शुक्रवार, 30 मार्च 2012

सिर्फ पकड़े गये, सजा नहीं दिला पाये...


प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पिछले दिनों आर्थिक अपराध ब्यूरो और एंटी करप्शन ब्यूरों की कार्रवाई की जो रिर्पोट विधानसभा में दी वह न केवल शर्मनाक है बल्कि सरकार के क्रियाकलापों की कलई खोलती है। मुख्यमंत्री ने जिस अंदाज में आर्थिक अपराध ब्यूरों द्वारा दर्ज 99 वें से 2 मामले ही निपटाने की बात कही इससे तो यही लगता है कि सरकार की रूचि भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देने में हैं।
छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है सरकार के मुखिया ही जब आर्थिक अपराध व एंटी करप्शन टीम की कार्रवाई पर खामोश है तो इसका सीधा संदेश है कि सरकार ही नहीं चाहती कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई हो जो जनता की सुविधा के लिए या राज्य के विकास पर डाका डालने में लगे हैं। यदि साल भर में प्रकरण निपटाने की गति 1-2 प्रतिशत है तो यहां तैनात लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए कि आखिर वे किसका इंतजार कर रहे हैं।
इस पूरे मामले को दुर्भाग्यजनक पहलू तो ये है कि इन दोनों संस्था ने जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किये है उन्हें सरकार आज भी महत्वपूर्ण पदों पर बिठा रखी है। यह ठीक है कि प्रकरण दर्ज कर लेने मात्र से कोई अपराधी नहीं हो जाता लेकिन जब दोनों ही ब्यूरों सरकार की एजेंसी हैं तब सरकार को अपनी एजेंसी पर भरोसा कर भ्रष्ट लोगों को ऐसे काम में तो न लगाये जहां उनके गफलत करने की संभावना है।
मुुख्यमंत्री के अनुसार सर्वाधिक प्रकरण लोक निर्माण विभाग से संबंधित है। ऐसे में निर्माण कार्य में आरोपियों की पदस्थापना क्यों बंद नहीं होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ का यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि जो जितना बड़ा भ्रष्ट है उसे उतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। स्वयं मुख्यमंत्री के विभाग में ऐसे भ्रष्ट लोगों का जमावड़ा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जिस तरह से सर्वाधिक राजस्व वाले खनिज, उर्जा जैसे विभाग को अपने पास रखा है वैसे ही इन विभागों में भी बड़े-बड़े मगरमच्छ जमें हुए हैं। विद्युत नियायक आयोग के अध्यक्ष मनोज डे पर लगे आरोप कितने गंभीर है यह किसी से छिपा नहीं है। ओपन एक्सेस घोटाले पर तो कोई कुछ कहना ही नहीं चाहता और खनिज को लेकर तो चौतरफा लूट मची है। उद्योगों को खदान देने व अवैध उत्खनन के बढ़ते मामले ने छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रदेश में माफिया गिरी को जन्म दे दिया है। राजधानी के आसपास गौण खनिजों की खुले आम डकैती हो रही है जबकि उद्योगों को तो अवैध उत्खनन का ठेका देने जैसी स्थिति बन गई है। अनिल लूनिया जैसे लोगों को सिर्फ रायल्टी वसूली की नोटिस दी जाती है और उद्योगों में रिश्तेदारों को नौकरी लगाये जा रहे हैं।
ये सब छत्तीसगढ़ के लिए ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जिस तरह से विधानसभा में ब्यूरों के आंकड़े दिये हैं उसके बाद तो ऐसा नहीं लगता कि सरकार की कार्रवाई में कोई रूचि हैं।