शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

पूंजी और अपराध की सत्ता...!

 

क्या वर्तमान में केन्द्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूंजी और अपराध पर निर्भर हो चली है? आज हम यह सवाल इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह से दिल्ली के बार्डर पर सरकारी इंतजाम किये गये हैं वैसा इंतजाम तो कोई भी देश अपने नागरिकों के लिए नहीं करता !

इससे पहले यह सच जान लेना जरूरी है कि संसद के दोनों सदनों में खासकर सत्ताधारी दल के कितने सांसद करोड़पति है और कितने सांसदों पर अपराध दर्ज हैं? इस सच को जानने के लिए एडीआर की रिपोर्ट ही काफी है। सत्ताधारी दल के 80 फीसदी से अधिक संसद करोड़पति हैं और इसी तरह से सत्ताधारी दल के जिन 303 सांसद है उनमें से पचास फीसदी से अधिक सांसदों पर अपराधिक प्रकरण दर्ज है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या सांसद बनने के लिए पूंजी और अपराध का गठजोड़ जरूरी हो चला है। सवाल यह भी उठना चाहिए कि जब पूंजी और अपराध का गठजोड़ स्पष्ट दिखाई देने लगा है तो क्या आंदोलन को कुचलने के लिए यही सोच काम कर रहा है।

किसान आंदोलन को लेकर ट्रोल आर्मी और वॉट्सअप यूनिर्वसिटी से इतर भी नफरत का जो बीड़ा बोया जा रहा है। बात-बात पर असहमति के स्वर को देशद्रोही करार देने वालों की सोच ने ही किसान आंदोलन को उग्र रुप दिया है कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

ऐसे में किसानों ने दिल्ली की बजाय पंचायतों तक का सफर करना शुरु कर दिया है तो इसका मतलब क्या है? किसानों ने साफ कर दिया है कि अब वे दिल्ली के अलावा पंचायतों तक अपना आंदोलन को विस्तार देंगे और पूंजी-अपराध का पर्दाफाश करेंगे।

भारतीय राजनीति का यह नया रुप देखने को मिलेगा क्योंकि जो सत्ता अब तक पंूजी और अपराध के गठजोड़ के आसरे अपनी रईसी बरकरार रखना चाहते है उनके लिए गरीब किसान नई तरह की चुनौती पैदा करने में लगे है।

अब तो किसान आंदोलन पर दुनिया के दूसरे देशों की निगाह भी पडऩे लगी, भले ही इसे अपना मामला कहकर टालने की कोशिश हो रही है लेकिन अमेरिका की घटना हो या पाकिस्तान में टमाटर के बढ़ती कीमत पर प्रतिक्रिया देने वाला या मजा लेने वालों की नींद तो उड़ ही चुकी है। ऐसे में यदि मीडिया की नजर में भी किसानों के साथ हो रहे अत्याचार दिखने लगेगा तब क्या होगा?