गुरुवार, 16 सितंबर 2010

पर्यटन में मोहन समर्थकों पर कहर

देर से ही सही पर्यटन विभाग में घोटालेबाजों और विवादास्पद अधिकारी-कर्मचारियों पर कार्रवाई होनी शुरु हो गई है। पर्यटन मंडल को करोडों रुपए चूना लगने के बाद अधिकारियों की नींद खुली है और कहा जाता है कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के दबाव के बाद भी एमजी श्रीवास्तव, अजय श्रीवास्तव सहित आधा आधा दर्जन लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई है।
उल्लेखनीय है कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कार्यकाल में पर्यटन मंडल में जबरदस्त घपलेबाजी का खेल खेला गया। रोप वे कानून के नाम पर बगैर नाम पता के किसी को दो करोड़ दे दिया गया तो मोटल निर्माण, बाउंड्री निर्माण और घास लगाने के ठेके में करोड़ों रुपए का व्यारा-न्यारा हुआ है। यही नहीं प्रचार-प्रसार और विज्ञापन के नाम पर भी पर्यटन में जबरदस्त घोटाले हुए हैं। बहुचर्चित स्टेशनरी घोटाले में तो आरोपी अफसर संजय सिंह पर रिकवरी निकालने के अलावा कोई कार्रवाई करने की बजाय उन्हें परिवहन जैसे कमाऊ विभाग में भेज दिया गया।
इसी तरह भौमिक, एमजी श्रीवास्तव और अजय श्रीवास्तव को पर्यटन मंत्री का खास होने की वजह से अब तक बचाए जाने की चर्चा रही है। सूत्रों की माने तो एमजी श्रीवास्तव नामक अधिकारी पर कई गंभीर आरोप भी लगे। चरित्र के अलावा धन कमाने जैसे चर्चे पर्यटन मंडल में आए दिन चलते रहे हैं। लेकिन उच्च स्तरीय दबाव के चलते कार्रवाई को टाला जाता रहा है।
बताया जाता है कि आईएफएस तपेश झा ने जब यहां कार्यभार संभाला तो उसके होश उड़ गए और उन्होंने बगैर किसी दबाव के भौमिक को सबसे पहले चलता किया फिर एमजी श्रीवास्तव को भी मंत्रालय भिजवा दिया। इसके बाद दुग्ध संघ से पुलिस होते पर्यटन मंडल पहुंचे अजय श्रीवास्तव को निलंबित किया गया। बताया जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल के इस करीबी अजय श्रीवास्तव दुग्ध संघ में बाबू रहा है और बृजमोहन अग्रवाल उन्हें अपने विभागों में ले जाते रहे हैं। सिमगा कांड उछलने के बाद भी और उनके संविलियन गलत ढंग से किए जाने को लेकर भी अजय श्रीवास्तव पर किसी ने कार्रवाई की हिमाकत नहीं की थी।
यह अलग बात है कि तपेश झा के मोहन समर्थकों के खिलाफ की गई कार्रवाई से कुछ गलत भी हुआ है और कुछ एक को प्रमोशन मिल गया है लेकिन मोहन समर्थकों पर गिरी गाज को लेकर कई तरह की चर्चा है। बताया जाता है कि इस मामले से बृजमोहन अग्रवाल काफी रुष्ट भी है लेकिन वे अपने समर्थकों को यह आश्वस्त करने में सफल रहे हैं कि भटगांव चुनाव के बाद कुछ हो सकता है। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल के दम पर उचकने वाले दूसरे विभाग के अफसरों के लिए भी इसे चेतावनी के रुप में देखा जा रहा है और इसकी शहर में जबरदस्त चर्चा है।

नवभारत का दबाव या सूचना कानून की अनदेखी...

 छत्तीसगढ में किस तरह से सूचना के अधिकार कानून की धाियां उड़ाई जा रही है। बड़े लोगों के दबाव अफसरों पर किस कदर हावी है और नियम कानून की धाियां खुले आम उड़ाई जा रही है।
ताता मामला नवभारत के जमीन आबंटन से जुड़ा है। बताया जाता है कि नियमानुसार पट्टा मिलने के बाद ही निर्माण किया जा सकता है लेकिन नवभारत ने सिर्फ अग्रिम आधिपत्य पर न केवल भवन बना लिया बल्कि पट्टे की शर्तों का उल्लंघन करते हुए भवन के एक हिस्से को किराए से भी दे दिया। जानकारी के अनुसार 85-86 में नवभारत को पट्टा देने का निर्णय लिया गया था। लेकिन उसने सालों बितने के बाद भी करोड़ों रुपए नहीं पटाए। निगम से लेकर नजूल के अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और नवभारत ने अपने पहुंच के चलते भवन तक बना दिया।
दुखद स्थिति तो यह है कि इस दौरान नजूल से लेकर निगम ने सैकड़ों दफे अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान चलाया लेकिन नवभारत पर किसी की नजर नहीं गई। जबकि आम लोगों तक में नवभारत के इस करतूत की चर्चा होती रही। नवभारत का दबाव किस कदर हावी है यह सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब से जाना जा सकता है। इस संबंध में जब हमें पता चला कि नवभारत के मामले में प्रशासनिक रुप से जबरदस्त घपलेबाजी चल रही है और अभी भी नवभारत को पट्टा नहीं मिला है तब इसके लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया गया।
सूत्रों के मुताबिक इस आवेदन से नजूल से लेकर शासन स्तर पर हड़कम्प मच गया और इस कानून के तहत सीधी-सीधी जानकारी देने की बजाय सूचना अधिकारी ने एक लाईन में यह जवाब दे दिया कि यह मामला सचिव राजस्व एवं आपदा प्रबंधक विभाग के पास मंत्रालय रायपुर में है। बताया जाता है कि सूचना के अधिकार कानून के तहत आम लोगों को जानकारी नहीं देने या फिर घुमाफिराकर जवाब देने का यह इकलौता मामला नहीं है अब तक दर्जनों के खिलाफ सिर्फ जुमाने की ही कार्रवाई की गई है। जबकि पूरे प्रदेश में इस कानून की जमकर धाियां उड़ाई जा रही है। बताया जाता है कि जब भी किसी रसूखवाले के संबंध में जानकारी मांगी जाती है लीपापोती का खेल खेला जाता है। हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक नवभारत के मामले में भी इसी तरह का खेल खेला गया है और अवैधानिक कृत्य के खिलाफ कार्रवाई की बजाय सरकार के स्तर पर लीपापोती की जा रही है।