बुधवार, 31 मार्च 2010

ये कैसा सम्मान...

उत्कृष्ठ में निकृष्ठ प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ विधानसभा में उत्कृष्ठता अलंकरण समारोह में जो कुछ हुआ वह इस प्रदेश को शर्मसार कर देने वाला है। यह मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सरकारी नुमाईश है या अपमान करने का तरीका यह तो वे ही जाने लेकिन अलंकरण समारोह में मौजूद लोगों की प्रतिक्रिया न केवल तीखी रही बल्कि इसे अपमान समारोह का भी नाम दिया जा रहा है।
1. रसीद टिकिट से पैसा मिला
उत्कृष्ठता अलंकरण समारोह में जिन दो विधायकों व एक पत्रकार को चुना गया उन्हें 21 हजार रूपए नगद दिया गया। कहीं भी पुरस्कार में मिलने वाली राशि के लिए रसीदी टिकिट पर दस्तखत नहीं कराये जाते लेकिन यहां पुरस्कार चाहिए तो रसीदी टिकिट पर दस्ताखत करने होंगे। दबी जुबान पर इसका विरोध हुआ लेकिन पैसा आजकल यादा प्यारा है।
2. राशि में फर्क...
जनसंपर्क द्वारा जारी किए गए प्रेस नोट में पुरस्कार की राशि 25 हजार रुपए बताई गई लेकिन विधानसभा में हुए इस कार्यक्रम के दौरान पुरस्कृत दोनों विधायकों व पत्रकार को केवल 21 हजार रुपए नगद दिए गए।
सम्मानितों के फोटो नहीं
यह घोर नौकरशाही नहीं तो और क्या है कि इतने बड़े सम्मान समारोह के आयोजन का फोटो को लेकर भी सरकारी अधिकारी गणितबाजी करें यानी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खास अधिकारियों ने तय कर लिया कि मीडिया को सम्मान पाने वालों का फोटो नहीं भेजना है केवल रायपाल, विधानसभा अध्यक्ष, बृजमोहन अग्रवाल और मुख्यमंत्री वाला ही फोटो भेजना है।
4. इसलिए खबर नहीं छपा
कहते है राजधानी के एक अखबार के संपादक ने अपने चहेते को उत्कृष्ठ पत्रकार का पुरस्कार दिलवाने के लिए लॉबिंग की थी लेकिन उसकी लॉबिंग धरी रह गई इससे वह इतना नाराज हुआ कि अपने अखबार से उसने यह समाचार ही गायब कर दिया।

मंगलवार, 30 मार्च 2010

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...



छत्तीसगढ़ में शासन प्रशासन में इन दिनों कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश के मुखिया भले ही सर्वे रिपोर्ट के आधार पर स्वयं को असरदार समझते रहे लेकिन प्रशासनिक हल्कों में अंधेरगर्दी बढ़ते ही जा रही है। रमन सिंह के हाथ से शासन-प्रशासन बेकाबू हो चला है। प्रशासनिक अफसर तो 'ढीट' हो गए हैं और स्वेच्छाचारिता चरम पर है।
सर्वाधिक दिक्कत उन मंत्रियों को हो रही है जो आरक्षण कोटे से चुनाव जीतकर मंत्री बने है चूंकि प्रशासनिक कामकाज में 6 साल भी कसावट नहीं आ पाया है। परिणाम स्वरुप सब कुछ उल्टा पुल्टा होने लगा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बायोडीजल और मुफ्त चावल योजना का फ्लॉप शो है। सरकार ने जनहित में योजनाएं तो बनाई लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। प्रशासनिक भ्रष्टाचार का यह आलम है कि दर्जनभर से अधिक सचिव सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने में लगे है और अब तो वे इतना पैसा कमा चुके हैं कि नौकरी छोड़ने तक की धमकी देने लगे है। हर कोई अपने को मुख्यमंत्री का करीबी बताकर मनमानी करने पर उतारू है।
इन दिनों आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम विवाद में है। उन पर प्रशासनिक अधिकारी को थप्पड़ मारने का आरोप है। अधिकारियों ने जब उन पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाया तो मंत्रीजी भी कहां चुप रहने वाले थे उन्होंने भी मोर्चा खोल दिया। जो सरकार के मुखिया आयकर छापे के बाद बाबूलाल अग्रवाल पर कार्रवाई करने में हफ्ता गुजार दिया हो उनसे इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की उम्मीद बेमानी भी है यही वजह है कि दोनों ही पक्ष राजनैतिक रोटी सेकेने लगे है और सड़क पर उतर आए हैं। यह तो सरकारी अंधेरगर्दी का नमूना है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। आदिवासी एक्सप्रेस चलाने के लिए बदनाम हो चुके रामविचार नेताम वैसे भी मुख्यमंत्री के आंख की किरकिरी बने हुए हैं और मुखिया को मौके की तलाश भी रही है ऐसे में पूरे घटनाक्रम से स्वयं को अलग रखने की मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की कोशिश भी बेकार होने लगी है जबकि प्रशासनिक संबंधों की वजह से यह मामला दूसरा भी रूप ले सकता है।
कांग्रेस ने भी इस मामले को तूल देना शुरु कर दिया है और वे मंत्री को हटाने दबाव बना रहे हैं ऐसे में निरकुंश व भ्रष्ट प्रशासन के चलते हुई इस घटना में मुख्यमंत्री भले ही अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर ले लेकिन आदिवासी मंत्रियों ने जिस तरह से समय-समय पर अफसरशाही की शिकायत की है यह उसके दुष्परिणाम का नतीजा है।

सोमवार, 29 मार्च 2010

क्या कानून से विश्वास उठ गया...




इन दिनों छत्तीसगढ़ में अजीब किस्म की पत्रकारिता चल रही है तो इसकी वजह पत्रकारिता का ग्लैमर है। समय-समय पर कानून का पाठ सीखाने वाले अखबार अब कानून हाथ में लेने की न केवल वकालत कर रहे हैं बल्कि आम लोगों को प्रेरित भी कर रहे हैं। पिछले दिनों राजधानी से प्रकाशित हो रहे सांध्य दैनिक छत्तीसगढ ने कानून हाथ में लेने से संबंधित एक विज्ञापन जनहित में प्रकाशित किया। विज्ञापन का उद्देश्य वाकई में जनहित का है लेकिन जनहित से जुड़े मसलों पर इसी तरह से कानून हाथ में लिया जाने लगा तो फिर नक्सली और आम लोगों में फर्क क्या रह जाएगा। क्या नक्सली भी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करते।
हालांकि इस अखबार के संपादक सुनील कुमार एक सुलझे हुए व्यक्ति है लेकिन उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी लेकिन जब सरकार पूरी तरह निकम्मी और भ्रष्ट हो तो अच्छे-अच्छे आदमी का दिमाग खराब हो जाता है शायद तभी कानून हाथ में लेने की बात की जाती है। मुझे रोज सदर बाजार से गुजरना पड़ता है और सेठों की गाड़ियों की वजह से यातायात में घंटों फंसना होता है इस बारे में खूब लिखा भी और कभी-कभी कानून हाथ में लेकर इन खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ कर या करवा देने का विचार भी आया लेकिन मेरे विचार को दूसरे पर थोपने और कानून हाथ में लेने से बचता रहा हूं। लेकिन सुनील कुमार शायद सरकारी करतूतों में अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाए और लोकतंत्र से विश्वास उठ गया।
और अंत में...
इन दिनों पत्रकारों को प्रशासन को चुस्त करने नए-नए उपाय सुझ रहे हैं एक पत्रकार ने प्रेसक्लब में भ्रष्ट तंत्र की आलोचना करते एक मंत्री के खिलाफ खबर बनाने का दावा किया लेकिन दफ्तर पहुंचते ही उनके हाथ कांपने लगे जब पता चला कि नगर भैया के पास उनका दावा पहले ही पहुंच गया और संपादक ने उसे उसकी हरकत के लिए चेतावनी तक दे डाली।

मंदिर के साथ आदिवासियों की जमीन भी हड़पी

घोटालेबाजों का जमाना
महाधिवक्ता है सुराना-2
देते हैं भगवान को गाली इंसा के क्या छोड़ेगा...

छत्तीसगढ क़े महाधिवक्ता बनाए गए देवराज सुराना का संघीय प्रभाव ही है जो उन्हें कुछ भी करने के लिए ताकतवर बनाता है और सरकार का संघीय प्रेम ही है जो हर हाल में आरोपियों को बचाने की कोशिश करता है। देवराज सुराना एंड कंपनी ने गोपियापारा के श्री हनुमान मंदिर की जमीन ही नहीं हड़पी बल्कि आदिवासियों की जमीन खरीदने भी कुचक्र किया और इस पूरे प्रकरण में भाजपाई सत्ता भी उनके हर कदम पर साथ दिया।
दरअसल छत्तीसगढ में भाजपा की सरकार आते ही नई राजधानी और उसके आसपास के जमीनों की कीमत आसमान छूने लगा और इस काम में वे लोग यादा रूचि लेने लगे जो आरएसएस के पृष्ठभूमि से थे या भाजपा की राजनीति करते थे। यह मामला पिछले मामले जैसा ही है जहां मंदिर की जमीन हड़पने फर्जी सर्वाकार खड़ा किया गया तो आदिवासी की जमीन खरीदने अपने नौकर को खड़ा किया। जानकारी के अनुसार ग्राम माना पटवारी हल्का नम्बर 116 स्थित कृषि भूमि जिसका खसरा नंबर 17691-2-3 है जो कि श्रीमती राधाबाई और उनकी तीन पुत्रिया उतरा, चित्रलेखा व रोहणी की है ये सभी गोड़ जाति की है। बताया जाता है कि चूंकि आदिवासियों की जमीन सीधे खरीदने में कानूनी अड़चन है अत: इस काम के लिए सुराना परिवार ने घरेलु नौकर आशाराम गोड़ का सहारा लिया।
लेकिन इससे पहले देवराज सुराना के बड़े पुत्र आनंद सुराना एवं दामाद विजय चंद बोथरा एवं दामाद के पुत्र विनीत बोथरा ने इन आदिवासियों से तीन लाख रुपए एकड़ में सौदा किया और इस जमीन को 6 लाख रुपए एकड़ में जवाहर नगर निवासी अनुराग अग्रवाल से सुराना परिवार ने न केवल सौदा किया बल्कि 11 लाख रुपए एडवांश भी ले लिया। सौदे के बाद अनुराग को जैसे ही पता चला कि यह जमीन आदिवासियों की है तो उसने सौदा रद्द करने की बात कहते हुए पैसे वापस मांगे और जब सुराना परिवार से उन्हें ठगे जाने का एहसास हुआ तो उसने माना थाने में रिपोर्ट लिखा दी जहां अपराध क्रमांक 1603 धारा 420, 406, 467, 468, 34 भादस एवं 3(1) 4,5 अनु. जातिअनु.जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा लगाकर अपराध दर्ज किया गया।
जैसे ही उक्त शिकायत की जानकारी सुराना परिवार को हुई तो सुराना परिवार ने षड़यंत्र रचा और सबसे पहले उसने नाबालिग रोहणी को बालिग बताकर अपने नौकर आशाराम से उक्त भूमि खरीदने रायपुर कलेक्टर में आवेदन लगा दिया और नौकर का निवास स्थान की जगह अपने घर का पता दिया। लेकिन जब मामला बढ़ा तो नौकर आशाराम ने शपथ पत्र दिया कि वह आनंद सुराना का नौकर है और लाखों रुपए की जमीन खरीदने की उसकी औकात नहीं है। कलेक्टर ने तब जमीन खरीदने का आवेदन निरस्त कर दिया। आश्चर्य का विषय तो यह है कि आशाराम के शपथ पत्र के बाद अनिल बिफवार नायक व्यक्ति को खड़ा किया गया और आश्चर्यजनक रूप से संदेहास्पद होने के बाद भी कलेक्टर ने पुनर्विलोकन करके 5.50 लाख रुपया प्रति एकड़ का खरीददार होते हुए भी लगभग 3 लाख रुपया एकड़ में भूमि विक्रय करने की अनुमति प्रदान कर दी और इसी आधार पर जमीन की रजिस्ट्री करा दी गई।
इस मामले का सबसे दुखद पहलू तो यह है कि अनुराग अग्रवाल ने अपने साथ हुए ठगी पर नामालूम कारणों से खामोशी ओढ़ ली और उच्च स्तरीय राजनैतिक दबाव पर पुलिस ने भी मामले को खात्मा पर भेज दिया। जबकि अजाजजा मामले में सरकार व प्रशासन की रूचि होनी चाहिए।

शनिवार, 27 मार्च 2010

अल्ट्राटेक सीमेंट कारखाने से ग्रामीण त्रस्त, सरकार मस्त

हिरमी स्थित अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट में जब से पावर प्लांट का निर्माण हुआ है तब से क्षेत्र की ग्रामीणों की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। यहां धुल-धुआं और ध्वनी प्रदूषण का दुष्प्रभाव ग्रामीण, बच्चों और पेड़-पौधों पर दिखने लगा है। पावर प्लांट का आवाज आए दिन इतना बढ़ जाता है कि लोगों को रातो की नींद हराम हो गई है। हिरमी के उपसरपंच कोंदाराम भारती सहित कई ग्रामीणों ने तथा ललित कुमार वर्मा ग्राम पंचायत बरडीह (सरपंच) बताया कि अचानक रात में तेज आवाज आने से बच्चे रात में जाकर रोने लगते हैं। इस सबसे यादा प्रभाव मात्र 30 मीटर दूरी पर स्थित शासकीय हाईस्कूल हिरमी पर पड़ रहा है जिससे बच्चों की पढ़ाई में सबसे यादा व्यवधान उत्पन्न हो गया है। साथ में बहरेपन की शिकायत आने लगी है। स्कूली छात्र थानेश्वर गायकवाड़ दादूराम ध्र्ुव, रामेश्वर बघेल ने बताया कि इसकी आवाज से सभी छात्र परेशान है तथा कक्षाहाल में छात्रों को शिक्षक की आवाज को शुध्द रुप से व ठीक से सुन पाना मुश्किल हो गया है। इससे निकलने वाला धुआं का प्रभाव पेड़-पौधों, कपड़ों, छत पर भी देखा जा सकता है। जिसके दुष्प्रभाव से खांसी, दमा, टीवी, चर्मरोग आदि की शिकायत भी बढ़ने लगी है। यहां पर्यावरण के नाम पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
निर्माण के नाम पर हजारों पेड़ काटे गए हैं और नए पेड़ लगाने में उनका कोई ध्यान नहीं है। साथ ही प्लांट में आने वाले भारी भरकम ट्रकों के प्रदूषण से सुबह स्वास्थ्य व्यायाम के लिए घुमने जाने में मुश्किल है। इन ट्रकों के धूल के साथ आने जाने वाले लोगों को जान का खतरा बना रहता है। विशेषकर स्कूल आने जाने वाले बच्चों के पालकों को हमेशा दुर्घटना की आशंका से ग्रसित रहते हैं।
सबसे यादा प्रदूषण सकलोर, कुचरौद, हिरमी के ट्रक यार्ड स्थित चौक में देखा जा सकता है। यहां धूल की भारी परत के कारण आना जाना दूर्भर है। एक ओर शासन पर्यावरण नियंत्रण के बड़े बड़े दावे करती है। दूसरी तरफ उनकी खुलेआम धाियां उड़ाई जा रही है। कुछ समय पूर्व ग्रामीणों ने बकायदा हस्ताक्षर अभियान चलाकर इसकी शिकायत माननीय मुख्यमंत्री एवं पर्यावरण मंत्री, मानव संसाधन मंत्रालय दिल्ली में दी गई है। इस पर जांच की जानकारी बकायदा कलेक्टर से प्राप्त हुई है मगर अभी तक आगे की कार्यवाही न होना शासन की कमजोर नीतियों को दर्शाता है। अत: समस्त ग्रामीणों ने इसके उपर तुरंत रोक लगाने की मांग की है।

जो दिखता है वही बिकता है

अखबार की दुनिया भी अपनी तरह की दुनिया है। स्वयं को दिखाने की कोशिश में तामझाम के साथ-साथ अब ईनामी ड्रा भी निकाले जाते हैं ताकि पाठकों को खबर की बजाए ईनाम के लालच में अपना अखबार बेच सके।
राजधानी में तो इन दिनों गजब का नजारा है। नवभारत जैसे प्रतिष्ठित अखबार रीड एंड वीन के जरिये पाठक तक पहुंच रहा है। कभी छत्तीसगढ़ की धड़कन माने जाने वाला यह अखबार भी अब अपने प्रतिद्वंदियों से भयभीत है तो इसकी वजह अखबार का बाजारीकरण है।
दैनिक भास्कर तो तंबोला के जादू से अखबार बेचने आमदा है जबकि दैनिक भास्कर की टीम तोड़कर नए कलेवर में निकलने वाले अखबार नेशनल लुक को भी खबरों से यादा रद्दी इकट्ठा करने में भरोसा है वह तो पुराना एक माह का पेपर लाने पर 90 रुपए तक दे रहा है।
बाजारीकरण के इस दौड़ में हर चीज को बिकाऊ मानने वाले इन अखबारों को मालूम है कि सिर्फ अखबार बेचकर पैसा नहीं कमाया जा सकता। जितना अखबार बिकेगा उतना विज्ञापन मिलेगा और यही असली कमाई है।
इसलिए अखबार बेचने के लिए राजधानी के अखबारों में ऐसी प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। वैसे भी अखबार अब पूरी तरह से व्यवसायिक हो चुका है और एक अच्छे दुकानदार की तरह अखबारों में भी ऐसी खबरें कम ही छपती है जिससे सरकार रूपी मजबूत ग्राहक नाराज हो जाए।
सरकार में बैठे लोगों के लूटखसोट या फिर गलत कामों पर भी अखबार खामोश रहे या बड़े इंडस्ट्रीज में होने वाली घटना पर नाम नहीं छापना अब आम बात हो गई है और जब अखबारों में खबरें न हो तो ग्राहकों को पटाने सेल तो लगाने ही पड़ेंगे और जब पूरा जमाना ही दिखता है तो बिकता है वाली हो तो फिर अखबार के धंधेबाज इससे दूर कैसे रह सकते है।
इसलिए राजधानी के अखबार भी ग्राहकों को छोटे-छोटे ईनाम देकर सरकार से बड़ी राशि लूटने में लगे हैं। ऐसे ईनामी ड्रा लॉटरी के श्रेणी में नहीं आते क्योंकि ये नगद नहीं होते और न ही सीधे तौर पर टिकिट बेची जा रही है कहना मुश्किल है। अब ईनाम के लालच में कोई 10-20 अखबार खरीदे भी तो यह उसकी ही गलती है।
और अंत में....
नगर निगम चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को छोड अन्य प्रत्याशियों की पीड़ा रही कि भले ही वे चुनाव जीतने में सक्षम है लेकिन मीडिया उन्हें कवर नहीं किया अब भला ऐसे प्रत्याशियों को कोई कैसे समझाये कि सिर्फ दमदार होने से काम नहीं चलेगा। मालदार भी होना पड़ेगा।

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

अल्ट्राटेक : चोरी और सीना जोरी

0 खिलाफ छापा तो नोटिस भिजवाई
यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे या चोरी और सीना जोरी की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना हिरमी स्थित अल्ट्राटेक सीमेंट कंपनी में व्याप्त अनियमितता की खबर पर अल्ट्राटेक प्रबंधक इस तरह नहीं बौखलता और नोटिस नहीं भेजता।
वैसे तो अल्ट्राटेक सीमेंट संयंत्र को लेकर पूरा हिरमी क्षेत्र व्यथित है और हमें समय-समय पर क्षेत्रिय जनप्रतिनिधियों सरपंच, जनपद सदस्य, आम लोगों के अलावा यहां कार्यरत कर्मचारियों ने लिखित में शिकायत की है कि किस तरह से अल्ट्राटेक की वजह से पूरे क्षेत्र में प्रदूषण व्याप्त है। आम लोगों का जीना दूभर करने वाले इस संयंत्र ने लोगों को नौकरी देने की शर्त पर उनकी जमीनें हड़प ली और नौकरी देने वाले जमीन मालिकों को सीधे काम कराने की बजाय ठेकेदारों के पास भेज दिया गया। यहीं नहीं नौकरी से निकालने की कहानी तो एक दम आम है और इसे लेकर लोगों में भारी रोष व्याप्त है लोग यहां आए दिन आंदोलन पर उतारू है और सरकार भी आम लोगों की बजाय प्रबंधन तंत्र पर यादा भरोसा करती है।
जिस संतराम वर्मा को नोटिस में अपराधिक कृत्य में संलग्न रहने की बात कही गई है उसके खिलाफ कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है जिसे लेकर संतराम वर्मा शीघ्र ही मानहानि का दावा ढोकने वाले है।
कंपनी ने प्रदूषण से ही इंकार किया है लेकिन हमें गांव वालों व जनप्रतिनिधियों ने लिखित में शिकायत की है कि संयंत्र के प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
जहां तक हमने अल्ट्राटेक की दादागिरी से सरकार की खामोशी की बात कही है तो यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि उद्योगपतियों की दादागिरी से आम आदमी त्रस्त है और सरकार में बैठे अधिकारी व मंत्री आम लोगों के दुखदर्द की बजाय उद्योगपतियों की सुनता है इसका अनेक उदाहरण है कि किस तरह से आज तक जमीन छीने जाने वाले लोग मुआवजा के लिए भटक रहे हैं।
अल्ट्राटेक के खिलाफ कई तरह की शिकायत है और यहां संयंत्र के विस्तार के नाम पर किस तरह से वृक्षों की बलि दी गई वह किसी से छिपा नहीं है। संयंत्र प्रबंधक की दादागिरी की चर्चा तो क्षेत्र में इस तरह से है कि लोगों का अब कानून से विश्वास ही उठने लगा है।
अल्ट्राटेक प्रबंधक की तरफ से नोटिस जारी कर मानहानि का दावा किया जा रहा है जबकि हमने हर खबरों पर आम लोगों की प्रतिक्रिया ली है और इसी प्रतिक्रिया या शिकायत के आधार पर आंखों देखी खबरें प्रकाशित की है।
बहरहाल प्रबंधक तंत्र ने जिस तरह से नोटिस भेजकर खबरों पर दबाव बनाने की कोशिश की है उससे बुलंद छत्तीसगढ़ के हौसले और बढ़े हैं और आम लोगों के हितों को लेकर खबरों का प्रकाशन होता रहेगा।

बेवजह छेड़छाड़ के जुर्म में फंसा दिया

यह पुलिसिया गुण्डागर्दी का नमूना नहीं तो और क्या है। पुलिस ने सुभाष नगर निवासी नरेन्द्र साहू को गिरफ्तार कर एक रात जेल में गुजारने मजबूर कर दिया। अब युवक अपने खिलाफ लगे छेड़छाड़ के आरोप से मुक्त होने न्याय मांग रहा है लेकिन सरकार के मुखिया ने भी आंखे फेर ली है।
इस संबंध में सुभाष नगर निवासी नेरन्द्र साहू ने बताया कि मैं बी.ए. प्रथम वर्ष का छात्र हूं और 3 मई 2007 को दुर्ग पुलिस ने उसे किसी सुषमा वर्मा नामक युवती से छेड़छाड़ के जुर्म में गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। हालांकि दूसरे दिन उसकी जमानत हो गई और 19 जुलाई 2007 को प्रकरण नस्तीबध्द भी हो गया।
नेरन्द्र साहू का कहना है कि उसने इस घटना के बाद सुषमा वर्मा की खोज की लेकिन न तो इस युवती का ही पता चला और न ही इस मामले का गवाह आनंद सेन का ही पता चला है। इस वजह से मेरी भारी बदनामी हुई और मुझे शर्मिन्दगी भी उठानी पड़ी। नरेन्द्र साहू का कहना है कि इस प्रकरण की जांच कर दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर मैने एसपी, कलेक्टर, गृहमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को आवेदन दिया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
एक सामान्य आदमी के जीवन के साथ खेलने वालों के खिलाफ सरकार की चुप्पी आश्चर्यजनक है। नरेन्द्र साहू का कहना है कि वे न्याय के लिए तब तक लड़ते रहेंगे जब क उन्हें न्याय नहीं मिल जाता।

गुरुवार, 25 मार्च 2010

एक ल मां एक ल मौसी

तभे राज ठाकरे के जमन होथे...
अइसने फैसला ल तो कहिथे एक ला मां अऊ एक ल मौसी। तभे सरकार का एक कोती किसान मन के जमीन ल कौड़ी के मोल खरीदे बर अपन डंडा चलावत हे त दूसर डहार कमल विहार योजना के जमीन मालिक ल अरबपति बनावत हे। सरकार के अइसने फैसला के कारण राज ठाकरे पैदा होथे नहीं त उड़ीसा असन भगाव अभियाव चलथे।
छत्तीसगढ़ सरकार हा अधिकारी कर्मचारी अऊ अपन सुविधा बर राजधानी के बनावत हे। राजधानी बनाय बर छत्तीसगढ़ के किसान मन के जमीन ल कौड़ी मोल खरीदत हे। जेन किसान नई बेचन कहात हे तेन मन ल डंडा के बल म जमीन छोड़े बर मजबूर करत हे। जब उहां के जमीन के कीमत 25-30 लाख रुपया एकड़ हे तब भला किसान मन ह 7-9 लाख रुपया एकड़ म बेचे बर कइसे तैयार होही। लेकिन सरकार ह अपन दमनकारी नीति ले किसान मन जमीन बेचे बर मजबूर करत हे।
दूसर कोती सरकार ह कमल विहार योजना लाए हे ये योजना म जउन मन के जमीन ह आही ओखर विकास करके 16 आना में 6 आना जमीन वापस दे दिये जाही। यानी भर्रा जमीन ल लेके बाहरा बना के दीही केहे जाय त गलत नई होवय।
आखिर सरकार के योजना ह अइसे कइसे बनथे के किसान मन के जमीन के कौड़ी दाम अऊ सेठ मन के जमीन के करोड़ो दाम। हमर खबरची के अनुसार सरकार ह जेन ढंग ले किसान मन उपर अत्याचार करत हे ये हा सिर्फ उदाहरण भर हे के कइसे सरकार एक ला मां एक ला मौसी करत हे जबकि सरकार के नजर हर आदमी बर सामान होना चाही।
हमर सूत्र के अनुसार त कमल विहार योजना ह भाजपाई भू-माफिया मन के हित ल देख के बनाय गेहे। यदि 6 आना जमीन विकास करके वापिस करही त कमल विहार ह खाली दू आना जगह म बनही अऊ बाकी जमीन ह त नाली-सड़क गार्डन, मंदिर अऊ गरीब मन के मकान म निकल जाही। यानी दू आना जमीन म कमल विहार बनाय बर सेठ मन के 6 आना जमीन के विकास करे जात हे।
सवाल ये नोहय के सेठ मन के जमीन ला सरकार ह विकास करके देवत हे सवाल ये हे के भू-माफिया मन के जमीन ल सरकार ह काबर विकास करत हे। सवाल यहू हे के आखिर राजधानी के किसान मन ह का पाप करे हे के उंखर जमीन कौड़ी के मोल अऊ सेठ मन के जमीन अरबों मं।
आखिर सरकार ह ये दू योजना म भेदभाव काबर करत हे। सबले पहीली तो हमर खबरची के अनुसार जेन जगह में कमल विहार योजना लाय जात हे उहां राजधानी के एक मंत्री के रिश्तेदार अऊ समर्थक मन के जमीन हे अऊ उही मन ल सरकार के माध्यम से मदद करत हे। यहू नहीं कई झन भाजपा नेता मन के इहां भारी जमीन हे अऊ कमल विहार योजना ह आम आदमी बर के बजाय अइसने मंत्री समर्थक मन बर लाय जात हे।
ये मामला ल लेके किसान मन भारी गुस्सा हे अऊ कमल विहार योजना के खिलाफ आंदोलन करे के धमकी घलो देवत हे।

मंगलवार, 23 मार्च 2010

घोटालेबाजों का जमाना,महाधिवक्ता है सुराना

आरएसएस का संस्कार या सुराना का प्रभाव...
यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संस्कार है या भारतीय जनता पार्टी का कारनामा है यह तो आम जनता तय करेगी लेकिन प्रदेश के महाधिवक्ता के पद पर जिस देवराज सुराना को बिठाया गया है उनके ही नहीं उनके परिवार जनों के खिलाफ लगभग दर्जनभर से अधिक मामले हैं। मंदिर की जमीन से लेकर आदिवासियों की जमीन हथियाने के अलावा अपने जनसंघी प्रभाव का उपयोग कर काम करवाने वाले व्यक्ति को सरकार कैसे महाधिवक्ता बना दी यह तो वही जाने लेकिन ऐसे व्यक्ति के महाधिवक्ता बनने से क्या कुछ हो रहा होगा सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाया में रहे देवराज सुराना राजधानीवासियों के लिए अपरिचित नाम नहीं है। राजधानी वासियों के बीच उनकी पहचान जनसंघी के अलावा एक वकील की भी है लेकिन अब हम अपने पाठकों को बताना चाहते हैं कि जनसंघ के सेवाभाव के पीछे देवराज सुराना और उनके परिजनों का कारनामा कितना भयावह है कि ऐसे व्यक्ति को महाधिवक्ता जैसे जिम्मेदार पद पर बिठाना कितना घातक हो सकता है। देवराज सुराना और उनके पुत्रद्वय आनंद सुराना, सुरेन्द्र सुराना, पुत्रवधु श्रीमती चेतना सुराना, दामाद विजयचंद सुराना यानी परिवार के अमूमन सभी लोगों पर मंदिर की जमीन, आदिवासियों की जमीन सहित अन्य आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने सरकार ने इस घपलेबाजी को नजरअंदाज तो किया ही है संवैधानिक नियमों की भी अनदेखी की गई है। संविधान के अनुच्छेद 165(1) के अनुसार प्रत्येक राय का रायपाल उसी व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाता है जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित होता है। ऐसे में 82 साल के व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाना स्पष्ट करता है कि किस तरह से आरएसएस या भाजपा के प्रभाव में देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाया गया है। जबकि नियमानुसार 62 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने का पात्र नहीं है।
देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने में आरएसएस या भाजपा की भूमिका की चर्चा बाद में की जाएगी। यहां हम उनके व उनके परिजनों के कृत्यों पर प्रकाश डालेंगे तथा हम अपने पाठकों को यह भी बताएंगे कि किस तरह से देवराज सुराना के परिवार की नानेश बिल्डर्स से अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और कैसे कलेक्टर से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों ने उनके प्रभाव में अनैतिक कार्य किया। दरअसल देवराज सुराना और उनके परिवार तब विवाद में आए जब इनकी कंपनी नानेश बिल्डर्स से प्राईवेट लिमिटेड ने गोपियापारा स्थित श्री हनुमान मंदिर की भाठागांव स्थित बेशकिमती जमीन को खरीदा। कहा जाता है कि इस जमीन की फर्जी तरीके से दो रजिस्ट्री कराई गई। इसमें भारतभूषण नामक फर्जी सर्वराकार से दस्तखत कराए गए। इस फर्जी रजिस्ट्री की जानकारी होने पर जब हिन्दू महासभा ने आपत्ति की तो जोगी शासन काल में सन् 2001 में इस पर रोक लगा दी गई। इसके बाद जैसे ही भाजपा की सरकार सत्ता में आई देवराज सुराना पर अपने प्रभाव में इस विक्रय पत्रों को 17-3-04 को पंजीयन करा लिया। इस भूमि को क्रय करने के लिए देवराज सुराना के खाते से दो लाख देवराज सिंह सुराना एचयूएफ के खाते से दो लाख 51 हजार से निकालकर 8 मार्च 2001 को नानेश बिल्डर्स के खाते में जमा किए गए।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि 2001 में तत्कालीन कलेक्टर ने हिन्दू महासभा की शिकायत पर की गई जांच रपट में यह लिखा है कि यह भूमि श्री हनुमान मंदिर प्रबंधक कलेक्टर रायपुर के नाम दर्ज होने के कारण विक्रय योग्य नहीं है। जांच प्रतिवेदन में मुख्यालय उपपंजीयक एवं तत्कालीन तहसीलदार रायपुर के विरुध्द कार्यवाही किया जाना बताया गया है एवं जिला पंजीयक रायपुर को लिखा है कि भविष्य में अग्रिम आदेश तक कोई रजिस्ट्री ना किया जाए।
बताया जाता है कि 2004 में अपने प्रभाव पर इस जमीन की रजिस्ट्री कराने के बाद जब विवाद बढ़ता दिखा तो नानेश बिल्डर्स ने यह जमीन रवि वासवानी और सुशील अग्रवाल रामसागरपारा को बेच दी। इस पर जब हिन्दू महासभा ने पुन: आपत्ति की तो तहसीलदार ने नामांतरण रोक दिया है और जब मामला उलझता दिखा तो विक्रय की गई जमीन का नानेश बिल्डर्स ने आश्चर्यजनक रुप से अपने नाम पर डायवर्सन करा लिया। यानी जमीन बेचने के बाद किस तरह से डायवर्सन की कार्रवाई की गई होगी समझा जा सकता है। जबकि अब भी भू-अभिलेखों में सुशील अग्रवाल एवं रवि वासवानी वगैरह का नाम भूमि स्वामी के रुप में दर्ज है। इतना सब कुछ होने के बाद भी इन्हें महाधिवक्ता कैसे बनाया गया यह समझा जा सकता है।

उद्योगपतियों की सरकार

छत्तीसगढ सरकार क्या आम लोगों की सरकार है? यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे हैं क्योंकि छत्तीसगढ में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। सब तरफ राम नाम की लूट मची है। सरकार में बैठे मंत्री से लेकर अधिकारी मनमानी पर उतारू है यहां तक कि विधानसभा में भी प्रश्नों के जवाब ठीक से नहीं दिए जा रहे हैं और सारा खेल एक सोची समझी रणनीति के तहत चल रहा है ताकि उद्योगपतियों को अधिकधिक लाभ मिले।
सरकार की स्थिति तो गृहमंत्री ननकीराम कंवर के अलग-अलग समय पर दिए दो बयानों से लगाया जा सकता है पहला बयान गृहमंत्री ने मुख्यमंत्री के गृह जिले में जाकर पुलिस कप्तान को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहा। यह किस परिप्रेक्ष्य में कहा गया यह बताने की जरूरत नहीं है लेकिन विधानसभा में उनका यह कहना कि पुलिस वाले दस हजार रुपया महिना लेकर शराब वालों के लिए काम करते हैं यह सरकार के लिए डूब मरने वाली बात है। इतना ही नहीं है पूरा मामला। दरअसल राज्य बनने के बाद यहां की प्रचुर धन संपदा को लुटने में सरकार ने जिस तरह से उद्योगपतियों को सहयोग किया है वैसा आजादी के बाद किसी भी प्रदेश में नहीं हुआ होगा। जिंदल से लेकर बालको और अल्ट्राटेक से लेकर दूसरे उद्योगपतियों की मनमानी से आए दिन अखबार रंगे पड़े हैं। यहां तक कि बालको में हुई चिमनी कांड भी ऐसी जमीन पर हुई जो बालको ने कब्जा कर रखी है। शायद यहीं वजह है कि अजीत प्रमोद कुमार जोगी यह सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर सरकार अनिल अग्रवाल से डरती क्यों हैं।
दो चार सौ फुट जमीन पर कब्जा कर अपना आशियाना बनाने वालो पर बुलडोजर चलाने वाली सरकार उद्योगों द्वारा अवैध कब्जे की गई हजारों एकड़ जमीन को लेकर क्यों खामोश है। क्या इसके एवज में मुख्यमंत्री से लेकर अन्य मंत्री व सरकारी अधिकारी को लाखों रुपए दिए गए हैं। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सरकार को देना ही होगा कि वह उद्योगपतियों की मनमानी पर क्या इसलिए चुप है क्योंकि वहां से उन्हें पैसे मिल रहे हैं? आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए बैठी सरकार को क्या यह नहीं पता है कि उद्योगपतियों की मनमानी से आम आदमी प्रदूषण की वजह से बीमार हो रहा है और उनके गुण्डे आम लोगों को पीट रहे हैं।
क्या सरकार को खबर है कि उसके दर्जनभर से अधिक आईएएस अधिकारियों ने मौली श्री विहार में अपने बंगलों को इन्हीं उद्योगपतियों को लाखों रुपए किराए पर दे रखा है। एक साधारण आदमी भी समझ सकता है कि कोई किसी के 15-20 हजार किराये वाली जगह को एक लाख रुपए किराये में क्यों ले रहा है फिर यह बात सरकार के समझ में क्यों नहीं आ रहा है। क्या ऐसा नहीं है कि इन उद्योगपतियों ने प्रदेश के इन आईएएस अधिकारियों को ओब्लाईज् कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। उद्योगों को जिस पैमाने पर जमीन दी जा रही है और उन्हें जमीन कब्जा करने की छूट दी जा रही है क्या यह किसी अंधेरगर्दी से कम है। गरीबों के नाम पर दिए जाने वाले चावल क्या राईस मिलरों व धन्ना सेठों के गोदाम में नहीं जा रहा है। चौतरफा भ्रष्टाचार ने छत्तीसगढ क़ी वित्तीय स्थिति को डगमगा दिया है और सरकार ने इस पर अंकुश नहीं लगाया तो इसके दुखद परिणाम आना तय है।

क्या पैसा खिलाकर जाति प्रमाण पत्र बनाया गया है...



छत्तीसगढ में सत्ता के बल पर अधिकारियों से अनैतिक कार्य कराया जा रहा है। वामन राव लाखे वार्ड के पार्षद विजेता मन्नु यादव को पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र दिलाने में तो ऐसी ही भूमिका नजर आ रही है और ऐसा नहीं है तो अधिकारी पैसा खाकर किसी को भी जाति प्रमाण पत्र दे रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय दूरसंचार विभाग में सामान्य वर्ग से टेलीफोन मैकेनीक के पद पर कार्य कर रहे दयालदास मोहरे की पुत्री विजेता यादव को पार्षद चुनाव लड़ने तीन दिन में पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। चूंकि विजेता ने प्रेम विवाह मन्नु यादव से किया है और उसे भाजपा ने टिकिट दी थी। इसलिए सारा खेल आनन-फानन में हुआ।
इस मामले का सबसे रोचक पहलू तो यह है कि विजेता के भाई सुनील को जाति प्रमाण पत्र के लिए दिया आवेदन यह कहकर खारिज किया गया कि मोहारे जाति को छत्तीसगढ़ में पिछड़ी जाति का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। यह बात सुप्रीमकोर्ट ने भी तय कर दिया है कि प्रेम विवाह के बाद भी युवती की जाति नहीं बदलेगी। इस नियम के बाद भी यहां विजेता यादव को किस बिना पर पिछड़े वर्ग का जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया यह आसानी से समझा जा सकता है। बहरहाल इस मामले में कांग्रेस के पराजित प्रत्याशी ने याचिका दायर भी कर दी है और देखना है कि सत्ता के गलियारे में इसकी क्या प्रतिक्रिया होती है।

रविवार, 21 मार्च 2010

बेचने तो निकले हो खरीदेगा कौन?


छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता इन दिनों विषम स्थिति में है। सरकारी विज्ञापनों के लालच में खबरों से समझौता या सेल्फ सेंशरशीप चल रहा है। बड़े अखबार न तो खोजी पत्रकारिता को लगभग तिलांजलि ही दे दी है और खबरों पर मालिक से लेकर संपादक की निगाहें तेज हो गई है।
ऐसे में वे पत्रकार जो इस पेशे को मिशन के रुप में लेते हैं उनके लिए खबरें बनाना मुश्किल हो गया है इसलिए कुछ पत्रकारों को लगा कि हम सब मिलकर खबरें बेचने का काम करते हैं। इसी कड़ी में मीडिया-हाऊस बनाया गया है। शहर के प्रतिष्ठित अखबारों में काम कर चुके अहफाज रशीद, नवीन शर्मा और मधुसूदन सुनीता गुप्ता सहित कुछ और लोगों ने मीडिया हाउस बना लिया है। इकना कहना है कि वे पत्रकारिता को नया आयाम देंगे और प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए खबरें बनाएंगे। इन्होंने नवरात्रि के प्रथम दिवस पर इसे लांच भी कर दिया लेकिन इस सवाल का जवाब शायद इनके पास भी नहीं है कि खबरें यदि बनाई गई तो इसे खरीदेगा कौन?
दरअसल यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे हैं कि इन दिनों खबरों से यादा मार्केटिंग और विज्ञापन को महत्व दिया जा रहा है। अखबार ऐसी खबरों से अटा पड़ा रहता है जो या तो सूचनात्मक हो या फिर जिसके माध्यम से विज्ञापन बटोरे जा सकते हैं। ऐसे में मीडिया हाउस को लेकर सवाल उठाना स्वाभाविक है। अखबार हो या प्रिंट मीडिया उन्हें अपने मतलब की खबरें चाहिए और मीडिया हाउस सिर्फ उनकी मतलब पर काम करेगा तो पत्रकारिता को नया आयाम देने के सपने का क्या होगा तब भला नौकरी क्या बुरी होगी।
और अंत में....
मीडिया हाउस को जिस ताम-झाम के साथ लांच किया गया उसे लेकर लोग यह कहने लगे हैं कि पत्रकारिता के चंडाल चौकड़ी में चंडाल का नाम बताया जाए और वह टिक गया तो हाउस बन जाएगा।

घोटाले में नाम कमाओं,बजट में हिस्सा बढ़ाओं


यह चतुर नौकरशाही है या फिर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का विरोधियों को चुप करने की रणनीति। लेकिन प्रदेश के जिस दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभागों में करोड़ों-अरबों रुपए के घोटाले की कहानी सामने आ रही है उसी बृजमोहन अग्रवाल के विभागों को प्रदेश के कुल बजट का 20 फीसदी हिस्सा दिए जाने को लेकर जनसामान्य में कई तरह की चर्चा है।
वैसे तो राय बनने के बाद से ही पीडब्ल्यूडी, खनिज, पंचायत, उर्जा, स्वास्थ्य, सिंचाई विभाग को काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है और भाजपा शासनकाल में तो यहां हुए घपलों को लेकर खूब हल्ला मचा। बताया जाता है कि पर्यटन और संस्कृति विभाग में हुए काले कारनामें ने इस विभाग को भी चर्चा में ला दिया। इकलौता यही विभाग है जहां प्रचार प्रसार के नाम पर जमकर बंदरबांट हुए और यहां बैठे अफसरों ने करोड़ो कमाए। राय का ताजा बजट करीबन साढ़े तेईस हजार करोड़ है और इनमें से एक बडा हिस्सा पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, पर्यटन और संस्कृति के लिए जारी किया गया है। यानी जिन विभागों को बृजमोहन अग्रवाल संभाल रहे हैं उन्हें साढ़े पांच हजार करोड़ आबंटित किया गया है।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक यह उन नौकरशाहों की करतूत है जो अपनी जेबें गरम करना चाहते हैं इसलिए ऐसे विभागों में यादा बजट दिया गया जहां खाने की छूट मिल सके। जबकि एक अन्य सूत्रों का कहना है कि यह डॉ. रमन सिंह की रणनीति का हिस्सा है ताकि बृजमोहन अग्रवाल नाराज न हो और उसकी तरफ नजर न उठाये। मामला जो भी हो लेकिन आम लोगों में यह प्रतिक्रिया खुले आम सुनाई पड़ रही है कि जो सबसे यादा भ्रष्टाचार करेगा उसे ही बजट में सर्वाधिक आबंटन दिया जाएगा। छत्तीसगढ में जिस पैमाने पर पीडब्ल्यूडी में भ्रष्टाचार चल रहा है वह आश्चर्यजनक है सड़कों का हाल तो बदतर है ही भवनों के निर्माण में भी जमकर धांधली की जा रही है। जबकि पर्यटन में मोटल निर्माण में बाउंड्री निर्माण और घास लगाने के नाम पर जबरदस्त घोटाले हुए हैं। संस्कृति विभाग ने तो स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा कर बाहर के कलाकारों को बुलाने में जमकर दलाली की है।
बहरहाल बजट में एक ही मंत्री को 20 फीसदी आबंटन को लेकर कई तरह की चर्चा है ऐसे में आम लोगों में डॉ. रमन सिंह की छवि को लेकर चर्चा स्वाभाविक है।

रमन बने असरदार,क्योंकि वे हैं लाचार|जोगी की दमदारी पर इंडिया टुडे कायल





यह तो देश की राजनैतिक परिस्थितियां ही है कि यहां फूलनदेवी जैसी डकैत सांसद के दरवाजे पर पहुंच जाती है और अंधेरगर्दी मचाने वाले देश के सबसे बड़े राय के मुख्यमंत्री बन जाते है। छत्तीसगढ क़े मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी तमाम घपलों-घोटालों के बाद भी छत्तीसगढ में सबसे असरदार माने जाते हैं तो इसकी वजह कांग्रेस में बिखराव के अलावा पैसों की भूख है जिसके आगे तमाम राजनेता नतमस्तक है।
इंडिया टुडे के ताजा सर्वे रिपोर्ट के आधार पर रमन सिंह इसलिए छत्तीसगढ क़े सबसे असरदार व्यक्ति है क्योंकि उन्होंने विरोधियों की हवा निकाल दी और अजीत जोगी को छोड़ अन्य कांग्रेसियों में चुनौती देने का साहस नहीं है। ऐसे में अजीत जोगी की दमदारी को इंडिया टुडे ने भी माना है भले ही कांग्रेसी न माने। सर्वे रिपोर्ट को लेकर डॉ. रमन सिंह के असरदार के पक्ष में जो बाते कही गई है उसमें दो रुपया किलो चावल का भी जिक्र है जो डॉक्टर रमन सिंह की लोकप्रियता का संवाहक बताया गया है।
हम यहां सर्वे के आधार को चुनौती नहीं दे रहे हैं बल्कि असरदार की परिभाषा को लेकर सवाल उठा रहे हैं। राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में डॉ. रमन सिंह असरदार इसलिए भी हैं क्योंकि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री है। दरअसल असरदार की परिभाषाएं अब बदल गई है। नरेन्द्र मोदी क्यों असरदार है और फूलनदेवी क्या बगैर असरदार के चुनाव जीत सकती है। यूपी-बिहार में तो अपराधियों की जीत ही उनके असरदार होने का ईशारा करती है।
छत्तीसगढ में राजनैतिक परिस्थिति भले ही भाजपा के अनुकूल न हो लेकिन कांग्रेस के बिखराव ने उन्हें कुर्सी पर तो बिठा ही दिया है। रोज नए-नए घोटाले की कहानी बाहर आ रही है और मंत्रियों पर खुलेआम कमीशन लेने के आरोप लग रहे हैं। आरोप तो यहां तक है कि मुख्यमंत्री का न प्रशासन पर पकड़ है न शासन पर पकड़ है। मंत्री से लेकर अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं और विधानसभा तक को झूठी जानकारी दी जाती है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ में शासन-प्रशासन का क्या हाल है रही बात डॉ. रमन सिंह को चुनौती का तो वह तो कहीं नहीं दिखलाई पड़ता। इसकी वजह उनकी प्रशासनिक छवि है जो अधिकारियों और मंत्रियों को मनमानी करने की छूट देता है।
यह सर्वमान्य सिध्दांत है कि आप जब किसी के गलत कार्यों का विरोध नहीं करेंगे तो आपका कोई विरोध क्यों करेगा हालांकि राजनीति में महत्वाकांक्षा भी मायने रखता है तो बृजमोहन अग्रवाल को छोड़ रमन सिंह के लिए कहीं कोई दिक्कत नहीं है और डॉ. रमन सिंह ये बात जानते हैं इसलिए उन्होंने प्रदेश के कुल बजट का 20 फीसदी हिस्सा बृजमोहन अग्रवाल के पाले में कर दिया है ताकि उनका ध्यान कुर्सी की बजाय पैसे पर लगा रहे। बहरहाल सर्वे रिपोर्ट ने कांग्रेसियों के कान खड़े कर दिए है और देखना है कि इंडिया टुडे के इस सर्वे रिपोर्ट का कांग्रेस के अंदरूनी राजनीति में क्या असर डालता है।

मांढर कालेज में मनमानी,अफसरों की मेहरबानी


ठाकुर होने का फायदा उठाकर मांढर स्थित महाविद्यालय के संचालक अशोक सिंह ने कॉलेज में हुए घपलों की लीपापोती शुरु कर दी है। कहा जाता है कि उनके प्रभाव में आकर आदिम जाति विभाग और मंत्रालय में बैठे अफसरों ने उन्हें क्लीन चीट देने की योजना तक बना ली है।
मांढर कॉलेज में हो रहे घपलों पर विस्तार से प्रकाश डाला था और सूचना के अधिकार के तहत मिले सबूतों से स्पष्ट है कि यहां कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। आरक्षित बच्चों की फीस जिस तरह से कॉलेज संचालकों द्वारा हड़पा जा रहा है वह आश्चर्यजनक है। हालात यह है कि इस मामले में शिकायकर्ताओं को जांच अधिकारियों द्वारा सेंटिंग कर लेने के लिए प्रेरित किया जाता है इसी से समझा जा सकता है कि कॉलेज प्रबंधकों ने किस पैमाने पर यहां गोलमाल किया है।
बताया जाता है कि कॉलेज में हुए घपलेबाजी से प्राचार्य को अलग रखा गया है और इसकी उच्च स्तरीय जांच हुई तो यह भी सामने आ सकता है कि किस तरह से प्राचार्य के नाम पर दूसरे लोगों ने हस्ताक्षर कर राशि हड़प की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2006-07 शिक्षा सत्र में ध्रुवकुमार वर्मा प्राचार्य थे लेकिन छात्रवृत्ति रिकार्ड में अशोक सिंह ने हस्ताक्षर किए है। इसी तरह वर्ष 2007-08 व 2008-09 में 1 ही नाम से बीए, बीकॉम, पीजीडीसीए और डीसीए कोर्स की 1 साल में 3 बार छात्रवृत्ति निकाली गई है और आश्चर्य का विषय है कि इस सारे मामले की शिकायत उच्च स्तर पर की गई है और बकायदा शिकायतकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत कॉपी निकालकर जांचकर्ताओं और मुख्यमंत्री तक को कॉपी दी है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है पता तो यहां तक चला है कि ठाकुर होने का प्रभाव डालकर इस मामले को दबाने की कोशिश चल रही है।

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

बेबस गृहमंत्री , मदमस्त सरकार



एक तरफ देश की आधी आबादी महिला बिल को लेकर फूले नहीं समा रही है तो दूसरी तरफ यही आधी आबादी छत्तीसगढ़ में नासूर बन चुके शराब को बंद करने आंदोलनरत है। शराब के दुष्परिणामों का सर्वाधिक शिकार होने वाली इस आधी आबादी को छत्तीसगढ़ में छला जा रहा है। जगह-जगह वैध और अवैध भट्ठियों के जल ने महिलाएं ही नहीं युवाओं को भी बीमा कर दिया है ऐसे में प्रदेश के गृहमंत्री ननकीराम कंवर का विधानसभा में स्वीकारोक्ति कि धाने वाले दस हजार रुपया महिना लेकर उन्हीं का कहा मानते है। सरकार के लिए शर्म की बात नहीं तो और क्या है। शराब लॉबी का यह समनांतर प्रशासन क्या अंधेरगर्दी नहीं है।
सरकार पर खासकर डॉ. रमन सिंह की सरकार पर यह आरोप नया नई है कि यह उद्योगपतियों और शराब माफियाओं की सरकार है और सरकार ने कभी भी इस पर अपना पक्ष नहीं रखा। शराब बंदी पर वह जरूर कहते रहती है कि यह राजस्व का मामला है। पीढ़ी खत्म कर देने वाली इस भयावह शराब के राजस्व से सरकार चले यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है। विधानसभा में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने जिस बेबाकी से अपनी बेबसी व्यक्त की है वह सभ्य समाज के लिए सोचनीय विषय है सोचनीय विषय तो सरकार के लिए है लेकिन वह शराब माफियाओं के पैसों में दब गई है इसलिए शराब दुकानों की खिलाफत करने वालों को ही प्रताड़ित किया जाता है। समूचे छत्तीसगढ़ में इन दिनों अजब तमाशा है। गांव-गांव में वैध-अवैध शराब खुले आम बिक रहे हैं और इसके विरोध करने वालों को शराब माफियाओं के गुण्डे और पुलिस मिलकर पिट रहे हैं। इतनी अंधेरगर्दी के बाद भी शराब को लेकर सरकार का राजस्व प्रेम अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
अब जब महिला बिल पास हो चुका है छत्तीसगढ़ सरकार को भी शराब के संबंध में निर्णय लेने की जरूरत है। उसे तय करना ही होगा कि किस जनसंख्या के अनुपात में शराब भट्ठी या दुकानें कितनी खोली जा सकती है। उसे तय करना ही होगा कि बड़े शहरों में दो-चार से यादा दुकानें न खुले। उसे यह भी तय करना होगा कि शराब माफिया और पुलिस के गठजोड़ से कोई गांव बर्बाद न हो जाए। संस्कृति को नष्ट होने से नहीं बचाने का मतलब ही अंधेरगर्दी है। गृहमंत्री ननकीराम कंवर की बेबसी के बाद भी सरकार ने निर्णय नहीं लिया और नई-नई दुकाने खोलने का लाइसेंस देते रहा तो इस प्रदेश का विकास थम जाएगा। इस प्रदेश का युवा बर्बाद हो सकता है और घर-परिवार बिखर जाएगा। सिर्फ राजस्व के लिए पूरी पीढ़ी को दांव पर लगाने की कोशिश ही सबसे बड़ी अंधेरगर्दी है।
महिला संगठनों में खासकर पूनम साहू जो पेशे से वकील भी हैं उनका कहना है कि सरकार ही नहीं चाहती कि लोग मिल जुलकर रहे और अपनी हक की लड़ाई व सरकार के करतूतों का सामूहिक विरोध करें इसलिए सरकारें जानबूझकर लोगों को शराब पीने के लिए प्रेरित कर रही है। पूनम जी इन दिनों शराब के खिलाफ प्रखरता से आवाज उठा रही हैं वह कहती है इसकी वजह से सबसे यादा महिलाएं प्रताड़ित है। वह यह भी कहती हैं कि सरकार पूर्ण शराब बंदी लागू करें और हमें उग्र आंदोलन के लिए मजबूर न करें। ऐसी कितनी ही पूनम है जो अब आवाज बनने जा रही है इसलिए सरकार दूसरे की नहीं तो कम से कम अपने गृहमंत्री की बेबसी को देखकर फैसला ले।

गुरुवार, 18 मार्च 2010

अखबार बना लेमन चूस...

अब हाईटेक का जमाना है। घर बैठे वेबसाइट पर दुनियाभर की खबरें देखी व पढ़ी जा सकती है इसके बाद भी अखबारों में प्रतिस्पर्धा कम नहीं हुई है दरअसल इस देश में अभी भी वेबसाईट पर खबरें पढ़ने वाले गिनती के हैं ऐसे में गला काट स्पर्धा ने अखबार को भी अपने चंगुल में ले रखा है।
छत्तीसगढ़ में अखबारों की प्रतिद्वंद्विता सड़कों तक भी पहुंची थी राय बनने के पहले एक-दूसरे के बंडल चुराने से लेकर जलाने तक की घटना हो चुकी है और जब भी कोई एक अखबार अपना प्रसार संख्या बढ़ाने तिकड़म करता है बाकी अखबारों में भी धुकधुकी शुरु हो जाती है। ऐसा ही कुछ इन दिनों फिर शुरु हो गया है कोई दो-तीन महिने के अखबार के साथ कुछ फ्री दे रहा है तो कोई स्क्रेच कूपन दे रहा है। उपहार योजना के नाम पर लाटरी खिलाई जा रही है। कुल मिलाकर उसकी स्थिति लेमन चूस जैसे हो गई है।
हालांकि छत्तीसगढ क़े पाठक काफी सजग है और वे अखबारों के ऐसे प्रलोभन में कम ही आते हैं लेकिन जो आ सकते हैं उन्हें जिस तरह से प्रलोभन दिया जा रहा है वह पत्रकारिता के लिए चुनौती भी है। सिर्फ प्रलोभन देकर विज्ञापन के रुप में पैसा कमाने की कोशिश से पत्रकारिता जहां कलंकित हो रही है वही खबरों के साथ समझौतों ने इसकी विश्वसनियता पर भी सवाल खड़े किए हैं। हालांकि यह शुरुआत राय बनने के पहले से ही हो गई है लेकिन इससे कम पूंजी के साथ पत्रकारिता करने वालों के रास्ते कठिन हो जाएंगे।
और अंत में...
लुक ने नए तेवर दिखाना क्या शुरु किया जिद् करों ने घर-घर स्क्रेच कार्ड भेजना शुरु कर दिया। देखा-देखी अन्य अखबारों में भी नई तरकीबें बनाना शुरु किया। ऐसे ही एक मामले में एक अखबार में बैठक हुई बैठक में सिटी रिपोर्टर भी बुलाए गए एक रिपोर्टर ने सरकार के खिलाफ खोजी खबर की बात की ही थी कि रिपोर्टरों को बैठक से भगा दिया गया।

मांढर कॉलेज में लूट,को सरकारी संरक्षण

छत्तीसगढ़ में मचे लूट खसोट में मांढर स्थित शिक्षा स्नातक महाविद्यालय भी शामिल है। इनके संचालक ने न केवल सरकारी विभाग को लाखों का चुना लगाया बल्कि ठाकुर होने की वजह से वह पूरे मामले में लीपा-पोती भी करवा रहा है हालत यह है कि इस मामले में महिला आयोग से लेकर सरकार के अफसरों ने खामोशी ओढ ली है और लुटेरों को संरक्षण दे रही है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ में राम नाम की लूट मची है। ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां सरकारी खजानें को बेरहमी से न लूटा जा रहा हो। मांढर शिक्षा स्नातक महाविद्यालय के प्रबंधक अशोक सिंह पर तो कई आरोप है और कहा तो यहां तक जा रहा है कि सत्तापक्ष से रिश्तेदारी की वजह से मांढर कॉलेज के प्रति अफसरों का विशेष लगाव है और यहां हो रहे घपलेबाजी पर पर्दा डाला जा रहा है।
कहने को तो यहां बीएड की 20 सीट है और एडमिशन से लेकर स्कालरशीप में यहां जबरदस्त घपलेबाजी की कहानी सामने आई है और इन घपलेबाजी में प्रबंधक अशोक सिंह की रूचि को लेकर आम लोगों में कई तरह की चर्चा है। बताया जाता है कि अजाजजा विद्यार्थियों के स्कालरशीप में प्रमुख रुप से दो तरह की घपलेबाजी सामने आई है। एक तो फर्जी छात्र के नाम पर स्कालरशीप की राशि डकार ली गई वहीं कई मामले में एक ही विद्यार्थी को दो-तीन बार स्कालरशीप दी गई यानी विद्यार्थियों को तो एक बार ही स्कालरशिप दी गई और बाकी बार की राशि डकार ली गई।
ऐसा नहीं है कि इसकी शिकायत नहीं की गई है या सरकार की जानकारी नहीं है। इस कॉलेज की अनियमितता की शिकायत मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित विभागों सहित महिला आयोग से लेकर लगभग 12 संस्थानों में शिकायत की गई है लेकिन विभागीय अफसर ही पूरे मामले की लीपापोती कर रहे हैं और आरोपियों को बचाया जा रहा है। शिकायतकर्ताओं ने तो इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री से आधा दर्जन बार मिल चुके है लेकिन चूंकि प्रबंधक अशोक सिंह है इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।
शिकायतकर्ताओं के साथ
अधिकारियों का व्यवहार
इस मामले में अशोक सिंह की पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शिकायत कर्ताओं को अधिकारियों का न केवल दर्ुव्यवहार का सामना करना पड़ा बल्कि उसे सेटिंग करने मनाया भी गया।
1. राय महिला आयोग की विभा राव 24-04-09 को हम आवेदकों को पेशी के दिन कहा गया कि हम मैं पेपर कटिंग में लिखित बातों को नहीं मानती सब झूठ है कहती रिकार्ड को सच नहीं मानती कही है। पैसा लेकर केश बंद कर दो ऐसा बोली।
2. शताब्दी पाण्डे महिला मंच की अध्यक्ष राय महिला आयोग सदस्य- 1-04-09 को फोन पर साक्षात सामने हम आवेदकों से कहती है कि हम पैसा लेकर केश बंद कर दे बड़े-बड़े नेता लोग ऐसा करते है तब तुम लोग तो बच्चे हो।
3. जे.एल. गंगवानी उच्च शिक्षा विभाग संचालक जांच अधिकारी- 02-04-09 अप्रैल को जांच करने आए लिखित परीक्षा विद्यार्थी एसटीएससीओबीसी के व स्टाफ सभी के लिए गलत रिपोर्ट शासन को जमा किए और इन्होंने से भी हम आवेदकों को पैसा लेकर केश दबाने के लिए कहा है। ऐसा गड़बड़ी सभी कॉलेजों में होता चलता है शासन की ऐसी व्यवस्था है।
4. डी.एस. ध्रुर्वे, डिप्टी कमीश्नर, डी.डी. कुंजाम, उपायुक्त आदिम जाति, अनुसूचित जाति विकास रायपुर- 30-11-09 को दोनों कहते हैं कि बिना नोटिस किए महाविद्यालय में उपस्थित हो कहे है कि 9 करोड़ 50 लाख रु. छात्रवृत्ति छ.ग. राय के एसटीएससीओबीसी छात्रछात्राओं के लिए वितरण किया गया है। 1 सप्ताह में हम जांच के लिए आ रहे है बोले आज 1 माह से उपर हो गया इनका कोई जवाब नहीं कमीश्नर द्वारा 30-11-09 को मीटिंग रखा गया और कमीश्नर ने 30-11-09 को नोटिस लिफाफा पोस्ट किए और हम आवेदकों को लिफाफा 02-12-09 दिसम्बर को प्राप्त हुआ। 30-11-09 को क्लर्क मो मो. पर करीब 3.30 बजे फोन करके महाविद्यालय बुलाया क्लर्क जब रायपुर में थी क्या इस तरह की शासन की व्यवस्था होती है।
5. कुलसचिव इन्दू अनंत, पं. रविशंकर विश्वविद्यालय छ.ग. रायपुर- 09-09-09 को सचिव आफिस गए तब इन लोगों ने कहा कि मांढर शिक्षा स्नातक महाविद्यालय हमारे इस यूनिवर्सिटी के अंतर्गत नहीं आता है और सी.एम. मुख्यमंत्री के आदेश से कोई मतलब नहीं है कह भगा दिया और धमकी में कहा कि तुम यहां विनती करने आए हो या रिपोर्ट लेने आए कह कर हम आवेदकों को भगा दिया।
अन्त में हमें जानकारी मिली है कि अभी वर्तमान 1 सप्ताह में मांढर स्कूल की प्राचार्या श्रीमती सरिता नासरे, समिति कॉलेज अध्यक्ष ध्रुव कुमार वर्मा कॉलेज के प्रबंधक अशोक सिंग कुछ स्टाफ द्वारा छात्रवृत्ति रिकार्ड रजिस्टर चेक का अक्षर हस्ताक्षर बदला गया।

बुधवार, 17 मार्च 2010

शाबाश अशोक ...दुसरे भी प्रेणना लें


क्या आपने कभी यह सोचा है कि रेलवे स्टेशन में बीमार या विकलांग यात्री किस तरह से ट्रेन से उतरकर टेक्सी स्टेंड या टेक्सी स्टेंड से उतरकर ट्रेन तक तक का सफ़र करते है ? स्टेशन में भीढ़ से आम आदमी तक ठीक से प्लेटफार्म में नहीं चढ़ पाता तब ऐसे यात्रियों व उनके परिजनों कि तकलीफों का अंदाजा लगाने मात्र से मन रो देता है

लेकिन इस तकलीफ को रायपुर के अशोक अग्रवाल और उसके साथियों ने समझा है और इस तकलीफ से निपटने उनकी संस्था marawarhi युवा मंच ने बैटरी चलित ऐसी गाडी चलवा रहे है जिससे ऐसे यात्रियों को निःशुल्क सेवा दी जाएगी अशोक और उसकी टीम का यह प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि समाज सेवा से जुढ़े लोगो के लिए प्रेरणा दायक भी है

वैसे अशोक ने इस शहर में जनसेवा का कई कार्य किया है उसकी पूरी टीम ने हर सेवा के कम में ईमानदारी बरती है उन्हें बधाई ....

मंगलवार, 16 मार्च 2010

हर्षिता सबसे अलग है


इस साल गेट परीक्षा में छत्तीसगढ़ के बच्चो ने अच्चा प्रदर्शन किया धीरेन्द्र,विवेक ,वेदांत ,मयंक ,हर्ष ,हर्षिता ,वैशाली, एकता,पल्लवी ,पूजा ने सफलता पाई प्रेस कल्ब में ये सभी अपनी संस्था के संचालक के साथ पहुंचे थे

हर्षिता इसमे से अलग थी इसलिए नहीं की उसने पुरे छत्तीसगढ़ में युवतियों में टॉप की है बल्कि इसलिए क्योकि उसमे ढृढ़ ईक्षा-शक्ति है कुछ कर गुजरने की पत्रकारों ने भी सबसे सवाल किये लेकिन हर्षिता से किसी ने कुछ नहीं पुछा तो शायद संकोच रहा हो मुझसे रहा नहीं गया ,कांफ्रेंस ख़त्म होते ही उसे बुलाकर कुछ पुच लिया उसमे गजब का आत्मविश्वास है उसने हर सवाल का जवाब बेबाकी से दी वाह दूसरो से अलग इसलिए भी है क्योकि उसके पिता साइंस कालेज में भौतिकी के प्रोफ़ेसर है

छत्तीसगढ़ में युवतियों में टॉप आने वाली हर्षिता के अपने सपने है वाह पूरा हो और आज जब महिला बिल की वजह से महिलाओ को नई आज़ादी मिल रही है ऐसे में हर्षिता ने छत्तीसगढ़ में युवतियों में टॉप आ कर अपना अलग वजूद स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है इसका सभी को स्वागत करना चाहिए खासकर महिला संगठन ऐसी प्रतिभाओ को प्रोत्साहन देकर हर्षिता कोसहयोग करे

छत्तीसगढ़ के ऐसी प्रतिभो को सलाम

मिडिया-हॉउस पर सार्थक प्रयास


अहफाज ,नविन ,मधुसुदन और संगीता ने मिडिया हॉउस खोला है जहाँ खबरे बेचीं भी जाएँगी यह अच्चा प्रयास है और जब अहफाज जहाँ हो वहां अच्छी खबरे तो होंगी मै बाकि को नहीं जानता ऐसा नही है बाकि भी पत्रकारिता की समझ रखतें है

इस अभियान में डर है तो सिर्फ अहफाज का जो कभी एक जगह टिकता नहीं है और टिक गया तो पत्रकारिता का नया आयाम होगा

पूरी टीम को पत्रकारिता के इस अभियान पर स्वागत है

सोमवार, 15 मार्च 2010

निगम में पाप , बड़ा है अभिशाप

0 सांप और विप से चिंतित हैं लोग
एक तरफ देश के संसद और विधानसभा में महिला बिल को लेकर महिलाओं में जबरदस्त उत्साह है वहीं दूसरी ओर राजधानी सहित प्रदेश के स्थानीय निकायों में पाप ने डेरा जमा रखा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि जहां महापौर और अध्यक्ष के पदों पर महिलाएं बैठी है वहां भी पाप की ही दमदारी दिखती है। यही वजह है कि लोग सांप और विप को लेकर अभी से चिंता जताने लगे हैं।
छत्तीसगढ क़े स्थानीय निकायों में वैसे तो 50 फीसदी महिला आरक्षण है और इस क्षेत्र में कई महिलाओं ने अपनी दमदारी भी दिखाई है लेकिन राजधानी का नगर निगम पाप से ग्रसित है नेतागिरी की चाह में अपने परिवार की महिलाओं को टिकिट तो दिलवा देते हैं लेकिन पूरी नेतागिरी वे स्वयं करते हैं। यहां तक कि निगम की कई महत्वपूर्ण बैठकों में भी वे इसी हैसियत से हिस्सा भी लेते हैं।
बताया जाता है कि इन पाप को लेकर निगम में कई तरह की चर्चा रहती है और सबसे दुखद आश्चर्य का विषय तो यह है कि महिला बिल पर खुशी जाहिर करने वाली महापौर किरणमयी नायक भी ऐसे लोगों को ही महत्व देती है। यही हाल पूरे प्रदेश में है और ऐसे पाप से बचने के लिए अभी तक किसी भी महापौर या अध्यक्ष ने प्रभावी कदम नहीं उठाया है जबकि अधिकांश संस्थानों में इस बिल का समर्थन करने वाल भाजपा या कांग्रेस के लोग ही बैठे हैं। यही वजह है कि अब बिल के पास होने में किसी को संदेह नहीं है और वे अभी से सांप और विप की चर्चा करने लगे हैं। कहा जाता है कि इस मामले को लेकर वैसे तो कई तरह की चर्चा है लेकिन ऐसी चर्चा महिला जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ इस महत्वपूर्ण बिल के लिए भी चुनौती है कि आखिर सांप (सांसद पति), विप (विधायक पति) और पाप (पार्षद पति) से कैसे बचा जाएगा।

पूर्व मंत्री पर आयकर की नजर...! धमतरी कलेक्टर से पूछताछ?

आईएएस अधिकारी बी.एल. अग्रवाल का मामला अभी थमा भी नहीं है कि भाजपा सरकार के एक पूर्व मंत्री एक वर्तमान मंत्री और दो आईएएस अधिकारी के खिलाफ आयकर विभागत ने जांच शुरु कर दी है कहा जा रहा है कि इस संबंध में किसी दक्षिण भारतीय अधिकारी के द्वारा धमतरी कलेक्टर पी. सुनीता से मुलाकात कर पूछताछ की चर्चा है।
उल्लेखनीय है कि राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ में जिस तेजी से राजस्व बढ़ा है उसी तेजी से भ्रष्टाचार भी बढ़ा है और इस भाजपा सरकार के तो कई नेताओं और अधिकारियों पर खुलेआम भ्रष्टाचार के आरोप चौक-चौराहों पर सुने जा सकते हैं। यही वजह है कि कई लोगों ने आयकर विभाग से लेकर सीबीआई और लोकायुक्त को यहां के आधा दर्जन मंत्री और डेढ़ दर्जन से अधिक अधिकारियों के द्वारा बेहिसाब धन कमाने की शिकायत की है।
सूत्रों ने बताया कि पिछली सरकार में मंत्री रहे एक भाजपा नेता पर तो अपने विधानसभा व उससे लगे गांवों में बेहिसाब जमीन खरीदी का मामला उठने लगा है। बताया जाता है कि इस नेता द्वारा खरीदी गई जमीन के कागजात के साथ शिकायत की गई है। बताया जाता है कि इसी तरह एक वर्तमान मंत्री व उनके भाईयों द्वारा जमीन खरीदी-बिक्री के मामले की शिकायत आयकर विभाग से की गई है और इस दोनों ही मामले में गुप्त रुप से जांच किए जाने की खबर है। वैसे इस बात का खुलासा तभी हो गया जब पिछले दिनों आयकर विभाग के एक दक्षिण भारतीय अधिकारी ने अधिकारिक तौर पर धमतरी कलेक्टर से मुलाकात कर महत्वपूर्ण जानकारी ली। हालांकि इनकी मुलाकात का विस्तृत ब्यौरा नहीं मिल पाया है। लेकिन कहा जा रहा है कि इस अधिकारी की मुलाकात की वजह पूर्व मंत्री द्वारा खरीदी गई जमीन से संबंधित है। इधर धरसींवा सहित नई राजधानी व नगर निगम रायपुर से लगे क्षेत्रों में एक मंत्री व उसके परिवार द्वारा खरीदी जा रही बेनामी संपत्ति की भी जांच किए जाने की खबर है। बताया जाता है कि प्रदेश के कई अधिकारियों द्वारा दूसरे प्रदेशों में खरीदी गई संपत्ति की भी जांच चल रही है। बहरहाल पूर्व मंत्री के मामले में आयकर विभाग द्वारा की जा रही जांच को लेकर कहा जा रहा है कि कभी भी छापे की कार्रवाई का इंतजार है।

विजय बघेल का आदमी है कौन? क्या कर लेगा...

छत्तीसगढ में सरकार के संरक्षण में जिस तरह की लूट-खसोट मची है वह आश्चर्यजनक है। संसदीय सचिव के खास माने जाने वाले झीट पचायत के सरपंच गायत्री बाई चंदेल पति हरप्रसाद चंदेल ने तो सारी हदें पार कर दी और वह कारनामा कर डाला जिसे सुनकर सरकार की नीयत पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं काले कारनामें सामने आने के बाद भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
मामला पाटन विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत झीट का है यहां जनवरी में चुनाव हुआ और पवन ठाकुर सरपंच बना है। चुनाव के बाद जब पूर्व सरपंच द्वारा स्कूल निर्माण के लिए आए लोहे के छड़ को बेचने ले जाया जा रहा था तब सरपंच व ग्राम वालों ने मोतीपुर में जाकर मेटाडोर सहित छड़ को जब्त किया और इसकी शिकायत सब इंजीनियर से की गई।
बताया जाता है कि तब सब इंजीनियर ने सरपंच व गांव वालों को यह कह कर लौटा दिया कि वह संसदीय सचिव विजय बघेल का आदमी है मैं कुछ नहीं कर सकता कहकर लौटा दिया गया। बताया जाता है कि स्कूल के लिए 14 लाख रुपए स्वीकृत किए गए हैं और केवल 4 कमरे बने है व निर्माण अधूरा है। पैसों का पता नहीं है। जब गांव वालों ने इस मामले में गहराई से छानबीन की तब सनसनीखेज मामला सामने आया कि चुनाव के दो माह बाद पूर्व सरपंच ने तीन मार्च को 45 हजार पांच सौ और 18 हजार 4 सौ रुपए पंचायत के अलग-अलग बैंक खातों से निकाल लिया है।
इसकी जानकारी होते ही गांव वालों ने वर्तमान सरपंच पवन ठाकुर के नेतृत्व में इसकी शिकायत सीईओ से की लेकिन जांच का आश्वासन ही दिया गया। बताया जाता है कि गायत्री देवी के कार्यकाल में भारी घपला हुआ है और यह सभी घपले अधिकारियों को पता भी है लेकिन संसदीय सचिव विजय बघेल के करीबी होने के कारण इनके घपलों पर लीपापोती की गई।बहरहाल संसदीय सचिव विजय बघेल के करीबियों के कारनामें की यहां जमकर चर्चा है और दो-पांच हजार में खुश हो जाने की चर्चा तो पूरे पाटन क्षेत्र में है ऐसे में इस मामले का क्या होगा सबकी नजर है।

वादे से सरकार मुकरी,किसानों ने दी घुड़की

प्रदेशभर के अन्नदाता 18 मार्च को न केवल राजधानी आएंगे बल्कि सरकार के वादा खिलाफ के खिलाफ विधानसभा घेरेंगे। वहीं आंदोलन को कुचलने सरकारी स्तर पर भी षड़यंत्र की चर्चा है।
छत्तीसगढ क़े किसान इन दिनों सरकार के रवैये से त्रस्त हैं। उद्योगों और भवनों के लिए कृषि जमीन छीनी जा रही है तो दूसरी तरफ बोनस के नाम पर किसानों को छला जा रहा है। ज्ञात हो कि भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले किसानों को 270 रुपए बोनस देने की घोषणा की थी लेकिन सत्ता में आते ही वह अपने संकल्प को भूल गई। किसानों ने पिछली बार आंदोलन किया तो 50 रुपए बोनस देने की घोषणा की लेकिन बजट में 270 रुपए बोनस का कोई प्रावधान नहीं रखा।
इसी से आक्रोशित प्रदेशभर के किसानों ने 18 मार्च को विधानसभा घेरने की धमकी दी है। इसके अलावा उसने हड़ताल करने की धमकी तक दे दी है। यानी खेती किसानी नहीं करने की धमकी देश के इतिहास का अपने तरह का अनोखा निर्णय होगा। प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकारवार्ता में वीरेन्द्र पाण्डे, जागेश्वर साहू, पारसनाथ साहू, दिनदयाल वर्मा जैसे दिग्गज किसान नेताओं ने सरकार के खिलाफ जमकर विषवमन किया उन्होंने तो ठाकुर को ही ललकार दिया कि छत्तीसगढ में तो नाउ ठाकुर तक अपने वचन से नहीं मुकरते पता नहीं ये कैसे ठाकुर हैं। दरअसल किसानों के गुस्से की वजह सरकार की नीति है जिसके चलते किसानों की माली हालत दिनों दिन बदतर होते जा रही है और इसी का फायदा उठाते हुए 270 रुपए क्विटंल बोनस देने के लुभावने नारे के साथ भाजपा चुनाव में उतरी थी। किसानों ने कहा कि यदि सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए तो ईंट से ईंट बजा देंगे और सरकार को चैन से काम करने नहीं देंगे।
छत्तीसगढ में जोत का रकबा कम होता जा रहा है शहरों के आसपास की जमीनों को अधिग्रहित किया जा रहा है नई राजधानी के नाम पर खेती की जमीनें छीनी जा रही है। तो कालोनी बनाने जमीन छीनी जा रही है। उद्योगों के नाम पर भी हजारों एकड़ जमीन बर्बाद किया जा रहा है ऐसे मे किसानों की माली हालत पर गौर नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। इधर किसान नेताओं ने खुलकर कहा कि विधानसभा घेरने की चेतावनी पर भी सरकार नहीं मानी तो वे खेती किसानी बंद करने तक का निर्णय ले सकते हैं। इधर आंदोलन को कुचलने की रणनीति भी बनाए जाने की चर्चा है कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन को कुचलने कई तरह के कार्यक्रमों के अलावा ट्रांसपोर्टरों पर भी दबाव डाला जा रहा है कि वे अपनी वाहन किराए से न दे जबकि राजधानी की घेराबंदी भी जोरदार ढंग से की जा रही है।

सरकार में संविदा,घोटालेबाजों पर फिदा|दो दर्जन से अधिक भ्रष्ट व निकम्में अधिकारियों को संविदा नियुक्ति


यह तो भाजपा सरकार की कथनी और करनी का ही अंतर है वरना भय भूख और भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा देने वाले भाजपाई सरकार में आते ही दो दर्जन से अधिक भ्रष्ट और निकम्में अधिकारियों को संविदा नियुक्ति नहीं देते।
छत्तीसगढ में रमन सरकार ने जिस तरह से रणनीति बनाई है उससे आने वाले दिनों में विकास कार्यों पर विपरित प्रभाव पड़ना तय है एक तरफ वोट बैंक की राजनीति के तहत बंदरबांट चल रही है तो दूसरी तरफ धन्ना सेठों और भाजपा प्रमुखों व उनके रिश्तेदारों को कौडियों के मोल सरकारी जमीन दी जा रही है। मामला इससे भी बढ़कर संविदा नियुक्ति का है। आकस्मिक नौकरी के नाम पर जिस तरह से सेवानिवृत्त या नौकरी छोड़ चुके अफसरों को सरकार ने नौकरी पर रखना शुरु किया है उससे एक तरफ छत्तीसगढ क़े होनहार युवाओं की नौकरी तो खतरें में पड़ ही गई है घोटालों की नई-नई कहानियां सामने आई है।
छत्तीसगढ में केवल सेवानिवृत्त हो चुके या ले चुके अधिकारियों कि संविदा नियुक्ति देने का मामला 5 दर्जन से अधिक है इसमें से दो दर्जन से अधिक अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगा है भ्रष्ट अधिकारियों या निकम्मों को नौकरी देने की वजह आसानी से समझा जा सकता है। हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक ऐसे चोर अधिकारियों को संविदा नियुक्ति इसलिए दी जा रही है ताकि सरकार में बैठे लोग इनके भ्रष्टाचार के तरीकों का लाभ लेकर अपनी जेबें गरम कर सके। अमूमन सभी विभागों में इस तरह के लोगों का बोलबाला है और यहां भ्रष्टाचार की गंगा बहने लगी है।
छत्तीसगढ क़े विधानसभा तक में यह बात आ चुकी है कि संविदा नियुक्ति की वजह से भ्रष्टाचार में बढ़ोत्तरी हो रही है इसके बाद भी सरकार सेवानिवृत्त होने के बाद ऐसे भ्रष्ट व निकम्मों को नौकरी दे रही है। कभी लोक निर्माण विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर भी डंडा भांज चुके जी.एस. बाम्बरा को तीसरी बार संविदा नियुक्ति दी जा रही है तो इसकी वजह सरकार ही जाने लेकिन बाम्बरा किस तरह के अफसर है उनका सर्विस बुक देखकर ही समझा जा सकता है। इसी तरह मुख्यमंत्री के खास माने जाने वाले आईएएस अमन सिंह ने भी अपनी नौकरी छोड़कर संविदा नियुक्ति पा रहे हैं। इसी तरह कई भ्रष्ट अफसरों के रिश्तेदारों को भी मनमाने तरीके से नौकरी दी गई।सूत्रों के मुताबिक सरकार में बैठे कई मंत्री व अधिकारियों ने ऐसे अफसरों पर कार्रवाई की बजाय उनसे धन उगाही में लगे हैं और यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में करोड़ों रुपए इन्ही भ्रष्ट संविदा नियुक्ति वाले अफसरों पर खर्च किया जा रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस मामले में कांग्रेस ही नहीं छात्रों के हितैषी माने जाने वाले भी संगठन भी खामोशी से तमाशा देख रहे है जबकि ऐसी नियुक्ति की वजह से छत्तीसगढ क़े युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है। बहरहाल भ्रष्ट अधिकारियों को दी जा रही संविदा नियुक्ति से छत्तीसगढ में भ्रष्टाचार तो बढा ही है सरकारी खजानों से करोड़ों रुपए लूटने की कोशिशें भी जारी है।

गुरुवार, 11 मार्च 2010

जब सीएम को कहना पड़ा बृजमोहन सुधरेगा तो...







वैसे तो छत्तीसगढ़ की भाजपाई राजनीति में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल विपरित ध्रुव है इसलिए इनमें भीतर ही भीतर एक दूसरे के खिलाफ खेल खेलना नया नहीं है लेकिन पिछले दिनों संस्कृति विभाग के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से बृजमोहन अग्रवाल को सुधर जाने कहा तो सभा में मौजूद लोग अवाक रह गए। मामला गुरू तेजबहादूर समा गृह में संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम का है। बताया जाता है इस कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बोलने की बारी आई तो वे बृजमोहन अग्रवाल पर फट पड़े। मुख्यमंत्री ने सभा में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सभी लेखक पत्रकार हम लोगों को आईना दिखाकर सुधारने का काम करते हैं मैं तो बृजमोहन अग्रवाल से भी कहता हँ कि बृजमोहन सुधर जायेगा तो प्रदेश सुधर जायेगा। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री के इस उद्बोधन से सभा स्थल में थोड़ी देर के लिए मुर्दे सी खामोशी छा गई। और कार्यक्रम समाप्त होने के बाद डॉ. रमन सिंह के इस उद्बोधन की जबरदस्त चर्चा रही। बताया जाता है कि इन दिनों मुख्यमंत्री और पी डब्ल्यू डी मंत्री में जबरदस्त रूप से ठन गई है और बृजमोहन अग्रवाल की हरकतों से मुख्यमंत्री बेहद नाराज भी है और संस्कृति विभाग के कार्यक्रम में वे अपनी नाराजगी रोक नहीं पाये और सार्वजनिक रूप से उनका गुस्सा फट पड़ा हालांकि इस कार्यक्रम के दो-तीन-दिन बाद पीडब्ल्यू डी मंत्री इग्लैण्ड की यात्रा पर रवाना हो गये हैं इसलिए उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है। इधर राजनीति के जानकारों का कहना है कि पूरे देश में जिस दौर से भाजपा गुजर रही है उससे छत्तीसगढ़ भाजपा अलग नहीं है। गुटों में बंटे भाजपा नेताओं ने निगम चुनाव और नये राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति का रास्ता देख रहे हैं। वैशाली नगर का परिणाम भी इसी वजह से भाजपा के लिए ठीक नहीं आया हैं। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल की सुधरने की मुख्यमंत्री की सीख को लेकर यहां जबरदस्त चर्चा है।

बुधवार, 10 मार्च 2010

जमीन हड़पने की कोशिशें तेज....

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले ही यहां के अखबारों ने कौड़ी के मोल सरकारी जमीनों को हथियाने का खेल शुरू कर दिया। वैसे जानकारों का कहना है कि मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपने कार्यकाल में न केवल अखबार मालिकों को लाखों रुपये का विज्ञापन देकर खुश किया बल्कि प्रदेश के सभी बड़े शहरों की सबसे महंगी भूखंडों को भी कौडियों के मोल में इन अखबार वालों को दिया। यह अर्जुन सिंह जी की एक हाथ ले और एक हाथ दे कि नीति थी और इसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया फिर छत्तीसगढ़ राज्य बना तो यही खेल शुरू हुआ और रजबंधा तालाब जो मैदान रह गया वहां जमीनें दी गई। ऐसा नहीं है कि जमीनें केवल अखबार वालों को ही दी गई भाजपा शासनकाल में तो यहां भाजपा कार्यालय के नाम पर जमीन दी गई और जमीन का एक बड़ा हिस्सा बिल्डरों को दूकानें बनाकर बेचने के लिए दी गई।
रजबंधा में जो जमीनें दी गई उनके उपयोग को लेकर सवाल उठते रहे हैं कि आखिर अखबार चलाने के लिए दी गई जमीनों का कोई दूसरा उपयोग कैसे कर सकता है। दूनिया को नियम कानून सीखाने वाले अखबार मलिक अपने हिस्से की इन जमीनों का उपयोग क्या नियम कानून के तहत कर रहे हैं। यह एक ऐसा सवाल है जो अखबार के गिरते स्तर को प्रदर्शित करता है।
आम आदमी भले ही कुछ न करें लेकिन उसे मालूम है कि कौन-कौन अखबार वाले इन जमीनों का व्यवसायिक उपयोग कर रहे हैं और राजधानी में बैठे अधिकारी तो सिर्फ नौकरी कर रहे हैं. उन्होंने शायद अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है इसलिए वे भी इनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाते। कहा जाता है कि जब प्रशासन नपुसंक हो जाए को अराजकता की स्थिति बनती है और अखबारों के मामले में प्रशासन का यह रवैया आम आदमी को चुभने लगा है।
और अंत में
कभी श्रमजीवियों को बेशरमजीवी कहने वाले एक पत्रकार ने मलिक बनते ही न केवल श्रमजीवियों की जमीनें हड़पी बल्कि अब वह यहाँ व्यवसायिक काम्प्लेक्स भी बना रहा है ऐसे में उनकी पत्रकारिता पर ऊंगली उठना स्वभाविक है।

मंगलवार, 9 मार्च 2010

नई आज़ादी को सलाम


२४ साल की पत्रकारिता में शयद पहली बार मैंने महसूस किया की आज मेरे पास शब्द नहीं है ? महिला बिल का पास होना नई आजादी है मैंने १९४७ की आज़ादी नहीं देखी है लेकिन मेरा दावा है यह नई आज़ादी भी उससे कम किसी हल में नहीं है

महिलाए सिर्फ मां नहीं बहन नहीं वह पुरुष की जीवन संगिनी भी होती है ऐसी जीवन संगिनी जो हर हाल में अपनो की ख़ुशी के लिए अपना सर्वत्र निछावर कर देती है मै ये नहीं कहता की मै कुछ नया कह रहा हूँ और न ही मै किसी को यह सब याद ही दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ दरअसल इस नई आज़ादी की ख़ुशी ने मुझे भीतर तक गुदगुदा दिया है मै नहीं जानता की इस खुशी को कैसे व्यक्त करना चाहिए लेकिन इतना जानता हूँ कि आज़ादी मिली है

मेरा देश अब और अच्छे से जीयेगा क्योकि घर बनाने वाली अब देश बनाएंगी

क्या कहूँ -----


डंडे की चोंट पर भ्रष्टाचार,बृजमोहन अग्रवाल के सभी विभागों में घोटाले!



छत्तीगढ़ में वैसे तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है और अधिकारियों ने राम नाम की लूट मचा रखी है लेकिन राजधानी के दमदार मंत्री माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के विभागों की समीक्षा में यह बात खुलकर आई है कि उनके विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है और अधिकारियों ने चौतरफा लूट मचा रखी है।
राजधानी के विधायक और मुख्यमंत्री के प्रबल प्रतिद्वंदी माने जाने वाले लोक निर्माण शिक्षा और पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को सुर्खियों में बने रहना आता है और इसके चलते वे अक्सर विवादों में भी घिर जाते है। ताजा मामला स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा खरीदे जाने वाले चयनित पुस्तकों का है। कहा जाता है कि इन चयनित पुस्तकों को परिवर्तन करने का दबाव के अलावा पसंदीदा प्रकाशकों से लेन-देन के आरोप भी मंत्री जी पर लगने लगे हैं।
बताया जाता है कि इस संबंध में अखिल भारतीय महिला प्रकाशक संघ ने तो बृजमोहन अग्रवाल पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए यहां तक कहा है कि यहां दलाल राजेन्द्र अग्रवाल और आर.एन. सिंह ने महिला प्रकाशकों को भी यह कहकर टरका दिया कि मंत्री जी से मिलना हो तो रात 12 बजे के बाद आइये। महिला प्रकाशकों ने इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री से भी किए जाने की जानकारी दी है।
महिला प्रकाशकों का आरोप कितना सही है यह तो वही जाने लेकिन शिक्षा विभाग जिस तरह से अनियमितता चल रही है वह आश्चर्यजनक है। तवारिस से लेकर बाम्बरा मामले में बृजमोहन की रूचि से पार्टी के ही लोग नाराज हैं। जबकि तवारिस पर कई गंभीर आरोपों के अलावा कांग्रेसी होने का भी आरोप है। बताया जाता है कि प्रकाशकों को साफ तौर पर बृजमोहन अग्रवाल के दलालों द्वारा खुले आम पैसा मांगे जाने का आरोप लगाया जा रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि जो प्रकाशक सबसे ज्यादा कमीशन देगा काम उसे ही मिलेगा।
महिला प्रकाशकों ने पुस्तक खरीदी मामले का उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग करते हुए बृजमोहन अग्रवाल व उनके रिश्तेदारों की संपत्ति की भी जांच की मांग की है। ऐसा नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल और उनके समर्थकों पर भ्रष्टाचार का आरोप पहली बार लगा हो बल्कि समता से लेकर अग्रोहा और जब वे गृहमंत्री थे तब उनके भाईयों की करतूतों की भी खबरें स्थानीय मीडिया में छपते रही हैं।
यही नहीं इस शासनकाल में भी पर्यटन विभाग हो या संस्कृति विभाग का मामला हो अधिकारियों की करतूतों के कारण बृजमोहन अग्रवाल सुर्खियों में रहे हैं। जबकि पीडब्ल्यूडी में तो ठेकेदारी में खुलेआम कमीशनखोरी अभी भी जारी हैं और घटिया सड़कों से लेकर डामर घोटालों के आरोपियों को बचाए जाने को लेकर विवाद कायम है। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल के विभागों पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, पर्यटन और संस्कृति में डंके की चोंट पर भ्रष्टाचार चल रहा है और यही स्थिति रही ते आने वाले दिनों में सरकार को मुसिबतों का सामना करना पड़ सकता है।
बृजमोहन की सुर्खियां
शिक्षा विभाग- 1. पुस्तक क्रय में 2. तवारिस की बहाली 3. संविदा नियुक्ति
पर्यटन विभाग- 1. बगैर नाम पते का करोड़ो भुगतान 2. स्टेशनरी घोटाला 3. संविदा नियुक्ति 4. प्रचार-प्रसार घोटाला 5. घास बसुंडी 6. विदेश यात्रा
संस्कृति विभाग- राज्योत्सव बनाम लुटोत्सव 2. संविदा नियुक्ति 3 . प्रचार-प्रसार घोटाला 4. स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा 5. बाहर के कलाकारों में दलाली 6. कुंभ
पीडब्ल्यूडी विभाग- खुलेआम कमीशनखोरी 2. घटिया सड़कें 3. डामर घोटाला

जिद् करो...अखबार बदलो

जिद करो और दुनिया बदलों का स्लोगन लिए देशभर में अपने साम्राय स्थापित करने की होड़ में अपने घर को ही नहीं बचा पाने की चर्चा इन दिनों मीडिया जगत में छाई हुई है तो इसकी वजह इस अखबार की वह करतूत है जो आंख बंद कर तेज दौड़ने वालों के साथ अक्सर होती है।
जी हां! यहां हम अग्रवाल परिवार के दैनिक भास्कर की बा कर रहे हैं। इन दिनों दैनिक भास्कर में जो कुछ हो रहा है उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता। जिस तेजी से अखबार ने अपने पैर पसारे थे आज वह उतनी ही तेजी से बिखरने लगा है। ताम-झाम में माहिर इस अखबार को राजधानी रायपुर में मिल रहे लगातार झटके से इसके प्रसार संख्या में भी गिरावट की खब है और इसके पीछे प्रबंधन तंत्र की लापरवाही को बताया जा रहा है। वैसे तो राज एक्सप्रेस, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका जैसे बड़े अखबारों के अलावा नेशनल लुक जैसे अखबारों के द्वारा भी भास्कर से दुश्मनी की चर्चा है। नईदुनिया ने तो भा्कर में तोड़फोड़ की ही नेशनल लुक ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखा और अब राज एक्सप्रेस और राजस्थान पत्रिका पर तो कील ढोकने की कोशिश के आरोप लगने गे हैं।
यहीं नहीं भास्कर के 14 माले का शापिंग माल का सपना भी तोड़ने कई लोग आमदा है। सरकार द्वारा कौड़ी के मोल मिले स्वयं की जमीन होते हुए भी किराये के भवन में जाने को लेकर भी यहां चर्चा गरम है। ऐसे में घटती प्रसार संख्या का तोहमत वह कैसे दूर करेगी यह ता वही जाने लेकिन कहा जा रहा है कि अंदरूनी हालात के चलते मनीष दवे को बिलासपुर भेज दिया गया है। जबकि बाहर से आए वे लोग सीटी संभालने लगे हैं जिन्हें न राजधानी का ज्ञान है और न ही यहां की गलियों से ही परिचित है।
और अंत में
अखबारों में प्रतिस्पर्धा नई नहीं है प्रसार संख्या बढ़ाने बड़े अखबारों में क्या कुछ नहीं होता लेकिन इन दिनों भास्कर की प्रसार संख्या घटाने एक मंत्री की रूचि चर्चा का विषय है। अपने लुक में पैसा लगाने वाले इस मंत्री के द्वारा इस काम में अपने मुखिया से भी सहमति लेने की चर्चा अब तो चौक चौराहों पर भी होने लगी है।

राहुल का चला रंग , संघ हुआ बदरंग



यह तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना सिद्वांतों की दुहाई देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह चेहरा भोपाल में आयोजित हिन्दू समागम में कभी नहीं दिखाई देता। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बढती लोकप्रियता के कारण बौखलाए संघ ने हिन्दू समागम के नाम पर ठेकेदारों, बिल्डरों और बदनाम अफसरों का मेला लगा लिया जहां संघ के प्रशिक्षित कार्यकर्ता कम नेता अधिक नजर आए।
राष्ट्रीय सेवक संघ वैसे तो शुरु से ही विवादों में रहा है और उनकी सत्ता की भूख समय-समय पर दिखती भी रही है लेकिन इसके बावजूद सिध्दांतों की बलि देने की ऐसी कोशिश तब भी नहीं हुई थई जब सत्ता सुंदरी के लिए अटल बिहारी की टीम ने राम मंदिर, धारा 370 और एक समय नागरिक संहिता की बलि दी थी। लेकिन भोपाल में हिन्दू समागम के नाम पर जिस तरह से निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया गया अऔर बिल्डरों, ठेकेदारों, भ्रष्ट अफसरों के साथ भाजपा के कमाऊ नेता-मंत्रियों को तरहीज दी गई उससे संघ का नया चेहरा दिखाई देने लगा है। संघ का यह चेहरा राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण बदरंग होते साफ महसूस किया जा रहा है।
दरअसल इन दिनों भाजपा की पराजय ने संघ को लहूलुहान कर दिया है और संघ के सरसंघचालक अखिल भारतीय प्रवास पर हैं। जगह-जगह वे समाज के विभिन्न तबको को अपने साथ जोड़ने उन्हें संघ-वाणी पिला रहे हैं। छत्तीसगढ क़ी राजधानी रायपुर के बाद मध्यप्रदेश में भी भागवत का कार्यक्रम हुआ। दोनों ही जगह भापा की सरकार है। इसलिए सामाजिक सद्भाव बैठक और हिन्दू समागम में सरकार ने भीड़ जुटाने पूरी ताकत झोंक दी और संघ का राजनैतिक प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ा।
भोपाल में तो आयोजित कार्यक्रम की समिति का अध्यक्ष पूर्व डीजीपी एच.एस. जोशी को बनाया गया लेकिन जैसे ही उनके पुत्र व पुत्रवधु के यहां आयकर के छापे पड़े और करोड़ों रुपए बरामद हुआ। जोशी जी को हटाकर न्यायमूर्ति आर.डी. शुक्ला को आयोजन समिति का अध्यक्ष बना डाला। जबकि श्री शुक्ला की पहचान संघ से यादा समाजवादी पृष्ठभूमि की है। आयोजन समिति में संघ के निष्ठावान कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को शामिल करने की बजाय भाजपा की नेतागिरी करने वाले को रखा गया। यही नहीं आयोजन समिति का सदस्य व्यवसायी दीपक शर्मा को बनाया गया जो भाजपा नेता लक्ष्मीनारायण शर्मा के पुत्र हैं। हालांकि लक्ष्मीनारायण शर्मा को उमा भारती समर्थक होने के कारण भाजपा में भाव नहीं दिया जाता लेकिन अर्थ युग होने की वजह से दीपक शर्मा का भाजपा में प्रभाव है।
सबसे रोचक बात तो यह है कि इस कार्यक्रम में होल्डिंग व प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी बिल्डरों व ठेकेदारों को दी गई और अफसरों को भी अघोषित तौर पर भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई। यही वजह है कि संघ का यह कार्यक्रम सम्पन्न तो हो गया लेकिन सफल नहीं हुआ।
संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक संघ की इस नई रणनीति से हैरान है जबकि एक वर्ग का मानना है कि संघ जैसे भी उपाय कर ले लेकिन राहुल का जलवा के आगे उसकी सारी गणितबाजी फेल होगी। बहरहाल संघ के इस नए चेहरे से बिल्डर, ठेकेदार और भ्रष्ट अफसर खुश है कि चलों उनके लिए किसी ने तो मंच स्थापित किया है लेकिन आम लोगों में संघ के इस नए चेहरे पर तीखी प्रतिक्रिया है।

रविवार, 7 मार्च 2010

अब बाबा भारती क्या कहेंगे

प्रायमरी स्कूल की एक किताब में बाबा भारती की मशहूर कहानी है जिसमें गरीब बनकर उनके घोड़े को छीना जाता है तब बाबा भारती ने उस डकैत से कहा था कि बेटा! तुम घोड़े ले जा तो रहे हो लेकिन किसी से यह मत कहना कि गरीब बनकर तुमने लूटपाट की है वरना कोई गरीबों पर भरोसा नहीं करेगा। अंदर तक झिंझोर देने वाली यह कहानी इन दिनों साधु और समाजसेवी दोहरा रहे हैं। कहीं साधु सेक्स कांड में फंस रहे हैं तो कहीं समाजसेवा की आड़ में बच्चे तक बेचे जा रहे हैं।
राजधानी में भी शासकीय नौकरी के नियमित पगार से असंतुष्ट नारायण राव ने आश्रम खोल लिया और बच्चे बेचने का काम करने लगा। आश्रम की आड़ में वह और भी क्या कुछ करता रहा है यह तो वही जाने लेकिन समाजसेवा और धर्म सेवा की आड़ में क्या कुछ हो रहा है वह अंधेरगर्दी से कम नहीं है।
नारायण राव एक न्यूज चैनल सहारा के स्ट्रींग आपरेशन में धरा गया। खबर को सिर्फ इतनी ही मान लेने वालों के लिए हमें कुछ नहीं कहना है लेकिन उसे आश्रम के लिए जमीन देने वाली सरकार और नारायण राव से संबंध रखने वाले मंत्री उसके इस पाप से बच नहीं सकते। दो-तीन सालों से प्रदेश में एनजीओ के रुप में नए-नए समाज सेवक पैदा हुए हैं जो सरकारी धन लेकर समाजसेवा का ढोंग रचते हैं और आधे से ज्यादा रकम अपनी तनख्वाह और आफिस खर्च पर हजम कर जाते है लेकिन सरकार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। यह सरकारी अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
छत्तीसगढ़ में तो समाजसेवा के नाम पर एनजीओ ने लूट मचा रखी है यहां के अफसरों से लेकर मंत्रियों तक का एनजीओ को न केवल संरक्षण है बल्कि कई अधिकारियों के रिश्तेदार तक एनजीओ के नाम पर सरकार का खजाना लूट रहे हैं। एनजीओ को पैसा देने के बाद सरकार ने कभी पैसे के सदुपयोग की जांच नहीं कराई। रमन सरकार के दाल-भात केन्द्र हो या फिर निर्मल ग्राम योजना, स्कूलों को दी जाने वाली मध्यान्ह भोजन हो या फिर शहरों के यातायात के लिए हर क्षेत्र में एनजीओ ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और सरकारी धनों का जी भर कर दुरुपयोग किया। ये पैसे कहां खर्च कर रहे हैं कोई पूछने वाला नहीं है।
सरकार के इसी रवैये के कारण ही सरकारी जमीनों को कौड़ी के मोल दी गई जहां नारायण राव जैसे लोगों का जन्म हुआ है या फिर सरकारी जमीनों पर बिजनेस काम्प्लेक्स बनाए गए। अखबारों के नाम पर दी गई जमीनों पर दुकानें बनाना या आवश्यक सेवा के नाम पर बैकों से किराया लेना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। नारायण राव तो सिर्फ एक उदाहरण है कि समाजसेवा की आड़ में यहां क्या कुछ हो रहा है ऐसे कितने ही नारायण राव हैं जो सरकार के संरक्षण में आम लोगों के पेट में लात मार रहे हैं और सरकारी खजानों का नीजि उपभोग कर रहे हैं।

सेक्स-बाला का पीएचक्यू में जलवा

छत्तीसगढ़ की राजधानी के करीब दर्जनभर अधिकारी इन दिनों सेक्स बाला के जुल्फों से खेलने मशगुल हैं खासकर पीएचक्यू में इस महिला की आवाजाही को लेकर जबरदस्त चर्चा है और जिस पत्रकार के जरिये इसने बिलासपुर से रायपुर का सफर किया है उसे लेकर भी यहां कभी भी गंभीर घटना की आशंका जताई जा रही है।
वैसे तो इन दिनों पूरे देश में साधुओं और समाजसेवियों की करतूतों को लेकर जबरदस्त चर्चा है इन चर्चाओं को लेकर राजधानी भी अछूता नहीं रह गया है। वैसे राज्य बनने के पहले भोपाल में भी शब्बो उर्फ शबनम की वजह से प्रशासनिक हल्कों में जबरदस्त चर्चा रही है और तब आधा दर्जन प्रशासनिक अधिकारियों के नाम सामने भी आए थे। इन दिनों राजधानी के पुलिस मुख्यालय में एक सेक्स बाला की आवाजाही चर्चा में है और कहा जाता है कि इस सेक्स बाला ने मंत्रालय के भी अफसरों को भी गिरफ्त में लिया है और होली के एक दो दिन पहले तो इस युवती की वजह से गोली चलने की भी चर्चा रही लेकिन पूरे मामले को उच्च स्तरीय प्रयास से दबाया गया।
इधर बताया जाता है कि बिलासपुर में अपने जलवे दिखला चुकी इस युवती को लेकर वहां अधिकारियों में ठन भी गई थी और एक पत्रकार की मध्यस्थता से मामले को सुलझाया गया जबकि मामला थाने तक भी जा पहुंचा था। बिलासपुर के बाद इसी पत्रकार के सहारे इस युवती ने राजधानी आना-जाना शुरु किया और देवेन्द्रनगर जैसे पॉश कालोनी में अपना आशियाना भी बनाया। बताया जाता है कि इस पत्रकार के सहारे इसने अधिकारियों से मेल मुलाकात शुरु की और शीघ्र ही अपने जलवे भी दिखाना शुरु कर दिया। यदि पुलिस मुख्यालय के हमारे सूत्रों पर भरोसा करें तो कहा जाता है कि इस युवती के जुल्फ में अब तक आधा दर्जन अधिकारी कैद हो चुके हैं। जबकि मंत्रालय में भी इसका जलवा है।
बहरहाल इस सेक्स बाला के चलते कभी भी गंभीर विवाद उत्पन्न हो सकता है और कहा जा रहा है कि उच्च स्तरीय जांच से कई अधिकारी भी बेनकाब होंगे।

सांसद प्रतिनिधि को लेकर सरोज पाण्डेय विवाद में...



वैसे तो राजनीति इन दिनों पूरी तरह व्यवसाय का रुप ले चुकी है जहां पार्टी के सिध्दांत कुर्सी तक आकर सिमट जाते हैं। ऐसा ही एक मामला दुर्ग की सांसद सरोज पाण्डेय का है जहां एक पूर्व कांग्रेसी को सांसद प्रतिनिधि बनाए जाने को लेकर बवाल मच गया है।
वैसे तो सरोज पाण्डे का विवादों से पुराना नाता है। छिंदवाड़ा चुनाव के समय से चर्चा में रही सरोज पाण्डे ने राजनीति में जिस तेजी से छलांग लगाई है उसे लेकर कई तरह की चर्चा है। ताजा विवाद उनके द्वारा सांसद प्रतिनिधि की नियुक्ति को लेकर है। इस बार उसने जामुल नगर निगम क्षेत्र से सांसद प्रतिनिधि रीतेश सेन को बनाया है। रीतेश सेन वर्तमान में वार्ड नं. 10 से निर्दलीय पार्षद है। बताया जाता है कि दूसरी बार पार्षद बनने वाले रीतेश सेन कांग्रेस से भी पार्षद रहे हैं और इस बार बागी होकर चुनाव लड़ने की वजह से कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से हटा दिया।
बवाल की वजह यही है कि सांसद सरोज पाण्डे ने निष्ठावान भाजपाईयों को छोड़ ऐसे व्यक्ति को सांसद प्रतिनिधि बना दिया जिसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। इस मामले की उच्चस्तरीय शिकायत भी की जा रही है। हालांकि शिकायत करने वाले खुद मानते हैं कि ऐसी शिकायतों से कुछ होना जाना नहीं है लेकिन निष्ठावान भाजपाईयों में इसे लेकर चर्चा गर्म है और विरोध के लिए मौके तलाशे जा रहे हैं।

रमन की होशियारी, गडकरी की गणितबाजी





ऊपर से शांत दिख रही भाजपा में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पहले ही बगावत का झंडा उठा चुके आदिवासी नेता रामविचार नेताम ने आदिवासी एक्सप्रेस चलाना शुरु कर दिया है तो डॉ. रमन सिंह राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने दुश्मनों को भेजने होशियारी दिखा रहे है। प्रदेश अध्यक्ष पद पर मुरारी सिंह का नाम आदिवासी एक्सप्रेस के तोड़ के रुप में देखा जा रहा है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह पर दबाव बनाए रखने गणितबाजी में उलझे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के भाजपाई राजनीति में उथल-पुथल की सुगबगाहट शुरु हो गई और कहा जा रहा है कि आदिवासी सांसदों, आदिवासी मंत्रियों सहित दर्जनभर विधायक मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से बेहद खफा है और वे कभी भी डॉ. रमन सिंह के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल सकते हैं। वैसे डॉ. रमन सिंह के खिलाफ असंतोष की खबरें नई नहीं है। राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय तो गाहे-बगाहे मौके की तलाश में रहते हैं जबकि रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर और सोहन पोटाई का भी नाम सत्ता परिवर्तन में रुचि रखने वालों में शुमार है।
पिछले दिनों राजधानी में 32 प्रतिशत आरक्षण को लेकर हुई रैली में भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेताओं की मौजूदगी में डॉ. रमन सिंह के खिलाफ हुई नारेबाजी को भी इसी रूप में देखा जा रहा है। इस रैली में रामविचार नेताम की सक्रियता को लेकर भी कई तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग में भी जबरदस्त आक्रोश है लेकिन रायपुर के सांसद रमेश बैस की चुप्पी की वजह से पिछड़ा वर्ग खामोश है और उन्हें नेतृत्व की तलाश है। हालांकि चन्द्रशेखर साहू की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं और सूत्रों का कहना है कि रायपुर में दशक पहले राज्य की मांग उठाकर अपना हाथ जला चुके चंपू साहू फिलहाल मौन है और दूध का जला... वाली कहावत पर चल रहे हैं।
इधर डा. रमन सिंह ने ब्राम्हण और बनिया से निपटने नई रणनीति बना ली है और कहा जा रहा है कि एक तीर से दो शिकार की तर्ज पर वे सरगुजा के आदिवासी सांसद मुरारी सिंह को प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर जहां आदिवासी एक्सप्रेस की हवा निकालने में लगे हैं वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने दुश्मनों को भेजने की रणनीति पर चल रहे हैं। कहा जाता है कि लगातार विवादों में रहने वाले राजधानी के विधायक बृजमोहन अग्रवाल को वे एक बार फिर महत्व देने लगे हैं ताकि विरोधियों को ताकत न मिले।
बताया जाता है कि डॉ. रमन सिंह की असली चिंता आदिवासी नेताओं की एकजुटता है और वे इस एकजुटता को तोड़ने मंत्रियों को जिम्मेदारी दे रखे हैं। इसके तहत अलग-अलग मंत्री दो तीन आदिवासी विधायकों को संभालने का काम कर रहे हैं। बहरहाल भाजपा में चल रहे इस अंदरूनी उठापटक की दबी जुबान पर चर्चा होने लगी है और कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा के बाद स्थिति साफ होगी।

शनिवार, 6 मार्च 2010

चावल योजना से मध्यम वर्ग त्रस्त भाजपाई सत्ता सुख में मस्त

छत्तीसगढ़ में एक-दो रुपया किलो चावल योजना के चलते मध्यम वर्ग का बुरा हाल है। लेबर प्राब्लम के साथ-साथ चावल सहित अन्य समानों की कीमतों में दो गुणा वृद्धि हो गई है जबकि चावल वास्तविक लोगों को मिलने की बजाय कालाबाजारी में चला गया है।जगह-जगह मध्यम वर्ग की तरफ से यह सवाल उठाये जा रहे हैं कि आखिर एक रुपया किलो चावल बांटकर सरकार को वोट बैंक की राजनीति करने का अधिकार क्या है? इस एक रुपया किलो चावल योजना का दुष्परिणाम मध्यम वर्ग को सर्वाधिक भुगतना पड़ रहा है। ब्राम्हणपारा निवासी संजीव तिवारी ने कहा कि इस एक रुपया किलो चावल योजना की वजह से घरेलु काम के लिए नौकर-नौकरानी नहीं मिल रही है। पहले जो लोग मन लगाकर काम करते थे वे इस योजना के लागू होने के बाद छुट्टियां मारने लगे। सुंदर नगर निवासी प्रमिला पाण्डे ने कहा कि इस योजना के कारण महंगाई बढ़ गई है 16 रुपए किलो वाला एचएमटी चावल 40 रुपए किलो मिल रहा है। नौकरो का भाव अलग बढ़ गया है।
इसी तरह सदर बाजार निवासी नवरतन गोलछा का कहना था कि इस योजना ने प्रदेश की आर्थिक स्थिति को जर्जर कर दिया है। चावल योजना का लाभ वास्तविक लोगों को कम जमाखारों-कालाबाजारियों को अधिक मिल रहा है। जबकि प्रभाकर अग्रवाल का कहना था कि फर्जी राशन कार्ड बनाकर एक रुपया किलो वाले चावल दूसरे प्रांतों में बेचा जा रहा है।
बताया जाता है कि चावल योजना को लेकर सबसे यादा त्रस्त मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लोग है क्योंकि इन वर्गों को न केवल महंगाई का सामना करना पड़ रहा है बल्कि घरेलू नौकरों के भाव बढ़ने से सर्वाधिक परेशानी इन्हीं वर्गों को उठाना पड़ रहा है। ऐसे में भले ही भारतीय जनता पार्टी नगरीय निकाय चुनाव में व्यक्तिगत ईमेज का अमलीजामा पहनाये मध्यम वर्ग भाजपा के खिलाफ बड़े पैमाने पर वोट डाला है।
राजधानी में भाजपा ने प्रभा दुबे को अपना प्रत्याशी बनाया प्रभा दुबे को इस चावल योजना के चलते भारी नुकसान उठाना पढ़ा है। राजधानी में रहने वाले यादातर ब्राम्हण वोटर मध्यम वर्ग के हैं और इस प्रतिनिधि को चर्चा के दौरान अधिकांश लोगों का कहना था कि वे चावल योजना से त्रस्त है इसलिए यदि ब्राम्हणपारा की बात हुई तो वे बसपा प्रत्याशी प्रणिता पाण्डे को वोट दे देंगे लेकिन भाजपा को वोट नहीं देंगे। आखिर ऐसे लोगों को कैसे चुना जा सकता है जिनकी सरकार के चलते मध्यम वर्ग त्रस्त है।
सूत्रों की माने तो चावल योजना भाजपा के लिए गले की हड्डी बनते जा रही है। रोज हजारों की संख्या में फर्जी राशन कार्ड पकड़ाये जा रहे है। यदि खबरों पर भरोसा करे तो मुख्यमंत्री के गृह जिले कवर्धा में एक गुप्ता परिवार ने चावल योजना के चावल को पटना भेजकर करोड़ों रुपया कमाया और सालभर के भीतर ही 7 ट्रक खरीद लिया।
राजधानी में भी बड़े पैमाने पर फर्जी राशन कार्ड पकड़ाये गए। यहां तक कि ये चावल किराना स्टोर्स में भी बिक रहे है। वास्तविक लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है और कालाबाजारी करने वाले मस्त है।
बहरहाल सरकार की चावल योजना को लेकर मध्यम वर्ग त्रस्त है

बैंक कर्मियों की अवैध उगाही से लोग त्रस्त

यह तो सीधे-सीधे लोगों की जेब में डाका डालने वाली बात है और जब यह डाका बैंक ही डालने लगे तो आम आदमी किस पर भरोसा करे। अब तो बैंक कर्मी एनओसी देने सौ रुपए ले ही रहे हैं। नोटों का बंडल गिनने भी पैसे वसूल रहे हैं। प्रति बंडल 15 रुपए की रसीद नहीं चाहिए तो इसके आधे में भी बंडल गिने जाते हैं।
राजधानी में चल रहे निजी बैंकों के इस ड्रामेबाजी से आम आदमी ही नहीं व्यापारी भी त्रस्त है लेकिन वे इसका दबी जुबान से विरोध भी कर रहे हैं। लेकिन बैंकों की हठधर्मिता के कारण वे खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं।
निजी बैंकों की इस दादागिरी के संबंध में एक व्यापारी विजय जैन ने बताया कि यह तो हद है। उन्होंने बताया कि पीएनबी में प्रति बंडल गिनने के 15 रुपए लिए जाते हैं और इसका बकायदा रसीद भी दिया जाता है लेकिन यदि आपको रसीद नहीं लेना है तो आधी राशि में आपके रुपयों का बंडल गिन लिया जाएगा और यह राशि सीधे-सीधे बैंक कर्मियों की जेब में जाता है। श्री जैन ने इसकी शिकायत छत्तीसगढ चेम्बर से भी की है लेकिन चेम्बर भी अभी तक इस मामले में खामोश है।
बताया जाता है कि इस तरह का खेल कई अन्य निजी बैंकों में चल रहा है जिससे आम लोग या व्यापारी त्रस्त है। व्यापारी नेता कन्हैया अग्रवाल ने इसे सीधे-सीधे लोगों की जेब में डाका डालने वाला बताते हुए कहा कि यह उचित नहीं है और यदि बैंकों ने अपना रवैया नहीं सुधारा तो इसका जोरदार विरोध किया जाएगा।
दूसरी तरफ ऋण लेने वालों को अन्य बैकों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ता है लेकिन बैंक कर्मी बगैर रिश्वत लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं देते। लाखेनगर निवासी घनश्याम सोनकर ने कहा कि जिस बैंक से कोई लेना देना नहीं है वहां सिर्फ एनओसी के नाम पर सौ दौ सौ रुपए की उगाही से लोग त्रस्त है। राजधानी जैसी जगहों पर जहां दर्जनों बैंकों से एनओसी लेना पड़ता है हजारों रुपए बैंक कर्मियों के अवैध उगाही में चला जाता है। एक तो ऋण लेने वाले बेरोजगार युवकों को बैंकों का चक्कर लगाना वैसे ही भारी पड़ता है उपर से रिश्वत देना पड़े तो क्या हाल होता होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल बैंक कर्मियों की इस अवैध उगाही से लोग त्रस्त है खासकर व्यापारी वर्गों में भारी नाराजगी है। लेकिन व्यापारियों की संस्था चेम्बर ऑफ कामर्स की चुप्पी आश्चर्यजनक है और इसे लेकर कई तरह की चर्चा है।

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

अंधा पीसे, कुत्ता खाय...

यह तो अंधा पीसे कुत्ता खाय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना स्वयं को स्थापित और बड़ा अखबार बनने की जिद में पत्रकारिता की दिनों-दिन यह दुर्गति नहीं होती। पिछले कुछ सालों से राजधानी के पत्रकारों में ही नहीं पत्रकारिता में भी बदलाव की बयार चली है। खबरों को तोड़ मरोड़ कर सनसनी फैलाने की नई परम्परा के साथ-साथ संबंधों को ज्यादा अहमियत दी गई। अखबारों से पाठकों के साथ संबंधो को अहमियत दी जाती है तो सवाल कभी नहीं उठते लेकिन अहमियत दी गई अफसरों और नेताओं से संबंध स्थापित करने की। इसके चलते पत्रकारों की सोच में तो बदलाव आया ही पत्रकारिता की दुर्गति भी हुई। खासकर एम्सवन्लूजिव्ह और खोजी पत्रकारिता को तो बड़ा झटका लगा है। खबरों की तह तक जाने की परम्परा का भी अनादर हुआ। इससे अखबार मालिक और पत्रकार दोनों खुश है लेकिन पाठकों का एक वर्ग जो व्यवस्था की चोंट से पीड़ित है उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। अब तो अखबारों में सामाजिक और सरकारी खबरें ही ज्यादा दिखाई देती है। अपराधिक खबरों में भी वही खबर छपती है जो पुलिस बता देती है। मेरा दावा है कि राजधानी के अखबारों में काम करने वाले क्राईम रिपोर्टरों में आधे रिपोर्टर ऐसे होंगे जो राजधानी के 23 थानों और चौकियों को महिनों से नहीं देखे होंगे। ऐसे में उन थानों या चौकियों में हो रही अच्छी या बुरी कार्रवाई की खबरें कैसे छपती होगी अंदाज लगाया जा सकता है। संपादकों का क्या? अब तो रोज संपादकीय लिखना भी जरूरी नहीं है। ग्रुप के अखबारों में काम करने वाले संपादकों को कलम चलाने की बंदिशे भी कम नहीं होती। उनकों जवाबदारी तो प्रतिध्दंदी अखबारों से तुलना करने और छुटी खबरों के बारें में पूछताछ में ही गुजर जाती है। इस सबके बाद यदि समय बचा तो अधिकारियों और नेताओं से अखबार हित में संबंध बनाने में चला जाता है। पत्रकारिता के इस स्तर तक पहुंचने में अखबार मालिकों का रवैया तो जिम्मेदार रहा ही है। स्वयं पत्रकारों का रवैया भी कम जिम्मेदार नहीं है। कुछ साल पहले की बात है शहर के एक नामी गिरामी अखबार के एक रिपोर्टर ने जब आलीशान बंगला तैयार किया तो अन्य रिपोर्टर उन्हें खुब गाली देते थे लेकिन अब न तो पत्रकारिता की ऊचाई की बात होती है और न ही किसी का बंगले पर ही चर्चा होती है। जब तनख्वाह कम थी तब पत्रकारों में दुनिया बदलने का हौसला होता था लेकिन अब जब सुविधाएं बड़ गई है तो सुविधाएं बढ़ाने की जिद भी बढ़ी है। सुविधाएं छिन जाने का डर उन्हें बेहतर पत्रकारिता या खबरों से दूर रखता है। वे सोचते हैं खबरें छपने पर क्या होगा। अल्टा वे दुश्मन बन जायेंगे और इससे मिलने वाली सुविधाएं से वंचित होंगे। और फिर इस खबर के नहीं छपने से क्या होगा? बस इसी सोच के चलते ही हौज में दूध नहीं भर पाया था सभी शिष्यों ने अंधेरे का फायदा उठाकर गुरू के निर्देश की अवहेलना कर हौज को दूध की जगह पानी से भर दिया था। पत्रकारिता में भी सुविधाएं छिनने का डर कलम पर जंजीरे कसने लगी है।
और अंत में
अवैध प्लाटिंग की लगातार छप रही खबरों से दुखी एक बिल्डर ने सरकार के इस रवैया का जब विरोध किया तो एक अखबार सारा संसार के रिपोर्टर ने उसे सलाह दी इस विरोध का कोई मतलब नहीं है विरोध करना है तो अखबारों के और मंत्री को दमदारी दिखाने ज्ञापन सौंपो तो कुछ हल निकल आयेगा।

गुरुवार, 4 मार्च 2010

मंत्री के दबाव में तवारिस हुई बहाल, पार्टी में बवाल



फर्जी प्रमाण पत्र सहित आर्थिक अनियमितता व कई अन्य मामलों में निलंबित गारमेंट स्कूल की पूर्व प्राचार्या श्रीमती जया तवारिस को शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के दबाव में बहाल करने का सनसनीखेज मामला इन दिनों चर्चा में है। जबकि उनके खिलाफ न्यायालय में भी मामला चलने की खबर है। इधर इस मामले को लेकर पार्टी में भी बवाल मचने की चर्चा है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा विभाग में इन दिनों पदोन्नति से लेकर अन्य नियमों की जमकर धज्जिया उड़ाई जा रही है। कहा जाता है कि निलंबित लोगों को बहाल करने का खेल चल रहा है और उच्च स्तरीय लेन-देन की खबरों के बीच यह भी चर्चा है कि श्रीमती बाम्बरा व श्री चन्द्राकर के खिलाफ आए मामले को दबाया जा रहा है।
इधर अपने कार्यकाल के दौरान विवादों में रही श्रीमती जया तवारिस को बहाल करने के मामले में शिक्षा विभाग में भूचाल आ गया है और इस वजह से कई लोग बेहद नाराज है। दरअसल श्रीमती जया तवारिस पर अपने प्रमाणपत्रों में की गई कूटरचना से लेकर कई तरह के आरोपों के चलते उन्हें निलंबित किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि निलंबन को रद्द कराने कांग्रेस के नेता भी लगे हुए थे और जब मामला शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पास आया तो पहले तो उन्होंने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया था लेकिन अचानक सप्ताहभर पहले उनका बहाली आदेश निकाल दिया गया। चर्चा है कि उनके बहाली आदेश के पीछे मंत्री का हाथ है।
इधर भाजपा सूत्रों ने भी श्रीमती जया तवारिस को बहाल करने को लेकर पार्टी के कई नेताओं में नाराजगी की बात कही है और इसकी शिकायत मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से भी किए जाने की चर्चा है। एक भाजपा नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ऐसे ही कारणों से भाजपा की बदनामी हो रही है और इसका नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ रहा है।
बहरहाल श्रीमती जया तवारिस की बहाली के मामले को लेकर भाजपा में जबरदस्त हलचल है और इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से हुई तो इसका परिणाम क्या होगा इसे लेकर भी भारी उत्सुकता है।

अधिकारियों के इशारे पर होते हैं अवैध उत्खनन,मंत्री के नाम पर कमीशन

यह तो जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर खनिजों का अवैध उत्खनन नहीं होता। कभी कार्रवाई हुई तो खानापूर्ति के लिए की जाती है और अवैध उत्खनन करने वालों से विभागीय मंत्री तक के नाम पर कमीशन लेने की परंपरा है जबकि इन दिनों खनिज विभाग मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के पास है।
छत्तीसगढ़ में खनिजों का अकूत भंडार है और लीज पर खदानें दी जाती है। सभी खदानों का निर्धारित रकबा है लेकिन निर्धारित रकबों के अलावा भी उत्खनन का कार्य बड़े पैमाने पर चल रहा है। बताया जाता है कि अवैध उत्खनन तो सीधे अधिकारियों की जानकारी में होने लगा है। मंजीत सिंह ने बताया कि बगैर अधिकारियों की जानकारी के अवैध उत्खनन का काम हो ही नहीं सकता और इसके एवज में लाखों रुपया दिया जाता है।
एक अन्य लीज धारक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अवैध उत्खनन के खिलाफ जो भी कार्रवाई होती है वह सब पूर्व निर्धारित और खानापूर्ति के लिए की जाती है। एक अन्य ठेकेदार ने बताया कि अकेले रायपुर जिले में हर साल दर्जनों मामले पकड़े जाते हैं और उन पर जुर्माना भी लगाया जाता है। नियमानुसार बार-बार पकड़ाये जाने वाले लीज धारकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन कड़ी कार्रवाई तो दूर जुर्माना तक ठीक से नहीं वसूला जाता।
बताया जाता है कि अकेले रायपुर शहर में आधा दर्जन लोग हैं जो बार-बार अवैध उत्खनन करते पकड़ा चुके हैं। इनमें से कई तो प्रभावशाली है और खनिज अधिकारी तक इनसे बात करने से घबराते है ऐसे लोगों की लीज रद्द की जा सकती है लेकिन अधिकारियों को गले तक पैसा खाने की आदत की वजह से सरकार को हर साल लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान केवल रायपुर जिले में हो रहा है।
बहरहाल जब रक्षक ही भक्षक बन जाए और विभागीय मंत्री अपने में मस्त हो तो प्रदेश की दुर्दशा स्वाभाविक है खनिज विभाग में इन दिनों यही सब हो रहा है अपने सीधे व सरल छवि के चक्कर में मुख्यमंत्री को फुरसत ही नहीं है कि वे अपने ही खनिज विभाग के अधिकारियों के कारनामों पर कार्रवाई करें। ऐसे में सरल और सीधे बने रहने के औचित्य पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है।

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...,किसान पर राजनीति गर्म

यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना छत्तीसगढ़ की रमन सरकार किसानों को लेकर चुनावी घोषणा पत्र में किए वादों को पूरा करने की बजाए केन्द्र में जाकर राजनीति नहीं करती। कांग्रेस और भाजपा के इस मिलीजुली कुश्ती से छत्तीसगढ़ के किसान हैरान है और वे भाजपा से वादा निभाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन की तैयारी में लग गए हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र जिसे वह संकल्प पत्र भी कहता है में किसानों को 270 रुपए प्रति क्विंटल बोनस और मुफ्त में बिजली देने की बात कही थी लेकिन चुनाव जीतकर सत्ता में आते ही भाजपा अपने इस संकल्प को टालने लगी तब छत्तीसगढ़ के किसानों ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया।
संयुक्त मोर्चा बनाकर आंदोलनरत किसानों को रोकने सरकार ने बहुत कोशिश की और जब पूरे प्रदेश में धरना और चक्काजाम कर रहे किसानों ने उग्र तेवर दिखाये तो सरकार ने 50 रुपए बोनस बढ़ा दी। इससे भी किसान जब नहीं माने और महाबंद का ऐलान किया तो इस महाबंद को असफल करने सरकार के नुमाईदों ने बेशर्मी पूर्वक आंदोलनकारियों को तोड़ने व व्यापारी जमात पर आंदोलन का विरोध करने दबाव बनाया।
सूत्रों की बात पर भरोसा करें तो सरकार ने आंदोलन को कमजोर करने भाजपा के लोगों का सहारा लिया और भाजपा किसान मोर्चा किसानों का साथ देने की बजाए अपने को आंदोलन से न केवल अलग कर लिया बल्कि यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि बंद की अपील वापस ली जा रही है ताकि भ्रम की स्थिति बन जाए।
वर्तमान राजनीति में सुचिता की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार का किसानों के प्रति यह रवैया आश्चर्यजनक है। जबकि किसान भाजपा को उसके वादों के अनुरूप कार्य करने की सिफारिश ही कर रहे हैं।
इधर किसान मोर्चा के नेता वीरेन्द्र पाण्डे, द्वारिका साहू, जागेश्वर प्रसाद, दिनदयाल वर्मा ने कहा कि किसान अब चुप बैठने वाला नहीं है। विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को घेरने राजधानी में 5 लाख किसान आ सकते है।
दूसरी तरफ इस मामले में कांग्रेस की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। बंद का समर्थन देने वाले कांग्रेसी बंद के दौरान कहीं नहीं दिखे। इसे लेकर भी कई तरह की चर्चा है। चर्चा तो रमन सिंह के केन्द्र में राजनीति करने को लेकर भी है और आम किसानों का कहना है कि पहले रमन सिंह अपने वादे निभाये फिर छत्तीसगढ़ के किसान दिल्ली जाने तैयार है।
बहरहाल किसान आक्रोशित है और सरकार ने उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं की तो इसका गंभीर परिणाम पड़ेगा ही विधानसभा सत्र भी सरकार को भारी पड़ सकता है।