मंगलवार, 23 मार्च 2021

गजब मोदी सत्ता...!

 

हम जानते हैं कि आप इस बात का यकीन नहीं करेंगे कि मोदी सरकार ने अपनी सत्ता के दौरान उद्योगपतियों का लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपया राईट ऑफ कर दिया है, जबकि मनमोहन सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में दो लाख 20 हजार करोड़ ही राईट ऑफ किया था।

और यह बात वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में सीना ठोक के बताया कि इस वित्त वर्ष में कमर्शियल बैकों ने एक लाख पन्द्रह हजार करोड़ के बैंक लोन राईट ऑफ किया है। और यह बात किसी को शायद ही पता हो कि बैंक की खराब स्थिति को संभालने ही सर्विस टेक्स के नाम पर मनमानी वसूली हो रही है।

भले ही उद्योगपतियों की मित्रता के आरोपों को खारिज कर दिया जाए। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि जिन उद्योगपतियों के लोन बट्टा खाता में डाला गया है उनमें मेहुल चौकसी और विजय माल्या की कंपनी भी शामिल है। ऐसे पचास कंपनी है जिनके करोड़ों रुपये यानी 68,607 करोड़ रुपये को बट्टा खाते में डाल दिया गया है।

इसका दुष्परिणाम आम जनमानस को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि राईट ऑफ की गई रकम की भरपाई के लिए बैक आम आदमी से वसूल करता है, जिसमें सर्विस चार्ज के अलावा सेविंग खाते में ब्याज दर कम कर देता है, मिनिमम बैलेंस चार्ज सहित अन्य चार्ज का बोझ आम जनता पर पड़ता है। ऐसे में किसानों की फसल एमएसपी से लेने पर आर्थिक बोझ बढऩे की बात कहने वाली मोदी सत्ता की हकीकत को समझना होगा।

सवाल यह नहीं है कि सरकार उद्योगपतियों के कर्ज माफ करती है या उसे बट्टा खाते में डाल देती है सवाल तो यह है कि इन कर्जदारों के भाद जाने पर वह रकम की भरपाई आम जनमानस से क्यों?

एक तरफ सरकार स्वयं को जनता का हितैषी बताते नहीं थकती लेकिन दूसरी तरफ वह आम जनता पर नये-नये तरीके से पैसा वसूलने का बोझ डाल रही है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में जब गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, मध्यम वर्ग का जीवन नारकीय होता जा रहा है तब भी सरकार बड़े उद्योगपतियों से ऋण की वसूली करने की बजाय आम लोगों पर कर का बोझ क्यों लाद रही है।

मोदी सत्ता के इस दौर में आम आदमी पर हो रहे इस खेल में निजीकरण का फैसला भी समानता को बढाने वाला है। हमने पहले ही कहा है कि निजीकरण एक तरह से आरक्षित वर्गों पर प्रहार है और उनके जीवन को और कठिन बना देने वाला है ऐसे में जिन लोगों को लगता है कि आरक्षण से देश को नुकसान हो रहा है वे जान ले कि आरक्षण यदि नहीं होगा तो एक बड़ा वर्ग समानता और मुख्यधारा की दौड़ में कभी नहीं आ पायेगा। आरक्षण के बाद भी जाति के आधार पर लोगों की हत्या कर दी जा रही है, ऐसे में बढ़ती महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी में निजीकरण से सरकार भले ही कुछ कमा ले एक बड़ा तपका सब कुछ खो देगा।