बुधवार, 11 अगस्त 2010

...तभी बदनाम है रविवि

कुलपति जी अब तो सुधर जाओ!

संवाद ने भी नहीं छोड़ा रविवि को
250 रुपए के प्रास्पेक्टस में ढेरों गलतियां
250 रु. का प्रास्पेक्टस खरीदने की मजबूरी
 किसी भी शिक्षण संस्थान का प्रास्पेक्टस उस संस्थान का आईना होता है। प्रास्पेक्टस देखकर ही संस्थान की गुणवत्ता की पहचान होती है और जब प्रास्पेक्टस में ही ढेरों गलतियां हो तो संस्थान के स्तर पर सवाल उठना स्वाभाविक है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के स्तर को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं ह कुलपति स्तर सुधारने की वकालत करता है ऐसे में सरकार के प्रचार प्रसार में लगी छत्तीसगढ़ संवाद ने प्रास्पेक्टस में जो गलतियां छापी है वह न केवल शर्मनाक है बल्कि संवाद और जनसंपर्क में बैठे अफसरों के ज्ञान पर भी सवालिया निशान लगाते हैं। ऐसे लोग सरकारी योजनाओं और सरकार का क्या इमेज बना रहे होंगे आसानी से समझा जा सकता है। सिर्फ एक फार्म के लिए 250 रुपए देने की मजबूरी गरीब छात्रों को अलग दुखी कर रहा है।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.के. पाण्डेय इन गलतियाें से बच नहीं सकते जबकि प्रास्पेक्टस में उनके नाम के संदेश की हर लाईन में न केवल गलतियां है बल्कि जिस स्वयं के नाम पर उनके हस्ताक्षर है वे भी त्रुटिपूर्ण है। इतनी गलतियों से भरे प्रास्पेक्टस की कीमत ढाई सौ रुपए रखी गई है जो गरीब छात्रों के लिए बोझ है। यदि इस प्रास्पेक्टस को कोई पढ ले और कुलपति प्रो. पाण्डेय के संदेश को पढ ले तो वह पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के बारे में क्या सोचेगा। उसके मन में क्या छवि बनेगी यह कल्पना से परे हैं।
यह सत्य है कि प्रो. पाण्डेय एक विद्वान गुरुजी है लेकिन उनके संदेश की हर लाईन में जिस तरह से गलतियां हुई है यह उनकी उदासीनता और उनके कार्यों की लापरवाही को ही प्रदर्शित करा है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की छवि किसी से छिपी नहीं है ऐसे में जब स्तर सुधारने की बात की जाती है तो फूंक-फूंक कर कदम उठाए जाने चाहिए। ऐसे में इस विश्वविद्यालय को बदनाम करने में छत्तीसगढ़ संवाद ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखा है। संवाद में किस तरह के लोग बैठे हैं और कैसे मुख्यमंत्री व उनके सचिव ब्रजेन्द्र कुमार के संरक्षण में यहां घपलेबाजी हो रही है यह किसी से छिपा नहीं है। विश्वविद्यालय का प्रास्पेक्टस इसी छत्तीसगढ़ संवाद द्वारा छापी गई है जो इसके अन्य पृष्ठों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि संवाद की छपाई का स्तर क्या है।
दरअसल मोटी कमीशन लेकर छपाई करवाने वाले संवाद के अफसरों को छपाई की गुणवत्ता की बजाय प्रिंटर्स से मिलने वाले कमीशन पर यादा रूचि है। बहरहाल रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की साख गिराने की इस कोशिश पर संवाद और विवि प्रशासन पर कार्रवाई नहीं हुई तो सरकार की नियत पर भी सवाल उठेंगे।