शुक्रवार, 26 मार्च 2021

बोल के लब आजाद है तेरे...

 

यकीन मानिये महाराष्ट्र में जो लेटर बम फटा है, उसका कोई मतलब नहीं है, ये सिर्फ जनता को उसके असली मुद्दों से भटकाने का एक राजनैतिक तरीका है क्योंकि यही भाजपा खुद सत्ता में हो तो ऐसे लेटर का वही हश्र करती है जो आज महाराष्ट्र की सरकार कर रही है। यदि यकीन न हो तो गुजरात के संजीव भट्ट या असम के अखिल गोगई की याद दिला दूं।

संजीव भट्ट गुजरात केडर के अधिकारी ने अपने पत्र में कहा था कि गुजरात दंगे को भड़काने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार है लेकिन इसके बाद क्या हुआ, हंगामा मचा और संजीव भट्ट जेल में ढंंूस दिये गये। इस पत्र को लेकर अब शिवसेना हमलावर हो गई है।

असम के अखिल गोगई का पत्र तो और भी विस्फोटक है, जेल में बंद अखिल गोगई को एनआईए दफ्तर में भाजपा ज्वाईन करने, बीस करोड़ रुपये देकर अपना एनजीओ शुरु करने जैसे आरोप है। जेल से लिखे इस पत्र के बाद क्या भाजपा ने कोई कार्रवाई की। यही नहीं उत्तर प्रदेश के आईपीएस अमिताभ ठाकुर को जबरिया सेवानिवृत्त करने जैसे कितने ही आरोप भाजपा की झोली में है। सारदा स्कैम के आरोपी मुकुल राय का भाजपा प्रवेश क्या किसी लेटर बम से कम है।

ऐसे में कल बिहार विधानसभा में हुए शर्मसार कर देने वाली घटना से कौन शर्माये। महाराष्ट्र में ही अपराधियों का राजनैतिक दलों से संबंध किसी से नहीं छिपा है। उद्व ठाकरे मंत्रिमंडल के दो दर्जन सदस्यों पर आपराधिक मामले दर्ज है तो भाजपा के 105 विधायकों में से 60-65 विधायकों पर गंभीर आपराधिक प्रकरण दर्ज है।

हमाम में सभी नंगे है कि तर्ज पर जिस तरह से राजनीति ने आपराधियों को न केवल संरक्षण दिया है बल्कि उसे सत्ता की राह भी दिखाई है। मोदी सरकार के मंत्रिमंडल और सांसदों पर गंभीर अपराध की फेहरिस्त है ऐसे में महाराष्ट्र में लेटर बम को लेकर हंगामा क्या सिर्फ राजनैतिक नौटंकी नहीं है।

राजनैतिक दलों की अपनी सुविधानुसार परिभाषा देने की ललक से जो लोग भ्रमित है उनका क्या कहा जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में संसद में जब कहा था कि वे जनप्रतिनिधियों के अपरधिक मामलों को शीघ्र निपटाने कमेटी बनायेंगे। किसी ने वह कमेटी देखी, या अपराधियों की टिकिट कटते ही देखी क्या? बल्कि दूसरे दलों के अपराधिक आरोप वाले नेताओं को भाजपा में प्रवेश भी मिल गया।

पिछले सात सालों में देश की हालत क्या हो गई है यह किसी से छिपा नहीं है, किसान कितने दिनों से आंदोलित है यह अब खबर ही नहीं बनता, खबर तो निजीकरण से आरक्षित वर्गों को हो रहे नुकसान भी नहीं है। खबत तो वही बनेगा जो सत्ता चाहेगी, इसलिए इन दिनों महाराष्ट्र ही खबर है।