शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

राजनेताओं के खेल प्रेम पर राहुल का प्रहार...


खेलों की दुर्दशा को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। खेल संघो पर राजनेताओं की बढ़ती दखलदांजी से लोग नाराज भी है लेकिन ठुकुरसुहाती के फेर में खिलाड़ी भी इसका खुलकर विरोध नहीं कर पाते।
वैसे तो राजनीति ने हर क्षेत्र को दुर्दशा तक पहुंचा दिया है। राजनेताओं के लोभ ने खेलों को भी नहीं छोड़ा। छत्तीसगढ़ में भी प्रत्येक खेल संघो पर नेताओं का कब्जा है। हम यहां यह नहीं कह रहे हैं कि सभी राजनीतिज्ञ एक ही रास्ते से चलने वाले है। यहां भी कई खेल संघ ऐसे है और कई नेता ऐसे है जो पूरी ईमानदारी से खेलों को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन बहुत से नेता अपनी राजनैतिक फायदे के लिए खेल संघों का दुरूपयोग कर रहे हैं। खेलों के गिरते स्तर को लेकर हमेशा से ही चिंता की जाती है और राजनीति के बढ़ते हस्ताक्षेप पर विवाद होता रहा है।
राज्य बनने के बाद ओलंपिक और क्रिकेट एसोसिएसन का विवाद किसी से छिपा नहीं है। जिसकी सत्ता उसका खेल संघो पर कब्जा नया नहीं है। कभी छत्तीसगढ़ के प्राय: सभी खेल संघो पर कांग्रेसियों का कब्जा था और अब एक दो खेल संघों को छोड़ सभी पर भाजपाई बैठे हुए हैं।
खेलों को बढ़ावा देने के नाम पर अपनी राजनैतिक दुकान चलाने के अलावा आयोजनों में भ्रष्टाचार और खिलाडिय़ों के चयन में पक्षपात की खबरें लगातार आते रही है। अब तो मामला दैहिक शोषण तक जा पहुंच हैंं।
खेलों में राजनीति और राजनेताओं के हस्तक्षेप टोकने की मागं हर व्यक्ति की है लेकिन इसकी परवाह कभी किसी राजनैतिक दलों को नहीं रही। सावर्जनिक रूप से खेलों में राजनीति का विरोध करने वाले लोग भी मौका पाते ही खेल संघो में बैठने से गुरेज नहीं करते। ऐसे में राहुल गांधी का खेल से राजनेताओं को दूर रखने की सोच को एक  अच्छी खबर के रूप में देखा जा रहा है। यह पहली बार हुआ है जब खेल को लेकर किसी पार्टी के बड़े नेता ने ऐसी बात कही ंहै।
अपनी तरह की अलग सोच रखकर नई ईबादत की कोशिश में जुटे राहुल की यह सोच यदि उनकी पार्टी भी फरमान जारी कर पूरी करे तभी इसका मतलब है अन्यथा यह राजनैतिक ढकोसला ही माना जायेगा।
युवाओं को अधिकाधिक अधिकार देकर देश की दिशा बदलने की सोच को लेकर आगे बढ़ रहे राहुल गांधी के इस सोच पर कांग्रेस ही खरा उतर जाने तो खेल का भविष्य अलग होगा।
छत्तीसगढ़ में खेल संघो पर जिस तरह से राजनेताओं की माफियागिरी ने कब्जा कर रखा है वह किसी से छिपा नहीं है। नेताओं के अलावा जमीन, शराब और खनिज माफिया तक खेल संघो पर जमें हुए हैं। कई संघो पर तो आपराधिक रिकार्ड वाले भी बैठे हैं ऐसे में खिलाडिय़ों को भी ठुकुरसुहाती छोड़ अपने खेलों की प्रगति के लिए खुलकर आना होगा।
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

हाथियों के आंतक से मुक्ति के लिए अभ्यारण्य क्यों नहीं !



हाथियों की वजह से सौ से उपर जाने गई

तीन हजार से अधिक घर टूटे
हजारों एकड़ फसलों का नुकसान
सरगुजा-जशपुर और कोरबा क्षेत्र में उत्पात बिलासपुर और सरगुजा संभाग में आए दिन हथियों के आतंक के बावजूद हाथी अभ्यारण्य को मंजूरी नहीं देने का मामला तूल पकडऩे लगा है। इन संभागो के सरगुजा जशपुर और कोरबा क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में न केवल हाथियों का आतंक बढ़ा है बल्कि जान के अलावा घरों और फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। हर साल प्रदेश सरकार को नुकसान के एवज में लाखों रूपये मुआवजा देना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ के सरगुजा-जशपुर और कोरबा क्षेत्र में हाथियों का आतंक नया नहीं है। यहां हर साल हाथियों के द्वारा घरों और फसलों को तो नुकसान पहुंचाया ही जाता है लोगों की जान भी जाती है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक वर्ष 2009-10 में हाथियों के आतंक के चलते 19 जाने गई थी और 804 घर तथा 8152 सड़क फसल को नुकसान पहुंचा था इनमें सरगुजा में 12, जशपुर में 6 और कोरबा में 1 व्यक्ति की मौत हुई थी। जबकि वर्ष 2010-11 में 16 मौते और 9183 एकड़ फसल और 736 घर बरबाद हुए वर्ष 2011-12 में यह आंकड़ा और बढ़ गया तथा 24 लोग कात कल्वित हुए वर्ष 2012-13 मेें 11 जाने गई और 11 हजार एकड़ से अधिक फसल को नुकसान पहुंचा।बताया जाता है कि हाथियों के आतंक से मुक्ति के लिए स्थानीय ग्रामीण और वन विभाग द्वारा हर साल इंतजाम किये जाते है लेकिन हाथियों के आतंक के आगे से इंतजाम धरे के धरे रह जाते हैं। यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने हाथी अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। बताया जाता है कि हाथी अभ्यारण्य का मामला राजनीति का शिकार हो गया है जिसकी वजह से यह प्रस्ताव खटाई में चला गया है। हालांकि हाथी अभ्यारण्य के लिए जगह भी प्रस्तावित कर दिया गया है लेकिन इस स्थान पर कोयले की खदाने होने की वजह से भी मामला उलझ गया है।
प्रस्तावित जगह में कोयला खदान चालू करने जिस तरह से खेल चल रहा है वह भी चर्चा की विषय है।
बहरहाल हाथियो से हो रहे नुकसान को नजर अंदाज करना कहीं भारी भूल साबित न हो जाए।

भाजपा मस्त, कांग्रेस पस्त और आप व्यस्त

छत्तीसगढ़ के सभी सीटों पर होगी त्रिकाणीय मुकाबला

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का बिगुल बचने लगा हैं। विधानसभा चुनाव की जीत से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी मोदी फैक्टर से जहां उत्साहित है वहीं कांग्रेस गुटबाजी से पस्त हो गई है। गुटों में बंटी कांग्रेस में टिकिट को लेकर घमासान है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भी अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश में है पर नेतृत्व हीनता की वजह से आप की मौजूदगी का असर स्पष्ट नहीं है। छत्तीसगढ़ में लोकसभा की ग्यारह सीटे हैं। जिनमें से पिछले दो चुनावों से भाजपा दस पर काबिज है और उसे पूरी उम्मीद है कि इस बार भी भाजपा का परचम लहरायेगा। हालांकि विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार पर आकंलन करे तो भाजपा के पास से तीन चार सीटें खिसकते दिख रही है लेकिन रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने जो छवि बनाई है और देश में चल रहे मोदी लहर से भाजपा को उम्मीद है कि वह इस बार सभी सीटे जीतेंगे और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी सभी सीटे जीतने का दावा भी कर चुके हैं। हालांकि रायपुर, दुर्ग, महासमुंद और कांकेर में भाजपा के सांसदों के खिलाफ आक्रोश है और इन सीटों पर नये चेहरे उतारने की मांग भी हो रही है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि इस बार पार्टी कई क्षेत्रों में नये चेहरे मैदान में उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। इधर विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित परिणाम के बाद भी कांग्रेसियों के उत्साह में कमी नहीं आई है लेकिन गुटबाजी के चलते कांग्रेस में घमासान चरम पर है। अजीत जोगी के चुनावी राजनीति से सन्यास की घोषणा को हाईकमान से नाराजगी का स्वरूप बताया जा रहा है जबकि नये प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल की आक्रमक नीति ने कांग्रेस के ग्राफ को ऊंचा किया  है।
दूसरी तरफ टिकिट की बढ़ती मांग ने एक बार पिर कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी की कलहे खोलकर रख दी है। अजीत जोगी को बिलासपुर, कांकेर या सरगुजा से चुनाव लड़ाने की कोशिश हो रही है तो महासमुंद सीट से स्व. विद्याचरण शुक्ल की सुपुत्री को चुनाव लड़ाने की तैयारी है। दुर्ग और रायपुर में दिग्गज कांग्रेसी को उतारने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
कांग्रेसी सूत्रों का दावा है कि इस बार सबसे आसान सीट रायपुर की है क्योंकि यहां के 6 बार सांसद रमेश बैस के खिलाफ भाजपा में भी नाराजगी है। इधर रातों रात दिल्ली की सत्ता तक पहुंची आम आदमी पार्टी भी छत्तीसगढ़ की सभी ग्यारह सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी में लग गई है। आप पार्टी को भरोसा है कि छत्तीसगढ़ में परिणाम अच्छे आयेंगे। आप पार्टी के नेता उचित शर्मा का तो यहां तक दावा है कि जिस तरह से दिल्ली विधानसभा के चुनाव के परिणाम की किसी को उम्मीद नहीं थी। छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह के परिणाम आयेंगे। उचित शर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आप पार्टी के प्रति जो आकर्षण है वह सदस्यता अभियान की सफलता से लगाया जा सकता है हम चुपचाप अपना काम कर रहे हैं और वक्त आने पर यहां भाजपा और कांग्रेस गठजोड़ का खुलासा करेंगे।
बहरहाल लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर भले ही भाजपा आश्वस्त हो पर आम आदमी पार्टी के प्रति बढ़ते आकर्षण ने कई नेताओं की नींद जरूर उड़ा दी है।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

फाइलों में कैद हो गई शहर के सपने



राजनैतिक वर्चस्व की लड़ाई के चलते रायपुर के विकास के सपने फाइलों में कैद हो कर रह गई है। कांग्रेस और भाजपा में श्रेय लेने की होड़ के चलते महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन खटाई में पड़ गया है तो आधी अधुरी योजना के चलते आम आदमी का बुरा हाल है घोषणाओं को अमली जामा पहनाने की बजाय भ्रष्टाचार चरम पर है। एक रिपोर्ट...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के विकास को लेकर चली जंग थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। शहर के सपने को पूरा करने का दावा दोनों ही प्रमुख दल करते है पर हकीकत कुछ और ही है। नगर निगम ने शहर विकास की कई घोषणाएं की लेकिन इन घोषणाओं की फाइलें सरकार के पास जाकर अटक गई है तो निगम अमला सफाई पानी बिजली और अवैध कब्जों तक को हटाने में विफल रही है।
निगम में अव्यवस्था और सुस्त रफ्तार को लेकर भाजपा जहां महापौर किरणमयी नायक पर आरोप लगा रही है तो कांग्रेसियोंं का आरोप है कि सरकार जानबुझकर योजनाओं को लटका रही है।
शहर विकास को लेकर पिछले बजट में पांच दर्जन से अधिक योजनाओं को लागू करने की बात कही गई थी लेकिन इन योजनाओं को साल भर में अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका जबकि पुराना बस स्टैण्ड में मल्टी पार्किंग का काम शुरू हुआ है तो महादेव घाट सौन्दर्यीकरण योजना भी पूरी नहीं हो पाई है। गोकुल नगर की अव्यवस्था भी सामने आ चुकी है। जबकि सफाई व्यवस्था का बुरा हाल है।
सफाई व्यवस्था और पानी निकासी को लेकर तो दोनों ही दल एक दूसरे के खिलाफ बाहें चढ़ाएं हुए है। रायपुर नगर निगम में शामिल किए गए 21 गांवो का तो भगवान ही मालिक है। उखड़ती सड़कें और धुल मच्छर ने तो आम आदमी का जीना दुभर कर दिया है। शारदा चौक से तात्यापारा और भैसथान बजरंग नगर चौड़ीकरण का मामला भी राजनीति में उलझकर रह गया है।
सूत्रों की माने तो सरकार का पूरा स्थान कमल विहार और नई राजधानी के विकास पर है तो पुरानी राजधानी की हालत दिनों दिन खराब होते जा रही है। एक दूसरे पर दोषारोपण की राजनीति के चलते निगम कर्मियों की स्वेच्छाचारिता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। हालत यह है कि इसके चलते टैक्स वसूली का कार्य तो प्रभावित हुआ ही है अवैध निर्माण और अवैध कब्जे के मामले भी बढ़े हैं।
हालत यह है कि शहर विकास को लेकर दोनों ही दलों की चिन्ताएं केवल घोषणाओं तक सिमट कर रह गई है और आम आदमी का जीवन कठिन होता जा रहा है। शहर के विकास के सपनों की फाईलों पर जमती धूल को हटाने की चिंता कौन करे यह सवाल यज्ञ प्रश्न बनता जा रहा है।
शहर विकास के सपने...
सोलर सिटी, पॉलीथीन मुक्त, धूल-मच्छर युक्त, मछली बाजार का निर्माण, कलाकारों के लिए स्थाई मंच, सुभाष स्टेडियम का जिर्णोद्धार, भूमिगत नाली निर्माण, गोबर से पावर निर्माण, चौराहों पर सीसीटीवी, गोलबाजार का कायाकल्प, नया फायर स्टेशन, निर्माण की गुणवत्ता जांचने मोबाईल वैन, जल आवर्धन योजना, बजरंग नगर भैसथान रोड चौड़ीकरण, शारदाचौक-तात्यापारा रोड चौड़ीकरण अवैध निर्माण और अवैध कब्जों पर कार्रवाई।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

अंबानी-अदानी होंगे लोकसभा के मुद्दे!


जल जंगल और जमीन की चुनावी राजनीति

विशेष प्रतिनिधि
आगामी लोकसभा चुनाव में जल जंगल और जमीन के मुद्दे तो चुनावी राजनीति में अहम रोल तो अदा करेंगे ही अंबानी और अदानी प्रमुख चुनावी मुद्दे हो सकते हैं। भ्रष्टाचार को लेकर चुनावी राजनीति में उतरी आम आदमी ने आम चुनाव को न केवल दिलचस्प बना दिया है बल्कि क्षेत्रीय दलों की दादागिरी पर भी विराम लगाने की कोशिश की है। छत्तीसगढ़ में इस सबका कहां और कितना असर होगा एक रिपोर्ट...
आने वाले दिनों में होने वाले लोकसभा चुनाव की बिसात बिछना शुरू हो गया है। राहुल बनाम मोदी के प्रश्न पर हो रहे घमासान में अरविन्द केजरीवाल की मौजूदगी ने पूरे वातावरण को आक्रामक बना दिया है। एक तरफ कांग्रेस और भाजपा वोट बैंक की राजनीति को साधने में लगी है तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस के सांठगांठ को लेकर दोनों के सत्ता के रास्ते पर खड़ी हो गई है। कांग्रेस और भाजपा की रणनीति युवा, किसान ग्रामीण और आदिवासियों को रिझाने की है और अचानक उपजे इस प्रेम से आम शहरी हैरान है। दोनों ही पार्टी इन मुद्दों से अलग नहीं होना चाहते और इन वर्गों के वोटरों को रिझाने की माकूल कोशिश हो रही है। इन सबके बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी हुई आम आदमी पार्टी दिशाहीन औद्योगीकरण, प्रदूषण और कार्पोरेट भ्रष्टाचार के साथ दोनों ही प्रमुख दलों के सांठगांठ को मुद्दा बना रही है। अरविन्द केजरीवाल ने अंबानी और अदानी को लेकर उठाये सवाल में अपनी मंशा जाहिर भी कर दी है। कांग्रेस और भाजपा जहां जल जंगल और जमीन को लेकर अपना प्रेम जाहिर कर रही तो पूंजीपतियों से उनके संबंधो को लेकर केजरीवाल ने प्रहार शुरु कर दिया है।
कांग्रेस और भाजपा भले ही विकास का जितना भी प्रचार कर ले पर जमीनी हकीकत भयावह दर्दनाक है और यह दर्दनाक स्थिति की वजह से ही मुफ्त में बांटने की परम्परा शुरु की गई है।  छत्तीसगढ़ में पिछले हो चुनावों में भाजपा को 11 में से 10 सीटें मिलती रही है। और इस बार भी कांग्रेस यहां सब कुछ पलट देगी कहना कठिन है। दिशाहीन और असंतुलित विकास ने इस नव निर्मित प्रदेश में सरकारी दावों के विपरीत स्थिति है। एक तरफ बस्तर में नक्सलियों की अघोषित सरकार चल रही है तो मैदानी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में माफिया राज है। शराब और जमीन माफियाओं ने इस शांत प्रदेश को अशांत कर दिया है तो बढ़ते अपराध और औद्योगिक आतंकवाद ने रही सही कसर पूरी कर दी है ऐसे में यहां के लोगों को तीसरे विकल्प की तलाश तो है पर वे बेहतर नेतृत्व के अभाव में मन मसोस कर रह गये है।
वर्तमान हालात तो कांग्रेस या भाजपा के बीच की ही है लेकिन आ आदमी पार्टी से आम शहरी लोगों की उम्मीद भी जगी है और यदि केजरीवाल का यहां दौरा होगा तभी वास्तविक स्थिति का आंकलन हो पायेगा।
वैसे शहरी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का प्रभाव दिखने लगा है और जिस तरह से बस्तर सीट से सोनी सोढ़ी का नाम उछाला गया है उसके बाद राजनीति में गर्मी भी महसूस की जा रही है। छत्तीसगढ़ में चुनावी मुद्दे क्या होंगे यह अभी से कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यदि केजरीवाल की पार्टी आती है तो औद्योगिक घरानों से सांठगांठ यहां भी प्रमुख मुद्दा बन सकता है।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

टोनही का मतलब...


कोरबा जिले के  घुमनीकांड गांव में पिछले हफ्ते जो कुछ हुआ। वह न केवल शर्मनाक घटना है बल्कि अंधविश्वास से उपजे बहशीपनन का नमूना है। 21वी सदी में भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताडि़त करना और उस पर कानून के रखवालों की खामोशी क्या बर्बर जुग की याद नहीं दिला रही है।
छत्तीसगढ़ में आज भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताडि़त करने का सिलसिला जारी है और पीडि़त को न्याय दिलाने या प्रताडि़त करने वालों को गिरफ्तार करने से पुलिस के हाथ पांव फूलते है।
कोरबा जिले के इस गांव में हुई घटना ने  तो इसलिए भी सभी को चौंका दिया है क्योंकि टोनही के नाम पर प्रताडि़त करने वालों में उस महिला का अपना जना बेटा भी शामिल था। 65 साल की वृद्धा के बाल काटकर जिस तरह से गांव में घुमाया गया और उस पर गांव वालों की चुप्पी हमें कहां ले जा रही है।
मानवता को शर्मसार करने वाली यह घटना छत्तीसगढ़ में गांव-गांव में विद्यमान है। गांवो में आज भी टोनही के नाम पर महिलाएं प्रताडि़त की जा रही है और गांव वालों की एकजुटता ने शासन-प्रशासन को खामोश रहने मजबूर कर दिया है। दो दशक पूर्व महासमुंद के बेमचा गांव में क्या कुछ नहीं हुआ था तब टोनही के नाम पर प्रताडऩा को लेकर कड़ी कार्रवाई की बात हुई लेकिन न तो टोनही के नाम पर प्रताडऩा ही कम हुई और न ही कोई बड़ी कार्रवाई ही हुई।
शिक्षा शहर से लेकर गांव तक पहुंच गई है। आधुनिक संसाधनों ने जीवन स्तर तक बढ़ा दिया है लेकिन टोनही को लेकर सोच अब भी जस की तस है। कलयुगी बेटे भरत गोड़ और घुमनीकांड में भी पड़े लिखे लोगों की कमी नही है तब भी टोनही के नाम पर यह घटना हुई। जादू टोने को लेकर ग्रामीण इलाकों में आज भी जागरूकता की जरूरत है। हर घटना के बाद जागरूकता को लेकर बवाल मचता है और जागरूकता की दुहाई दी जाती है।
छत्तीसगढ़ के गांवो में आज भी टोनही बताने वालों की कमी नहीं है। इस अंधविश्वास के चलते कितनी ही महिलाएं प्रताडि़त है लेकिन न तो सरकार ने कभी ऐसे आंकड़े जुटाने को कोशिश की और न ही जनप्रतिनिधियों ने ही इस अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई उल्टा वोट बैंक की राजनीति के चलते उन गांव वालों का ही साथ दिया जो टोनही के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा देते है।
बुढ़ी मां को टोनही मान लेने की इस घटना ने एक बार फिर हमारी सोच और शिक्षा पर सवाल उठाया है। क्या सरकार टोनही को लेकर उपजे अंधविश्वास को लेकर कोई कहानी पाठयक्रम में शामिल नहीं कर सकती। सवाल यह भी है कि आखिर टोनही के नाम पर प्रताडऩा कब तक चलेगी।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

सिर्फ चौबे को ही क्यों लगी, 9 एम एम की गोली!


मदनवाड़ा कांड के सुलगते सवाल !
बाकी 29 जवानों को लगी एके 47 या इंसास से गोली !

रायपुर। मदनवाड़ा में एसपी विनोद चौबे सहित 29 जवानों की नक्सली मुठभेड़ में हुई मौत को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। सवाल नक्सलियों
ज्ञात हो कि मदनवाड़ा में नक्सलियों ने एसपी विनोद चौबे, टीआई, विनोद धु्रव सहित 29 जवानों की निर्मम हत्या कर दी। इस हत्याकांड पर तब भी सवाल उठे थे लेकिन सिर्फ नक्सली वारदात की वजह से इस पर उतना हो हल्ला नहीं हो पाया। अब इस वारदात को लेकर एक बार फिर मामला गरमाने लगा है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों की माने तो इस नक्सली हमले में एसपी विनोद चौबे सहित शहीद हुए 29 जवानों में से केवल श्री चौबे की मौत 9 एमएम की गोली से हुई जबकि बाकि सभी 28 जवान या तो एके 47 या इंसास रायफल की गोली से मारे गए। बताया जाता है कि सभी शहीदों के पोस्टमार्टम के बाद आये इस तथ्य को बवाल मचने के डर से न केवल दबाया गया बल्कि जांच तक नहीं की गई।
पिछले दिनों विधानसभा में कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने मदनवाड़ा  कांड के पोस्टमार्डम रिपोर्ट को सदन में रखने की मांग करते हुए नक्सलियों से सांठगांठ के आरोप भी लगाये हैं। हालांकि मदनवाड़ा कांड को लेकर पुलिस के उ"ााधिकारी की भूमिका को लेकर सवाल पहले भी उठते रहे हैंर्। ज्ञात हो कि झीरम घाटी में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की नक्सली हत्या को लेकर भी कई तरह के सवाल उठते रहे हैं और इसकी जांच तो की जा रही है लेकिन रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है।
इधर नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को लेकर जिस तरह के चेहरे सामने आये है वह न केवल हैरान कर देने वाले हैं बल्कि इसके तार भाजपा से जुड़े होने को लेकर भी सवाल उठने लगे है। कोण्डागांव के चोपड़ा परिवार के भाजपा के दिग्गज नेताओं से संबंध किसी से छिपे नहीं है लेकिन पुलिस के लिए यह जांच आसान नहीं है। ऐसा नहीं है कि नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को लेकर हो हल्ला पहली बार हुआ है इससे पहले भी सरकार के मंत्रियों पर नक्सलियों से सांठगांठ के आरोप लगते रहे है। हालांकि सांठगांठ के आरोपो से कांग्रेस के कई नेता भी नहीं बच पाये हैं।
सूत्रों का कहना है कि मदनवाड़ा ताल मटेड़ा और झीरम घाटी की घटना सांठगांठ को लेकर सवाल खड़ा करते हैं लेकिन इस दिशा में जांच की विशेष कोशिश कभी नहीं हुई। मदनवाड़ा कांड को लेकर एक बार फिर राजनीति गर्म हो गई है तो इसकी वजह वह पोस्टमार्डम रिपोर्ट है जो कई संदेहो को जन्म दे रही है।
बहरहाल यह मामला कितना तुल पकड़ेगा और केवल विनोद चौबे ही क्यों 9 एमएम की गोली के शिकार हुए यह कब पता चलेगा कहना मुश्किल है। देखना है इस पर क्या कुछ होगा।

से सांठ-गांठ को लेकर ही नहीं उठाये जा रहे हैं बल्कि शहरी नेटवर्क में पकड़ाये आरोपियों की राजनैतिक पहुंच को लेकर भी उठने लगे है। मदनवाड़ा कांड में क्या कोई सांठगांठ हुई है यह सवाल तब और खड़ा हो जाता है जब केवल एसपी विनोद चौबे की 9 एमएम की गोली लगने की बात सामने आती है।

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

सरोवर हमारी धरोहर...!

पहले तीन विश्व युद्ध का कारण बताने वाले अम्सर कहते है कि चौथा विश्व युद्ध यदि हुआ तो इसकी वजह पानी होगा। जल ही जीवन है, पानी बगैर न उबरे मोती मानूस चून और न जाने जल की महत्ता को लेकर कितनी ही बाते प्रचलित है लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी में जिस बेतरतीब से तालाबों को पाटा जा रहा है और उस पर आम लोगों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। तालाबों के शहर के रूप में प्रचलित रायपुर में गिरते जल स्तर को लेकर बड़े-बड़े विद्वान चिंतित है। सरकार भी सरोवर हमारी धरोवर के नारे लगाती है हर साल शासन प्रशासन तालाबों की सफ ाई के लिए चिल्ल पौं मचाता है लेकिन इसके बावजूद शहर के तालाबों की जो दुर्दशा हो रही है वह प्रशासन की नियत पर तो सवाल उठाता ही है शहर की चिन्ता करने वालों की भूमिका पर भी सवाल उठाता है। तालाबों की बेशकीमती जमीनों पर जिस तरह से भूमिकाओं की नजर है वह किसी से छिपा नहीं है। नगर निगम की भूमिका भी कम संदेहास्पद नहीं है। कई बार तो यह लगने लगता है कि वह भूमिकाओं के ईशारे पर तालाबों को पाटने पर आमदा है।
तालाबों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट गाईड लाईन की जिस तरह से अनदेखी की जा रही है वह न केवल हैरान कर देने वाला है बल्कि इस तरफ  से समाज सेवी संस्थाओं की अनदेखी भी आश्चर्यजनक है। राजधानी के गिरते जल स्तर को लेकर चिंता जाहिर करने वालों को शहर की तालाबों को पाटने की साजिश भी यदि नजर नहीं आ रही है तो इसे क्या कहा जाए। एक तरफ  स्थानीय प्रशासन तालाबों के सौन्दर्यीकरण के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों फू क रही है तो दूसरी तरफ  नालों का पानी तालाब में डाला जा रहा है इससे न केवल तालाबों की हालत खराब होने लगी है बल्कि वह धीरे-धीरे पटने भी लगा है।
    महंत लक्ष्मी नारायण दास वार्ड स्थित प्रहलदवा और खो-खो तालाब में नाले का पानी डाला जा रहा है। जबकि इन दोनों तालाब को निस्तारी केे रूप में हजारों लोग उपयोग करते हैं। बाताया जाता है कि पानी की कमी की वजह से लोग निस्तारी को मजबूर है जबकि तालाब में जलकुंभी भी अपना पैर पसार चुकी है। दूसरी तरफ  तालाब पर कई भूमाफि याओं की नजर है और वे इन तालाबों सुख रही जमीनों पर कब्जा करने की कवायद में लगे हैं।
    दूसरी तरफ  आमातालाब को पाटने की जो कोशिश हो रही है वह भी आश्चर्य जनक है। बाताया जाता है आमातालाब को पाटकर काम्प्लेक्स बनाने की योजना है और इसी योजना के तहत तालाब को पाटा जा रहा है। सूत्रों की माने तो शहर भर से निकलने वाली गंदगी और मलबे से तालाब को पाटा जा रहा है। हालांकि तालाब पाटे जाने का विरोध आसपास के लोग कर रहे हैं लेकिन मलबा डालने का काम गुपचुप तरीके से रात में किया जा रहा है।
    इसी तरह तेलीबांधा तालाब के एक हिस्से को सौन्दर्यीकरण के नाम पर पाटा जा रहा है इस पर कई लोगों ने आपत्ति तक जातई है लेकिन यहां भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की सरे आम अनदेखी की जा रही है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने तालाबों को पाटकर काम्प्लेक्स बनाने की नीति के खिलाफ  कड़ा रूख अख्तियार किया है और तालाबों की यथास्थिति बनाये रखने का स्पष्ट निर्देश दिया है। सूत्रों की माने तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तालाब पाटे जाने का काम तो सीधे तौर पर रूक गया है लेकिन साजिशपूर्वक इसे अंजाम दिया जा रहा है। कभी तालाबों का शहर कहलाने वाले रायपुर में कई तालाब पाटे गये। 
    लेंडी तालाब, रजबंधा तालाब को पाटकर जिस तरह से काम्प्लेक्स बनाये गये वह किसी से छिपा नहीं है। और विशेषज्ञों की माने तो रायपुर में गिरते जलस्तर की एक बड़ी वजह तालाबों का पटना है और इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में इसके भीषण दुष्परिणाम भुगतने होंगे।

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

केवल वोट देने तक प्रजातंत्र-केयूर भूषण



स्वास्थ्य ठीक रहा तो आदिवासी हिंसा पर गांधी विचार यात्रा...
चुने हुए जनप्रतिनिधियों का बजाय प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री ही सत्ता
पीड़ा रहित समाज की स्थापना के लिए गांधीवाद ही विकल्प

कांग्रेस गांधीवाद से पूरी तरह दूर सिर्फ जयंति या निर्वाण दिवस ही...
आजादी की लड़ाई की विशेषता नैतिकता लेकिन आज इसकी कमी...
जनता को गांधीवाद पर विश्वास अन्ना हजारे आंदोलन में झलक से स्पष्ट
वैसे तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पथ पर चलने वालों की इस देश ही नहीं पूरी दुनिया में कमी नहीं है। गांधी के बताये मार्ग पर चल कर कुछ कर गुजरने की चाह भरना किसे नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी गांधीवादी विचारधारा को जीने वालों की कमी नहीं है और इनमें से प्रमुख नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केयूर भूषण का भी है। 1 मार्च 1928 को दुर्ग जिला के छोटे से गांव जांता में जन्में केयूर भूषण महात्मा गांधी के आलोक से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना सारा जीवन इसी पथ पर होम कर दिया। 82 वर्षीय केयूर भूषण जहां कांग्रेस के गांधीवाद से भटकने से दुखी है वहीं समाज में बढ़ती हिंसा से आहत है। वे वर्तमान व्यवस्था को गांधीवाद से बदल कुछ करने की सोच ही नहीं रखते बल्कि वे यह कहने से भी नहीं हिचकते कि वर्तमान में प्रजातंत्र सिर्फ वोट देने तक ही रह गया है। वे कहते हैं चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधियों की बजाय सत्ता केवल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पास रह गई है। सत्ता का केन्द्रीयकरण हो गया है जिसकी वजह से आम लोग दुखी है। वे नक्सली हिंसा पर भी आहत है। वे कहते हैं कि आदिवासियों की हितों के लिए हिंसा का जो वातावरण बना है उनका गांधीवाद ही एक मात्र हल है। आदिवासी हित के नाम पर नक्सली व पुलिस दोनों ही हिंसा पर आमदा है। वे इस उम्र में हम मामले में कुछ न कर पाने की पीड़ा समेटे कहते हैं कि स्वास्थ्य ठीक हुआ तो शीघ्र ही गांधी विचार यात्रा निकालकर सरकार और नक्सलियों को बिठाकर हिंसा खतम करूंगा। वे नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के संबंध पर पूछे सवाल पर कहा कि सत्ता में वहीं आयेगा जो सर्वधर्म समभाव रखता हो। अन्ना हजारे के आन्दोलन की झलक से सबको समझ जाना चाहिए कि गांधीवाद से सबको समझ जाना चाहिए गांधीवाद से सबको समझ जाना चाहिए कि गांधीवाद और उनका मार्ग ही प्रासंगिक है और इसी में देश का हित है अन्यथा जिस तेजी से सरकार और उनके लोग विकास की लकीर खींच रहे है उनसे यह डर सताने लगा है कि हम आर्थिक गुलाम न हो जाए। गांधीवादी चिंतक केयूर भूषण कांग्रेस की टिकिट पर 1980 से लेकर 1989 तक रायपुर लोकसभा के सांसद रहे। अपनी गांधीवादी छवि के लिए प्रसिद्ध केयूर भूषण को सन् 2001 में छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा सद्भावना पुरस्कार भी दिया गया। हरिजन उद्धार से लेकर उनके कार्यों को लोग आज भी याद करते नहीं थकते यही नहीं जब पंजाब जल रहा था तब भी केयूर भूषण ने पंजाब में शांति बहाली के लिए अपनी भूमिका से पीछे नहीं हटे थे। सादगी के साथ पूरा जीवन बीताने वाले केयूर भूषण ने हिन्दी व छत्तीसगढ़ी में कई किताबें लिखी है। स्वतंत्रता आन्दोलन के महापुरूषों पर उन्होंने काफी कुछ लिखा है और पीड़ा रहित समाज के निर्माण को लेकर वे आज इस उम्र में भी चल पड़ते है।
स्वतंत्रता के लिए देश के महान नेताओं के संघर्ष को याद करते हुए वे वर्तमान विषन्नावस्था को लेकर मुखरित हो उठते हैं। वे कहते हैं कि हमने विज्ञान और तकनीक की सहायता से प्रगति तो की है लेकिन भौतिक उपलब्धियों की जगमगाहट में नैतिक मूल्य और भारतीय परम्परा खो सी गई है संकट से निकालने वाले महापुरूषों के चले जाने से हम भटक गए है जबकि स्वतंत्रता की पूरी लड़ाई की विशेषता नैतिकता रही है।
केयूर भूषण जी यह कहने से भी नहीं चुकते कि स्वतंत्रता पश्चात भारतीय जीवन का परिस्कार करने के लिए हमें उन बंधनों को तोड़ फेंकना था जिनसे हम बंधे है। विनोबाजी से लेकर कई लोगों ने इन बंधनों को तोडऩे का प्रयास किया। दुर्भाग्य से वे उन्हें पूर्णतया समाप्त नहीं कर पाये। वह खरपतवार आज बढ़कर सब तरफ फैल गई है और आज सारा देश उन विकृतियों से आक्रांत हो रहा है। वे कहते है कि राजनीति में अवसरवादिताओं की संख्या बढ़ी है और इन्हें निकाल फेकने की जरूरत आ पड़ी है ऐसे लोगों को निकाल फेंकने की जरूरत आ पड़ी है ऐसे लोगों को निकालने में कुर्बानी भी देनी पड़े तो पीछे नही हटुंगा। वे कहते है कि ऐसे ही लोगों की वजह से राजनीति अछूत कहलाने लगी है वे युवाओं से आव्हान भी करते है कि युवाओं को अपने महापुरूषों के बताये मार्ग पर चलकर नये व्यवस्था गढऩा चाहिए। केयूर भूषण जी का कहना है कि महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज, स्वालंबन, अन्तयोदय और नैतिकता की दुहाई तो सब देते है उनकी जयंती व निर्वाण दिवस भी खूब आयोजित होते है लेकिन जब तक गांधी के बताये मार्ग के अनुरूप सत्ता नहीं होगी आम आदमी तिरस्कृत होता रहेगा। आज गांधीवाद को लेकर आन्दोलन की जरूरत है। जनता चाह भी रही है जिसकी झलक अन्ना हजारे के आंदोलन में दिखा भी है। छोटे रूप में छत्तीसगढ़ में इस तरह का आन्दोलन करना चाहता हूं। गांधी विचार मंच इसलिए बना भी है। उन्होंने कहा कि राजनीति की वजह से आज हिंसा का वातावरण बन रहा है। कांग्रेस भी गांधी के रास्ते से दूर हुई है। नक्सली हिंसा और पुलिस हिंसा बढ़ी है। गांधी जा रहते तो आदिवासियों के हित के लिए जरूर आगे आते। सरकार और नक्सली दोनों आदिवासी हित की बात करते है लेकिन दोनों ही हिंसा का रास्ता अपनाए हुए है। गांधी की विचारधारा के अनुरूप जब तक ग्राम स्वराज, स्वालंबन और अत्योदय के आधार पर सरकार काम नहीं करेगी सत्ता का विकेन्द्रीकरण नहीं होगा यह स्थिति सुधर रही सकती। आदिवासी क्षेत्रों में यह स्थिति यहां की संपदा की वजह से है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर इन संपदाओं पर है। इसके चलते आदिवासी उजाड़े जा रहे है या वे पलायन कर रहे हैं।  भ्रष्टाचार आखरी स्तर तक पहुंच गया है। सिस्टम बदलना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज हर कोई राज सत्ता हासिल करने के लिए आम आदमी का उपयोग कर रहा है। आरएसएस और भाजपा की नजर बहुसंख्यक वोट बैंक पर है। जबकि इस देश में सर्वधर्म एकता की भावना है सत्ता का लाभ आम आदमी को मिलना ही चाहिए और सरकार उसी की बने जो इन भावना को जीता है। कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष का नाम लेती है लेकिन काम नहीं करती है और इन दोनों की रजनीति में जनता पीस रही है।
स्वतंत्रता संग्राम सैनिक एवं गांधीवादी चिन्तक
जन्म : एक मार्च 1928, ग्रामा जाँता, जिला दुर्ग
पुरस्कार : छत्तीसगढ़ शासन का पं. रविशंकर शुक्ल सद्भावना पुरस्कार 2001 से सम्मानित जन प्रतिनिधित्व : सन् 1980 से सन् 1989 तक रायपुर लोकसभा से संसद सदस्य
प्रकाशित कृति: 1. लहर (छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)
2. कुल के मरजाद (छत्तीसगढ़ी उपन्यास)
3. कहां बिलागे मोर धान के कटोरा (छत्तीसगढ़ उपन्यास)
4. नित्य प्रवाह (प्रार्थना एवं भजन)हिन्दी
5. कालू भगत (छत्तीसगढ़ी  कहानी संग्रह)
6. छत्तीसगढ़ के नारी रत्न
7. मोर मयारूक गाँव (छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह)
8. हीरा के पीरा (छत्तीसगढ़ी निबंध संग्रह)
9. पथ (विभूतियों को समर्पित काव्य संग्रह)
संपादन : 1. साप्ताहिक छत्तीसगढ़ 2. साप्ताहिक छत्तीसगढ़ संदेश 3. त्रैमासिक हरिजन सेवा (नई दिल्ली) 4. मासिक अन्त्योदय (इंदौर) अप्रकाशित छत्तीसगढ़ी साहित्य : 1. डोंगराही रद्दा (कहानी संग्रह) 2. लोक-लाज(उपन्यास) 3. समें के बलिहारी (उपन्यास) 4. आंसू म फिले अचरा (कहानी संग्रह)
    अप्रकाशित: 1. उनका युग (लेखमाला-स्व. इंदिराजी के युव के संदर्भ हिन्दी साहित्य में) 2. राजीव गांधी का अंतरमन 3. अंकुर (हिन्दी कवितायें तथा किशोर साहित्य) 4. सम सामयिक लेखों का संग्रह 5. छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनगाथा
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