शनिवार, 21 अप्रैल 2012

सुकमा कलेक्टर का अपहरण, सुराज दल के अब तक पांच मरे



हवा से जमीन नापना भारी चेतावनी के आगे जिद हावी
 तमाम तरह की गुप्तचर संस्थाओं की चेतावनी के बावजूद ग्राम सुराज चलाना सरकार को भारी पडऩे लगा है। जेड प्लस सुरक्षा और उडऩखटोला से सुरक्षित राजा की सोच के चलते ग्राम सुराज दल के लोगो में दहशत व्याप्त है लेकिन नौकरी की मजबूरी उनकी जान पर बन आई है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक ग्राम सुराज शुरू होने के पहले ही प्रदेश के विभिन्न गुप्तचर संस्थाओं ने अपनी रिपोर्ट में नक्सली क्षेत्रों में ग्राम सुराज चलाने को गंभीर खतरा बताते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतने का निर्देश दिया था। कुछ संस्थाओं के द्वारा तो इसे रद्द करने तक कहा गया था। लेकिन राजा की जिद ने जहां कल बीजापुर के पास तीन जाने ले ली वहीं आज दो जाने गई व सुकमा कलेक्टर एलेक्सपाल मेनन का अपहरण हो गया। इससे पहले विक्रम उसेंडी के पहुंचने से पहले विस्फोट किया गया और कल तो महेश गागड़ा व कलेक्टर बीजापुर बाल-बाल बच गए थे।  वैसे छत्तीससगढ़ में जिस तरह से नक्सलियों ने अपने पैर पसारे है उसे रोकने में सरकार पूरी तरह असफल रही है। ग्राम सुुराज को लेकर भले ही नक्सलियों ने किसी तरह की चेतावनी नहीं दी थी लेकिन गुप्तचर रिपोर्ट से स्पष्ट था कि सरकार अपने जिद पर अड़े रही तो मामला बिगड़ सकता है। ग्राम सुराज को लेकर गुप्तचर रिपोर्टो को नजर अंदाज करने राजा रमन सिंह ने बस्तर से ही अभियान की शुरूआत कर यह संदेश देने की कोशिश की कि सरकार किसी से डरती नहीं है और मुख्यमंत्री को जब कुछ नहीं हो सकता तो बाकि किसी का कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन इस सोच  के चलते राजा सााहब ये भूल गए कि वे जेड प्लस सुरक्षा और उडऩखटोला से यात्रा करते हैं और इस हवाई दौरे ने नक्सलियों के जमीनों पर कब्जे की हकीकत को अंतत: उजागर कर ही दिया और उडऩखटोला की बजाय जमीन पर चलने वाले संकट में आ ही गए। हवा में रहकर जमीन की हकीकत को नजर अंदाज करना राजा की आदत हो सकती है लेकिन गुप्तचर संस्थाओं  की चेतावनी की अनदेखी के पीछे की जिद के चलते आज सुरक्षा दल  के आगे अपनी जान बचाने के लाले पड़ गए है। यह  सर्वविदित है कि नक्सलियों की करतूत घोर निंदनीय है। उनका हमलावर नीति कायरना है और इसका सब तरह निंदा भी हो रहा है। लेकिन सरकार को हवा से उतर कर जमीन की हकीकत को समझना होगा। वैसे तो ग्राम सुराज को लेकर जिस तरह से प्रचार के नाम पर करोड़ों रूपए फूंके जा रहे है इसके औचित्य पर ही सवाल उठ रहे है और यह नौटंकी बनकर रह गया है। वैसे भी जब राजा को यह एन्जॉय का साधन लगे तो इससे बदतर व्यवस्था क्या हो सकती है।
बहरहाल कलेक्टर के अपहरण ने सरकार के दावों की न केवल कलई खोल दी है बल्कि हवा से जमीन नापने की हकीकत को भी सामने ला दिया है कि आखिर गुप्तचर संस्थाओं की रिपोर्ट को नजरअंदाज केवल जिद पूरी करने क्यों की गई।

कालाधन और कोयला...


अखबारों की सुर्खिया रही कि रामदेव बाबा विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने छत्तीसगढ़ से आन्दोलन करेंगे तो दूसरी खबर कानून को ताक में रखकर कोयला खदाने चलानी की हैं। एक दूसरे के पूरक इन खबरों को लेकर बेचैनी बढऩी स्वभाविक हैं। पहले ही कोयले की कालिख पूती सरकार के लिए ये दोनों खबरे क्या मायने रखती हैं। ये हमें नही मालूम लेकिन जिस तरह से यहां होने वाले चुनाव को लेकर राजनैतिक दलों की तैयारियां चल रही हैं उस लिहाज  से कालाधन और कोयला महत्वपूर्ण मुद्दा बनने जा रहा हैं।
रामदेव बाबा लाख कहे कि उनका भाजपा से कोई लगाव नहीं हैं लेकिन यह साबित हो चुका है कि आर एस एस उनके पीछे हैं। बाबा के लिए कालाधन मुद्दा हो सकता है और कंाग्रेस के लिए कोयला मुद्दा बन सकता हैं। लेकिन आम आदमी के लिए आज भी रोटी कपड़ा और मकान ही मुद्दा है जिसे देने में सरकार असफल रही हैं। कालाधन हो या कोयला दोनों का मतलब ही भ्रष्टाचार  से हैं। ऐसे में बाबा के लिए छत्तीसगढ़ में आन्दोलन तब और भी मुसिकल हो जाता हैं जब यहंा की सरकार कोयले की कालिख को पोछ नहीं पाई हैं। हजार करोड़ से ऊपर के इस घपलेबाजी में जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी से लेकर मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के शामिल होने का अंदेशा हो तब छत्तीसगढ़ के लिए कालाधन से महत्वपूर्ण कोयला इसलिए भी है क्योंकि यहां विकास अब भी गावों से कोसों दूर हैं। उद्योगपतियों की सरकार के आरोपों से घिरे छत्तीसगढ़ सरकार पर बाबा का क्या रूख होगा?क्या वे इतने ही बेबाकी से कोयले पर बोल पायेंगे जितनी बेबाकी वे काला धन पर बोल पाते हैं। अन्ना हजारे के आन्दोलन के बाद जब सारी राजनितिक पार्टियों का सुर एक हो, एक जैसे दिख रहे हो तब बाबा के लिए छत्तीसगढ़ में आन्दोलन आसान नहीं हैं। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है डॉ. रमन सिंह के राज में ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां के भष्टाचार के किस्से आम लोगों की जुबान पर नहीं चढ़े हो। खेती की जमीनों की बरबादी से लेकर सरकारी जमीनों को बंदरबार का मामला हों या खदान बेचने से लेकर जंगल काटने तक में सरकार घिरी हुई हैं। निजी अस्पतालों और निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाने सरकारी अस्पताल व सरकारी स्कूलों की दशा किसी से छिपी नहीं हैं। बिजली-पानी के लिए तरसते लोगों की बात हो या उनके दूसरे मौलिक अधिकारों की हनन की बात हो सरकार चौतरफा घेरे में हैं। ऐसे में बाबा सिर्फ काला धन पर बोलकर सरकार को खुश रख सकती है आम आदमी पर उनकी छवि क्या होगा यह कहना कठिन हैं।