रविवार, 28 मार्च 2021

झूठ बोलने की बीमारी...

 

झूठ बोलने की बीमारी को माई थोमेनिया भी कह सकते हैं, यह उन व्यक्तियों में अधिक होती है जो स्वयं के धर्म-जाति को श्रेष्ठ बताते नहीं थकते, हालांकि माईथोमेनिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें झूठ बोलने या अतिश्योक्ति की असमान्य प्रवृत्ति होती है। यह एक तरह का मानसिक विकार है और जिसमें यह विकार आ जाता है वह यह कभी नहीं सोच पाता कि उसकी इस हरकत से वह स्वयं हंसी का पात्र हो सकता है या उसकी झूठ की वजह से देश समाज को शर्मिन्दा उठानी पड़ सकती है।

हालांकि झूठ बोलने वालों को पसंद करने वालों की तादात बढ़ी है और वे इस पर तर्क भी देते नहीं थकते कि झूठ बोलने से किसी का नुकसान न हो रहा हो या किसी की जान बच रही है तो झूठ बोलने में क्या हर्ज है। अपने झूठ से किसी दूसरे को चकित या भ्रमित करना उनके लिए किसी विश्व विजेता से कम नहीं है। लेकिन मनोचिकित्सकों का क्या, वे तो इसे मानसिक बीमारी ही कहते हैं।

मनोचिकित्सकों के अनुसार यह सब माहौल की वजह से होता है, आप जिस माहौल में अपना जीवन खफा देते हैं जहां झूठ, अफवाह और नफरत के अलावा स्वयं ही सर्वश्रेष्ठ है। इसका पता लगाने की जरूरत नहीं पड़ती वह स्वयं अपनी बीमार या विकार का प्रदर्शन कर देता है। और वह व्यर्थ की बातों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है।

मनोचिकित्सक तो यहां तक कहते हैं कि इस तरह से झूठ बोलने वाला व्यक्ति कभी वफादार नहीं होता। और स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है और इस चक्कर में यदि इस बीमारी का शिकार व्यक्ति यदि उच्च पदों पर बैठा हो तो अपने पद का दुरुपयोग कर समाज-देश का नुकसान कर सकता है।

हालांकि ऐसा व्यक्ति अपनी वाकपटुता के चलते इसी तरह की बीमारी से ग्रस्त लोगों को न केवल अपना प्रशंसक बना लेता है बल्कि एक दो ऐसे काम कर लेता है जो अविश्वसनिय नजर आता है लेकिन कुल मिलाकर इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति से बड़े नुकसान की आशंका बनी रहती है।

हालांकि मनोचिकित्सकों ने झूठ बोलने की बीमारी को पकड़ लेने का दावा करते हैं और अब तो नार्को टेस्ट भी होता है लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग इसलिए पकड़ में नहीं आते क्योंकि झूठ बोलने के लिए कोई खास संस्था से वे ट्रेनिंग लिये होते हैं।

झूठ बोलने की ट्रेनिंग देने वाली जाति या धर्म को ही महान बताकर युवाओं और बच्चों को आकर्षित तो करते ही है साथ ही सच की दीवार में झूठ का ऐसा सुराख करते हैं कि दीवार कम दिखे और सुराख ही बड़ा दिखे। आधा सच बताकर झूठ को ही सच बताने, अफवाह उड़ाने और अपने हालात के लिए दूसरे को जिम्मेदार बताकर नफरत का बीड़ा बोने वाली इन संस्थाओं को लेकर कुछ लोगों ने रिसर्च भी किया है।

खैर जब संस्था का उद्देश्य ही नफरत अफवाह और झूठ फैलाना हो तो आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी का क्या मतलब। अपने देश की आजादी हो या दूसरे देश की। बीमारी तो असर करेगा ही।