शनिवार, 15 मई 2021

नीच कर्म...

 

दान, दया, प्रेम, सत्य, तप ये धर्म के मूल आधार है, और यह समाज का भी महत्वपूर्ण अंग है। हम कितने सामाजिक और धार्मिक है यह व्यक्ति के इन्ही गुणों से पता चलता है। कोरोना ने हमारी सामाजिक और धार्मिक आस्था पर प्रहार भी किया है। बावजूद इस संकट की घड़ी में दान और दया ने ही हमारे जीवन में नया आशा का संचार किया है।

लोक एक दूसरे के मदद करने नहीं आते और सत्ता के भरोसे रहते तो कितनी ही जाने चली जाती क्योंकि वर्तमान सत्ता को अपनी रईसी और सेन्ट्रल विस्टा में महल बनाने की चिंता है। उसका हर निर्णय रईसी और महल में केन्द्रित है। वे अपनी रईसी कब तक बरकरार रखेंगे, इसकी चौतरफा आलोचना होने लगी है। लेकिन सवाल यह है कि सत्ता अब क्या नहीं चाहती कि लोगों के मदद के हाथ उठे। कालाबाजारी जैसे नीच कर्म करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से असहाय सत्ता यदि मदद करने वालों के हाथ रोकने की कोशिश करे तो यह कौन सा कर्म कहलायेगा? आप खुद सोचिये?

इस देश में आपदा से पहले भी दान देने वालों ने अभूतपूर्व कार्य करके लोगों की जिन्दगी बचाई है, कितने ही बच्चों की पढ़ाई, कितने ही लोगों का ईलाज और कितने ही लोगों के भोजन की व्यवस्था की है और अब भी कर रहे हैं। और यह पूरी दुनिया में होता है, खुद इस देश ने आपदा में दूसरे देशों के लोगों की मदद की है तब इस कोरोना के दौर में मदद करने वालों के पीछे पुलिस लगाना कौन सा हिन्दू ग्रंथ में लिखा है। 

दिल्ली पुलिस के क्राईम ब्रांच ने युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास के अलावा भाजपा के सांसद गौतम गंभीर और हरीश खुराना से भी पूछताछ  की है कि वे लोगों की मदद कैसे कर रहे हैं। भले ही इस मामले को खुद भाजपा के लोग हल्के में लेने की बात कर रहे हैं लेकिन खुद कुछ भी नहीं करने वाली सरकार का यह कृत्य हैरान ही नहीं उन लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है जो दिन रात सड़कों, अस्पतालों में घुम-घुम कर भोजन दवाई या दूसरी मदद कर रहे है।

सवाल यही तक नहीं है, सबसे दुखद और पाशविक तो मोदी सरकार का वह निर्णय की वजह से सामे आ रहा है जिसके तहत किसी भई स्वयंसेवी एनजीओ के सीधे विदेशी मदद को अपराध बना दिया गया था, यह तो हाथ में जख्म हो तो हाथ ही काट देने वाला कानून है यह बात इस कोरोना में स्पष्ट हो गया। इस कानून की वजह लोगों तक आक्सीजन कॉन्सटेटर्स की आपूर्ति तो बाधित हुई है दूसरी जरूरत भी बाधित हुई है।

याद कीजिए पिछले वर्ष जब कोरोना की पहली लहर चल रही थई तब मोदी सरकार ने फॉरेन कन्ट्रीब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्स यानी एफसीआर में संशोधन किया था, तब इसकी कई संस्थाओं ने इसका विरोध भी किया था लेकिन मोदी सत्ता ने इसे पारदर्शी होने की बात कहकर सबको चुप करा दिया था। अब कहा जा रहा है कि यह संशोधन लोगों की जान बचाने में बन रही है एक एनजीओ के सह संस्थापक जेनीफर लियांत कहती है कि विदेशी कई दानदाता आक्सीजन कान्सेटेटर्स और जरूरी सामान मुहैया करा रहे हैं लेकिन इस कानून की वजह से जरुरतमंदों तक पहुंचाने में देर हो रही है।