सोमवार, 21 दिसंबर 2020

भक्ति में शक्ति...

बाजारवाद की आंधी में पूंजी के निरंतर बढ़ रहे प्रभाव के बीच मूल्य कहां बच पाता है और मूल्य ही नहीं बचेगा तो फिर सब झूठ या फिर बेईमानी-ईमानदारी में फर्क करना मुश्किल तो होगा ही। ऐसे में सच के साथ खड़ा होने का मतलब साहस दिखाना है।

श्रीकांत वर्मा ने कभी कहा था कि वास्तविकता का अनुभव हमेशा उसमें अवश्य रहेगा। इन दिनों लोकतांत्रिक व्यवस्था में भ्रम की स्थिति बन गई है या बना दी जा रही है, ऐसे में जब सत्ता की ताकत एक नये तरह का झूठ लिखने लगा हो तो उसके सामने कौन टिक पायेगा।

वैसे भी वास्तविकता और पूंजीवाद सत्ता के सबसे महत्वपूर्ण साधन है जो सच से दूर एक ऐसा भ्रम जाल बुन लेता है जिसके जाल में उलझ जाना आसान है और यही इस दौर का भक्तिकाल है।

वास्तव में हमारी सामान्य बुद्धि साम्प्रदायिकता और पूंजीवाद के छल को समझ पाने में नाकाम है और यर्थात कहीं दूर हो जाता है। पिछले 6 साल में जिस तरह से साम्प्रदायिक शक्तियों ने सत्ता में बने रहने पूंजीवाद को बढ़ावा दिय.ा वह भविष्य के आसन्न खतरों का संकेत है।

क्या इस भक्तिकाल में सच को किनारे कर दिया गया है। क्या सच यह नहीं है कि वर्तमान सत्ता ने या सीधे कहे तो मोदी सत्ता ने अपनी सुरक्षा के नाम पर अब तक के जितने भी प्रधानमंत्री रहे हैं उससे अधिक खर्च किया है। सत्ता की रईसी को बरकरार रखने के उपक्रम में आम लोग महंगाई से कराह रहे हैं। देश के गौराव माने जाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को लगातार बेचा जा रहा है और सरकारी संस्थानों को मजबूत करने की बजाय निजी संस्थानों को मजबूत किया जा रहा है। सरकारी बैकों का दिवालिया निकल रहा है और रिजर्व बैंक सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं के प्रति भरोसा समाप्त होने लगा है। और रेलवे से लेकर हवाई अड्डों को भी निजी हाथों में दिया जा रहा है।

देश में विरोध के स्वर को देशद्रोही और अराजकता का नाम दिया जा रहा है ऐसे में आम आदमी की चुप्पी क्या भक्तिकाल के प्रवाह का संकेत है।

जो लोग समझते है कि व्यवस्था के खिलाफ बोलने से बेहतर चुप रहना है। जबकि यह हमारी आदत बन चुकी है और यही आदत की वजह से सत्ता मनमानी पर उतारू है।

अब तक साम्प्रदायिकता और पूंजी ने एक मजबूत गठजोड़ बनाकर भक्ति की शक्ति को रेखांकित किया है उसे महत्वपूर्ण बना दिया है ऐसे में न केवल परिवार का ताना-बाना टूट रहा है बल्कि आम आदमी का जीवन नारकीय होता जा रहा है, साम्प्रदायिकता की आग में ्अपनी बुद्धि भ्रष्ट कर भक्ति में लीन लोगों ने जीस तरह से भक्ति की शक्ति को प्रदर्शित किया है। वह एक बात जान लें भक्ति जब अंधविश्वास की सीढ़ी पर पहुंचता है तो वह केवल देश समाज का ही नुकसान नहीं करता बल्कि स्वयं पर भी आघात करता है। अंधविश्वास से मरते लोगों के कितने ही उदाहरण है।