मंगलवार, 16 मार्च 2021

सबकी बारी आयेगी !

 

न किसान दिल्ली के भीतर जा पाये न उनकी आवाज ही दिल्ली की मोदी सत्ता ने सुनी। 2014 से पहले दिल्ली के वोट क्लब से लेकर रामलीला मैदान तक पहुंचना आसान था, दिल्ली को आवाज सुननी पड़ती थई लेकिन अब हालात बदल गए हैं, एक सौ दस दिनों से अधिक हो गये किसान आंदोलन को! लेकिन वे लुटियन दिल्ली में नहीं जा पाये ऐसे में विशाखापट्टनम में एक महिना से निजीकरण के खिलाफ चल रहे आंदोलन को दिल्ली कैसे सुन सकती है। तब बैंक कर्मी भी आंदोलन कर रहे है, इसके बाद हर वो कंपनी और संस्थान के लोग एक-एक करके आंदोलन करेंगे लेकिन एकजुटता के अभाव में अपनी बारी का सिर्फ इंतजार करेंगे!

बैंक कर्मियों ने निजीकरण के खिलाफ जब आंदोलन किया तो बैंकों को डूबाने की मोदी सत्ता की नीति पर सवाल उठाने की बजाय मीडिया पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त हो गई। ऐसे में विशाखापट्टनम में 35 दिनों से राष्ट्रीय इस्पात विकास निगम के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन को कौन दिल्ली तक पहुंचाए।

दिल्ली में जब पहले ही तय कर लिया है कि वह सबकुछ निजीकरण कर देगा तब संस्थाएं केवल अपनी बारी का इंतजार ही कर सकते है। इस्पात विकास निगम के करीब पचास हजार कर्मचारियों ने भी किसान आंदोलन को कहां सुना था, फिर बैक कर्मियों की तो अपनी दुनिया है।

क्या बैंकों की हालत के लिए वहां के कर्मचारी जिम्मेदार है या सरकार की वह नीति है जिससे उद्योगपतियों के अरबों रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया। कर्जदारों से वसूलने की बजाय जनता पर सर्विस टेक्स का बोझ डालना कौन सी नीति है।

सवाल यही है कि यदि सरकारी बैक से आम जनता त्रस्त है तो निजी बैंकों की हालत कितनी अच्छी है, क्या वह जनता का पैसा नहीं डुबायेगी, हाल के वर्षों में लक्ष्मी विलास बैंक सहित कई निजी बैंक बंद हुए तो फिर सरकारी बैंकों के निजीकरण का मतलब सिर्फ उसके एसेट्स से कमाई करना नहीं है।

फूट डालो राज करो की नीति के दिन अब भी जारी है, सरकार की रणनीति रही है कि वह अपनी करतूत के खिलाफ उठ रहे आवाजों को एक न होने दे। और फिर इस सरकार ने तो राष्ट्रवाद, हिन्दूत्व, देशद्रोह, आतंकवादी जैसे ऐसे शब्द उछाले हैं जिससे असहमति के स्वर सहम से गये हैं।

बिखराव का फायदा उठाने की कोशिश ने देश की अर्थव्यवस्था को बदहाल कर दिया है। पेट्रोल-डीजल पर मनमाने टेक्स ने सरकार की तिजौरी तो भरी है लेकिन अव्यवस्था के चलते या सही उपयोग नहीं होने से सब गड़बड़ हो गया है ऐसे में राष्ट्रवाद और हिन्दूवाद का तड़का से आप खुश रहिए और अपनी बारी का इंतजार करते रहिए!