सोमवार, 31 मई 2010

पर्यटन के नाम पर डकैती

मंत्री मेहरबान,अजय पहलवान
जिस व्यक्ति पर अपनी हवस के लिए कालगर्ल को कार से कुचलकर मार डालने का आरोप हो और जिसके दुग्ध संघ से पर्यटन मंडल में संविलियन को ही गलत माना जा रहा हो ऐसे अजय श्रीवास्तव का पर्यटन मंडल में पीआरओर बनना और मंत्री का करीबी कहलाना कहां तक उचित है।
छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल में चल रहे घपलेबाजी को डकैती की संज्ञा दी जाए तो कम नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब से बृजमोहन अग्रवाल ने पर्यटन विभाग संभाला है तभी से यह विभाग अपने कारनामों से सुर्खियों में रहा है। प्रचार प्रसार में माहिर पर्यटन मंडल में चल रहे डकैती की चर्चा तो अब आम हो चुकी है।
ऐसे में यहां हुई संविदा नियुक्ति की कहानी शर्मनाक है यही नहीं दुग्ध संघ के कर्मचारी अजय श्रीवास्तव को लेकर यह विभाग इन दिनों सुर्खियों में है। सुखर्िाें में रहने की वजह अजय श्रीवास्तव का पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का करीबी होना है और कहा जाता है कि मंत्री की रूचि की वजह से ही अजय श्रीवास्तव को असंवैधानिक रुप से पर्यटन मंडल में लाया गया जबकि जिस पद पर उनकी नियुक्ति की गई अजय श्रीवास्तव तब उस पद की योग्यता ही नहीं रखते थे। लेकिन उच्चस्तरीय दबाव में वे पर्यटन मंडल पर बने हुए है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक अजय श्रीवास्तव की संविलियन को लेकर मामला न्यायालय तक भी पहुंच चुका है जहां पर्यटन मंडल के अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि अजय श्रीवास्तव का संविलियन गलत ढंग से किया गया है। दुग्ध संघ से पुलिस फिर पर्यटन मंडल में कार्य करने की कहानी यहां पूरे शहर में चर्चा है। चर्चा इस बात की भी है कि अय्याशी के लिए हत्या जैसे मामले के आरोपी को किस तरह से राजनैतिक संरक्षण दिया जा रहा है। हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक पर्यटन मंडल के इस पीआरओ की विभाग में तूती बोलती है और उच्च अधिकारी भी उनसे खौफ खाते हैं।
एक अधिकारी ने तो नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि इस सरकार में ऐसे कई मामले हैं जो उच्चस्तरीय राजनैतिक संरक्षण के कारण दबे हुए हैं। दूसरी तरफ इस मामले को लेकर आम लोगों में जो चर्चा है उससे सरकार की छवि पर असर पड़ रहा है। बहरहाल पर्यटन मंडल के पीआरओ अजय श्रीवास्तव को लेकर पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल घेरे में हैं और इस संबंध में पर्यटन मंत्री से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे।

रविवार, 30 मई 2010

लूट या संतुष्टिकरण

छत्तीसगढ में लूट-खसोट की राजनीति ने यहां के सरकारी खजाने को खाली करना शुरु कर दिया है। तमाम विरोध के बाद भी डा. रमन सिंह ने आखिरकार निगम मंडलों में नियुक्ति कर अपने लोगों को उपकृत करना शुरु कर ही दिया।
निगम मंडलों में नियुक्तियां क्यों की जाती है यह किसी से छिपा नहीं है। राजनैतिक नियुक्तियां ने निगम-मंडलों को जिस तरह से लूटा है वह भी किसी से छिपा नहीं है। ऐसी नियुक्यिां का हर बार विरोध तो होता है लेकिन संतुष्टिकरण की राजनीति ने ऐसे विरोध को किनारे किया है। डॉ. रमन सिंह भी विरोध के चलते नियुक्तियां टालते रहे लेकिन पहली खेप में 9 ऐसे लोगों को पुन: निगम-मंडलों के अध्यक्ष बना दिए गए जिनकी छवि को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। निगम-मंडलों को लुटने की ऐसी कोशिश अखिर बार-बार क्यों किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर भ्रष्टाचार की खबरें आ रही वह शर्मनाक है। रमन सरकार के पिछले कार्यकाल में भी निगम मंडलों में जमकर नियुक्तियां हुई थी और इनमें से दो-चार को छोड़ सभी ने खुलेआम डकैती डाली है। यही वजह है कि इस बार भी निगम-मंडल में की जा रही नियुक्तियां को लेकर भारी विरोध चल रहा था। सबसे यादा अंधेरगर्दी की कहानी तो ब्राम्हण विधायक बद्रीधर दीवान की नियुक्ति को लेकर हुई है। कहा जाता है कि मंत्री नहीं बनाने से नाराज ब्राम्हण समाज को खुश करने इस विधायक को औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया है हालांकि चर्चा इस बात की भी रही कि उन्हें निगम मंडल में नियुक्ति करने को लेकर विरोध था। इसी तरह कुछ ऐसे लोगों को पुन: उसी पद पर बिठा दिया गया जिनके कार्यकाल का विवाद आज भी चर्चा में है। इनमें से कुछ ने तो सैकड़ों एकड़ जमीन बेनामी खरीदी है। निगम मंडलों की ऐसी नियुक्तियां जिसका उद्देश्य सिर्फ लूट-खसोट हो अंधेरगर्दी से कम नहीं है।

शनिवार, 29 मई 2010

सजा के जिश्म न बेचे तो और क्या बेंचे,गरीब लोग हैं घर में दूकान रखते हैं

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के मायने बदलते जा रहे हैं। रोज प्रकाशित हो रहे नए-नए अखबारों की अपनी कहानी है और इन कहानियों का आखरी अध्याय सरकारी विज्ञापनों की लूट खसोट में ही समाप्त हो जाता है। इस बात को जनसंपर्क विभाग भी भली भांति जानता है इसलिए वह भी वही सब कुछ करता है जो अखबारों पर लगाम कस सके। जनसंपर्क विभाग को खुश करने में ही अखबारों का समय निकल जाता है और पत्रकारिता का मतलब अब सिर्फ सूचना तंत्र ही रह गया है। खोजी पत्रकारिता को तो जैसे सांप सूंघ गया है और सिर्फ सजावट पर ध्यान अधिक दिया जाने लगा है।
पिछले दिनों शिवनाथ बचाने की घोषणा करते हुए जब प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने फावड़ा चलाया तो अखबार वालों ने इसे इतनी प्राथमिकता दी जैसे सरकार अब पानी बचाने की कोई ठोस कार्ययोजना बना चुकी है लेकिन दुख की बात यह है कि जब डॉ. रमन पानी बचाने शिवनाथ पर फावड़ा चला रहे थे तब उसी दौरान गौरवपथ के नाम पर तेलीबांधा तालाब के पाटे जाने या मंत्री की कीमती जमीन के लिए आमापारा स्थित कारी तालाब को पाटे जाने की खबर गायब थी। जब राय नहीं बना था तब ऐसी खबरें जरूर लगती लेकिन सरकारी विज्ञापन के मोह में अखबारों को ऐसा सजाने की होड़ मची है कि मंत्री अफसर नाराज न हो। यही वजह है कि अब शहर के कई अखबारों में पत्रकारों की स्थिति विज्ञापन या प्रसार विभाग के सबसे छोटे कर्मचारियों से भी दयनीय है।
और अंत में....
एक मंत्री के विभाग में हो रहे गड़बड़ी की खबर छापने के बाद जब एक अखबार नवीस विज्ञापन लेने जनसंपर्क विभाग पहुंचा तो उसे वहां के अधिकारियों ने समझाईश देते हुए कहा कि पहले इस खबर का खंडन करों तभी विज्ञापन मिलेंगे।

क्रेशरों को छूट, खदानों में लूट , स्क्वाड को भी जाता है महिना

रायपुर जिले में खनिज से लाखों रुपए के राजस्व का चूना लगा रहे खनिज अधिकारियों ने मंजीत, शर्मा, कुलदीप जैसे लोगों के चल रहे अवैध क्रेशरों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय उनसे अवैध वसूली कर अपनी जेबें गरम कर रहे हैं जबकि अवैध कार्यों में लिप्त लोग यह दावा करते नहीं थकते कि उनके द्वारा स्क्वाड तक को पैसा दिया जाता है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विभाग की यह कहानी नई नहीं है। कहानी का नयापन यह है कि इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से किए जाने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। खनिज विभाग में चल रहे लूट-खसोट को लेकर रोज नई कहानी सामने आने लगी है। सालों से राजधानी में पदस्थ अफसरों के वरदहस्त ने अवैध उत्खनन और अवैध परिवहन करने वालों को इतना ताकतवार बना दिया है कि कई कर्मचारी तो कार्रवाई करने तक से डरते हैं।
हमारे भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि जिले में दर्जनभर से अधिक क्रेशर अवैध ढंग से संचालित है और इन अवैध क्रेशरों के एवज में अधिकारियों को बड़ी रकम भी मिलती है। हालत यह है कि अवैध क्रेशर के संचालन से हर साल सरकार को लाखों-करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है इसके बाद भी इन अवैध क्रेशरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होना आश्चर्यजनक है।
बताया जाता है कि खनिज विभाग में बैठे कई अधिकारियों के संरक्षण में हो रहे अवैध उत्खनन और अवैध परिवहन से होने वाली अवैध कमाई इतनी यादा है कि ऊपर तक एक बड़ी रकम पहुंचाई जाती है इसलिए कार्रवाई नहीं हो रही है। बहरहाल खनिज विभाग के लूट खसोट की शिकायत मुख्यमंत्री से किए जाने के बाद कार्रवाई नहीं होते देख कई लोग आश्चर्यचकित हैं।

शुक्रवार, 28 मई 2010

सरकार कहां है...

छत्तीसगढ़ के लोग इन दिनों चौतरफा मार झेल रहे है। एक समूचा इलाका आतंकवादियों से त्रस्त है तो पुलिस विभाग इस इलाके में नौकरी करना पसंद नहीं करता। राजधानी सहित छत्तीसगढ़ का शहरी क्षेत्र पानी के लिए तरस रहा है और किसानों की हालत बद से बदतर होते जा रही है।
राय बनने के बाद जिस तेजी से विकास के सपने देखे गए थे वह सपने छिन्न-भिन्न होने लगे है। सरकार के पास कोई योजना नहीं है सिवाय सरकारी खजाने को लूटने की। मंत्री से लेकर अफसरों में इस बात की होड़ मची है कि वे किस तरह से अपनी जेबें गरम करें और इससे यादा दुखद खबर और क्या हो सकती है कि प्रतिपक्ष भी पैसा कमाने में लग गया है और उनके नेता इतना पैसा कमा रहे हैं जितना वे अपने शासनकाल में नहीं कमा रहे थे।
चौतरफा बदहवास छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सरकार के काम काज दिखलाई पड़ रहे हैं उससे आने वाले दिनों में आम लोगों को जीवन चलाना दूभर होता चला जाएगा। छत्तीसगढ़ में इन दिनों नक्सली आतंकवाद चरम पर है। बस्तर सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कत्ले आम मचा हुआ है। सैकड़ों गांव उजड़ रहे हैं और हजारों लोग शिविरों में जीने मजबूर है। इसके बाद भी राय सरकार हर घटना के बाद सिर्फ बयानबाजी करते नहीं थकती। बकौल दिग्विजय सिंह इस मामले में डा. रमन सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है। डा. रमन सिंह ने केन्द्र से जो मांगा पैसा फोर्स सब कुछ दिया गया लेकिन घटनाएँ बढ़ती जा रही है।
भले ही दिग्विजय सिंह के बयान को राजनैतिक करार दिया जाए लेकिन क्या यह सच नहीं है कि डा. रमन सिंह के सत्ता में काबिज होने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में वृध्दि हुई है। क्या सरकार की रणनीति फेल हुई है। जिसका खामियाजा सैकड़ों गांवों के हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अब भी समय है इस मामले में राय सरकार ठोस योजना बनाएं या फिर इसे अशांत क्षेत्र घोषित कर पुलिस व अन्य फोर्सों को अधिकार दें। मानवाधिकार की चिंता वे करते हैं जो कमजोर होते हैं। अमरीका ने अफगानिस्तान में हमले के दौरान क्या कुछ नहीं किया। सिर्फ दोषारोपण की राजनीति से काम नहीं चलेगा। यदि भाजपाई यही कहते रहें कि यह कांग्रेस के सरकारों की देन है तो इससे समस्या हल नहीं होने वाली है। यदि यह उनकी देन है तो उजड़ते गांव और बसते शिविर किसी देन है।
नक्सली अब आंदोलन नहीं आतंकवाद का रुप ले चुकी है और सरकार व उनकी पार्टी कम से कम इन्हें आतंकवाद कहना शुरु कर दें। वोटर लिस्ट के आधार पर पहचान देखी जाए और बारुदी सुरंग हटाने के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। सिर्फ केन्द्र सरकार पर मोहताज रहना भी उचित नहीं है और यदि केन्द्र को लेकर राजनीति करनी हो तो 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करवाकर सेना का प्रस्ताव भेजें और आतंकवादियों के नेस्तानाबूत होने के बाद सत्ता में बैठ जाए। लेकिन राजनीति करने वालों को इसकी परवाह कहां है कि वे आम लोगों के हित में गद्दी छोड़ने की हिम्मद करें यही वजह है कि इस नए नवेले राय के विकास में बाधा बढ़ते ही जा रही है।

सरकार कहां है...

छत्तीसगढ़ के लोग इन दिनों चौतरफा मार झेल रहे है। एक समूचा इलाका आतंकवादियों से त्रस्त है तो पुलिस विभाग इस इलाके में नौकरी करना पसंद नहीं करता। राजधानी सहित छत्तीसगढ़ का शहरी क्षेत्र पानी के लिए तरस रहा है और किसानों की हालत बद से बदतर होते जा रही है।
राय बनने के बाद जिस तेजी से विकास के सपने देखे गए थे वह सपने छिन्न-भिन्न होने लगे है। सरकार के पास कोई योजना नहीं है सिवाय सरकारी खजाने को लूटने की। मंत्री से लेकर अफसरों में इस बात की होड़ मची है कि वे किस तरह से अपनी जेबें गरम करें और इससे यादा दुखद खबर और क्या हो सकती है कि प्रतिपक्ष भी पैसा कमाने में लग गया है और उनके नेता इतना पैसा कमा रहे हैं जितना वे अपने शासनकाल में नहीं कमा रहे थे।
चौतरफा बदहवास छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सरकार के काम काज दिखलाई पड़ रहे हैं उससे आने वाले दिनों में आम लोगों को जीवन चलाना दूभर होता चला जाएगा। छत्तीसगढ़ में इन दिनों नक्सली आतंकवाद चरम पर है। बस्तर सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कत्ले आम मचा हुआ है। सैकड़ों गांव उजड़ रहे हैं और हजारों लोग शिविरों में जीने मजबूर है। इसके बाद भी राय सरकार हर घटना के बाद सिर्फ बयानबाजी करते नहीं थकती। बकौल दिग्विजय सिंह इस मामले में डा. रमन सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है। डा. रमन सिंह ने केन्द्र से जो मांगा पैसा फोर्स सब कुछ दिया गया लेकिन घटनाएँ बढ़ती जा रही है।
भले ही दिग्विजय सिंह के बयान को राजनैतिक करार दिया जाए लेकिन क्या यह सच नहीं है कि डा. रमन सिंह के सत्ता में काबिज होने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में वृध्दि हुई है। क्या सरकार की रणनीति फेल हुई है। जिसका खामियाजा सैकड़ों गांवों के हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अब भी समय है इस मामले में राय सरकार ठोस योजना बनाएं या फिर इसे अशांत क्षेत्र घोषित कर पुलिस व अन्य फोर्सों को अधिकार दें। मानवाधिकार की चिंता वे करते हैं जो कमजोर होते हैं। अमरीका ने अफगानिस्तान में हमले के दौरान क्या कुछ नहीं किया। सिर्फ दोषारोपण की राजनीति से काम नहीं चलेगा। यदि भाजपाई यही कहते रहें कि यह कांग्रेस के सरकारों की देन है तो इससे समस्या हल नहीं होने वाली है। यदि यह उनकी देन है तो उजड़ते गांव और बसते शिविर किसी देन है।
नक्सली अब आंदोलन नहीं आतंकवाद का रुप ले चुकी है और सरकार व उनकी पार्टी कम से कम इन्हें आतंकवाद कहना शुरु कर दें। वोटर लिस्ट के आधार पर पहचान देखी जाए और बारुदी सुरंग हटाने के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। सिर्फ केन्द्र सरकार पर मोहताज रहना भी उचित नहीं है और यदि केन्द्र को लेकर राजनीति करनी हो तो 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करवाकर सेना का प्रस्ताव भेजें और आतंकवादियों के नेस्तानाबूत होने के बाद सत्ता में बैठ जाए। लेकिन राजनीति करने वालों को इसकी परवाह कहां है कि वे आम लोगों के हित में गद्दी छोड़ने की हिम्मद करें यही वजह है कि इस नए नवेले राय के विकास में बाधा बढ़ते ही जा रही है।

गुरुवार, 27 मई 2010

मुख्यमंत्री के नाक के नीचे घपलेबाजी , आडिटर ने संवाद की गड़बड़ी खोली

प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह भले ही अपने को कितना ही पाक-साफ बता लें लेकिन उनके अपने ही विभाग संवाद में जिस तरह से करोड़ों रुपए की घपलेबाजी की गई है उसका खुलासा आडिट रिपोर्ट से हो रहा है और अब तो सीधे मुख्यमंत्री पर उंगली उठाई जाने लगी है और कहा जा रहा है कि सरकारी खजाने को लुटने की इस साजिश में डॉ. रमन सिंह भी साथ में हैं।
छत्तीसगढ़ संवाद और जनसंपर्क में लूट खसोट की घटना नई नहीं है संवाद बनते ही जिस तरह से किराये के भवन के नाम पर सरकारी खजानों को लुटा गया वह किसी से छिपा नहीं है तब से आज तक संवाद का प्रभार सुखदेव कुरोटी के पास है कभी विज्ञापन के कमीशन तो कभी प्रचार सामग्री में घपलेबाजी को लेकर चर्च में रहे संवाद में इन दिनों इस बात की भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले अधिकारियों की मिलीभगत से हर साल सरकार को सौ करोड़ से ऊपर का चुना लगाया जा रहा है।
ताजा मामला संवाद के चाटर्ड एकाउण्टेन्ट योति अग्रवाल एंड कंपनी की रिपोर्ट है सूचना के अधिकार के तहत निकाली गई इस रिपोर्ट में सी.ए. ने संवाद में चल रहे गड़बड़ियों का खुलासा किया है। संवाद के फिल्म सेक्शन में ही करोड़ों रुपए की गड़बड़ी की ओर इशारा किया गया है। बिल नम्बर 661 और 874 में नवा अंजोर को ढाई लाख और 15 लाख का भुगतान किया गया है। यह डाकुमेंट्री फिल्म बनाने संजीवनी एग्रो विजन इंटरप्राइजेस को दिया गया जो एक कलेक्टर के साले की बताई जाती है। इस पर सीए ने आपत्ति की है।
सूत्रों ने बताया कि इस मामले में संवाद ने न तो डीएवीपी रेट का ही ध्यान रखा। बताया जाता है कि कलेक्टर की सिफारिश पर ही गई इस कार्य की गुणवत्ता भी खराब रही है और इसे लेकर विवाद भी हो चुका है। सीए ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि जब यह संस्था रजिस्ट्रर्ड ही नहीं था तब इसे किस तरह से इतनी बड़ी राशि का काम दिया गया और भुगतान किया गया।
बताया जाता है कि संवाद में इस घपलेबाजी की चर्चा जोरों पर है और अधिकारियों की मुख्यमंत्री से सेटिंग की बात भी कही जा रही है। बहरहाल संवाद में घपलेबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है और इस लूट-खसोट में उच्च स्तरीय मिलीभगत को लेकर आम लोगों में कई तरह की चर्चा है।

हज कमेटी और वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों की मनमानी

हटाने असंतुष्टो ने खोला मोर्चा
भाजपा के सत्ता में आते ही हज कमेटी, वक्फ बोर्ड, मदरसा बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया था लेकिन अब सालों से एक ही पद पर बैठे लोगों की मनमानी को लेकर बगावत शुरू हो गया है और सुन्नी मुस्लिम मंच ने तो इन पदाधिकारियों की मनमानी की शिकायत राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी और मुख्यमंत्री रमन सिंह से करते हुए इन्हें हटाने की मांग तक कर डाली है।
सूत्रों ने बताया कि सालों से एक ही पद पर बैठे इन पदाधिकारियों की मनमानी से मुस्लिम समाज में रोष व्याप्त है जिसके चलते मुस्लिम समाज को जोड़ने की कार्रवाई तक बाधित हुई है। सुन्नी मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के अध्यक्ष नासिर खान कादरी ने तो यहां तक कहा कि जो लोग पदों पर बैठे हैं वे अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं उन्हें समाज की भलाई से कोई लेना देना नहीं है। कादरी ने अपने शिकायत पत्र में यह भी कहा कि उर्दू गर्ल्स हाईस्कूल में पढ़ाई का स्तर ऊंचा उठाने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। जबकि हज हाउस के निर्माण नहीं होने के लिए यही सब पदाधिकारी दोषी है।

बुधवार, 26 मई 2010

सूर्या फाउण्डेशन के बहाने छत्तीसगढ में घुसपैठ, भाजपाई त्रस्त

वैसे तो सत्ता आते ही नए-नए कबूतरों का दिखाई देना नया नहीं है लेकिन छत्तीसगढ़ में सूर्या फाउण्डेशन ने संगठन से लेकर सत्ता तक जिस तरह से घुसपैठ किया है उससे स्थानीय भाजपाई न केवल त्रस्त है बल्कि कभी भी कोई अनहोनी हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
कहने को तो सूर्या फाउण्डेशन जे.पी. अग्रवाल की संस्था है लेकिन कहा जाता है कि यह महज दिखावा है। वास्तव में सूर्या फाउण्डेशन प्रदेश भाजपा में ताकतवार माने जाने वाले नेता की करतूत है जिसके सहारे सत्ता और संगठन को काबू में रखने की रणनीति बनाई गई है। सूत्रों ने बताया कि सूर्या फाउण्डेशन ने छत्तीसगढ़ के सभी भाजपा कार्यालयों और मंत्रियों के बंगलों में अपने लोगों को बिठाने के अलावा गांव-गांव में कार्यकर्ताओं की एक ऐसी फौज खड़ी की जा रही है जिससे स्थानीय विधायकों या भाजपा पदाधिकारियों में नकेल कसी जा सके।
राजधानी के ही एकात्म परिसर में तीन-चार युवक सूर्या फाउण्डेशन के हैं और ये सभी दूसरे प्रांतों के हैं। इनके द्वारा सालों से भाजपा कार्यालय में काम कर रहे कार्यकर्ताओं को अपमानित किए जाने की चर्चा से स्थानीय भाजपाईयों में जबरदस्त रोष व्याप्त है। बताया जाता है कि कभी भाजपा कार्यालय में काम की अधिकता की वजह से दोपहर का भोजन खा लेने वाले कार्यकर्ताओं को अब यहां दुत्कारा जाता है और किसे क्या बोला जाना है प्रेस को कैसे बयान जारी किए जाने हैं यह सब भी सूर्या फाउण्डेशन ही तय करता है।
बहरहाल भाजपा में आए सूर्या फाउण्डेशन के जीन से कई लोग भयभीत है और कहा जाता है कि अधिकारों को लेकर इनमें कई बार विवाद भी हो चुका है और यही स्थिति रही तो कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है।

मंगलवार, 25 मई 2010

हत्या का आरोपी अजय मंत्री का खास,पर्यटन में यही करते है सब कुछ पास

पर्यटन का पीआरओ असली एमडी?
छत्तीसगढ़ पुलिस का इससे दुखद पहलू और क्या होगा कि एय्याशी के लिए ले गए कालगर्ल योति की हत्या करने का आरोपी अजय श्रीवास्तव न केवल प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग पर्यटन में न केवल पीआरओ है बल्कि उसकी एमडी से यादा चलती है?
छत्तीसगढ़ में राजनैतिक संरक्षण में फल-फूल रहे अपराधियों की यह एक उदाहरण मात्र है। पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि इस मामले में शामिल कई लोग तो उसी समय एफआईआर से नाम कटवाने में सफल हो गए थे लेकिन जिन तीन लोगों को योति कदम नामक कालगर्ल का हत्यारा बताया गया था उनमें राजू, संजीव चौबे और अजय श्रीवास्तव के नाम थे इसमें से अजय श्रीवास्तव को फरार बताया गया है।
घटना के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार गुढियारी निवासी उमा गुप्ता के अड्डे से आधा दर्जन युवकों ने योति कदम नामक कालगर्ल को एय्याशी के लिए ले गए थे पुलिस के एफआईआर के मुताबिक इस युवती से आरोपियों का विवाद हुआ और खाना खाने के दौरान युवती भाग गई। इसके बाद आरोपियों ने उसकी खोजबीन की और युवती के मिलने पर उसे कार से कुचलकर मार डाला। घटना राजू, संजीव चौबे एवं अजय श्रीवास्तव द्वारा किया गया। अपराध क्रमांक 7099 में दर्ज कर अजय श्रीवास्तव को फरार बताते हुए बाद में प्रस्तुत करने की बात एफआईआर में की गई है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि अजय श्रीवास्तव तब दुग्ध संघ के कर्मचारी थे और उन्हें राजनैतिक दबाववश गिरफ्तार करने से पुलिस बचती रही। इधर हमारे सूत्रों ने बताया कि तब भी अजय श्रीवास्तव की भारी पहुंच रही लेकिन वे अन्य लोगों की तरह किस्मतवाले नहीं थे इसलिए एफआईआर से नाम नहीं हटवा पाए। इधर इस मामले में पुलिस की भूमिका को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे है कि अय्याशी के बाद हत्या जैसे जघन्य मामले के आरोपी को 11 साल बाद भी पुलिस क्यों गिरफ्तार नहीं कर रही है।
सवाल यह भी उठ रहे हैं कि बृजमोहन अग्रवाल जैसे सुलझे हुए मंत्री को क्या इस बात की जानकारी नहीं है कि जिसे वे अपना खास बनाए हुए हैं वह हत्या जैसे जघन्य मामले का आरोपी है और यदि यह जानते हुए भी उसे पर्यटन में लाया गया है तो अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप से वे कैसे बच सकते हैं। इस संदर्भ मामले में पुलिस ने किस तरह दबाव में हत्याकांड के आरोपी को नहीं पकड़ पाई यह भी जांच का विषय है और इस सबका खुलासा उच्चस्तरीय जांच या फिर सीबीआई जांच से ही संभव हो पाएगा।
इस मामले में जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री डॉ. निरंजन हरितवाल ने कहा कि बगैर मंत्री के जानकारी के यह सब नहीं हो सकता। बृजमोहन अग्रवाल जिस तरह से नेतागिरी करते हैं उससे नहीं लगता कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होगी कि अजय श्रीवास्तव हत्याकांड का फरार आरोपी है और इस आरोपी को जानबूझकर संरक्षण दिया गया। डॉ. हरितवाल ने तो अजय श्रीवास्तव को तत्काल हटाने की मांग करते हुए सीबीआई जांच की मांग भी की है उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति के खिलाफ धारा 302, 201 और 34 का मामला दर्ज हो वह नौकरी करते हुए कैसे फरार रह सकता है। इधर इस मामले की अदालती कार्रवाई की जानकारी नहीं हो पाई है जबकि अजय श्रीवास्तव से इस बारे में जानकारी लेने या उनके पक्ष जानने की कोशिश की गई लेकिन वे ऑफिस में उपलब्ध नहीं थे।

सोमवार, 24 मई 2010

पीडब्ल्यूडी में ठेका,जरूरी है मंत्री का टेका


छत्तीसगढ़ में पीडब्ल्यूडी विभाग ने टेंडर प्रक्रिया को जितना भी पारदर्शी बताए लेकिन ठेकेदारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि जब तक मंत्री स्तर पर पहुंच नहीं होगी ठेका मिलना मुश्किल है। वहीं बढ़ते कमीशन से भी ठेकेदारों में रोष है जबकि ठेकेदारी कर रहे भाजपाईयों की भी अब हालत खराब होने लगी है।
वैसे तो पीडब्ल्यूडी विभाग में इस तरह के आरोप नया नहीं है लेकिन विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पिछले सालभर से यहां जो कुछ हो रहा है वैसा कभी नहीं हुआ। भाजपाई सूत्रों के मुताबिक जब राजेश मूणत इस विभाग के मंत्री थे तब उन्होंने भाजपाईयों को अधिकाधिक ठेका दिलाने में रूचि दिखाई जिससे कार्यकर्ताओं में ठेकेदारी की रूचि बढ़ी थी लेकिन बृजमोहन अग्रवाल के पीडब्ल्यूडी मंत्री बनते ही स्थिति बदल गई है और कई भाजपाईयों ने ठेकेदारी ही बंद कर दी है।
इधर विभागीय सूत्रों का कहना है कि भले ही -टेंडरिंग से लेकर दूसरा पारदर्शी तरीका अपनाया गया है लेकिन ठेका किसे मिलना है यह पहले से तय कर लिया जाता है। बताया जाता है कि लागत बढ़ाने के खेल खेलकर विभागीय अधिकारी अनाप-शनाप पैसा कमा रहे हैं। इसका खुलासा करते हुए हमारे सूत्र ने बताया कि पिछले माह -टेडरिंग के जरिये करीब दर्जनभर निर्माण कार्यों की निविदा बुलाई गई थी और चहेते ठेकेदारों को बिलों में टेंडर भरने कहा गया। ताकि टेंडर इन्हें ही मिले और हुआ भी यही।
बताया जाता है कि मूल निविदा में जानबूझकर बदलाव किया जाता है और लागत बढ़ाई जाती है ताकि बिलों में टेंडर लेने वालों को घाटा उठाना पड़े और नीचे से ऊपर तक कमीशन की राशि मनमाने ढंग से वसूल की जा सके। सूत्रों ने बताया कि कभी पीडब्ल्यूडी में ठेकेदारों को बिल पास कराने 15 प्रतिशत रकम बांटना होता था और अब इसे पांच प्रतिशत बढ़ा दिया गया है और मंत्री तक कमीशन पहुंचाये जाने का दावा किया जाता है। डामर घोटाले की वजह से विवाद में आए इस विभाग में इन दिनों पदोन्नति सूची में गड़बड़ी की चर्चा है। कहा जाता है कि चहेते अधिकारियों को मनमाफिक पदों पर बिठाने पदोन्नति सूची में जबरदस्त गड़बड़ी की गई है। बहरहाल पीडब्ल्यूडी में चल रहे इस घपलेबाजी को लेकर कई तरह के चर्चे है और इसकी वजह से शासन की छवि भी खराब हो रही है।

मूणत पर भी लगने लगा आरोप थोक दवा बाजार हुआ अभिशाप

शदाणी दरबार के पास बन रहे थोक दवा बाजार के निर्माण में पदाधिकारियों द्वारा किए जा रहे घपले को लेकर सदस्यों में भारी रोष है और अब तो नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत पर भी आरोपियों को संरक्षण देने का आरोप खुले आम लगाया जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक मेडिकल व्यवसायियों ने थोक दवा बाजार बनाने शदाणी दरबार के पास 14 एकड़ जमीन ली थी तथा इसका अध्यक्ष भरत आजवानी और कोषाध्यक्ष जुगल किशोर चांडक को बनाया गया इसके साथ ही संस्था में विजय जादवानी, वासु जोतवानी, राजन सहित अन्य को कार्यकारिणी सदस्य बनाए गए।
बताया जाता है कि पहले तो निर्माण में विलंब को लेकर सदस्यों ने पदाधिकारियों को घेरना शुरू किया तब पता चला कि 14 की जगह सिर्फ 11 एकड़ में ही दवा बाजार बनाया जा रहा है और तीन एकड़ जमीन पदाधिकारियों ने न केवल अपने नाम पर रजिस्ट्री करा ली बल्कि उसे अनाप शनाप कीमत पर बेचने की कोशिश कर रहे हैं। सदस्यों को जब इस घपलेबाजी का पता चला तो वे बैठक बुलाने की मांग करने लगे और कुछ लोगों ने इसकी शिकायत रजिस्ट्रार फर्म एवं सोसायटी और राय सरकार से कर दी।
इधर उच्च स्तरीय शिकायत के डर से पदाधिकारियों ने स्वयं को बचाने हाथ-पैर मारना शुरु कर दिया और बताया जाता है कि उच्च स्तर पर दो करोड़ का लेन देन भी हो गया ताकि पदाधिकारियों को बचाया जा सके। इधर शिकायतकर्ताओं पर शिकायत वापस लेने का दबाव भी आने लगा। एक सदस्य ने तो नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत पर भरी बैठक में आरोप लगाया कि वे शिकायतकर्ताओं को शिकायत वापस लेने दबाव डाल रहे हैं।
इधर सदस्यों द्वारा पदाधिकारियों से हिसाब मांगे जाने पर उन्हें पैसा वापस लौटाने की धमकी दी जाती हैं चूंकि यहां की जमीन की कीमत दो-तीन गुणा बढ़ गई है इसलिए कई सदस्य खामोश हैं। इधर इस मामले को लेकर सदस्यों में भारी रोष है जबकि चर्चा इस बात की भी है कि ले-आऊट से लेकर पानी-बिजली सड़क के मामले में भी घपलेबाजी जमकर हुई है चूंकि पदाधिकारियों ने उच्च स्तरीय लेन देन कर लिया है इसलिए भी कार्रवाई नहीं हो रही है और सदस्यों की बढ़ती-नाराजगी की वजह से कभी भी कोई अनिष्ट होने की संभावना भी जताई जा रही है। बहरहाल थोक दवा बाजार मामले में मंत्री का नाम आने से विवाद गहराने लगा है और उच्च स्तर पर धमकी-चमकी के चलते सदस्यों में भारी नाराजगी है।

रविवार, 23 मई 2010

पैसे ने हर लिबास को उजला बना दिया , अच्छे-बुरे की तो आज पहचान खो गई

वैसे तो यह बात राजनीति में यादा सटिक है लेकिन इन दिनों पत्रकारिता के क्षेत्र में भी यही सब लागू होने लगा है। मिशन से व्यवसाय बन चुकी पत्रकारिता को सरकार अब भी रुपया दो रुपया फीट में जमीनें क्यों दे रही है यह तो वही जाने लेकिन जमीन की बढ़ती कीमत की वजह से इस व्यवसाय में ऐसे लोग भी आ गए हैं जिनकी पृष्ठभूमि शर्मनाक है और जिनके लिए पैसा ही ईमान है।
छत्तीसगढ क़ी पत्रकारिता का भी यही हाल होता जा रहा है। अखबार के धंधे में आने वाले चेहरों को पहचानना मुश्किल होता जा रहा है कि वे इस मिशन से क्या हासिल करना चाहते हैं। अब तो अखबार मालिकों ने सरकार के मंत्रियों की तर्ज पर सरकारी संपदा पर हाथ साफ करना शुरू कर दिया है अपनी पहुंच और प्रभाव के बल पर खदाने हथियायी जा रहे हैं। अखबार के लिए मिली जमीन पर दुकानें या व्यवसायिक काम्पलेक्स खड़े किए जा रहे हैं और पत्रकारिता के नाम पर विज्ञापन परोसे जा रहे हैं। खबरों के नाम पर सूचनाएं दी जा रही है। ऐसे में कलंकित होते पत्रकारिता को बचाना कितना मुश्किल है कहा नहीं जा सकता।
और अंत में...
अपने को प्रतिष्ठित और सर्वाधिक प्रसार वाला अखबार कहते नहीं थकने वाले एक अखबार के संपादक ने पिछले दिनों परिशिष्ठ के लिए जनसंपर्क विभाग के अधिकारी के सामने गिड़-गिड़ाते रहा और अब यह अधिकारी उसके गिड़-गिड़ाने का किस्सा सुना मजा ले रहे हैं।

शुक्रवार, 21 मई 2010

कथनी और करनी

छत्तीसगढ़ सरकार की कथनी और करनी का अंतर अब तो साफ-साफ दिखने लगा है। इन दिनों छत्तीसगढ़ भयावह गर्मी से जूझ रहा है। पानी को लेकर सब तरफ त्राहि मचा हुआ है। पार्षद की हालत खराब है और लोग निगम पर पानी के लिए टूट पड़े हैं। सीमित संसाधनों में पानी की आपूर्ति तो की जा रही है लेकिन गिरते जल स्तर ने आम आदमी का होश उड़ा दिया है लेकिन सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं है। प्रदेश के मुखिया डा. रमन सिंह पानी के लिए चिंता करते नहीं थक रहे हैं लेकिन वे भी दूसरे नेताओं की तरह सिर्फ बयानबाजी पर उतारू है और वास्तविकता इससे परे हैं और यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में राजधानी में जीवन यापन करना कठिन हो जाएगा लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। राजधानी की इस विषय स्थिति पर न तो कोई कार्ययोजना ही तैयार की जा रही है और न ही पर्यावरण प्रेमी ही इस दिशा में काम कर रहे हैं।
पर्यावरण प्रेमी तो बरसात आते ही दो-चार दर्जन वृक्ष लगाकर सरकारी ग्रांट लेने खाना पूर्ति कर लेते हैं सिर्फ बरसात के दिनों में वृक्ष लगाने से राजधानी में पानी की समस्या या प्रदूषण से मुक्ति मिल जाने की सोच ने ही राजधानीवासियों को गर्मी में बदहाल कर रही है। वास्तव में सरकार इस बारे में गंभीर है तो उसे न केवल राजधानी बल्कि छत्तीसगढ क़े सभी जिला मुख्यालयों के लिए कार्य योजना तैयार करना होगा। सरकार सबसे पहले यह तय कर ले कि वह तालाबों और कृषि भूमि को बर्बाद होने नहीं देगी। इस पर कड़ा कानून बनाया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले दिनों में जो भयावहता दिखाई देगी उसकी कल्पना करना ही बेमानी है।
गांवों में तो तालाबों खुदवाई जा रही है लेकिन शहर के तालाबों को पाटकर सरकार क्या करना चाहती है वह तो वही जाने लेकिन पर्यावरण के हिमायती भी सरकारी ग्रांट के लालच में तालाबों को पटते चुपचाप देख रही है। राजधानी में पहले भी रजबंधा तालाब, लेंडी तालाब सहित दर्जनभर तालाबें पाटी जा चुकी है और इसका दुष्परिणाम आज शहर वाले भोग रहे हैं। इन दिनों गौरव पथ के नाम पर तेलीबांधा तालाब और एक मंत्री की जमीन के नाम पर आमापारा स्थित कारी तालाब पाटा जा रहा है महाराज बंध तालाब तो एक भाजपा नेता ही पाट कर प्लाटिंग कर रहा है लगता है इन तालाबों को पाटने वालों को अपनी आने वाली पीढ़ी की चिंता नहीं है। अपनी चिंता में वे इसी तरह तालाब पाटते रहे तो आने वाली पीढ़ियां नारकीय जीवन जीने मजबूर होगी जो आप और हम सब के बच्चे होंगे।

खनिज के चेक पोस्ट से हर माह होती है लाखों कमाई

डेढ़ सौ रुपए प्रति ट्रक में अवैध परिवहन
छत्तीसगढ़ में खनिज विभाग के अफसर इन दिनों अवैध परिवहन की आड़ में लाखों रुपए महिना कमा रहे हैं। इस विभाग के मंत्री डॉ. रमन सिंह को इस बात की फुरसत ही नहीं है कि अवैध परिवहन को रुकवाये। उल्टे अफसर उनके नाम से भी वसूली कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में मची राम नाम की लूट से खनिज विभाग के अफसर लाल हो रहे हैं और सरकार को करोड़ों-अरबों रुपए का चूना लगाया जा रहा है। बेतरतीब अवैध उत्खनन से गांव वालों की नाराजगी अलग दिखलाई पड़ रही है। रायपुर जिले में अवैध उत्खनन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है इसमें मुख्य रुप से वर्मा बंधुओं और कुलजीत मंजीत जैसे नाम आम लोगों की जुबान पर चढने लगा है जो प्रति ट्रक डेढ़ सौ रुपए देकर अवैध परिवहन करते हैं और यह सब खेल रात के अंधेरे में किया जाता है।
खनिज विभाग के सूत्रों के मुताबिक राजधानी में अवैध परिवहन रोकने मुख्यत: आठ पोस्ट है जिनमें जोरा, माना, पिरदा, उरला, मुरा, कचना मंदिर हसौद शामिल हैं राजधानी में मांग को देखते हुए खनिज विभाग ने अवैध परिवहन रोकने इन आठों स्थानों पर बकायदा सुरक्षा गार्ड बैठाये हैं लेकिन ये अवैध परिवहन रोकने की बजाय प्रति ट्रक डेढ़ सौ रुपए वसूल कर अवैध परिवहन को बढ़ावा दे रहे हैं।
बताया जाता है कि हर रोज रात के अंधेरे में डेढ़ दो सौ ट्रकों से अवैध परिवहन हो रहा है और खनिज अधिकारियों को इससे हो रही मोटी कमाई की वजह से कोई कुछ नहीं कर रहा है। हालत यह है कि यह बात सभी जानते हैं कि न वर्मा बंधुओं की खदानें हैं और न ही कुलजीत-मंजीत की ही खदाने हैं लेकिन इसके बाद भी इनके द्वारा बड़े पैमाने पर परिवहन कराया जा रहा है। सूत्रों की माने तो इस अवैध परिवहन से खनिज अफसरों को 25 से तीस लाख रुपए महीना मिलता है और इतनी बड़ी राशि के कारण ही अवैध परिवहन को अनुमति दी जाती है।
इधर खनिज विभाग की इस नीति से पट्टाधारी खदान वाले नाराज हैं लेकिन वे चाहकर भी खनिज विभाग के इस खेल का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। एक खदान मालिक का तो कहना है कि जितने बड़े पैमाने पर यहां भर्राशाही और लूट खसोट की जा रही है वैसा किसी विभाग में नहीं होता। यहीं नहीं खदान मालिकों को आए दिन तरह-तरह से प्रताड़ित किए जाते हैं जबकि अवैध रुप से खनिज बेचने वालों को संरक्षण दिया जाता है।बहरहाल मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विभाग में ही चल रहे लूट-खसोट को लेकर कई तरह की चर्चा है और ऊपर तक पैसा पहुंचाने की चर्चा ने उनकी छवि पर भी दाग लगाना शुरु कर दिया है और यही हाल रहा तो सरकार को कभी भी भारी मुसिबतों का सामना करना पड़ सकता है।

मंगलवार, 18 मई 2010

नक्सली नहीं ये आतंकवादी है सेना ही एकमात्र विकल्प

6 माह के बाद फिर बैठे सरकार
छत्तीसगढ़ में 50 हजार से अधिक लोग शिविर में रह रहे हैं। आम लोगों को भेड़ बकरियों की तरह काटे जा रहे हैं लगभग पांच सौ गांव उजड़ गए और इसके बाद भी नक्सलियों को आतंकवादी नहीं कहना राजनेताओं की भयंकर भूल है। अब तो इन आतंकवादियों के खिलाफ सेना ही विकल्प है और इस देश हित के लिए रमन सरकार को 6 माह के लिए हट जाना चाहिए ताकि केन्द्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर इन आतंकवादियों कि नेस्तनाबूत कर सके इसके बाद पुन: रमन सरकार को गद्दी सौंप दें।
यह कहना है आम लोगों का। बुलंद छत्तीसगढ़ द्वारा पूरे प्रदेश में कराए गए इस सर्वे के नतीजे स्पष्ट है कि आम लोग क्या चाहते हैं। पूरे प्रदेश में लगभग 17 हजार लोगों से हुई बातचीत में यह बात तो सामने आई ही साथ ही लोगों में इस मामले में की जा रही राजनीति को लेकर बेहद गुस्सा है और वे इस काम में जितनी जल्दी हो सके सैनिक कार्रवाई चाहते हैं।
पिछले 5 साल में जिस पैमाने पर पुलिस कर्मी मारे गए है वह साबित करता है कि अगर सरकार ने इस मामले की गंभीरता को कार्यरुप में नहीं बदला तो आने वाले दिनों में स्थिति और भयावह होगी और यदि शहरी क्षेत्रों तक इन कथित नक्सलियों की पहुंच हो गई तो स्थिति की भयावकता का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
जल संसाधन जमीन जैसे प्रभावी नारे को लेकर नक्सलवाड़ी से शुरु हुए आंदोलन आज की स्थिति में विशुध्द रुप से आतंकवाद का रुप ले चुकी है। जिसका मुकाबला करने में राय सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है और जब कोई राय सरकार ऐेसे मामले में फेल हो जाए तो उसे बने रहने का अधिकार किस तरह से है यह समझ से परे है। इस तरह के विचार के बीच बस्तर-सरगुजा, नांदगांव जैसे जिलों के लोगों ने तो सरकार तक भंग कर सैनिकों को उतारने की पहल की है।
नक्सली नहीं आतंकवाद हैं !
बुलंद छत्तीसगढ़ के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में मुख्यत: दस सवाल पूछे गए थे जिनमें 99 प्रतिशत लोगों ने नक्सली आंदोलन को आंदोलन मानने से ही इंकार कर दिया। उनका कहना था कि ये नक्सली नहीं हैं बल्कि नक्सली की आड़ में आतंकवादी हैं जिनका एक मात्र उद्देश्य खून करना और पैसा इकट्ठा करना है।
बातचीत नहीं कार्रवाई हो
इसी तरह हमारा दूसरा सवाल था कि क्या इनसे बात की जानी चाहिए इस पर भी आम लोगों की तीखी प्रतिक्रिया थी उनका मानना है कि बंदूक पकड़कर बातें नहीं की जा सकती। बातचीत में समय नहीं गंवाना चाहिए बल्कि सीधी कार्रवाई की जरूरत है।
सकरार पूरी तरह फेल
जिस प्रदेश में साढ़े पांच सौ गांव उजड़ गए हो और पचास हजार से अधिक लोग शिविरों में रहने मजबूरर हो और आए दिन कत्लेआम मचा हो वहां की सरकार को सक्षम मानना सबसे बड़ी भूल होगी। सरकार भले ही दावा करता रहे लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते। कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि यदि डॉ. रमन सिंह सरकार इस प्रदेश के हिंचचिंतक हैं तो वे स्वयं आगे आकर 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन की पहल कर सेना की मांग करे और फिर इस समस्या के हल होते ही पुन: सत्ता में बैठ जाए।
राजनीति न हो...
इस मामले में राजनीति से आम लोग बेहद दुखी हैं उनका कहना है कि हर हादसे के बाद कांग्रेसी-भाजपाई राजनीति करते नहीं थकते। गड़े मुर्दे उखाड़ने की बजाय आतंक के खिलाफ सभी जुट जाए।
आतंकवादी कार्रवाई को
कायरना कहना गलत
सर्वे में कथित नक्सलियों द्वारा सीआरपीएफ या पुलिस पर हमले को कायरना कहने पर भी लोगों को आपत्ति है और इसे अपनी कमजोरी छुपाने का बयान माना जा रहा है। लोगों का कहना है कि हर हादसे के बाद सत्ता दल घटना को कायरना करार देते हैं जबकि वे दमदारी से हत्या पर हत्या कर आतंक मचा रहे हैं और सरकार कायर की तरह सिर्फ बयानबाजी कर रही है।
इसी तरह सर्वे में आदिवासियों की परम्परा, खान-पान, रहन-सहन को लेकर भी सवाल पूछे गए और ऐसे सवालों पर लोगों ने उनकी बेहतर जिन्दगी के लिए उपाय करने की बात कही। शिविर की बजाय गांव बसाने की वकालत की गई। सड़कों का जाल के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी की वकालत की गई।

मंगलवार, 11 मई 2010

मीडिया पर मीडिया

परदे बचा न पायेंगे अब घर के आबरू
इस दौर में हवाओं की भी नियत खराब है
छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का एक नाम था लेकिन राय बनने के बाद जिस तेजी से सरकारों ने विज्ञापन का चारा डाला है उससे मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि अखबारों में अब खबरें नहीं होती लेकिन जिस तरह से खबरों को मैनेज किया जा रहा है वह आम लोगों के समझ में भी आने लगा है। वैसे तो जनसंपर्क विभाग का काम सरकार और जनता के बीच सेतु का है लेकिन इन दिनों जनसंपर्क का पूरा ध्यान मीडिया मैनेजमेंट पर जा टिका है और वे इसमें भी कमाई का जरिया निकाल लेते हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के बाहर से प्रकाशित होने वाले टुटपुंजिए पत्र-पत्रिकाओं को भी मोटी राशि वाले विज्ञापन दिए जाते हैं और इसके एवज में कमीशन लिए जाते हैं।
सरकारी विज्ञापन लेने की होड़ में अखबारों को जनसंपर्क के जाल में फंसा रखा है। अब न पहले जैसी खोजी पत्रकारिता होती है और न ही घटना के बाद किश्तों में छपने वाले फॉलोअप स्टोरी ही दिखाई पड़ता है। एक समय था जब रायपुर के अखबारों व उनके पत्रकारों के आगे बड़े-बड़े नेता-अधिकारी तक अपना सिर झुकाते थे अब तो जमाना बदल गया है। भैय्या शब्द की लाचारी ने रिश्ते जोड़ दिए हैं और रिश्ते जुड़ने के बाद खबर की बात ही बेमानी हो जाती है। बड़े अखबारों ने तो परिशिष्ट के बहाने विज्ञापन बटोरना शुरु कर दिया है। मंत्रियों को छोटे-छोटे कार्यक्रमों में बुलाए जाने लगे है ऐसे में पत्रकारिता की विश्वसनियता पर सवाल उठे भी तो क्या। धंधा अच्छा चलना चाहिए।
और अंत में....
पिछले दिनों स्कूल के पैसे से अखबार निकालने वाले ने दूसरे अखबार वाले से कहा आपका अखबार हमारे यहां तभी छपेगा जब आप अपने यहां के अमूक कर्मचारी को हटाओगें उसके लड़के को हम हटा रहे हैं।

मंदिर-आदिवासियों की जमीन हड़पने में सरकार की चुप्पी!

घोटालेबाजों का जमाना महाधिवक्ता है सुराना - 8
सुराना परिवार द्वारा श्री हनुमान मंदिर की जमीन और आदिवासियों की जमीन हड़पने के मामले में सरकार की चुप्पी आश्चर्यजनक है और कहा जा रहा है उच्च राजनैतिक पहुंच के चलते ही इस मामले पर कार्रवाई नहीं की जा रही है जबकि प्रथम दृष्टया ही अपराध बनता है।
छत्तीसगढ़ को लुटने की साजिश में वैसे तो कई नेता अधिकारी और मंत्री तक शामिल है लेकिन महाधिवक्ता जैसे पद पर बैठने वाले देवराज सुराना और उसके परिवार पर जिस तरह से आरोप लगे हैं उसके बाद तो इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है लेकिन आश्चर्य का विषय तो यह है कि जांच की बात तो दूर उन्हें महाधिवक्ता बना दिया गया। ऐसे में सरकार के रवैये का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
इधर गोपियापारा में जब श्री हनुमान मंदिर की जमीन के बिक्री को लेकर बात की गई तो लोगों में आक्रोश साफ झलक रहा था। मंदिरों की जमीन बचाने में लगे श्री ठाकुर ने कहा कि सरकार कानून तो बना देती है लेकिन कार्रवाई नहीं करती अभी भी साजिशपूर्वक मंदिरों की जमीनें बेची जा रही है। नागरिकदास मठ की जमीन तो साजिशपूर्वक एक संस्था को ही दी जा रही है जिसका हम विरोध करते हैं। वहीं अजय अग्रवाल ने कहा कि महाधिवक्ता पद एक गरिमामय पद हैं और ऐसे जगह पर विवादास्पद व्यक्तियों को बिठाया जाना ठीक नहीं है जबकि सरकार को चाहिए कि वे ऐसे विवादास्पद व्यक्तियों से इस्तीफा ले ले।इसी तरह आदिवासी की जमीन हड़पने के मामले में भी शासन प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है और इस मामले में भी लीपापोती का केल जमकर खेला गया। बहरहाल महाधिवक्ता देवराज सुराना के विवादास्पद मामले की शहर में कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है जमीन व्यवसाय से जुड़े सुराना परिवार के कई और मामले सामने आएंगे।

सोमवार, 10 मई 2010

चोर हो चाहे हत्यारा , आदमी है हमारा !

छत्तीसगढ़ में सफेदपोश अपराधियों को किस तरह से सरकार और उसके मंत्री संरक्षण दे रहे हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। आरोप सिध्द न हो जाए तब तक अपराधी नहीं के जुमले ने सिध्दांतवादी राजनीति के पर कतर दिए हैं। राय बनने के बाद तो छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार खूब बढ़ा है। नेताओं को लेकर अधिकारियों में सरकारी खजाने को लूटने की प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है। जोगी शासन काल में निगम मंडल का गठन शायद यही सोचकर नहीं किया गया था कि भ्रष्टाचार बढ़ेगा। भाजपा सरकार सत्ता में आते ही ऐसे लोगों को लालबत्ती थमा दी जिनकी औकात भी नहीं थी और जिसका उदाहरण है निगम मंडलों की आड़ में सरकारी खजाने की जमकर लूट खसोट हुई। बताया जाता है कि निगम मंडल के अध्यक्षों ने डॉ. रमन सिंह के पिछले कार्यकाल में पैसा कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ा और कमाई को देखते हुए एक बार फिर निगम मंडल अध्यक्ष बनने होड़ मची है। सफेदपोश अपराधियों की मंडली इस कार्य में जुट गई है। एक तरफ सरकार के पास बड़ी योजनाओं के लिए पैसे का अभाव है और दूसरी तरफ निगम मंडल में अध्यक्षों की नियुक्ति कर सरकारी खजाने में बोझ डालने की कोशिश हो रही है।
भूमाफिया से लेकर शराब माफियाओं का दबदबा तो सरकार पर स्पष्ट दिखता है ऐसे में सफेदपोश अपराधियों की मंडली यदि निगम मंडल में अध्यक्षों की नियुक्ति में सफल हो जाती है तो छत्तीसगढ़ की राजधानी एक बार फिर माफियाओं के चंगुल में होगा। इस सरकार ने तो शायद फैसला ही कर लिया है कि यदि हमारी पार्टी या हमारे लोग गलत हैं तो भी हमारे हैं और उन्हें मलाईदार पदों पर बिठाया ही जाएगा। पुलिस विभाग में ही जिन्हें संविदा नियुक्ति दी गई है क्या उनके विवादास्पद चरित्र किसी से छीपे हैं। इसी तरह अन्य विभाग में रिटायर्ड या किस तरह के लोगों को संविदा नियुक्ति दी गई है किसी से छीपा नहीं है। महाधिवक्ता के पद पर नियुक्त देवराज सुराना और उनके परिवार के विवादास्पद कार्य क्या किसी से छिपे हैं। इसी तरह से निगम मंडल में पिछली बार जिन्हें नियुक्त किया गया था उनके घपले सबके सामने हैं।
भाजपा के बड़े नेता जब विपक्ष में थे तब सिध्दांतों की राजनीति का कितना वकालत करते थे किसी से छिपा नहीं है। सत्ता में आते ही उनकी भूमिका क्या हो गई यह भी किसी से छिपा नहीं है। लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सरकारी खजानों पर डाका डाला जा रहा है ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलेगा। मुख्यमंत्री का विभाग ऊर्जा, खनिज और जनसंपर्क में जब खुलेआम भ्रष्टाचार किया जा रहा हो तब बृजमोहन अग्रवाल के विभागों से ईमानदारी की उम्मीद बेमानी है। इतनी अंधेरगर्दी के बाद भी सरकारें चलती है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि लोग खुश है। सरकारें तो 20-30 प्रतिशत लोगों का वोट पाकर बन जाती है।

संवाद में कुरेटी के हाथ से जनसंपर्क का विज्ञापन फिसला

सालों से जमें संवाद में सुखदेव कुरोटी के विवादास्पद छवि के बाद शायद शासन की नींद टूटी है और कहा जा रहा है उनसे जनसंपर्क विभाग के विज्ञापन का प्रभार छिना गया है।
उल्लेखनीय है कि जनसंपर्क और संवाद में चल रहे कमीशनखोरी को लेकर जबरदस्त चर्चा है और इसकी शिकायत जनसंपर्क सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक की गई है। बताया जाता है कि लगातार शिकायत के बाद संवाद में व्यवस्था परिवर्तन किए जाने की खबर है। हालांकि इस व्यवस्था परिवर्तन की कोई लिखित में आदेश जारी नहीं किए है लेकिन उच्च पदस्थ अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है।
सूत्रों के मुताबिक अब तक संवाद के द्वारा जारी किए जाने वाले सारे विज्ञापन सुखदेव कुरोटी के पास से जारी किए जाते थे लेकिन लगातार शिकायत को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि अब जनसंपर्क द्वारा जारी किए जाने वाले विज्ञापन कुरोटी की बजाय उनके जूनियर श्री पुजारी के मार्फत जारी होंगे। संवाद में हुए इस परिवर्तन की मीडिया जगत में जबरदस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि यह कुरोटी के पर कतरे जाने की शुरुआत है।

गृहमंत्री के बंगले में घंटो युवक को जबरिया रखा गया...

चिरमिरी से उठाकर पुलिस लाई थी
कहते हैं पुलिस वालों से बड़ा गुण्डा कोई नहीं होता और ऐसे में जब गृहमंत्री का संरक्षण हो तो आम आदमी को क्या कुछ भुगतना पड़ सकता है यह चिरमिरी निवासी कुलदीप सलूजा की आपबीती से जाना जा सकता है। पुलिस उसे चिरमिरी से उठा लाती है गृहमंत्री के सरकारी आवास पर रखती है और फिर छोड़ देती है।
घटना 2 मई 2010 की शाम सात बजे की है जब चिरमिरी निवासी कुलदीप सलूजा अपने घर में था तब शाम सात बजे गृहमंत्री का खास कहने वाले जे. कौशिक ने टीआई लता चौरे और अन्य पुलिस कर्मियों के साथ कुलदीप सलूजा को पकड़कर रायपुर चलने की बात कही। कहा जाता है कि जे. कौशिक गृहमंत्री ननकीराम कंवर का खास आदमी है और उसने कुलदीप सलूजा पर चिरमिरी में डांस बाला बुलाने और स्थानीय पुलिस वालों को शराब पिलाने का आरोप लगाते हुए खूब चमकाया। उसके साथ लता चौरे और उपस्थित स्टॉफ ने भी उसे साथ चलने मजबूर किया।
एक तरफ पुलिस कुलदीप सलूजा को कोल माफिया बता रही है और उस पर कई तरह के आरोप लगा रही है वहीं दूसरी तरफ कुलदीप सलूजा का कहना है कि उन पर लगाए जा रहे सारे आरोप बेबुनियाद है। उनका कहना है कि शादी समारोह में उत्तर प्रदेशवासियों द्वारा नाच गाने का आयोजन होता है और शादी में पुलिस वाले भी आए थे चूंकि दुल्हा पुलिस में है इसलिए भी पुलिस वाले थे। इधर लता चौरे की टीम पूछताछ करने के नाम पर कुलदीप सलूजा को चिरमिरी से शाम को ही लाया गया और रात बिलासपुर के गेस्ट हाउस में रुके और फिर सुबह किसी थाने में ले जाने की बजाय लता चौरे की टीम उसे गृहमंत्री के सरकारी बंगले में ले गई। जहां उन्हें रात आठ बजे तक रोक कर रखा गया और फिर बिना पूछताछ किए छोड़ दिया गया। गृहमंत्री के भी बंगले में मौजूद रहने की खबर है। इधर बताया जाता है कि गृहमंत्री की मंशा कोल माफियाओं पर शिकंजा कसने की है लेकिन जिस तरह से कुलदीप सलूजा को चिरमिरी से लाया गया और बगैर पूछताछ किए छोड़ा गया उसे लेकर कई तरह की चर्चा है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि इस मामले में कोल माफियाअओं के साथ जबरदस्त लेन-देन की चर्चा है जबकि यह भी कहा जा रहा है कि गृहमंत्री की आड़ में लेन देन का जबरदस्त खेल चल रहा है और कुलदीप सलूजा को इसी के चलते उठाया गया था। इधर हमारे चिरमिरी संवाददाता रतन जैन ने कहा कि जिस तरह से यहां कोल माफिया सक्रिय है उसकी शिकायत लगातार की जाती है और गृहमंत्री के स्टाफ की इस कार्रवाई से कोल माफियाओं में हड़कम्प मचा है। बहरहाल कुलदीप सलूजा को उठाने और बिना पूछताछ किए छोड़े जाने की यहां जबरदस्त चर्चा है और इससे गृहमंत्री की छवि पर भी प्रभाव पड़ने की बात कही जा रही है।

नगरीय निकाय मंत्री और पार्षदों में टकराव...

मुंह फट और अनाप-शनाप बोलने में माहिर प्रदेश के नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत का इन दिनों राजधानी के आधा दर्जन पार्षदों से टकराव चल रहा है जिसमें से कई भाजपा के भी है और वे पार्टी के होने के कारण खामोश है। जबकि निर्दलीय पार्षद श्रीमती अंजू तिवारी ने मंत्री के खिलाफ सीधे मोर्चा खोल रखा है और उसे भाजपा के एक विधायक सहित आधा दर्जन से अधिक पार्षदों का समर्थन मिल रहा है।
नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत के व्यवहार को लेकर समय समय पर विवाद होता रहा है कहा जाता है कि विरोधियों के साथ तो उनका रवैये को लेकर सवाल उठाये जाते ही रहे हैं लेकिन पार्टी के भीतर भई आम कार्यकर्ताओं के प्रति उनके व्यवहार की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है।
बताया जाता है कि कोटा वार्ड की निर्दलीय पार्षद श्रीमती अंजू तिवारी ने उनके व्यवहार को लेकर नाराज हैं। श्रीमती अंजू तिवारी का कहना है कि मंत्री का व्यवहार सभी के लिए बराबर होना चाहिए लेकिन पिछली बार श्री मूणत ने सभी वार्डों में 20-20 लाख रुपए के कार्य कराए जबकि कोटा में 3-4 लाख के ही कार्य हुए। इसी तरह सूत्रों के मुताबिक निगम में नेता प्रतिपक्ष सुभाष तिवारी, सुनील बांद्रे सहित आधा दर्जन भाजपाई पार्षद भी नाराज हैं। नाराज भाजपाई पार्षदों से जब इस बारे में पूछा गया तो एक पार्षद ने कहा कि जैन मुनि के सानिध्य के बाद उनके सुधर जाने की उम्मीद थी लेकिन उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया हैं हमने तो वहां जाना ही बंद कर दिया। इसी तरह एक पार्षद ने तो साफ कह दिया कि वे तो इस मंत्री का नाम तक सुनना पसंद नहीं करते।
बताया जाता है कि नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत के व्यवहार की शिकायत छत्तीसगढ़ के प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान से भी की गई है। जबकि भाजपा के कई कार्यकर्ताओं का कहना है कि युवा मोर्चा वाला रवैया अब उचित नहीं हैं। नगरीय निकाय मंत्री और पार्षदों में चल रहे टकराव को लेकर यहां कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि एक विधायक ने तो निर्दलीय पार्षद अंजू तिवारी को आश्वस्त किया है कि लड़ाई जारी रखे मदद किया जाएगा। हालांकि निर्दलीय पार्षद ने विधायक का नाम नहीं लिया लेकिन कहा कि वे कोटा से दूसरी बार जीत कर आए हैं और वे अपनी बात मंत्री के समक्ष नहीं रखेंगे तो कैसे चलेगा। बहरहाल नगरीय निकाय मंत्री के प्रति भाजपा कार्यकर्ताओं और पार्षदों में बढ़ते असंतोष की शिकायत प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान से की गई है देखना है कि इस मामले में क्या होता है।

महाराष्ट्र में पैसा खपाने वाले मुकेश-दिनेश का जलवा

क्यों न हो महाराष्ट्र का विकास
महाराष्ट्र के विकास में अब छत्तीसगढ़ का योगदान बढ़ने लगा है कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ के राजनेताओं और अधिकारियों के करोड़ों-अरबों रुपए महाराष्ट्र में खर्च किए जा रहे हैं। प्रदेश के एक मंत्री के तो नागपुर-गोंदिया में अरबों रुपए जमीन खरीदी में लगा है और इस काम में मुकेश व दिनेश की भूमिका महत्वपूर्ण बताई जा रही है।
छत्तीसगढ़ वैसे तो भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। राजधानी की जमीनें आसमान छूने लगी है और फिर भ्रष्टाचार का पैसा खपाना आसान नहीं है इसलिए यहां के कई अधिकारी व नेता अपनी काली कमाई दूसरे प्रदेशों में खपाने लगे हैं। ऐसा ही एक मामला प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री का आया है। कहा जाता है कि राजधानी में रिश्तेदारों और दोस्तों के नाम बेनामी जमीनें खरीदने के साथ-साथ अब इस मंत्री ने गोंदिया-नागपुर और मुंबई में भी अपने रिश्तेदारों व विश्वसनीय लोगों के नाम पर जमीन खरीदना शुरु कर दिया है।
हमारे सूत्रों व नागपुर संवाददाताओं के मुताबिक पिछले 5-6 सालों में यहां की जमीनों की कीमत में बेतहाशा वृध्दि हुई है और इसकी वजह छत्तीसगढ़ के एक मंत्री की रूचि है जिनके रिश्तेदारों द्वारा यहां भारी पैमाने पर जमीनें खरीदी गई है। हमारे सूत्रों के मुताबिक गोंदिया और नागपुर में इन 6 सालों में दिनेश-मुकेश की जोड़ी ने तहलका मचा रखा है और इन लोगों ने कई जमीनें अपने नाम पर खरीदी है या फिर अपने रिश्तेदारों के नाम पर रजिस्ट्री कराई है। सूत्रों का दावा है कि इन 6 सालों में गोंदिया व नागपुर में खरीदी गई जमीनों की उच्च स्तरीय जांच की गई तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।
हमारे सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र के तेजी से विकास में भी काली कमाई का बहुत बड़ा हाथ है पूरे देशभर के कई अधिकारी व नेता यहां पैसा खपा रहे हैं इसलिए इस प्रदेश में बढते निर्माण कार्य ने विकास दर में वृध्दि किया है। सूत्रों का कहना है कि यदि छत्तीसगढ़ के राजनेता व अधिकारी अपने ही प्रदेश में पैसा खपाये तो प्रदेश का विकास तेजी से होगा लेकिन नाम उजागर होने और पकड़े जाने के डर से ये लोग दूसरे प्रदेशों में पैसा लगाते हैं।
इधर मुकेश-दिनेश के जलवे को लेकर राजधानी में जबरर्दस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि इन्हें पैसा किसी राजेन्द्र अग्रवाल और उपाध्याय के मार्फत भेजा जाता है। हालांकि अधिकांश राशि हवाला के माध्यम से ही पहुंचाई जाती है। बहरहाल नागपुर और गोंदिया में बड़े पैमाने पर चल रही जमीन खरीदी को लेकर यहां कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि यदि मुख्यमंत्री ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में कोई बड़ी मुसिबत आ सकती है।

अधिकारियों की दादागिरी, सरपंचों की लाचारी

वर्मा, बघेल को हटाने सरपंचों ने मोर्चा खोला
रमन सरकार में बेलगाम होते अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ के सरपंच बेहद नाराज है। बिलाईगढ़ क्षेत्र के सरपंचों ने तो बकायदा सीओ आर.के. वर्मा और ब्लाक अधिकारी बघेल के खिलाफ तो मोर्चा ही खोल दिया है। सरपंचों का कहना है कि ये दोनों अधिकारी अपने को मंत्रियों व सांसद का रिश्तेदार बताकर आए दिन सरपंचों से गाली गलौज व बदतमीजी करता है। यही नहीं इन दोनों अधिकारियों पर कार्यों के सत्यापन के लिए रुपए मांगे जाने का भी आरोप लगाया गया है।
छत्तीसगढ़ में बेलगाम होते अधिकारियों पर नकेल कसने में पूरी तरह विफल रही रमन सरकार से बिलाईगढ़ ही नहीं कई क्षेत्रों के सरपंचों ने अधिकारियों की शिकायत की है। बताया जाता है कि सरपंचों को भ्रष्ट आचरण की सीख ऐसे ही अधिकारी देते हैं और कार्यों के सत्यापन के नाम पर सरपंचों से न केवल अनाप-शनाप रुपए मांगे जाते हैं बल्कि गाली गलौज तक करते हैं। ऐसा ही एक मामला बिलाईगढ़ क्षेत्र का है जहां के सरपंच सीओ आर.के वर्मा से त्रस्त हैं सरपंचों का कहना है कि अपनी उच्च पहुंच और नेताओं से रिश्तेदारी का धौंस देकर श्री वर्मा आए दिन सरपंचों से गाली गलौच करते हैं। श्री वर्मा को हटाने की मांग बिलाईगढ़ क्षेत्र के लगभग 65 से 70 सरपंचों ने करते हुए मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा है।
इसी तरह अनुविभागीय अधिकारी बघेल पर पण्ड्रीपानी के सरपंच मजीद खान ने पैसे मांगने का आरोप लगाया है। सरपंचों का कहना है कि मास्टर रोल सचिव के द्वारा भरा जाता है और उस पर गलतियां निकालकर सरपंचों के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता है। ऐसा नहीं है कि सरपंचों के साथ इस तरह का व्यवहार केवल बिलाईगढ़ क्षेत्र में ही किया जा रहा है। बल्कि कवर्धा जिले के सरपंच भी परेशान है। अधिकारियों द्वारा जेल भेजे जाने की धमकी तो आम बात है।
सरपंच संघ के एक नेता ने कहा कि सरपंचों को भ्रष्टाचार के दलदल में यही अधिकारी ही ले जाते हैं। पहली बार सरपंच चुने जाने वाले सीधे साधे ग्रामीणों को पहले पैसा कमाने के तरीके बताये जाते हैं फिर उन्हें जेल भेजने की धमकी देकर उनसे रुपए हड़पे जाते हैं। सरपंचों का कहना है कि अधिकारियों की शिकायतें पर सरकार ध्यान नहीं देती असली चोर तो ये अधिकारी ही हैं और उन्हें बदनाम किया जाता हैं। बिलाईगढ़ सरपंच संघ के अध्यक्ष बैनू सोनवानी ने कहा कि यदि अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो वे आंदोलन करेंगे। बहरहाल अधिकारियों और सरपंचों में आए दिन हो रहे टकराव को नजरअंदाज किया गया तो इसके घातक परिणाम आएंगे।

औद्योगिक विकास निगम के अधिकारियों ने डकारे 50 लाख

धांधली करने वालों ने भोज का आयोजन कर खुशियां मनाई
यह छत्तीसगढ क़ी लापरवाही है या अधिकारियों द्वारा सरकारी खजाने को लूटने की कोशिश यह तो वही जाने लेकिन औद्योगिक विकास निगम के अधिकारियों ने धांधली कर छत्तीसगढ़ शासन को 50 लाख का चूना लगाने में कामयाब हो गए। अब कार्रवाई की बजाय इनसे वसूली के तरीके निकाले जा रहे हैं। इधर इस धांधली करने वालों ने बकायदा भोज का आयोजन कर खुशियां भी मनाई।
औद्योगिक विकास निगम के अधिकारियों के इस खेल में कौन-कौन लोग शामिल है यह कहना कठिन है लेकिन अधिकारियों ने जिस पैमाने पर शासन को धोखे में रखकर धांधली की वह आश्चर्यजनक है। यह सारा खेल समयमान वेतनमान के निर्धारण को लेकर किया गया और अब जब मामला सामने आया है तो अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय इस पर लीपापोती चल रही है। वेतनमान को लेकर प्रदेश के इस चर्चित घोटाले को लेकर मंत्रालय में पदस्थ अधिकारी भी सन्न है और वसूली किए जाने की सिर्फ बात ही की जा रही है।
शासन के आदेशानुसार समयमान वेतनमान का लाभ उन अधिकारी एवं कर्मचारियों को दिया जाना है जो सीधी भर्ती के पदों पर 8 एवं 10 वर्षों की सेवा अवधि पूर्ण किए गए हैं। ताहे वह एक दो या दो से अधिक पदोन्नति उपरांत सीधी भर्ती के पद पर कार्य करते हुए उक्त अवधि पूर्ण किया हो तथा भर्ती नियम के अनुसार सीधी भर्ती पद के लिए निर्धारित योग्यता रखता हो। विभिन्न वेतनमानों के लिए उच्चतर वेतनमानों की पात्रता के लिए निगम में प्रचलित वेतनमान का उल्लेख इस योजना में नहीं है। उसके संबंध में वित्त विभाग को अवगत कराया जाना था।
सीएसआईडीसी के सेवा भर्ती नियम के अनुसार सीधी भर्ती के पद इस प्रकार हैं:- निम्नश्रेणी लिपिक, टेलीफोन आपरेटर, लेखालिपिक, सह टायपिस्ट, सहायक प्रबंधक, शीघ्र लेखक, अनूरेखकर, जूनियर इंजीनियर, समयपाल सीधी भर्ती के पद हैं। किन्तु सीएसआईडीसी में इन सीधी भर्ती के पदों के अतिरिक्त ऐसे अधिकारी एवं कर्मचारी को समयमान वेतनमान का लाभ दिया गया है, जो 100 प्रतिशत पदोन्नति के पद पर कार्यरत है। जिसकी संख्या लगभग 150 है जिसमें कनिष्ठ सहायक, वरिष्ठ सहायक, लेखा सहायक, सहायक प्रबंधक लेखा, उप प्रबंधक, प्रबंधक, शीघ्र लेखक, मानचित्रकार, सहायक इंजीनियर, इंजीनियर इलेक्ट्रीशियन है।
इस योजना के अंतर्गत उक्त अपात्र अधिकारी कर्मचारियों को वित्ती लाभ का भुगतान (एरियर्स) किया गया है जिसका कुल राशि लगभग 50 लाख से अधिक का होता है। अधिक वित्तीय लाभ का मुख्य कारण वेतन विसंगति है जो इस प्रकार है- वेतनमान रु. 5000-9000 वाले को सीधा रु. 8000-13500 का वेतनमान दिया गया है, जबकि बीच में 6500-10500 का भी वेतनमान है। इस योजना का लाभ सेवा में नियुक्ति के पश्चात 8 वर्ष एवं 10 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण होने पर दिया जाना था, किन्तु सीएसआईडीसी में 8 वर्ष में प्रथम एवं 16 वर्ष में दि्तीय उच्चतर वेतनमान का लाभ अलग-अलग कर्मचारी को दिया गया है जिसके कारण निगम के निम्न वर्ग के कर्मचारियों द्वारा प्रबंध संचालक से शिकायत भी किया गया है उसके बाद भी प्रबंधन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किया जा रहा है। सीएसआईडीसी के अधिकारी के विरुध्द विभागीय जांच रहते हुए इस योजना का लाभ दिया गया है। सीएसआईडीसी में विलय निर्यात निगम के कर्मचारियों को उनके पैतृक विभाग द्वारा विलय के बाद वेतन विसंगति को संशोधन किया गया है, लेकिन सीएसआईडीसी में उन संशोधन वेतनमान को छोड़कर विसंगत वेतनमान पर समयमान वेतनमान का लाभ दिया गया है।
समयमान वेतनमान लागू करने कमेटी गठित की गई थी जिसमें उद्योग संचालनालय के वरिष्ठ अधिकारी पी.के. शुक्ला, महाप्रबंधक ने जानबूझकर गलती की है। इसका प्रमाण वे स्वयं है। संचालनालय (शासन) भर्ती नियम के अनुसार महाप्रबंधक के पद को पदोन्नति का पद होने के कारण पी.के. शुक्ला महाप्रबंधक को समयमान वेतनमान का लाभ संचालनालय द्वारा नहीं दिया गया है, वहीं अधिकारी सी.एस.आई.डी.सी. में 100 प्रतिशत पदोन्नति के पद पर कार्यरत अधिकारी एवं कर्मचारी को समयमान वेतनमान का लाभ दिया गया है। इसी प्रकार नियमितिकरण में भी शासन के नियमों का खुलकर धाियां उड़ कर एक महिला को लिपिक एवं एक शीघ्र लेखक को नियम विरुध्द नियमित किया गया है। उपरोक्त सारे नियम विरुध्द कार्य के लिए सीएसआईडीसी अधिकारी एवं कर्मचारी संघ द्वारा प्रबंध संचालक राजेश गोवर्धन को प्रशस्ति पत्र एवं साथ ही निगम के करीब 100 से अधिक कर्मचारी को भोज भी दिया गया था। जिसमें करीब 50 हजार का खर्च आया था जिसका भुगतान किसके द्वारा किया गया है इसका भी किसी को पता नहीं है।

ढांड परिवार सहित रूके बाकी विदेश से लौट आए

प्रतिबंध के बाद भी विदेश यात्रा
प्रतिबंध के बावजूद विदेश यात्रा पर गए खाद्य मंत्री पुन्नुलाल मोहिले और वेयर हाउस के प्रबंध संचालक उमेश अग्रवाल कनाडा से लौट आए जबकि सचिव विवेक ढांड परिवार सहित वहीं रुक गए और 16 मई को वापस आएंगे।
छत्तीसगढ सरकार ने विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगाया है लेकिन मंत्री और अधिकारी किसी न किसी बहाने विदेश यात्रा का आनंद उठाने का मौका तलाश ही लेते हैं। ऐसा ही मामला खाद्य मंत्री पुन्नुलाल मोहिले खाद्य सचिव विवेक ढांड और वेयर हाउस के महाप्रबंधक उमेश अग्रवाल का है। खाद्य भंडारण के वैज्ञानिक तरीकों पर आयोजित कार्यशाला में भाग लेने के नाम पर ये लोग विदेश गए। लेकिन इनके साथ कोई भी तकनीकी जानकार नहीं थे।
बताया जाता है कि एक हफ्ते के प्रवास के दौरान यहां इस बात की भी चर्चा रही कि कार्यशाला तो बहाना है विदेश यात्रा घुमने फिरने के लिए बनाया गया जिस का खर्चा वेयर हाउस ने उठा रखा है। इधर इस दौरे में खाद्य सचिव विवेक ढांड के परिवार वालों के भी जाने की चर्चा है और कहा जा रहा है कि कार्यशाला के बाद वे परिवार सहित वहीं रुक गए है और घुमने फिरने के बाद ही 16 मई को लौटेंगे जबकि श्री मोहिले और उमेश अग्रवाल 8 मई को ही वापस आ गए। बहरहाल प्रतिबंध के बावजूद इस विदेश यात्रा पर सरकार का रुख क्या होगा यह तो पता नहीं चला है लेकिन कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसका जवाब देना होगा।

रविवार, 9 मई 2010

खनिज में चल रहा है खेल, अवैध उत्खनन वालों से मेल


मुख्यमंत्री के विभाग में खुलेआम लेन-देन
प्रदेश के मुखिया डा. रमन सिंह का खनज विभाग इन दिनों सुर्खियों में हैं अवैध उत्खनन वालों से गलबहियां में मशगुल अधिकारी नियम कानून को ताक पर रखकर पैसा कमा रहे हैं। राजेश शर्मा, शेखर वर्मा और संतोष वर्मा को अवैध उत्खनन करने की छूट दिया गया है जबकि कागजात पूरा नहीं करने वाले अशोक मंजीत कुलदीप और महेश चांदी काट रहे हैं।
कहने को तो खनिज विभाग प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास है लेकिन वास्तव में इस विभाग में अधिकारियों के अलावा किसी की नहीं चलती। खुलेआम अवैध उत्खनन करने वालों को संरक्षण दिया जाता है और इसके एवज में मोटी रकम ली जाती है। यही नहीं मंत्रियों को भी कमीशन पहुंचाने की बात करते अधिकारी नहीं थकते जबकि इस विभाग के मंत्री डा. रमन सिंह है। खनिज विभाग में यह खेल नया नहीं है और हर आने वाला अधिकारी अपनी जेबें गरम करने के पीछे नहीं हटता। कभी सचिव तो कभी विभागीय मंत्री के नाम पर अवैध उत्खनन करने वालों को छूट दी जाती है।
ताजा मामला राजेश शर्मा, शेखर वर्मा और संतोष वर्मा सहित आधा दर्जन लोगों का है। बताया जाता है कि इनके पास कोई खदान लीज पर नहीं है इसके बावजूद इन्हें उत्खनन की छूट मिली हुई है और यह सब खुलेआम चल रहा है इनकी शिकायतें तक हो चुकी है लेकिन पैसा खिलाने में माहिर इन लोगों के आगे खनिज अफसरों को भी झूकना पड़ता है। सूत्रों ने बताया कि ऐसे अवैध उत्खनन खनिज अफसरों के इशारें पर चल रहे हैं जिससे पट्टा लेने वाले खदान मालिक बेहद नाराज हैं लेकिन वे चाहकर भी इसलिए कुछ नहीं करते क्योंकि यह सब खनिज विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहा है।
इसी तरह ऐसे और पट्टाधारियों को खनिज विभाग द्वारा सरंक्षण दिया जा रहा है जिन्होंने आश्यक कागजात तक पूरे नहीं किए हैं। न माईनिंग प्लान का पता है और न ही पर्यावरण विभाग का एनओसी ही इनके पास है और यह सब बात खनिज अधिकारी जानते भी हैं लेकिन यहां से मिल रहे मोटी रकम की वजह से वे खामोश है। बहरहाल मुख्यमंत्री के नाक के नीचे चल रहे इस भ्रष्टाचार के खेल की चर्चा यहां जोरों पर है और मुख्यमंत्री की खामोशी को दूसरे अर्थों में लिया जा रहा है।
बृजमोहन की भी यहां नहीं चलती...
प्रदेश के दमदार माने जाने वाले पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की भी खनिज विभाग में नहीं चलती। बताया जाता है कि 14 अप्रैल को ग्राम सुराज अभियान के तहत पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जब दोंदेकला पहुंचे तो वहां उपस्थित ग्रामीणों ने दोंदेकला, मटिया, लालपुर और दोंदेखुर्द में अवैध उत्खनन एवं खनिज के अवैध परिवहन की शिकायत की तब मंत्री जी ने उपस्थित खनिज अधिकारियों को डांटे हुए तत्काल रोक लगाने कहा। इसके बाद उपसंचालक ने आदेश तो निकाल दिया लेकिन जिला खनिज के अधिकारी इस पर अमल करने की बजाय मंत्रीजी का ही मजाक उड़ाते नहीं थकते।

शनिवार, 8 मई 2010

तेल लगाओ, विज्ञापन पाओ

संवाद में विज्ञापन देने नियम कानून नहीं
छत्तीसगढ़ संवाद में विज्ञापन जारी करने का कोई नियम कानून नहीं है। जो जितना चापलूती करेगा उसे उतना विज्ञापन जारी किया जाता है। चापलूसी के आगे प्रसार संख्या भी बेमानी है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के इस विभाग में भर्राशाही और अफसर शाही इस कदर हावी है कि कई अखबार वाले भी कुछ कहने-छापने से हिचकते हैं। इस संबंध में जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई तो यह जानकारी संवाद में चल रहे भर्राशाही का पोल खोलने के लिए काफी है।
संवाद ने 1 मई 2009 से 25 जुलाई 2009 से 25 जुलाई 2009 के बीच जो विज्ञापन जारी किए है दिल्ली से प्रकाशित होने वाले महामेघा को 50 हजार का विज्ञापन दिया गया। इसी तरह भिलाई से प्रकाशित अगास दिया को 80 हजार का विज्ञापन दिया गया। हरिभूमि और प्रखर समाचार को एक ही ग्रेट का बनाया गया और दोनों को तीन-तीन लाख का विज्ञापन दिया गया। सर्वाधिक विज्ञापन मुख्यमंत्री के गृह जिले राजनांदगांव के अखबारों को दिया गया जबकि दिल्ली के हिन्दी जगत को 50 हजार और इंदौर के ग्राम संस्कृति को 30 हजार का विज्ञापन दिया गया दिल्ली के ही नया ज्ञानोदय को 25 हजार लोकमाया हिन्दसत को 50-50 हजार का विज्ञापन दिया गया पटना के राष्ट्रीय प्रसंग को 75 हजार का विज्ञापन दिया गया।
इसके मुकाबले छत्तीसगढ़ के अखबारों को 5-10 हजार का विज्ञापन ही दिया गया। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि जनसंपर्क और संवाद में किस तरह का भर्राशाही व चापलूसी चल रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इन विज्ञापनों की आड़ में कमीशनखोरी की चर्चा भी जोर-शोर से है।

शराब लॉबी का बढ़ता दबाव

राजधानी में इन दिनों शराब आंदोलन जोरों पर है नियम कानून को ताक पर रखकर शराब दुकानें खोली जा रही है। कई जगह इसके खिलाफ आंदोलन भी चल रहे हैं और अखबार भी इस आंदोलन को छाप रहे हैं लेकिन कई आंदोलनकारी के चहेरे की वजह से खबर को प्रमुखता नहीं दी जा रही है। यह सच है कि इसके पीछे शराब माफियाओं का दबाव।
दरअसल शराब माफियाओं की पकड़ इतनी मजबूत है कि वे सरकार बनाने-बिगाड़ने का दावा करते नहीं थकते इसलिए पुलिस भी नियम-कानून का उल्लंघन कर रही शराब दुकानों की तरफ से न केवल आंखे फेर लेती है बल्कि आंदोलनकारियों को ही कुचलने की कोशिश करती है। मांगे कितनी भी जायज हो व्यवस्था बनाने के नाम पर जिस तरह से आंदोलन कुचले जाते हैं कमोबेश कुछ अखबारों का रवैया भी यही है। इसलिए आंदोलनकारियों के चेहरे देख खबरें छापी जाने लगी है।
वैसे शराब माफियाओं ने अपने पैसे की ताकत अखबारों पर भी दिखाना शुरु कर दिया है यह अलग बात है कि रिपोर्टर अब भी आंदोलनकारियों के साथ है लेकिन विज्ञापन विभाग का दबाव खबरों को रोकने की ताकत रखने लगी है। इस खबर में कितना दम है यह तो अखबार वाले ही जाने लेकिन शराब आंदोलन की खबरों को लेकर माफियाओं द्वारा पैकेज पहुंचाने की चर्चा ने अखबार की विश्वसनियता पर सवाल उठाया है। प्रतिस्पर्धा के युग में अधिकाधिक विज्ञापन बटोरने की ललक ने खबरों के साथ समझौता भी सिखाने लगा है। अब तो यह चर्चा आम होने लगी है कि किस सिटी चीफ को उसके अखबार की औकात के अनुसार पैसा दिया जाने लगा है ताकि आंदोलन को कुचला जा सके।
और अंत में....
शराब दुकान को लेकर शास्त्री बाजार के व्यापारी प्रकोष्ठ दुखी है सरकार के अड़ियल रवैये से दुखी एक व्यापारी ने जब एक पत्रकार से खबर अच्छे से छापने की गुजारिश की तो इस पत्रकार का जवाब था पहले रिश्ता रखने वाले को अपने आंदोलन से बाहर करो फिर देखना हमारे यहां खबरें कैसे छपती है।

बुधवार, 5 मई 2010

सिर्फ अनुदान लेने से काम नहीं चलेगा...


छत्तीसगढ़ इन दिनों भीषण गर्मी की चपेट में हैं। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मचा हुआ है और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी पानी बचाने की अपील करते नहीं थक रहे हैं लेकिन राजधानी में ही उनके अपील का किस तरह धाियां उड़ाई जा रही है इससे वे शायद वाकिफ भी होंगे। गौरव पथ निर्माण के नाम पर ऐतिहासिक तेलीबांधा तालाब पाटा जा रहा है। यहां से मंदिर तक हटाई गई लेकिन गौरवपथ का निर्माण सड़क के दूसरी तरफ से चौड़ा कर तालाब बचाया जा सकता था। तेलीबांधा तालाब कहने को तो 42 एकड़ क्षेत्र में फैला है लेकिन वास्तविकता इससे परे है एक तरफ गौरवपथ के नाम पर तालाब पाटी जा रही है तो दूसरी ओर अवैध कब्जाधारियों ने इस ऐतिहासिक तालाब पर कब्जा कर रखा है। ऐसे में मुख्यमंत्री की करनी और कथनी में फर्क का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि राजधानी में सिर्फ यही एक तालाब पाटे जा रहे हैं आमापारा बाजार स्थित कारी तालाब भी पाटा जा रहा है। इस तालाब को पाट कर बिल्डिरों को बेची जाएगी और कांक्रीट का एक और महल तैयार कर लिया जाएगा। राजधानी में पानी की भीषण समस्या है। जलस्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है और ऐसे में तालाबों को पाटा जाना कहां तक उचित है। आखिर इसके पहले जो तालाब पाटे गए उससे आम लोगों का कितना भला हुआ है। एक तरफ सरकार से लेकर नाबार्ड तालाब खोदने पैसा दे रही है और दूसरी तरफ सरकार के नाक के नीचे राजधानी में तालाबों को संवारने की बजाए तालाबों से अवैध कब्जे हटाने की बजाय उसे पाटा जाना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
छत्तीसगढ़ ही नहीं राजधानी में ही पर्यावरण को लेकर दो दर्जन से अधिक संस्थाएं कार्य कर रही है। ये लोग पोस्टर से लेकर वृक्षारोपण का भरपूर प्रचार करते हैं पानी बचाने आंदोलन का भी दावा करते है इसके बदले में इन संस्थाओं को सरकार अनुदान भी देती है लेकिन राजधानी में पाटी जा रही है तालाबों से इनका कोई लेना देना नहीं है। अवैध कब्जा होते तालाबों के मामले में हम यह मान लें कि यह विवादास्पद है इसलिए ये हाथ नहीं डालते लेकिन तालाब पाटने की घटना तो सरकारी स्तर पर हो रही है। शराब से लेकर बिल्डरों के आगे नतमस्तक सरकार से आम लोगों के जीवन बचाने की कल्पना बेमानी होने लगी है लेकिन सरकार से अनुदान लेकर पानी बचाने के लिए ताम-झाम कर रही संस्थाएं भी यदि खामोश बैठ गई तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।आज अप्रेल में पारा 44 के पार जा रहा है कल मार्च या फरवरी में जाने लगेगा तब आने वाली पीढ़ियों के लिए या अपने बच्चों के लिए कम से कम हमें सोचना होगा। वरना वर्तमान अंधेरगर्दी का खामियाजा पूरी पीढ़ी को भुगतना होगा।

अनुमति मिली नहीं कोल ब्लॉक 32 करोड़ में बेच दी...

भाजपा नेता का मामला सुर्खियों में
केन्द्र सरकार द्वारा 14 कोल ब्लाकों को अनापत्ति देने से मना करने से राय सरकार ही नहीं भाजपा के एक नेता की भी नींद उड़ गई है। इस नेता ने स्पंज आयरन के लिए कोल ब्लाक मांगा था लेकिन इसे उसने महाराष्ट्र की एक कंपनी को 32 करोड़ में बेच दिया था। अब केन्द्र सरकार द्वारा अनुमति नहीं देने से बवाल मच गया है।
उल्लेखनीय है कि राय सरकार की मांग पर केन्द्र के पर्यावरण मंत्रालय ने प्रदेश के 14 बड़े कोल ब्लाकों को अनापत्ति देने से साफ तौर पर मना कर दिया है। हालांकि इसकी वजह से दर्जनभर बिजली परियोजनाएं अटक गई है। पर्यावरण विभाग के इस रोड़े से राय सरकार में हड़कम्प तो मचा ही है कोल ब्लाक लेने वाले कई उद्योगपतियों में भी हड़कम्प मच गया है।
जिन कोल ब्लाकों को अनुमति नहीं मिली उनमें हाल ही में सीबीआई छापे का शिकार प्रकाश इण्ड्रस्ट्रीज के अलावा श्रीराधे इण्ड्रस्ट्रीज, अक्षय स्पात उद्योग, एमएसपी स्टील, शारदा एनर्जी, अल्ट्राटेक, सींघन इंटरप्राईजेस, नवभारत कोलफिल्ड, वंदना एनर्जी, अंजली स्टील शामिल है। बताया जाता है कि इनमें से एक कोल ब्लाक प्रदेश के एक भाजपा नेता को भी आबंटित किया था कहने को तो वे स्पंज आयरन के लिए कोल ब्लाक मांगा था और भाजपाई होने के कारण राय सरकार ने उन्हें आबंटित भी कर दिया था। लेकिन इस भाजपा नेता की मंशा का पता अभी चला जब केन्द्र की आपत्ति के बाद महाराष्ट्र की उस पार्टी ने अपने 32 करोड़ वापस मांगे।
कभी राजिम से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके इस भाजपा नेता ने जिस तरह से पर्यावरण का मुखौटा लगाया है उससे भी उनकी इस मंशा का अंदाजा लगाना मुश्किल है। बताया जाता है कि अपनी पहुंच का फायदा उठाकर कोल ब्लाक महाराष्ट्र की कंपनी को 32 करोड़ में बेचे जाने की चर्चा जबरदस्त है और इसमें सरकार में एक मंत्री के शेयर की भी कहानी अब सामने आने लगी है।
बताया जाता है कि प्रदेश में पार्टी की सरकार होने का कई भाजपा नेता फायदा उठाने लगे हैं और कई खदानों में पार्टनर बनकर बैठ गए है या अनाप शनाप कीमत में बेच रहे हैं। इसी तरह अन्य कोल ब्लाक को लेकर भी कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि कई लोगों को सोची समझी रणनीति के तहत कोल ब्लाक दी जा रही थी।
बहरहाल भाजपा नेता के द्वारा महाराष्ट्र की कंपनी को 32 करोड़ में कोल ब्लाक बेचे जाने की यहां जमकर चर्चा है और कहा जा रहा है कि रुपए भी डकारे जा रहे हैं और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर महाराष्ट्र की कंपनी को दो टूक भाषा में भगा दिया गया।

बहु को नहीं पकड़ पा रही पुलिस!

घोटालेबाजों का जमाना
महाधिवक्ता है सुराना - 7
छत्तीसगढ़ में पुलिस विभाग किस तरह से सरकार के आगे नतमस्तक है इसका उदाहरण श्रीमती चेतना सुराना के केस से समझा जा सकता है। कोर्ट में पेश करने के आदेश के बाद भी स्थानीय पुलिस को श्रीमती सुराना नहीं मिल पा रही है या वे दबाव में कार्रवाई नहीं कर रही है यह तो पुलिस महकमा ही जाने लेकिन इस मामले की चर्चा जोरों पर है कि शासन से सांठगांठ कर अपराधी आसानी से बच जाते हैं।
मंदिर की जमीन से लेकर आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप में फंसे सुराना परिवार के ऊपर कई तरह के आरोप है उनके पार्टनर रह चुके कई लोगों ने तो सत्ता के दुरूपयोग का कई आरोप लगाया है। ऐसा ही मामला सुराना परिवार की बहु श्रीमती चेतना सुराना पर भी लगाया जा रहा है। बताया जाता है कि श्रीमती चेतना सुराना पति आनंद सुराना ने डीपी गांधी व अन्य के खिलाफ थाना गोल बाजार में आपराधिक प्रकरण 420, 467, 468, 471 एवं 34 भादवि के तहत मामला दर्ज करवाया था। प्रभावशाली होने के कारण गोलबाजार पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया लेकिन जांच में यह मामला झूठा पाया गया और न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।इस संबंध में छत्तीसगढ़ शासन के पुलिस निदेशक की शिकायत जांच रिपोर्ट में कहा गया कि श्रीमती चेतना सुराना और उनके मुख्तयार पति आनंद सुराना को आभास था कि वे झूठी शिकायत कर रहे हैं फिर भी उसने प्रशासन को गुमराह करते हुए थाना स्तर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्रकरण दर्ज कराया। इसके बाद थाना प्रभारी गोल बाजार ने श्रीमती चेतना सुराना के विरुध्द इस्तगासा 12009 अंतर्गत धारा 182, 211 के तहत दंडित कराने माननीय न्यायालय में पेश किया जहां वह उपस्थित नहीं हुई और पुलिस भी उसे पेश नहीं करा सकी। बहरहाल सुराना परिवार पर लग रहे आरोपों की कई तरह की चर्चा है और लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि इतने आरोपों के बाद भी कोई महाधिवक्ता कैसे बन सकता है?

मंगलवार, 4 मई 2010

मुंबई घुमने पर्यटन मंडल की कार का उपयोगलाखों रुपयों का चूना लगाया


लगता है मुंबई में पर्यटन मंडल ने जो कार्यालय खोला है वह पर्यटन के प्रचार प्रसार की बजाय मंत्रियों और अधिकारियों की मित्र मंडलियों का ऐशगाह बनकर रह गया है। इसका ताजा उदाहरण मुंबई पर्यटन मंडल द्वारा टेक्सियों का बकाया बिल है जो 25 लाख से उपर बताया जा रहा है।छत्तीगढ़ शासन ने पर्यटन को बढ़ावा देने प्रदेश के बाहर भी पर्यटन मंडल का कार्यालय खोल रखा है इसमें से एक कार्यालय मुंबई में स्थित है। बताया जाता है कि जब से मुंबई में पर्यटन मंडल ने कार्यालय खोला है तभी से सरकार में बैठे अधिकारियों व मंत्रियों के मित्रों की निकल पड़ी है। आए दिन मुंबई घुमने वालों की बढ़ती संख्या से पर्यटन मंडल के कई अधिकारी हैरान है।बताया जाता है कि मुंबई कार्यालय के बढ़ते खर्चे को लेकर इसे बंद किए जाने की भी चर्चा हो चुकी है। लेकिन कुछ अधिकारी व कुछ मंत्रियों की वजह से मुंबई कार्यालय बंद किए जाने का मामला आगे नहीं बढ़ पाया। सूत्रों के मुताबिक मुंबई पर्यटन मंडल द्वारा छत्तीसगढ़ से पहुंचने वालों के लिए किराए की टैक्सियों का इंतजाम करने लगा है और यही खर्चा ही लाखों-करोड़ों में होने लगा है। हालांकि खर्चे विभागीय कार्य के बताए जा रहे हैं लेकिन कार में घुमने वाले किसी न किसी मंत्री या अधिकारी के सिफारिश के साथ पहुंचते हैं।बताया जाता है कि पिछले माह एक अधिकारी के रिश्तेदार ने 15 दिनों तक मुंबई का सैर किया और इस किराये की टैक्सी का खर्च पर्यटन मंडल के जिम्मे चला गया। लेकिन इस मामले की लीपापोती कर दी गई। इधर इस मामले में मुंबई कार्यालय में संजय जैन से बात की गई तो उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। बहरहाल पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर मुंबई में घुमने-फिरने वालों का खर्च उठाने का मामला तूल पकड़ने लगा है देखना है इस पर क्या कार्रवाई होती है।

जनता का हितैषी बनने नौटंकी

संपत्ति कर के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों दोषी!
पिछले एक पखवाड़े से कांग्रेसी और भाजपाईयों ने निगम टैक्स की आड़ में जनता का हितैषी बनने जिस तरह से नौटंकी पर उतर आए हैं ऐसा नजारा बहुत कम देखने को मिलेगा। जनता की गाढी क़माई का एक बड़ा हिस्सा अपनी सुख-सुविधाओं और एय्याशी में लुटाने वालों की नौटंकी से आम लोग तमाशाबीन बने हुए हैं एक दूसरे पर दोषारोपण कर राजनैतिक लाभ की ऐसी लड़ाई से आम आदमी निराश हैं।
छत्तीसगढ क़ी राजधानी रायपुर में जब से कांग्रेसी महापौर ने पदभार संभाला है तभी से यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि राय शासन और निगम में टकराव होकर रहेगा। सभापति चुनाव के दौरान ही राय शासन की मंशा स्पष्ट हो गई थी कि वह किस मूड में है। सरकार के एक मंत्री पार्टी का सभापति बनाने न केवल खुलकर सामने आए बल्कि खुले आम लेन देन किया गया। लाखों रुपए वोट बटोरने पार्षदों को बांटे गए और भ्रष्ट कारनामों पर अपनी ही पीठ थपथपाई गई।
इसके बाद निगम का बजट सत्र में भी अभूतपूर्व हंगामा हुआ। विकास की बजाय राजनीति हुई और जैसे तैसे बजट पास किया गया। किरण बिल्डिंग मामले में पिछले महापौर परिषद का कारनामा भी लोगों की जुबान पर चढ़ा और इस मामले में यह भी चर्चा रही कि शहर विधायक ने किस तरह से खेल खेलकर लाखों-करोड़ों का व्यारा-न्यारा किया। कांग्रेस और भाजपा के यह कारनामें अभी लोग भूले भी नहीं थे कि संपत्तिकर को लेकर महापौर किरणमयी नायक पुन: विवादों में आ गई। पहले तो कांग्रेस संगठन ने ही महापौर की पेशी ली लेकिन बाद ें जब भाजपाईयों ने महापौर पर सीधे हमला किया तो कांग्रेस ने रणनीति के तहत बिलासपुर और राजनांदगांव के महापौरों को बुलाकर राय सरकार पर हमला किया।
इसके बाद तो अपनी हार से बौखलाए भाजपाईयों ने महापौर पर हमला बोल दिया और एक-दूसरे पर संपत्ति कर बढ़ाने आरोप लगाए जाने लगे। चुनौती दी जाने लगी। जबकि वास्तविकता यह है कि पहले टेक्स में वृध्दि सरकार ने की फिर इसके झांसे में आकर कांग्रेसी महापौरों ने वृध्दि कर दी। जबकि निगम चाहती तो शासन का प्रस्ताव ठुकरा सकती थी लेकिन कमिश्नर के खेल में कांग्रेसी फंस गए और यही से लड़ाई शुरू हुई। वास्तव में देखा जाए तो टैक्स में की गई बेतहाशा वृध्दि ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है और भाजपाई राजनीति करने की बजाए टैक्स कम करने निगम से प्रस्ताव मांगकर सरकार से टैक्स कम करवा सकती है लेकिन एक दूसरों पर आरोप की राजनीति में माहिर नेताओं को तो राजनैतिक लाभ चाहिए।
बहरहाल कांग्रेसी-भाजपाईयों की इस राजनीति ने आम लोगों की जेबों पर डाका तो डाल ही दिया है और अब आम लोगों को निर्णय लेना है कि वह ऐसे सरकार और निगम परिषद के बारे में क्या निर्णय लेती है या पहले की तरह चुपचाप टैक्स पटाती है?

सोमवार, 3 मई 2010

प्रतिबंध के बावजूद मंत्री-अधिकारी विदेश गए



छत्तीसगढ सरकार के फैसलों का उनके ही मंत्री और अधिकारी किस तरह से धाियां उड़ा रहे है इसका ताजा उदाहरण खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहिले, खाद्य सचिव विवेक ढांड और राय भंडार गृह के प्रबंध संचालक उमेश अग्रवाल के विदेश प्रवास है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने फिजूल खर्ची पर रोक लगाने पिछले माह मंत्रियों और अधिकारियों के विदेश प्रवास पर प्रतिबंध लगा दिया था। बताया जाता है कि विधानसभा में विदेश यात्रा के बढ़ते खर्चों पर चिंता जताई गई थी और सरकार ने इसके बाद प्रतिबंध लगा दिया था। इधर इस प्रतिबंध के बाद विदेश घुमने को इच्छुक मंत्रियों और अधिकारियों ने नया पैतरा शुरू कर दिया। बताया जाता है कि इसी पैतरेबाजी के चलते राय भंडारण गृह के खर्चे से विदेश यात्रा का खाका तैयार किया।
पता चला है कि कनाडा में 2 मई को खाद्य भंडारण के वैज्ञानिक तरीकों को लेकर एक सम्मेलन बुलाया गया और यह जानकारी जैसे ही भंडारण गृह के प्रबंध संचालक उमेश अग्रवाल को हुई उसने गणितबाजी कर पहले खाद्य सचिव विवेक ढांड को विश्वास में लिया फिर खाद्य मंत्री मोहिले के साथ मिलकर विदेश यात्रा की योजना बना ली। इनकी वापसी 8 मई को होनी है। इस विदेश यात्रा का पूरा खर्च भंडारण गृह के जिम्मे है जिनका प्रबंध संचालक उमेश अग्रवाल काफी विवादास्पद माने जाते हैं।
बताया जाता है कि कनाडा सम्मेलन तो एक बहाना है और ये लोग सैर सपाटे पर ही गए हैं। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि जिस सम्मेलन में ये लोग शिरकत करने गए हैं वहां खाद्य भंडारण के वैज्ञानिक व नई तकनीक पर चर्चा होगी ऐसे में यदि भंडारण गृह निगम इस तकनीक का इस्तेमाल करने के उद्देश्य से विदेश यात्रा की अनुमति देता तो कम से कम एक तकनीकी अधिकारी जरूर होते। लेकिन इनका उद्देश्य तकनीक समझना नहीं घुमना फिरना है।
वहीं विदेश यात्रा के लिए सरकार से अनुमति लेने की भी कोई खबर नहीं है और सरकार के आदेश को ठेंगा बताकर सरकारी राशि का दुरुपयोग का मामला सामने आया है। बहरहाल मंत्री और अधिकारियों के इस विदेश प्रवास को लेकर जबरदस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि प्रतिबंध के बाद भी विदेश यात्रा में जाने को मुख्यमंत्री को चिढ़ाने की कोशिश बताया जा रहा है।

रविवार, 2 मई 2010

मंत्रीगिरी से लोग नाराज

भीड़ देख मूणत बौखलाए
राशन दुकानों की अनियमितता की शिकायत लेकर वार्ड पार्षद के साथ पहुंचे कोटा वार्ड के नागरिकों को तब अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ा जब नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत ने शिकायत सुनने की बजाए महिला पार्षद को चिल्लाते हुए कहा कि पार्षद का काम राशन दिलाना नहीं है, कार्ड मिल गया यही काफी है चुपचाप घर में बैठें।
वैसे नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत का यह रवैया नया नहीं है उनके व्यवहार से आम आदमी ही नहीं भाजपा के कई कार्यकर्ता भी दुखी है जो मन में आए कह देने की उनकी आदत से आम लोगों में सरकार के प्रति क्रोध बढता ही जा रहा है। यही नहीं मुख्यमंत्री के गृह जिले कवर्धा में भी उनकी भाजपा कार्यकर्ताओं से झड़प हो चुकी है।
ताजा मामला 26 अप्रैल की है जब कोटा वार्ड की निर्दलीय पार्षद श्रीमती अंजू तिवारी ने वार्ड में राशन ठीक से नहीं बांटने व राशन दुकानदारों द्वारा अनियमितता की शिकायत लेकर करीब डेढ़ सौ कार्डधारियों को लेकर कलेक्टर संजय गर्ग के पास पहुंची थी। पार्षद का आरोप है कि प्रियदर्शनी और मां खल्लारी सहकारी समिति की अनियमितता से लोग त्रस्त हैं। बताया जाता है कलेक्टर ने कार्रवाई का आश्वासन तो दिया लेकिन इससे लोग संतुष्ट नहीं हुए और वहीं नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत जो क्षेत्र के विधायक भी है से मिलने का निश्चय किया।
बताया जाता है कि पहले से ही परेशान नागरिक जब मंत्री बंगला पहुंचे तो मंत्री के जवाब से उन्हें आश्चर्य हुआ। श्रीमती तिवारी का कहना था कि श्री मूणत शिकायकर्ताओं की भीड़ देख बौखला गए और जो मन में आया कहने लगे इससे नागरिकों में भारी आक्रोश व्याप्त है। इधर कोटा वार्ड के नागरिकों का कहना है कि दूसरी बार मंत्री बने मूणत नहीं चाहते कि कोई शिकायत करे इसलिए जब भी कोई शिकायत लेकर जाता है वे ऐसा ही व्यवहार करते हैं। बहरहाल इस मामले से लोग नाराज है और आगे की रणनीति बनाने में लगे है। एक नागरिक संजय ने कहा कि वे इस घटना की शिकायत मुख्यमंत्री से भी करेंगे।