शनिवार, 26 जून 2010

इसलिए जनसंपर्क करता है दादागिरी

छत्तीसगढ़ जनसंपर्क हो या इसकी सहयोगी माने जाने वाली संवाद हो भ्रष्टाचार की गंगा बहने लगी है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के इस विभाग की करतूतों पर किताबें लिखी जा सकती है। संविदा नियुक्ति से लेकर विज्ञापनों में कमीशनखोरी की बात हो या नियम-कानून की बात हो। इस विभाग में इन सबका कोई महत्व नहीं है।
कहने को तो इस विभाग का काम सरकार और मुख्यमंत्री की छवि बनाना है लेकिन वास्तव में इन दिनों जनसंपर्क-संवाद के अधिकारी ही सरकार और डा. रमन सिंह की छवि बिगाडऩे में लगे हैं। यहां हो रही अनियमितता की खबरें नहीं छप पाती क्योंकि अखबारों को विज्ञापन यहीं से मिलता है इसलिए स्वेच्छाचरिता यहां चरम पर है। संविदा नियुक्तियों में जिस तरह की मनमानी हुई है और प्रकाशन से लेकर विज्ञापन में जिस तरह से कमीशनखोरी की गई है उससे यहां के कई अधिकारियों के चरित्र पर भी उंगली उठाए जाने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इसकी शिकायतें मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंची है लेकिन कार्रवाई कभी नहीं हुई। दरअसल 40 करोड़ के घपले की कहानी आडिट आपत्ति के बाद सामने आ चुकी है लेकिन दुनियाभर की खबरें छापने वाले स्थानीय अखबार इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।
कलेक्टरों से लेकर सचिवों तक को धमकाने की ताकत रखने वाले इस विभाग के अफसरों का यह दंभ है कि वे यह कहते नहीं थकते कि छवि बिगाड़ देंगे। अब भला मुख्यमंत्री का ये लोग कौन सी छवि बना रहे हैं यह तो वही जाने लेकिन आम आदमी के सामने सरकार की छवि क्या रह गई है किसी से छिपा नहीं है।
और अंत में....
संवाद में चल रहे मनमाने संविदा नियुक्ति और 40 करोड़ की घपले की कहानी को लेकर एक कांग्रेसी नेता को प्रेस कांफ्रेंस की सलाह दी गई तो उसका जवाब था। अरे भैय्या पर्यटन के पत्रकार वार्ता का हश्र देखे हो। संवाद के खिलाफ कांफ्रेंस ली तो उतना भी नहीं छपेगा।