गुरुवार, 6 मई 2021

बंगाल हिंसा- सौ चूहे खाकर बिल्ली हज...

 

जिस राजनैतिक पार्टी भाजपा के 150 से अधिक सांसद और सैकड़ों विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हो, जिसने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में सौ से अधिक ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाया हो जिसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण हो वह भाजपा बंगाल चुनाव में राजनैतिक हिंसा पर देशभर में धरना दे तो इसे आप नौटंकी, घडिय़ाली आंसू बहाना नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे।

इसका यह कतई मतलब नहीं कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा का हम समर्थन करते हैं, हम इस देश-दुनिया में किसी भी तरह की हिंसा और अपराध की न केवल निंदा करते हैं बल्कि न्यायोचित निर्णय के लिए प्रतिबद्ध हैं। पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा में अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक लोग जान गंवा चुके है जबकि उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद हुई हिंसा में भी आधा दर्जन लोगों की जान जा चुकी है लेकिन उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार है इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने केवल बंगाल में हुई हिंसा के खिलाफ ही धरना दिया। इसका मतलब साफ है कि उनके लिए हिंसा या हत्या सिर्फ राजनैतिक फायदे के लिए है।

वैसे तो चुनावी हिंसा भारतीय राजनीति में नया नहीं है लेकिन जिस तरह से राजनैतिक फायदे के लिए राजनैतिक दल तत्पर रहते हैं वह न केवल शर्मनाक है बल्कि बेशर्मी की पराकाष्ठा है। सत्ता के नशे में हिंसा की शुरुआत कहां से हुई कहना मुश्किल है लेकिन हम यहां भारतीय जनता पार्टी की भूमिका पर ही केन्द्रीय करेंगे अन्य दलों की भूमिका पर भी विस्तार देंगे।

हमने शुरुआत में ही कहा है कि जिस तरह से भाजपा में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को हाल के सालों में बढ़ावा दिया गया वह शर्मनाक है। याद कीजिए राजनीति के अपराधीकरण को लेकर अटल-आडवानी के दौर में क्या कुछ नहीं कहा गया लेकिन मोदी का दौर अपराधियों को भाजपा में लाकर शुद्धिकरण करने का दौर है। यही वजह है कि 2014 में सत्ता में आते ही संसद में जनप्रतिनिधियों के अपराधिक प्रकरण को निपटाने के लिए स्पेशल कमेटी, स्पेशल कोर्ट बनाने की बात धरी की धरी रह गई, यहां तक कि लोकायुक्त का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।

सत्ता मद में अपराध को पिछले सालों में जिस तरह से भाजपा ने प्रोत्साहित किया, उसे भी इस देश ने देखा है, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों के अपराधियों को मोदी सत्ता के आने के बाद न केवल संरक्षण मिला बल्कि सम्मानित करने जैसा घृणित कार्य भी किया गया। जो भाजपा आज बंगाल चुनाव के बाद हिंसा में दर्जनभर लोगों की हत्या के बाद क्रोधित दिखाई दे रही है वह भाजपा शायद भूल गई कि इसी देश में अखलाक से लेकर इंस्पेक्टर सुबोध सिंह सहित 64 लोगों की सड़कों पर ही हत्या कर दी गई। मॉबलिंचिंग से लेकर गौ मांस और पता नहीं कितने ही तरह के आरोप लगा कर हत्या की गई तब किसी भाजपा नेता को धरना प्रदर्शन का ध्यान नहीं आया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नमस्ते ट्रम्प और लापरवाही के चलते कोरोना और सड़कों में मरते मजदूरों के लिए भी उनकी संवेदना का स्तर नीचे ही रहा। उसी बंगाल में राजनैतिक हिंसा के दौरान तीन दिन में पांच सौ लोग कोरोना से मर गये। देश में सैकड़ों लोग मोदी सत्ता की आक्सीजन नीति के चलते प्राणवायु के अभाव में दम तोड़ते रहे, और अब भी मौतों का सिलसिला जारी है तब भी पार्टी चुप है पूरी सत्ता का ध्यान अब भी कोरोना से निपटने की बजाय छवि सुधारने में लगी है तब कोई कैसे मान ले कि भाजपा बंगाल हिंसा को लेकर सचमुच दुखी है और राजनैतिक नौटंकी नहीं कर रही है। यदि भाजपा सचमुच राजनैतिक हिंसा को लेकर दुखी है तो उसे सबसे पहले आपराधिक छवि के सांसद-विधायकों से इस्तीफा लेना चाहिए? गृहमंत्री अमित शाह के बारे में फिर कभी....?