शनिवार, 3 अप्रैल 2021

लोकतंत्र की डकैती !

 

सवाल यह नहीं है कि ईवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है या नहीं? सवाल तो यह है कि भाजपा और कम्यूनिस्ट पार्टी को छोड़ जब देश की तमाम पार्टियों ने ईवीएम से चुनाव को संदिग्ध बताकर विरोध किया है तब ईवीएम से चुनाव क्यों? और इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि ईवीएम के विरोध पर केवल भाजपा के लोग ही क्यों चिढ़ते है?

क्या ईवीएम से चुनाव निष्पक्ष नहीं हो रहा है? यह सवाल सबसे पहले 2009 में भाजपा के लालकृष्ण आडवानी ने ही उठाये थे  और फिर एक अन्य भाजपाई नेता नरसिम्हन ने तो ईवीएम से फ्राड चुनाव को लेकर पूरी किताब ही लिख दी है। ऐसे में जब ईवीएम को लेकर संदिग्धता बनी हुई है तो क्या इस देश के लोकतंत्र को हड़पा जा रहा है।

पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में भी ईवीएम को लेकर हर दौर में सवाल उठ रहे हैं। सवाल तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी उठे हैं। याद कीजिए टीएन शेषण का दौर तो लगगता ही नहीं कि चुनाव आयोग नाम की कोई संस्था भी है।

असम में भाजपा प्रत्याशी के बेलेरो से ईवीएम बरामदगी का मामला ही चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफई है। हालांकि चुनाव आयोग ने स्वयं को निष्पक्ष बताने चार अफसरों को निलंबित कर उस बूथ में फिर से मतदान कराने का निर्णय लिया है लेकिन सच तो यह है कि बाकी केन्द्रों में सब ठीक-ठाक हुआ है उसकी गारंटी कौन देगा?

हैरानी की बात तो यह है कि इस पूरे मामले में भाजपा की तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे लोगों में चुनाव को लेकर भरोसा जगे। हालांकि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षियों ने तो भाजपा नेता कृष्णेन्द्रु पॉल की उम्मीदवारी खारिज करने की मांग की है लेकिन पॉल अभी तक भाजपा में बने हुए है।

लोकतंत्र की डकैती पूंजीवाद का शगल है, और पूंजीवाद का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि सत्ता का हस्तांतरण भी पूंजी के बल पर होने लगा है। अब तो सोशल मीडिया में कई तरह के किस्से पढ़े जा सकते हैं। असम हो या मणिपुर यहां तक कि मध्यप्रदेश में सत्ता का हस्तांतरण कैसे हुआ यह किसी से छिपा नहीं है, ऐसे में आम आदमी अपने को ठगा महसूस नहीं करे तो क्या करें।

वोट किसी को भी दो सरकार तो हमारी ही बनेगी का खेल क्या लोकतंत्र की डकैती नहीं है?