शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

चुनौती देकर पीछे हटना...

छत्तीसगढ़ में वैसे तो अखबार का व्यवसाय सबसे चोखा धंधा है इसकी आड़ में बड़े बड़े खेल खेले जा रहे हैं जमीन से लेकर खदान और उद्योग से लेकर लोगों को ठगने में अखबार की भूमिका जबरदस्त रुप से हावी है। हाल ही में आए अखबार ने तो यहां पहले से स्थापित अखबारों को चुनौती दी कि हम खबरें नहीं गढ़ते, हालात बदलते हैं, जनता की आवाज उठाने वाला कौन जैसे जुमले से शुरु हुआ अखबार अब उसी ढर्रे पर उतर आया है। मंत्रियों के प्रति निष्ठा ने गोल मोल खबरें देने मजबूर कर दिया और उसकी चुनौती को लेकर दूसरे अखबारों ने जो कदम उठाया यह नया नवेला अखबार उतना भी नहीं कर पाया है। जनता जान गई अरे इसे भी तो धंधा ही करना है।
हग--मूत ही रहेंगे?
कभी अर्जुन सिंह का खास रहकर वीसी शुक्ला के पीछे पड़े रहने वाले इस अखबार की अपनी कहानी है। कहने को तो यह दलाली करने वाले अखबार की श्रेणी में भी नहीं आते हैं और खिलाफत भी जमकर करते हैं लेकिन चमचाई में भी इनकी सोच सारी लकीरों को बौनी साबित कर देती है अब 15 अक्टूबर को ही देख लिजिए? है किसी में इतना घूसने की हिम्मत?रंगा-बिल्ला की सेटिंग-
नागपुर में बंटवारा क्या हुआ रायपुर में रंगा
-बिल्ला की निकल पड़ी है। प्रतिष्ठित माने जाने वो इस अखबार के संपादक-प्रबंधक यानी रंगा-बिल्ला सेटिंग में उतर आए हैं। जब पत्रिका उसके दुश्मन भास्कर को ही निपटाने में पूरी ताकत लगा दे तो फिर इन्हें क्या फर्क पडऩा है। वेटरों से मार खाकर भी शर्म बेचने वाले इन रंगा-बिल्ला को पैसा देने वाले कुछ भी कह देते हैं लेकिन इसका कोई फर्क नहीं पड़ता?
लुक में बेचैनी
डाल्फिन स्कूल के शिक्षकों ने अपने ही छात्र से अप्राकृतिक कृत्य क्या किया नेशनल लुक के रिपोर्टरों की बेचैनी बढ़ गई है। उन्हें जवाब देते नहीं बन रहा है कि यह सब कैसे हो गया आखिर तनख्वाह भी तो स्कूल के पैसे ही मिलती है। कुछ तो पाप न लगे इसलिए मंदिरों में मत्था टेक रहे हैं
?
ड्रेस कोड के बाद
जूता जरूरी
...

हरिभूमि में हर शनिवार को सफेद टी शर्ट पहनना जरूरी है बेचारे इस बैंडपार्टी से बेचैन है कि पत्रिका में अप टू डेट रखने की मुहिम छिड़ गई है भले ही वेतन कम मिले जूता पहनना जरूरी है वह भी चमकदार व साफ सुथरा हो?
और अंत में...
घर का भेदी की कहावत इन दिनों जनसंपर्क में पूरी तरह हावी है। यहां की हर बात चर्चा में है। चर्चा इस बात की भी है कि एक अधिकारी जो वर्तमान में निगम में है वह किस तरह से संवाद को चूना लगा रहा है और पैसा अखबार में लगा रहा है नाम किसी भी भिखारी का दो पता तो लोगों को चल ही जाता है।

पर कोई बोलता नहीं...

पूरे छत्तीसगढ़ को मालूम है कि यहां उद्योगपतियों ने सरकार के साथ मिलकर या सरकार के संरक्षण में जल
प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने लगातार कम होती जमीनों और उद्योगों की दादागिरी व सरकार की मनमानी पर ऐसे चिंता जता रहे थे मानों यह सब नई बात हो। अजीत जोगी नि
, जंगल और जमीन को लूट रहे हैं। अवैध कब्जा की बात हो या अवैध उत्खनन सब कुछ सरकार की जानकारी में हो रहा है। आम लोग तो कभी बोलते नहीं है और जब कोई बोलता है तो उसे वर्दी वाले गुण्डों के सहारे चुप करा दिए जाते हैंं।:संदेह मॉस लिडर हैं उन्हें प्रदेश में चल रही सरकारी अंधेरगर्दी की पल पल की खबर भी है लेकिन उनकी चिंता भी सिर्फ राजनैतिक हो कर रह गई है। वे बस्तर में ट्रेन के लिए आंदोलन तो कर लेते हैं लेकिन गरीब आदिवासियों व किसानों की छिनती जमीन पर आंदोलन इसलिए नहीं करते क्योंकि इस आंदोलन से उद्योगपति नाराज हो जाएंगे। वे अधिकारी भी नाराज हो जाएंगे जो उद्योगपतियों की गोद में बैठकर अपनी सुख सुविधा का साधन जुटा रहे हैं। उनकी चिंता तो अब स्वयं पत्नी व पुत्र तक सिमट कर रह गया है। कांग्रेस की राजनीति ने क्या छत्तीसगढ़ को कम बर्बाद किया है जो भाजपाई राजनीति को कोसा जाए?विकास के नाम पर जिस तरह से सडक़ों व भवनों का जाल बिछाया जा रहा है क्या इससे छत्तीसगढ़ का विकास होगा। बल्कि गांव-गांव में सडक़ें बनाने का मतलब शोषण के नए रास्ते खोलना है। हमारे पत्रकार मित्र कमल शुक्ला ने पिछले हफ्ते इसी तरह की बात कही है। प्रदेश में भूख से कोई न मरे इसकी जिम्मेदारी सरकार की है और सरकार की यह भी जिम्मेदारी है कि आने वाले पीढि़ नशे के गर्त में न चला जाए लेकिन रुपया किलो चावल और गांव-गांव में खुलते शराब दुकानों ने छत्तीसगढ़ की आने वाली पीढिय़ों को बर्बाद कर रही है और यह सब सरकार की नीति की वजह से है। इस पर न तो कोई बोलता है और न ही कोई प्रदेशव्यापी आंदोलन करता है क्योंकि जब प्रदेश का गृहमंत्री ननकीराम कंवर स्वीकार कर चुके हैं कि शराब माफिया के गुण्डे थाना चलाते है तब भला इससे बुरी बात और क्या होगी। कांग्रेसी भी इन शराब माफियाओं के साथ मिलकर चल रहे हैं वे भी इन शराब माफियाओं से अवैध उगाही करते हैं तथा एक सांसद के तो शराब माफियाओं से पार्टनरशिप की कहानी पूरा छत्तीसगढ़ जानता है।