बुधवार, 19 दिसंबर 2012

स्वास्थ और नैतिकता ...

स्वास्थ और नैतिकता ...
 अब राजनीति में नैतिकता नहीं रह गई है । रेल दुर्धटना में रेल मंत्री का इस्तीफा इतिहास बन गया है । अब नैतिकता कहीं बची है तो सिर्फ विरोधियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए ही बच गया है ।
छत्तीसगढ़ की राजनीति से तो यह पूरी तरह से गायब हो चुका है । सरकार में बैठे जो लोग कल तक नैतिकता की दुहाई देते नहीं थकते थे आज सत्ता  में बैठते ही केवल पैसे कमाने में लग गये हैं ।
बालोद नेत्र कांड से लेकर बागबाहरा  नेत्र कांड में करीब सौ लोगों की आंखे फोड़ दी गई । लेकिन कुछ नहीं हुआ । न स्वास्थ मंत्री का इस्तीफा आया और न ही किसी डाक्टर पर ही कार्रवाई की गई । आखिर गरिबों की जान की कीमत ही क्या है । Óयादा हल्ला मचेगा तो मुआवजा दे दो । कौन सा अपनी जेब से देना है ।
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है । सरकारी अस्पतालों में घोर लापरवाही चल रही है । और निजी अस्पताल तो किसी स्लाटर हाऊस से कम नहीं रह गया है । और सरकार में बैठे लोगों ने तो अपनी आंखे बंद कर ली है । ऐसे में आम आदमी के सामने क्या स्थिति है यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।
छत्तीसगढ़ सरकार भले ही लाख दावा करे लेकिन वह आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है । स्मार्ट कार्ड घोटाला हो या गर्भीशय कांड का मामला हो । सरकार डाक्टरों के सामने असहाय साबित हो  चुकी है ।
अब तो आम लोगों में यह चर्चा साफ सुनी जा सकती है कि सरकार में बैठे लोगों का ध्येय सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना रह गया है उन्हें आम लोगों की जिंदगी से कोई लेना देना नहीं है ।
एक तरफ मुख्यमंत्री हर व्यक्ति के लिए &0 हजार रूपये तक का मुफ्त ईलाज करने के लिए योजना बना रहे है तो दूसरी तरफ ईलाज के अभाव में या डाक्टरों की लापरवाही से लोगों की जान पर बन आई है । एक तरफ जब सरकारी अस्पतालों में लापरवाह डाक्टर मौजूद हो, दवाई न हो तथा दूसरी तरफ निजी अस्पताल केवल पैसे कमाने की मशीन बन कर स्लाटर हाऊस में तब्दिल हो रहे हो तब &0 हजार नहीं &0 लाख रूपये के मुफ्त ईलाज की योजना बना दिया जाए । आम लोगों को क्या लाभ होगा । 
जब तक सरकार में बैठे लोगों की पैसों भूख समाप्त नहीं होगी किसी भी योजना का कोई मतलब नहीं रह जाता । ऐ वहीं भाजपा है जो सोते जागते राजनैतिक सुचिता और नैतिकता की बात करते नहीं थकते थे लेकिन सत्ता में आते ही सब भूल बैठे । ये वहीं मुख्यमंत्री है जिनकी छवि को लेकर भाजपा ने पिछला चुनाव जीता था लेकिन इस बार वे स्वयं कोयले की कालिख से पूते हुए है ।
ऐसे में मंत्रियों या अधिकारियों से नैतिकता की उम्मीद कैसे की जा सकती है ।
हद तो यह है कि चर्चा यहां तक आ पहुंची है कि आंख फोड़वा कांड के डाक्टरों को बचाने पैसे लिये जाते है । गर्भाशय कांड के दोषी आधा दर्जन डाक्टरों से उन्हें बचाने करोड़ो लिये गये । हद तो यह भी है कि सोची समझी इस गर्भाशय कांड के दोषियों के द्वारा आज भी उन्ही क्लीनिक में मजे से प्रेक्टिस चल रहा है ।
यह कैसी सरकार है जो आंख फोडऩे या गर्भाशय हजम करने या गरीबों के ईलाज वाले स्मार्ट कार्ड का पैसा हजम करने वालों पर कार्रवाई नहीं करती  । हद तो यह भी है कि ऐसे मामले में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी हल्ला मचाने के अलावा Óयादा कुछ नहीं करती । चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर आम लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने वालों को बख्शने की यह कोशिश नैतिकता का कौन सा परिभाषा गढ़ रही है यह तो राजनैतिक दल ही जाने लेकिन यह ठीक नहीं है और यह बात राजनैतिक दलों को समझ लेना चाहिए कि एक और सर्वो"ा सत्ता है जिसकी लाठी बेआवाज होती है