मंगलवार, 24 अगस्त 2010

कांग्रेस-भाजपा में सांठ-गांठ

परमाणु दायित्व विधेयक को लेकर कांग्रेस-भाजपा में सांठगांठ को लेकर लालू-मुलायम और वाम दलों ने खूब हंगामा किया। इस सांठ-गांठ के चलते गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बचाने का भी आरोप है? क्या सचमुच कांग्रेस और भाजपा में इस तरह की सांठ-गांठ हो रही है। हालांकि यह सत्य है कि राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन। खासकर अपने हितों के लिए सांसद और विधायक कितने नीचे गिर सकते हैं यह इस देश के आम लोगों ने बहुत नजदीक से देखा है।
छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस किस स्तर तक सांठगांठ कर रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। ये वही रमन सिंह है जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने से पहले जोगी सरकार के घोटाले की जुलूस निकाला था। तब रमन सिंह प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे और कांग्रेस के अन्याय के खिलाफ संकल्प पत्र जारी किया था। अजीत जोगी को खलनायक बताने वाले संकल्प पत्र की कितनी बातें पूरी की गई? यह सवाल अब भी लोगों की जुबान पर है। आज रमन सरकार को 6 साल से उपर हो गए है और उसने अभी तक जोगी सरकार के किसी भी घोटाले पर कार्रवाई नहीं की। क्या यह सांठ-गांठ नहीं है। सांठ-गांठ का आलम यह है कि अपनी तनख्वाह बढ़ाने यही लालू-मुलायम या वामदल एक हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति है। प्रदेश सरकार का ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां घोटाले, अनियमितता की खबरें नहीं आ रही है। लेकिन क्या कभी किसी कांग्रेसी ने कार्रवाई होते तक आंदोलन किया। हालत तो इतनी खराब है कि बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेताओं के खिलाफ बोलने में कांग्रेसियों के पसीने छूट जाते हैं? क्या पीडब्ल्यूडी की करतूत किसी कांग्रेसी से छिपी है। कमीशन 15 से बढक़र 20 हो गया। तबादला उद्योग चलाया गया। पर्यटन में एमजी श्रीवास्तव हो या अजय श्रीवास्तव की दादागिरी पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। उल्टे नियम विरुद्ध यहां नियमितिकरण किया जा रहा है। संविलियन किया जा रहा है। नाते-रिश्तेदारों को नौकरी दी जा रही है। लेकिन कोई कुछ नहीं कह रहा है। शिक्षा विभाग में तो फर्नीचर घोटाला हो या विज्ञान उपकरणों की खरीदी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। विवादास्पद तवारिस, बाम्बरा जैसे लोगों के मजे है और कांग्रेसी अपने मुंह पर ताला जड़े हुए हैं।
ऐसा नहीं कि सांठ-गांठ सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल के मामले में है। चंद्रशेखर साहू हो या राजेश मूणत। खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह के विभाग में घोटाले की फेहरिश्त है लेकिन कोई कुछ नहीं कहता। मुख्यमंत्री धर्म का अपमान करते हैं और कांग्रेसी यह कहकर खामोशी ओढ़ लेते हैं कि यह व्यक्तिगत है। भाजपा का कमल दीप में महंगाई डायन पर भी कांग्रेसी दो-चार घंटे चिल्लाकर चुप हो जाते हैं। सांठ-गांठ इतनी की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के आम कार्यकर्ता हैरान है और आम लोगों का पैसा बेदर्दी से लूटा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राजस्व की कमी नहीं है लेकिन उस स्तर पर विकास कार्य नहीं हो रहे हैं जब एक ही सडक़ साल में दो-चार बार बनानी हो तो विकास के दूसरे कार्य कैसे होंगे। लालू-मुलायम या वामदलों को कांग्रेस-भाजपा में सांठगांठ अब दिखाई दे रहा है। वेतन भत्तों में बढ़ोत्तरी में यह सांठगांठ नहीं दिखता। भ्रष्टाचारियों को बचाने में सांठगांठ नहीं दिखता और न ही अपराधियों को संरक्षण में ही सांठगांठ दिखता है।

लोग मरते हैं तो मर जाएं सांसद-विधायकों को पैसा चाहिए

 आजादी के 63 साल बाद भी आम आदमी को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है, शिक्षा और चिकित्सा सुविधा का भगवान ही मालिक है। लोग दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं और इस देश के सांसदों और विधायकों को 16 हजार रुपए महिना भी कम पड़ रहा है। इस शर्मनाक स्थिति को रोका नहीं गया तो न नेताओं को कोई पिटने से बचा पाएगा और न ही लोगों को सडक़ों पर उतरने से कोई सरकार रोक पाएगी।
जनप्रतिनिधि कहलाने वाले इस देश के सांसदों व विधायकों ने अपनी सुविधा बढ़ाने आम लोगों का जीवन दांव पर लगा दिया है। रोजमर्रा की चीजे सिर्फ महंगी इसलिए हुई है क्योंकि इस पर भारी भरकम टैक्स लागू है और इस टैक्स में से बड़ी राशि सांसदों-विधायकों के वेतन भत्ते और पेंशन में चले जाते हैं। जिस देश के आम आदमी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है उस देश के सांसद और विधायक अपनी सुविधाओं में कटौती कराने की बजाए सुविधाएं बढ़ाने लड़ रहे हो इससे शर्मनाक स्थिति और क्या होगी?
क्या किसी सरकार ने कभी सोचा है कि उसके राज में हर व्यक्ति को शिक्षा, चिकित्सा और पानी की सुविधाएं उपलब्ध है। भोजन तो दूर की बात है। इस देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं होगा जहां ये तीन मूलभूत सुविधाएं आम लोगों को पूरी तरह मिल रही हो। जब आजादी के 63 साल बाद भी ये तीन चीजें आम लोगों तक नहीं पहुंचाई जा सकी है तो फिर इन्हें वेतन किस बात का? सिर्फ एय्याशी या लोकतंत्र के मंदिर में हंगामा करने का?
सवाल यह नहीं है कि सांसदों-विधायकों का वेतन क्यों नहीं बढ़े? बल्कि अब आम आदमी यह सवाल करने लगा है कि इन्हें आखिर वेतन ही क्यों दिया जाए? जब सवाल करने पैसे ये लेते हैं? सवाल नहीं करने के पैसे ये लेते हैंं? उद्योगों के हित में नीति बनाते समय पैसे ये खाते है? कब किसका टैक्स बढ़ाना है घटाना है के एवज में पैसे का लेनदेन होता है और संसद या विधानसभा की कार्रवाई के दौरान इन्हें जब भत्ते दिए जाते है तब वेतन क्यों।
क्या आम आदमी इस बात से अनभिज्ञ है कि पांच सौ पैतालीस सांसदों में से तीन सौ से ज्यादा सांसद करोड़पति है? इन्हें वेतन की जरूरत क्यों और किसलिए दी जानी चाहिए? आम लोगों के खून पसीने की कमाई पर अपना हित साधने की कोशिश अब बंद करनी ही होगी वरना इसका दुखद परिणाम भुगतने के लिए देश को तैयार होना होगा। इस देश का प्रति व्यक्ति की आय कितना है और नेताओं को कितना वेतन भत्ता सुविधा दिया जा रहा है? सकारी आंकड़े सच्चाई से कोसो दूर होता है और औसत के फेर में गरीब कैसे मरता है इसका उदाहरण है भारत का प्रति व्यक्ति आय। सरकारी आकड़े के मुताबिक भारत के प्रति व्यक्ति की आय लगभग 40 हजार रुपए वार्षिक है यानी महिने में तीन साढ़े तीन हजार रुपए। ऐसे में सांसदों-विधायकों को इससे ज्यादा वेतन की बात ही बेमानी है।
अब तो लोग आक्रोशित है और आने वाले दिनों में राजनैतिक दलों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा। यदि बगैर वेतन के काम करने वाले लोग चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें ही जनता अपना वोट देगी और यह स्थिति बनने भी लगी है।
00मालामाल सांसद
0 पांच सौ पैतालीस सांसदों में तीन सौ से ज्यादा करोड़पति है।
0 देश के प्रधानमंत्री भी विश्व बैंक में पूर्व नौकरीशुदा।
0 तीसरे मोर्चे की कमान संभालने वाले यादव बंधु दोनों अआय से अधिक संपत्ति के मामलों में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।
0 गरीब और दलित लोगों के मसीहा पासवान हो या मायावती लोगों के पास कितना पैसा यह किसी से छुपा नहीं।

00 मंत्री बनने के बाद यह मिलता है सांसदों को
0 टाइप 8 बंगला, राज्यमंत्रियों को टाइप 7 बंगला।
0 कोई किराया नहीं, बिजली के बिल पर कोई लगाम नहीं।
0 मूल वेतन 16 हजार रुपए, भत्ता 1 हजार रुपए
0 संसदीय क्षेत्र भत्ता 20 हजार रुपए।
0 टेलीफोन : दो फोन और एक लाख 75 हजार फ्री कॉल।
0 हर साल ढाई हजार रुपए मोबाइल भत्ता।
0 मोबाइल हैंडसेट फ्री।
0 नि:शुल्क एयर टिकट।
0 परिवार के लिए साल में 48 यात्राएं।
0 जितना चाहें उतनी एसी कोच में यात्रा परिवार के साथ
स्टाफ : पर्सनल स्टाफ में इन लोगों की नियुक्ति किया जा सकता है।
एक प्राइवेट सेक्रेटरी, एक एडिशनल पर्सनल सेक्रेटरी, दो पर्सनल असिस्टेंट, एक हिन्दी स्टेनो, एक ड्राइवर, एक क्लर्क एक जमादार या चपरासी।
( यह केवल मंत्री का स्टाफ है मंत्रालय से अलग से स्टाफ मिलता है।)