मंगलवार, 7 मई 2019

झूठ बोलो, झूठ बोलो और सिर्फ झूठ बोलो!

झूठ बोलो, झूठ बोलो और सिर्फ झूठ बोलो...
केन्द्र की सत्ता के लिए संघर्ष चरम पर है, अमर्यादित भाषा ने अपनी सारी सीमाएं लांघ दी है, और इसमें कोई दल अछूता नहीं रह गया है। अमर्यादित भीड़ के बीच सोशल मीडिया और वाट्सअप युनिर्वसिटी के जरिये जिस तरह से झूठ परोसा गया वह भी इस चुनाव की पहचान बनी है।
वाट्सअप ने तो बकाया देशभर के सभी समाचार पत्रों और चैनलों में विज्ञापन देकर लोगों से अपील की है कि अफवाहें नहीं खुशियां बांटिये। वाट्सअप के इस विज्ञापन देने की वजह से आप जान सकते हैं कि मामला कितना गंभीर है और अफवाहें किस स्तर पर जाकर फैलाई जा रही है। 
चुनावी फायदों के लिए जिस तरह से सोशल मीडिया का इस्तेमाल हुआ है वह भी चुनाव आयोग के लिए चुनौती तो है ही राजनैतिक दलों के लिए भी गंभीर चुनौती है। एक तरफ जब चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने नए-नए नियम कानून बना रही है तब दूसरी तरफ सोशल मीडिया का इस्तेमाल चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के लिए किया जाना लोकतंत्र के मूल्यों पर प्रहार है।
अमर्यादित भाषा को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कड़ा रुख अख्तियार तो किया है लेकिन इससे उन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा है जो अमर्यादित भाषा के लिए जाने जाते है और न ही राजनैतिक दलों को ही कोई फर्क पड़ा है। राजनीति के गिरते स्तर को अभी और गिरते हुए देखना लोगों की मजबूरी है।
लेकिन हैरान करने वाली बात तो यह है कि इसमें वे लोग भी शामिल होते चले जा रहे हैं जिन्हें राजनीति से कोई खास लेना देना नहीं रहा है। सोशल मीडिया ने तो अफवाह उड़ाने की मशीन बन कर रह गई है। विभिन्न पार्टियों के आईटी सेल के द्वारा वाट्सअप युनिर्वसिटी के जरिये जिस तरह से झूठ परोसा जा रहा है आने वाले वक्त में इसका भयंकर दुष्परिणाम होंगे।
चुनाव तो इस देश में होते रहेंगे लेकिन सत्ता संघर्ष से जिस तरह से आम लोगों में वैमनस्यता का जहर बोया जा रहा है वह इस देश को कहां ले कर जायेगा? कहना कठिन है।
इस चुनाव में नफरत की फैक्ट्री का संचालन किया गया। ये कौन लोग है किसी से छिपा नहीं है। भक्तों की लंबी फेहरिश्त है और उनके सोशल साइट्स  पर आप जाकर देख सकते है कि वे किस हद तक गिरते चले जा रहे है। इससे पहले भी इस देश में चुनाव हुए हैं लेकिन ऐसी कटुता कभी नहीं रही।
संतोष सिंह ने तो फेसबुक में यहां तक लिख दिया कि 23 मई के बाद भक्तों से नाता खत्म। सुख-दुख में भी आना-जाना बंद। योगिता बाजपेयी ने तो आज से ही समाप्त करने की घोषणा की तो कमल शुक्ला ने यहां तक लिखा कि जिन भक्तों को वे पसंद नहीं उनके फ्रेंड लिस्ट से हट जाए। ऐसे सैकड़ों उदाहरण है जो मौजूदा वक्त में कटुता की पराकाष्ठा को इंगित करता है। सिर्फ असहमति होने पर गाली गलौज और धमकी से कोई अछूता नहीं रहा है और नफरत की फैक्ट्री चलाने वालों का तो एक ही काम था कि झूठ बोलो, झूठ बोलो और सिर्फ झूठ बोलो!