शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

कप्तान पर भारी पड़ते थानेदार...

कप्तान पर भारी पड़ते थानेदार...
राÓय के नये डीजीपी राम निवास यादव ने आते ही अपनी ताकत पीएचक्यू यानी पुलिस मुख्यालय में दिखा दी । इस यादवी फेरबदल का असर क्या होगा यह तो वही जाने लेकिन मुख्यालय की चर्चा सड़कों तक पहुचने लगी है । सरकार नहीं चाहती थी कि इस चुनावी साल में कोई भ्रष्ट अफसरों को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा हो इसलिए डीएस अवस्थी को छापामारी से हटा दिया ।
अब सरकार के लिए इतना तो करना ही था आखिर सिनियर संत कुमार पासवान को नजर अंदाज कर रामनिवास यादव पर जो भरोसा किया गया है । यह सरकार तो वैसे भी भ्रष्टाचारियों की संरक्षक मानी जाती है ऐसे में चुनावी साल बहाना ही है और जब प्रदेश के लोकतंात्रिक मुखिया पर ही कोयले की कालिख पूती हो तो फिर उनसे इससे Óयादा उम्मीद बेमानी है ।
हाथ-पांव तोडऩे के लिए चर्चित आई जी मुकेश गुप्ता तो स्वयं हटना चाहते थे और फिर सरकार भी नहीं चाहती थी कि मुकेश गुप्ता को लेकर कार्यकर्ताओं के मन में उठने वाले सवालों का सामना करें इसलिए उन्हें भी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया लेकिन ये क्या जिसे बिठाया गया उस पर कम आरोप नहीं है । जी पी सिंग को आईजी बनाते समय शायद यह नहीं सोचा गया कि उन पर तो सीधे आई पी एस राहूल शर्मा की मौत को लेकर गंभीर आरोप है । और राजधानी के आई जी पर जब ऐसे आरोप हो तो सवाल उठने से रोक पाना आसान नहीं है । हालांकि पुलिस वालों को ऐसे आरोप से फर्क नहीं पड़ता लेकिन सरकार को फर्क पड़ सकता है । राजधानी के दिग्गज मंत्रियों की सलाह से यदि जीपी सिंग को आई जी बनाया गया है तो फिर सांसद रमेश बैस या नंदकुमार साय कितना भी पुलिस को नियंत्रण करने की बात करें कोई मतलब नहीं है ।
वैसे भी बैस जी कब मुंह खोले और कब पलटी मार दे कोई ठीकाना नहीं है । भतीजे को पड़ी तो बोल दिये । बाद में ऐसा नहीं कहा करने में कितनी देर लगेगी । यानी पुलिस को क्लीन चिट मिलना तय है । नहीं तो गृहमंत्री यदि किसी पुलिस कप्तान को निकम्मा कहे और उसके बाद भी कप्तानी रहे यह ल"ााजनक बात नहीं मानी जाती ।
राजधानी में चार साल से जमें पुलिस कप्तान दीपांशु काबरा भले ही खुशबू के अपहरकर्ताओं को पकडऩे के लिए अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन सच तो यह है कि जिले के कई थानेदार उनकी नहीं सुनते ।
अब मोवा थाने का ही मामला ले । यहां पदस्थ श्रीमती संध्या द्विवेदी की रोज शिकायत हो रही है । यहां लूट की घटना को चोरी बता दिया जाता है । अवैध शराब से लेकर जुआरियों और सटांरिये तक से महिने वसुलने की शिकायतें है । बिल्डरों के पक्ष में पीढि़तों को चमकाने की शिकायत है । अपराधियों से गठजोड़ की तो शिकायतों का अंबार है लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई ही नहीं होती है ।
अब तो दहेज प्रताडि़त एक महिला Óाया शर्मा ने मोवा थाने पर रिपोर्ट नहीं लिखने की शिकायत कर दी है लेकिन कप्तान को इससे मतलब ही नहीं है । अब लोग कहते रहे हैं कि थानेदार के आगे कप्तान की नहीं चलती । न तो सरकार को फर्क पड़ता है और न ही मुख्यालय में बैठे अफसरों को ही इससे फर्क पड़ता है । आखिर पुलिस की छवि ऐसी बनी रहेगी तभी तो खर्चा चलेगा ।
खर्चा चलेगा तभी तो सेहत बनेगी । तभी तो फरार होने वाले कैदियों को पकडऩे में ताकत लगेगी । अब कांकेर में बस स्टैण्ड से तीन जवानों को चकमा देकर कैदी भाग गया तो इसमें पुलिस वालों की गलती कैसे ? लेकिन लोगों का ध्यान रखना है इसलिए तीनों निलंबित कर दिये गये । लोगों की याददाश्त Óयादा होती नहीं इसलिए कुछ दिन में बहाल कर दिये जायेगे । आखिर बल की कमी है और बल की कमी न भी हो तब भी बैठा के वेतन देना ठीक नहीं है । तभी तो थाने में हुई हत्याओं के दोषी पुलिस कर्मी मजे से दूसरी जगह डूयूटी बजा रहे हैं मरने वाले का क्या । वह लौट के तो आयेगा नहीं लेकिन जो दोषी जिन्दा है उन्हें कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए ।