रविवार, 25 अप्रैल 2010

देश प्रेम का चेहरा लगाओं घपलेबाजी से पैसा कमाओं

तिरंगा लगाने के नाम पर युवाओं के आदर्श बनने वाले जिंदल उद्योग समूह के नवीन जिंदल का असली चेहरा धीरे-धीरे सामने आने लगा है। इसी दम पर सांसद की सीढ़ी का भी सफर तय कर चुके हैं लेकिन पैसा कमाने की भूख कहें या भाजपाई राज की सेटिंग कहें। जिस पैमाने पर रायगढ़ में इस उद्योग समूह ने खेल खेला है वह उसके देश प्रेम के ढकोसले को तो उजागर करता ही है मुख्य सचिव जाय. उमेन के नोटशीट ने रमन सरकार के चेहरे को भी आईना दिखा दिया है कि इस तरह से छत्तीसगढ़ को बड़े पैमाने पर लूटने का खेल चल रहा है।
छत्तीसगढ़ में मची लूट खसोट की यह सबसे खतरनाक कड़ी है बालको हादसे का मामला हो या उद्योगों को जमीन हड़पने की छूट का मामला हो कहीं न कहीं सरकार के मुखिया की भूमिका संदिग्ध नजर आती है ऐसे में जब बाढ़ ही खेत खाने लगे तो फसल रुपी आम छत्तीसगढ़िया के भविष्य को बर्बाद होने से कौन रोक सकता है। दरअसल यह सारा खेल अरबों रुपए का है जिसमें उर्जा विभाग अपने पास रखने वाले मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और जिंदल उद्योग समूह के एम.डी. के बीच हुई मुलाकात के बाद शुरु हुई। इस खेल में राय के लोगों को पॉवर कट का सामना करना पड़ा जबकि जिंदल पावर लिमिटेड को अरबों रुपए का फायदा हुआ।
छत्तीसगढ़ राय ने यह नियम बनाया है कि बिजली उत्पादन करने वाले उद्योग सीएसईबी को ही बिजली देंगे। इसी नियम के अनुरूप मेसर्स जिंदल पॉवर लिमिटेड तमनार जिला रायगढ़ और छत्तीसगढ़ विद्युत बोर्ड के बीच एग्रीमेंट हुआ। इसके तहत जिंदल द्वारा कुल विद्युत उत्पादन का 37.5 प्रतिशत बिजली विद्युत मंडल को जिंदल द्वारा दिया जाना था। लेकिन यह सब नहीं हुआ। वास्तव में एग्रीमेंट के मुताबिक छत्तीसगढ़ विद्युत बोर्ड यह बिजली 2 रुपए 88 पैसे में खरीदी करती। इधर जिंदल ने वर्ष 2009 में 8028.02 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन किया और उसने छत्तीसगढ़ को केवल 1337.84 मिलियन यूनिट बिजली ही दिया जबकि कुल उत्पादन के हिसाब से छत्तीसगढ़ को 3015.50 मिलियन यूनिट बिजली मिलनी थी। यानी 1672.66 मिलियन यूनिट बिजली छत्तीसगढ़ को कम मिली।
पूरा खेल यहीं से शुरु हुआ। जिंदल ने 1672.66 मिलियन यूनिट बिजली छत्तीसगढ़ को देने की बजाय इसे दूसरे को बेच दिया। बताया जाता है कि वर्ष 2009 में बिजली बाहर बेचने का औसत दर 7-8 रुपए था इस लिहाज से जिंदल ने 4 रुपए प्रति यूनिट अधिक दर पर बिजली बेची जिससे उन्हें 700 करोड़ से अधिक का लाभ हुआ जबकि यही बिजली वह राय को बेचती तो उसे 2.99 प्रति यूनिट से पैसा मिलता।
इस सारे खेल में किसकी भूमिका यह जांच का विषय है। एक तरफ प्रदेश में लोग बिजली संकट से जूझ रहे है और दूसरी तरफ जिंदल को बिजली खरीदने की बजाय उसे लाभ पहुंचाया जा रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि उर्जा विभाग मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है तब यह सब हुअआ ऐसे में उनकी भूमिका को लेकर संदेह उठना स्वाभाविक है और करोड़ों में लेन देन के आरोप भी लग रहे हैं।उनकी भूमिका पर संदेह इसलिए भी उठता है कि मुख्य सचिव पी.जाय. उमेन ने अपने नोटशीट में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और जिंदल पॉवर लिमिटेड के एमडी नवीन जिंदल से हुई बैठक की बात लिखी है। इस पत्र में कई तरह के खुलासे हैं जो मुख्यमंत्री की भूमिका पर संदेह व्यक्त करने के लिए काफी है।