शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

बंदरबाट की राजनीती

सरकारी अंधेरगर्दी तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है। कमल विहार योजना का परिणाम भाजपा ने निगम चुनाव में भुगत लिया है। लोग आक्रोशित है कि जमीन भी दो और उपर से पैसा भी दो। कहने को तो यह योजना राजधानी के दो तीन वार्डों तक ही सीमित है। लेकिन वास्तव में इस योजना से प्रभावित लोग शहर के विभिन्न वार्डों में रहते हैं।
जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है सरकारी खर्च में दो गुना वृध्दि हुई है। असंतोष को दबाने बेतहाशा निगम मंडल का गठन कर लाल बत्ती बांटी गई और एक-एक अध्यक्ष के पीछे लाखों करोड़ों रुपये खर्च किए गए यह सब अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
जब छत्तीसगढ़ राय बना तो यही नेता दावा करते थे कि छत्तीसगढ़ के पास अकूत संपदा है और यह देश का पहला टेक्स फ्री राय बन सकता है लेकिन 6-7 सालों में ऐसा क्या हो गया कि वेट बढ़ाना पड़ रहा है और विकास के लिए पैसों की कमी होने लगी। सरकार की अंधेरगर्दी के सिवाय कोई कारण नहीं है। गरीबों के नाम पर बंदरबाट किया जाने लगा और इसका फायदा दूसरे लोगों को मिला। नाई पेटी, बैल जोड़ी, सरस्वती सायकल, जूता, नमक, चावल सभी में घोटाले हुए और आम लोगों के पैसों का बंदरबाट हुआ। निगम-मंडल के नाम पर भाजपा ने अपने अंसतुष्टों को लालबत्ती दी और उस पर करोड़ों रुपये फूंके गए।
सरकार की अदूरदर्शिता सबके सामने है। सरकारी धन से गुलछर्रे उड़ाने की कोशिश में प्रदेश के खजाने को लूटा जाना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। कमल विहार योजना को लेकर हजारों लोगों ने आपत्ति की है इसके समर्थन में कितने लोग है यह सरकार को बताना चाहिए। चंद पूंजीपतियों और बिल्डरों के लिए योजना बनाने की बजाय आम लोगों के हितों में योजना बननी चाहिए। इससे ज्यादा अंधेरगर्दी और क्या होगी कि 65 फीसदी जमीन छीनने के बाद लाखों रुपए भी देना पड़े। राजधानी निर्माण भी सरकार की अंधेरगर्दी है। हम विकास के विरोधी नहीं विकास जरूर हो हमारे मंत्री और अधिकारी बेहतर जगह पर काम करें लेकिन किसी का घर उजाड़ कर विकास करना बेमानी है। आज पूरा विश्व खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है बिल्डरों ने पहले ही खेती की जमीन पर कालोनी बना रखी है। सरकार उद्योगों को खेती की जमीन ही दे रही है ऐसे में जोत बढ़ाने की बजाय सरकार राजधानी के नाम पर खेती की जमीनों को बर्बाद करें तो यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
आखिर नई राजधानी की जरूरत किसे है। रायपुर 70 वार्डों का शहर है और यहां सरकारी जमीनों की कोई कमी नहीं है। सरकार चाहे तो इस छोटे राज्य का चौतरफा विकास कर हर जिला मुख्यालय में हर विभाग का मुख्यालय बनाना चाहिए शहर से लगे सरकारी जमीनों पर भवन बनाकर और रायपुर निगम की जमीनों पर पार्किंग सुविधा बढ़ाकर रायपुर को ही अच्छे ढंग से विकसित किया जा सकता है। सरकार यह सब करने की बजाय गांवों के लोगों के पीछे पड़ी है और 25-30 लाख रुपए एकड़ की जमीन को 5-7 लाख रुपए में खरीदने दबाव बना रही है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
अंधेरगर्दी तो सरकारी जमीनों का धन्ना सेठों को बंदरबाट करना भी है। हमने पहले ही कहा है कि अपोलों के लिए पूर्व मंत्री विद्याचरण शुक्ल को जो जमीन दी गई है वहां अपोलों नहीं बन रहा है तो सरकार वापस ले ले। इसी तरह डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डा. सुनील खेमका जैसे धनाडय डाक्टरों को कौड़ी के मोल सरकारी जमीनें देना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। यदि सरकार को लगता है कि उसकी जमीने फालतू है तो इसे कौड़ी के मोल देने की बजाय इसका और भी उपयोग कर सकती थी लेकिन सिर्फ भाजपा के दमदार नेताओं के रिश्तेदार होने की वजह से कौड़ी के मोल जमीन देना अंधेरगर्दी के सिवाय और कुछ नहीं है।