह से जमीनें अधिग्रहित कर रही है उससे आने वाले दिनों में विकास की गंगा बहनी तय है? नई राजधानी के नाम पर सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन पर कांक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है। कितने लोग बेघर हो गए और उन्हें मुआवजे के नाम पर जबरिया हटा दिया गया। उद्योगों को जमीन बेचने सरकारी एजेंट घूम रहे हैं। यहां भी उपजाऊ जमीन बर्बाद किया जा रहा है। उद्योगों को लोहे की खदानें दी गई जंगल काटे जा रहे हैं। पानी तक बेची जा रही है जबकि किसानों के लिए सरकार के पास पानी नहीं है।
सबसे दुखद पहलू तो मनमाने ढंग से कोल ब्लॉक का बंदरबांट है। सरकारी के अलावा निजी जमीनों के नीचे भी कोल ब्लाक हैं और इन जमीनों को 4-5 लाख रुपए एकड़ में उद्योगपतियों को बेचने सरकारी षडयंत्र रचा जा रहा है। पूरी सरकार इन निजी जमीनों को उद्योगपतियों को दिलाने गांव वालों पर दबाव डाल रहे हैं और उद्योगपति कोयलेवाली निजी जमीन 4-5 लाख रुपए में खरीदने लाखों खर्च कर रही है। इसकी वजह न क्षेत्र का विकास है और न ही आम लोगों को फायदा देना है बल्कि इसकी वजह एक एकड़ जमीन के नीचे मौजूद 30-32 करोड़ का कोयला है। क्या दुनिया में इससे सस्ता सौदा हो सकता है कि 30-32 करोड़ के कोयले के बदले सिर्फ किसानों को 4-5 लाख रुपए दिए जाए। लेकिन उद्योगपतियों की इस करतूत को सरकार भी समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर कोल ब्लाक दिए गए हैं उससे उद्योगपतियों को जो हर साल कमाई होनी है वह छत्तीसगढ़ सरकार के कुल बजट 22 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। यह कैसे आम लोगों की सरकार है जो कोयले वाली जमीन 4-5 लाख रुपए में देने उद्योगपतियों के लिए बिचौलिये-दलाल की तरह काम कर रही है। क्या इन किसानों की स्थिति बस्तर के उस लूट के बराबर नहीं है जो आदिवासियों से चिरौजी के बदले नामक देते थे। क्या सरकार को नहीं मालूम है कि जिस कोयले वाली जमीन को 4-5 लाख रुपए एकड़ में जिंदल या दूसरे लोग ले रहे हैं उसके नीचे 30-32 करोड़ रुपए का कोयला है। प्रकाश इंडस्ट्रीज को कोल ब्लॉक गलत दी गई यह अजीत जोगी भी कह रहे है और वे इसे भूल मानते हुए रमन सरकार से सुधारने की बात कह रहे है लेकिन गलत आबंटन का विरोध करने वाली रमन सरकार भूल सुधारने तैयार नहीं है। लगातार उद्योग को लेकर विधानसभा में रमन सिंह कहते हैं कि जब सब लोग कह रहे हैं तो नए ईएमयू नहीं करेंगे। लेकिन जो लोग उद्योग लगा रहे हैं उनके अत्याचार, अवैध कब्जों पर सरकार खामोश है। इतनी सरकारी अंधेरगर्दी पर जनता खामोश है तो इसकी वजह सरकारी हठधर्मिता ही है। लेकिन सरकार को भी सोचना होगा कि कोई पैसे लेकर नहीं जाता है। यही छोड़ना है। आम लोगों की आह का असर होगा। यह ध्यान रहे।

जल, जंगल, जमीन का फैसला कैसे हो?

क्या इस देश में ऐसी कोई सरकार है जिसे 50 फीसदी से अधिक लोगों ने अपना मत दिया है। शायद नहीं। नेता तो कई मिल जाएंगे जिन्हें उनके क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक लोग पसंद करते हैं। छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी ही ऐसे नेता हैं जिन्हें उनके विधानसभा क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक लोगों ने वोट देकर जीताया है। लेकिन सर्वाधिक वोट से जीतने के बाद भी वे कहां है? यह संवैधानिक व्यवस्था है या अव्यवस्था यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन कुल मतदान का 30-40 फीसदी वोट पाकर सत्ता में बैठे लोग किस तरह से फैसले लेते हैं इसका उदाहरण है आजादी के 63 साल बाद के बाद भी आम आदमी का जीवन स्तर कहां है।
कैसे कोई चुनाव जीतते ही लखपति-करोड़पति बन जाता है? इस देश का आयकर, सीबीआई, अपराध ब्यूरों को क्या यह नहीं दिखता? भ्रष्टाचार की इस टोली ने जल, जंगल और जमीन तक को नहीं छोड़ा? क्या ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता कि कम से कम इन मामलों में तो आम लोगों को राय ली जाए। क्या यही व्यवस्था है कि पूरा जीवन जंगल में गुजारने वालों को जलाऊ लकड़ी काटने तक की छूट नहीं है। यह सर्व सत्य है कि जंगल आदिवासी बसाते हैं उसे बर्बाद नहीं करते। जंगल तो सिर्फ नेता-अधिकारियों और कुछ ठेकेदार नष्ट कर रहे हैं। फिर उन्हें अधिकार क्यों नहीं है। पूरे देश में जिस तरह से विकास के नाम पर जल, जंगल, जमीन से खिलवाड़ कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है वह आने वाले दिनों में भयंकर त्रासदी बनकर आने वाला है।
यदि नेताओं और अधिकारियों ने रातों रात अपनी तिजौरी भरी है तो उनकी तिजौरी में जमा पूंजी के 80 फीसदी हिस्सा जल, जंगल और जमीन को बर्बाद करने के एवज की की है शेष 20 फीसदी ट्रांसफर-पोस्टिंग और निर्माण कार्यों की है। क्या गांधी का नाम लेकर सत्ता पर बैठने वालों ने कभी गांधी के दर्शन पर कार्य करने की दूर सोचा भी है कि स्वराज के मायने क्या है। क्या यही स्वराज है कि पैसा कमाने के लिए नेता या अधिकारी बन जाओं। आम आदमी से टैक्स तो लो लेकिन उसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी जैसी मूलभूस सुविधा भी ना दो।
अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है पेंशन का खेल बंद कर यदि सरकार सिर्फ स्वास्थ्य, पानी और शिक्षा पर काम करे तो भारत अब भी सोने की चिड़िया बन सकती है। जिसे इस देश के बाहर पढ़ना है वे पढ़े। पहले भी तो गांधी-नेहरु से लेकर कितने लोगों ने विदेशों में जाकर पढ़ाई की लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग धर्नाजन की बजाय लोकहित में लगाया। विकास के नाम पर अब जल, जंगल, जमीन की बर्बादी बंद हो। सेवा के नाम पर आम लोगों के पैसों की बर्बादी बंद होनी चाहिए। सरकार के पास अब भी समय है। नेताअओं के पास अब भी समय है कि वे अपने पैसा कमाने की भूख पर विराम लगाए वरना कल तक जो लोग सिर्फ जूता फेंककर आक्रोश व्यक्त करते रहे हैं अपना कदम आगे भी बढ़ा सकते हैं। इसलिए अब भी समय है कि आम लोगों से लिए टैक्स से अपनी सुविधा बढ़ाने का प्रपंच बंद हो जाए।
आखिर जनता के सेवा के बदले कोई व्यक्ति तनख्वाह कैसे ले सकता है। जनसेवा की कीमत वसूलने के बाद भी वह चैन से कैसे सो सकता है। इतने छल प्रपंच के बाद कोई सुखी कैसे रह सकता है। हम उस देश के वासी है जहां कर्मों के फल पर बात होती है इतना बढ़ा धोखा आम जनता से कि सेवा कर लिया जाए। समय बदल रहा है और इस समय के साथ हमारी नई आजादी को जो समर्थन और सहयोग मिल रहा है उससे व्यवस्था में बदलाव आएगा। जरुर आएगा।

मदन गोपाल का खेल मंत्री मोहन भी फेल

कर्मचारी संगठनों से मिलकर षडयंत्र!
 छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के कथित एमडी मदन गोपाल श्रीवास्तव के कारनामों को लेकर अन्य अफसरों में भय व्याप्त होने की असली वजह यहां के कर्मचारी संगठन को बताया जाता है। जो श्रीवास्तव के इशारे पर न केवल अधिकारियों बल्कि मंत्री या अध्यक्ष तक से भिड़ने का माद्दा रखते हैं।
छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल में भारी भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर जबरदस्त चर्चा है और कहा जाता है कि जिस प्रबंधक मदन गोपाल श्रीवास्तव को पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का संरक्षण प्राप्त था वही मदन गोपाल अब भ्रष्टाचार की भूमिका में आ गए हैं और पर्यटन मंडल को कर्मचारी संगठन के कुछ पदाधिकारी के साथ मिलकर अपने हिसाब से न केवल चला रहे हैं बल्कि उनके कार्यों में बाधा डालने वालों को इसी संगठन के पदाधिकारियों के मार्फत मोर्चा खुलवा देते हैं।
सूत्रों के मुताबिक पर्यटन मंडल में घास घोटाले, बाउण्ड्री घोटाले, मोटल घोटाले, स्टेशनरी घोटाले के अलावा ऐसे कई घोटाले हैं जिन पर महालेखाकार नियंत्रक ने भी तीखी टिप्पणी की है। लेकिन मंत्री का वरदहस्त मदन गोपाल श्रीवास्तव के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि मदन गोपाल श्रीवास्तव के खिलाफ दो दर्जन से अधिक शिकायतें है। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने की वजह मंत्री के संरक्षण के अलावा कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों की भूमिका की भी चर्चा है। सूत्रों ने बताया कि कर्मचारी संगठन को अपने कब्जे में रखने एम.जी. श्रीवास्तव द्वारा कई तरह के काम किए जाते हैं। पिछले माह गोल्डन टयूलिप जैसे महंगे होटल में कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों की बैठक को इसी रुप में देखा जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि गोल्डन टयूलिप का खर्च भी उठाया गया।
कहा जाता है कि पर्यटन मंडल के वे कर्मचारी उन लोगों के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं और शिकायत ज्ञापन देते हैं जो एमजी श्रीवास्तव के लिए बाधक बन सकते हैं। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि मंत्री पर भी अब दबाव बनाने कर्मचारी संगठन के कुछ पदाधिकारियों को इस्तेमाल करते हुए मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव को भी ज्ञापन सौंपा जा चुका है। सूत्रों ने बताया कि पर्यटन मंडल में शराब-शबाब की जबरदस्त चर्चा है और इसे लेकर कई तरह की कहानियां भी सामने आने लगी हैं। इसकी शिकायत भी उच्च स्तर पर की गई लेकिन कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं हुई। बहरहाल पर्यटन मंडल को लेकर यह चर्चा गर्म है कि मंत्री का संरक्षण पाकर श्रीवास्तव जी भस्मासूर हो चुके हैं और इस पर शीघ्र ही विराम नहीं लगा तो आने वाले दिनों में मंत्री-सचिव और मंडल अध्यक्ष के लिए भी नई मुसिबत खड़ी हो सकती है।

बुधवार, 11 अगस्त 2010

...तभी बदनाम है रविवि

कुलपति जी अब तो सुधर जाओ!

संवाद ने भी नहीं छोड़ा रविवि को
250 रुपए के प्रास्पेक्टस में ढेरों गलतियां
250 रु. का प्रास्पेक्टस खरीदने की मजबूरी
 किसी भी शिक्षण संस्थान का प्रास्पेक्टस उस संस्थान का आईना होता है। प्रास्पेक्टस देखकर ही संस्थान की गुणवत्ता की पहचान होती है और जब प्रास्पेक्टस में ही ढेरों गलतियां हो तो संस्थान के स्तर पर सवाल उठना स्वाभाविक है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के स्तर को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं ह कुलपति स्तर सुधारने की वकालत करता है ऐसे में सरकार के प्रचार प्रसार में लगी छत्तीसगढ़ संवाद ने प्रास्पेक्टस में जो गलतियां छापी है वह न केवल शर्मनाक है बल्कि संवाद और जनसंपर्क में बैठे अफसरों के ज्ञान पर भी सवालिया निशान लगाते हैं। ऐसे लोग सरकारी योजनाओं और सरकार का क्या इमेज बना रहे होंगे आसानी से समझा जा सकता है। सिर्फ एक फार्म के लिए 250 रुपए देने की मजबूरी गरीब छात्रों को अलग दुखी कर रहा है।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.के. पाण्डेय इन गलतियाें से बच नहीं सकते जबकि प्रास्पेक्टस में उनके नाम के संदेश की हर लाईन में न केवल गलतियां है बल्कि जिस स्वयं के नाम पर उनके हस्ताक्षर है वे भी त्रुटिपूर्ण है। इतनी गलतियों से भरे प्रास्पेक्टस की कीमत ढाई सौ रुपए रखी गई है जो गरीब छात्रों के लिए बोझ है। यदि इस प्रास्पेक्टस को कोई पढ ले और कुलपति प्रो. पाण्डेय के संदेश को पढ ले तो वह पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के बारे में क्या सोचेगा। उसके मन में क्या छवि बनेगी यह कल्पना से परे हैं।
यह सत्य है कि प्रो. पाण्डेय एक विद्वान गुरुजी है लेकिन उनके संदेश की हर लाईन में जिस तरह से गलतियां हुई है यह उनकी उदासीनता और उनके कार्यों की लापरवाही को ही प्रदर्शित करा है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की छवि किसी से छिपी नहीं है ऐसे में जब स्तर सुधारने की बात की जाती है तो फूंक-फूंक कर कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसे में इस विश्वविद्यालय को बदनाम करने में छत्तीसगढ़ संवाद ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखा है। संवाद में किस तरह के लोग बैठे हैं और कैसे मुख्यमंत्री व उनके सचिव ब्रजेन्द्र कुमार के संरक्षण में यहां घपलेबाजी हो रही है यह किसी से छिपा नहीं है। विश्वविद्यालय का प्रास्पेक्टस इसी छत्तीसगढ़ संवाद द्वारा छापी गई है जो इसके अन्य पृष्ठों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि संवाद की छपाई का स्तर क्या है।
दरअसल मोटी कमीशन लेकर छपाई करवाने वाले संवाद के अफसरों को छपाई की गुणवत्ता की बजाय प्रिंटर्स से मिलने वाले कमीशन पर यादा रूचि है। बहरहाल रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की साख गिराने की इस कोशिश पर संवाद और विवि प्रशासन पर कार्रवाई नहीं हुई तो सरकार की नियत पर भी सवाल उठेंगे।

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

30-32 करोड़ का माल 5 लाख में...

लोकतंत्र की जय हो, लोकतंत्र अमर रहे। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को यह नारा जोर-शोर से लगाया जाता है। इस बार भी यह नारा लगेगा और झक सफेद कपड़े में मुख्यमंत्री से लेकर जनप्रतिनिधि शपथ भी लेंगे और इसके चंद मिनट बाद कई लोग उद्योगपतियों के साथ नजर आएंगे किसानों को कंगाल करने के फैसले होंगे। विकास के नाम पर आम लोगों की उपजाऊ जमीन छीन ली जाएगी और मुआवजे के नाम पर कुत्तों की तरह रोटी डाल दी जाएगी।
छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर राय है और यहां विकास के नाम पर सरकार जिस तरह से जमीनें अधिग्रहित कर रही है उससे आने वाले दिनों में विकास की गंगा बहनी तय है? नई राजधानी के नाम पर सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन पर कांक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है। कितने लोग बेघर हो गए और उन्हें मुआवजे के नाम पर जबरिया हटा दिया गया। उद्योगों को जमीन बेचने सरकारी एजेंट घूम रहे हैं। यहां भी उपजाऊ जमीन बर्बाद किया जा रहा है। उद्योगों को लोहे की खदानें दी गई जंगल काटे जा रहे हैं। पानी तक बेची जा रही है जबकि किसानों के लिए सरकार के पास पानी नहीं है।
सबसे दुखद पहलू तो मनमाने ढंग से कोल ब्लॉक का बंदरबांट है। सरकारी के अलावा निजी जमीनों के नीचे भी कोल ब्लाक हैं और इन जमीनों को 4-5 लाख रुपए एकड़ में उद्योगपतियों को बेचने सरकारी षडयंत्र रचा जा रहा है। पूरी सरकार इन निजी जमीनों को उद्योगपतियों को दिलाने गांव वालों पर दबाव डाल रहे हैं और उद्योगपति कोयलेवाली निजी जमीन 4-5 लाख रुपए में खरीदने लाखों खर्च कर रही है। इसकी वजह न क्षेत्र का विकास है और न ही आम लोगों को फायदा देना है बल्कि इसकी वजह एक एकड़ जमीन के नीचे मौजूद 30-32 करोड़ का कोयला है। क्या दुनिया में इससे सस्ता सौदा हो सकता है कि 30-32 करोड़ के कोयले के बदले सिर्फ किसानों को 4-5 लाख रुपए दिए जाए। लेकिन उद्योगपतियों की इस करतूत को सरकार भी समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर कोल ब्लाक दिए गए हैं उससे उद्योगपतियों को जो हर साल कमाई होनी है वह छत्तीसगढ़ सरकार के कुल बजट 22 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। यह कैसे आम लोगों की सरकार है जो कोयले वाली जमीन 4-5 लाख रुपए में देने उद्योगपतियों के लिए बिचौलिये-दलाल की तरह काम कर रही है। क्या इन किसानों की स्थिति बस्तर के उस लूट के बराबर नहीं है जो आदिवासियों से चिरौजी के बदले नामक देते थे। क्या सरकार को नहीं मालूम है कि जिस कोयले वाली जमीन को 4-5 लाख रुपए एकड़ में जिंदल या दूसरे लोग ले रहे हैं उसके नीचे 30-32 करोड़ रुपए का कोयला है। प्रकाश इंडस्ट्रीज को कोल ब्लॉक गलत दी गई यह अजीत जोगी भी कह रहे है और वे इसे भूल मानते हुए रमन सरकार से सुधारने की बात कह रहे है लेकिन गलत आबंटन का विरोध करने वाली रमन सरकार भूल सुधारने तैयार नहीं है। लगातार उद्योग को लेकर विधानसभा में रमन सिंह कहते हैं कि जब सब लोग कह रहे हैं तो नए ईएमयू नहीं करेंगे। लेकिन जो लोग उद्योग लगा रहे हैं उनके अत्याचार, अवैध कब्जों पर सरकार खामोश है। इतनी सरकारी अंधेरगर्दी पर जनता खामोश है तो इसकी वजह सरकारी हठधर्मिता ही है। लेकिन सरकार को भी सोचना होगा कि कोई पैसे लेकर नहीं जाता है। यही छोड़ना है। आम लोगों की आह का असर होगा। यह ध्यान रहे।

मोहन-मूणत की लड़ाई हाईकमान तक

 छत्तीसगढ़ के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत के बीच चल रही लड़ाई थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और अब यह मामला हाईकमान के पास जा पहुंचा है। कहा जाता है कि कभी भी दोनों मंत्रियों की दिल्ली या नागपुर में पेशी हो सकती है।
ज्ञात हो कि दोनों के बीच राजनैतिक लड़ाई की खबर राय बनने से पहले से है और पिछले कार्यकाल में तो जब राजेश मूणत पीडब्ल्यूडी मंत्री थे तब नए सर्किट हाउस से लेकर कई मामले उठे थे और राजेश मूणत को घेरने की जबरदस्त कोशिश भी हुई थी। कहा जाता है कि विधानसभा चुनाव में भी राजेश मूणत को हराने भाजपा के बागी प्रत्याशी वीरेन्द्र पाण्डेय की मदद की गई थी। बताया जाता है कि इस बार टिकरापारा में तोड़फोड़ के बाद दोनों में दूरी बढ़ गई है और इसका नजारा हरियर छत्तीसगढ़ के कार्यक्रम में स्पष्ट रुप से दिखलाई पड़ा।
सूत्रों के मुताबिक दोनों के बीच चल रही गुटबाजी से आम कार्यकर्ता बेहद नाराज है और गुटबाजी के चलते कार्यों में भी बाधा आई है। इस बढ़ती लडाई की शिकायत पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और संगठन मंत्री से लेकर प्रदेश प्रभारी तक की जा चुकी है। लेकिन किसी ने भी इस ओर जब ध्यान नहीं दिया तो पूरे मामले की अखबारों के कटिंग के साथ हाईकमान को शिकायत भेजी गई है।
शिकायत कर्ताओं ने कहा है कि दोनों मंत्रियों की लड़ाई की वजह से ही निगम चुनाव में भाजपा को अपने ही गढ़ में हार का मुंह देखना पड़ा है। यही नहीं गुटबाजी बढ़ गई है तथा आने वाले दिनों में इसका घातक असर होगा। सूत्रों के मुताबिक प्रतिनिधिमंडल की शिकायत को हाईकमान ने गंभीरता से सुना है और 15 अगस्त के बाद कभी भी दोनों मंत्रियों की पेशी हो सकती है।

सोमवार, 9 अगस्त 2010

बुलंद का शानदार 21 माह का सफर



पत्रकारिता के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने और नई आजादी की लड़ाई में निकल चुके बुलंद परिवार ने रविवार 1 अगस्त को शानदार कार्यक्रम आयोजित किया। बुलंद परिवार के इस आयोजन में परिवार के लोग न केवल शिरकत किए बल्कि इस बात का निश्चय किया कि सिर्फ विज्ञापन के लिए वे ढुकुर सुहाती नहीं करेंगे। हर गलत का विरोध और सच का साथ देने के बीच परिवार के बस्तर से लेकर सरगुजा तक के सदस्यों ने धमतरी के प्रमोद यादव के हैरत अंगेज कार्यक्रम देखे जिनमें प्रमोद ने 1 मिनट में 111 नारियल मुक्के से मारकर फोड़ा। इसी तरह बुगी-बुगी फ्रेम ने शानदार नृत्य प्रस्तुति दी। इसके अलावा अब्दुल मतीन ने अपने गलत-गीतों से कार्यक्रमों में समा बांधा। इसी तरह पहली बार डिफेंस में पत्रकारिता के लिए चुनी गई छत्तीसगढ़ की संगीता गुप्ता का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम में विशेष रुप से इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील राजेन्द्र पाण्डेय एवं डा. अर्चना पाण्डेय ने पत्रकारों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि सच से दूर होने की जरूरत नहीं है। कार्यक्रम में विशेष रुप से अहफाज रशीद, ललित शर्मा और तपेश जैन भी उपस्थित थे और इन्होंने भी अपने उद्बोधन से उत्साहवर्धन किया। अहफाज रशीद द्वारा नक्सली हमले पर बनाई फिल्म और छत्तीसगढ़ की परम्परा और लोक गीतों पर बनी फिल्म हमर छत्तीसगढ़ की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

रविवार, 8 अगस्त 2010

नाराज अधिकारी की 'हकीकत'

छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित अखबार का हकीकत जनसंपर्क विभाग से संबंधित वह अधिकारी द्वारा लिखा जा रहा है जो सरकार से नाराज है। यह खुलासा होने के बाद हिन्दी तक ठीक से नहीं बोल सकने के द्वारा हकीकत लिखने के भ्रम पर से परदा उठ चुका है। हालांकि पत्रकारों को पहले से ही किसी शासकीय अधिकारी पर शक था कि सरकार के भीतर की इतनी जानकारी कैसे बाहर आ रही है अब जनसंपर्क के इस अधिकारी की करतूत सामने आ चुकी है और हकीकत पर से परदा हट चुका है। हालांकि हकीकत पर परदा डालने की कोशिश तो पहले ही दिन से हो रही थी और अधूरे नाम से छापा जा रहा था।

जीएम के चमचे
की पिटाई...

हालांकि कानून की दृष्टि से किसी पिटाई अपराध है और यह स्थिति किसी कर्मचारी के लिए तभी उत्पन्न होती है जब पानी सिर से उपर चला जाता है। ऐसा ही वाक्या एक अंग्रेजी अखबार में हुआ। बताया जाता है कि इस अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार ही नहीं अन्य कर्मचारी भी जीएम और उनके चमचों की करतूत से परेशान थे। आए दिन 'माउजर' से धमकाया जाता था। पिछले दिनों जीएम का चमचा कर्मचारी से जा भिड़ा। बस क्या था चमचे की पिटाई हुई। प्रेस के भीतर तो पिटा ही गया बाहर निकाल कर भी तबियत से धूना गया।

पत्रिका का भय

पत्रिका से भयभीत एक अखबार के संपादक द्वारा अब अपने पत्रकारों को चमकाने का मामला सामने आने लगा है। सत्ता प्रमुख के दत्तक पुत्र के मार्फत अनाप-शनाप पैसा कमाने में लगे इस संपादक को पद भी एप्रोच से ही मिला था और पत्रिका में सर्वाधिक इसी अखबार से लोग जा रहे हैं। अपनी करतूत छुपाने या सुधारने की बजाय मातहतों पर गुस्सा करना अच्छी बात नहीं। यह संपादक को समझ में नहीं आ रहा है।

देश का हाल
कभी प्रेस क्लब का रेडियो गायब करने के आरोप से मुक्त होकर अखबार मालिक बने, इस अखबार ने कई उतार चढ़ाव देखे। कभी अपने सगे पुत्रों के प्रति व्यवहार को लेकर चर्चा में रहे तो कभी कर्मचारियों का पीएफ तक डकार देने का आरोप मुस्कुराकर झेल जाते है। इन दिनों सिटी रिपोर्टर की कमी इस अखबार में हो गई है। कुल जमा तीन लोग है उनका भी तीन हाल है। एक तो रोज 10 बजे रात खिसककर 'नेशनल-लुक' में सेवा बजा रहा है तो दूसरा नाम का ही डाक्टर है।

और अंत में....

राजेश मूणत की कार्रवाई देख अवैध निर्माण और कब्जा करने वाले एक अखबार मालिक इन दिनों तेल लगाने में व्यस्त है। कभी ये मंत्री के घोर विरोधी थे और अब वे मंत्रीजी को पटाने में लगे है। है न कहावत सही 'वक्त आने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है।' या आदमी कब अपनी जात बदल दे कोई नहीं जानता।

शनिवार, 7 अगस्त 2010

पता नहीं बेटा


पता नहीं बेटा
बेटा- राम विचार नेताम का कहना है कि सभी भ्रष्ट लोगों को हटा देंगे तो काम कैसे होगा?
पिता जी- हां बेटा। विधानसभा में यही कहा गया है।
बेटा- क्या सही में भ्रष्ट लोगों को हटा देंगे तो काम रूक जायेगा या पैसे वाला कोई मामला है।
पिता जी- पता नहीं बेटा।
------
बेटा- छत्तीसगढ़ के सभी विधायक हंगामा करके नई राजधानी घुमने गये थे।
पिता जी- हां बेटा और सभी ने वहां खाना भी खाया।
बेटा- तो क्या सच में कांग्रेस-भाजपा में गठजोड़ है।
पिता जी- पता नहीं बेटा।

पाल की पड़ताल से,प्रताड़ित हुआ थाना प्रभारी

 शायद इसे ही डेढ़ होशियारी कहते हैं तभी तो सट्टा पकड़ना पाटन के थाना प्रभारी दिनेशचंद्र तिवारी को भारी पड़ गया और उन्हें निलंबित होना पड़ा।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पाटन थाना प्रभारी दिनेशचंद्र तिवारी ने पिछले दिनों रायपुर से जाकर सट्टा खिलाने वाले नरेश राजपूत को 1282 रुपए सट्टा पट्टी के साथ गिरफ्तार किया। बताया जाता है कि इस सटोरिये को कई लोगों का वरदहस्त है।
सूत्रों के मुताबिक नरेश राजपूत को पुलिस गिरफ्तार कर थाना लाई जहां चेक करने पर सटोरिये की जेब से 1282 रुपए के अलावा 14 हजार रुपए भी मिले जिसे सटोरिये ने बताया कि यह उसका पैसा है। यहां थाना प्रभारी ने सट्टा पट्टी की जांच की तो 1282 रुपए की लिखा पढ़ी ही मिली तो उन्होंने मानवता दिखाते हुए सटोरिये को 14 हजार वापस कर केवल 1282 रुपए की जब्ती बनाया।
सूत्रों के मुताबिक थाना प्रभारी के दुश्मनों ने इसकी खबर एसडीओपी पाल से कर दी और मौके की ताम पर बैठे पाल ने थाना प्रभारी की शिकायत कर उसे निलंबित कर दिया। अब थाना प्रभारी अपनी मानवता पर पछतावे तो पछताये। बहरहाल थाना प्रभारी के इस निलंबन की जबरदस्त चर्चा है और सटोरिये की पहुंच को लेकर भी कई तरह की चर्चा है।
-----
पटवारी को हटाने की मांग
पाटन। ग्राम पंचायत खुड़मुड़ा के सरपंच रामकुमार सोनकर ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यहां पदस्थ पटवारी चन्द्रशेखर सोनी को हटाने की मांग करते हुए कहा कि पटवारी आए दिन गायब रहते हैं जिससे गांव वालों को बेवजह चक्कर लगाना पड़ता है।
-------
रोगेयो के मजदूरों का
पैसा पूर्व सरपंच के पास
लोग परेशान
रायपुर। ग्राम पंचायत झीट में रोजगार गारंटी योजना में कार्यरत मजदूरों का भुगतान नहीं होने से लोग परेशान हैं और इसकी शिकायत श्रम विभाग से भी की गई है। श्रम विभाग ने सरपंच को पत्र लिखकर भुगतान करने कहा है। चर्चा है कि पूर्व सरपंच ने पैसों का आहरण कर लिया है।

इस सरकार में जो हो जाए कम है!

10 साल की सजा के बाद भी कार्यवाहक शाखा प्रबंधक
 यदि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में आधे राय में शासन नहीं है तो शायद कम ही आंका है और जिस सरकार में 10 साल की सत्ता के बाद हाईकोर्ट से जमानत लेने वाले को कार्यवाहक शाखा प्रबंधक बना दिया जाए तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा।
हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक मामला धरसींवा सहकारी बैंक का है। जहां के कार्यवाहक शाखा प्रबंधक है केशवराम। जिन्हें सेल्समेन को आत्महत्या के लिए मजबूर करने के मामले में निचली अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई है और वे हाईकोर्ट से जमानत लेकर न केवल नौकरी कर रहे हैं। बल्कि एक ऐसे पद पर उन्हें बिठा दिया गया है जो शासन का महत्वपूर्ण विभाग है। जहां धान खरीदी से लेकर किसानों के हितों का निर्णय होता है। सरकार के इस रवैये को लेकर कई कहानी है जो समय समय पर खोजी जाएगी।

अल्ट्राटेक पर सरकार मेहरबान निस्तारी जमीन पर सड़क बना दी

लगता है प्रदेश की सरकार उद्योगपतियों पर कुछ यादा ही मेहरबान है। गांव वाले मर जाए लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इसकी वजह से उद्योगों का हौसला बढता ही जा रहा है। अल्ट्राटेक सीमेंट ने तो अब सरपंच-उपसरपंच के विरोध के बाद निस्तारी जमीन पर सड़क बना दी।
हिरमी के सरपंच प्यारेलाल ध्रुव ने इसका विरोध करते हुए बताया कि इस निस्तारी जमीन पर रोजगार गारंटी योजना से 54 हजार 993 रुपए सरकार के खर्च हो चुके हैं। अब देखना है कि इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी अल्ट्राटेक के इस अनाधिकृत कार्य पर सरकार क्या करती है।

मंत्री की लाचारी या आईएएस की दमदारी?

डीएस मिश्रा ने कार नहीं लौटाई
बीज निगम को नया खरीदना पड़ा


विवादों में रहने की कोशिश में लगे प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू की यह लाचारी है या कोई नया चाल यह तो वहीं जाने लेकिन ईमानदारी का लबादा ओढ़ने वाले आईएएस अधिकारी डीएस मिश्रा ने 'करोरा' आखिरकार बीज निगम को नहीं लौटाई और राय शासन द्वारा नियुक्त बीज निगम के अध्यक्ष श्याम बैस के लिए निगम को नया एम्बेसेडर कार खरीदना ही पड़ा।
कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू के अधीनस्थ विभागों में क्या कुछ चल रहा है यह अब आम चर्चा में शामिल हो गया है। बीज निगम में उनके अध्यक्षीय कार्यकाल की चर्चा अभी थमी ही नहीं है कि मछली पालन विभाग में शुक्ला-त्रिपाठी की जोड़ी को नियम विरुध्द पदोन्नति की कोशिश हो रही है। इधर आईएएस अधिकारी डी.एस. मिश्रा द्वारा बीज निगम की महंगी कार उपयोग किए जाने पर भी चंद्रशेखर साहू की चुप्पी आश्चर्यजनक है। कहा जाता है कि बीज निगम का प्रभार जब डीएस मिश्रा ने जब संभाला तो निगम ने उनके लिए एम्बेसेडर की बजाय 18 लाख की करोरा कार दी थी। मिश्रा इसी कार में आते जाते थे और जब वे बीज निगम का प्रभार छोड़े तो कार भी अपने साथ ले गए और तभी से इसका वे उपयोग कर रहे हैं।
इधर राय शासन ने जब श्याम बैस को बीज निगम का अध्यक्ष बनाया तो निगम अधिकारियों ने डीएस मिश्रा से कार मांगा तो वे यही कहते रहे कि लौटा देंगे। इधर बगैर कार के नवनियुक्त अध्यक्ष श्याम बैस के संभावित गुस्से से डरकर निगम ने मिश्राजी से कई बार कार मंगवाई लेकिन जब वे कार नहीं लौटाये तो निगम ने नया एम्बेसेडर खरीदने का मन बना लिया और नए अध्यक्ष के लिए नया कार खरीदा गया।
बताया जाता है कि मिश्रा के इस कारनामें की शिकायत कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू से भी कई गई लेकिन इन शिकायतों का क्या हुआ पता नहीं चला है। इसी तरह यहां बाहर की पार्टी को 20 करोड़ का बीज सप्लाई का मामला भी चर्चा में है। बहरहाल प्रदेश में आईएएस अधिकारियों की दादागिरी किस कदर चल रही है और जनता के नुमाइंदे बने नेता किस तरह अपनी जुबान बंद रखे हैं इसे लेकर तरह-तरह की चर्चा है।

Chola Maati Ke Ram Peepli Live * Exclusive Song

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

मंत्री की लाचारी या आईएएस की दमदारी?

डीएस मिश्रा ने कार नहीं लौटाई
बीज निगम को नया खरीदना पड़ा

 विवादों में रहने की कोशिश में लगे प्रदेश के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू की यह लाचारी है या कोई नया चाल यह तो वहीं जाने लेकिन ईमानदारी का लबादा ओढ़ने वाले आईएएस अधिकारी डीएस मिश्रा ने 'करोरा' आखिरकार बीज निगम को नहीं लौटाई और राय शासन द्वारा नियुक्त बीज निगम के अध्यक्ष श्याम बैस के लिए निगम को नया एम्बेसेडर कार खरीदना ही पड़ा।
कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू के अधीनस्थ विभागों में क्या कुछ चल रहा है यह अब आम चर्चा में शामिल हो गया है। बीज निगम में उनके अध्यक्षीय कार्यकाल की चर्चा अभी थमी ही नहीं है कि मछली पालन विभाग में शुक्ला-त्रिपाठी की जोड़ी को नियम विरुध्द पदोन्नति की कोशिश हो रही है। इधर आईएएस अधिकारी डी.एस. मिश्रा द्वारा बीज निगम की महंगी कार उपयोग किए जाने पर भी चंद्रशेखर साहू की चुप्पी आश्चर्यजनक है। कहा जाता है कि बीज निगम का प्रभार जब डीएस मिश्रा ने जब संभाला तो निगम ने उनके लिए एम्बेसेडर की बजाय 18 लाख की करोरा कार दी थी। मिश्रा इसी कार में आते जाते थे और जब वे बीज निगम का प्रभार छोड़े तो कार भी अपने साथ ले गए और तभी से इसका वे उपयोग कर रहे हैं।
इधर राय शासन ने जब श्याम बैस को बीज निगम का अध्यक्ष बनाया तो निगम अधिकारियों ने डीएस मिश्रा से कार मांगा तो वे यही कहते रहे कि लौटा देंगे। इधर बगैर कार के नवनियुक्त अध्यक्ष श्याम बैस के संभावित गुस्से से डरकर निगम ने मिश्राजी से कई बार कार मंगवाई लेकिन जब वे कार नहीं लौटाये तो निगम ने नया एम्बेसेडर खरीदने का मन बना लिया और नए अध्यक्ष के लिए नया कार खरीदा गया।
बताया जाता है कि मिश्रा के इस कारनामें की शिकायत कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू से भी कई गई लेकिन इन शिकायतों का क्या हुआ पता नहीं चला है। इसी तरह यहां बाहर की पार्टी को 20 करोड़ का बीज सप्लाई का मामला भी चर्चा में है। बहरहाल प्रदेश में आईएएस अधिकारियों की दादागिरी किस कदर चल रही है और जनता के नुमाइंदे बने नेता किस तरह अपनी जुबान बंद रखे हैं इसे लेकर तरह-तरह की चर्चा है।

71 कर्मियों को बर्खास्तगी के बाद भी वेतन

बाबूलाल थे जब स्वास्थ्य सचिव
ऐसा वाक्या तो डॉ. रमन सरकार में ही हो सकता है जब बर्खास्त कर्मियों को बकायदा वेतन दिया जा रहा है। सीएमओ डा. किरण मल्होत्रा और स्वास्थ्य सचिव रहे बाबूलाल अग्रवाल के कार्यकाल में कई गड़बड़ी की फाइलें परत दर परत खुल रही है लेकिन कार्रवाई को जांच के नाम पर रोक दिया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार डॉ. किरण मल्होत्रा के कार्यकाल में गड़बड़ियों की जो फेहरिश्त है उससे अधिकारी भी हैरान है। वित्तीय अनियमितता से लेकर अनुकम्पा नियुक्ति का मामला हो या संविदा नियुक्ति का मामला यहां तक कि पल्स पोलियों से लेकर अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भी फर्जी बिल के माध्यम से पैसा हड़पने के मामले सामने आने की खबर है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि घपलेबाजी की कहानी सामने आने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो पा रही है। बगैर काम के वेतन देने का मामला और गणित वालों को पैसा लेकर कम्पाउण्डर बनाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि 71 बर्खास्त कर्मचारियों को लगातार वेतन देने का मामला सामने आ गया है। वार्ड बॉय, ड्रेसर जैसे पदों पर कार्यरत इन 71 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया था। इसके विरोध में ये बर्खास्त होने वाले कर्मचारी उच्च न्यायालय चले गए थे। अभी न्यायालय का फैसला आता इससे पहले इन कर्मचारियों ने अपना केस वापस ले लिया।
बताया जाता है कि केस वापस लेने से स्पष्ट हो गया था कि ये अब स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी नहीं थे लेकिन उन्हें स्वास्थ्य विभाग द्वारा वेतन दिया जा रहा है। बताया जाता है कि इस मामले में जबरदस्त लेन-देन हुआ है। इधर इसकी जानकारी अब जब अधिकारियों को हुई तो वे हैरान रह गए लेकिन कहा जाता है कि एक प्रभावशाली मंत्री के दबाव में कार्रवाई रोक दी गई है।
बताया जाता है कि स्वास्थ्य विभाग में मंत्री-सचिव स्तर पर जबरदस्त खेल खेला जा रहा है और शिकायतों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाता है। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग में घपलेबाजी की कहानी थमने का नाम नहीं ले रहा है और यही स्थिति रही तो कई और चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं।

पर्यटन मंडल में एमजी के आगे मंत्री-सचिव भी बेबस

असली एमडी की भूमिका में श्रीवास्तव?
भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुके पर्यटन मंडल में जनरल मैनेजर एमजी श्रीवास्तव को ही असली एमडी माना जाता है। उनका रुतबा ऐसा है कि अच्छों-अच्छों की बोलती बंद हो जाए। एमडी से लेकर सचिवों तक को अपने ऊंगली में नचाने का दावा तो किया ही जाता है। चर्चा इस बात की भी है कि विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की दमदारी भी पर्यटन मंडल में आकर खत्म हो जाता है।
पर्यटन मंडल में घपलेबाजी के किस्से नए नहीं है। पर्यटन के प्रचार-प्रसार में छत्तीसगढ़ सरकार ने इस विभाग को लम्बा-चौड़ा बजट भी दिया है और लम्बा-चौड़ा बजट होने के कारण यहां जबरदस्त भ्रष्टाचार हुआ। प्रचार-प्रसार सामग्री, स्टेशनरी घोटाले, मोटल निर्माण से लेकर घास लगाने की बात हो या बाउण्ड्री निर्माण सभी में जबरदस्त घोटाले हुए। कई मामलों के तो पुख्ता सबूत भी सामने आए लेकिन एमजी श्रीवास्तव पर किसी ने ऊंगली उठाने की हिमाकत नहीं की और जिन लोगों ने ऊंगली उठाने की कोशिश भी की तो उन्हें पर्यटन मंडल के बाहर का रास्ता दिखा दिया।
सेवाकाल से ही विवादों में रहे एमजी श्रीवास्तव के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अकूत धन संपदा अर्जित की है और रायपुर में विशाल नगर स्थित उनका मकान तो सिर्फ छाया मात्र है। आर्थिक समायोजन में माहिर एमजी श्रीवास्तव को लेकर यह भी चर्चा रही कि भले ही मध्यप्रदेश के जमाने में वे नौसिखिया थे इसलिए फंस गए लेकिन अब आयकर विभाग भी उनका बाल बांका नहीं कर सकता।
अहमदाबाद से लेकर भुवनेश्वर और मुंबई में पर्यटन मंडल के इस कथित एमडी के जलवे की चर्चा थमने का नाम नहीं लेता। यही नहीं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जैसे दमदार माने जाने वाले मंत्री के नोटशीट की भी धाियां उड़ाने वाले एमजी श्रीवास्तव के खिलाफ कार्रवाई करने से पुलिस भी हिचकती है। बताया जाता है कि टूरिम बोर्ड में आर्किटेक्ट का काम करने वाले हितेन कोठारी ने पुलिस अधीक्षक को लिखित में शिकायत की थी कि पर्यटन मंडल के जनरल मैनेजर एमजी श्रीवास्तव ने उन्हें गोली से उड़ा देने की धमकी देते हुए गाली गलौज किया है। हितेन कोठारी ने तो एमजी श्रीवास्तव पर पेंचकस से भी हमला करने का आरोप लगाया है।
बताया जाता है कि पुलिस अधीक्षक को किए गए इस शिकायत में कार्रवाई तो दूर जांच नहीं की गई। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एमजी श्रीवास्तव की दमदारी कितनी है और सचिव से लेकर मंत्री तक उनके कारनामों पर क्यों खामोश हैं।
बहरहाल एमजी श्रीवास्तव के हर मामले में साफ बच निकलने को लेकर कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि उनके कारनामों के चलते पर्यटन विकास की कई योजना अधर में लटक गई है।

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

देवेन्द्र वर्मा की दादागिरी से दागदार होता सचिवालय

लोकतंत्र का मंदिर माने जाने वाले विधानसभा के सचिवालय में ही जब अनियमितता व भ्रष्टाचार जमकर हो रहा हो तो सरकार से किसी और तरह के न्याय की उम्मीद ही बेमानी हो जाती है। यह हाल है छत्तीसगढ़ विधानसभा के सचिवालय की जहां सिर्फ और सिर्फ देवेन्द्र वर्मा की चलती है। नियुक्ति से लेकर पदोन्नति और निर्माण से लेकर तोड़फोड़ में हुए घपलेबाजी चिख-चिख कर न्याय मांग रही है लेकिन न सरकार को सुनाई दे रहा है और न ही विधानसभा अध्यक्ष ही कुछ कर पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राय के गठन के दौरान किसी ने सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि विधानसभा के सचिव और सचिवालय ही भ्रष्टाचार का अड्डा बन जायेगा। विधानसभा सचिवालय ही जब भ्रष्टाचार की जननी हो तो बाकी विभागों के बारे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता हैं।
हमारे भरोसे मंद सूत्रों का कहना है कि विधानसभा सचिवालय में भ्रष्टाचार व अनियमितता की कहानी तो तभी शुरू हो गई थी जब अनुसंधान अधिकारी के पद पर रहे देवेन्द्र वर्मा को मध्यप्रदेश आबंटित होने के बाद छत्तीसगढ़ में ही इस दलील के साथ रोक लिया गया कि नये नवेले छत्तीसगढ़ को अनुभव वाले व्यक्ति की जरूरत है लेकिन किसे पता था कि देवेन्द्र वर्मा अपने अनुभव का इस तरह से इस्तेमाल करेंगे कि लोकतंत्र का यह मंदिर भी कलंकित होने से नहीं बच पायेगा?
इतना ही नहीं देवेन्द्र वर्मा पर सरकार की जबरदस्त मेहरबानी रही और उन्हें कुछ ही सालों में न केवल सचिव बना दिया गया बल्कि चार-चार बार तदर्थ पदोन्नति दी गई। जबकि देवेन्द्र वर्मा मध्यप्रदेश सचिवालय के अधीन कर्मचारी है और उन्हें पदोन्नति भी मध्यप्रदेश से दी जानी थी लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उन्हें पदोन्नति छत्तीसगढ सरकार द्वारा दी गई।
देवेन्द्र वर्मा पर इतनी मेहरबानी की वजह तो सरकार की बता पायेंगे लेकिन हमारे सूत्रों का दावा है कि कई सचिव से लेकर विधायकों तक ने देवेन्द्र वर्मा की शिकायत सरकार से की है लेकिन सारी शिकायतों को अनसुना कर वही किया गया जो देवेन्द्र वर्मा चाहते हैं। आश्चर्य का विषय तो यह है कि देवेन्द्र वर्मा को चार बार दी गई तदर्थ पदोन्नति के दौरान सचिवालय सेवा अधिनियम को ताक पर रखा गया और लोगों का दावा है कि जिस तरह से इस मामले में सरकार की मेहरबानी रही वह ग्रिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल करने लायक है।
देवेन्द्र वर्मा की पहली तदर्थ पदोन्नति 6 जुलाई 2001 को उपसचिव के रूप में की गई इसके बाद 13 अप्रैल 2002 को संचालक बना दिया और इसके बाद 21 जनवरी 2003 को फिर पदोन्नति देते हुए उन्हें अवर सचिव और 9 जुलाई 2004 को विधानसभा का सचिव बना दिया गया 3 साल 3 दिन में 4-4 पदोन्नति दी गई और सभी आदेश में तदर्थ पदोन्नति व अस्थाई रूप से पदभार ग्रहण बताया गया।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि मध्यप्रदेश राजपत्र (असाधारण) जो यह दर्शाता है कि देवेन्द्र वर्मा मध्यप्रदेश में 1-11-2000 की स्थिति में पदस्थ थे और उनका वरिष्ठता क्रमांक 30 था। यही नहीं छत्तीसगढ में देवेन्द्र वर्मा को जब सचिव बनाने की तैयारी कर ली गई थी उसके दो माह पहले 11 मई 2004 को मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय की अंतिम आबंटन सूची में देवेन्द्र वर्मा को अनुसंधान अधिकारी ही बताया गया जबकि वे इस आबंटन सूची के दौरान छत्तीसगढ़ में अपर सचिव बनाये जा चुके थे।
देवेन्द्र वर्मा की कहानी यहीं खत्म नहीं होती इस सरकारी मेहरबानी का इन पर बेजा इस्तेमाल करने, नौकरी में गड़बड़ी से लेकर विधानसभा में छोटे-मोटे निर्माण कार्यो पर घपले बाजी के आरोप भी है। बहरहाल देवेन्द्र वर्मा पर लगते आरोप ने सरकार की नियत पर तो सवाल उठाया ही है लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर पर दाग लगाने की कोशिश की है।

बुधवार, 4 अगस्त 2010

बोया पेड़ बबूल का तो आम ...

इस देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिला लेकिन आम लोगों को आजादी का सुख आज तक नहीं मिला। फिर स्वतंत्रता दिवस आ रहा है। स्कूलों में झंडे फहराये जायेंगे और हमारे देश के नेता वहीं भाषण पढ़ेंगे जो अफसरों द्वारा लिख कर दी जायेगी और फिर सब लोग आजादी के मायने भूल जायेंगे।
सिर्फ अंग्रेजों की गुलामी से निजात को असली आजादी मान लेने की भयंकर भूल आज गांव-गांव में दिख रहा है। क्या सरकार के पास ऐसे आंकड़े है जिससे पता चले कि कितने गांवों में शिक्षा, चिकित्सा सुविधा और पीने के लिए स्वच्छ जल वहां उपलब्ध करा पाई है। शायद नहीं। इसलिए वह इस मामले में सरकारी भाषा का उपयोग कर प्रतिशत में सब कुछ बताती है। लेकिन कितने गांवों में सड़क और बिजली नहीं पहुंची है ये आंकड़े उसके पास है।
दरअसल विकास के मायने बदल गये हैं। विकास को सड़क और बिजली से तौला गया और लोग शिक्षा, चिकित्सा सुविधा और पानी से वंचित होते चले गये। जबकि भारत की भौगौलिक संरचना चीख-चीख कर कह रही है कि पानी के बगैर गांव और उसके लोग मर जायेंगे। शिक्षा और चिकित्सा सुविधा के अभाव में पीड़ियां बरबाद हो जायेगी लेकिन इसकी चिंता न तो वेतन भोगी नेताओं को है और न ही अधिकारियों को ही है के तो सड़के बनाना चाहते हैं ताकि उनका विकास हो वे बिजली लगवाना चाहते है ताकि कूलर-एसी की सुविधा उन्हें मिलती रहे।
आजादी के 60 सालों में निर्माण के नाम पर अरबों-खरबों का भ्रष्टाचार हुआ और यदि कोई पकडाया भी तो उसे बचाने की कोशिश हुई। विधानसभा से लेकर लोकसभा में प्रश्न करने और नहीं करने के नाम पर पैसे खाये गए। कार्रवाई भी हुई पर क्या प्रदीप गांधी से लेकर कुशवाहा तक के पेंशन बंद हुए। नहीं। क्यों? क्योंकि वेतन लेते-लेते आदमखोर बन चुके जमात ने ऐसी व्यवस्था बना रखी है कि इससे उनका अहित न हो आम जनता मरती है तो मर जाए।
सब को याद होगा जब छत्तीसगढ़ को अलग राय बनाने की बात हुई तो अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने कहा था कि अमीर धरती के गरीब लोगों के हितों के लिए पेड़ के नीचे विधानसभा लगा लेंगे लेकिन हुआ क्या? कुछ ही दिन में राजधानी निर्माण की योजना चल पड़ी। भाजपाई भी चिखते रहे नई राजधानी की जरूरत नहीं है। पैसे की बरबादी है। पर जैसे ही सत्ता भाजपा के हाथ लगी उसने भी राजधानी बनाने का काम शुरू कर दिया? क्या कोई बता पायेगा कि नई राजधानी सिर्फ नेताओं और अधिकारियों के लिए नहीं बन रही है तो किसके लिए बन रही है। क्या किसानों की खेती जमीन जबरिया नहीं अधिग्रहित की जा रही है? क्या वहां के बाजार दर पर मुआवजा दिया जा रहा है? यह ऐसे सवाल है जो साबित करते हैं कि आम आदमी आज भी वास्तविक आजादी से कितनी दूर है। नेता और अधिकारी किस तरह से मिल बांटकर आजादी का हर महिने के पहली तारीख को जश्न मान रहे हैं। नेता-अधिकारी बेशक पहली तारीख को जश्न मनाये लेकिन आम लोगों को भी इसमें शामिल करें उन्हें बुनियादी सुविधाएं तो पहले दो फिर दूसरों की सुविधाओं का ध्यान रखो। लेकिन आजादी मिलते ही अपने लिए सब कुछ पा लेने की रणनीति ने आम आदमी के लिए सिर्फ और सिर्फ बबूल बोने का काम किया है।

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया...

सरकारी अंधेरगर्दी के सफर ने अर्धशतक पूरा कर लिया है। लेकिन अंधेरगर्दी थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अपनी मजबूरी है नौकरशाह बेलगाम है। गृहमंत्री ननकीराम कंवर को गुस्सा आ जाये तो कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कह देते हैं। बृजमोहन अग्रवाल हो या राजेश मूणत वे अपने में मस्त हैं। अन्य मंत्री तो अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं और कांग्रेसियों को क्या कहें वे तो सुप्रीम कोर्ट के आधे राय में शासन नहीं है कहने के बाद भी इसलिए चुप है कि उन्हें क्या करना है। मुख्यसचिव का हाल किसी से छिपा नहीं है और डीजीपी तो अपने प्रदेश के लोगों को मलाईदार विभाग में बिठाने में ही पूरी कसरत कर लेते है कुल मिलाकर सरकारी तंत्र गुडगाड है और जनता बेचारी तमाशाबीन है।
छत्तीसगढ़ राय ऐसा ही चल रहा है। अपनों को उपकृत करने की सरकारी कोशिश और कमाई का जरिया ढूंढता विपक्ष के बीच छत्तीसगढ़ बरबादी के कगार पर है। खनिजें बेच दी गई। पानी तक बेची जा रही है। उद्योगपतियों की दादागिरी से सरकार नतमस्तक है। न बालकों के अवैध कब्जे हटाये जाते है न जिंदल के ऐसे में रायखेड़ा में पावर प्लांट वाले बगैर अनुमति के कार्य शुरू करे तो किसकी हिम्मत है कि अपराध दर्ज कर लिया जाए और अपराध दर्ज करने से होगा भी क्या जब गिरफ्तारी ही न की जाए।
सरकार की योजना भी वोट बैंक को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। दो रूपये किलों चावल योजना का फर्जी वाड़ा किसी से छिपा नहीं है। मध्यम वर्ग इस त्रासदी को झेल रहा है और सरकार डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल से लेकर डॉ. सुनील खेमका को सरकारी जमीन कौड़ियों के मोल दे रही है।
शराब नीति तो सरकार की लाजवाब है। जनता मर जाए राजस्व की चिंता जरूरी है। क्योंकि राजस्व से अधिक कमाई अवैध शराब के जरिये सीधे अधिकारियों और नेताओं तक पहुंचती है। अवैध शराब के खिलाफ आन्दोलन करने वाले खरीद लिये जाते हैं या पुलिसिया कानून उन्हें निराश कर घर में बैठने मजबूर कर देता है। तब सरकार के पास जन-जागरण से शराब बंदी का राम बाण है जो सारी जिम्मेदारी जनता पर डालने के लिए काफी है।
इतनी अंधेरगर्दी के बाद जनता खामोश है। उन्हें खामोश रहना भी चाहिए क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है। नक्सली तो अपने ऐशो आराम के लिए मार काट मचा रहे हैं। उन्हें आदिवासियों की तकलीफों से क्या लेना देना। कुल मिलाकर सरकारी अंधेरगर्दी का सफर मजे से चल रहा है। कोई समझे तो ठीक न समझे तो ठीक। हम तो इसी आशा में अर्धशतक लगा चुके कि जनता जागेगी और अपना हक मांगेगी।

सोमवार, 2 अगस्त 2010

प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं, आफत में अस्तित्व

छत्तीसगढ़ में अखबारी आंकड़े राय बनने के बाद जिस तेजी से बड़ा है उससे अखबारों में संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई है। पत्रिका सहित कुछ और अखबारों के आगमन की आहट से पुराने जमें अखबारों के सामने अस्तित्व बचाने की कवायद शुरु हो गई है। सर्वाधिक दुविधापूर्ण स्थिति नवभारत, भास्कर की है ये दोनों अपने को सर्वश्रेष्ठ बनाने जूझते रहे हैं। ऐसे में नए अखबार के आगाज ही इनके होश उड़ाने वाले होते है। अब नवभारत की बात ही दूसरी है। उसकी विश्वसनियता का एक जमाने में जबरदस्त जलवा रहा है लेकिन कहते हैं जब से सेटीमीटर कालम में खबरें छपने लगी उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे है। शायद यही वजह है कि भोपाल में नवभारत की दुर्गति हुई है और कहते है कि यहां भी रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने वही हरकतें शुरु कर दी है।
'हकीकत' कौन लिखता है
प्रेस जगत में अब एक नया सवाल उठने लगा है कि जिसे हिन्दी बोलने तक नहीं आती वह हकीकत कैसे लिख सकता है। चर्चा है जगदलपुर से लेख मंगाकर अपने नाम में छपाया जा रहा है।
पार्षद पति भी पांच-पांच
सौ बांटने लगे
...
लगता है सलीम अशरफी ने पांच-पांच सौ रुपए बांटकर नया रास्ता शुरु कर दिया है तभी आश्रम के पास धरने का आयोजन करने वाले पार्षद पति धर्मेन्द्र तिवारी ने भी पत्रकारों और फोटो ग्राफरों को पांच-पांच सौ रुपए दे डाले। दुविधा यही है कि जिन्हें नहीं मिला वे अब भी उनसे संपर्क की कोशिश में है।
'परमार ने पाया'
भास्कर के लिए जी जान देने वाले रामकुमार परमार को भास्कर ने ही अपना नहीं समझा और दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका। इसमें बेचारा परमार कोशिश करते रहा कि अपने नमक हलाली का सबूत दे लेकिन अब जाकर जनसत्ता ने यह मौका दिया है। वेतन कितना पता नहीं।
हरिभूमि की बैंडपार्टी
स्कूल छोड़ने के बाद किसी की ईच्छा नहीं होती ड्रेस पहनने की लेकिन हरिभूमि में नौकरी करनी है तो हर शनिवार को हरिभूमि का ड्रेस पहन प्रचार करना ही होगा। अब तो इसे बैंड पार्टी कहा जाने लगा है। बेचारे क्या करें। नौकरी करनी है तो कलम भले न चलावें ड्रेस तो पहननी ही होगी।
पत्रिका आकर्षण...
पत्रिका में जाने मीडिया कर्मियों में होड़ मची है। कहा जाता है कि सर्वाधिक लोग नई दुनिया से गए हैं। नई दुनिया से पत्रिका जाने वालों में अनुपम सक्सेना, राहुल जैन, संजीत कुमार (सिटी चीफ), पराग मिश्रा तथा यहां के दो फोटोग्राफर विनय घाटगे और त्रिलोचन मानिकपुरी शामिल है। इसी तरह नवभारत के अखिलेश तिवारी हरिभूमि से राव और भास्कर से राजेश जॉनपाल, गोविन्द ठाकरे, मोहम्मद अजगल, सुदीप त्रिपाठी व निश्चय खरे ने पत्रिका की ओर कूच कर दिया है। इनमें से कुछ तो अपने संपादकों से बेहद प्रताड़ित थे। खासकर नई दुनिया वाले तो संपादक की प्रताड़ना से त्रस्त थे।
किसी ने आईएएस का
एप्रोच लिया तो...
पत्रकारों का आईएएस से मधुर संबंधों की बात नई नहीं है। अब राजकुमार सोनी को ही ले लिजिए। जनसत्ता से हरिभूमि आए इस मिलाईछाप पत्रकार के लिए सी.के. खेतान लगे हैं कि वे पत्रिका पहुंच जाए। अब खेतान साहब कैसे हैं किसी से छिपा है क्या। इसी तरह नई दुनिया के संपादक रवि भोई भी पत्रिका के बिलासपुर क्षेत्र को संभालने उत्सुक है। चर्चा है कि श्री भोई ने इसके लिए भोपाली मित्र विनोद पुरोहित के मार्फत एप्रोच किया है। इसी तरह नवभारत के हीरो नईदुनिया में जीरों नहीं बनना चाहते इसलिए चन्द्रप्रकाश जैन ने भी पत्रिका को आवेदन दे दिया है।
और अंत में....
संवाद में हुए घपलेबाजी पर लीपापोती होते देख जनसंपर्क में एक अफसर ने मुख्यमंत्री के नाम बिना नाम वाले पाती भिजवा दी। यह पाती का क्या होगा यह तो पता नहीं लेकिन जनसंपर्क के प्रभारी बैजेन्द्र कुमार के लिए जिस भाषा का इस्तेमाल हुआ है उसकी यहां जबरदस्त चर्चा है।

Jeevan Dor Tumhi Sang Bandhi-Sati Savitri-Lata Mangeshkar

रविवार, 1 अगस्त 2010

शाबास,नारी शक्ति की जय हो













एक बार फिर नारी शक्ति ने साबित कर दिया कि उनका कोई मुकाबला नहीं.टिकरापारा कि महिलाओ ने शराब ठेकेदारों को भागने मजबूर कर दिया .आज इसी तरह कि कार्रवाई कि जरुरत है .

भाजपाई गुण्डागर्दी से त्रस्त हैं कई लोग...

भाजपा के ब्लाक महामंत्री प्रीतम सिंहा पर पाण्डुका सब डिवीजन जल संसाधन विभाग के जल उपभोक्ता समिति के लोगों ने डरा धमका कर पैसे वसूलने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की है।
प्रेस क्लब रायपुर में आयोजित पत्रकार वार्ता में दिलीप साहू, हरिशचंद्र शर्मा, पोखन साहू, महेन्द्र साहू, पुष्कर तिवारी, शिवकुमार साहू और पवन साहू ने जिस तरह से भाजपा नेता के खिलाफ आरोप लगाए है वह भाजपा पदाधिकारियों के सत्ता मद में चूर होने का उदाहरण है। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में कई स्थानों पर सत्ता के दम पर भाजपा के नेता गुण्डागर्दी पर उतारू है और पार्टी भी ऐसे लोगों के खिलाफ शिकायत के बावजूद कार्रवाई नहीं करती है। इस संबंध में जब प्रीतम सिंहा से संपर्क की कोशिश की गई तो वे उपलब्ध नहीं हुए। इधर पीड़ित दिलीप साहू व अन्य लोगों ने लिखित में बताया कि हम पाण्डुका का सबडिवीजन जल संसाधन विभाग के जल उपभोक्ता समिति में है। भाजपा के ब्लॉक महामंत्री (छुरा), प्रीतम सिन्हा के कारनामों से काफी परेशानी है। वह साइड में आकर पैसे की मांग करता है और इसके अलावा सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाकर हम लोगों को ब्लैक मेलिंग करता है। तौरेंगा जल उपभोक्ता समिति के अध्यक्ष दिलीप साहू को धमका-चमका कर 19 अप्रैल को 10 हजार रुपए ले लिया उसके बाद ही 20 हजार रुपए की मांग और करने लगा है। इसी तरह हरीशचंद्र नामक टाईम कीपर से 10 हजार रुपए धमकाकर ले लिया कि तुम्हारा ट्रांसफर लिस्ट में नाम है। इसी तरह वह कई जगहों पर सूचना के अधिकार लगाकर धमकी चमकी देकर पैसा की उगाही कर रहा है। जिसकी शिकायत सांसद चन्दूलाल साहू, भाजपा नेता संतोष उपाध्याय संगठन के रामप्रताप सिंह एवं स्थानीय पत्रकारों से भी की गई है। ऐसे नेता के कारण काम करने में हम लोग असमर्थ है इस नेता की वजह से 15 करोड़ रुपए की राशि शासन की वापिस चली गई है।

पूर्व विधानसभाध्यक्ष की बिटिया ही प्रताड़ित है सरकार से


सचिव देवेन्द्र वर्मा पर कई आरोप
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने ये भी कभी नहीं सोचा था कि जिस व्यक्ति को वे छत्तीसगढ़ के हित लिए रोक रहे है वहीं उनकी बिटिया की उन्नति के मार्ग में बाधक बनेंगे। मामला विनिता बाजपेयी का है जो विधानसभा अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक के चक्कर लगा चुकी है और इस मामले में कांग्रेसियों की चुप्पी भी आश्चर्यजनक है।
प्रदेश की सर्वोच्च संस्था विधानसभा के सचिवालय में जो कुछ चल रहा है वह सरकार की मंशा को दर्शाने के लिए काफी है। वैसे भी इस प्रदेश में बैठी सरकार की करतूतें कम नहीं है जिन अधिकारियों को जेल या फिर प्रदेश से बाहर होना चाहिए उन्हें क्रीम व कमाऊ पद पर बैठा दिया गया है। जबकि ये तीनों मध्यप्रदेश कैडेर के अधिकारी है।
विधानसभा सचिवालय में भी यही सब हो रहा है। कानून को खुंटे में टांगकर जिस तरह से मनमानी की जा रही है उससे कई तरह के सवाल ही नहीं उठ रहे है बल्कि इसकी गरिमा को भी ठेस पहुंची है। देवेन्द्र वर्मा किस तरह से छत्तीसगढ़ में जमें हुए हैं इसकी एक अलग ही कहानी है लेकिन विधानसभा सचिवालय की मनमानी से प्रताड़ित विनिता बाजपेयी इन दिनों अपने साथ हुए अन्याय के लिए सरकार से लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेताओं तक का चक्कर लगा चुकी है।
यह विनिता बाजपेयी सिर्फ विधानसभा सचिवालय की अधिकारी होती तब भी कांग्रेसियों की चुप्पी जायज नहीं थी लेकिन वह विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष स्व. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की बिटिया है जिन्होंने कांग्रेस के लिए अपना जीवन होम कर दिया ऐसे स्वर्गवासी श्री शुक्ल की बिटिया के साथ किए जा रहे अन्याय पर भी कांग्रेसियों की खामोशी आश्चर्यजनक है।
दरअसल विवाद सचिवालय द्वारा जारी पदोन्नति सूची से शुरु हुआ। श्रीमती विनिता वाजपेयी 2001 में अनुसंधान अधिकारी एवं उसके समकक्ष अवर सचिव के पद पर कार्यरत थी और जब पदोन्नति आदेश निकला तो उनका नाम तो आदेश में था लेकिन न तो पद में और न ही वेतन में ही ईजाफा किया गया। इतिहास का यह पहला मामला होगा जब प्रमोशन तो दिया गया लेकिन पद और वेतनमान जस का तस रहा। जबकि छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिवालय सेवा भर्ती एवं सेवा शतर्ें अधिनियम 1981 के नियम 4 (3) में स्पष्ट उल्लेख है कि उपसचिव के पद पर पदोन्नति अवर सचिव कैडर या अनुसंधान अधिकारी कैडर से दिए जाएंगे।
यहीं नहीं सचिवालय की मनमानी और भर्राशाही का यह नमूना है कि देवेन्द्र वर्मा जब अनुसंधान अधिकारी से पदोन्नति किए गए तो उन्हें उपसचिव बनाया गया जबकि विनिता वाजपेयी के साथ ऐसा नहीं हुआ। यही नहीं सरकार की इससे बड़ी प्रताड़ना और क्या होगी कि श्रीमती बाजपेयी को अपने से कनिष्ठ आर.के. अग्रवाल और दिनेश शर्मा से नीचे काम करना पड़ रहा है। जबकि दिनेश शर्मा को अवर सचिव पद पर बने हुए पांच साल भी नहीं हुए है। फिर भी इनका प्रमोशन कर दिया गया।
ऐसा भी नहीं है कि विधानसभा में चल रहे इस भर्राशाही और मनमानी की जानकारी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को नहीं है लेकिन आश्चर्यजनक रुप से कांग्रेसियों ने चुप्पी ओढ़ ली है ऐसे में मामला श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंची तो नेता प्रतिपक्ष सहित कांग्रेसियों की क्या स्थिति होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल विधानसभा सचिवालय में चल रहे इस खेल पर सरकार की खामोशी उन्हीं पर भारी पड़ सकती है। कयोंकि आम लोगों में चर्चा का विषय बन रहे सचिवालय की करतूत से सरकार की छवि पर भी विपरीत असर पड़ेगा।