बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

अत्याचार...

 

रसद रोक दो, बिजली काट दो, नुकीले कीलें गाड़ दो और भी चाहे कितने ही उपाय कर लो पूरी दुनिया में इन सरकारी कोशिश से न तो  कभी आंदोलन रुकी है और न ही रुक सकेगी।

दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को तोडऩे की तमाम सरकारी षडय़ंत्र नेस्तनाबूत हो चुकी है और अब सरकार जिस तरह से किसानों को रोकने का उपाय कर रही है उसका क्या मतलब है। क्या मोदी सत्ता किसानों के आंदोलन से भयभीत हो चली है, नहीं तो 26 जनवरी की आड़ में किसानों को रोकने के लिए जो रास्ता अख्तियार कर रही है, वैसा कभी नहीं करती।

दिल्ली बार्डर में किसानों को रोकने के लिए जिस तरह की व्यवस्था की जा रही है, वैसी व्यवस्था तो सत्ता केवल दुश्मनों के लिए करती है। इंटरनेट ठप्प कर दी गई है, बिजली पानी काट दी गई है और जिस तरह से नुकीलें कीलें, बारह लेयर की बाड़ और कंटीली तार लगाकर किसानों को रोकने की कोशिश की जा रही है वह हैरान कर देने वाली है।

लेकिन सरकारें शायद नहीं जानती कि आंदोलन रसद-पानी से नहीं हिम्मत से चलता है और आंदोलन की ताकत को दुनिया में कोई सत्ता नहीं रोक पायी है। इसलिए अब मोदी सत्ता के सामने तीनों कानून वापस लेने के अलावा भी कोई चारा होगा, कहना कठिन है।

दिल्ली के हालत 26 जनवरी के बाद जिस तरह से बदले और आंदोलन की गूंज देश के गांवों तक पहुंचने लगी है वैसा इससे पहले कब हुआ है याद नहीं पड़ता और यह भी याद नहीं पड़ता कि आंदोलन को रोकने कभी किसी सरकार ने रसद-पानी बिजली काटी हो।

ऐसे में किसानों के आंदोलन को लेकर आम लोग भी अब अपनी प्रतिक्रिया देने लगे हैं। जात-धर्म से दूर किसान जिस तरह से एकजुट होकर आंदोलन में हिस्सा लेने लगे हैं वह क्या इस देश में नए राजनैतिक समीकरण की ओर संकेत नहीं कर रहे है? क्या अगला चुनाव अब विकास के मुद्दे की बजाय किसानों के चुनाव लडऩे को लेकर होगा।

यकीन जानिये ऐसा हो सकता है? क्योंकि किसान अब समझने लगे हैं कि उनका हित किसमें है और यदि गांव-गांव से किसान आंदोलन की गूंज सुनाई दे रही है तो यह मोदी सत्ता ही नहीं दूसरे राजनैतिक दलों के लिए भी एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि धर्म और जाति से परे किसानों का ेक जुट होना आंदोलन की सफलता की कहानी लिखने जा रहा है।