शनिवार, 7 मार्च 2020

शांति और हथियार..


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वैसे तो अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे को निजी बताया गया लेकिन इस दौरे के अपने राजनैतिक निहितार्थ स्पष्ट रुप से देखे जा सकते हैं। साबरमति से लेकर ताजमहल की यात्रा ने गांधी की ताकत को एक बार फिर विश्व पटल पर रेखांकित किया ही ताजमहल की वैभव ने भी पूरी दुनिया का ध्यान अपनी खींचा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रम्प और उसके परिवार की भारत यात्रा को लेकर विपक्ष की राजनीति को नजर अंदाज कर भी दें तब भी अमेरिकी राष्ट्रपति के वक्तव्य की मंशा को लेकर भारत को चिंता करनी ही चाहिए। आखिर गांधी के देश में आकर कोई घातक हथियारों की बात कोई यूं ही नहीं करता?
ये सच है कि मेहमानों के स्वागत में देश को कोई कमी नहीं करनी चाहिए लेकिन जब मेहमान अमेरिका जैसा ताकतवर देश हो तो अतिरिक्त सावधानी भी जरूरी है। दोस्ती में धोखा हमने चीन से भी खाया है और एक बड़े भूभाग से हाथ धोना पड़ा था हालांकि अमेरिका हमारा पड़ोसी नही है इसलिए उससे दोस्ती में दूसरी तरह की चिंता हो सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान में आतंकवाद को लेकर भले ही समझाईश के बोल बोले हो लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे पाकिस्तान से संबंध अच्छे हैं इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हम पाकिस्तान के साथ सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के पाक से संबंध की स्वीकारोक्ति ही भारत के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि एक तरफ वे दक्षिण एशिया में तनाव कम कर शांति की उम्मीद जताते हैं तो दूसरी तरफ भारत का ेसबसे खतरनाक मिसाईल और हथियारों से लैस करने का दावा करते हैं। आतंकवाद को लेकर पाक को नसीहत देने और अच्छे संबंधों की दुहाई के बीच हथियारों की होड़ चिंता की बात है लेकिन संघ राष्ट्रवाद की दौड़ के आगे यह स्वाभाविक चिंता भी किसी को दिखाई नहीं देने वाला है। पाकिस्तान की हालत आज किसी से छिपा नहीं है और न ही अमेरिका-पाक के रिश्ते ही नये हैं। आजादी के बाद से ही अमेरिका ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ भरपूर मदद की है। यहां तक की भारत के खिलाफ हिन्द महासागर में सातवा बेड़ा तक भेजा था लेकिन तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तेवर ने अमेरिका को पांव वापस खिंचने मजबूर कर दिया था। भारत-रूस की दोस्ती के चलते अमेरिका ने भले ही पाकिस्तान को खुलकर मदद नहीं की लेकिन पाक के बहाने दक्षिण एशिया में अपनी दादागिरी करता रहा है। अमेरिकी कर्ज के आगे पाक की बरबादी के दास्तान को भूला देना क्या आसान है?
ऐसे में जब पाकिस्तान में अमेरिकी हथियार की खपत कमजोर होने लगी है तो क्या अमेरिका अपने हथियार बेचने नये बाजार नहीं ढंूढ रहा है। अमेरिका को लेकर विश्व में क्या यह धारणा नहीं है कि वह अपने हथियार बेचने कई देशों को अशांत करता रहा है। तब भला उसके भारत को घातक हथियारों और मिसाईलों से लैस करने का दावा क्या सिर्फ हथियार बेचना बस नहीं है?
आज भारत जिस तरह से आर्थिक झंझावतों से जूझ रहा है वह किसी से छिपा नहीं है और इन परिस्थितियों में हमें फूंक-फूंक कर कदम उठाने की जरूरत है। आर्थिक मंदी, बढ़ी बेरोजगारी और अंध राष्ट्रवाद की आग से झुलस रहे भारत को हथियार की बजाय मिल बैठकर शांति की नई पहल के साथ आगे बढ़ाना होगा अन्यथा हथियार की होड़ हमें आर्थिक रुप से तोड़ देगा जो भविष्य के लिए चिंता का विषय तो होगा ही अमेरिका का विश्व में प्रभुत्व की मंशा भी कामयाब हो जायेगी।

एक अनार सौ बीमार!


निगम-मंडल में नियुक्ति को लेकर रार!
विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। यह तो एक अनार, सौ बीमार की कहावत को ही चरितार्थ करता है। वरना निगम मंडल में नियुक्ति को लेकर दावेदारों में इस तरह घमासान नहीं होता। हालांकि निगम-मंडलों पर नियुक्ति मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अधिकार क्षेत्र में है। लेकिन जिस तरह से वोरा गुट, चरणदास महंत, टीएस बाबा, ताम्रध्वज साहू के अलावा विधायकों ने लामबंदी शुरु की है उससे कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई सड़क पर आने की पूरी संभावना है।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा के बजट सत्र के बाद विभिन्न निगम व मंडलों  में नियुक्ति किया जाना है। सालभर से नियुक्ति के इंतजार में पलके बिछाए और जी हुजरी करने वालों के सब्र का बांध भी भर चुका है और वे चाहते हैं कि मुख्यमंत्री शीघ्र ही निगम मंडलों में नियुक्ति करें। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस तरह से राजनीति के माहिर खिलाड़ी के रुप में स्वयं को स्थापित किया है उससे नियुक्ति की राह में बहुत बड़ी बाधा नहीं है लेकिन यह कहना भी गलत होगा कि गुटबाजी में फंसी कांग्रेस के नेता पन्द्रह साल बाद मिल रहे सत्ता सुख से स्वयं को आसानी से वंचित कर दें।
यही वजह है कि निगम मंडल के बहाने लालबत्ती की चाह रखने वालों ने अपनी अपनी ताकत से गुटबाजी को हवा दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में वैसे तो भूपेश बघेल ने जिस तरह से राजनीति की है उससे बाकी नेताओं के सामने चुप्पी ओढऩे के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है लेकिन निगम मंडल में नियुक्ति को लेकर दावेदारों ने प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया, टीएस बाबा, मोतीलाल वोरा और ताम्रध्वज साहू के गणेश परिक्रमा में लग गये है। सूत्रों की माने तो पीएल पुनिया ने भी अपने कुछ एक-दो समर्थकों को नियुक्ति का आश्वासन भी दे दिया है। तो वोरा गुट से राजीव वोरा सक्रिय हो गये हैं। जबकि टीेएस बाबा और ताम्रध्वज साहू की चुप्पी से समर्थक हैरान है।
बताया जाता है कि कांग्रेस के कई विधायक भी लालबत्ती चाहते हैं और वे भूपेश बघेल से नजदीकियां बढ़ा भी रहे हैं तो कुछ दबाव की राजनीति में लगे हैं हालांकि ऐसे विधायक यह भी स्वीकार करते हैं कि भूपेश बघेल पर दबाव डालना आसान नहीं है और उनकी राजनीति के मिजाज को देखते हुए यह कहना कठिन है कि वे किसी दबाव में नियुक्ति करेंगे। कांग्रेस में भूपेश बघेल के समर्थक माने जाने वालों ने अभी से यह कहना शुरु कर दिया है कि जो संघर्ष के साथी है उन्हें ही लालबत्ती मिलेगी और फूल छाप कांग्रेसियों के लिए इस नियुक्ति में कोई जगह नहीं होगी।
निगम मंडल की नियुक्ति को लेकर कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियो ने भी उम्मीद पाल रखी है ऐसे लोगों में जोगी व शुक्ल खेमें के वे लोग भी शामिल हैं जो सरकार बनते ही भूपेश बघेल के नजदीक आने की कोशिश में है। जिधर बम उधर हम की राजनीति करने वालों की सक्रियता भी कांग्रेस में चर्चा का विषय है। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि भले ही विरोधी गुट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए चुनौती न हो लेकिन सबसे बड़ी चुनौती संगठन के वे नेता हैं जो भूपेश बघेल के संघर्ष के दिनों में कांधे से कांधा मिलाकर हर लड़ाई में साथ खड़े रहे। ऐसे नेताओं को नजरअंदाज करना आसान नहीं हु