शनिवार, 20 मार्च 2021

कैसे खुश रहें?

 

विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट में भारत फिर फिसल गया! हमारी स्थिति से बेहतर तो पाकिस्तान है, पाकिस्तान की बात इसलिए कही जा रही है कि हमारी खुशहाली छिनने के आरोपियों ें से एक पाकिस्तान को भी माना जाता है और नफरत और अलगाव का बीज बोने वाले पाकिस्तान को हमसे बदतर बनाते रहते हैं।

ऐसे में उस सपने की हकीकत को समझना होगा, जो अच्छे दिन आयेंगे के जुमले के साथ आम जनमानस को दिखाया गया था, ये उन कट्टरपंथियों और कुंठित हिन्दुओं के लिए भी चेतावनी है जो एक धर्म विशेष पर निशाना साधकर स्वयं को श्रेष्ठता की श्रेणी में स्थापित करना चाहते है। बोया पेड़ बबू का तो आम कहां से होय की कहावत को चरितार्थ करते सत्ता के लिए दो ही मूल मंत्र है, पहला अपनी सत्ता बरकरार रखना और दूसरा सत्ता की रईसी बरकरार रखना इसके लिए देश जल जाये या लोग टेक्स के बोझ से नारकीय जीवन जीने मजबूर हो इससे न राजतंत्र में मतलब था और न ही लोकतंत्र में ही इसका मतलब रह गया है।

एक दो जनप्रतिनिधियों की गरीबी और सादगी जब खबर बेन या उसे मिसाल के तौर पर पेश किया जाए तो इसका साफ मतलब है कि बाकी लोग जनता के सीने पर पैर रखकर अपनी रईसी को स्थापित कर रहे हैं।

जिस देश में प्रधानमंत्री ने 32 रुपया रोज देकर किसानों को सम्मान देने का दावा करते हैं उसी देश में पेट्रोल डीजल में एक लीटर में 33 रुपए वसूले जा रहे हो उस देश में खुशहाली कैसे आयेगी।

खुशहाली नफरत से कभी नहीं आती है। खुशहाली के लिए जितने भी आवश्यक तत्व है उनमें विद्वेष, नफरत, भेदभाव, अलगाव का कोई स्थान नहीं है और जब सत्ता ही नफरत की राजनीति पर टिकी हो तो खुशहाली की कल्पना ही बेमानी है।

याद कीजिए वो पुराने दिन जब अभाव में भी लोग खुश थे लेकिन अच्छे दिन के सपने की चाह ने हमें आज विश्व सूची में कहां खड़ा कर दिया है।

सत्ता पूरी तरह कर्ज में डूब चुका है और देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने लगातार सरकारी सम्पत्ति को बेचा जा रहा है। ऐसे में यदि कोई नौकरी की कल्पना करे तो इसका मतलब क्या है? कर्ज में हर राज्य डूबा हुआ है, लाखों करोड़ों के कर्ज की स्थिति यह है कि कोई भी राज्य सरकार पटा पाने की स्थिति में नहीं है, वह केन्द्र की ओर ताक रहा है और केन्द्र सरकारी सम्पत्ति बेचकर अपनी रईसी को बरकरार रखना चाहता है।

पिछले सालों में देश की स्थिति के लिए सिर्फ कोविड को जिम्मेदार ठहराकर अपनी जिम्मेदारी से कोई भई सत्ता नहीं बच सकती।

हमने पहले ही कहा है कि सत्ता के शीर्ष में बैठे लोगों का आचरण, विचार ही महत्वपूर्ण होता है और यह सब झूठ, अफवाह और नफरत की बैशाखी पर टिका हो तो देश खुशहाली के रास्ते पर चल ही नहीं सकता। तब आज किसान आंदोलित है कल युवा, मजदूर से लेकर ऐसे लोग आंदोलित होंगे जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

प्रसन्नता आपसी सद्भाव, प्रेम के बीच फलता फूलता है, कुंठा हमेशा ही नुकसानदायक होता है। आप सिर्फ मुस्लिम राजाओं के अत्याचार को उभर कर वर्तमान पीढ़ी पर दोष नहीं दे सकते, या हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर आतंकवादी मुस्लिम क्यों के सवाल को उभारकर आप उन लोगों की करतूत को नहीं नकार सकते जो आज भी दलितों पर अत्याचार कर रहे है, महिलाओं के पहनावे पर अपनी बीमार सोच को लाद रहे हैं यह भी एक तरह का आतंक है जो समाज के खुशहाली के रास्ते का रोढ़ा हैं। खुश रहें?

विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट में भारत फिर फिसल गया! हमारी स्थिति से बेहतर तो पाकिस्तान है, पाकिस्तान की बात इसलिए कही जा रही है कि हमारी खुशहाली छिनने के आरोपियों ें से एक पाकिस्तान को भी माना जाता है और नफरत और अलगाव का बीज बोने वाले पाकिस्तान को हमसे बदतर बनाते रहते हैं।

ऐसे में उस सपने की हकीकत को समझना होगा, जो अच्छे दिन आयेंगे के जुमले के साथ आम जनमानस को दिखाया गया था, ये उन कट्टरपंथियों और कुंठित हिन्दुओं के लिए भी चेतावनी है जो एक धर्म विशेष पर निशाना साधकर स्वयं को श्रेष्ठता की श्रेणी में स्थापित करना चाहते है। बोया पेड़ बबू का तो आम कहां से होय की कहावत को चरितार्थ करते सत्ता के लिए दो ही मूल मंत्र है, पहला अपनी सत्ता बरकरार रखना और दूसरा सत्ता की रईसी बरकरार रखना इसके लिए देश जल जाये या लोग टेक्स के बोझ से नारकीय जीवन जीने मजबूर हो इससे न राजतंत्र में मतलब था और न ही लोकतंत्र में ही इसका मतलब रह गया है।

एक दो जनप्रतिनिधियों की गरीबी और सादगी जब खबर बेन या उसे मिसाल के तौर पर पेश किया जाए तो इसका साफ मतलब है कि बाकी लोग जनता के सीने पर पैर रखकर अपनी रईसी को स्थापित कर रहे हैं।

जिस देश में प्रधानमंत्री ने 32 रुपया रोज देकर किसानों को सम्मान देने का दावा करते हैं उसी देश में पेट्रोल डीजल में एक लीटर में 33 रुपए वसूले जा रहे हो उस देश में खुशहाली कैसे आयेगी।

खुशहाली नफरत से कभी नहीं आती है। खुशहाली के लिए जितने भी आवश्यक तत्व है उनमें विद्वेष, नफरत, भेदभाव, अलगाव का कोई स्थान नहीं है और जब सत्ता ही नफरत की राजनीति पर टिकी हो तो खुशहाली की कल्पना ही बेमानी है।

याद कीजिए वो पुराने दिन जब अभाव में भी लोग खुश थे लेकिन अच्छे दिन के सपने की चाह ने हमें आज विश्व सूची में कहां खड़ा कर दिया है।

सत्ता पूरी तरह कर्ज में डूब चुका है और देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने लगातार सरकारी सम्पत्ति को बेचा जा रहा है। ऐसे में यदि कोई नौकरी की कल्पना करे तो इसका मतलब क्या है? कर्ज में हर राज्य डूबा हुआ है, लाखों करोड़ों के कर्ज की स्थिति यह है कि कोई भी राज्य सरकार पटा पाने की स्थिति में नहीं है, वह केन्द्र की ओर ताक रहा है और केन्द्र सरकारी सम्पत्ति बेचकर अपनी रईसी को बरकरार रखना चाहता है।

पिछले सालों में देश की स्थिति के लिए सिर्फ कोविड को जिम्मेदार ठहराकर अपनी जिम्मेदारी से कोई भई सत्ता नहीं बच सकती।

हमने पहले ही कहा है कि सत्ता के शीर्ष में बैठे लोगों का आचरण, विचार ही महत्वपूर्ण होता है और यह सब झूठ, अफवाह और नफरत की बैशाखी पर टिका हो तो देश खुशहाली के रास्ते पर चल ही नहीं सकता। तब आज किसान आंदोलित है कल युवा, मजदूर से लेकर ऐसे लोग आंदोलित होंगे जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

प्रसन्नता आपसी सद्भाव, प्रेम के बीच फलता फूलता है, कुंठा हमेशा ही नुकसानदायक होता है। आप सिर्फ मुस्लिम राजाओं के अत्याचार को उभर कर वर्तमान पीढ़ी पर दोष नहीं दे सकते, या हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर आतंकवादी मुस्लिम क्यों के सवाल को उभारकर आप उन लोगों की करतूत को नहीं नकार सकते जो आज भी दलितों पर अत्याचार कर रहे है, महिलाओं के पहनावे पर अपनी बीमार सोच को लाद रहे हैं यह भी एक तरह का आतंक है जो समाज के खुशहाली के रास्ते का रोढ़ा हैं।