बुधवार, 21 अप्रैल 2010

दामाद की दमदारी , सरकारी की लाचारी

घोटालेबाजों का जमाना है महाधिवक्ता सुराना है- 5
जनसंघ की टिकिट से चुनाव लड़ चुके महाधिवक्ता देवराज सुराना ही नहीं उनके दामाद विजयचंद बोथरा भी दमदार है यही वजह है कि इनके परिवार के खिलाफ एक के बाद एक केस तो दर्ज हुए लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। मंदिर से लेकर आदिवासियों की जमीन हड़पने का मामला हो या श्रीमती चेतना सुराना का ही मामला हो पुलिस सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और सत्ता के प्रभाव में फर्जीवाड़ा जमकर चलता रहा। क्या अब भी सरकार इस मामले पर कार्रवाई की बजाय खामोश रहेगा।
दरअसल छत्तीसगढ क़ी भाजपाई राजनीति में सुराना परिवार का जबरदस्त दबदबा है और कहा जाता है कि इनके खिलाफ जुबान खोलने वालों की पार्टी में खैर नहीं। यही वजह है कि जब देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाया गया तब भी किसी ने विरोध नहीं किया और आज जब उन्हें लेकर पार्टी की बदनामी हो रही है तब भी कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। वास्तव में देवराज सुराना ही नहीं उनके परिवार के कवर्धा निवासी विजयचंद बोथरा भी दमदार हैं और कहा जाता है कि मुख्यमंत्री के गृह जिले के होने के कारण उनका डा. रमन सिंह से सीधे संबंध है और जिस व्यक्ति का मुख्यमंत्री से सीधे संबंध हो उसके खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद किया जाना निरर्थक माना जाता है यही वजह है कि बदनामी से कई भाजपाई दुखी तो हैं लेकिन वे अपना दुख दबी जबान में ही व्यक्त करते हैं।
बताया जाता है कि आदिवासियों की जमीनें फर्जी तरीके से खरीदने के मामले में न केवल विजयचंद बोथरा बल्कि उनके पुत्र विनित बोथरा तक शामिल हैं और इसी तरह इस बात की भी चर्चा है कि सुराना परिवार को उनके मामले से बचाने में बोथरा परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कवर्धा के इस प्रभावशाली बोथरा परिवार के भी अपने किस्से हैं और कहा जा रहा है कि सरकार के कई वरिष्ठ अधिकारी तक इस परिवार की पहुंच का लोहा मानते हैं और कई महत्वपूर्ण नियुक्तियां भी इनके इशारे पर हुई हैं।
यही वजह है कि सुराना-बोथरा परिवार की पहुंच ने चेतना सुराना के मामले में पुलिस के हाथ पैर बांध दिए हैं। पुलिस इस्तेगासा तो पेश कर दी है लेकिन श्रीमती चेतना सुराना की अनुपस्थिति पर चुप्पी साध रखी है। चेतना सुराना मामले का सबसे दुखद पहलु तो यह है कि देवराज सुराना महाधिवक्ता है और शासन-प्रशासन को महाधिवक्ता से सलाह लेना होता है ऐसे में बहुत संभव है पुलिस खामोश रहे। बहरहाल सुराना-बोथरा परिवार की इस जुगलबंदी के किस्से आम लोगों में चर्चा का विषय है और यही हाल रहा तो सरकार को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।