गुरुवार, 30 जून 2011

ट्रू सोल्जर की तैयारी


राजधानी से फिर एक अखबार शुरू हो रहा है , जिसका उद्घाटन ३ जुलाई  मुख्यमंत्री करेंगे , अखबार का संपादन अनिल पुसदकर कर रहे है और यंहा कमलेश चतुर्वेदी ,संजय वर्मा , अरुणेश पहुँच गएँ है 
जोरशोर से तैयारी चल रही है , मालिक भी है हाई-टेक हाई और बाकि के बारे में अभी से कहना ठीक नहीं है, नौकरों पर नजर रखने कैमरा लगाया कगाया है तो प्रिंटिंग के लिए छत्तीसगढ़ में व्यवस्था की गई है , शुभकामना.....

सोमवार, 27 जून 2011

सादगी के साथ जन - सेवा


सरकार के मुखिया ने
स्टार होटल के वातानुकूलित 
कक्ष में अपने करीबियों
की बैठक बुलाई
फिर अपनी इक्छा जताई
सभी नद्यां से सुन रहे थे 
मुखिया के साथ छप्पन-भोग धुन रहे थे
तभी एक किनारे में 
जमा होने लगी भीड़ 
उस डोंगे की नहीं थी खैर
क्योंकि उसमे सजाया गया था पौष्टिक मेवा
और इसी के साथ उपजा
सादगी के साथ जन-सेवा
इसी नारे को प्रचारित किया गया
जनता भी नारे से थी खुश
सिर्फ संसाधन बिक रहे थे काम  था फुस्स
भ्रस्टाचार के आकंठ में
हिचकोले खाने लगे नेता
बेकार होने लगी
सादगी के सादगी के साथ जन-सेवा
सरकार भी यह बात जानती थी
अन्दर ही अन्दर यह मानती थी 
सिर्फ कहने से काम नहीं चलता
साबित भी करना पड़ेगा
तभी बेटे ने मौका दिलाया 
कार्यक्रम भी तय हो गया
 फाइव स्टार की सुविधा वाले पंडाल में
आम लोगों को भी  आने की छुट थी
मेट्रो हलवाइयों के बीच
भोजन की लुट थी
वी आई पी लगी तख्ती के बाद भी
आम लोग खा रहे थे मेवा
यही तो है सरकार की 
सादगी के साथ जन-सेवा.....

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

चमचा गिरी का पुरस्कार



हालांकि छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में चमचागिरी का महत्व तो शुरु से ही रहा है। इस चत्र में दारुखोर से लेकर दलाल तक पत्रकार बन बैठे थे। जिन्होंने कभी एक लाईन खबरें नहीं लिखी हो वे भी संपादक की चमचागिरी करते हुए शहर में रौब जमाने से परहेज नही किया। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के प्रभाव में चंद साल पहले रायपुर आने वाले एक पत्रकार को जब पिछली बार यह पुरस्कार मिला था तभी से पुरस्कारों को लेकर पत्रकार जगत मे तरह तरह की चर्चा शुरु हो गई थी। और इसका ज्यादा इस बार भी चमचागिरी करने वालों ने ही उठा लिया। विधानसभा में इस बार भी जिद करो दुनिया बदलो के उस पत्रकार को पुरस्कार मिल गया जिसकी ड्यूटी प्रेस की तरफ से नहीं लगाई गई थी । इस प्रेस से प्रथम पाली के राजेश व द्वितीय पाली के गोविंद ताकते ही रह गए। और पुरस्कार कोई और ले उड़ा। दूसरा पुरस्कार जिन्हें मिला वह भी उस संसथान को अलविदा कह दिया था। पुरस्कार किस मंत्री के चमचागिरी की वजह से मिला यह सभी जानते हैं।



प्रियंका के नौकरी छोड़ने का राज

इलेक्ट्रानिक मीडिया में अपने कार्यों से धूम मचाने वाली प्रियंका कौशल को छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा। सीधे लकीर देखने वाले तो यही समझ रहे हैं कि शादी ही प्रमुख वजह रही है। अपनी भाषा शैली और कार्यों से पत्रकारिता में स्थापित हुई इस युवती की चले जाने की वजह क्या सिर्फ शादी है या मैंनेजमैंट की नादिरशाही? सवाल सभी का है और जवाब सिर्फ प्रियंका दे सकती है। लेकिन वह भी चुपके से खिसक गई। आखिर छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में अपने तेज तर्रार शैली व काम से अपनी पहचान बनाने वाली प्रियंका को क्यों जाना पड़ा। चमचागिरी के बल पर काम नहीं करने वाले की जगह हमेशा सुरक्षित रहती है और काम करने वाले हमेशा ही प्रताड़ित रहते हैं।

मीडिया में बढ़ते इस खेल से लोग हतप्रभ भी है।



सोनी-पारे में भिडंत

इन दिनों राजधानी में दो पत्रकार प्रफुल्ल पारे और राजकुमार सोनी के बीच की लड़ाई पुलिस तक पहुंच गई है। दोनों की लड़ाई की वजह सिर्फ ब्लॉग में की गई टिपण्णी होगी कहना कठिन है। प्रफुल्ल पारे को भोपाल से आया बता देना या राजकुमार सोनी को भिलाई छाप कह देने से बात नहीं बढ़ सकती। वैसे भी इस शहर के पत्रकारों के लिए न तो प्रफुल्ल पारे ही अनजान है और न ही राजकुमार सोनी। दोनों ही पत्रकारों की अधिकारियों से मधूर संबंध है और वे जाने भी इसलिए जाते हैं।

राजकुमार सोनी ने अपने खिलाफ रिपोर्ट लिखे जाने को षडयंत्र बताया है। यह सच भी हो सकता है क्योंकि हाल ही में उन्होंने एडीजी रामनिवास के खिलाफ यादव ब्रिगेड वाली खबर छापा था। तभी से यह चर्चा रही है कि राजकुमार सोनी से रामनिवास जी नाराज हैं। यह भी कितना सच है या सिर्फ शिगूफा ?

इधर पुलिस के द्वारा जुर्म दर्ज किये जाने को लेकर बिरादरी में नाराजगी है। पहले डीएसपी स्तर के अधिकारी जांच करे तब ही जुर्म दर्जं किया जाना चाहिए। और यह पत्रकारों को भी सोचना होगा कि उनकी कमजोरी का फायदा उठाने में प्रशासन देर नहीं करती।



प्रेस क्लब अध्यक्ष की परेशानी

लगभग पांच से प्रेस क्लब का अध्यक्ष पद संभालने वाले अनिल पुसदकर इन दिनों वसूली बाज पत्रकारों से परेशान है। दामू काड के बाद से प्रेस क्लब मे ऐसे पत्रकारों की शिकायतें कुछ ज्यादा ही आने लगी है। ज्यादातर इलेक्ट्रानिक मीडिया से है। आईडी लेकर धौंस जमाने वाले वसूली के लिए घुम रहे हैं और परेशान लोग अध्यक्ष को फोन कर देते हैं। पांच साल में नाम तो होना ही है और नाम वाले को ही तो लोग फोन करेंगे।



धमकाने वाले अब भी फरार

पत्रकाररिता में अपनी कलम के लिए पहचाने जाने वाले आसिफ इकबाल को धमकाने वाले अब भी पुलिस पकड़ से बाहर है। अब तो पुलिस पर संदेह होने लगा है कि वह जानबुझकर अपराधीयों को नहीं पकड़ रही हैं आखिर पत्रकारों से दुखी भी सबसे ज्यादा पुलिस वाले ही होते हैं और पत्रकार संगठन भी इस मामले में कुछ नहीं बोल रहा है और पत्रकाररिता का दम भाने वाले पत्रकार भी फालो अप नहीं कर रहे हैं। अब क्या कहा जाये।


और अंत में...

पत्रकारिता में चमचागिरी अब संपादको तक ही नही रह गया है संपादक भी मंत्री के चमचे कहलाने लगे हैं। प्रतिष्ठित अखबार के रंगा-बिल्ला की चमचागिरी से नेताओं के चमचों को भी शर्म आने लगी है।

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

मेरी मर्जी...

कमल बिहार को लेकर जिद पर अड़े नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूनत की एक और नई जिद से भले ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को कोई फर्क न पड़े लेकिन न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत पर यही किसी कुठाराघात से कम नहीं है।

अपनी बद जुबान को लेकर विधानसभा से लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में चर्चित नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूनत के बारे में अब यह आम चर्चा हो चल रही है कि वे अपनी मर्जी के मालिक हैं। यदि उन्हें कोई बात जंच गई तो उसे वे पूरा करने की हर संभव कोशिश में लग जाते हैं। इससे चाहे नियम कानून की अनदेखी हो या फिर पार्टी को भी शर्मिदगी क्यों न उठाना पड़े।

दरअसल तरुन चटर्जी को हटाकर मंत्री पद पाने वाले राजेश मूनत के सामने सबसे बड़ी दिक्कत उनके प्रतिद्वंदी बृजमोहन अग्रवाल हैं और उनसे आगे बढ़ने की होड़ की वजह से ही अंधेरगर्दी की इबादत लिखी जा रही है।

कमल बिहार योजना को पूरा करने की जिद में उनका बृजमोहन अग्रवाल जैसे वरिष्ठ मंत्री से भिडंत जग जाहिर है इसके बाद अब वे खमतराई स्थित छठवा तालाब में नियम कानून को ताक पर रखकर सामूदायिक भवन बनाने जिद पर उतर आये हैं। और लोगो के विरोध के बाद भी सामूदायिक भवन के निर्मान के लिए भूमिपूजन भी उन्होंने कर दिया।

एक तरफ सरकार सरोवर हमारी धरोवर का नारा लगाते नहीं थकती दूसरी ओर सामूदायिक भवन बनाकर तालाब को नष्ट करने की कोशिश हो रही है। गिरते जल स्तर और नष्ट होते तालाब ने पर्यावरन संतुलन को बिगाड़ दिया है। एक तरफ सरकार तालाबों को कब्ज़ा मुक्त करने व उसके सौंदर्यीकरन की कोशिश करने में लगा है दूसरी ओर तालाब में सामुदायिक भवन निर्मान की जिद से लोग हतप्रभ है।

कभी रायपुर में सौ से उपर तालाब हुआ करते थे लेकिन नेताओं और अधिकारीयों की मिलीभगत ने तालाबों की इस नगरी का सत्यानाश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखा जिसका दुष्परिनाम आम लोगों को ही अप्रैल माह में ही 40 के तापमान के साथ भुगतना पड़ रहा है। जल स्तर गिरने से शहर वासियों को पानी की तकलीज़ें से गुजरना भी पड़ रहा है।

सामूदायिक भवन निर्मान का सबसे दुखद पहलू यह भी है कि इसके निर्मान के लिए नगर निगम एवं टाउन एंड कट्री प्लानिंग से नक़्शे की स्वीकृति भी नही ली गई। नियमों का हवाला देकर अवैध प्लाटिंग पर बुलडोजर चलाने वाले मंत्री की सामूदायिक भवन निर्मान में नियमों की अनदेखी आश्चर्यजनक है।

इस शहर के पुराने वाशिंदों का कहना है कि रजबंधा तालाब हो या फिर लेंडी तालाब सभी में राजनेताओं और नौकरशाहों की जिद चली और बेदर्दी से तालाब पाट दिये गए। नेताओं की जिद की वजह से ही तालाबो पर कब्जे हुए हैं और शहर वासियों को भीषन गर्मी व पीने की पानी के लिए भुगतना पड़ रहा है।

नेताओं की इस तरह की अंधेर गर्दी आखिर कब तक चलेगी। हर बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर मनमानी करने की प्रवृति के कारन ही प्रदेश भर में विकराल स्थिति उत्पन्न हो गई है। ऐसे अंधेर गर्दी के खिलाफ लड़ाई कौन लड़े।

हालांकि खमतराई के इस छठवा तालाब पर चल रहे अंधेरगर्दी के खिलाफ यहां के पार्षद डॉ. पूर्ण प्रकाश झा ने मोर्चा खोल दिया है और अब जरुरत जनसमर्थन का है हालांकि आमापारा तालाब को पाटने की कोशिश हो रही है और शहर भर से कचरा तालाब में डाला जा रहा है। तेलीबांधा तालाब का एक हिस्सा गौरवपथ का भेंट चढ़ रहा है लेकिन शहर में पर्यावरन की दुहाई देकर अपना फोटो छपवाने वाले गायब हैं।

देखना है कि खमतराई तालाब के इस मामले में पर्यावरन प्रेमी सामने आते हैं या फिर वृक्ष लगाओ फोटो खिचाओ तक ही अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

नक्सली हिंसा मुर्दाबाद...

जन लोकपाल बिल को लेकर अन्ना हजारे के अनशन और फिर इस मामले की जीत ने भले ही एक नए बहस को जनम दिया हो लेकिन वास्तव में इस तरीके ने भ्रष्ट नौकरशाह और भ्रष्ट अफसरों की नींद उड़ा दी है। भले ही कर्नाटक के पूर्व मुख्य मंत्री कुमार स्वामी से लेकर कपिल सिब्बल , सलमान खुर्शिद हो या तारीक अनवर इस तरीके की आलोचना कर रहे हो लेकिन एक बात तो तय है कि इस तरह का आंदोलन आज भी प्रासंगिग है और इमानदारी हो तो ऐसे आंदोलनों को सफलता भी मिलती है।

छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिले नक्सली प्रभावित है और वे दो तीन दशको से अपनी मांगो को लेकर हिंसा का सहारा ले रहे हैं लेकिन हिंसा से कभी भी मांगे पूरी नहीं होती। यही वजह है कि नक्सलियों की मांगे महत्वपूर्ण होते हुए भी उनके प्रति जन-आक्रोश बढ़ता ही जा रहां है।

हिंसा कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता यह बात अन्ना हजारे ने साबित कर दिया है और हमारा भी नक्सलियों से यही आग्रह है कि वे अब भी समझ जांए और गांधी वादी तरीके से लोगों की भलाई की सोचें। आखिर उनके आंदोलन से हर हाल में आम लोगों को ही भूगतना पड़ रहा है। यदि वे अपनी मांगे इमानदारी से रखे तो किसी भी सरकार में हिम्मत नहीं है कि वे आम लोगो के हिंतो की बात नकार दें।

जल-जंगल और जमीन को लेकर चल रहे नक्सली आंदोलन का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि उनकी हिंसा का सर्वाधिक शिकार वे आम लोग ही हो रहे हैं जिनके हितों की दुहाई दी जाती है।

आदिवासी या दूसरे लोग बेवजह मारे जा रहे हैं। अनाथ और अपाहिज होते बच्चों को देखने के बाद भी नक्सलियों का दिल नहीं पसीजता तो कहीं न कही उनकी अपनी सोच है जो आम लोगों के हित कम अपना हित अधिक देखता हो। बहुत संभव है वे विदेशी ताकतो के इशारे पर हिंसा का रास्ता अख्तियार किये हो। लेकिन सच यह है कि गाँधी के देश में हिंसा के लिए कतई जगह नहीं है और अपनी मांगे मनवाने का सबसे अच्छा तरीका गांधीवाद और चुनाव में हिस्सेदारी है।

अन्ना हजारे सहित आम लोगों ने जन लोकपाल की बिल की लड़ाई को दूसरी आजादी की लड़ाई से संबोधित किया था। यह भी सच है कि भ्रष्ट नेता और तानाशाही चलाने वाले अफसरों ने विकास को शहरों तक सीमित कर दिया है और गांवों में आज भी शिक्षा, सवास्थ या दूसरी बुनियादी का अभाव है लेकिन इसके लिए हमारे अपने जनप्रतिनिधि ही दोषी हैं जिन्हें नौकरशाहों पर लगाम कसने या क्षेत्र के विकास के लिए भेजा जाता है लेकिन वे अपने वेतन भत्तों और पेंशन के अलावा भी पैसों के लिए काम करता है।

नक्सली हिंसा अब बंद भी होना चाहिए। नक्सली आंदोलन से जुड़े लोगों को चाहिए कि वे जिन--े हितों की लड़ाई की बात करते हैं उनके आंदोलन से उनका क्या हाल है जरा देखें। सिपाही की नौकरी भी कोई रईस जादे नहीं करते शोषित माने जाने वाले समाज के एक हिस्से की इसमें भागीदारी होती है उन्हें मारने से उनका परिवार का क्या हाल होता है वे पता क्यों नहीं करते।

एक बात वे और समझ लेकिन गांधी वाद की ताकत को पूरे विश्व ने माना है। मिस्र मे तख्ता पलट इसका उदाहरन है। उन्हें कोई शिकायत हो तो उन्हें भी अपनी बात रखने की छूट है पर बंदूको किसी भी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता।

मेरा आग्रह है कि अन्ना हजारे के नेतृत्त्व में देश की व्यवस्था सुधारने के लिए वे भी हिंसा का रास्ता छोड़ इस दूसरी लड़ाई में अपना जीवन होम कर दे अन्यथा नक्सली-हिंसा मुर्दाबाद के नारे लगते रहेंगे और वह आम आदमी मरता रहेगा जो अव्यवस्था से पहले ही मर चुका है।

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

छत्तीसगढ़ को भी अन्ना जैसों कि जरुरत




महाराष्ट्र के आधा दर्जन मंत्रि और चार सौ अफसरों को हटवा चुके अन्ना हजारे के आगे केद्र की सरकार को झुकना पड़ा। इस आंदोलन को शांत छत्तीसगढ़ में भी जिस तरह से समर्थन मिला उसके बाद ने केवल आम लोग उत्साहित हैं बल्कि इस आंदोलन से जुड़े लोग भी समझ गए हैं कि गांधी वाद में आज भी उतनी ही ताकत है जितनी आजादी की लड़ाई के दौरान रही है।

छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार , अफरशाही से आम आदमी त्रस्त हैं। यहां की राजनैतिक स्थिति से तो पता ही नहीं चलता कि काग्रेसी कौन है और भाजपाई कौन ।

अन्ना हजारे के समर्थन में आमरन अनशन करने वाले विजय वर्मा कहते हैं कि अब छत्तीसगढ़ सरकार को भी समझ लेना चाहिए, नहीं तो वे छत्तीसगढ़ में हो रहे भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ेंगे। विजय वर्मा ही नहीं दाऊ आनंद कुमार ,ममता शर्मा, भारती शर्मा ने भी इसी तरह की बात कही है। छत्तीसगढ़ में बिजली पूरे देश में सबसे महंगी कर दी गई इतना ही नहीं उद्योगपतियों को राहत देते हुए केवल 11 से 13 फीसदी टैक्स बढ़ाया गया जबकि आम आदमी के लिए 22 प्रतिशत वृद्धि की गई। सरकार लोगों को पानी तो दे नहीं पा रही है और टैक्स बड़ा रही है।

भ्रष्ट अफसरों को खुलेआम संरक्षन दिया जा रहा है। बाबूलाल अग्रवाल, एम के राउत, सुब्रत साहू, नारायन सिंह, कल्लुरी, रामनिवास ,राजीव श्रीवास्तव जैसे विवादित अफसरों को पदोन्नति व संरक्षन दिया जा रहा है। रोगदा बांध बेचने वाला अफसर पी जाय उमेन को मुख्यसचिव बनाये रखा गया है। मंत्रियों पर खुलेआम भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है और मुख्यमंत्री के विभाग खनिज, जनसंपर्क,और उर्जा में भ्रष्टाचार की नदिया बह रही है। आम लोगों में अन्ना के आंदोलन से उत्साह जगा है जबकि संभावना व उम्मीद भी जताई जा रही है कि शीघ्र ही बड़े आंदोलन छत्तीसगढ़ में भी होगा।

खासकर चुनाव के समय 270 रु. बोनस देने की मांग को लेकर जिस तरह से किसानों आंदोलन साल भर से जारी है उसे अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश मे किसान मोर्चा अन्ना हजारे या गांधी वादी अनशन पर जा सकते हैं।

शांत छत्तीसगढ़ में नक्सली आंदोलन को खतम करने भी कुछ लोग आंदोलन चलाने की बात कर रहे हैं और बस्तर में पदयात्रा या इस तरह का कोई काम करने की योजना भी बनाने की जरुरत बताई जा रही है।

सरकारी मनमानी पर लगाम

 अब तक केद्र सरकार की मनमानी पर न्यायालय फटकार लगाते रही है लेकिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जिस तरह से प्रधान पाठक परीक्षा को रद्द किया है उसके बाद सरकार को सबर लेना होगा कि वह अपनी मनमानी बंद कर दे। लोगों ने अपने हितो के लिए विधायक चुने हैं। भले ही उन्हें दो जून का खाना न मिले लेकिन विधायकों को भूखा रहना न पड़े इसलिए उन्हें वेतन भी दिया जाता है। उन्हें वेतन इसलिए भी दिया जाता है कि वे नौकरशाहों पर नकेल कस कर रखे।


लेकिन क्या सचमुच ऐसा हो रहा है। चपरासी से लेकर आईएएस, आईपीएस सरे आम पैसा खा रहे हैं। और जनप्रतिनिधी इस पर नजर रखने कि बजाय खुद पैसा खाने में लग गये हैं।

प्रधान पाठक परीक्षा रद्द करने के न्ययालीन फैसले के बाद पहला सवाल यह उठने लगा कि आखिर सरकार में बैठे लोग ही नियम से काम न करे तो आम लोगों से नियम पर चलने की उम्मीद वह क्यों करती है। दूसरा सवाल यह है कि अब लोगों को हर छोटी-छोटी बातों के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा। ये दो सवाल ही अन्ना हजारे को जन्म देता है। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है। लूट-खसोट की सारी हदें पार की जा रही है। उपभोक्ता वस्तुओं की कालाबाजारी जमकर हो रही है। बकौल प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी यह सरकार इतनी खराब है कि यदि डीएमके व अन्य गठबंधन दलों की मजबूरी नहीं होती तो अब तक इसे बर्खाश्त कर दिया जाता। भले ही अजीत जोगी पर काग्रेसी होने की वजह से यह कहने का आरोप लग रहा हो लेकिन प्रधान पाठक परीक्षा रद्द होने के बाद क्या दोषी अधिकारीयों को बचाया नहीं जा रहा है। क्या बाबूलाल अग्रवाल, एम के राउत, सुब्रत साहू, नारायन सिंह सहित ऐसे तमाम विवादास्पद अधिकारीयों को प्रमुख पदों पर नहीं बिठाया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने क्या भ्रष्ट और विवादास्पद अधिकारीयों को संरक्षन नहीं दे रखा है। कल्लुरी जैसे आईपीएस अधिकारी जहां जाते हैं अपनी अपनी करतूत से बाज नहीं आते। ऐसे लोगों को नौकरी पर रखने की सरकार की क्या मजबूरी हो सकती है। आम लोगों ही नहीं पार्टी कार्यकर्ताओं से बदतमीजी करने वालों को मंत्री बनाये रखने की मजबूरी नहीं निजी स्वार्थ कहा जाता है। प्रधान-मंत्री मनमोहन सिंह ने जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मजबूरी की बात कही थी तब भी मजबूरी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी। ऐसा नहीं कि गठबंधन की मजबूरी की दुहाई सिर्फ मनमोहन सिंह ने दी है। ऐसी दुहाई भाजपा भी केंद्र की सत्ता में पहुंचने पर देते रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ में न तो गठबंधन की मजबूरी है और न ही अल्पमत की चिंता सरकार भ्रष्ट अधिकारीयों पर नकेल क्यों नहीं कस रहा है। सरकार खुद स्वीकार करती है की रोगदा बांध बगैर जानकारी के उद्योगपति को बेच दिया गया लेकिन न तो इस ब्रिकी को ही रद्द किया जाता है और न ही बेचने वाले मुख्य सचिव पी जाय उमेन पर ही कार्यवाई की जाती। क्या अपना पेट काटकर विधायकों को वेतन और मंत्रियों को सुविधा इसलिए दी जाती है कि वे नौकरशाहों के साथ मिलकर देश को बेचने का कम करे । भाजपा याद रखे की जनता ने उन्हें काग्रेसियों की करतूतों की वजह से चुना है और उनकी करतूतें बंद नहीं हुई तो जनता उन्हें भी बाहर करेगी जैसे केंद्र में वह कर चुकी है। सिर्फ शाखाओं में संस्कार की बात कहने से या दो रुपया किलो चावल देने से पाप नहीं धुल जाता। कर्मो का फल यहीं मिलता है और ईश्वर जब कर्मो का फल देता है तो उसका असर भयावह होता है। यदि सचमुच सरकार के मुखिया ईमानदार हैं तो उन्हें भी प्रधान पाठक परीक्षा सहित अन्य घपलों के लिए नौकरशाह को दंडित करना होगा वरना जिस तरह से भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज ने मनमोहन सिंह पर ऊंगली उठाई थी वैसे ही हजारों उंगलिया डाक्टर रमन सिंह पर उठेगी और फिर छत्तीसगढ़ में भी अन्ना हजारे की तर्ज पर लोग नई आजादी की लड़ाई लड़ेंगे।

रविवार, 10 अप्रैल 2011

डाक्टर साहब ! सत्य वचन ...

दक्षिन बस्तर के ताड़मेटला सहित तीन गांवों में 14 मार्च को छत्तीसगढ़ियों की हत्या , बलात्कार और घर जलाने की घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ग्राउंड रिपोर्ट लेने पहुंचे विशेष आयुक्त हर्ष मंदर ने जब कहा क़ि दंतेवाड़ा क्षेत्र में सरकार क़ि मौजूदगी का एहसास नहीं होता तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह फट पड़े क़ि छत्तीसगढ़ पर कोई भी कुछ भी कह देता है। उन्होंने साथ ही यह भी जोड़ा की अग्निवेश या क़िसी बाहरी व्यक्ति के सलाह या प्रमाण-पत्र लेने की जरुरत नहीं है।



एक बारगी तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना जायज है? क़ि आखिर छ.ग. के बारे में कोई दूसरा क्यों बोले। और इस प्रदेश के बाहर के लोग या गैर छत्तीसगढ़िया कौन होते हैं प्रमाण-पत्र देने वाले।



हमारा प्रदेश है हम अपने ढंग से चलायेंगे? हमे लगता है की बस्तर में कानून व्यवस्था है तो है? कोई दूसरा कैसे कह सकता है? और जब हमारा बहुमत है तो हमारी ही मर्जी चलेगी? और जब यहां क़ि प्रमुख राजनैतिक पार्टियों के नेता कुछ नहीं बोल रहे हैं? तो अग्निवेश या दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओ को क्या पड़ी है।



प्रदेश में सब कुछ ठीक है कानुन व्यवस्था अच्छी है? भ्रष्टाचार हो भी रहा है तो प्रदेश के लोगों का ही ज़यदा हो रहा है। आखिर केद्रीय सरकार के पैसों का इससे अच्छा उपयोग और क्या हो सकता है कि सीधे नेता-अधिकारीयों की जेबों में पैसा जा रहा है।



बाहर के लोग बेवजह बोल रहे हैं। छत्तीसगढ़िया तो कुछ बोलते नहीं। बासी खाकर ठंडे हो गये हैं। और हम सरकारी जमीन चाहे डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल को दें या डॉ. सुनील खेमका को दें। खेती की जमीन जिंदल को दें या मोनेट या डीबी पावर को , क़िसी को बोलने का अधिकार नहीं है।



हम कुल बजट का तीन चौथाई हिस्सा अमर अग्रवाल को दें या राजेश मूनत को जब बाक़ि छत्तीसगढ़िया मंत्रि कुछ नहीं बोल रहे हैं तो क़िसी दूसरे को बोलने का कोई हक नहीं है।



डॉ. रमन सिंह जी का यह कहना एकदम वाजिब है क़ि यह हमारा मामला है हम सुलझा लेंगे। छत्तीसगढ़ियों की मौत पर हल्ला मचाने वाले जवानों की मौत पर कहां रहते हैं। बस्तर का हालात काबू पर है और लोग बेवजह हल्ला मचा रहें हैं और नक्सली के खिलाफ हो रही कार्यवाई में 10-20 हजार छत्तीसगढ़िया आदिवासी मारे भी जाते है तो इसे स्वीकार करना चाहिए क़ि अच्छे कामों मे इस तरह की बातें हो जाती है। गांव वाले शिविर में रहना चाहते हैं और सरकार उन्हें रख रही है मरने के लिए थोड़ी न छोड़ दी जाए।



आखिर इतने बड़े नक्सली आंदोलन से निपटने पैसे चाहिए इसलिए पानी, बांध और सरकारी जमीन कौड़ी के मोल ही सही बेचकर राजस्व बढ़ाया जा रहा है। इसके बाद भी पैसे की जरुरत पड़ी तो गांव-गांव मे शराब बिकवाया जा रहा है। और जरुरत पड़ी तो बिजली और पानी के टैक्स में वृद्धि की गई है। छत्तीसगढ़िया समझदार है और यह सब देखकर भी चुप है लेक़िन बाहर से आने वाले नासमझ लोग जबरदस्ती हल्ला मचा रहे हैं। जबक़ि पैसों की जरुरत पड़ेगी तो हम टैक्स और बढ़ायेंगे। विपक्ष हमारे काम से खुश है इसलिए वे कुछ नहीं बोलते तो बाहरी लोग बेवजह उनके बिक जाने क़ि बात करते हैं। अरे हमारी सरकार जनता की सरकार है और काग्रेसी भी तो जनता है कुछ काम उनका कर दिया पैसों की मदद कर भी दी तो इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए। सरकार चलाना आसान नहीं है ये बाहरी लोग क्या जाने क्योंकि ये कभी सरकार में बैठे नहीं इसलिए बैठने वालों से जलते हैं और अनर्गल प्रलाप करते हैं।



हम क्या कर रहे हैं हमारी बुराई करने का हक क़िसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं है। हमारी प्रशंसा करो तो ठीक है। देखते नहीं हम हमारी बड़ाई करने वाले दूसरे प्रदेशों के अखबार वालों को हम हर माह लाखो करोड़ो के रुपये का विज्ञापन देते हैं भले ही उसकी औकात दो कौड़ी की न हो भले ही वह दो-पांच सौ छपते हो। हम तो बड़ाई करने वाले अखबारों को बुलाकर विज्ञापन देते हैं। लेक़िन बुराई बर्दाश्त नहीं करेंगे हमारा राज है ठीक चल रहा है सब गुड-गाड है।और बाहरी लोग भी गुड-गाड ही देखें अन्यथा छत्तीसगढ़ियों की तरह अपनी जुबान चुप रखें उनका भी दारु और भात का इंतजाम कर लिया जायेगा।

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे के समर्थन में ... भगवान उनकी उम्र और बढाये ...

अन्ना हजारे के समर्थन में ... भगवान उनकी उम्र और बढाये ...
अन्ना हजारे के समर्थन में रायपुर में महिलाएं कूद पड़ी है , विप्र महिलाएं ममता शर्मा और भारती शर्मा के नेतृत्व में आज बुढापारा में धरने पर बैठ गए , मुझसे भी रहा नहीं गया और मई भी वंहा जा पहुंचा , अच्छा लगा क़ि राजधानी में कम से कम महिलाये इतनी सजग है , पुरुषो से आगे निकलती महिलाओं को मेरा नमन , भगवान अन्ना हजारे को लम्बी उम्र दें , और रायपुर के पुरुषों को सदबुध्धि .

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

पता नहीं बेटा






बेटा- आईपीएस कल्लुरी एक बार फिर चर्चा में हैं।



पिताजी- हां बेटा, ये वहीं भाजपाई है जो जोगी शासन कल में कल्लुरी के खिलाफ खूब आरोप लगाये थे।



बेटा- पिताजी, तब सरकार की ऐसे अफसरों को नौकरी में रखने की क्या मजबूरी है।



पिताजी- पता नहीं बेटा।



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बेटा- ताड़मेटला कांड को समझने जा रहे काग्रेसी विधायक वापस लौट आये।



पिताजी- हां बेटा, पुलिस उन्हें एक घंटे के लिए गिरफ्तार कर छोड़ दी।



बेटा- तो क्या कांग्रेसी सच में वहां जाना चाहते थे या यह भी राजनीति थी।



पिताजी- पता नहीं बेटा।

रविवार, 3 अप्रैल 2011

हम तो सरे राह लिये बैठे हैं चिंगारी,जिसका जी चाहे चिरागों को जला ले जाए...





पता नहीं छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का कैसा दौर चल रहा है। अखबार मालिक तो सरकारी विज्ञापनों की लालच में फंसे हैं। पत्रकारिता से उनका कोई सरोकार नहीं रह गया है। दमदार पत्रकारों को अपने मतलब के लिए रखते हैं और युज एंड थ्रो की नीति बना रखे हैं।

विज्ञापन की बाढ़ ने अखबारों की बाढ़ ला दी है।राजधानी में पत्रकार कहलाने वालों कि संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ है और इसके साथ ही वसूली बाजों कि भी भरमार हो गई है। भ्रष्ट अधिकारी व मंत्री बेहिसाब भ्रष्टाचार कर पैसे बांट रहे हैं और वसूली बाजों की निकल पड़ी है।

यही वजह है कि अखबारों की बाढ़ तो आई ही है। इलेक्ट्रानिक मीडिया का आई डी लेकर घुमने वालों की संख्या भी बढ़ गई है।

वसूली बाजों की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि वे अपने मतलब के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

उनकी हिम्मत का इससे बड़ा उदाहरन और क्या होगा कि पिछले दिनों कुछ वसूली बाज वरिष्ठ पत्रकार आसिफ इकबाल के घर पहुंच गये और अपने साथ एक वर्दी वाले को भी ले जाकर तीन लाख रुपये की मांग कर बैठे।

आसिफ इकबाल जैसे वरिष्ठ पत्रकार जिन्होंने अपने जीवन में पत्रकारिता का नया आयाम रचा हो। शासन-प्रशासन में जिनकी तूती बोलती हो जिनके सामने आज भी हमारे जैसे जूनियर पत्रकार बैठेने की हिमाकत न कर सके। ऐसे पत्रकार से वसूली के लिए पहुंचना कई सवाल खड़े करता है।

आसिफ इकबाल पत्रकारिता जगत का ऐसा नाम है जिनके तेवर से 6 साल पहले तक के पत्रकार अच्छी तरह जानते हैं। उनके जैसे पत्रकारों की लेखनी और सोच की वजह से ही छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का पूरा देश में नाम रहा है। अच्छे-अच्छे अखबार मालिक तक उनकी खुशामद करते रहे हैं और इस शहर में पदस्थ अधिकारी हो या नेता,उद्योगपति हो या समाजसेवी सभी उनके कम के कायल रहे हैं।

लेकिन इस घटना ने पत्रकारिता के वर्तमान स्थिति को रेखांकित कर दिया है। और यही हाल रहा तो ईमानदार पत्रकारों को अधिकारी या गलत काम करने वाले धमकाने लगेंगे और भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षन में वसूली बाज मजा करते रहेंगे।



और अंत में ...

राजधानी में पत्रकारों की बढ़ती मांग के बावजूद नेशनल लुक के बंद हो जाने के बाद भी कुछ पत्रकार काम पर नहीं लग पा रहे हैं। वजह को लेकर चर्चा सुननी हो तो ‘ प्रेस क्लब अच्छा स्थान है।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

पॉलीथीन के खिलाफ

आज पूरा विश्व पालीथीन से होने वाले नुकसान से त्रस्त हैं और ऐसे ढेरों संगठन हैं जो पॉलीथीन के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं लेकिन इसके बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में तो इसके दुष्प्रभाव दिखने भी लगा है। खासकर शहरी क्षे˜त्र में इसके दुष्परिनाम से आम आदमी ˜त्रस्त हैं। सज़ई व्यवस्था का तो बुरा हाल है नालियां आए दिन जाम हो जाती है और नाली की गंदगी सड़को पर फ़ैल रहा है। इसका दूसरा परिनाम मवेशियों पर पड़ रहा है। खासकर दुधारू पशुओं को इससे बेहद नुकसान हो रहा है।

सरकार इसके बाद भी प्रतिबंध नहीं लगा रही है? सामाजिक संगठनों को जरुर इसकी चिंता है और वे अपने-अपने ढंग से इसके खिलाज़् अभियान चलाये हुए हैं ममता शर्मा के संगठन ने राजिमकुम्भ के दौरान इसके दुष्परिनाम को देखते हुए अपने संगठन के माध्यम से अभियान भी चलाया।

मैं मेरे एक ऐसे मित्र को जानता हूँ जो इस अभियान से जुड़े हुए हैं। आशुतोष मिश्र और उनकी पूरी फैमिली पालीथीन के विरोधी हैं और वे बाजार झोला लेकर ही जाते हैं। पालीथीन के खिलाफ उनके इस अभियान को साधू वाद ऐसे ही बहुत से लोग हैं जिन्होंने पालीथीन के खिलाफ उनका अभियान जारी रहेगा और वे स्व प्रेरना से इसके दुष्परिनाम के खिलाफ न केवल लड़ाई लड़ रहे हैं बल्कि लोगों में जागरन भी पैदा कर रहे हैं।

लेकिन सरकार में बैठे अफसर अपनी कमाई के चत्र में कोई ठोस योजना नहीं बना रहे हैं वे अपनी जेब भरने जन जागरन जैसी बातों का सहारा लेकर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को एक नये झंझट में डाल रहे हैं।

पॉलीथीन के दुष्परिनाम से सभी वाकिफ हैं। बावजूद इसका उपयोग धडल्ले से हो रहा है। शायद इसकी वजह लोगों की जीवन शैली है जो केवल कानून और डंडे का भाषा समझती है। सरकार को भी अब फैसला लेना होगा। और इसके खिलाफ कड़े कानून बनाने होंगे। वरना पालीथीन से पट रहे धरती में पर्यावरन प्रदूषन विकराल रुप लेकर सुनामी जैसी त्रासदी को जन्म देगा और हम सभी हाथ मलते रह जायेंगे।

रविवार, 27 मार्च 2011

आदिवासियों पर अत्याचार,कहाँ है सरकार ?

दक्षिन बस्तर में अराजकता, आदिवासियों के तीन सौ घर फूंके गए, ग्रामीनो की बेरहमी से पिटाई, महिलाओं से बलात्कार , कलेक्टर-कमिश्नर रोके गए। यह हेड लाईन छत्तीसगढ़ के प्रमुख समाचारपत्रों की है जो छत्तीसगढ़ सरकार के क्रिया-कलापों को उजागर ही नहीं कराती बल्कि धुर नक्सली छेत्र में नारकिय जीवन जी रहे आदिवासियों की जिंदगी को भी रेखां-कित करती है और यह सब स्थिति लाने वाली कोई और नहीं छत्तीसगढ़ में बैठी भाजपा की वह सरकार है जिसके मुखिया डा. रमन सिंह की छवि को साफ सुथरा प्रचारित की जाती है। बस्तर के हालात -किस कदर बेकाबू हो गए है यह बताने डॉ. रमन सिंह के सात सालों के आकडें¸ ही काफी है।


डा. रमन सिंह के कुर्सी संभालने के बाद बस्तर के लगभग 500 ग्राम उजड़ गए और हजारों नहीं बल्कि लाखों की संख्या मे आदिवासी शरणार्थी शिविरों में जीवन जीने मजबूर है।

कभी अमेरीका के विकास को लेकर कहा जाता था की वहां लाखों की संख्या में रेड इंडियन (आदिवासियो) को काट डाला गया।

क्या बस्तर में आदिवासियों के साथ सरकार और उसके अफसर ऐसा ही कुछ नहीं कर रहे हैं? क्या तीन गांवों ताड़मटेला, तिमापुर और मोरपल्ली में तीन सौ घरों को फूंके जाने की घटना के बाद भी कोई यह कह सकेगा की वहां सब कुछ ठीक है और सरकार में बैठे अफसर आदिवासियों पर अत्याचार नहीं कर रहे हैं।

घटना के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रभावित छेत्र में जा रहे कलेक्टर-कमिश्नर को पुलिस सुरक्षा के नाम पर रोका जाना क्या अराजकता नहीं है।

वहां की खबर लेकर लौट रहे मीडिया कर्मियों के खिलाफ मामूली घटना को लेकर रिपोर्ट दर्ज करने से लेकर पुरुषों से मारपीट और महिलाओं से बलात्कार की गूंज के बाद भी क्या सरकार यही कहेगी क़ि छत्तीसगढ़ में अफसरों का राज नहीं है।

ऐसा नहीं है क़ि निरीह आदिवासियों पर पुलिस की गुंडागर्दी की छत्तीसगढ़ में पहली बार गूंज उठी है इसी सरकार में ऐसे कई बार पुलिस प्रताड़ना व फर्जी मुठभेड़ की आवाज उठते रही है पर क्या हुआ ?

सवाल और भी -कई हैं। जिसका जवाब भले ही सरकार न दे लेक़िन एक बात तय है क़ि आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर काग्रेसियों की चुप्पी की सजा उन्हें भी मिलेगी। उपर वाला तो है ही।

सरकार इस घटना के बाद क्या करेगी?

नक्सली क़िसी दूसरे देश में नहीं आये हैं वे हमारे ही देश के हैं और हमारी ही व्यवस्था के सताये हुए हैं। भूख,बेरोजगारी, बीमारी और गरीबी के मारे हुए हैं वहां सड़कें नहीं हैं ऐसी जगह में रहने वाले लोग हथियार उठा रहे हैं। व्यवस्था के खिलाफ उस के खिलाफ जो उन्हें कुछ नहीं देता। उनसे सहानुभूति रखना गलत बात नहीं है। ब्यूरोक्रेसी में भी ऐसे लोग हैं जो उन पर सहानुभूति रखता है क्योंकि व्यवस्था से सताये लोगों पर सहानुभूति नहीं रखना भी बहुत बड़ा अपराध है।

रमन सरकार को छत्तीसगढ़ के विकास माडल को दोबारा नए सिरे से तय करना चाहिए वरना यह आग और भड़केगी। कल उड़ीसा के डी एम अगवा हुए हैं और उन्हें छुड़ाने नक्सलियों की मांगे माननी पड़ी। कल डी आई जी से लेकर मंत्री तक अगवा किये जा सकते हैं। उड़ीसा के बहाने सारे देश के मुख्यमंत्री को सोचना पड़ेगा की व्यवस्था नहीं बदली तो आप या आपके बच्चे उन लोगो के चंगुल में फंस जायेंगे जो भूख बीमारी और बुनियादी सुविधा पाने लड़ रहे हैं यह खतरे की घंटी है, इसलिए जो लोग सत्ता में बैठे हैं उन्हें चाहिए --की सुविधा सिर्फ शहरों तक न हो गांवो को भी सुविधा संपन्न बनायें। कम से कम पीने का साफ पानी, सिंचाई की सुविधा व स्वास्थ्य -शिक्षा के मॉडल नये सिरे से बनायें।

घटना पर किसने क्या कहा

डॉ. रमन सिंह (मुख्यमंत्री)-जाँच के लिए कह दिया है.

अजीत प्रमोद जोगी- यह घोर निंदनीय कृत्य है विधानसभा कमेटी की संयुक्त समिति से जांच होनी चाहिए।

स्वामी अग्निवेश (सामाजिक कार्यकर्ता )- पुलिस ज्यादती की न्यायिक जांच होनी चाहिए क्योंकि दंडाधिकारी जांच पर भरोसा नहीं। तभी लोग नक्सली बनते हैं!

विश्वरंजन (डीजीपी)- पुलिस व जिला प्रशासन दोनों सरकार की एजेंसी है अनबन नहीं। जांच कर रहे हैं।

श्रीनिवासलू (बस्तर कमिश्नर)- हमारा पहला मकसद प्रभावितों को राहत पहुंचाना है। गलतफहमी की वजह से रोका गया।

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

पत्रकारिता का नया अनुभव

 वैसे तो आदमी जीवन भर कुछ न कुछ सीखते रहता है। पत्रकारिता  में भी यही सब होता है। रोज नए तरह की  खबरों को  नए तरह से शब्दों  में पिरोना और कुछ न कुछ सीखना लगा रहता है।

वैसे मैंने पत्रकारिता को कभी भी जीविकोपार्जन का  साधन नहीं माना और न ही खबरों को  रोकने की  ही कोशिश  की  लेकिन शायद अब पत्रकारिता का  ढंग बदल चुका  है। यही वजह है की कभी भी दिक्कते  भी आ जाती है यह उन सभी लोगों के  साथ आती है जो पत्रकारिता को  दिल से लगाकर चलते हैं।

ताजा मामला रामकृष्ण  के  भरोसे केयर करने वाले इस अस्पताल का  है जहां विज्ञापन देने के  नाम पर बुलाया जाता है। जहां पहुंचने पर विज्ञापन की  वजाय इस अस्पताल के खिलाफ  छपने वाली खबरों पर इस तरह चर्चा की  जाती है जैसे खबर ही गलत हो। डा€टर की  बजाय उनकी  पत्नी का  व्यवहार अपमानजनक  तो था ही उनकी  भाव भंगिमा भी अपमानजनक  रही। रोकर अपनी बातें रखी गई इस दौरान वहां मौजूद एक  बुजुर्ग द्वारा मानहानि की  धमकी  भी दी गई।

वैसे तो मुझे मुंह फट कहा  जाता है लेकिन  एक  महिला को  रोते हुए चिल्लाना और अपनी मेहनत का  बखान करना सचमुच मुझेस्तब्ध कर  देने वाला था। कभी नहीं डरने का  दावा करने वाला मैं इस अचानक  आये परिस्थिति से डर भी गया। पूरी घटना  के  दौरान ठाकुरराम साहू जेसे वरिष्ठ पत्रकार  भी साथ में थे।

महिला का  विलाप और एक  तरह से दुव्र्यवहार व धमकी  ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की मुझसे गलती कहां हो गई। विज्ञापन के  बहाने बुलाकर इस तरह का  दुव्र्यवहार कीतना उचित था यह तो पाठक  ही तय  रेंगे।

जबकी - खबर गलत थी तो वे सीधे मुझसे शलीन शब्दों  में बात कर सकते थे या मानहानि का दावा भी ठोंक सकते  थे।

मैंने उस महिला को  यह भी समझाने की  कोशिश की  मैं गलत नहीं हूँ मेरे पास जो सबूत थे और मृतक के  पिता का  कथन इलाज में खर्च की  गई और आपके  द्वारा लौटाई गई राशि ही खबर का  प्रमुख  आधार है पर वह तो सुनने को  तैयार ही नहीं थी।

इस घटना के   बाद डा€टर साहब आए। स्वभावतः वे शांत स्वभाव के  है और उनमें  शालीनता भी है उद्बहोंने अपना पक्ष रखते हुए कहा की  खबर छपने से पहले बात कर लेनी थी इस खबर से मेरे अस्पताल का  प्रचार ही हुआ है और मैं चेक  से पेमेंट करके फंसता थोड़ी न। लेकिन  संजीवनी योजना से  दो लाख 45 हजार मिले यदि नहीं मिले तो इतनी राशि क्यों  दी गई और मृतक के  पिता का कथन ऐसा क्यों  है, का  कोई जवाब नहीं रहा।

पत्रकारिता करते  इतने वर्षों में मेरा यह पहला अनुभव था। अपनी तरह का  अनोखा क्योकि  मुझ पर इस दौरान कई तरह के  आरोप भी लगाये गए  जबकि  मैं खबरें लिखता हूँ। सबूतों के  आधार पर। यदि मैं नहीं लिखता तो अखबार मालिक - दूसरों से लिखवा सकता हैं यह बात भी मैने समझाने --की --ोशिश की  पर वे सुनने -को  तैयार नहीं थे।

इस घटना  से मैं बेहद उद्देलित रहा और सोचने लगा की  सभी सबूतों के  बाद भी -कितना जरूरी है सभी पक्षों से चर्चा करना? मेरी गलती कहां थी? और €या विज्ञापन  का  मतलब खबरों से समझौता करना है।

सवाल का  जवाब ढूंढ रहा हूँ उम्मीद  है आप भी सुझाव देंगे।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

सच शराब का , झुठ सरकार का

 नगर निगम और नगर पालिका के चुनाव में जिस तरह से कुर्सी पाने शराब की गंगा बहाई गई वह कुर्मा डय पूर्ण तो  रहा हो उससे भी ज्यादा दुर्भाग्य और दुखद बात प्रशासन की भूमिका रही। शर्मिंन्दगी की सारी हदें तो तब पार हो गई जब प्रशासन यह दावा करता है कि कहीं शराब नही बंटी। प्रशासन की इस बयानी की पोल तो बीरगांव चुनाव में बंटी शराब पीकर अलखराम वर्मा नामक 32 साल का युवक मर गया। प्रशासन ने शराब दुकानें बंद करवा दी थी लेकिन यह युवक युक्त की शराब पीकर मर गया। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो वह तीन दिन से शराब पी रहा था। उसे शराब नेता लोग दे रहे थें ताकि अपने लिए वोट खरीद सके।
    इसके बाद भी प्रशासन की बेशर्मी नहीं गई है उसका दावा आज भी है कि चुनाव में शराब नहीं बांटी गई। सिर्फ शिकायत पर ही कार्यवाही करने की बात है तो हमें कुछ नही करना है लेकिन शायद ही ऐसा कोई चुनाव नहीं है जिसमें इस तरह क हथकंडे नहीं अपनाये जाते है और प्रशासन उन्ही पर कार्यवाही करती है जिसपर हल्ला होता है या फिर शिकायत। यहंा आकर उनके मुखबिर भी फेल हो जाते है और शराब से मौत का सिलसिला चलते रहता है।
    वे लोग भी खुलकर विरोध नहीं करते जो शराब नही पीते क्योंकि उन्हे दुसरों की जान की कोई परवाह नही है। जिस दौर से छत्तीसगढ़ गुजर रहा है और लोग गलत की तरफ से आंखें बंद कर समाज सेवा के माध्यम से अपनी लकीर बहाने में लगे है वे शायद यह भूल गए है कि इस अंधेरगर्दी की आंच कभी न कभी उन तक भी पहुंचेगी तब उनके लिए भी गलत का विरोध करने वाले खड़े नहीं होगें।
    पिछले सालों में दुर्घटना से मौत के आंकड़ो पर नजर डाले तो इन सबके पीछे कहीं न कहीं शराब ही कारण नजर आयेगें। लेकिन सरकार को तो सिर्फ और सिर्फ राजस्व की चिंता है ताकि अपने ऐशो-आराम की सुविधा में किसी तरह की कटौती न हो पाये।
    शराब से घर टुट जाते है गांव और मोहल्ले की शांति भंग हो रही है और अपराध भी बह रहे है। क्या इतनी सी बात सरकार को नहीं मालूम है या वह लोगों को नशे में डूबोकर कुर्सी पर बना रहना चाहती है।
    अधिसंख्य वर्ग या गरीब वर्ग को मुफत की बंटरबोर कर नशे में रखने की सियासत ने इस शांत छत्तीसगढ़ को अशांत कर दिया है। गांव हो या शहर अवैध शराब की गंगा बहाई जा रही है और शराब माफियाओं के इशारे पर शासन प्रशासन नाच रहा है क्या ऐसे ही छत्तीसगढ़ की कल्पना की गई थी।
    अब भी वक्त है छत्तीसगढ़ के हितचिंतकों के लिए कि वे सचेत हो जाए वरना आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ को बिहार या यूपी बनने से रोकना मुश्किल हो जायेगा। आप लोगों का दिन ढलते ही लौट पाने की चिंता में मां-बाप का खुन सूख जायेगा।
    शराब बेचने की सरकारी मजबूरी सिर्फ बहाना है। ऐसे में मौत के सिलसिले रोकने आम लोगों को इसके खिलाफ जमकर खड़ा होना होगा। वरना सरकारी अंधेरगर्दी पर पछताने के अलावा कुछ न बचेगा।

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

रंगगेलियां मनाने वाले जीएम की छुट्टी

एक   अंग्रेजी अखबार के  जीएम जब गायत्री  नगर में रंगरेलिया मनाते पकडाया  तब -किसी  ने नहीं सोचा था कि मीडिया का  स्तर इस तरह से गिर जाएगा। दरअसल डांस क्लास चलाने वाली को अपना फोटो  छपवाने का  शौक कि  यह परिणिति  रही। इस मामले का  खुलासा जब वेदांत  भूमि डाट --काम में हुआ तो नागपुर में बैठे मालिक  नींद से जागे और  जीएम कि  नौकरी  गई। अब लोगों कि  नजर इसके  हिंदी संसकरण छपने वाले रंगा-बिल्ला पर है क्योंकि ब्लाक्मेलिंग से लेकर  शराब-शबाब के ये दोनों भी शौकिन है.

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

दूसरे गांधी की अब जरूरत है।

पूरा देश मंहगाई और भ्रष्टाचार की चपेट में है मंहगाई की असली वजह भ्रष्टाचार है। अनाप -शनाप पैसे कमाने वालों की वजह से ही जरूरत की चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। कांग्रेस से लेकर तमाम राजनेतिक दल भ्रष्टाचार और मंहगाई के खिलाफ बोल रहे है। यहां तक कि न्यायालय ने भी भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर की है लेकिन न तो भ्रष्टाचार ही रूक रहा है।

आम आदमी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के सिवाय कुछ नही कर पा रहा है। ऐसे में अब एक गांधी जी की जरूरत है जो भ्रष्टाचार और मंहगाई के खिलाफ अपना सब कुछ छोड़कर सड़क पर सिर्फ एक लाठी लेकर निकल पड़े। भ्रष्टाचारियो के खिलाफ सामाजिक बहिस्कार जैसे आंदोलन खड़े हो और ऐसे लोगों की संपत्ति राजपत्र करने का कानून बनाने सरकार को मजबूर करे।

गांधी जी की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि मंहगाई के खिलाफ आंदोलन हो। क्या ऐसे व्यक्ति की अब जरूरत नही है जो पूरे देश के लोग एक आव्हान पर हफ्ता भर तक सब्जी खाना बंद कर दे। क्या इससे मंहगाई नही रूक जायेगी। या एक समय ही सब्जी खाने का प्रभावशील आव्हान किया जा सके।

दरअसल मंहगाई का विरोध की बजाय सरकार के विरोध वह भी राजनीतिक स्वार्थ के लिए किये जा रहे है इससे न तो मंहगाई कम हो रही है और न ही आप लोगों की पीड़ा। अनाप शनाप ढंग से पैसे कमाने वाले लोगों ने अनाप शनाप ढंग से खरीददारी कर मंहगाई बढ़ा दी है और सरकार से लेकर विपत्ति दल केवल हल्ला मचा रहे है क्योंकि उन्हें जनता से वोट चाहिए। यदि वोट की मजबूरी नहीं होती तो ये लोग कभी हल्ला ही नही मचाते।

क्या राजनैतिक दलों ने चुनाव में जीतने वाले को टिकिट देने की शर्त रखकर राजनैतिक दलों ने भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा नही दिया है। सत्ता की भूख और सत्ता पाने अनाप शनाप कमाई अपराधियों को संरक्षण देने का खामियाजा आज पुरे देश को मंहगाई के रूप में भुगतना पड़ रहा है।

छत्तीसगढ़ तो लुटेरों के लिए पनाहगार होते जा रहा है। भ्रष्टाचार चरम पर है और सरकार ऐसे लोंगों पर कार्यवाही करने की बजाय उसे बचा रही है। आम आदमी में शराब का जहर खोला जा रहा है। महयपवर्ग चावल योजना से त्रस्त है और पूरा प्रदेश आजक की स्थिति पर पहूंच गया है।

क्या अब भी आप लोगों में से किसी की ईच्छा नही है कि वह इस अराजक के खिलाफ गांधी जी बनकर खड़ा हो सके। विदेशी वस्त्रों की होली जलाने की तर्ज पर सब्जी न खाने की घोषणा करें। भ्रष्टाचारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करें।

पंडित सुन्दरलाल शर्मा, खूब चंद बघेल, शहीद वीर नारायण सिंह की धरती एक बार फिर लहुलुहान है और एक बार फिर गांधी जी कि जरूरत है तो आइये इस आंदोलन को सफल बनायें।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

अंग्रेजी अखबार का जी एम् रंगरेलियां मानते पकडाया , पुलिस के हाथ - पावं फुले बगैर कार्रवाई के छोड़ा


छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है 

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

क्या छत्तीसगढ़ में शराब माफियाओं की चलती है ?

शराब-बंदी सहित विभिन्न मांगों को लेकर आज़ाद चौक स्थित गाँधी प्रतिमा के सामने धरना दे रहे लोगों को यह कहकर पुलिश ने हटा दिया की यह प्रतिबंधित छेत्र है जबकि धरना सिर्फ एक घंटे का है और यह रोज दिया जाना है . पुलिश का कहना था की धरना देना हो तो बुदापारा स्थित धरना स्थल में दो.
धरना देने वालों में दाऊ आनंद कुमार , गणपत सेन नवरतन गोलछा और कौशल तिवारी शामिल है
आज महात्मा गाँधी की प्रतिमा में माल्यार्पण के बाद जैसे ही माम्बत्ति जलाकर धरना पर बैठा गया पुलिश पहुँच गई और चले जाने का फरमान सुना दिया.
इस बात से दुखी आन्दोलन-कारियों ने कलेक्टर से मिलाने का निर्णय लिया है
सवाल यह है की क्या शराब के खिलाफ आन्दोलन दबाये जायेंगे और माफिया इस तरह से हावी हैं की एक घंटे का धरना बर्दाश्त नहीं किया जायेगा
आन्दोलन की अन्य मांग राजधानी निर्माण तब तक रोका जय जब तक छग के गावों में पानी शिक्छा व् स्वस्थ सुविधा न हो जाय, चुनाव की जमानत राशि १०० रुपये से ज्यादा न हो खेती की जमीनों का उपयोग न बदला जाय और सरकारी जमीनों का संरक्षण तथा विदेशो में जमा काले धन की वापसी शामिल हैं.

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

पूर्ण शराब-बंदी को लेकर अखंड धरना ८ फरवरी से


छत्तीसगढ़ राज्य निर्माता दाऊ आनंद कुमार कल ८ फरवरी से पूर्ण शराब-बंदी सहित विभिन्न मांगो को लेकर आज़ाद चौक स्थित महात्मा गाँधी कि प्रतिमा के सामने शाम ५ बजे से अखंड धरना पर बैठेंगे . धरना प्रतिदिन एक घंटे का होगा.
धरने कि प्रमुख अन्य मांग विदेशो में जमा काले धन कि वापसी , खेती कि जमीनों का उपयोग नहीं बदलने, सरकारी जमीनों का संरक्षण व् बंदरबांट बंद करने और छग के गाँवो के विकास व् सुविधा संपन्न के बाद ही नई राजधानी का निर्माण जैसे mudde shamil hai

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

भ्रष्ट, लालची, बेईमान और बेशरम ?

वैसे तो इन दिनों पुरे देश में जनप्रतिनिधियों की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं.सवाल इसलिए भी उठाये जा रहें हैं क्योकि उन्हें उनकी जसव के बदले न केवल वेतन दिया जाता है बल्कि भरपूर भत्ता भी दिया जाता है इसके बावजूद वे जनसेवा की बजे अपना पेट भरने में ज्यादा रूचि रख रहें हैं.छत्तीसगढ़ में भी जनसेवा के नाम पर लुट मची है जिसे जन्हा मौका मिल रहा है वह लुटने में कोई कसार बाकि नहीं रख रहा है, छत्तीसगढ़ में सबसे भ्रष्ट , बेईमान , लालची और बेशरम जनप्रतिनिधि बनाने की होड़ मची हुई है और इस कम में भाजपा और कांग्रेस नेतृत्व भी आगे है
वैसे तो इन दिनों पुरे देश में जनप्रतिनिधियों की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं.सवाल इसलिए भी उठाये जा रहें हैं क्योकि उन्हें उनकी जसव के बदले न केवल वेतन दिया जाता है बल्कि भरपूर भत्ता भी दिया जाता है इसके बावजूद वे जनसेवा की बजे अपना पेट भरने में ज्यादा रूचि रख रहें हैं.छत्तीसगढ़ में भी जनसेवा के नाम पर लुट मची है जिसे जन्हा मौका मिल रहा है वह लुटने में कोई कसार बाकि नहीं रख रहा है, छत्तीसगढ़ में सबसे भ्रष्ट , बेईमान , लालची और बेशरम जनप्रतिनिधि बनाने की होड़ मची हुई है और इस कम में भाजपा और कांग्रेस नेतृत्व भी आगे है.




छत्तीसगढ़ में इन दिनों किसानो के पैसों का गिफ्ट और उसमे भी भ्रष्टाचार का मामला सुर्ख़ियों में हैं लेकिन कोई भी नेता गिफ्ट लौटने तैयार नहीं हैं, लगता है जैसे मुफ्त-खोरी की आदत ने उनकी सारी नैतिकता को निष्ठुर बना दिया है उनमे इतनी भी शर्म नहीं बची है की वे मामले का खुलाशा होने के बाद गिफ्ट लौटा दे या उन्हें इस बात की चिंता भी नहीं है की लोग क्या कहेंगे वे शायद भूल गए हैं की जनता यदि इस मामले में सड़क पर आ गयी तो क्या होगा,उन्हें जनप्रतिनिधियों की पिटाई,चप्पल मरने की घटना भी यद् नहीं रहा यदि ऐसा ही चलता रहा तो जनता के पास क्या रास्ता होगा ? क्या बेशरम लिखाकर टांगने या जगह-जगह अपमान करने पर ही ये सुधरेंगे या इन्हें ठीक करने कोई और रास्ता निकला जायेगा . अब जनता ही तय करेगी की उसने किसे चुना है और छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा भ्रष्ट, लालची, बेईमान और बेशरम नेता कौन है ? वैसे हमने बता दिया है चावक-चौराहों पर भी नाम लिखे जायेंगे और यह कम जनता ही करेगी तभी शायद किसानो के पैसों का गिफ्ट लौटाया जायेगा या बड़े नेताओ को शर्म आएगी ?



सोमवार, 24 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ में अब तक के सबसे बड़े शराब-बंदी आन्दोलन की तैयारी

अखंड धरना में बैठेंगे दाऊ आनंद कुमार, कई और मांग भी शामिल
छत्तीसगढ़ में शराब खोरी की वजह से बाद रहे अपराध को देखते हुए दाऊ आनंद कुमार ने चिंता जताई है और महंगाई व् भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करने का निर्णय लिया गया है . दाऊ आनंद कुमार का कहना है कि राज्य बनाने के दस  वर्ष में अपराध ही नहीं भ्रष्टाचार भी बड़ा है हमने ऐसे राज्य कि कल्पना कतई नहीं कि थी इसलिए वे एक बार फिर राज्य के लोगों कि खुशहाली के लिए अखंड धरना पर बैठने का निर्णय लिया है.
इस आन्दोलन कि प्रमुख मांग छत्तीसगढ़ में पूर्ण शराब-बंदी लागु करने के आलावा विदेशों में कला धन जमा करने वालों का नाम उजागर करने , चुनाव में जमानत राशि १०० रुपये से अधिक नहीं रखने, छत्तीसगढ़ में सरकारी जमीनों का संरक्षण तथा घोटाले बज शासकीय सेवकों को तत्काल बर्खाश्त करने जैसी मांग शामिल है.
दाऊ आनंद कुमार वाही आन्दोलन करी हैं जिन्होंने राज्य निर्माण के लिए तब तक धरना जरी रखा था जब तक राज्य नहीं बन गया , शुरुवात में राज्य निर्माण के अखंड धरने का सब उपहास उड़ाते रहे लेकिन आन्दोलन विरोधी विद्या-चरण शुक्ला ने भी आन्दोलन किया वाही राज्य निर्माण कि मांग करने वाली भाजपा ने भी आन्दोलन का समर्थन किया.
मार्च-अप्रैल में शराब ठेका को देखते हुए आन्दोलन कि तिथि शीघ्र घोषित कि जाएगी और इसका विस्तार भी पुरे प्रदेश व् देश में करने कि तैयारी है.

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

सुब्रत साहू को सरकार का संरक्षण , कांग्रेसी फिर चुप

सुब्रत साहू वैसे तो कई मामले में विवादस्पद रहे है इसके बाद भी उन्हें हर बार महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जाता रहा है . धमतरी कांड में तो उनकी नौकरी तक जाने की बात कही जाते रही है एक बिमा कंपनी को लाखों का फायदा पहुचने के अलावा उनके खिलाफ दवा छिडकाव में एक करोड़  के घपले का मामला है कहा जाता है की विपणन संघ में उनके कार्यकाल में दवा छिद्काया ही नहीं गया और एक करोड़ का भुगतान तक हो गया छत्तीसगढ़ सरकार एक बार फिर घपला उजागर होने के बाद आई ए एस सुब्रत साहू को बचाने का प्रयास कर रही है और पुरे मामले की लीपापोती में कई आई ए एस भी लग गएँ हैं.आश्चर्य का विषय तो यह भी है की इस मामले में कांग्रेसी भी खामोश होकर अपना बेशर्मी का परिचय दे रहें हैं ? पुरे मामले की स्थिति स्पष्ट होने के बावजूद सुब्रत साहू पद पर बने हुए है और कांग्रेसी भी इतने बड़े घपले पर चुप है
इस   सम्पूर्ण मामले का सबसे दुर्भाग्य जनक पहलू यह है की जिस दवा खरीदी में घपला किया गया है वैसा दवा का छिडकाव इस घटम के न तो कभी पहले हुआ है और न कभी बाद में ही दवा का छिडकाव ही कभी हुआ हा है यानि कहा जा सकता है की पैसा खाने पहली बार यंहा नए तरीके का इस्तेमाल हुआ
जय बोलो बेईमान की !!!!

बुधवार, 19 जनवरी 2011

महंगाई रोकने का उपाय ?

महंगाई को लेकर इन दिनों पूरा देश चिंतित दिखाई पद रहा है.सरकार से लेकर आम आदमी तक चौक - चौराहों में महंगाई के खिलाफ भाषण देते दिखलाई पड़ जातें हैं.लोगों का गुस्सा भी कंही - कंही दिखलाई पड़ रहा है.लेकिन सिर्फ बातें ही हो रही है ?
इसे   रोकने का उपाय का उपाय पर कोई नहीं बोलता ?
हो सकता है मेरे इस उपाय से कोई भी आदमी सहमत न हो पर यही एकमात्र उपाय है ...
??????????????
हिम्मत के साथ ईमानदारी से सभी गलत कारनामों की खिलाफत करते हुए जोरदार ढंग से विरोध.जरुरत पड़े तो आमरण अनशन पर बैठ जाओ भले ही वह किसी के खिलाफ व्यक्तिगत क्यों न लगे.पर सच के लिए खड़े हो जावोगे तो महंगाई ही नहीं दूसरी समस्या भी दूर हो जाएगी .

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

भ्रटाचार का जमाना , महाधिवक्ता है सुराना

सुराना परिवार पर मंदिर की जमीं हडपने का आरोप है हमने इसे छपा था याददाश्त के लिए फिर पढिये ... यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संस्कार है या भारतीय जनता पार्टी का कारनामा है यह तो आम जनता तय करेगी लेकिन प्रदेश के महाधिवक्ता के पद पर जिस देवराज सुराना को बिठाया गया है उनके ही नहीं उनके परिवार जनों के खिलाफ लगभग दर्जनभर से अधिक मामले हैं। मंदिर की जमीन से लेकर आदिवासियों की जमीन हथियाने के अलावा अपने जनसंघी प्रभाव का उपयोग कर काम करवाने वाले व्यक्ति को सरकार कैसे महाधिवक्ता बना दी यह तो वही जाने लेकिन ऐसे व्यक्ति के महाधिवक्ता बनने से क्या कुछ हो रहा होगा सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाया में रहे देवराज सुराना राजधानीवासियों के लिए अपरिचित नाम नहीं है। राजधानी वासियों के बीच उनकी पहचान जनसंघी के अलावा एक वकील की भी है लेकिन अब हम अपने पाठकों को बताना चाहते हैं कि जनसंघ के सेवाभाव के पीछे देवराज सुराना और उनके परिजनों का कारनामा कितना भयावह है कि ऐसे व्यक्ति को महाधिवक्ता जैसे जिम्मेदार पद पर बिठाना कितना घातक हो सकता है। देवराज सुराना और उनके पुत्रद्वय आनंद सुराना, सुरेन्द्र सुराना, पुत्रवधु श्रीमती चेतना सुराना, दामाद विजयचंद सुराना यानी परिवार के अमूमन सभी लोगों पर मंदिर की जमीन, आदिवासियों की जमीन सहित अन्य आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। आश्चर्य का विषय तो यह है कि देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने सरकार ने इस घपलेबाजी को नजरअंदाज तो किया ही है संवैधानिक नियमों की भी अनदेखी की गई है। संविधान के अनुच्छेद 165(1) के अनुसार प्रत्येक राय का रायपाल उसी व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाता है जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित होता है। ऐसे में 82 साल के व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाना स्पष्ट करता है कि किस तरह से आरएसएस या भाजपा के प्रभाव में देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाया गया है। जबकि नियमानुसार 62 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने का पात्र नहीं है। देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने में आरएसएस या भाजपा की भूमिका की चर्चा बाद में की जाएगी। यहां हम उनके व उनके परिजनों के कृत्यों पर प्रकाश डालेंगे तथा हम अपने पाठकों को यह भी बताएंगे कि किस तरह से देवराज सुराना के परिवार की नानेश बिल्डर्स से अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और कैसे कलेक्टर से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों ने उनके प्रभाव में अनैतिक कार्य किया। दरअसल देवराज सुराना और उनके परिवार तब विवाद में आए जब इनकी कंपनी नानेश बिल्डर्स से प्राईवेट लिमिटेड ने गोपियापारा स्थित श्री हनुमान मंदिर की भाठागांव स्थित बेशकिमती जमीन को खरीदा। कहा जाता है कि इस जमीन की फर्जी तरीके से दो रजिस्ट्री कराई गई। इसमें भारतभूषण नामक फर्जी सर्वराकार से दस्तखत कराए गए। इस फर्जी रजिस्ट्री की जानकारी होने पर जब हिन्दू महासभा ने आपत्ति की तो जोगी शासन काल में सन् 2001 में इस पर रोक लगा दी गई। इसके बाद जैसे ही भाजपा की सरकार सत्ता में आई देवराज सुराना पर अपने प्रभाव में इस विक्रय पत्रों को 17-3-04 को पंजीयन करा लिया। इस भूमि को क्रय करने के लिए देवराज सुराना के खाते से दो लाख देवराज सिंह सुराना एचयूएफ के खाते से दो लाख 51 हजार से निकालकर 8 मार्च 2001 को नानेश बिल्डर्स के खाते में जमा किए गए। आश्चर्य का विषय तो यह है कि 2001 में तत्कालीन कलेक्टर ने हिन्दू महासभा की शिकायत पर की गई जांच रपट में यह लिखा है कि यह भूमि श्री हनुमान मंदिर प्रबंधक कलेक्टर रायपुर के नाम दर्ज होने के कारण विक्रय योग्य नहीं है। जांच प्रतिवेदन में मुख्यालय उपपंजीयक एवं तत्कालीन तहसीलदार रायपुर के विरुध्द कार्यवाही किया जाना बताया गया है एवं जिला पंजीयक रायपुर को लिखा है कि भविष्य में अग्रिम आदेश तक कोई रजिस्ट्री ना किया जाए। बताया जाता है कि 2004 में अपने प्रभाव पर इस जमीन की रजिस्ट्री कराने के बाद जब विवाद बढ़ता दिखा तो नानेश बिल्डर्स ने यह जमीन रवि वासवानी और सुशील अग्रवाल रामसागरपारा को बेच दी। इस पर जब हिन्दू महासभा ने पुन: आपत्ति की तो तहसीलदार ने नामांतरण रोक दिया है और जब मामला उलझता दिखा तो विक्रय की गई जमीन का नानेश बिल्डर्स ने आश्चर्यजनक रुप से अपने नाम पर डायवर्सन करा लिया। यानी जमीन बेचने के बाद किस तरह से डायवर्सन की कार्रवाई की गई होगी समझा जा सकता है। जबकि अब भी भू-अभिलेखों में सुशील अग्रवाल एवं रवि वासवानी वगैरह का नाम भूमि स्वामी के रुप में दर्ज है। इतना सब कुछ होने के बाद भी इन्हें महाधिवक्ता कैसे बनाया गया यह समझा जा सकता है।

सोमवार, 17 जनवरी 2011

निगरानी समिति का सदस्य स्वामिनाथ जयसवाल

केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने स्वामिनाथ जयसवाल [बिच में ] को निगरानी समिति का सदस्य बनाया है . वे छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय फंड के दुरूपयोग की रिपोर्ट देंगे  

क्यों चुप हैं लोग ?

क्यों  चुप  हैं  लोग ? क्या  सरकारें  मनमर्जी चलने के लिए होती हैं ? मंहगाई चरम पर है, किसानो की जमीने उद्योगपतियों को बेचीं जा रही है , छत्तीसगढ़ में तो जमीन - जंगल-पानी और बांध तक बेचीं जा रही है , विरोध करने वालों पर लाठियां बरसी जा रही है और कांग्रेस बेशर्मी से तमाशा इसलिए देख रही है ताकि राजनैतिक फायदा उठाया जा सके .
क्या आम लोगों को अपने भविष्य की चिंता नहीं है ? या वे अब भी दो वक्त की रोटी के लिए ही स्वार्थी बन कर रह गए है , क्या फिर महात्मा गाँधी की तरह किसी को निकलने की जरुरत है ताकि सरकारों की मनमानी रोकी जा सके ?

शनिवार, 15 जनवरी 2011

बधाई हो

मकर संक्रांति की बधाई हो
अब आपका राशि क्या होगा क्योंकि अब १३ राशि हो गयी है मै अपना पता कर रहा हु ,पता चलते ही सूचना दूंगा

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

नए सफ़र में ...

पत्रकारिता  को  लेकर  हमेशा  से  ही  मेरी  अपनी   सोच  रही  है  शायद  यही   वजह  है  की  मै  एक  संस्थान  में  कभी  भी  टिक  कर  नहीं  रह  सका .

ऐसा  एक  बार  फिर  हो  गया  और  इस  बार  बुलंद -छत्तीसगढ़    छुट  गया  .लक्ष  बड़ा  है  या  फिर  सफ़र  बड़ा  है  यह  मै  नहीं  जानता   लेकिन  ‘बुलंद ’ छुटने  पर  दुखी  भी  हूँ .सोचा  था  ‘बुलंद ’   के  माध्यम  से  नई  आज़ादी  की  लड़ाई  पूरी   कर  लूँगा  पर  इश्वर  को  शायद  कुछ  और   मंजूर  है .हालाँकि  न  तो  मैंने  कभी  कोई  काम  किसी  के  भोरेसे  पर  किया  और  न   उन  लोगों  में  से  हूँ  जो  भाग्य  के  भरोसे  सब  कुछ  छोड़   देते  है  .

अपने  काम  पर  जरुर  मुझे  भरोसा  रहा  है   और  आज  भी  भरोसा  है  की  सुचारू  व्यवस्था  बनाने  के  लिए  गलत  पर  प्रहार  करना  ही  होगो  , गलत  के  खिलाफ  खड़ा  होना  ही  होगा  , गलत  के  खिलाफ  खुलकर  बोलना  ही  होगा   भले  इसके  एवज  me  अपने  कुछ  लोगों  की  नाराजगी  मोल  क्यों  न  लेनी  पड़े  .

‘बुलंद ’के  लगभग  दो  साल  का  साफ आर  झंझावातों  से  गुजरा  खबरे  रोकने  का  दबाव  के  साथ  हार  बार  अखबार  छाप  सकने  के  अलावा  खबरों  पर  कारवाई  की  चिंता  भी  काम  नहीं  थी  लेकिन  कहा  जाता  है  की  अच्छा  सोचोगे  तो  अच्छा  होगा  शायद  इसकिये  सब  कुछ  अच्छा  हुआ 

नए  साल  के  सफ़र  में  अब  कौन  माध्यम  होगा  नहीं  कह  सकता  लेकिन  धर  और  पैनी  हो  और  जिस  तरह  से  मुझे  सबका  प्यार  ‘बुलंद ’में  लड़ाई  के  दौरान  मिला  और  नए  लोग  भी  जुड़े  वैसा  ही  आगे  भी  चले  नई  आज़ादी  की  इस  लड़ाई  में  और  भी  लोग  jude aur जो  जुड़े   है  उनके  प्यार  के  भरोसे  फिर  कुछ  कर  सकूँ  इसी  आशा  के  साथ  नए  माध्यम  की  तलाश  है .  ..