मंगलवार, 29 मार्च 2011

पॉलीथीन के खिलाफ

आज पूरा विश्व पालीथीन से होने वाले नुकसान से त्रस्त हैं और ऐसे ढेरों संगठन हैं जो पॉलीथीन के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं लेकिन इसके बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। छत्तीसगढ़ में तो इसके दुष्प्रभाव दिखने भी लगा है। खासकर शहरी क्षे˜त्र में इसके दुष्परिनाम से आम आदमी ˜त्रस्त हैं। सज़ई व्यवस्था का तो बुरा हाल है नालियां आए दिन जाम हो जाती है और नाली की गंदगी सड़को पर फ़ैल रहा है। इसका दूसरा परिनाम मवेशियों पर पड़ रहा है। खासकर दुधारू पशुओं को इससे बेहद नुकसान हो रहा है।

सरकार इसके बाद भी प्रतिबंध नहीं लगा रही है? सामाजिक संगठनों को जरुर इसकी चिंता है और वे अपने-अपने ढंग से इसके खिलाज़् अभियान चलाये हुए हैं ममता शर्मा के संगठन ने राजिमकुम्भ के दौरान इसके दुष्परिनाम को देखते हुए अपने संगठन के माध्यम से अभियान भी चलाया।

मैं मेरे एक ऐसे मित्र को जानता हूँ जो इस अभियान से जुड़े हुए हैं। आशुतोष मिश्र और उनकी पूरी फैमिली पालीथीन के विरोधी हैं और वे बाजार झोला लेकर ही जाते हैं। पालीथीन के खिलाफ उनके इस अभियान को साधू वाद ऐसे ही बहुत से लोग हैं जिन्होंने पालीथीन के खिलाफ उनका अभियान जारी रहेगा और वे स्व प्रेरना से इसके दुष्परिनाम के खिलाफ न केवल लड़ाई लड़ रहे हैं बल्कि लोगों में जागरन भी पैदा कर रहे हैं।

लेकिन सरकार में बैठे अफसर अपनी कमाई के चत्र में कोई ठोस योजना नहीं बना रहे हैं वे अपनी जेब भरने जन जागरन जैसी बातों का सहारा लेकर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को एक नये झंझट में डाल रहे हैं।

पॉलीथीन के दुष्परिनाम से सभी वाकिफ हैं। बावजूद इसका उपयोग धडल्ले से हो रहा है। शायद इसकी वजह लोगों की जीवन शैली है जो केवल कानून और डंडे का भाषा समझती है। सरकार को भी अब फैसला लेना होगा। और इसके खिलाफ कड़े कानून बनाने होंगे। वरना पालीथीन से पट रहे धरती में पर्यावरन प्रदूषन विकराल रुप लेकर सुनामी जैसी त्रासदी को जन्म देगा और हम सभी हाथ मलते रह जायेंगे।