रविवार, 3 जनवरी 2021

सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं बिकने दूंगा!

सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं बिकने दूंगा!

याद है यह किसने कहा था! जी हां सभी को याद है। नरेन्द्र मोदी ने 25 मार्च 2014 को जब यह बात कही थी तो भाजपा सहित उसके सारे आनुवांशिक संगठन के लोग झूम उठे थे। लेकिन आज जैसे ही यह लाईन देश नहीं बिकने दूंगा जेहन में आता है तो जेहन में यह भी आता है कि कैसे पिछले 6 बरसों में इस देश की 23 सार्वजनिक कंपनियां एक-एक करके बिकते चली गई और यह संयोग ही है कि इन बिकने वाली कंपनियों के नाम भारत, हिन्दुस्तान, भारतीय या इंडिया नाम से जानी पहचानी जाती थी, भारतीय कोल, कोल इंडिया, भारतीय संचार निगम, भारतीय पेट्रोलियम, एयर इंडिया किस तरह से बेचने की स्थिति में आई है और इसे खरीद कौन रहा है। बिकने के इस दौर में भारतीय रेल भी कतार में है जिनके 151 रेल और 109 मार्ग बिक चुका है। 

अब कुछ लोग कह सकते हैं कि निजीकरण का मतलब बेच देना क्यों कह रहे हो लेकिन भारत की आजादी के बाद से यह तय हुआ था कि सरकार की जिम्मेदारी इस देश के नागरिकों के प्रति है ऐसे में एक-एक कर सबका निजीकरण करने का मतलब सहज ही लगाया जा सकता है। सरकार का मतलब क्या है यदि सब कुछ निजी हाथों में सौंप दिया जाए।

हमने पहले भी कहा था कि हम निजीकरण के विरोधी नहीं है लेकिन सवाल अब भी वही है कि आखिर हम सरकार इसलिए चुनते है कि हमारी मूलभूत जरूरतों की पूर्ति कम कीमत पर हो! आसानी से हो। लेकिन बीते 6 बरसों में जिस तरह से सत्ता ने आम लोगों के हितों की अनदेखी करते हुए मनमाने फैसले लिये हैं उससे देश का ताना-बाना छिन्न भिन्न होने लगा है। और कई बार तो ऐसा लगने लगा है कि इस देश का लोकतंत्र निजी हाथों में चला गया है।

आर्थिक हालात तो बदत्तर हुए है भूखमरी में भी हम दुनिया में सबसे उपर आ गये हैं। बेरोजगारी दर बदतर स्थिति में है और जीडीपी का हाल किसी से छिपा नहीं है। राज्य सरकारों को उनके जीएसटी का हिस्सा समय पर नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में देश के सामने जो संकट खड़ा होने लगा है वह इस देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। चिंता का विषय तो किसान आंदोलन भी बनता जा रहा है, जिस तरह से किसान आंदोलन खिंचता चला जा रहा है और देशभर के दूसरे राज्यों से किसान जिस तरह से आंदोलन में शरीक होते जा रहे है वह आम जन के लिए बेचैन कर देने वाला है।

सर्द रात में परिवार सहित आंदोलित किसान कहीं कहीं आक्रोशित भी हो रहे हैं और यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन को मोदी सत्ता की जिद और भड़काने का काम कर रही है ऐसे में भले ही सत्ता इसे गलत बता रही हो, आंदोलन के खिलाफ भ्रामक प्रचार कर रही हो लेकिन मोदी सत्ता के निजीकरण का लोभ वह कैसे छुपा पायेगी। जिसके हित के लिए कानून बनाने की बात कही जा रही हो वही इसके खिलाफ हो तो कानून सही कैसे हो सकता है।

बहरहाल सत्ता की निजीकरण के लोभ और एक-एक कर बिकते सरकारी उपक्रम ने 'ये देश नहीं बिकने दूंगाÓ वाली बात को एक बार फिर जेहन में लगा दिया। जेहन में तो यह भी है कि बिजनेस मेरे खून में है।